Heart Touching Kahaniya

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कल तक उन्मुक्त गगन  में विचरती मैं अपने माता पिता की नाजों से पली बेटी... कब बड़ी हो गई मुझे पता ही न चला, माता पिता के ...
19/09/2025

कल तक उन्मुक्त गगन में विचरती मैं अपने माता पिता की नाजों से पली बेटी... कब बड़ी हो गई मुझे पता ही न चला, माता पिता के चेहरे भी मायूस होने लगे ,बिटिया को पराए घर जो भेजना
था पर दुनिया की रीत है कौन से माता पिता अपनी लाडो को अपने पास रख पाएं हैं जो मैं
उनके पास रह पाती!!
विवाह बंधन... एक खूबसूरत अहसास, एक बेटी से किसी की पत्नि और प्रेयसी में तब्दील हो गई मैं, नए लोग ...
नया माहौल सब कुछ अलग... कितना मुश्किल है न ..बरसों से बनी,अपनी जीवन शैली को पूरी तरह बदल देना.. दूसरों के अनुसार अपने को ढालना...
कितनी भी कोशिश करूं.. कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है, दोबारा उसे सुधारने में लग जाती हूं
जहां हर काम में शाबाशी पाने की आदत थी यहां छोटी सी बात का भी बतंगड़ बनाने में पल भर की देर नहीं लगती, पहले बहुत दुख होता था
अब मैं सहन कर लेती हूं, अपने को बदल लिया है मैंने!!
उम्मीद से हूं ... बहुत सारे बदलाव हो रहे हैं
मुझमें... एक नए परिवर्तन की तैयारी में हूं मैं
कभी रोने को मन करता है कभी हंसने को, सब ध्यान रख रहे हैं मेरा, नित नए बदलावों से
गुजर रही हूं मैं !!
सारा जीवन बदल गया मेरा,मैं मां बन गई, मुझे अपनी बहुत सी आदतें बदलनी पड़ीं.... अपने नन्हें के हिसाब से मैंने अपनी दिनचर्या बना ली !!
मेरा बेटा स्कूल जाने लगा , एक नया मोड़ आया, मुझे उसे संस्कार देने हैं, उसकी पढाई लिखाई का सारा दारोमदार मुझ पर है..... मैं फिर बदल रही हूं, एक समझदार मां में परिवर्तित हो रही हूं!!
आज बहू का गृह प्रवेश है... एक बदलाव और
आया मुझमें... मैं एक सुघड़ पत्नि, कुशल गृहणी, एक कामयाब पुत्र की मां के साथ साथ
एक सास के रुप में परिवर्तित हो गई, अब मुझे
धीर गंभीर , सुलझी हुई सासू मां का रोल भी निभाना है........ पीछे पलटकर देखती हूं तो अपने को पहचान नहीं पाती... वो अल्हड़ सी , मस्तीखोर चुलबुली सी लड़की कहां गई?
उसकी जगह एक पूर्णतः बदला हुआ व्यक्तित्व
दिखता है मुझे..
न जाने.... और कितना बदलना होगा मुझे ..
मेरे इस जीवन में बदलाव कब तक आयेंगे?
प्रीति सक्सेना
इंदौर

"और ये लगा छक्का...," कमेंट्री करता हुआ राहुल छन्न की आवाज सुनते ही हड़बड़ा गया,"भागो..."कहते हुए भागने लगा और रन के लिए...
19/09/2025

"और ये लगा छक्का...," कमेंट्री करता हुआ राहुल छन्न की आवाज सुनते ही हड़बड़ा गया,
"भागो..."कहते हुए भागने लगा और रन के लिए दौड़ लगाते गुड्डू से टकराकर गिर गया...दोनों का बैलेंस बिगड़ा,राहुल का सिर जमीन से टकराया और गुड्डू मुंह के बल अपने ही हाथ में पकड़े बैट पर गिर गया।
अच्छी खासी भगदड़ मच गई सोसाइटी में।
वाचमैन पानी लेकर आया, मिसेज सिन्हा भी गाड़ी का कांच टूटने की ख़बर सुन,फटाफट दौड़ी आईं।
"समझ नहीं आता बिल्डिंग है या खेल का मैदान,सारा दिन हंगामा होता है यहां,अब इस नुकसान को कौन पूरा करेगा?"
दो चार महिलाएंऔर भी जमा हो गई,राहुल और गुड्डू बहते हुए खून को रोकने की नाकाम कोशिश करते अपराधियों की तरह सिर झुकाए खड़े थे।
सेक्रेटरी तलब किए गए।
"देखिए सर! क्या होता है यहां ,सारा दिन शोर शराबा,रहना मुश्किल होता जा रहा है।बच्चों की मस्ती और शरारतें दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही हैं,आज हमारी गाड़ी का कांच फोड़ा है,कल आपकी गाड़ी का नंबर आएगा,,परसों किसी और की।"
मिसेज सिन्हा जोश में आ गईं थीं।
"पर पार्किंग में नहीं खेलें तो कहां जाएं?
गार्डन एरिया में भी तो गाड़ी खड़ी हैं इतनी सारी।"
चिंटू ने बीच में घुसते हुए कहा और उसकी मम्मी ने झट उसे पीछे खींच लिया।
शाम को मीटिंग बुलाई गई है,सभी अपने अपने हित को
सर्वोपरि रखना चाहते हैं।वर्मा जी की दो गाड़ियां हैं,उन्हें सोसायटी में एक्स्ट्रा जगह चाहिए।
दुबे जी देर से लौटते हैं उन्हें पार्किंग स्लॉट में लास्ट की जगह दरकार है।
बेचारे बच्चे मुंह लटकाए घूम रहे हैं,किसी को उनकी परवाह ही नहीं है।
अचानक सेक्रेटरी ने अनाउंस किया,
"देखिए हम सभी जानते हैं बच्चों के लिए आउटडोर गेम कितने जरूरी हैं,मुश्किल से तो मोबाइल,कंप्यूटर से छुटकारा पाते हैं खेलने के बहाने।"
"सोसायटी सभी की है,बच्चों के भविष्य को मद्देनजर रखते हुए मैं सभी से विनती करना चाहता हूं,इन्हें खेलने दीजिए,
गाड़ी के नुकसान की भरपाई हो सकती है,पर एक कुंठित व्यक्तित्व की नहीं।"
"बच्चों को भी खेलते हुए थोड़ी सावधानी रखनी होगी,ताकि किसी का नुकसान न हो...."
खडूस माने जाने वाले सेक्रेटरी अंकल आज सभी बच्चों के चहेते बन गए थे,अनजाने ही...!
मौलिक/वर्षा गर्ग

"क्या हो रहा है ये सुबह- सुबह ।"     " वो अब्बू मैं सूर्य नमस्कार ..........।"     "किसने कहा तुम्हें ये सब करने को,  .....
19/09/2025

"क्या हो रहा है ये सुबह- सुबह ।"
" वो अब्बू मैं सूर्य नमस्कार ..........।"
"किसने कहा तुम्हें ये सब करने को, ........ पता नहीं ये स्कूलों में क्या- क्या सिखाते हैं ।" चिढ कर बोला था राशिद ।
"तभी तो कहता था ...... इसे मकतब में पढाओ,
पर तुम्हारे सर पे तो अंग्रेजी का भूत सवार था ......अब भुगतो ।" अब्दुल ने राशिद को उलहाना दिया ।
"पर अब्बू ये तो सूर्य नमस्कार है ....... । " हामिद ने दलील दी ।
"हाँ मालूम है मुझे .........,काफिर बनना है क्या तुझे? , अरे हिन्दू करते हैं इसे ।" खीजकर बोला राशिद ।
"क्यों .......अब्बू ।"
"क्योंकि देवता है ये उनका ।"
"नहीं अब्बू ...... हमारी मैंम कह रही थी के ......सूरज, चाँद, सितारे, धरती, आसमान ...... सब नेचर हैं .......... और ये सबके हैं ।" एक साँस में कह गया हामिद ।
" अच्छा ज्यादा जबान मत चला ।" चिढ गया था राशिद ।
"दादाजान जब पिछली सरदी आपको पीलिया हो गया था, तो हकीम जी के कहने पर आप रोज सूरज की धूप लेते थे, अगर ये हिन्दूओं के हैं तो फिर आपने उस से धूप क्यों ली ?"
नन्हे हामिद का सवाल अपनी और आते देख अब्दुल पीठ मोड़ कर लेट गया ।
राशिद भी जलती आँखों से हामिद को देखता हुआ बाहर निकल गया ।
और ......... नन्हा हामिद फिर से सूर्य नमस्कार करने लगा, कुदरत का धन्यवाद करने के लिए ।
रेखा राणा करनाल

अचानक आकाशीय बिजली की भीषण गड़गड़ाहट, साथ ही जोर की बरसात और इधर धरती की बिजली गायब, यानि घोर अंधेरा।    आजकल घर में आपा...
19/09/2025

अचानक आकाशीय बिजली की भीषण गड़गड़ाहट, साथ ही जोर की बरसात और इधर धरती की बिजली गायब, यानि घोर अंधेरा।
आजकल घर में आपात काल के लिऐ भी मोमबत्ती शायद ही उपलब्ध होती है, इसलिए अंधेरे में बैठने के अतिरिक्त कोई रास्ता भी तो नहीं बचता, किसी प्रकार रमेश अंधेरे में ही बालकोनी में पहुंच, वहां बैठ लाइट आने की इंतजार करने लगा। ऐसी घनघोर बारिश में जरुर कोई बड़ा फाल्ट हुआ होगा तभी तो काफी देर से लाइट आई ही नही, इन्तजार करने के अलावा किया भी क्या जा सकता है? ऐसे बैठे बैठे ही रमेश लगभग१५ वर्ष पूर्व घटित घटना की याद में सिमट गया।
राजस्थान के आदिवासी इलाके कोटड़ा के जंगली क्षेत्र में एक आदि वासी परिवार में उस शाम को याद कर रमेश का मन मस्तिष्क झंकृत हो उठा।
एक मित्र के साथ रमेश ने आदिवासी क्षेत्र भ्रमण करने और उनके जीवन को देखने का कार्यक्रम बनाया, कैसे जीवन जीते हैं, कैसे और क्या खाते हैं, क्या करते हैं, ये सब जिज्ञासा लिए रमेश कोटड़ा पहुंच ही गए। किसी प्रकार एक आदिवासी परिवार के यहां शाम के भोजन का जुगाड किया, तभी तो पता चलता वो कैसे रहते और क्या खाते हैं? उस परिवार के मुखिया का नाम था शिव,उसकी पत्नी ललिया और करीब 21-22वर्षीय बहन झुमरी, बस उस परिवार में ये तीन ही प्राणी थे . बाद में पता चला एक बेटा भी है, पर वो उदयपुर में मजदूरी का काम करता है।
शिव को पहले ही सूचना भिजवाई जा चुकी थी कि दो व्यक्तियों का रात्रि भोजन उसके यहां है। सो रमेश अपने मित्र के साथ शिव के यहां शाम ७बजे पहुंच गया। वहां जाकर पता लगा कि आदिवासी परंपरा के अनुसार उनके यहां भोजन तब बनना प्रारंभ होता है, जब अथिति घर आ जाए, भले ही उसे पहले ही सूचना हो। लिहाजा रमेश के पहुंचने के बाद भोजन बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।
भोजन बनाया ही जा रहा था कि घनघोर वर्षा प्रारम्भ हो गई।उस टिन टप्पर वाले घर में कई स्थानो से पानी टपकने लगा, झुमरी भाग भाग कर उन स्थानों पर बर्तन रख उस विपदा औऱ विवशता को ढ़कने का प्रयत्न कर रही थी।रमेश और उसका मित्र केवल ढांढस बधाने कुछ कर भी नही सकते थे।सच पूछा जाये तो वो वहां आने के लिये अपराध बोध से ग्रस्त थे।किसी प्रकार भोजन तैयार हुआ, यह तो समझ नही आया कि क्या बना है, रोटी भी हलक से नीचे नही उतर रही थी, रमेश ने तो चुपके से अपनी बची रोटी अपनी जेब में ही रख ली।
वनवासियों का जीवन देख मन अवसाद से भर गया।बरसात की रात उनके लिये रोमांच, मस्ती, रोमांस लेकर नही आती, लेकर आती है एक अस्तित्व का संकट।फिरभी अथिति का सम्मान वो नही भूलते।
द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अगूंठा गुरुदक्षिणा में मांग लेने के बाद से शेष समाज से बनाई दूरी कैसे दूर हो, ये एक अहम प्रश्न सामने आता ही है।रमेश कोई समाज सुधारक तो था नही वो तो कोटड़ा वनवासी परिवार मे जिज्ञासा वश गया था, पर वो विचलित था।
अचानक उसने एक निर्णय लिया और एक बार फिर उसी परिवार में अकेला ही पहुँचा और शिव से बोला भाई,आज मैं तुम्हारे यहाँ भोजन करने नही आया हूँ, लेकिन कुछ मांगने आया हूँ, शिव असमंजस में था, शायद सोच रहा था कि उसके पास क्या है जो ये बाबू मांगने आ गये?इतने में ही उसकी पत्नी ललिया भी आ गई।
शिव आज मैं तुमसे झुमरी का हाथ मांगने आया हूँ,क्या मुझे स्वीकार करोगे?तभी एक बार फिर आकाश में बिजली चमकी और जोरदार वर्षा शुरु हो गई।
अचकचा कर शिव ने रमेश को अपनी टिन टप्पर वाली झोपड़ी में अंदर खींच लिया।वर्षा हो रही थी और झुमरी फिर टपकते पानी वाले स्थानो पर बर्तन रख रही थी, पर आज उसका सहयोग रमेश भी कर रहा था।
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक एवम अप्रकाशित

"प्रतिमा दीदी ! आपका बेटा आया है ।घर पर वह आपका इंतजार कर रहा है।".....एक बच्ची ने आकर प्रतिमा से कहा ।   प्रतिमा के कदम...
19/09/2025

"प्रतिमा दीदी ! आपका बेटा आया है ।घर पर वह आपका इंतजार कर रहा है।".....एक बच्ची ने आकर प्रतिमा से कहा ।
प्रतिमा के कदम ना चाहते हुए भी घर की ओर मुड़ गए। रिटायर होने के पश्चात संतान सुख की लालसा उन्हें बेटे के पास में गई थी । लेकिन उच्च शिक्षा एवं नौकरी के दंभ में उनकी इकलौती बहू, सारी जिंदगी छोटे बच्चों को पढ़ा कर जीवन यापन करने वाली अपनी शिक्षिका सास की इज्जत ना कर सकी। अपने पुत्र मोह के कारण वह असीम मानसिक वेदना एवं अपमान को सहती रही। माँ के प्रति प्रेम रहने के बावजूद बेटा अपनी पत्नी के समक्ष मुँह खोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था। अनियंत्रित सैलाब मजबूत बांध को भी धराशायी कर देता है। सब्र के बांध के विध्वंस होते ही, प्रतिमा के पांव पतिगृह की ओर बढ़ चले । उनके जीवन साथी जीवन भर भले ही साथ नहीं चल सके लेकिन उनके रहने और आजीवन अपने पेंशन के द्वारा उसकी जीविका का प्रबंध कर अपने पतिधर्म को पूर्णतया निभाया था। उनके सामने 'प्रतिमा हाउस' जिसे उनके पति ने उनका नाम दिया था, बाहें फैलाए खड़ा था। लेकिन जीने के लिए जीने की चाहत का होना जरूरी होता है। जिंदगी से उन्हें विरक्ति सी हो गई थी। बिना खाए पिए वह दो-तीन दिन यूं ही पड़ी रही ।एक दिन उदासीनता और कमजोरी की वजह से वह मूर्छित होकर गिर पड़ी। जब होश आया तो देखा ,एक लड़की बड़े प्यार से उनका सिर सहला रही है ।
"मुझे यहाँ क्यों लाई ?मुझे मर जाने दिया होता।...... उन्होंने कहा।
" जिंदगी अनमोल है। अगर अपने लिए नहीं जीना तो ,दूसरों के लिए जीना चाहिए।".... उसने मुस्कुराते हुए कहा," मैं गरीब बच्चों को पढ़ाती हूँ तथा उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए कुछ ना कुछ उन्हें सिखलाती रहती हूँ। अभी दिवाली आने वाली है तो मैं उन्हें दिए और मोमबत्ती बनाना सीखा रही हूँ।"
प्रतिमा को जैसे जीने का मकसद मिल गया। यह सब सोचते हुए वह घर पहुँच गई।
" माँ! आपने तो घर को यतीमखाना बना रखा है। जिसका बेटा लाखों कमा रहा है उसकी माँ चंद पैसों के लिए घर-घर दिए और मोमबत्तियाँ बेच रही है ।"........बेटा गुस्से से बोला ।
"नहीं बेटा! तुम गलत सोच रहे हो। मैं घर घर दिए और मोमबत्ती नहीं बेच रही हूँ । मैं तो उन दिए और मोमबत्तियों से अपने आसपास रोशनी फैलाने का प्रयास कर रही हूँ।ऐसा करने से मुझे शर्म नहीं , गर्व हो रहा है।"....... मां ने मुस्कुराते हुए कहा।
रंजना वर्मा उन्मुक्त
स्वरचित

"सुनो ""कहो ।""मैं शाम  को आपका बेसब्री से इंतजार करती हूं और आप आकर दो पल भी मुझसे बात नहीं करते चाय पीकर सीधे मां जी क...
19/09/2025

"सुनो "
"कहो ।"
"मैं शाम को आपका बेसब्री से इंतजार करती हूं और आप आकर दो पल भी मुझसे बात नहीं करते चाय पीकर सीधे मां जी के पास चले जाते हो ।"
"पूरी रात तो तुम्हारे पास ही पास रहता हूं ।"
"लेकिन फिर भी आपको मेरे पास बैठकर दो चार बातें तो करनी ही चाहिए जिनके लिए मैं पूरे दिन तरसती हूं ।"
"तो क्या दिन भर तुमको गोदी में ही बैठाकर रखूं ...तुम तो बस यही चाहती हो ...मां के पास न जाऊं ।"कहते हुए वह करवट लेकर दूसरी तरफ सो गया ।
वह चुपचाप आंसू बहाती रही ,"क्या यही प्रेम है कि आकर बस अंधेरे में वीवी के पास सो जाओ ?"उसने आज फिर यह प्रश्न खुद से किया ।
कितने सपने थे कि अपने पति के पास बैठकर उसकी आंखों में आंखें डालकर प्रेम का इजहार करूंगी ...उसके ऑफिस से आने पर बहुत सारी बातें करूंगी ... मैं यह थोड़े ही चाहती हूं कि अपनी मां और बाबू जी से बात न करो लेकिन मेरी भी तो सुननी चाहिए ।"सोचते सोचते ही वह कब सो गई पता ही नहीं ।
राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
(मौलिक लघुकथा)

कहानी तब की है जब  देश आजाद नही हुआ था।घरवालों ने सुरसती का ब्याह तेरह बरस की उम्र में कर दिया था। पन्द्रह की हुई तब गोन...
19/09/2025

कहानी तब की है जब देश आजाद नही हुआ था।
घरवालों ने सुरसती का ब्याह तेरह बरस की उम्र में कर दिया था। पन्द्रह की हुई तब गोना हो गया था। मां को चिंता रहती थी 'पता नहीं इतने बड़े कुनबे का काम कैसे संभालेगी मेरी बिट्टो '।
सरसती जब सत्रह की हुई थी, एक बालक को जन्म दे चुकी थी। प्रसव को तीन महिने हुए थे, माँ ने यह सोच कर कि पता नहीं बेटी की सास ने कुछ खिलाया पिलाया भी होगा या नहीं मेरी लाडो को, सुरसती के बापू को भेज कर अपनी लाडली को मंगवा लिया था। "यहां रहेगी दो चार महिने खूब देखभाल करूंगी इसकी, और अपने नाती को भी जी भर कर खिलाऊंगी। मां ने नाती को चूमते हुए कहा था "।
कई महिनों तक मां से दूर रही सरसती भी मां के प्यार की छांव में अपनी सारी थकान उतार रही थी।
कुछ दिन बीते कि सुरसती को मलेरिया ने घेर लिया।, डाक्टर वैद्य उस जमाने में ज्यादा नहीं होते थे,गांव में तो बिल्कुल भी नहीं। शहर गांव से दस कोस दूर था।सवारी का कोई साधन नहीं था। गांव के झोलाछाप हकीम ने खूब उलटी सीधी गोलियां खिलाईं, मां ने भी कई बार आक के पौधे को दावत का न्यौता दिया कि लौटती बार वह बुखार को उसके साथ भेज देगी।
उन दिनों फोन की सुविधा तो थी नहीं, चिट्ठी पत्री लिखने वाला भी पूरे गांव में शायद अकेला डाकिया बाबू ही था। वही सबके खत पढ़ने और लिखने का काम करता था। बापू सुरसती की बीमारी की खबर उसकी ससुराल पहुंचा पाते, उससे पहले ही काल के क्रूर पंजों ने सुरसती को झपट लिया। माँ रो रो कर बेहाल थी।सात माह केअबोध लखी को तो ये भी मालूम नही था कि उसकी जननी को काल ने निगल लिया है।
सुरसती के चाचासउसकी ससुराल सूचना देने पहुंचे, तो सुनते ही वहां कोहराम मच गया, रोते बिलखते ससुर और एक दो व्यक्ति सुरसती के मायके पहुँचे।
इतनी सुविधा तब नहीं थी कि शव को ससुराल लाया जा सके, सो अंतिम संस्कार वहीं कर दिया गया। नन्हे लखी को लेकर भारी मन से बाबा ने बिदाई ली।
छोटे से लोटे में शिशु के लिए दूध रख कर घूंघट की ओट से नानी ने कहा " गर्मी की दोपहरी में स्टेशन पर कुछ न मिलेगा,ये दूध है,रास्ते में लखु को पिला देना जी "।
ट्रेन चल पड़ी थी, आधा घंटे की नींद के बाद लखी जाग गया और उसने रोना शुरू दिया।बाबा ने दूध पिलाना चाहा, लेकिन गर्मी के कारण दूध की दही बन चुकी थी।
लखी का रोना तेज होता जा रहा था।बाबा कभी खड़े हो जाते, कभी बातों से बहलाने का प्रयास करते। कभी साथ वाले चुप करने की कोशिश करते। लेकिन मासूम किसी से चुप नहीं हो रहा था। एक तो भूख ऊपर से मां की याद उसे व्याकुल रही थी। सभी सह यात्री भी बच्चे को बिलखता देख कर व्यथित हो रहे थे।
सामने की सीट पर बुर्का पहने महिला से जब ये देखा न गया तो धीरे से पूछने लगी "चाचा! बहुत छोटा सा बच्चा है,रो रोकर हलकानहुआ जा रहा है आप इसकी मां को साथ क्यों नहीं लाये, "।
" बेट्टी इसकी मां ना रही, हम इसे ननिहाल से ला रहे हैं, पर क्या करें ये तो चुप ही नहीं हो रहा। हम से इसका रोना देखा नहीं जा रहा समझ नहीं आ रहा, क्या करें "।बाबा ने लाचारगी जाहिर की।
" आपको कोई ऐतराज ना हो तो क्या मैं बच्चे को दूध पिला दूं। महिला ने अपने लगभग दो वर्ष के बच्चे को एक तरफ बिठाते हुए पूछा तो बाबा कुछ पल के लिये स्तब्ध रह गए, उन्हें कोई जवाब नहीं सूझा और वे अपने साथियों की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे। सभी के चेहरे पर भी असमंजस की लकीरें थीं, उन्होंने इशारों में अपनी असहमति जता दी।
बच्चे का करुण क्रंदन तेज होता जा रहा था, रो रो कर मुख सूख रहा था। बाबा से देखा नहीं जा रहा था।उन्हें अपने कलेजे के टुकडे़ के जीवन के आगे मजहब की ऊंची दीवार बौनी नजर आ रही थी जिसे उन्होंने एक ही छलांग में लांघ दिया।
" ले लाल्ली, बड़ी मेहरबानी होवेगी तेरी " बाबा ने फैसला लेते हुए लखी को अपनी बेटी की उम्र वाली उस महिला के हाथों में थमा दिया। महिला ने बुरके की ओट कर लखी को अपनी छाती से लगा लिया, मासूम अब रोना भूल कर अमृतपान करता हुआ फिर से सो चुका था।
सुनीता त्यागी

ठक.. ठक... ठक...छेनी और हथौड़ी से पत्थर के टुकड़े को तराश- तराश कर उसको आकार दे रहा था...!वो एक देवी की प्रतिमा थी ...! मा...
18/09/2025

ठक.. ठक... ठक...
छेनी और हथौड़ी से पत्थर के टुकड़े को तराश- तराश कर उसको आकार दे रहा था...!वो एक देवी की प्रतिमा थी ...! माता की प्रतिमा को मंदिर में स्थापना की जानी थी..!पास ही मूर्तिकार की बेटी भी अपने पिता के काम में थोड़ा बहुत हाथ बंटा रही थी.!
भव्य समारोह का आयोजन होने वाला था।काबिल मूर्ति कार रासबिहारी पूरी तन्मयता से अपने काम में जुटा हुआ था। बस आंख बनाना बाकि था... तभी जमीदार के घोड़े की टाप ने सन्नाटे का ध्यान अपनी ओर खींचा..!
,'बिहारी ...कितना बचा काम?" "बस मालिक हो ही गया है...!आंख बनाना बाकि है" ..."मूर्ख कामचोर हो तुम महीनों से बना रहे हो और अब तक तुम्हारा काम पूरा नहीं हुआ!".. बेटी सिटपिटा कर जमींदार के रुतबे और क्रूरता दोनों को देख रही थी ये भी कि बिना खाये पिये उसका पिता काम किये जा रहा है और.....!"शाम को काम पूरा होना चाहिए...समझे..!"एक जोर का हंटर रास बिहारी के कमर मेँ पड़ी और बेटी की आत्मा पर भी...!
सब कुछ पूर्व निर्धारित समय पर शुरू हो गया ...!बड़े रसूखदार लोगों का जमावड़ा...मंत्रों का मंगल उच्चारण... भजन भोजन सब कुछ उत्तम से भी उत्तम ...।प्रतिमा को भी खूब सजाया गया था...!अनावरण के वक्त प्रतिमा को देखते ही जमींदार का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया...!ये क्या माता की आंखे तो इसने बनाई ही नहीं...!बुलाओ उस ...
को...!रास बिहारी उपस्थित हुआ कांपते हुए..."मालिक मैंने कई बार आँखें बनाई थी..."पर पता नहीं अभी कैसे...?' है ... नहीं है आंख !"... नजरें नीची करके रास बिहारी ने कहा...!"इसे काम से भगाना होगा...मुफ्त में खा2 कर इसका दिमाग खराब हो गया है...! पूरा पैसा काट लूंगा तेरा ..."!दहाड़ते हुए जमींदार ने कहा...!"रुको मेरे पिता को मत मारो "एक पतली सी आवाज ने सबका ध्यान खींचा...मेरे पिता ने दिन रात एक करके ये मूर्ति बनाई है... मूर्ति में आंख भी बनाई थी...पर् मैंने ही वो आंख मिटा दिया..." " हांय पर क्यों??लगभग चीखते हुए जमींदार ने पूछा...?मालिक मैं नहीं चाहती मेरी देवी मां भी आप लोगों के पाप देखे...मेरी माँ भूख से तड़प -तड़प कर मर गयी ।मैं भी अपने पिता को भूखे प्यासे मूर्ति बनाते हुए देख रही हूँ..!"
" मेरी माँ कहती थी कि माता अपनी आंखों के सामने अन्याय होते नहीं देख सकती। माता आप लोगों को देख नहीं सकेंगी तो आप आराम से पाप कर सकते हैं न इसलिए...!"
सबकी बोलती बंद हो गयी थी...!
फिर माता ने आंखे भी खोली और...बहुतों की भी आंखे खुली...!
देवश्री गोयल

हॉस्पिटल की दीवार के इस तरफ़ खड़ी पूर्णिमा अपने घायल पापा को देखने की ज़िद कर रही थी, और उस जगह से  आगे उसे जाने नहीं दिया ...
18/09/2025

हॉस्पिटल की दीवार के इस तरफ़ खड़ी पूर्णिमा अपने घायल पापा को देखने की ज़िद कर रही थी, और उस जगह से आगे उसे जाने नहीं दिया जा रहा था क्योंकि वहीं दूसरी तरफ़ स्ट्रेचर पर कफ़न में लिपटी उसके पापा की मृत देह रखी हुई थी। सुबह 5 बजे ऑफ़िस जाते समय एक डम्पर की टक्कर से एक्सीडेंट हो गया और जगह पर ही वे मृत्युमुख में समा गए।
पूर्णिमा का हाल बेहाल था,पिता को देख नहीं पा रही थी और छोटी बहन फ़ोन पर पापा का हाल बार -बार पूछे जा रही थी,क्या बताए उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
उसके साथ दो पड़ोसी भी थे,जिन्होंने पूर्णिमा को न बता कर मुझे बताया था एक्सीडेंट के बारे में।पति सहित वहाँ गई तो थोड़ा दूर ले जाकर यह बताया कि," उनकी मौक़े पर ही डेथ हो गई है।"मेरी रुलाई छूटने को थी कि सबने मुझे तुरन्त चुप करा दिया ,"आप रोएँगी तो बच्चियों को कौन संभालेगा!" यह कह कर।
अब गम्भीर और सामान्य बन कर पड़ोसियों द्वारा दिया खाना दोनों को खिला ख़ुद भी ,न चाहते हुए खाया और उनको हिम्मत बंधाती रही।
जब-तब मेरी आँखें भर आतीं पर उसकी मम्मी के गॉंव से आने तक चुप रह कर दोनों बच्चियों को सम्भालना भी था मुझे।
दूसरे दिन मम्मी आई तो उनके पापा के सीनियर ऑफ़िसर ने उन्हें सारी हक़ीक़त बताई।सुनते ही वे बेहोश हो गईं।किसी तरह उनको सबने मिल कर सम्भाला और हिम्मत रखने और बच्चों की तरफ़ देख कर जीने की बात कही।
रात तो सब रो कर शांत बैठे थे तब घर के एक कोने में पूर्णिमा मेरे साथ अकेले मेरा हाथ थामे बैठी थी। ।
उसने धीमे से पूछा "आँटी आपको पहले से पता था न कि पापा की डेथ हो गई है,फिर भी आपने मुझे नहीं बताया क्यों ? "
मुझे काटो तो ख़ून नहीं।मतलब पूर्णिमा को पहले से ही अंदेशा हो गया था अपने पापा की मृत्यु का!!
मैंने थूक गटक कर,"बेटा तुम्हारे मम्मी के आने पर ही बताने का हम सबने तय किया था।तो तुम्हें पहले कैसे बता देती मैं !"
वह मेरे गले लग कर ख़ूब रोई," आँटी आप में कितना संयम है,आपने हम दोनों बहनों को बहुत अच्छे से सम्भाला और मम्मी की भी ख़ूब देखभाल की।थैंक्स।आपके होने से हमको बहुत सहारा मिला।अब मैं अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई भी करूँगी ,क्योंकि यह मेरे पापा का सपना था और अपनी माँ और बहन ,भाई को भी संभालूंगी और पढ़ाऊंगी भी ।"कहते हुए पूर्णिमा की आँखें मानो सामने उम्मीद की रोशनी देख कर और बड़ी होकर चमकने लगी।
पूर्णिमा की आत्मविश्वास भरी बोली सुन मेरी आँखें भर आईं कि पिता का साया सर से उठ जाने के बाद ,उनकी इस बेटी में कितनी आसानी से ज़िम्मेदारी का एहसास ईश्वर ने भर दिया !!
*सत्यवती मौर्य

बच्चे इस बार जिद पर अड़ गए... इस बार दीवाली काका के साथ शहर में मनाएंगे, बगैर बुलाए कैसे जाएं पर बच्चों ने एक न चलने दी!...
18/09/2025

बच्चे इस बार जिद पर अड़ गए... इस बार दीवाली काका के साथ शहर में मनाएंगे, बगैर बुलाए कैसे जाएं पर बच्चों ने एक न चलने दी!!
संतराम और सावित्री मुनिया और बबलू के साथ मंगत के घर जैसे ही पहुंचे मंगत और उसकी बीवी सुभद्रा का चेहरा उतर गया ऐसा लगा मानो कुनैन की गोली मुंह में आ गई हो .... बुझे मन से पानी चाय देकर अपना रोना रोने बैठ गए " शहर में रहो तो यहां के खर्चे पता चलें कैसे चलाते हैं हम क्या बताएं,आप लोग अचानक कैसे आ गए? लड्डू मठरी के बदले कुछ पैसे लाते तो त्यौहार पर हमें भी सहारा मिलता!!"
सावित्री ने पति की ओर नाराजगी भरी नजरों से देखा, संता ने आंखें झुका लीं, सावित्री उठकर खड़ी हो गई बोली....." चलिए जी! गलती हो गई, अपना घर समझ कर आ गए, चलते हैं .. शाम की बस पकड़ लेंगे!!
संता थके कदमों से उठ गया, चारों बच्चे प्यार से खेलने कूदने में लगे हुए थे जैसे ही सावित्री ने मुनिया ओर बबलू को चलने को कहा, बच्चे ताज्जुब से उनके चेहरे देखने लगे " अभी तो आए हैं ....काका के घर हम तो दीवाली करने आए न बाबूजी फिर अभी क्यों जाना है?"
आंखो में आए आंसुओं को छुपाते हुए संता जैसे ही बाहर जाने को मुड़ा मंगत का छोटा बेटा अपने बड़े भाई राजू से बोला " जब मैं बड़ा हो जाऊंगा न... तब तुझे भी अपने घर नहीं आने दूंगा!!"
" क्यों छोटू ?"
" देख न बाबूजी भी तो ताऊजी को घर रुकने को बोल ही नहीं रहे, फिर मैं तुझे कैसे रोकूंगा भईया !!"
राजू छोटू से चिपक गया " छोटू ! ऐसा न करना, मैं बड़ा भाई हूं न तुम्हारा... मां ने सिखाया है न....परिवार में सबके साथ हिल मिलकर रहना चाहिए!!"
देवरानी का चेहरा शर्म से झुक गया... जाती हुई जेठानी का हाथ पकड़ लिया, कुछ कहने सुनने की जरुरत न रही... पछतावे के आंसुओं ने सब कुछ कह दिया!!
प्रीति सक्सेना
इंदौर

"ये देखिए,अपनी ड्राइंग शीट्स खोल दी उसने।""इतनी सुंदर डिजाइन, भई मानना पड़ेगा कुछ तो बात है तुममें।ऐसा करो इन्हें यही रख...
18/09/2025

"ये देखिए,अपनी ड्राइंग शीट्स खोल दी उसने।"
"इतनी सुंदर डिजाइन, भई मानना पड़ेगा कुछ तो बात है तुममें।ऐसा करो इन्हें यही रख जाओ,फुर्सत से देखूंगी।"
"जी मैडम,जरूर।"
स्टूडियो से बाहर निकल कर निधि के पैरों में मानो पंख लग गए।आखिर प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर ममता जी को अपने डिजाइन दिखा ही दिए उसने।
रात भर इसी सोच में गुम थी , कि शायद इस बार कांट्रेक्ट मिल जाए,कई बार फाइनल होने से पहले ही बात बिगड़ जाती है।
सुबह होते ही ममता जी का फोन आ गया।
"निधि ,हमें देखना होगा ,तैयार होने के बाद डिजाइन कैसे लगेगें?"
"तुम स्टूडियो में आ जाओ,हमारे टेलर्स से अपनी देखरेख में सैंपल तैयार करवाओ फिर देखेंगे।"
"जी मैडम!"
स्टूडियो में घुसते हुए आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी निधि।
अगले कुछ दिनों तक होश ही नहीं था,एक एक सैंपल अपनी देखरेख में घंटों की मेहनत से तैयार करवाया उसने।
आज फाइनल कांट्रेक्ट साइन होना है,और वॉचमैन उसे अंदर घुसने ही नहीं दे रहा,
"ममता मैडम से मिलना है, बहुत अच्छी तरह जानती हैं मुझे"
"मैडम तो कल रात की फ्लाइट से दुबई फैशन शो के लिए निकल गईं । आपके कोई डिजाइन पसंद नहीं आए,मैडम आते ही बात करेंगी,आप जा सकती हैं।"
असिस्टेंट प्रिया ने बाहर आते ही उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
आज लाइव टेलीकास्ट है दुबई फैशन शो का...
उसके बनाए सारे डिजाइन छाए हुए हैं,ममता मैडम ने कितनी क्रूरता से एक बार फिर अवार्ड अपने नाम कर ही लिया...!
मौलिक/वर्षा गर्ग

अम्मा का पार्थिव शरीर आखिरी सफर के लिए तैयार किया जा रहा था। घर में रोकराटा मचा हुआ था। परपोता विश्वास मुखाग्नि देगा, यह...
18/09/2025

अम्मा का पार्थिव शरीर आखिरी सफर के लिए तैयार किया जा रहा था। घर में रोकराटा मचा हुआ था। परपोता विश्वास मुखाग्नि देगा, यही अम्मा की अंतिम इच्छा थी, सोने की सीढ़ी चढने का बड़ा अरमान था अम्मा को। उधर अर्थी सजाई जा रही थी, दूसरी ओर रामसरन का व्यवहार उग्र हो रहा था। हमेशा शालीन रहने वाला रामसरन बेवजह कभी बेटे को डाँट रहा था, कभी सबके सामने पत्नी शगुन के काम में मीनमेख निकाल रहे थे। रोती पोत बहू को जब पडोस की पंडताईन ने चुप कराने की गरज से कहा " रोती काहे हो बहुरिया सोने की सीढ़ी चढ़ गई है तोरी अम्मा।"
बस इतना सुनना था के रामसरन के धीरज का बाँध टूट गया.....
दहाड़ मार कर अम्मा के चरणों में लोटने लगा और कहता जा रहा था "क्या अम्मा...? क्यों चली गई मुझे छोड़ कर...... तू तो सोने की सीढ़ी चढी के ना चढी...... पर आज मैं अनाथ हो गया।" कह कर बिलख कर रोने लगे। उनका क्रंदन देख सब भावुक हो गए और उन्हें रामसरन के बदले व्यवहार का कारण भी समझ में आ गया था।
अब सबकी जुबान पर सोने की सीढ़ी की बजाय माँ बेटे के प्यार के चर्चे थे।
रेखा राणा करनाल

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