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15/07/2025

Varanasi 👍🌳



13/07/2025

Export cycle 🚲 😀



13/07/2025

हाइड्रोजन से सफर, शुद्ध हवा का असर! लद्दाख की पहली zero-emission बस सेवा पर्यावरण को देगी 13,000 पेड़ों जैसा नाम।

03/07/2025

11 साल की उम्र में देखा सपना अब होने जा रहा पूरा, भारत की सबसे युवा अंतरिक्ष यात्री बनेगी जाह्नवी

03/07/2025

जब दुनिया कहती है कि बढ़ती उम्र के साथ कदम धीमे हो जाते हैं, तो मीनाक्षी अम्मा उन्हें गलत साबित करती हैं। 75 साल की मीनाक्षी अम्मा भारत के सबसे प्राचीन मार्शल आर्ट कलारीपयट्टू की सबसे उम्रदराज गुरु हैं।

सात साल की उम्र में जब पिता के साथ पहली बार उन्होंने कलारीपयट्टू देखा, तब से यह कला उनके जीवन का हिस्सा बन गई। उस दौर में लड़कियों को इसे सीखने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन मीनाक्षी अम्मा ने इस परंपरा को चुनौती दी। उन्होंने न सिर्फ खुद सीखा, बल्कि इस कला को आगे बढ़ाने का संकल्प भी लिया।

आज, उनके गुरुकुल में 150 से ज़्यादा छात्र इस कला को सीखते हैं। सबसे खास बात यह है कि यहाँ लड़के-लड़कियां दोनों सिखते होते हैं, क्योंकि उनके लिए यह सिर्फ एक Martial Art नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर बनने का ज़रिया है। इस ट्रेनिंग में न सिर्फ तलवार और लाठी का इस्तेमाल सिखाया जाता है, बल्कि बिना किसी हथियार के Self Defence के गुर भी सिखाए जाते हैं।

शादी के बाद भी उन्होंने इस कला को जारी रखा, लेकिन समाज के डर से अभ्यास दरवाज़ों के पीछे करना पड़ा। उनके पति का सपना था कि यह प्राचीन कला हर किसी के लिए सुलभ हो, चाहे वह किसी भी जाति या Gender का हो। उनके पति ने खुद अपने जीवन में भेदभाव का सामना किया था और इसलिए उन्होंने प्रण लिया कि इस कला को हर व्यक्ति तक पहुँचाएंगे।

आज, मीनाक्षी अम्मा इस सपने को जी रही हैं। उनके गुरुकुल में न कोई भेदभाव नहीं है । हर वह व्यक्ति जो सीखने का जुनून रखता है, यहाँ Training ले सकता है।

आज वह सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के लिए प्रेरणा हैं। उनकी मेहनत और योगदान को सलाम करते हुए उन्हें ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया गया। लेकिन उनके लिए असली जीत तब होती है, जब उनके Students , चाहे लड़के हों या लड़कियां—खुद को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से भरा हुआ महसूस करते हैं।
मीनाक्षी अम्मा हमें सिखाती हैं कि सीमाएं तो समाज बनाता है, लेकिन असली योद्धा वो होते हैं, जो अपने हौसले से हर बंदिश को तोड़ देते हैं। आज भी वह 60 से ज़्यादा प्रदर्शन कर चुकी हैं, और उनकी ऊर्जा वैसी ही बनी हुई है, जैसी बचपन में थी।
सलाम है मीनाक्षी अम्मा, आपके जज्बे को।
[Women Who Slay | Kalaripayattu | Inspiration | MartialArts | The BetterIndia Hindi | Real Life Heroine]

03/07/2025

"मेरा नाम सुरेंद्र बिश्नोई है। 7 साल की उम्र में पिता को खोने के बाद, माँ ने बड़े संघर्षों से, मिड-डे मील में खाना पकाकर मुझे पाला। माँ ने अपनी सीमित आय से किताबें खरीदीं और मुझे अच्छी से अच्छी ज़िंदगी देने की कोशिश की।

गरीबी के कारण समय इतना मुश्किल था कि मुझे पढ़ाई के साथ-साथ फोटो स्टूडियो, मावा भट्टी और शादी-समारोहों में वेटर का काम भी करना पड़ा।

फिर मैंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की। छोटे-मोटे काम करके जो पैसे मिलते, उन्हें मैं फॉर्म्स भरने में लगाता। जीवन में संघर्षों के साथ-साथ मैंने कई बार असफलता भी देखी, लेकिन हार कभी नहीं मानी।

2 साल बाद आखिर मेरी मेहनत रंग लाई और एक के बाद एक कई सफलता मिली। सबसे पहले मैं प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बना, फिर वरिष्ठ अध्यापक। 2023 में मैंने स्कूल व्याख्याता में 10वीं रैंक हासिल की।

अब, जून 2025 में, मैं 65वीं रैंक के साथ असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयनित हुआ हूँ। यह केवल मेरी मेहनत और सफलता की नहीं; मेरी माँ के त्याग और संघर्षों की कहानी है।

जीवन के अभावों से घबराइए मत, क्योंकि अक्सर वही आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा बनते हैं।"

03/07/2025

किताबें रातभर सड़क पर और कोई चोरी नहीं करता! इराक का किताबों से प्यार आज भी ज़िंदा है।

03/07/2025

6 साल की उम्र, नन्हे कदम और सीधा 18,510 फीट की ऊंचाई पर तिरंगा लहराना — ये कोई साधारण कारनामा नहीं, बल्कि हौसले, तैयारी और जुनून का नतीजा है।

पंजाब के रोपड़ जिले के पब्लिक स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले तेगबीर सिंह ने वो कर दिखाया है जो बड़े-बड़े पर्वतारोहियों का सपना होता है।

तेगबीर ने रूस की माउंट एल्ब्रस चोटी फतह की है जो यूरोप की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। 20 जून को शुरू हुई चढ़ाई 28 जून को जाकर पूरी हुई, जब तेगबीर ने माइनस डिग्री टेम्परेचर और बेहद कम ऑक्सीजन वाले इस इलाके में तिरंगा फहराकर इतिहास रच दिया।

तेगबीर अब दुनिया के सबसे कम उम्र के पर्वतारोही बन चुके हैं जिन्होंने माउंट एल्ब्रस को फतह किया है। इस उपलब्धि पर उन्हें रूस के पर्वतारोहण और स्पोर्ट्स टूरिज्म फेडरेशन की ओर से आधिकारिक प्रमाणपत्र भी मिला है।

तेगबीर की ये उपलब्धि यूं ही नहीं आई। उनके पिता सुखिंदरदीप सिंह ने बताया कि उन्होंने एक साल पहले से इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। इससे पहले तेगबीर अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो भी फतह कर चुके हैं और नेपाल के माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक भी पहुंच चुके हैं। अगस्त 2024 में वे किलिमंजारो फतह करने वाले सबसे कम उम्र के एशियाई बने थे।

तेगबीर सिंह ने कहा - "मुझे पता था कि मुझे कहां पहुंचना है। और आखिरकार मैं पहुंच गया।"

तेगबीर ने महाराष्ट्र के कुशाग्र का रिकॉर्ड तोड़ा है, जिन्होंने साल 2024 में 7 साल 3 महीने की उम्र में माउंट एल्ब्रस फतह किया था। और अब भारत के इस नन्हे वीर ने दुनिया भर में देश का नाम रोशन किया है।

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