28/04/2025
कन्यादान हुआ जब पूरा, आया समय विदाई का ।। हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था, सारी रस्म अदाई का बेटी के उस कातर स्वर ने, बाबुल को झकझोर दिया ।। पूछ रही थी पापा तुमने, क्या सचमुच में छोड़ दिया।।
अपने आँगन की फुलवारी, मुझको सदा कहा तुमने ।। मेरे रोने को पल भर भी, बिल्कुल नही ं सहा तुमने ।।
क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नही ं ।। अब मेरे रोने का पापा, तुमको बिल्कुल ध्यान नही ं ।।
देखो अन्तिम बार देहरी, लोग मुझ े पुजवाते हैं।। आकर के पापा क्यों इनको, आप नही ं धमकाते हैं।।
नहीं रोकते चाचा ताऊ, भैया से भी आस नही ं ।। ऐसी भी क्या निष्ठुरता है, कोई आता पास नही ं ।।
बेटी की बातों को सुन के, पिता नही ं रह सका खड़ा।। उमड़ पड़ े आँखो ं से आँसू, बदहवास सा दौड ़ पड़ा।।
कातर बछिया सी वह बेटी, लिपट पिता से रोती थी।। जैस े
यादो ं के अक्षर वह, अश्रु बिंदु से धोती थी ।।
माँ को लगा गोद से कोई, मानो सब कुछ छीन चला ।। फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला।।
छोटा भाई भी कोने में, बैठा बैठा सुबक रहा।। उसको कौन करेगा चुप अब, वह कोने मे ं दुबक रहा।।
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