19/09/2025
कल तक उन्मुक्त गगन में विचरती मैं अपने माता पिता की नाजों से पली बेटी... कब बड़ी हो गई मुझे पता ही न चला, माता पिता के चेहरे भी मायूस होने लगे ,बिटिया को पराए घर जो भेजना
था पर दुनिया की रीत है कौन से माता पिता अपनी लाडो को अपने पास रख पाएं हैं जो मैं
उनके पास रह पाती!!
विवाह बंधन... एक खूबसूरत अहसास, एक बेटी से किसी की पत्नि और प्रेयसी में तब्दील हो गई मैं, नए लोग ...
नया माहौल सब कुछ अलग... कितना मुश्किल है न ..बरसों से बनी,अपनी जीवन शैली को पूरी तरह बदल देना.. दूसरों के अनुसार अपने को ढालना...
कितनी भी कोशिश करूं.. कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है, दोबारा उसे सुधारने में लग जाती हूं
जहां हर काम में शाबाशी पाने की आदत थी यहां छोटी सी बात का भी बतंगड़ बनाने में पल भर की देर नहीं लगती, पहले बहुत दुख होता था
अब मैं सहन कर लेती हूं, अपने को बदल लिया है मैंने!!
उम्मीद से हूं ... बहुत सारे बदलाव हो रहे हैं
मुझमें... एक नए परिवर्तन की तैयारी में हूं मैं
कभी रोने को मन करता है कभी हंसने को, सब ध्यान रख रहे हैं मेरा, नित नए बदलावों से
गुजर रही हूं मैं !!
सारा जीवन बदल गया मेरा,मैं मां बन गई, मुझे अपनी बहुत सी आदतें बदलनी पड़ीं.... अपने नन्हें के हिसाब से मैंने अपनी दिनचर्या बना ली !!
मेरा बेटा स्कूल जाने लगा , एक नया मोड़ आया, मुझे उसे संस्कार देने हैं, उसकी पढाई लिखाई का सारा दारोमदार मुझ पर है..... मैं फिर बदल रही हूं, एक समझदार मां में परिवर्तित हो रही हूं!!
आज बहू का गृह प्रवेश है... एक बदलाव और
आया मुझमें... मैं एक सुघड़ पत्नि, कुशल गृहणी, एक कामयाब पुत्र की मां के साथ साथ
एक सास के रुप में परिवर्तित हो गई, अब मुझे
धीर गंभीर , सुलझी हुई सासू मां का रोल भी निभाना है........ पीछे पलटकर देखती हूं तो अपने को पहचान नहीं पाती... वो अल्हड़ सी , मस्तीखोर चुलबुली सी लड़की कहां गई?
उसकी जगह एक पूर्णतः बदला हुआ व्यक्तित्व
दिखता है मुझे..
न जाने.... और कितना बदलना होगा मुझे ..
मेरे इस जीवन में बदलाव कब तक आयेंगे?
प्रीति सक्सेना
इंदौर