26/10/2025
इंस्पेक्टर ने–IPS मैडम को बीच रास्ते में थप्पड़ मारा और बत्तमीजी की सच्चाई जानकर पहले जमीन खिसक गई.
सुबह के समय एक स्कूटी धीरे-धीरे चल रही थी। जिस पर पूरे कानपुर की एसपी अधिकारी आरुषि वर्मा बैठी थी। वह छुट्टी पर दीपावली के लिए पटाखे खरीदने अपनी छोटी बहन सान्या के साथ लखनऊ लौट रही थी। सान्या स्कूटी चला रही थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी दीदी क्यों इतनी शांत है।
रास्ते में सान्या ने हल्के अंदाज में कहा, "दीदी, लगता है आज तो हमारी स्कूटी की किस्मत अच्छी है। वरना आलम बाग में हर वक्त पुलिस का चेकिंग चलता है। हमारा दरोगा सुबोध कुमार बड़ा टेढ़ा है। बिना वजह चालान काट देता है। ऊपर से पैसे भी मांगता है। खुदा करे आज ड्यूटी पर ना हो।"
आरुषि ने बस मुस्कुराकर कुछ नहीं कहा, लेकिन दिल के अंदर सवाल उठने लगे। क्या सच में आलम बाग का दरोगा इतना करप्ट है? क्या गरीब व्यापारियों को यूं परेशान किया जाता है?
भाग 2: पटाखों की दुकान
थोड़ी ही दूर चली स्कूटी तो सड़क के किनारे एक बूढ़ा आदमी छोटी सी दुकान पर पटाखे बेचता दिखा। आरुषि ने सान्या से कहा, "रोको, यहीं से पटाखे लेंगे।" स्कूटी रुकते ही वे दोनों नीचे उतरी और बूढ़े आदमी हरिलाल से बात करने लगीं। हरीलाल बहुत खुश था। "आइए बिटिया, इस बार अच्छे वाले पटाखे लाया हूं एकदम कम दाम में।"
तभी सामने पुलिस की जीप दिखी। दरोगा सुबोध कुमार अपने दो सिपाहियों के साथ दुकान के सामने खड़ा हुआ। हाथ में लाठी लिए उसने चिल्लाकर कहा, "ओए बूढ़े, क्या समझा है तू? बिना लाइसेंस के सड़क पर दुकान लगा रखी है क्या? आग लगा दे तो कौन जिम्मेदार होगा? चल, ₹5000 का जुर्माना दे।"
हरीलाल घबरा गया। "साहब, मैंने कोई गलती नहीं की। मैंने तो छोटे-छोटे ही रखे हैं। किसी को खतरा नहीं होगा। मैं गरीब आदमी हूं। आज तक कोई कमाई नहीं हुई। कहां से दूं इतने पैसे?"
भाग 3: दरोगा का अत्याचार
सुबोध कुमार भड़क उठा। "ज्यादा जुबान मत चला। जब पैसे नहीं तो दुकान क्यों लगाता है? दिखा लाइसेंस।" हरीलाल ने कांपते हाथों से कागज निकाल कर दिखाया। सब कुछ ठीक था। लेकिन दरोगा बोला, "कागज पूरे हैं पर जुर्माना तो कटेगा। चल, ₹5000 दे दे वरना तेरी दुकान और तेरा सारा माल जला दूंगा।"
पास में खड़ी आरुषि वर्मा और सान्या सब कुछ चुपचाप देख रही थीं। हर लफ्ज उनके सीने पर चोट कर रहा था। उन्होंने देखा कि कैसे एक गरीब इंसान से बेवजह पैसे वसूले जा रहे हैं। और अब तो दरोगा ने उसकी इज्जत भी छीन ली। एक जोरदार थप्पड़ हरीलाल के गाल पर पड़ा। और फिर दरोगा गुस्से में चिल्लाकर कहा, "जब पैसे नहीं तो सड़क पर क्यों निकलता है? तेरे जैसे लोगों की वजह से ही कानून व्यवस्था गड़बड़ होती है। चल, अब तुझे थाने ले चलकर सबक सिखाएंगे।"
भाग 4: आरुषि का साहस
बस अब आरुषि से रहा नहीं गया। वह आगे बढ़कर दरोगा के सामने खड़ी हो गई। उनकी आंखों में गुस्सा था, लेकिन आवाज में ठंडक। "दरोगा सुबोध कुमार, आप हद पार कर रहे हैं। बिना गलती के किसी पर जुर्माना लगाना गैरकानूनी है और किसी बुजुर्ग पर हाथ उठाना तो इंसानियत की भी तौहीन है। आपको कोई हक नहीं कि किसी गरीब पर हाथ उठाए।"
सुबोध कुमार ने तिरछी नजर से देखा। "ओ, अब तू मुझे कानून सिखाएगी। लगता है दोनों बहनों को ही जेल की हवा खिलानी पड़ेगी।" आरुषि ने सिर्फ इतना कहा, "तुम्हारा वक्त खत्म हुआ दरोगा। अब तुम्हें पता चलेगा कि कानून क्या होता है।"
भाग 5: थाने में घमंड
थाने में कदम रखते ही दरोगा सुबोध कुमार की आंखों में घमंड साफ छलक रहा था। वह ऊंची आवाज में बोला, "इन दोनों को यहीं बिठा दो, समझे। अब देखते हैं इनकी औकात क्या है।" दोनों बहनों को एक कोने में बिठा दिया गया। थोड़ी देर बाद सुबोध कुमार कुर्सी पर टिकते हुए बोला, "ओए रामू, कहां मर गया? चाय ला जल्दी। आज बड़ा मजा आएगा।"
रामू दौड़ता हुआ आया और चाय रख गया। सुबोध कुमार ने चाय का पहला घूंट ही लिया था कि उसका मोबाइल बज उठा। "हां बोलो।" उसने बेफिक्री से कहा, "सब काम हो जाएगा। बस पैसे तैयार रखना। तुमको क्या टेंशन लेना है? मैं सब संभाल लूंगा।" उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान थी।
भाग 6: आरुषि की योजना
पास में बैठी आरुषि वर्मा सब कुछ शांति से सुन रही थी। उनकी नजरें ठंडी थीं, लेकिन दिमाग गर्म और सोच रही थी। यह दरोगा बाहर ही नहीं, अंदर भी गलत है। पैसे लेकर लोगों के केस पलटता है और बेगुनाहों को सताता है। ऐसे लोगों को सबक सिखाना ही असली ड्यूटी है। दूसरी तरफ सान्या का हाल बहुत खराब था। चेहरे पर डर, आंखों में आंसू और दिल में एक ही सवाल। अब क्या होगा?
मगर जब उसने बगल में बैठी आरुषि की आंखों में देखा तो थोड़ी हिम्मत आई। उसने धीरे से पूछा, "दीदी, क्या होगा अब? यह हमें छोड़ेंगे क्या?" आरुषि ने धीमी मगर भरोसे भरी आवाज में कहा, "डरिए मत। यह दरोगा कुछ नहीं कर पाएगा। मैं आपके साथ हूं। कानून उसकी जागीर नहीं, जनता की ताकत है। यह जो कर रहा है, वही इसके खिलाफ सबूत बनेगा।"
सान्या अभी भी डरी हुई थी। बोली, "दीदी, आप कौन हैं? और जब हरीलाल चाचा को मारा जा रहा था, तब आपने कुछ कहा क्यों नहीं?" आरुषि मुस्कुराई और बहुत शांत अंदाज में बोली, "मैं कोई आम लड़की नहीं हूं। मेरा नाम आरुषि वर्मा है। कानपुर की एसपी अधिकारी। मैं इस दरोगा के गंदे कामों की जड़ तक पहुंचना चाहती हूं। इसलिए मैंने खुद को आम लड़की बनाकर रखा। बस देख रही हूं कि यह गिर कितना सकता है।"
भाग 7: सान्या की हिम्मत
यह सुनकर सान्या की सांसों में थोड़ी राहत आई। "दीदी, आप सच्ची कह रही हैं ना? कहीं यह कोई चाल तो नहीं?" आरुषि बोली, "अगर मैं चाहूं तो अभी इसी वक्त इसे निलंबित कर दूं। लेकिन मैं चाहती हूं कि इसके चेहरे का नकाब खुद उतरे। सबके सामने।"
कुछ देर बाद दरोगा सुबोध कुमार उठकर एक कमरे में गया। वहां पहुंचते ही हवलदार को आदेश दिया, "जा, उस छोटी लड़की को बुला के लाओ।" हवलदार बाहर आया। सख्त लहजे में बोला, "चल, अंदर साहब बुला रहे हैं।" सान्या का चेहरा पीला पड़ गया। उसने डरते हुए आरुषि की तरफ देखा। आरुषि ने बस इतना कहा, "हिम्मत रखो, जो होना है देखा जाएगा। अब डरना नहीं।"
भाग 8: सान्या का सामना
सान्या ने हिम्मत जुटाई और अंदर चली गई। कमरे में धुआं भरा था। सुबोध कुमार पैर पर पैर रखे सिगरेट पी रहा था। सान्या को देखते ही वह व्यंग से मुस्कुराया और बोला, "तो आ गई तू। देख, सीधी बात करता हूं। अगर अपनी दीदी को बचाना है तो ₹2000 निकाल वरना तेरी दीदी को हवालात में डाल दूंगा और तू अकेली घर जाएगी।"
सान्या के होंठ कांपने लगे। आंखों से आंसू टपक पड़े। वह रोते हुए बोली, "सर, रहम कर दीजिए। मेरे पास पैसे नहीं हैं। मेरे पापा गरीब आदमी हैं। दिन भर की कमाई मुश्किल से घर पहुंचती है। हम पटाखे खरीदने आए थे। मैं इतना पैसा कहां से लाऊं?"
सुबोध कुमार ने सिगरेट का कश लिया और बोला, "मुझे तेरे पापा से मतलब नहीं। मेरे पैसे दे वरना तेरी दुनिया बदल दूंगा। यहां मेरा ही कानून चलता है। समझा?"
भाग 9: आरुषि का प्रतिशोध
बाहर बैठी आरुषि वर्मा ने उसकी हर आवाज सुनी। उनकी मुट्ठियां कस गईं। अब बस वक्त आने वाला था जब यह दरोगा सुबोध कुमार अपनी औकात जान लेगा। थाने के अंदर माहौल एकदम तनाव भरा था। दरोगा सुबोध कुमार की आंखों में गुस्सा और आवाज में जहर उतर आया था।
वह दांत पीसते हुए बोला, "सुन ले, अब ज्यादा बातें मत बना। या तो पैसे निकाल या फिर तेरा और तेरी दीदी का जीना हराम कर दूंगा। समझा तू? अब बोल, पैसे देगी या नहीं?"
बेचारी सान्या कांपती हुई जेब टटोलने लगी। थरथराते हाथों से ₹800 निकाले और कहा, "सर, बस इतना ही है मेरे पास। प्लीज यह रख लीजिए और हमें जाने दीजिए। मैं और कुछ नहीं दे सकती।"
भाग 10: सुबोध का अपमान
सुबोध कुमार ने नोट हाथ में लिए मुस्कुराया और तिरस्कार से बोला, "चल ठीक है, जा अब बाहर जाकर बैठ। ज्यादा ड्रामा मत करना।" फिर उसने आवाज लगाई, "ओए हवलदार, उस लंबी वाली लड़की को अंदर बुला।"
हवलदार बाहर आया और बोला, "मैडम साहब बुला रहे हैं अंदर।" आरुषि वर्मा ने बिना झिझक के दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए। कमरे में घुसते ही सुबोध कुमार कुर्सी पर ढीला होकर बैठा था, होठों पर एक व्यंग भरी मुस्कान थी।
भाग 11: आरुषि का आत्मविश्वास
वह बोला, "नाम क्या है तेरा?" आरुषि ने धीमी मगर दृढ़ आवाज में कहा, "नाम से क्या फर्क पड़ता है? नाम कुछ भी हो, आप यह बताइए। आपको कहना क्या है?" उसका लहजा इतना शांत और आत्मविश्वासी था कि दरोगा कुछ पल के लिए हैरान रह गया।
उसने सोचा, "यह लड़की है कौन? इतनी हिम्मत कहां से लाई है?" फिर उसने टेबल पर हाथ मारा और बोला, "ज्यादा अकड़ मत दिखाओ। थाने में अकड़ टूटने में वक्त नहीं लगता। अच्छा भला समझ कर बोल रहा हूं। वरना दो डंडे लगेंगे तो खुद ही बोलना भूल जाओगी। चलो, यह सब छोड़ो। जल्दी से ₹2000 निकालो वरना जेल में डाल दूंगा।"
भाग 12: आरुषि का प्रतिरोध
लेकिन आरुषि वर्मा की नजरें अडिग थीं। उन्होंने कहा, "मैं आपको एक भी नहीं दूंगी क्योंकि मैंने कोई गुनाह नहीं किया। आप किस हक से मुझसे पैसे मांग रहे हैं? क्या यही है आपका कानून? क्या इसी के लिए आपने वर्दी पहनी है ताकि बेगुनाहों से पैसा वसूला जाए?"
उनकी आवाज में डर नहीं, बल्कि आग थी। ऐसी आग जो अन्याय को जलाने के लिए काफी थी। यह सुनकर सुबोध कुमार का चेहरा लाल हो गया। वह गुस्से में चिल्लाया, "ओए हवलदार, इस औरत को लॉकअप में डाल दो। अभी इसका जोश निकालता हूं।"
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