Heart Touching Kahaniya

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"आपने मेरे लिए किया ही क्या है? सिर्फ अच्छे कॉलेज और हॉस्टल में डाल देने से जिम्मेदारी पूरी नहीं होती।मैंने भी दुनिया दे...
24/08/2025

"आपने मेरे लिए किया ही क्या है? सिर्फ अच्छे कॉलेज और हॉस्टल में डाल देने से जिम्मेदारी पूरी नहीं होती।
मैंने भी दुनिया देखी है,कितने दोस्त हैं मेरे,देश और विदेश में भी।"
"वो सब अपने पेरेंट्स की कितनी बातें बताया करते हैं,हॉस्टल में आने के पहले ही सब जानते थे वो।
मुझे तो छुरी कांटे तक ठीक से पकड़ना नहीं आता था।
इंग्लिश भी धाराप्रवाह नहीं बोल सकता था,क्योंकि आपने घर में हमेशा मातृभाषा बोलने पर ही जोर दिया।
किसी को घर बुलाने में भी शर्म आती है मुझे।"
डिग्री पूरी करने के बाद घर आया बेटा मां पर अपना फ्रस्टेशन निकाल रहा था,और मां अपराधी सी चुपचाप सुन रही थी।
बरामदे में बैठा वो महसूस कर रहा था हर आक्षेप के बाद उसके और बेटे के बीच आज तक तुला बन संतुलन बनाती रही उसकी पत्नी कुछ और झुकती जा रही है।
" मेरा ड्रेसिंग सेंस,हेयर स्टाइल हर बात का मजाक बनता था,कितनी मुश्किल से खुद को सम्भाल पाया हूं,आप अंदाज़ ही नहीं लगा सकते।"
" तुम्हें भी कोई अंदाज़ नहीं ?"
अचानक उसकी आवाज सुन मां बेटे दोनों ही उसे देखने लगे।
" मां ने मना किया था बताने को,पर आज भी नहीं बताया तो बहुत देर हो जायेगी।
तुम्हारे गर्भ में आते ही मां बहुत बीमार रहने लगी थी,डॉक्टर ने गर्भपात की सलाह दी थी,क्यूंकि उसकी जान को खतरा था।
उस वक्त भी उसे खुद से ज्यादा तुम्हारी धड़कनें प्यारी थीं।
पूरे नौ महीने पेट में भी नहीं रह सके तुम,शुरू से उतावले हो ना।
आठ महीने के बच्चे नहीं बचते,पर मां की सेवा और मेहनत का नतीजा है जो आज इतना कुछ सुनाने लायक बन गए।"
बेटे के चेहरे पर पश्चाताप और पत्नी के चेहरे की छटपटाहट के बीच उसने महसूस किया, पत्नी ने दोबारा उन दोनों के बीच संतुलन बना लिया है ।
वर्षा गर्ग

"क्या बात है भागवान.....किस चिंता में हो?"पंडि़त जी ने पंडताईन से पूछा।       " सोच रही हूँ कल निर्जला एकादशी है भगत जन ...
24/08/2025

"क्या बात है भागवान.....किस चिंता में हो?"
पंडि़त जी ने पंडताईन से पूछा।
" सोच रही हूँ कल निर्जला एकादशी है भगत जन आयेंगे खरबूजे,बीजणे और मटके लेकर। काश इस सब सामान की बजाय थोडा़ राशन का सामान ही दे दें।लाकडा़ऊन की वजह से रसोई भी कई बार सूनी ही रही।"पंड़ताईन ने चिंता जताते हुए कहा।
"कह तो तुम ठीक रही हो.....मंदिर भी बंद हैं,शादी ना ब्याह,यजमान भी नहीं आते.....मंदिर की कमेटी ने भी मदद के नाम पर हाथ खडे़ कर दिये, मान सम्मान कम ना हो इस लिये किसी से कह भी नहीं सकता ,जबकि सिर्फ मान सम्मान से पेट नहीं भरता।पर चलो.......जेहि विधि राखे राम तेहि विधि रहिये।" पंडि़त जीने पंड़ताईन को समझाते हुए कहा।
"अब तो खुश हो ना?"पंडित जी नेअगले दिन शाम को पूछा।
"हाँ ईश्वर सचमुच दयालु हैं, हमारी रसोई भी भर दी और मान भी भंग न होने दिया।"पंडताईन ने ईश्वर सर झुकाते हुए कहा।
रेखा करनाल

लगभग प्रतिदिन समाचार आता कि आज चीन ने हमारी एक चौकी पर कब्जा कर लिया,आज दो चौकी हमारे हाथ से निकल गयी।सुनकर झल्लाहट होती...
23/08/2025

लगभग प्रतिदिन समाचार आता कि आज चीन ने हमारी एक चौकी पर कब्जा कर लिया,आज दो चौकी हमारे हाथ से निकल गयी।सुनकर झल्लाहट होती,पर बेबबस थे।
मैं तब आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था,1962 के अक्टूबर माह में ही चीन ने भारत पर आक्रमण किया था।लम्बी गुलामी और विदेशी शासन से बहुत संघर्ष के बाद आजादी मिली थी।लगता था, विश्व में अब शान्ति व्याप्त हो गयी है, सब अपने अपने देश मे शांति पूर्वक रहेंगे,फिर सेना की क्या आवश्यकता?बस इसी अतिवादी सोच ने सेना को कमजोर कर दिया,शायद मैं गलत कह रहा हूँ,सेना तो कमजोर न तब थी और न ही अब।हाँ इतना हुआ कि सेना की मूलभूत जरूरतों पर ध्यान ही नही दिया गया।नतीजा रहा एक शर्मनाक हार और कई हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन का कब्जा। सपनो की काल्पनिक दुनिया मे जी रहे हम ये समझ ही नही पाये कि पागल कुत्तों के बीच शांति से क्या सोया जा सकता है?
उन दिनों टेलीविजन तो होता नही था,बस रेडियो से ही समाचार रात्रि 8बजे सुनते थे।मेरे पिता चूंकि अपने कस्बे में विशेष स्थान रखते थे और वो लोकप्रिय तथा मिलनसार भी थे,इसी कारण प्रतिदिन ही अपनी कोठी के सामने छिड़काव कराकर तीन चार चारपाई,आठ दस मुढढे बिछ जाया करते,बीच मे हुक्का सज जाया करता था,और दो नौकर हुक्के की चिलम भरने और चाय आदि लाने में शाम से ही व्यस्त हो जाते,20-25 प्रतिष्ठित नगरवासियों की महफिल रोज ही जमती थी,जो कम से कम रात्रि 11 बजे तक चलती।
अब वहां रेडियो भी लगवा दिया गया था,जिस पर ठीक 8बजे सब समाचार सुनते। चीन के आक्रमण के बाद अब वहां विषय यही युद्ध होता।हार की खबर सुन सब गमगीन होते और अफसोस जाहिर करते हुए अपने अपने तरीके से बाद में विवेचना करते।
मेरी बालबुद्धि में उनकी कोई बात नही समाती थी,लेकिन मैं भी वहां एक ओर बैठा रहता,कोशिश करता यह समझने की कि हम क्यूँ हार रहे हैं?रेडियो में रोज उन व्यक्तियों के नाम भी बोले जाते जो प्रधानमंत्री कोष में धनराशि भेजते थे।
युद्ध प्रारंभ होने के दो दिन बाद ही मेरे पिता ने मुझे आवाज लगा कर बुलाया और मुझे 500 रुपये देकर बोले बेटा सुबह नेहरू जी को मनीऑर्डर कर देना,अपने नाम से।हमे भी तो कुछ करना चाहिये।
मेरे पिता कम पढ़े लिखे थे,फिर भी उन्होंने अपने भट्ठे के व्यापार में साम्राज्य स्थापित किया था।उस समय 500 रुपये भी काफी राशि मानी जाती थी।मुझे खूब खुशी हुई,विशेष रूप से यह सोच कर कि मेरा नाम भी अब रेडियो पर आयेगा।
अगले दिन अपने चाचा की सहायता से मनीऑर्डर कर दिया।अब रोज इंतजार रहने लगा रेडियो पर नाम आने का।चार पांच दिन बाद जब मेरा नाम रेडियो पर आया तो मैं खुशी के मारे चीख पड़ा।सब लोग मेरी तरफ देखने लगे।मेरे पिता मेरे पास आये और बोले बेटा ये खुशी का मौका बिल्कुल भी नही है,हम हार रहे हैं।ये देश भारत है ना ये रहेगा तो हम रहेंगे।भारत के जीतने की प्रार्थना करो,वो जीतेगा तो हम जीतेंगे।
अपने पिता के मुख से ये शब्द सुन मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया।आज समझ आता है वो कम पढ़े लिखे थे तो क्या हुआ,पर विचारों से तो उन्होंने पीएचडी की हुई थी।
बालेश्वर गुप्ता, पुणे

गौरी अपने पति से बड़ी नाराज थी। क्यों वह उसे शहर ले आया? वह अपना गाँव छोड़कर नहीं आना चाहती थी ।गाँव के साथ उसकी बहुत सा...
23/08/2025

गौरी अपने पति से बड़ी नाराज थी। क्यों वह उसे शहर ले आया? वह अपना गाँव छोड़कर नहीं आना चाहती थी ।गाँव के साथ उसकी बहुत सारी यादें जुड़ी हुई थी। वहीं उसका जन्म हुआ और वहीं वह पली-बढ़ी ।वहीं उसके माता-पिता ,भाई-बहन और ससुराल में सास- ससुर रहते थे। इसके अलावा उसका पति हर शनिवार को गाँव आ जाता ,रविवार को रहकर ,फिर सोमवार को वापस शहर नौकरी पर चला जाता था ।सबकुछ कितना बढ़िया चल रहा था। उसे उस शख्स पर बेहद गुस्सा आ रहा था, जिसमें उसके पति के मस्तिष्क में यह बात घुसा दिया कि 'बिन गृहणी, घर भूतों का डेरा '...तब से उसका पति उसे शहर ले जाने की जिद करने लगा। उसके बाद तो उसके सास- ससुर के साथ-साथ उसके अपने माता-पिता भी उसके पति का साथ देने लगे। वह भी कब तक प्रतिकार कर पाती, आखिरकार उसे शहर अपने पति के घर आना ही पड़ा ।
उसका पति दफ्तर में बड़ा अफसर था। उसने बहुत ही सुंदर घर ले रखा था। घर देखकर वह भी बेहद खुश हुई। सुंदर घर, सुंदर फर्नीचर, सोफा, पलंग ,सुंदर पर्दे कुल मिलाकर सब कुछ शानदार था ।घर में चौका- बर्तन ,साफ- सफाई करने वाली के अलावा खाना बनाने वाली भी थी। गौरी को खुद एक गिलास पानी भी नहीं लेना पड़ रहा था। इतना कुछ होने के बावजूद वह अपने गाँव से दूर आकर दुखी और अपने पति पर बेहद गुस्सा थी। शाम को जब उसका पति घर आया तो वह कमर पर हाथ रखकर बड़े गुस्से के साथ बोली," गाँव से मुझे अपने घर की गृहणी बनाने के लिए ले आए हो, पर यहाँ तो गृहणी वाला कोई काम ही नहीं है।"
उसकी भोली बात सुनकर उसका पति जोर से हँस पड़ा ।बोला," तुमसे किसने कह दिया कि गृहणी का मतलब 'घर का काम करने वाली' होता है। गृहणी का मतलब होता है... घर की मालकिन... जो अब तुम हो ।"
गाँव की गौरी को गृहिणी की परिभाषा चाहे जितनी भी समझ आयी हो, पति की बातों ने उसका दिल मोह लिया।
रंजना वर्मा उन्मुक्त
स्वरचित

पूरे घर में चीतपुकार मची हुई थी । आज ही तो शर्मा जी का इंतकाल हुआ था ।बेटियां विलाप कर रहीं थीं ।सभी नाते रिश्तेदार इकट्...
23/08/2025

पूरे घर में चीतपुकार मची हुई थी । आज ही तो शर्मा जी का इंतकाल हुआ था ।बेटियां विलाप कर रहीं थीं ।सभी नाते रिश्तेदार इकट्ठा हो चुके थे ।
बस विदेश में बसे बेटे राज और बहु रागिनी का ही इंतजार था क्योंकि धर्मानुसार मुखागिनी का अधिकार सिर्फ पुत्र को ही प्राप्त
है ।
रोते चिल्लाते आंखों के आंसू भी सूख चुके थे लेकिन बेटे के आने के कहीं कोई नामोनिशान तक नहीं था ।
मामा जी ने राज को फोन किया ।
"बेटा कब तक पहुंचोगे?"
"मामा जी आज नहीं आ सकता ,ऑफिस में बॉस ने साफ मना कर दिया है काम का प्रेशर ज्यादा है न इसलिए !"
"और कल ?" विभूती ने मामा के हाथ से फोन लेते हुये प्रश्न किया ।
"अरे दीदी ...आप ही समझाओ न इनको ....!"
"यही न कि तू हर बार की तरह आज भी नहीं आ रहा ?"
"दीदी बहुत प्रॉब्लम है ...आप संभाल लो न!"राज ने चापलूसी भरे अंदाज में कहा तो विभूति ने दुखी होकर अपनी आंखें बंद कर ली और बिना उत्तर दिए फोन काट दिया ।उधर से भी फोन नहीं आया दोबारा ।
लोगों में खुसुर फुसुर होने लगी कि अगर बेटा मुखागिनि नहीं देगा तो शर्मा जी की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी ।
"कितने अरमानों से पापा ने राज को पढ़ाया लिखता ,विदेश भेजा और उसने कभी उनकी सुध ही नहीं ली ।"विभूति ने मन ही मन रोते हुए कहा ।
अब यक्ष प्रश्न यही था कि क्रिया कलाप कौन करेगा ।
"मैं करूंगी सारे काम ।"विभूति ने सपाट आवाज में कहा तो सभी खुसुर फुसुर करने लगे ।
"वैसे भी जिस पुत्र ने कभी अपने हाथों से एक गिलास पानी तक नहीं दिया अपने पिता को उसको तो इस सब का अधिकार नहीं होना चाहिए ...कैसे एक एक झलक के लिए बहु बेटे की देखने को पापा तड़पते हुए चले गए !"विभूति की दर्द भरी आवाज ने सभी प्रश्नों पर विराम लगा दिया ।
राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
(मौलिक लघुकथा )

“ कतरा कतरा खून हमारा, प्यारे वतन तुम्हारा है; सुना है दुश्मन ने सीमा पर पुनः हमें ललकारा है “ अपनी इस कविता को कवि सम्म...
23/08/2025

“ कतरा कतरा खून हमारा, प्यारे वतन तुम्हारा है; सुना है दुश्मन ने सीमा पर पुनः हमें ललकारा है “ अपनी इस कविता को कवि सम्मेलन में चिर परिचित जोशीले अंदाज में पढ़ने के बाद वे जब घर पहुँचे तो उनके बेटे अतुल ने बताया कि वह फौज में भर्ती होना चाहता है।
वे बेटे से बोले, “ फौज में जाकर क्या करेगा ? वर्दी पहनने का ही शौक़ है तो पुलिस में भर्ती होने की सोच।अपने मामा के बेटे को देख। पाँच साल की नौकरी में कितना कुछ कर लिया उसने ?”
—————————००——————————
- सुभाष चंद्र लखेड़ा

सारी !अब मै नही चल सकती तुम्हारे साथ " ."ऐसा भी क्या ?तुमने तो दिया ही है साथ मेरा ,फिर इंकार ..""तुमने सदा अंधेरो की ही...
23/08/2025

सारी !अब मै नही चल सकती तुम्हारे साथ " ."ऐसा भी क्या ?तुमने तो दिया ही है साथ मेरा ,फिर इंकार ..""तुमने सदा अंधेरो की हीतो सैर कराते..""समझा नही मै ?"याद करो ,अब तक तुम मुझे ले गए सिर्फ वृध्द माता -पिता की उपेक्षा करती संतानो के पास गृह कलह में ,बच्चो की उपेक्षा करती माताओ के --'"
-क्या से समाज का सच नही "? -"उह्ह !होगा ,पर क्या समाज अछूता योग्य संतानो ?क्या ये सच नही कि वृध्द जनो कि अकारण खीज ,उनके पाले अहंकारो ,हीन भावनाओ ,के अकारण शिकार बने ये युवा , इन वृध्दों को ज़रा काम कोई काम करने को कहा तो मुझे ले चले सबके पास रोने ओ रुलाने ..."--चलो अब मेरी सॉरी,अब तुम मुझे ले चलो जंहा जी चाहे .."
बस वो चल पड़ी है मेरे साथ ,सॉरी !मै चल रहा उनके साथ .
अरविन्द दीक्षित

घर , एक ऐसा शब्द है, जिसके बारे में ही सोचकर तन और मन दोनों ही, आंतरिक खुशी से सराबोर, हो जाते हैं।एक मध्यम वर्गीय परिवा...
23/08/2025

घर , एक ऐसा शब्द है, जिसके बारे में ही सोचकर तन और मन दोनों ही, आंतरिक खुशी से सराबोर, हो जाते हैं।
एक मध्यम वर्गीय परिवार के लिए,,एक छत और चार दीवारों से बना, एक आशियाना, क्या मायने रखता है , हम भली भांति समझ सकते हैं।
आज से करीब २३, वर्ष पहले हमने अपना घर बनाया, शाम तक शिफ्टिंग में थककर दोनों चूर हो गए, खाना बनाने रजनी आती थी, किचन पूरा जम नहीं पाया था, उसे मैथी भाजी और थोड़ा बहुत जो सामान मिला, तो,, वो मैथी के परांठे बनाकर चली गई, बच्चों ने टमाटर सॉस से खा लिया, और जाकर, अपने पलंग पर लुढ़क लिए, रात करीब एक बजे, सामान जमा पाए, भूख के कारण, पेट में चूहे भी कूदा फांदी, मचाए हुए थे, देखा तो सिर्फ़ सूखे परांठे बने रखे थे, न दही न ग्रेवी वाली कोई सब्जी।
खैर अचार निकाला, और एक निवाला, पतिदेव के मुंह में दिया , अपने घर बना, खाने के पहले निवाले की हार्दिक बधाइयां सक्सेना साहब" ये मुस्कुरा दिये, एक कौर, मेरे मुंह में भी, डाल दिया, सच, उतना स्वाद , आज तक कभी नहीं आया, जो, उस दिन, सूखा परांठा अचार खाकर आया।
अपनी छत का सुख तो, वर्णित भी नहीं किया जा सकता, हमने अपने घर का नाम, अपने दोनों बच्चों के नाम पर रखा,
, स्वप्निल और रूपल,, के नामों को जोड़कर स्वप्न रूप
कुछ दिनों बाद, मेरी कुक, रजनी ने अपने घर के उदघाटन पर, हमें आमंत्रण दिया, कॉलोनी की कुछ महिलाओं, जिनके घर वो खाना बनाती थी, उन्हें भी आमंत्रित किया, हम उसके लिए उपहार लेकर, उसके बताए हुए पते पर पहुंचे।
हमें देखकर, खुश होकर, भागती हुई हमारे पास आ गई, दरी, पर बैठाया, अल्पाहार कराया,
उपहार दिया, तो सकुचा गई।
और, झिझकते हुए बोली" भाभी, मेरा घर, कैसा लगा" टीन की चादरों से घिरा, ऊपर टीन की ही छत, एक तरफ़, पत्थर लगाकर, गैस चूल्हा, रखा, गया था, लकड़ी की पटिया लगाकर, डिब्बे रखने का इंतजाम था, घर के,, पीछे बाथरूम था,
बोली, "भाभी पैसा, आता, जाएगा तो, घर बनाती जाऊंगी, अभी तो मुश्किल से प्लॉट ले पाए हैं" हम सबने उन दोनों पति पत्नी के साहस और हिम्मत की बहुत तारीफ की, सिर पर छत का इंतजाम किया, उसके लिए ढेर सारी शुभ कामनाएं देकर हम आ गए ।
अपने घर आकर, एक ही बात मन में आई, सबकी जरूरतें एक सी हैं, सबकी भावनाएं भी एक ही हैं, घर की बनावट भिन्न हो तो क्या है, घर तो आखिर घर है,....... .... दूर कहीं जगजीत सिंह जी की ग़ज़ल सुनाई दे रही थी. ........
ये तेरा घर, ये मेरा घर, किसी को देखना हो गर,
तो पहले आके मांग ले,, तेरी नजर, मेरी नजर
प्रीति सक्सेना
इन्दौर]

" सर, दरवाजे और खिड़कियां अच्छी तरह बंद कर लीजिए।"कॉलबेल बजने पर जैसे ही दरवाजा खोला,एक आवाज आई।"क्यों?""दरअसल बिल्डिंग ...
23/08/2025

" सर, दरवाजे और खिड़कियां अच्छी तरह बंद कर लीजिए।"
कॉलबेल बजने पर जैसे ही दरवाजा खोला,एक आवाज आई।
"क्यों?"
"दरअसल बिल्डिंग में पेस्ट कंट्रोल हो रहा है।"
"वो तो नीचे कंपाउंड में होगा ना?"
"हां!पर दवाई डालने के बाद सभी कॉकरोच और कीड़े मकोड़े अपनी जगह से बाहर निकलेंगे ना,और आपका घर तो पहली मंजिल पर ही है।"
"फिर आप ही शिकायत करेंगे।"
उन्हें इस लड़के की बातों में मजा आने लगा,"अच्छा तुम एक बार हमारा घर भी देख लो,शायद अंदर भी पेस्ट कंट्रोल की जरूरत हो।"
"सर! इस बारे में मेरे मालिक से बात करिए आप,वही सलाह देंगे।
अच्छा,आप ध्यान से खिड़कियां बंद कर लीजिएगा ।"
अंदर आते हुए गौर से उन्होंने घर के अंदर सभी कमरों के बंद दरवाजे देखे,एकाएक मन में विचार आया, काश कोई पेस्ट कंट्रोल इंसानों के लिए भी होता,कुछ ही देर के लिए सब अपने अपने कमरों से एक साथ बाहर तो निकलते...!
वर्षा गर्ग

रवि क्या तुम्हारे पास 100 रुपये हैं?कुछ दिनों के लिये उधार चाहिये।क्या दोगे?      झूठ नही बोलूंगा सुधीर,रुपये तो मेरे पा...
23/08/2025

रवि क्या तुम्हारे पास 100 रुपये हैं?कुछ दिनों के लिये उधार चाहिये।क्या दोगे?
झूठ नही बोलूंगा सुधीर,रुपये तो मेरे पास 150 है,पर इनसे मुझे स्कूल के बाद घर सामान लेकर जाना है।
प्लीज रवि तुम 100 रुपये मुझे दे दो,आज ही चाहिये,घर पर कोई बहाना बना देना।
अरे क्या जूते पडवाओगे?फिर मैं झूठ क्यों बोलूं?वैसे तुम्हे इतनी क्या जरूरत पड़ गयी,जो तुम मुझे भी घर झूठ तक बोलने को कह रहे हो?
रवि किसी से कहना नही,वो जो अपनी कक्षा में वीर सिंह अपना सहपाठी है ना,बहुत गरीब परिवार से है।आज परीक्षा के लिये रोल नंबर मिलने है,फीस बकाया होने के कारण बड़े बाबू द्वारा उसे रोल नंबर देने से मना कर दिया है।मैं अपना रोल नंबर लेने गया था,तब मैंने बाहर से सुना।वीर सिंह काफी गिड़गड़ा रहा था,पर उसे रोल नंबर नही मिला।उसका ये साल बेकार हो जायेगा, यह सोच मैंने बड़े बाबू से उसकी बकाया फीस के बारे में पूछा तो उन्होंने 250 रुपये बताये, रवि मेरे पास 150 रुपये हैं, तू 100 रुपये दे देगा तो हम उसकी 250 रुपयो की फीस जमा कर देंगे।प्लीज रवि।
अरे सुधीर जब तुम अपने सहपाठी के बारे में इतना सोच रहे हो,तो भाई वीर सिंह मेरा भी तो सहपाठी है,तो मैं क्यो नही उसके लिये कुछ कर सकता?चल सुधीर हम वीर सिंह की फीस जमा करते हैं।इस कार्य के लिये घर पर भी मैं बहाना नही बनाऊंगा, बल्कि सच बताऊंगा,भले ही जूते खाने पड़े।
रवि और सुधीर ने मिलकर वीर सिंह की फीस जमा करा कर बड़े बाबू से प्रार्थना की कि वे स्वयं वीर सिंह को बुला कर उसका रोल नंबर दे दे।कृपया उसको ये भी ना बताये कि उसकी फीस हमने जमा की है।
बड़े बाबू उन दो बच्चों को आश्चर्य से देख रहे थे और सोच भी रहे थे कि जो काम उन बच्चो ने किया है क्या वे स्वयं नही कर सकते थे?बडे बाबू ने उठकर रवि और सुधीर को गले से लगा लिया।
बालेश्वर गुप्ता,पुणे
मौलिक एवं अप्रकाशित।

"तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते विश्वास,प्यार किया है हमने......पिछले सात साल से साथ हैं......अब तो तुम्हारे पापा और बहने...
22/08/2025

"तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते विश्वास,प्यार किया है हमने......पिछले सात साल से साथ हैं......अब तो तुम्हारे पापा और बहनें भी मान गयी हैं,हमनेएक दूसरे से वादा किया हैना साथ निभाने का....।"नम आँखों से शगुन ने कहा।
"हाँ यार मैं मानता हूँ,पर..... अब हालात बदल गये हैं।अब मैं बडी़ कं में ऊँचे ओहदे पर हूँ.....और तुम..... और मैं अभी शादी के मूड़ में भी नहीं....अभी सफलता का नशे का मजा़ लेना चाहता हूँ।ठीक है हमने एक ही कं से काम शुरु किया.... पर अब मुझे कं के बंगले में ही रहना होगा।यहाँ रहा तो रेपुटेशन पर फर्क पडेगा। और मैं दोस्ती थोडे़ ना तोड़ रहा हूँ....तुम्हारा जब भी मन करे मुझ से मिलने आ सकती हो.......हाँ मैं यहाँ नहीं आ पाऊँगा।"विश्वास बेवजह की दलील देते हुए बोला।
"देख ही रही हूँ......कामयाबी का नशा तुम्हारे सर चढ कर बोल रहा है, नये माहौल में क्या सच्चा प्यार करनेवाला कोई साथी मिलेगा?"शगुन फिक्र करते हुए पूछा।
"अरे कामयाबी और तरक्की साथ हो तो सब मिल जाता है।"विश्वास ने बेपरवाही से जवाब दिया।
"चलो ठीक है.....दोस्त हूँ तुम्हारी.....तुमसे प्यार भी किया है.......तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है, जबरदस्ती तुम्हारा प्यार तो नहीं पा सकती ।" कहते कहते गालों पर आँसू लुढ़क ही गये थे।
इस तरह दो प्यार करनेवाले अलग हो गये।
सच्चे प्यार को छोड़ कर गया विश्वास आभासी दुनिया से तालमेल नहीं बिठा पाया।
कामयाबी की बहुत बडी़ कीमत चुकाई उसने।
अपना प्यार खोया फिर अपनी कीमती जिंदगी खो बैठा।
रेखा। करनाल

नेहा बड़ी बेसब्री से अपने पति का ऑफिस से आने का इंतजार कर रही थी। आज उसका जन्मदिन था ।उसे अपने पति से बहुत महंगे तोहफे क...
22/08/2025

नेहा बड़ी बेसब्री से अपने पति का ऑफिस से आने का इंतजार कर रही थी। आज उसका जन्मदिन था ।उसे अपने पति से बहुत महंगे तोहफे की अपेक्षा नहीं थी। फिर भी वह आज शाम पति के साथ गुजारना चाहती थी और डिनर भी वह बाहर किसी रेस्टोरेंट में करना चाहती थी।
दो दिन पहले वह अपनी सहेली के यहाँ किटी पार्टी में गई थी। सहेली के पति और उसके पति एक ही दफ्तर में ,एक ही पोस्ट पर थे ।लेकिन सहेली के और उसके जीवन स्टाइल में आसमान जमीन का फर्क था। उसका घर एक से बढ़कर एक कीमती सामानों से भरा पड़ा था। किटी पार्टी भी उसने शानदार दी थी। सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र उसके गले में चमचमाता हीरो का हार था, जिसे उसके पति ने उसके जन्मदिन पर तोहफा दिया था। सारी सहेलियाँ उसकी तारीफ कर रही थी और वह हीन भावना से ग्रस्त हो रही थी। उसने मन ही मन यह तय कर लिया था कि वह अपने पति से झगड़ा करेगी, जब सहेली का पति उसे इतना कीमती उपहार दे सकता है तो वह क्यों नहीं ?
शाम में उसके पति ने आते ही उसे एक सुंदर सा पैकेट पकड़ाया और बोला," हैप्पी बर्थडे... नेहा।"
नेहा ने खुशी से पैकेट को थाम लिया।
" जानती हो ,तुम्हारी सहेली का पति जो मेरे साथ काम करता था ,उस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है ।उसे जेल भी हो सकती है।"
नेहा को अपनी सहेली के ठाट का रहस्य समझ में आ गया । उसने अपने पति के गिफ्ट को खोला ,अंदर से खूबसूरत चमचमाती साड़ी निकली... जिसकी चमक अब उसे सहेली के हीरो के हार से ज्यादा प्यारी लग रही थी।
रंजना वर्मा उन्मुक्त
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