22/09/2025
गोमती पुस्तक मेले में “साहित्य की बोली स्वतंत्रता का अमृत” पर सार्थक चर्चा
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित गोमती पुस्तक मेले (एनबीटी) के अंतर्गत “पुस्तक चर्चा” कार्यक्रम में लेखक, निर्देशक और अभिनेता चंद्रभूषण सिंह की पुस्तक “साहित्य की बोली स्वतंत्रता का अमृत” पर गंभीर विमर्श हुआ। मंच पर शहर के वरिष्ठ साहित्यकारों, पत्रकारों और विद्वानों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को विशेष बना दिया।
ललित कला अकादमी, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष श्री गिरीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि साहित्य, कला और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में नाटक, कविता, चित्रकला और गीत ने मिलकर समाज में राष्ट्रभक्ति का वातावरण तैयार किया। उन्होंने कहा—
यह पुस्तक साहित्य को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ते हुए नई पीढ़ी को उस दौर की जीवंत झलक देती है। कला और साहित्य ने मिलकर ही आज़ादी की लड़ाई को ताक़त दी और यही इसका सबसे बड़ा संदेश है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं विधानसभा अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार श्रीधर अग्निहोत्री ने अपने विचार रखते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम केवल रणभूमि तक सीमित नहीं था, बल्कि यह कलम, कविता और नाटकों का भी संग्राम था। उन्होंने कहा—भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर मैथिलीशरण गुप्त, प्रताप नारायण मिश्रा हजारी प्रसाद द्विवेदी और प्रेमचंद आदि की लेखनी ने जनमानस को जागरूक किया और उनमें आत्मबल जगाकर आज़ादी का हौसला दिया। श्री अग्निहोत्री ने कहा कि साहित्य केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि क्रांति का शस्त्र है। आज हमारी जिम्मेदारी है कि नई पीढ़ी के लिए हम अपनी मातृभाषा और बोलियों को जीवित रखें।
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की उपाध्यक्ष श्रीमती विभा सिंह ने कहा कि नई पीढ़ी का हिन्दी से दूर होना चिंता का विषय है। उन्होंने जोर देते हुए कहा—
“आज हमें अपने परिवारों में बच्चों के बीच हिन्दी का प्रयोग बढ़ाना चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम में महिला साहित्यकारों का योगदान भी उतना ही महत्त्वपूर्ण रहा है। सरोजिनी नायडू और महादेवी वर्मा जैसी विभूतियों ने अपने साहित्य से समाज में ऊर्जा और प्रेरणा का संचार किया। हमें उनके विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाना होगा।
लेखक चंद्रभूषण सिंह ने कहा कि पुस्तक लिखने की प्रेरणा उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के साहित्यिक आयामों के अध्ययन से मिली। उन्होंने बताया—आज़ादी के अमृतकाल में यह पुस्तक हमें स्मरण कराती है कि मातृभाषा हिंदी ने स्वतंत्रता की चेतना जगाने में कितना बड़ा योगदान दिया। मैंने इस कृति में यह दिखाने का प्रयास किया है कि साहित्य और नाटक किस प्रकार आम आदमी के भीतर स्वतंत्रता की प्यास जगाते थे। यह पुस्तक हमारे बच्चों को मातृभाषा से जोड़ने और आज़ादी के मूल्यों को समझाने का सेतु बनेगी।
साहित्यकार एवं मॉडरेटर डॉ. मनीष शुक्ल ने कार्यक्रम का संचालन एवं पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि “साहित्य की बोली स्वतंत्रता का अमृत” केवल ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह उस भावधारा का परिचय है जिसने जनमानस में आज़ादी की ज्वाला प्रज्वलित की। उन्होंने कहा—“लेखक के अभिनेता और निर्देशक होने का लाभ भाषा में स्पष्ट दिखाई देता है। इसमें संवादात्मकता और नाटकीयता का आकर्षक पुट है, जो इसे आम पाठकों के लिए भी रोचक और प्रेरणादायी बनाता है।”कार्यक्रम के मॉडरेटर डॉ मनीष शुक्ल ने नाटक के लेखक एवं अन्य वक्ताओं से अमृत काल में हिंदी पर संवाद किया। उन्होंने आजादी के पूर्व व बाद में हिंदी के आंदोलन पर चर्चा की। उन्होंने विजन 2047 पर हिंदी की भूमिका तलाशने की कोशिश की।
कार्यक्रम में यह सर्वसम्मति बनी कि यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों और साहित्य-इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए प्रेरणास्रोत सिद्ध होगी। यह न केवल स्वतंत्रता संग्राम की साहित्यिक परंपरा का गौरवपूर्ण परिचय कराती है, बल्कि मातृभाषा और संस्कृति के संरक्षण का सशक्त संदेश भी देती है।