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इंस्पेक्टर ने–IPS मैडम को बीच रास्ते में थप्पड़ मारा और बत्तमीजी की सच्चाई जानकर पहले जमीन खिसक गई.सुबह के समय एक स्कूटी...
26/10/2025

इंस्पेक्टर ने–IPS मैडम को बीच रास्ते में थप्पड़ मारा और बत्तमीजी की सच्चाई जानकर पहले जमीन खिसक गई.

सुबह के समय एक स्कूटी धीरे-धीरे चल रही थी। जिस पर पूरे कानपुर की एसपी अधिकारी आरुषि वर्मा बैठी थी। वह छुट्टी पर दीपावली के लिए पटाखे खरीदने अपनी छोटी बहन सान्या के साथ लखनऊ लौट रही थी। सान्या स्कूटी चला रही थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी दीदी क्यों इतनी शांत है।

रास्ते में सान्या ने हल्के अंदाज में कहा, "दीदी, लगता है आज तो हमारी स्कूटी की किस्मत अच्छी है। वरना आलम बाग में हर वक्त पुलिस का चेकिंग चलता है। हमारा दरोगा सुबोध कुमार बड़ा टेढ़ा है। बिना वजह चालान काट देता है। ऊपर से पैसे भी मांगता है। खुदा करे आज ड्यूटी पर ना हो।"

आरुषि ने बस मुस्कुराकर कुछ नहीं कहा, लेकिन दिल के अंदर सवाल उठने लगे। क्या सच में आलम बाग का दरोगा इतना करप्ट है? क्या गरीब व्यापारियों को यूं परेशान किया जाता है?

भाग 2: पटाखों की दुकान

थोड़ी ही दूर चली स्कूटी तो सड़क के किनारे एक बूढ़ा आदमी छोटी सी दुकान पर पटाखे बेचता दिखा। आरुषि ने सान्या से कहा, "रोको, यहीं से पटाखे लेंगे।" स्कूटी रुकते ही वे दोनों नीचे उतरी और बूढ़े आदमी हरिलाल से बात करने लगीं। हरीलाल बहुत खुश था। "आइए बिटिया, इस बार अच्छे वाले पटाखे लाया हूं एकदम कम दाम में।"

तभी सामने पुलिस की जीप दिखी। दरोगा सुबोध कुमार अपने दो सिपाहियों के साथ दुकान के सामने खड़ा हुआ। हाथ में लाठी लिए उसने चिल्लाकर कहा, "ओए बूढ़े, क्या समझा है तू? बिना लाइसेंस के सड़क पर दुकान लगा रखी है क्या? आग लगा दे तो कौन जिम्मेदार होगा? चल, ₹5000 का जुर्माना दे।"

हरीलाल घबरा गया। "साहब, मैंने कोई गलती नहीं की। मैंने तो छोटे-छोटे ही रखे हैं। किसी को खतरा नहीं होगा। मैं गरीब आदमी हूं। आज तक कोई कमाई नहीं हुई। कहां से दूं इतने पैसे?"

भाग 3: दरोगा का अत्याचार

सुबोध कुमार भड़क उठा। "ज्यादा जुबान मत चला। जब पैसे नहीं तो दुकान क्यों लगाता है? दिखा लाइसेंस।" हरीलाल ने कांपते हाथों से कागज निकाल कर दिखाया। सब कुछ ठीक था। लेकिन दरोगा बोला, "कागज पूरे हैं पर जुर्माना तो कटेगा। चल, ₹5000 दे दे वरना तेरी दुकान और तेरा सारा माल जला दूंगा।"

पास में खड़ी आरुषि वर्मा और सान्या सब कुछ चुपचाप देख रही थीं। हर लफ्ज उनके सीने पर चोट कर रहा था। उन्होंने देखा कि कैसे एक गरीब इंसान से बेवजह पैसे वसूले जा रहे हैं। और अब तो दरोगा ने उसकी इज्जत भी छीन ली। एक जोरदार थप्पड़ हरीलाल के गाल पर पड़ा। और फिर दरोगा गुस्से में चिल्लाकर कहा, "जब पैसे नहीं तो सड़क पर क्यों निकलता है? तेरे जैसे लोगों की वजह से ही कानून व्यवस्था गड़बड़ होती है। चल, अब तुझे थाने ले चलकर सबक सिखाएंगे।"

भाग 4: आरुषि का साहस

बस अब आरुषि से रहा नहीं गया। वह आगे बढ़कर दरोगा के सामने खड़ी हो गई। उनकी आंखों में गुस्सा था, लेकिन आवाज में ठंडक। "दरोगा सुबोध कुमार, आप हद पार कर रहे हैं। बिना गलती के किसी पर जुर्माना लगाना गैरकानूनी है और किसी बुजुर्ग पर हाथ उठाना तो इंसानियत की भी तौहीन है। आपको कोई हक नहीं कि किसी गरीब पर हाथ उठाए।"

सुबोध कुमार ने तिरछी नजर से देखा। "ओ, अब तू मुझे कानून सिखाएगी। लगता है दोनों बहनों को ही जेल की हवा खिलानी पड़ेगी।" आरुषि ने सिर्फ इतना कहा, "तुम्हारा वक्त खत्म हुआ दरोगा। अब तुम्हें पता चलेगा कि कानून क्या होता है।"

भाग 5: थाने में घमंड

थाने में कदम रखते ही दरोगा सुबोध कुमार की आंखों में घमंड साफ छलक रहा था। वह ऊंची आवाज में बोला, "इन दोनों को यहीं बिठा दो, समझे। अब देखते हैं इनकी औकात क्या है।" दोनों बहनों को एक कोने में बिठा दिया गया। थोड़ी देर बाद सुबोध कुमार कुर्सी पर टिकते हुए बोला, "ओए रामू, कहां मर गया? चाय ला जल्दी। आज बड़ा मजा आएगा।"

रामू दौड़ता हुआ आया और चाय रख गया। सुबोध कुमार ने चाय का पहला घूंट ही लिया था कि उसका मोबाइल बज उठा। "हां बोलो।" उसने बेफिक्री से कहा, "सब काम हो जाएगा। बस पैसे तैयार रखना। तुमको क्या टेंशन लेना है? मैं सब संभाल लूंगा।" उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान थी।

भाग 6: आरुषि की योजना

पास में बैठी आरुषि वर्मा सब कुछ शांति से सुन रही थी। उनकी नजरें ठंडी थीं, लेकिन दिमाग गर्म और सोच रही थी। यह दरोगा बाहर ही नहीं, अंदर भी गलत है। पैसे लेकर लोगों के केस पलटता है और बेगुनाहों को सताता है। ऐसे लोगों को सबक सिखाना ही असली ड्यूटी है। दूसरी तरफ सान्या का हाल बहुत खराब था। चेहरे पर डर, आंखों में आंसू और दिल में एक ही सवाल। अब क्या होगा?

मगर जब उसने बगल में बैठी आरुषि की आंखों में देखा तो थोड़ी हिम्मत आई। उसने धीरे से पूछा, "दीदी, क्या होगा अब? यह हमें छोड़ेंगे क्या?" आरुषि ने धीमी मगर भरोसे भरी आवाज में कहा, "डरिए मत। यह दरोगा कुछ नहीं कर पाएगा। मैं आपके साथ हूं। कानून उसकी जागीर नहीं, जनता की ताकत है। यह जो कर रहा है, वही इसके खिलाफ सबूत बनेगा।"

सान्या अभी भी डरी हुई थी। बोली, "दीदी, आप कौन हैं? और जब हरीलाल चाचा को मारा जा रहा था, तब आपने कुछ कहा क्यों नहीं?" आरुषि मुस्कुराई और बहुत शांत अंदाज में बोली, "मैं कोई आम लड़की नहीं हूं। मेरा नाम आरुषि वर्मा है। कानपुर की एसपी अधिकारी। मैं इस दरोगा के गंदे कामों की जड़ तक पहुंचना चाहती हूं। इसलिए मैंने खुद को आम लड़की बनाकर रखा। बस देख रही हूं कि यह गिर कितना सकता है।"

भाग 7: सान्या की हिम्मत

यह सुनकर सान्या की सांसों में थोड़ी राहत आई। "दीदी, आप सच्ची कह रही हैं ना? कहीं यह कोई चाल तो नहीं?" आरुषि बोली, "अगर मैं चाहूं तो अभी इसी वक्त इसे निलंबित कर दूं। लेकिन मैं चाहती हूं कि इसके चेहरे का नकाब खुद उतरे। सबके सामने।"

कुछ देर बाद दरोगा सुबोध कुमार उठकर एक कमरे में गया। वहां पहुंचते ही हवलदार को आदेश दिया, "जा, उस छोटी लड़की को बुला के लाओ।" हवलदार बाहर आया। सख्त लहजे में बोला, "चल, अंदर साहब बुला रहे हैं।" सान्या का चेहरा पीला पड़ गया। उसने डरते हुए आरुषि की तरफ देखा। आरुषि ने बस इतना कहा, "हिम्मत रखो, जो होना है देखा जाएगा। अब डरना नहीं।"

भाग 8: सान्या का सामना

सान्या ने हिम्मत जुटाई और अंदर चली गई। कमरे में धुआं भरा था। सुबोध कुमार पैर पर पैर रखे सिगरेट पी रहा था। सान्या को देखते ही वह व्यंग से मुस्कुराया और बोला, "तो आ गई तू। देख, सीधी बात करता हूं। अगर अपनी दीदी को बचाना है तो ₹2000 निकाल वरना तेरी दीदी को हवालात में डाल दूंगा और तू अकेली घर जाएगी।"

सान्या के होंठ कांपने लगे। आंखों से आंसू टपक पड़े। वह रोते हुए बोली, "सर, रहम कर दीजिए। मेरे पास पैसे नहीं हैं। मेरे पापा गरीब आदमी हैं। दिन भर की कमाई मुश्किल से घर पहुंचती है। हम पटाखे खरीदने आए थे। मैं इतना पैसा कहां से लाऊं?"

सुबोध कुमार ने सिगरेट का कश लिया और बोला, "मुझे तेरे पापा से मतलब नहीं। मेरे पैसे दे वरना तेरी दुनिया बदल दूंगा। यहां मेरा ही कानून चलता है। समझा?"

भाग 9: आरुषि का प्रतिशोध

बाहर बैठी आरुषि वर्मा ने उसकी हर आवाज सुनी। उनकी मुट्ठियां कस गईं। अब बस वक्त आने वाला था जब यह दरोगा सुबोध कुमार अपनी औकात जान लेगा। थाने के अंदर माहौल एकदम तनाव भरा था। दरोगा सुबोध कुमार की आंखों में गुस्सा और आवाज में जहर उतर आया था।

वह दांत पीसते हुए बोला, "सुन ले, अब ज्यादा बातें मत बना। या तो पैसे निकाल या फिर तेरा और तेरी दीदी का जीना हराम कर दूंगा। समझा तू? अब बोल, पैसे देगी या नहीं?"

बेचारी सान्या कांपती हुई जेब टटोलने लगी। थरथराते हाथों से ₹800 निकाले और कहा, "सर, बस इतना ही है मेरे पास। प्लीज यह रख लीजिए और हमें जाने दीजिए। मैं और कुछ नहीं दे सकती।"

भाग 10: सुबोध का अपमान

सुबोध कुमार ने नोट हाथ में लिए मुस्कुराया और तिरस्कार से बोला, "चल ठीक है, जा अब बाहर जाकर बैठ। ज्यादा ड्रामा मत करना।" फिर उसने आवाज लगाई, "ओए हवलदार, उस लंबी वाली लड़की को अंदर बुला।"

हवलदार बाहर आया और बोला, "मैडम साहब बुला रहे हैं अंदर।" आरुषि वर्मा ने बिना झिझक के दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए। कमरे में घुसते ही सुबोध कुमार कुर्सी पर ढीला होकर बैठा था, होठों पर एक व्यंग भरी मुस्कान थी।

भाग 11: आरुषि का आत्मविश्वास

वह बोला, "नाम क्या है तेरा?" आरुषि ने धीमी मगर दृढ़ आवाज में कहा, "नाम से क्या फर्क पड़ता है? नाम कुछ भी हो, आप यह बताइए। आपको कहना क्या है?" उसका लहजा इतना शांत और आत्मविश्वासी था कि दरोगा कुछ पल के लिए हैरान रह गया।

उसने सोचा, "यह लड़की है कौन? इतनी हिम्मत कहां से लाई है?" फिर उसने टेबल पर हाथ मारा और बोला, "ज्यादा अकड़ मत दिखाओ। थाने में अकड़ टूटने में वक्त नहीं लगता। अच्छा भला समझ कर बोल रहा हूं। वरना दो डंडे लगेंगे तो खुद ही बोलना भूल जाओगी। चलो, यह सब छोड़ो। जल्दी से ₹2000 निकालो वरना जेल में डाल दूंगा।"

भाग 12: आरुषि का प्रतिरोध

लेकिन आरुषि वर्मा की नजरें अडिग थीं। उन्होंने कहा, "मैं आपको एक भी नहीं दूंगी क्योंकि मैंने कोई गुनाह नहीं किया। आप किस हक से मुझसे पैसे मांग रहे हैं? क्या यही है आपका कानून? क्या इसी के लिए आपने वर्दी पहनी है ताकि बेगुनाहों से पैसा वसूला जाए?"

उनकी आवाज में डर नहीं, बल्कि आग थी। ऐसी आग जो अन्याय को जलाने के लिए काफी थी। यह सुनकर सुबोध कुमार का चेहरा लाल हो गया। वह गुस्से में चिल्लाया, "ओए हवलदार, इस औरत को लॉकअप में डाल दो। अभी इसका जोश निकालता हूं।"
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जब दरोगा ने मारा ips अधिकारी को थपड़ फिर क्या हुआसुबह का समय था और बाजार में चहल-पहल थी। दुकानदार अपनी-अपनी दुकानों को ख...
26/10/2025

जब दरोगा ने मारा ips अधिकारी को थपड़ फिर क्या हुआ

सुबह का समय था और बाजार में चहल-पहल थी। दुकानदार अपनी-अपनी दुकानों को खोलने में व्यस्त थे। इसी भीड़ में, दरोगा पांडे अपने दो सिपाहियों के साथ दुकानों से वसूली कर रहा था। उसके चेहरे पर अकड़ थी, चाल में रब और आवाज में डर। वह हर दुकान पर रुकता, पैसे जेब में डालता और आगे बढ़ जाता। कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता था। सब उसे "पांडे साहब" कहकर झुक जाते थे।

लेकिन आज दरोगा पांडे की किस्मत उसके लिए कुछ और ही लिख चुकी थी। सड़क के किनारे एक ठेले पर खड़ी एक महिला, जो सादे सलवार सूट में थी, बाल पीछे बांधे हुए और सामने रखी प्लेट में मोमोज खा रही थी। कोई नहीं जानता था कि वह लड़की दरअसल जिले की सबसे तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी नेहा चौहान थी। वह अक्सर वर्दी के बिना इलाके का हाल खुद देखने आई थी कि दरोगा पांडे सिंह अपनी ड्यूटी ठीक से कर भी रहा है या नहीं।

भाग 2: दरोगा की धौंस

उसी समय, दरोगा पांडे अपने बाइक पर भीड़ को चीरता हुआ एक सब्जी की दुकान पर गया और कहा, "चल, वे हफ्ता निकाल, जल्दी कर।" तभी नेहा ने दरोगा पांडे को देखा। कैसे वह दुकानदारों से धौंस जमाते हुए पैसे ले रहा था। उसकी आंखें सिकुड़ गईं। उसने अपने मोबाइल से हल्का सा वीडियो रिकॉर्ड किया। उसने सोच लिया कि अब तो इस दरोगा पांडे को सबक सिखाना ही है।

अगले दिन सुबह-सुबह वहीं बाजार, वहीं जगह लेकिन अब कुछ बदला हुआ था। उसी जगह पर जहां कल नेहा मोमोज खा रही थी, आज उसने एक पानी पूरी का ठेला लगा रखा था। ठेले पर वही लड़की खड़ी थी। सिर पर दुपट्टा, चेहरा साधारण पर आंखों में आत्मविश्वास की चमक। कोई नहीं पहचान पा रहा था कि यह वही आईपीएस अधिकारी है। वह ग्राहकों को पानी पूरी खिला रही थी, मुस्कुरा रही थी। लेकिन अंदर ही अंदर वह सिर्फ एक मौके का इंतजार कर रही थी।

भाग 3: पांडे का सामना

करीब 2 घंटे बाद, दरोगा पांडे अपनी रोज की रूटीन पर बाजार पहुंचा। सिपाही दोनों तरफ। उसने आते ही एक समोसे वाले को घूरा। फिर बोला, "क्या रे, आज फिर लेट हो गया। चल, 500 निकाल।" समोसे वाले ने कांपते हुए पैसे निकाल दिए। पांडे आगे बढ़ा और तभी उसकी नजर नेहा के ठेले पर पड़ी। वह रुक गया।

उसने नेहा से मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, नई दुकान लगी है। चलो अच्छा है। अब तुमसे भी हफ्ता लेना पड़ेगा।" नेहा ने सिर उठाया और हल्के स्वर में बोली, "कौन सा हफ्ता, साहब?" पांडे ने अकड़ते हुए कहा, "जो सब देते हैं, वही। वरना ठेला कल से यहां नहीं दिखेगा। समझी?"

नेहा ने सीधा उसकी आंखों में देखा। "साहब, मैं कोई पैसा नहीं दूंगी।" पांडे हंस पड़ा। "ओहो, बड़ी तेज जुबान है तेरी। लगता है अभी नहीं है बाजार में। ज्यादा चालाकी मत दिखा, वरना ठेला उलट दूंगा।" नेहा चुप रही, लेकिन उसकी नजरों में चुनौती थी।

भाग 4: थप्पड़ का अपमान

पांडे का गुस्सा बढ़ गया। उसने ठेले पर हाथ मारा और बोला, "निकाल पैसे।" नेहा ने फिर मना किया। तभी पांडे ने गुस्से में आकर नेहा के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। आवाज इतनी तेज थी कि पास खड़े लोग सन्न रह गए। किसी ने भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं की। बाजार में एक पल के लिए खामोशी छा गई।

नेहा ने गुस्से में कहा, "दरोगा साहब, इस थप्पड़ का हिसाब तो होकर ही रहेगा।" दरोगा हंसते हुए बोला, "जा जा, तेरे से जो होता है कर ले।" दरोगा इतना कहते ही वहां से निकल गया।

भाग 5: रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश

उसी समय नेहा थाने पहुंची। सामने एसएओ कुर्सी पर बैठा पकोड़े खा रहा था। उसने कहा, "क्या काम है, क्या लेने आई हो यहां?" तभी नेहा ने बिना इधर-उधर देखे कहा, "साहब, मुझे रिपोर्ट लिखवानी है।" एसएओ ने एक ठहाका लगाया और बोला, "यहां कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। चलो यहां से।"

नेहा ने बिना हिले कहा, "रिपोर्ट तो थाने में ही लिखी जाती है, साहब।" उसने मेज पर रखी चाय का घूंट लिया और धीरे से बोला, "मैंने कहा ना, यहां कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। अगर रिपोर्ट लिखवानी ही है तो ₹5000 लगेंगे। है तो देकर रिपोर्ट लिखवाओ।"

नेहा कुछ पल चुप रही। फिर उसने अपने बैग से ₹5,000 निकाले और एसएओ के सामने रख दिए। एसएओ के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसने रुपए उठाकर दराज में रखे और बोला, "अब बताओ, किसकी रिपोर्ट लिखवानी है?" नेहा ने बिना झिझके कहा, "दरोगा पांडे की।"

भाग 6: पांडे की सच्चाई

एसएओ के चेहरे की मुस्कान पल भर में गायब हो गई। "क्या कहा तुमने? दरोगा पांडे?" नेहा ने कहा, "हां, एसएओ साहब, दरोगा पांडे की। कल उसने बाजार में दुकानदारों से जबरन पैसे वसूले, मुझे धमकाया और फिर थप्पड़ मारा। मुझे उसकी रिपोर्ट दर्ज करानी है।"

एसएओ का गुस्सा बढ़ गया। उसने कुर्सी सीधी की और धीमे स्वर में बोला, "तुम जानती भी हो किसकी बात कर रही हो? दरोगा पांडे मेरे ही थाने का आदमी है। उसकी रिपोर्ट मैं नहीं लिख सकता।" नेहा ने सख्ती से कहा, "कानून सबके लिए बराबर होता है। चाहे वह दरोगा हो या एसएओ।"

भाग 7: नेहा की दृढ़ता

एसएओ ने मेज पर हाथ पटका। "ज्यादा दिमाग मत चला। यह कोई टीवी शो नहीं है कि जो चाहे रिपोर्ट लिखवा ले। यहां वही होता है जो हम चाहते हैं।" नेहा ने एसएओ को गुस्से में देखा। फिर सख्त आवाज में कहा, "साहब, आपने रुपए ले लिए हैं। अब रिपोर्ट लिखनी पड़ेगी।"

एसएचओ उठ खड़ा हुआ और गुस्से में बोला, "रुपए लिए हैं तो क्या हुआ? मैं उसकी रिपोर्ट नहीं लिखूंगा, समझी? और अगर ज्यादा जुबान चलाई तो 1 मिनट भी नहीं लगेगी अंदर करने में।" नेहा ने एक गहरी सांस ली। उसकी आंखों में अब वही ठंडापन था जो एक अफसर की नजरों में होता है।

भाग 8: नेहा का प्लान

बाहर बाजार फिर वहीं चहल-पहल। नेहा ने सोच लिया कि अब तो दरोगा पांडे और एसएओ को सबक सिखाना ही है। सड़कों पर हल्की भीड़ थी। दुकानदार अपनी दुकानें समेट रहे थे और हवा में तले हुए पकोड़ों की खुशबू फैल रही थी। लेकिन नेहा चौहान के मन में अब कोई शांति नहीं थी।

उसका चेहरा गुस्से और अपमान से तमतमा उठा था। दरोगा पांडे के थप्पड़ की गूंज अब भी उसके कानों में थी। पर उसने तय कर लिया कि अब यह मामला यहीं नहीं रुकेगा। उसी समय नेहा ने अपने भाई मंत्री विक्रम चौहान को फोन लगाया।

भाग 9: मंत्री का समर्थन

नेहा के हाथ थोड़े कांपे लेकिन उसने कॉल कर दिया। फोन कुछ सेकंड तक बजा और फिर दूसरी ओर से भारी आवाज आई। "हां, नेहा, सब ठीक है ना?" नेहा की आवाज धीमी पर ठोस थी। "नहीं भैया, इस बार कुछ बहुत गलत हो गया है।"

"क्या हुआ?" "थाने का दरोगा पांडे। उसने बाजार में वसूली करते हुए मुझे थप्पड़ मारा और जब मैं रिपोर्ट लिखवाने गई तो एसएओ ने पैसे मांगे। रिपोर्ट नहीं लिखी।" कुछ पल के लिए फोन के उस पार खामोशी छा गई।

फिर मंत्री विक्रम चौहान की आवाज आई, "कहां हो तुम अभी?" "मैं इस समय बाजार में हूं। मुझे आपकी मदद चाहिए। आज शाम तक बाजार में आ जाइए। वही जगह जहां कल मोमोज वाला ठेला था।" विक्रम चौहान ने कहा, "ठीक है नेहा, मैं आता हूं।"

भाग 10: सबूत इकट्ठा करना

शाम के करीब 5:00 बजे का वक्त था। नेहा बाजार में खड़ी थी। सादा सूट में लेकिन चेहरे पर वही कठोरता। थोड़ी देर में काले रंग की गाड़ी आकर रुकी। गाड़ी से उतरे मंत्री विक्रम चौहान, लंबे, सधे कदम, गले में दुपट्टा और आंखों में गुस्से की लकीरें।

भीड़ ने तुरंत उन्हें पहचान लिया। सब धीरे-धीरे फुसफुसाने लगे। "अरे मंत्री जी आ गए।" "मंत्री जी," नेहा उनके पास आई। "मंत्री जी, यही वह जगह है जहां दरोगा पांडे ने मुझे थप्पड़ मारा था।" विक्रम ने चारों ओर नजर दौड़ाई। बाजार के लोगों ने नजरें झुका लीं। कोई कुछ नहीं बोला।

भाग 11: थाने का माहौल

नेहा और विक्रम दोनों थाने की ओर बढ़े। थाने का माहौल हमेशा की तरह ढीला था। बाहर सिपाही बातें कर रहे थे। अंदर टेबल पर फाइलें बिखरी थीं। लेकिन जैसे ही मंत्री चौहान अंदर दाखिल हुए, पूरा थाना सन्न रह गया।

एसएओ तुरंत खड़ा हो गया। "नमस्ते मंत्री जी। कैसे आना हुआ?" विक्रम ने सीधा उसकी ओर देखा। "आना तो मुझे बहुत पहले चाहिए था लेकिन अब आया हूं ताकि देख सकूं कि इस थाने में क्या हो रहा है।"

भाग 12: सच्चाई का सामना

एसएओ के चेहरे पर पसीना साफ झलक रहा था। उसने हकलाते हुए कहा, "नहीं साहब सब ठीक है।" नेहा आगे बढ़ी। "साहब, यही एसएओ है जिसने मुझसे ₹5000 लेकर भी रिपोर्ट नहीं लिखी।"

एसएओ ने झट से कहा, "साहब, यह झूठ बोल रही है।" विक्रम की आवाज और सख्त हो गई और थाने का माहौल बदल चुका था। सबकी नजरें झुक चुकी थीं। तभी दरवाजा खुला और दरोगा पांडे अंदर आया।
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जब पुलिस इंस्पेक्टर ने आर्मी ट्रक रोका | फिर हुआ ऐसा इंसाफ़ जिसने सबको हिला दियाराजस्थान की गर्मी में मई का महीना किसी अ...
26/10/2025

जब पुलिस इंस्पेक्टर ने आर्मी ट्रक रोका | फिर हुआ ऐसा इंसाफ़ जिसने सबको हिला दिया

राजस्थान की गर्मी में मई का महीना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होता। सुबह-सुबह हल्की-ठंडी हवाओं के साथ सूरज उगता है, लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, धरती अंगारों की तरह तपने लगती है। हवा का हर झोंका मानो आग का फुवारा हो। सड़क का डामर पिघलकर बुलबुले छोड़ता है और पेड़ों की छांव भी किसी जलते तवे जैसी लगती है।

एक दिन ऐसा ही मंजर था। हाईवे नंबर 62 पर धूप का राज था। आसमान नीला नहीं बल्कि सफेद चमक से भरा हुआ था। लोग अपने-अपने काम से निकल रहे थे, पर हर किसी के चेहरे पर गर्मी की मार साफ झलक रही थी। इसी सड़क के किनारे एक चौकी थी, जहां तैनात थे सब इंस्पेक्टर बलवंत सिंह। लंबा चौड़ा शरीर, चौड़े कंधे, घनी मूछें और आंखों में अकड़। बलवंत सिंह को थाने में सब सरदार कह कर बुलाते थे।

भाग 2: अहंकार का परिचय

वह अपनी ड्यूटी को लेकर सख्त तो थे, लेकिन कभी-कभी उनका अंदाज अहंकार में बदल जाता था। उस दिन उन्होंने नाकाबंदी लगवाई थी। कारण था कुछ दिनों पहले इसी रूट से शराब की बड़ी खेप पकड़ी गई थी। खबर आई थी कि आज फिर से अवैध माल इसी रास्ते से जाने वाला है। सड़क के किनारे बैरिकेड्स लगाए गए थे।

पुलिस वाले पसीने से लथपथ होकर भी हर गाड़ी रोक रहे थे। कोई ट्रक, कोई जीप, कोई निजी कार सबको रोकना पड़ रहा था। "भाई, जल्दी करो। धूप में खड़े-खड़े जान निकल रही है," एक ड्राइवर ने शिकायत की। बलवंत सिंह ने आंखें तैरर कर कहा, "अरे चुपचाप खड़े रहो। जब तक कागज नहीं दिखाओगे गाड़ी आगे नहीं जाएगी।"

भाग 3: आर्मी का आगमन

इसी बीच, दोपहर के करीब 12:30 बजे दूर से धूल का गुब्बार उठा। पहले लगा कोई और ट्रक आ रहा है, लेकिन जब गाड़ी पास आई तो सबकी नजरें ठहर गईं। वह था एक बड़ा हरे रंग का आर्मी ट्रक। उस पर कैमोफ्लाज रंग की छाप थी। गाड़ी की नंबर प्लेट पर साफ लिखा था "इंडियन आर्मी।" ट्रक के अंदर करीब 15 से 20 जवान बैठे थे। सभी थके हारे मगर चेहरे पर वही अनुशासन और सख्ती।

ट्रक देखकर चौकी पर खड़े कई लोगों के चेहरे चमक उठे। एक बुजुर्ग किसान ने पास खड़े लड़के से कहा, "बेटा, देखो यह वही लोग हैं जिनकी वजह से हम चैन की नींद सोते हैं।" लड़के ने मासूमियत से पूछा, "दादा, यह लोग कहां जा रहे होंगे?" किसान ने गर्व से कहा, "सीमा की ओर, जहां हर रोज मौत से खेलते हैं।"

भाग 4: अहंकार की टकराहट

लेकिन बलवंत सिंह की आंखों में कुछ और ही चमक थी। उन्होंने मूछों पर हाथ फेरा और बुदबुदाए, "आर्मी का ट्रक है। देखता हूं आज यह कितना बड़ा होता है।" इतना कहकर उन्होंने हाथ उठाया और ट्रक को रुकने का इशारा किया। ट्रक धीरे-धीरे आकर बैरिकेड के सामने रुका।

ड्राइवर ने ब्रेक लगाया और ट्रक के दरवाजे से एक जूनियर कमिश्नर ऑफिसर उतरे। उनका चेहरा धूप से तपा हुआ था, लेकिन आंखों में संयम और आत्मविश्वास साफ झलक रहा था। जेसीओ ने आते ही पूछा, "क्या बात है, हमें क्यों रोका गया?" बलवंत सिंह ने अकड़ भरी आवाज में कहा, "चेकिंग है। सब गाड़ियां रुक रही हैं। यह भी रुकेगी। कागज दिखाओ और ट्रक की तलाशी होगी।"

भाग 5: अनुशासन का पालन

जेसीओ ने शांत स्वर में जवाब दिया, "यह सरकारी ट्रक है। ड्यूटी पर जा रहा है। हमारे पास सारे दस्तावेज हैं। लेकिन हम बॉर्डर पर सप्लाई लेकर जा रहे हैं। अगर देर हो गई तो मुश्किल हो सकती है। कृपया समय बर्बाद मत कीजिए।" लेकिन बलवंत सिंह के अहंकार को एक बात चुभ गई।

"ओहो, मतलब हमें पढ़ा रहे हो कि क्या करना है। यहां कानून मैं हूं। चाहे ट्रक आर्मी का हो या किसी मंत्री का। चेकिंग तो होगी ही। उतर आओ सबको और सामान भी चेक करेंगे।" यह सुनते ही माहौल में गर्मी और बढ़ गई। कुछ जवान तुरंत ट्रक से नीचे उतर आए। उनकी आंखों में गुस्सा साफ दिख रहा था।

भाग 6: तना हुआ माहौल

एक जवान ने कहा, "साहब, हम देश की सेवा कर रहे हैं। हमें अपमानित मत कीजिए।" लेकिन बलवंत सिंह मुस्कुराए और बोले, "सेवा कर रहे हो तो ठीक है लेकिन यहां मेरी ड्यूटी भी सेवा ही है। बिना चेकिंग के कोई नहीं जाएगा।"

भीड़ की सांसे थम गई। हर किसी को लग रहा था कि अब कुछ बड़ा होने वाला है। सड़क पर खड़ी भीड़ का ध्यान अब पूरी तरह उस आर्मी ट्रक और पुलिस वालों की तरफ था। धूप इतनी तेज थी कि लोग पसीना पोंछते हुए भी वहां से हिलने को तैयार नहीं थे।

भाग 7: स्थिति की गंभीरता

जूनियर कमिश्नर ऑफिसर ने अब संयम से बोलना शुरू किया। "इंस्पेक्टर साहब, हम आपकी ड्यूटी समझते हैं। देश के अंदर कानून व्यवस्था बनाए रखना पुलिस की जिम्मेदारी है। लेकिन यह भी समझिए कि हम भी अपने देश की रक्षा के लिए निकले हैं। यह ट्रक बॉर्डर पर जाने वाली सप्लाई लेकर जा रहा है। अगर इसमें देरी हुई तो सीधा असर सीमा पर तैनात जवानों पर पड़ेगा। कृपया हमें रोके नहीं।"

भीड़ में खड़े कुछ लोग तुरंत बोल पड़े, "सही कह रहे हैं साहब। जवानों को मत रोको। यह हमारी सुरक्षा के लिए जा रहे हैं। इन्हें परेशान क्यों कर रहे हो?" लेकिन बलवंत सिंह जैसे किसी और ही दुनिया में खड़े थे। उनकी आंखों में वही पुराना अहंकार चमक रहा था।

भाग 8: टकराव की स्थिति

"अरे वाह, तो अब पुलिस को आर्मी आदेश देगी। यहां कानून का पालन करवाने की जिम्मेदारी हमारी है। चाहे गाड़ी किसी की भी हो, आम आदमी की, नेता की या आर्मी की। चेकिंग होगी। समझ गए?" जवानों के चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था।

"साहब, लहजा बदल लीजिए। हम सैनिक हैं। गुंडे बदमाश नहीं। आप हमसे ऐसे बात नहीं कर सकते।" भीड़ ने जोर से तालियां बजा दी। बलवंत सिंह का चेहरा लाल हो गया।
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मुंबई की शाम हमेशा की तरह ट्रैफिक और हॉर्न की आवाजों से गूंज रही थी। मरीन ड्राइव के पास लाल रंग की फेरारी अचानक झटके से ...
25/10/2025

मुंबई की शाम हमेशा की तरह ट्रैफिक और हॉर्न की आवाजों से गूंज रही थी। मरीन ड्राइव के पास लाल रंग की फेरारी अचानक झटके से रुक गई। ड्राइवर सीट से उतरी एक खूबसूरत और आत्मविश्वासी महिला नायरा मेहता, जो देश की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी की मालिक थी। उसके महंगे सनग्लासेस के पीछे गुस्से से भरी आंखें थीं। "उफ, यह भी आज ही खराब होनी थी," उसने झुंझलाते हुए कहा।

सड़क पर खड़े लोग साइड से गुजर रहे थे। कुछ तो मोबाइल निकालकर वीडियो बनाने लगे। तभी वहीं पास के एक छोटे गैराज से एक पतला सा लड़का दौड़ता हुआ आया। राघव, उम्र बस 21 साल। कपड़े तेल और ग्रीस से सने हुए थे, पर उसकी आंखों में एक अजीब आत्मविश्वास था। उसने फेरारी को देखते ही समझ लिया कि यह उसके लिए आम कार्य नहीं, एक मौका है जिंदगी बदलने का।

"मैडम, अगर आप इजाजत दें तो मैं देख लूं," उसने संकोच से कहा। नायरा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। ग्रीस लगे कपड़े, धूल भरा चेहरा, सस्ता मोबाइल जेब में। उसने हल्की सी हंसी उड़ाई, "तुम यह फेरारी है, कोई स्कूटी नहीं।"

"मुझे पता है, मैडम," राघव बोला, "लेकिन आप बस 10 मिनट दीजिए, शायद यह चल पड़े।" नायरा ने घड़ी देखी, 7:40 बजे थे। उसे 8:00 बजे एक जरूरी मीटिंग में पहुंचना था। "ठीक है," उसने कहा, "अगर तुम इसे 10 मिनट में ठीक कर दो तो मैं तुम्हें 1 करोड़ दूंगी।"

भाग 2: एक अनोखा मौका

सड़क पर खड़े लोगों ने यह सुनकर हंसी उड़ाई। किसी ने कहा, "अरे भाई, करोड़ का सपना देखो तो सही।" लेकिन राघव ने कुछ नहीं कहा। उसने तुरंत बोनट खोला, हाथ में रिंच ली और झुककर इंजन के अंदर देखने लगा। नायरा अपनी रोलेक्स घड़ी पर नजर रखी थी। हर सेकंड जैसे चुभ रहा था।

राघव ने कार की आवाज सुनी। फिर ध्यान से इंजन के नीचे झुक गया। "फ्यूल लाइन में हवा फंसी है और सेंसर फॉल्ट दे रहा है," उसने बुदबुदाया। उसने एक पतली पाइप काटी, उसे साफ किया। फिर किसी जादू की तरह सब कुछ जोड़ दिया।

नायरा अब तक सोच रही थी कि यह तो बस नाटक कर रहा है। लेकिन जब राघव ने कहा, "अब मैडम, जरा स्टार्ट कीजिए," तो उसने बिना उम्मीद के चाबी घुमाई। रोम फेरारी दहाड़ उठी। इंजन पहले से भी ज्यादा स्मूद आवाज में चल रहा था। आसपास के लोग ताली बजाने लगे। नायरा का मुंह खुला रह गया। "तुमने यह कैसे किया?" उसने हैरानी से पूछा।

भाग 3: आत्मविश्वास की नई कहानी

राघव मुस्कुराया। "मैडम, मशीनें भी बात करती हैं, पर सुनना आता होना चाहिए।" नायरा कुछ सेकंड तक उसे देखती रही। एक मामूली मैकेनिक जिसने उसकी करोड़ों की कार को 10 मिनट में ठीक कर दिया। वो झुंझुलाहट अब एक अजीब सी जिज्ञासा में बदल गई थी।

उसने हैंडबैग से चेक बुक निकाली और बोली, "नाम क्या है तुम्हारा?" "राघव," उसने कहा। नायरा ने चेक पर लिखा, "आरसीइंग एंड लेला।" "वादा किया था ना," उसने कहा, पर उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं थी। उसमें कुछ और था। शायद एहसास कि उसने किसी असाधारण इंसान को खोज लिया है।

राघव ने चेक लेने से इंकार कर दिया। "मुझे पैसे नहीं चाहिए, मैडम। बस एक मौका चाहिए आपकी कंपनी में काम करने का।" नायरा पहली बार बिना जवाब के रह गई। हवा में फेरारी के इंजन की गर्मी और एक नए किस्से की शुरुआत महसूस हो रही थी।

भाग 4: नए विचारों की शुरुआत

अगले दिन सुबह, नायरा मेहता अपने ऑफिस में बैठी थी। शीशे से बना ऊंचा कॉर्नर केबिन, जहां से पूरा मुंबई झिलमिलाता दिखता था। सामने रखे टेबल पर कल रात का वह चेक अभी भी पड़ा था। वही 1 करोड़ का। उसने कई बार सोचा कि किसी दूसरे को फोन करें। लेकिन हर बार उसके दिमाग में राघव का चेहरा आ जाता था। वो सादगी, वो आत्मविश्वास और वह वाक्य, "मशीनें भी बात करती हैं। बस सुनना आता होना चाहिए।"

नायरा के दिमाग में एक विचार घूम रहा था। उसकी कंपनी, मेहता मोटर्स, पिछले कुछ महीनों से मुश्किल में थी। नई स्पोर्ट्स कार का प्रोटोटाइप बार-बार फेल हो रहा था। यूरोप के इंजीनियर भी हार मान चुके थे। उसे अब किसी ऐसे दिमाग की जरूरत थी जो मशीनों को महसूस कर सके, जैसे राघव ने किया।

भाग 5: राघव की एंट्री

इसी सोच में डूबी थी कि इंटरकॉम बजा। "मैडम, एक लड़का आपसे मिलने आया है। नाम राघव बताया है।" नायरा मुस्कुरा उठी। "भेज दो अंदर।" दरवाजा खुला और राघव अंदर आया। वही पुरानी जींस, सादा शर्ट। लेकिन आंखों में वही चमक।

उसने झुक कर कहा, "गुड मॉर्निंग, मैडम।" "गुड मॉर्निंग, मिस्टर राघव। कल रात का वादा याद है?" नायरा ने मुस्कुराते हुए कहा। "हां, मैडम, लेकिन मैंने पैसे नहीं मांगे थे। मौका मांगा था," राघव बोला।

नायरा ने उसे बैठने का इशारा किया। "अगर मैं तुम्हें अपनी कंपनी में मौका दूं, तो तुम क्या करोगे?" "मैं आपकी कारों को महसूस करवाऊंगा। मैडम, लोग मशीन नहीं, जज्बा खरीदते हैं। आपकी गाड़ियों में वह जज्बा होना चाहिए।"

भाग 6: चुनौती का सामना

राघव के शब्दों में अजीब यकीन था। कुछ पल के सन्नाटे के बाद नायरा ने कहा, "ठीक है, तुम्हें एक हफ्ता मिलता है। हमारा नया प्रोजेक्ट स्पीड एक्स 2 महीने से बंद पड़ा है। अगर तुम उसे स्टार्ट कर दो, तो नौकरी तुम्हारी।" राघव की आंखों में एक चमक आई। "मैं कोशिश नहीं करूंगा, मैडम। मैं कर दूंगा।"

दोपहर होते ही वह कंपनी के रिसर्च डिपार्टमेंट में था। वहां सैकड़ों करोड़ की मशीनें, कंप्यूटर और इंजीनियर थे। सब ने राघव को शक की निगाह से देखा। "यह गांव का लड़का क्या करेगा?" किसी ने ताने मारे। लेकिन राघव किसी से कुछ नहीं बोला। उसने बस कार के इंजन को ध्यान से सुना।

उसके नीचे झुककर कुछ देर शांत खड़ा रहा। "समस्या अंदर नहीं, सिस्टम में है," उसने कहा। वो सीधा कंट्रोल यूनिट के पास गया। कोडिंग स्क्रीन खोली और अपने हाथों से कुछ नया लिखने लगा। इंजीनियर हक्का-बक्का देख रहे थे। "तुम्हें कोडिंग आती है?" एक ने पूछा।

राघव मुस्कुराया। "नहीं सर। लेकिन इंजन की आवाज बताती है कि कोड कहां गलत है।"
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गरीब मिस्त्री के बेटे ने बरसात में CEO की कार ठीक की — और फिर जो हुआ, उसने दोनों की ज़िंदगी बदल दी!शाम का वक्त था। आसमान...
25/10/2025

गरीब मिस्त्री के बेटे ने बरसात में CEO की कार ठीक की — और फिर जो हुआ, उसने दोनों की ज़िंदगी बदल दी!

शाम का वक्त था। आसमान में काले बादल छाए हुए थे और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। शहर के एक कोने में टूटी-फूटी सड़कों के बीच एक छोटी सी वर्कशॉप थी, जिसका नाम था "फैज मोटर्स"। अंदर एक दुबला-पतला लड़का आर्यन अपने पिता के पुराने औजार संभाल रहा था। उसके कपड़े तेल और मिट्टी से सने हुए थे, मगर उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। वह सोच रहा था, "एक दिन मैं भी कुछ बड़ा कर दिखाऊंगा।"

भाग 2: रिया कपूर का आगमन

बरसात तेज होती जा रही थी। तभी सड़क के उस पार एक काली लग्जरी कार चरमराहट के साथ रुकती है। कार के बोनट से धुआं उठ रहा था। हॉर्न की आवाज वर्कशॉप तक पहुंच गई। आर्यन ने नजर उठाई। छाते के नीचे से एक औरत बाहर आई। ऊंची हील, महंगे कपड़े और चेहरे पर गुस्सा साफ छलक रहा था। वह थी रिया कपूर, के मोटर्स की मशहूर सीईओ। उसने ड्राइवर पर झल्लाते हुए कहा, "तुमसे तो कुछ होता ही नहीं। यह कार क्यों बंद हो गई?"

ड्राइवर हिचकिचाते हुए बोला, "मैडम, इंजन शायद ओवर हीट हो गया है। आसपास कोई बड़ा गैराज नहीं है।" आर्यन ने धीरे से अपनी शर्ट की आस्तीन ऊपर की और औजार उठाए। बिना कुछ कहे वह उस कार के पास पहुंच गया। रिया ने उसे सिर से पांव तक देखा और तंज भरे लहजे में कहा, "तुम? तुम्हें पता भी है यह कार कितनी महंगी है?"

आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैडम, महंगी हो या सस्ती? इंजन तो हर कार का दिल होता है और दिल को धड़काना हमें आता है।" उसकी बात सुनकर रिया थोड़ी देर के लिए चुप हो गई। फिर बोली, "ठीक है, देखो क्या कर सकते हो। पर अगर कुछ गड़बड़ की ना तो नुकसान तुम्हारा होगा।"

भाग 3: मेहनत का फल

बारिश अब मूसलाधार हो चुकी थी। आर्यन कार के बोनट के नीचे झुक गया। पानी उसकी आंखों में जा रहा था, मगर उसके हाथ बिना रुके चल रहे थे। उसके पिता अक्सर कहा करते थे, "बेटा, हजार से नहीं, दिल से कार ठीक करनी चाहिए। तब इंजन खुद बोल उठता है।" ये शब्द आर्यन के कानों में गूंज रहे थे।

रिया छाते के नीचे खड़ी उसे देख रही थी। एक गरीब लड़का बारिश में भीगा हुआ, बिना शिकायत किए कार को ऐसे ठीक कर रहा था जैसे कोई संगीत बजा रहा हो। 15 मिनट बाद अचानक इंजन ने एक जोरदार आवाज के साथ स्टार्ट किया। रिया की आंखें चौड़ी हो गईं। ड्राइवर चौंक गया। आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैडम, अब आपकी कार घर तक आराम से जाएगी।"

रिया ने कहा, "1 मिनट, तुमने यह कैसे किया? यह तो नई मॉडल की कार है। इसके सिस्टम तो सिर्फ हमारे इंजीनियर्स समझते हैं।" आर्यन ने जवाब दिया, "मैडम, मशीन वही होती है। चाहे किसी कंपनी की हो। फर्क बस नियत में होता है। दिल से किया काम कभी फेल नहीं होता।"

भाग 4: एक नया अवसर

रिया कुछ पल चुप रही। उसकी आंखों में अजीब सी नरमी उतर आई। बारिश अब भी गिर रही थी। उसने अपनी महंगी कोट उतारी और आर्यन के कंधे पर रख दी। "तुम भीग जाओगे," उसने धीमे से कहा। आर्यन थोड़ा हिचका और बोला, "मैडम, हमारे जैसे लोग तो बारिश में ही पलते हैं।"

रिया ने हल्की मुस्कान दी और कहा, "कल सुबह 9:00 बजे मेरे ऑफिस आना। के मोटर्स, अंधेरी वेस्ट। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" आर्यन हैरान रह गया। "मैं आपके ऑफिस?" "हां," रिया ने गाड़ी का दरवाजा बंद करते हुए कहा। "कभी-कभी असली टैलेंट बारिश में मिलता है, रिज्यूमे में नहीं।"

कार सड़क पर दौड़ गई और पीछे रह गया एक भीगा हुआ लड़का जिसकी जिंदगी अब वही नहीं रहने वाली थी। उसके होठों पर बस एक धीमी सी मुस्कान थी। "शायद किस्मत की गाड़ी आज पहली बार मेरे लिए चली है।"

भाग 5: नए सफर की शुरुआत

अगली सुबह बारिश थम चुकी थी, लेकिन सड़कों पर अब भी पानी जमा था। आसमान साफ था और हल्की धूप फैल रही थी। आर्यन ने अपनी सबसे साफ कमीज पहनी, जो उसकी मां ने सालों पहले त्यौहार पर दी थी। बाल ठीक किए, पुराने जूतों को पॉलिश किया और जेब में बस अपने पिता का पुराना स्क्रू ड्राइवर रखा। "शुभ निशानी," उसने खुद से कहा।

वह पहली बार किसी बड़ी कंपनी में जा रहा था। सामने थी के मोटर्स हेड क्वार्टर, शीशे की ऊंची इमारत जहां हर आदमी सूट-बूट में था। जैसे ही आर्यन ने गेट के अंदर कदम रखा, सिक्योरिटी गार्ड ने उसे रोक लिया। "कहां जा रहे हो भाई?" आर्यन थोड़ा झिझका, "रिया मैडम ने बुलाया है। कल रात कार खराब हुई थी, मैंने ठीक की थी।"

गार्ड ने शक भरी नजर से देखा। "रिया कपूर तुम्हें बुला रही हैं। वेट हियर।" कुछ मिनट बाद इंटरकॉम पर आवाज आई, "लेट हिम कम अप।" लिफ्ट में चढ़ते वक्त आर्यन का दिल तेजी से धड़क रहा था। हर फ्लोर पर लोग उसे घूर रहे थे, जैसे कोई गलत जगह पर आ गया हो।

भाग 6: पहली मुलाकात

वह जैसे ही टॉप फ्लोर पर पहुंचा, सामने शीशे के बड़े दरवाजे के पीछे रिया कपूर खड़ी थी। वही आत्मविश्वास, वही तेज निगाहें। रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम आ गए आर्यन? कम, सीट लो।" आर्यन थोड़ा नर्वस होकर बैठ गया, हाथ घुटनों पर रखे हुए।

रिया ने अपने कुछ सीनियर इंजीनियर्स को बुलाया और कहा, "यह वही लड़का है जिसने कल बारिश में मेरी कार ठीक की थी। मैं चाहती हूं कि तुम लोग इसे एक मौका दो।" एक इंजीनियर हंसते हुए बोला, "मैडम, यह लड़का हमारे सिस्टम को क्या समझेगा? यह तो सड़क का मिस्त्री है।"

रिया की निगाहें तुरंत तेज हो गईं। "तुम्हारे पास डिग्री है, पर कल तुम में से किसी ने मेरी कार ठीक नहीं की थी और इसने की थी। सो शो सम रिस्पेक्ट।" कमरे में सन्नाटा छा गया। रिया ने एक फाइल निकाली और आर्यन के सामने रखी। "यह हमारा नया कार प्रोटोटाइप है। कल से इसका इंजन बंद पड़ा है। सब कोशिश कर चुके हैं। अगर तुम इसे ठीक कर दो, तो मैं तुम्हें अपनी कंपनी में जॉब दूंगी और बिना किसी इंटरव्यू के।"

भाग 7: चुनौती का सामना

आर्यन ने फाइल खोली, डायग्राम्स देखे। फिर बोला, "मुझे बस एक घंटा दीजिए।" वह झुककर सिस्टम के पास गया, अपने पुराने औजार निकाले। जिन्हें देखकर बाकी लोग फिर मुस्कुराने लगे। लेकिन रिया बस चुपचाप उसे देख रही थी। उसके दिल में कहीं यह एहसास था कि यह लड़का अलग है।

20 मिनट गुजरे। फिर अचानक मशीन के स्क्रीन पर ग्रीन लाइट चमकी। पूरा लैब तालियों से गूंज उठा। रिया ने कहा, "इनक्रेडिबल। यू एक्चुअली फिक्स्ड इट।" आर्यन ने विनम्रता से कहा, "मैडम, हर मशीन इंसान जैसी होती है। उसे समझने की जरूरत होती है। जबरदस्ती नहीं।"
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