19/08/2025
CSDS और नैरेटिव बनाने का ख़तरनाक खेल!
Centre for the Study of Developing Societies (CSDS) स्वयं को शोध संस्थान बताता है, लेकिन इसके फंडिंग स्रोत, सर्वे पद्धति और नतीजों को देखें तो तस्वीर कुछ और ही सामने आती है।
1. विदेशी फंडिंग, साफ़ एजेंडा
सीएसडीएस को बार-बार फंड मिला है फोर्ड फ़ाउंडेशन और आईडीआरसी (कनाडा) जैसे संस्थानों से, जिनके पीछे गेट्स फ़ाउंडेशन, डीएफ़आईडी (यूके), नॉराड (नॉर्वे), ह्यूलेट फ़ाउंडेशन और डच एजेंसियां जैसी वैश्विक थिंक टैंक हैं। ये कोई निष्पक्ष दाता नहीं हैं। इनका इतिहास साफ़ बताता है—भारत में उन संस्थाओं को पैसा दो, जो समाज को भीतर से तोड़ने का काम करें, ख़ासकर जाति और समुदाय के आधार पर।
2. जाति का चश्मा केवल हिंदुओं पर
सीएसडीएस का ज़्यादातर काम, खासकर लोकनीति प्रोग्राम के तहत, हिंदू समाज को टुकड़ों में बाँटने पर टिका है, ओबीसी, ईबीसी, दलित, सवर्ण और फिर चुनावों में इनके वोट पैटर्न पर तथाकथित डेटा जारी करना। हर चुनाव में यही तथाकथित “विश्लेषण” द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अख़बारों में बड़े-बड़े शीर्षकों के साथ छपता है। मक़सद साफ़ है: हिंदू समाज के भीतर जातीय दरारों को और गहरा करना।
3. मुसलमानों की अंदरूनी दरारों पर चुप्पी
हैरानी की बात है कि जहाँ हिंदू वोटर को लगातार जाति के आधार पर बाँटा जाता है, वहीं मुसलमानों को एक ब्लॉक की तरह पेश किया जाता है। दलित मुसलमान, अशरफ़, अज्लाफ़, अरज़ल जैसी हक़ीक़तों पर कोई शोध नहीं होता। सीएसडीएस के सर्वे मुसलमानों को एकजुट दिखाते हैं, जबकि हिंदू समाज की हर छोटी दरार को उभार-उभार कर सामने रखते हैं।
4. वैज्ञानिक आधार नहीं फिर भी वैधता!
भारतीय सर्वेक्षणों में किसी उत्तरदाता की जाति को वैज्ञानिक सटीकता से कभी दर्ज नहीं किया जाता। यह महज़ अनुमान होता है, लेकिन सीएसडीएस इसे पुख़्ता “साइंस” बनाकर पेश करता है। और यही अधपका डेटा बड़े अख़बारों में छपता है। सवाल उठता है: यह शोध है या फिर एजेंडा को शोध का लिबास पहनाना?
5. विदेशी हित और घरेलू मोहरे
साफ़ है कि फोर्ड फ़ाउंडेशन और वैश्विक थिंक टैंक भारत की सामाजिक एकता को तोड़ने में दिलचस्पी रखते हैं। सीएसडीएस को फंड देकर वे सुनिश्चित करते हैं कि हिंदू समाज की जातीय दरारें हमेशा राजनीतिक विमर्श में बनी रहें। पहले योगेंद्र यादव इसी एजेंडा को आगे बढ़ाते थे, अब संजय कुमार वही काम कर रहे हैं। कांग्रेस की राजनीति को सूट करने वाले नंबर और “डेटा” गढ़ना।
6. यह भूल नहीं, एजेंडा है।
जब सीएसडीएस के अनुमान चुनावों में बुरी तरह ग़लत साबित होते हैं, तो यह भूल नहीं होती। यह उनका एजेंडा बिगड़ जाना होता है। खेल साफ़ है: दरारें पैदा करो, समाज में इंजेक्ट करो और भारत को भीतर से कमज़ोर करो।
सीएसडीएस कोई सामान्य थिंक टैंक नहीं है। इसकी विदेशी फंडिंग, एकतरफ़ा जातीय नज़र और अधवैज्ञानिक पद्धति इसे खतरनाक बनाती है। इसका काम शोध नहीं, बल्कि रणनीति है। भारत को इस ख़तरे को पहचानना होगा।