तक्षशिला प्रकाशन

तक्षशिला प्रकाशन Higher Academic Hindi Book Publisher. Est in 1975 at Daryaganj New Delhi.

💥 हिमालय की वादियों में गूंजती है इतिहास की आहट, जनता और राजतंत्र की संघर्ष गाथा है 💥💠डॉ. सुरेन्द्र सिंह मेहरा की यह कृत...
22/08/2025

💥 हिमालय की वादियों में गूंजती है इतिहास की आहट, जनता और राजतंत्र की संघर्ष गाथा है 💥

💠डॉ. सुरेन्द्र सिंह मेहरा की यह कृति (1815–1949) के बीच मध्य हिमालय की रियासती शासन व्यवस्था, राजनीति, कूटनीति और जनता के संघर्ष पर गहन प्रकाश डालती है।
इसमें राजतंत्र और देवतंत्र के टकराव, कर-न्याय व्यवस्था, स्थानीय मान्यताओं और ढंडक जैसी जनआन्दोलन परंपरा का विस्तृत चित्रण मिलता है।

यह पुस्तक न केवल इतिहास का दस्तावेज है बल्कि जनता और सत्ता के रिश्तों की अनकही कहानियाँ भी सामने लाती है। ✨

#हिमालयकीरियासतें #राजतंत्रऔरजनतंत्र

💥 डॉ. गोविंद चातक (1933–2007) गढ़वाली लोक साहित्य के महान मर्मज्ञ और साहित्यकार। उन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही गढ़वाली ...
22/08/2025

💥 डॉ. गोविंद चातक (1933–2007) गढ़वाली लोक साहित्य के महान मर्मज्ञ और साहित्यकार। उन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही गढ़वाली लोकगीतों और गाथाओं को संकलित कर समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। उनका साहित्य न केवल वीरता और प्रणय की गाथाओं को जीवित रखता है, बल्कि गढ़वाल की सांस्कृतिक धरोहर को भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित भी करता है। 🙏✨

यह पुस्तक मुख्यतः 4 वर्गों में विभक्त है - जागर, पवाड़े, चैती तथा प्रणय गाथाएं। प्रस्तुत पुस्तक भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित रखने के संदर्भ में एक मौलिक एवं गंभीर कार्य है।

#लोकसाहित्य #गढ़वालीसंस्कृति

✨📖 समय के प्रिज़्म ✍️ राजेन्द्र मिश्र🌍 बदलती दुनिया, बदलते सवाल... क्या भविष्य मनुष्य का होगा या मशीनों का? जवाब छिपा है...
21/08/2025

✨📖 समय के प्रिज़्म ✍️ राजेन्द्र मिश्र

🌍 बदलती दुनिया, बदलते सवाल... क्या भविष्य मनुष्य का होगा या मशीनों का? जवाब छिपा है "समय के प्रिज़्म" में ✨

तकनीक और वर्चुअल रियलिटी से बनी यह नई दुनिया जितनी संभावनाओं से भरी है, उतनी ही खतरों से भी। स्मार्टफोन, साइबर क्राइम, डीपफेक, मेटावर्स और बदलते सामाजिक मूल्य—हर तरफ एक नया आतंक फैला है। सवाल यही है कि क्या यह आतंक खत्म होगा या इंसानियत?

यह उपन्यास बदलते समय का आईना है, जहां हर दरवाज़े के बंद होने पर भी एक खिड़की खुलती है। समय के प्रिज़्म मनुष्य, मशीन और मनुष्यता की गहरी पड़ताल करता है। 🌍✨



📝📑अनुवाद का महत्त्व युगों से चला आ रहा है पर वर्तमान युग में तो महत्त्व पर्याप्त बढ़ गया है। राजभाषा अधिनियम 1963 (यत्र ...
12/08/2025

📝📑अनुवाद का महत्त्व युगों से चला आ रहा है पर वर्तमान युग में तो महत्त्व पर्याप्त बढ़ गया है। राजभाषा अधिनियम 1963 (यत्र संशोधित 1967) के कारण सन् 1965 के बाद भारत सरकार के कार्यालयों और उपक्रमों में द्विभाषी स्थिति उत्पन्न हो गई है। अंग्रेजी के कारण हिंदी भाषा की प्रकृति पर पर्याप्त हस्तक्षेप हो रहा है जबकि संविधान के अनुच्छेद 351 में स्पष्टतः कहा गया है कि हिंदी भाषा के विकास में उसकी 'आत्मीयता प्रकृति में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।' इस ज्वलंत समस्या 'हिंदी की प्रकृति' पर पहली बार विस्तार से विचार किया गया है। अनुवाद के अन्य पक्षों पर प्रस्तुत पुस्तक में चर्चा की गई है। अनुवाद के क्षेत्र में रूचि रखने वाले विद्वानों व विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।


🖊️ आधुनिक साहित्य की अवधारणा अब हिंदी में भी ग्लोबल होकर आ रही है। अवधारणा के साथ मनुष्य की स्वतंत्रता का सवाल भी सृजन म...
12/08/2025

🖊️ आधुनिक साहित्य की अवधारणा अब हिंदी में भी ग्लोबल होकर आ रही है। अवधारणा के साथ मनुष्य की स्वतंत्रता का सवाल भी सृजन में अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। इस पुस्तक में साहित्य के अंतर्गत इन सवालों को शामिल ही नहीं किया गया उनके उत्तर भी खोजे गए हैं।
🖊️आधुनिक हिंदी साहित्य पर श्री अरविंद का भी प्रभाव पड़ा है, जो साहित्य को दर्शन से जोड़ता है। इसके अनेक आलेख अकादमियों और उच्च शिक्षा संस्थाओं के लिए लिखे
गये हैं। टेलीविजन की ऑनलाइन शिक्षा जो भारत सरकार की योजना के अनुसार बनी उसमें भी भाषा और साहित्य पर इन आलेखों का समावेश हुआ है।
🖊️हमारे यहां नए साहित्य का आरंभ नयी कविता से हुआ है। स्वतंत्रता पूर्व आरंभ होकर स्वतंत्रता के बाद विपुल साहित्य रचा गया है। काव्य भाषा के साहित्य में अनेक प्रयोग भी हुए हैं, जिनका मुख्य संबंध कविता से रहा है। नयी सदी का हिंदी साहित्य स्त्री विमर्श और दलित विमर्श के साथ ही युवा विमर्श का भी है।
🖊️अगर हिंदी विश्व साहित्य में शामिल हो रही है तो उसकी वजह तुलनात्मक साहित्य में मिलती है। मैंने एक ग्रंथ 'आधुनिक भारतीय साहित्य' भी संपादित की है, जिसमें 14 प्रमुख भारतीय भाषा साहित्य पर देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के विशेषज्ञों ने अपने आलेख लिखे हैं। भारतीय साहित्य अलग-अलग भाषाओं में लिखा गया है पर हमारी सांस्कृतिक एकता का प्रमाण यहां के हर भाषा साहित्य में मिलता है। विश्व साहित्य पर प्रकाशित सीरीज में मेरा आलेख 'भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक एकता को शामिल किया गया है। यह आलेख लंबा है और इसमें विस्तार से साहित्य की समस्याओं और उसमें अंतरनिहित एकता को अंकित किया गया है।
🖊️साहित्य का भविष्य, विज्ञान और कृत्रिम बुद्धि के इस युग में नई रोबो संस्कृति को भी प्रमाणित करता है। साहित्य की यह सामग्री भी उच्च शिक्षा संस्थाओं में कार्यरत
अध्येताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
🖊️इस तरह इस पुस्तक में जो मेरी प्रकाशित 124वीं रचना है 'भाषा और साहित्य, पर अत्यंत मूल्यवान सामग्री है। समय-समय पर लिखे ये आलेख आज भी प्रासंगिक हैं। मुझे उम्मीद है इस पुस्तक का हिंदी भाषा और साहित्य से जुड़े सभी लोग व्यापक रूप से स्वागत करेंगे। - राजेंद्र मिश्र


✨⚡ कत्यूरों के जागर, पली-पछाऊं का क्षेत्र अंतिम कत्यूरी शासकों की कर्मभूमि रहा है। इस इलाके में लोकगीत और लोकगाथाएं सुनन...
11/08/2025

✨⚡ कत्यूरों के जागर, पली-पछाऊं का क्षेत्र अंतिम कत्यूरी शासकों की कर्मभूमि रहा है। इस इलाके में लोकगीत और लोकगाथाएं सुनने को मिल जाती हैं। रानी जिया को ईष्ट देवी और उनके पुत्र धामदेव की ईष्ट देवता के रूप में पूजा की जाती है। पाली-पछाऊं के बाहर कुमाऊं और गढ़वाल के कई दूसरे इलाकों में भी कत्यूरों के जागर लगते हैं। उन्हें ईष्ट देवता के रुप में पूजा जाता है। रानीबाग में उत्तरायणी के मौके पर मेला लगता है। जहां रानी जिया की शौर्यगाथा भी सुनने को मिल जाती है। कहते हैं तुगलकों से लड़ते हुए रानी जिया गौला के तट पर शहीद हो गई थी। तब से वहां मेला लग रहा है। श्रद्धालु गौला नदी‌ स्नान भी करते हैं। गौला के तट पर एक शिला भी है, जो विभिन्न रंगों के पत्थरों से बनी हुई है, जिसे चित्रशिला भी कहा जाता है। स्थानीय लोग उसे रानी जिया का घाघरा भी कहते हैं। - चारु चंद्र सती



✨ भारत की स्वतंत्रता के पहले देश में एक संपर्क भाषा का सवाल अब राजनीति के नाटक में कहीं गुम हो गया है। हिंदी ही इस देश क...
11/08/2025

✨ भारत की स्वतंत्रता के पहले देश में एक संपर्क भाषा का सवाल अब राजनीति के नाटक में कहीं गुम हो गया है। हिंदी ही इस देश की अंतरप्रांतीय भाषा है, जो अधिकांश लोगों के प्रयोग में आती है। जो हिंदीभाषी नहीं हैं, वे भी हिंदी बोलते हैं या कम से कम समझ लेते हैं। तीन भाषा फार्मूला अगर सही अर्थ में लागू होता तो उत्तर और दक्षिण के बीच एक सेतु बन जाता पर यह नहीं हो पाया।

✨पहले हिंदी या अंगरेजी की जगह अब कई भाषाओं का प्रयोग होने लगा है। इसमें कोई समस्या नहीं है, अगर संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया जाए। अंगरेजी की जगह हिंदी को राजभाषा का वास्तविक स्थान मिले जो संविधान के अनुसार भी आवश्यक है।

✨जितने भी विकसित देश हैं, वहां एक भाषा का ही प्रयोग होता है। अगर कहीं अनेक भाषाएं भी हैं तब भी वहां एक भाषा को अपना लिया गया है। पर लगता है भारत में यह होना बहुत कठिन है। यहां के लोग अंगरेजी को अपना सकते हैं पर हिंदी को नहीं । वे रोमन में अपनी भाषाओं को लिखने का विरोध नहीं करते पर नागरी लिपि का विरोध करते हैं। इन्हीं सब सवालों के बीच

✨मैंने अपनी इस 119वीं प्रकाशित पुस्तक में हिंदी भाषा से जुड़े संप्रेषण के अनेक आयामों पर विचार किया है। भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय की योजना के अनुसार दक्षिण भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में गया हूं। मैंने पाया हिंदी का विरोध राजनैतिक है जनता के स्तर पर नहीं। वहां की जनता हिंदी समझती ही नहीं बोलती भी है। दक्षिण की अपनी कोई संपर्क भाषा नहीं है। वे अंतरप्रांतीय स्तर पर अगर अंगरेजी नहीं जानते तो फिर हिंदी का ही इस्तेमाल करते हैं। इस पुस्तक में हिंदी भाषा के विविध रूपों और नागरी लिपि की विभिन्न समस्याओं पर आलेख हैं। मीडिया के संदर्भ में भी कई आलेख हैं जिन्हें भारतीय भाषाओं के सर्वेक्षण में भी जगह मिली है।

✨भाषा के व्यापक क्षेत्रों को इन आलेखों में शमिल करने के कारण यह पुस्तक आम पाठक के साथ ही उच्च शिक्षा संस्थानों के अध्येताओं, अनुसंधानकर्ताओं और रचनाकारों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। मुझे उम्मीद है कंप्यूटर और इंटरनेट के इस युग में हिंदी ही नहीं सभी भारतीय भाषाओं के लिए एक संपर्क लिपि अपनाने से उनके क्षेत्र का विस्तार होगा। हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार करने पर भारत का विश्व परिदृश्य बढ़ेगा। - राजेन्द्र मिश्र



पुस्तक में प्रकाशित सभी कहानियां पहाड़ की पृष्ठभूमि पर लिखी गई हैं। हालांकि करीब 22 सालों में पहाड़ के हालात बदल गये हैं...
11/08/2025

पुस्तक में प्रकाशित सभी कहानियां पहाड़ की पृष्ठभूमि पर लिखी गई हैं। हालांकि करीब 22 सालों में पहाड़ के हालात बदल गये हैं । लेकिन जिस वक्त कहानियां लिखी गई थी, उस दौरान पहाड़ों पर जीवन काफी कठिन था । लोगों की परिस्थितियां कठिन थी। सड़कें स्वप्न हुआ करती थी। लेकिन लोगों में भाईचारा खूब था । आपसी रिश्ते भी मधुर थे। लेकिन तब तेजी से बदलाव जरुर हो रहा था । लोग बदल रहे थे। समाज बदल रहा था। पलायन हो रहा था। रोजगार के लिए लोग अपने घर-आंगन, खेती और यहां तक कि रिश्ते भी छोड़कर जा रहे थे। मदन मोहन सती की कहानियों में उस वक्त के पहाड़ का दर्द नजर आता है। - हरीश चंद्र सती




✨ जनसंचार की दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी एक क्रांति से कम नहीं।
08/08/2025

✨ जनसंचार की दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी एक क्रांति से कम नहीं।

जब से विश्व हिंदी सम्मेलन, भारत से बाहर आयोजित हुए हैं, तब से हिंदी विश्व-भाषा के रूप में स्थापित हो गई है। यूनेस्को द्व...
08/08/2025

जब से विश्व हिंदी सम्मेलन, भारत से बाहर आयोजित हुए हैं, तब से हिंदी विश्व-भाषा के रूप में स्थापित हो गई है। यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं में हिंदी भी महत्त्वपूर्ण भाषा है। विश्व के शताधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का पठन-पाठन किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप विश्व स्तर पर हिंदी का महत्त्व निरंतर बढ़ता जा रहा है। हिंदी रोजगार/व्यवसाय की संभावनाएं निरंतर
बढ़ती जा रही हैं। जब से भूमंडलीकरण का दौर प्रारंभ हुआ है, अनेक नई दिशाएं खुल गई हैं. जिनके कारण हिंदी में कामकाजी संभावनाओं में वृद्धि हुई है। विशेषतः 'विज्ञापन' के क्षेत्र में।

विज्ञापन-कला में अनेक निष्णात व्यक्तियों की आवश्यकता निरंतर बढ़ती जा रही है। इसके फलस्वरूप ही टोकियो विश्वविद्यालय,‌जापान के तत्वाधान में 'हिंदी विज्ञापन' के महत्त्व पर पुस्तक प्रकाशित हुई। विज्ञापन‌प्रधान इस युग में आवश्यक हो गया है कि विज्ञापन में भाषा के महत्त्व पर विस्तार से
चर्चा हो । विश्व बाजार में बढ़ती संभावनाओं के साथ जीविका प्राप्त करने के अनंत अवसर 'प्रयोजनमूलक हिंदी' में निष्णात व्यक्तियों को मिलेंगे।



प्रशासन में प्रयोग की दृष्टि से हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र अत्यधिक व्यापक हो गया है। प्रशासन में सहज-सुबोध और लोक-प्रचलित...
08/08/2025

प्रशासन में प्रयोग की दृष्टि से हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र अत्यधिक व्यापक हो गया है। प्रशासन में सहज-सुबोध और लोक-प्रचलित हिन्दी के रूप को यदि बढ़ावा मिलेगा तो हिन्दी का प्रयोग निरंतर बढ़ता जाएगा। भाषा को बनावटीपन तथा अपरिचित शब्दों के
प्रयोग में बचाना चाहिए। प्रशासन में टिप्पण तथा आलेखन में बहुप्रयुक्त अंग्रेजी की अभिव्यक्तियों का सहज व सरल हिन्दी रूपांतरण भी साथ में इस अभिप्राय से दे दिया गया है कि प्रशासन से जुड़े उन कर्मचारियों को सहायता मिल सके जो अंग्रेजी में लिखने में समर्थ हैं पर राजभाषा अधिनियम के अनुसार उत्साह से हिन्दी में निष्ठापूर्ण लिखना चाहते हैं। हिन्दी में काम करने के इच्छुक व्यक्तियों को इस पुस्तक से सरलता प्राप्त होगी और प्रशासकीय अधिकारियों को सरल भाषा में तेजी से कार्य निपटाने में सुलभता होगी।




गोविन्द चातक जी का यह नाटक बांसुरी बजती रही गुजरात की सुप्रसिद्ध लोककथा पर आधारित है। यह अपने में लोक जीवन की एक कविता ह...
08/08/2025

गोविन्द चातक जी का यह नाटक बांसुरी बजती रही गुजरात की सुप्रसिद्ध लोककथा पर आधारित है। यह अपने में लोक जीवन की एक कविता है। इसमें शेणी और बीजानंद में स्थिति की विलक्षण संवेदनशीलता है जिसमें से कोमल भावों की गीतिमयता उभरती है। इस कविता के बीच से लेखक ने शेणी, बीजानंद और जोगन जैसे पात्रों की सामाजिक अलगाव की भीषण यातना और स्वप्निल कल्पनाओं की रोमानी भटकाव को चित्रित करने का प्रयास किया है। दैन्य और लक्ष्य की उद्देश्यपूर्ण चिन्ता इस नाटक का मुख्य विषय है और उसके साथ ही एक रहस्यपूर्ण बेचैनी भी इसमें स्वप्न है तो जीवन की वास्तविकता से टकराव भी। शैली और शिल्प के स्तर पर यह नाटक अपने में एक प्रयोग है। संगीत के समुचित प्रयोग भी इस नाटक की एक और विशेषता है। नाटक में, चरित्रों के आपसी रिश्तों का अच्छा ताना-बाना बुना गया है। पिता-पुत्री के आपसी विचारों की टकराहट के बीच उपजा तनाव..., बीजू-शेणी का प्यार...., जोगन का अल्हड़पन... पहाड़ों की सुरम्य वादियों में 'वेद्या भाट' की खूबसूरत बेटी 'शेणी' व बांसुरी बजाने की ललक, 'बीजू' की आत्मा में रची-बसी रहती है। आभासी और वास्तविक पटल पर अनायास एक रहस्यमय बेचैनी उसे घेर लेती है। पितृसत्ता के प्रतीक 'वेद्या भाट' का अपनी बेटी 'शेणी' से विचारों की टकराहट एवं 'जोगन' का प्रकृति की गोद में रुहानी ताकतें, ‘शेणी' के प्रेम प्रसंगों से कोसों दूर होती हैं।

करीब 4 दशक के बाद भी यह नाटक आज भी विलियम शेक्सपियर के 'रोमियो जूलियट' की तरह प्रासंगिक लगता है। तब कला दर्पण संस्था, सीमित संसाधनों में मंचीय प्रदर्शन के अतिरिक्त वीडियो फिल्म के जरिए अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही थी।


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