18/10/2025
सर सैयद अहमद खान: ब्रिटिश वफादार, नस्लवादी, महिला विरोधी और हिंदू विरोधी:
सर सैयद अहमद खान (1817-1898) को भारतीय मुसलमान शिक्षा सुधारक के रूप में प्रादर्शित करते हैं , जिसने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की नींव रखी, यद्यपि इस विश्वविद्यालय से कोई महान वैज्ञानिक, दार्शनिक या आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं निकला, निकले हैं तो बस देश विरोधी और हिन्दू विरोधी पढ़े लिखे राजनीतिक रुप से जागरूक मुसलमान। हालांकि, उसकी विरासत विवादास्पद रही है, जहां कुछ उसे ब्रिटिशों का चाटुकार, नस्लवादी और हिंदुओं से घृणा करने वाला मानते हैं। यह दावा उसके कुछ भाषणों और लेखों पर आधारित है। यहां कुछ तथ्य पेश हैं, जो उनके आलोचकों के दृष्टिकोण को उजागर करते हैं।
पहला, ब्रिटिशों के प्रति वफादारी: सैयद को अक्सर ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थक कहा जाता है। 1857 के विद्रोह (जिसे वो‘हरामजदगी’ कहता था) के बाद, उसने मुसलमानों को सलाह दी कि वे राजनीति से दूर रहें और ब्रिटिशों से दोस्ती रखें।
उसने कहा कि वो चाहता है कि रानी विक्टोरिया कयामत तक भारत की शासक बनी रहे, बस मुझे वायसराय बना दे।
उसके 1888 के मेरठ भाषण में कहा गया: “हमें इस राजनीतिक हंगामे से अलग रहना चाहिए… और अपनी शिक्षा सुधारनी चाहिए।”
अंग्रेज़ों की इस हद तक चाटने के कारण उसको अंग्रेज़ों ने नाइटहुड बनाया और “सर” की उपाधि दी हालांकि रानी विक्टोरिया ने एक कलूटे को अपना हाथ पकड़ कर चूमने की अनुमति नहीं दी इसलिए उसे मेडल एक अंग्रेज़ कलेक्टर शेक्सपियर द्वारा दिया गया।
उसने 1857 के विद्रोह को मुसलमानों की गलती ठहराया और ब्रिटिशों को ‘ईसाइयों’ के रूप में कुरान के अनुसार दोस्त माना, ताकि मुसलमानों को ब्रिटिश शासन में लाभ मिले।  उसने कहा: “अंग्रेजों का शासन हमेशा रहना चाहिए, क्योंकि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते।” यह ब्रिटिश ‘फूट डालो और राज करो’ नीति का समर्थन लगता है। 
दूसरा, नस्लवाद और जातिवाद: 1887 के लखनऊ भाषण में उसने कहा: “पठान, सैयद, हाशमी और कोरैशी, जिनके खून में अब्राहम का खून है, वे ब्रिटिश सेना में कर्नल और मेजर बनेंगे।”
उसने बंगालियों को नीचा दिखाते हुए कहा: “एक बंगाली, जो मेज की चाकू देखकर कुर्सी के नीचे छिप जाए, वह राजपूतों या उच्च मुसलमानों पर शासन करेगा?”
उसने कहा कि अगर कोई काला हब्शी भारत का मालिक होता तब भारत के लोगों के संघर्ष की वजह सही होती लेकिन अंग्रेज़ तो गोरे और सुंदर हैं उनकी गुलामी करने में कैसी हिचक?
उसने निम्न जातियों (अजलाफ) को शिक्षा से वंचित रखने की सलाह दी। 
महिला विरोधी: उसके अनुसार औरतों को बस पढ़ना सिखाओ ताकि वो कुरान पढ़ सकें लेकिन लिखना नहीं सिखाओ नहीं तो वो प्रेमपत्र लिखेंगी(लगता है उसकी बीवी या बेटी किसी हिंदू के साथ भाग गई होगी लव लेटर लिख कर).
हिंदुओं से घृणा: सैयद ने कहा: “हिंदू और मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं… एक को दूसरे पर विजय प्राप्त करनी होगी।” 
1888 में वे बोले: “हिंदू चाहें तो मुसलमानों को एक घंटे में बर्बाद कर सकते हैं, क्योंकि व्यापार उनके हाथ में है।” यह हिंदुओं को खतरा बताकर मुसलमानों में भय पैदा करता है, जो दो-राष्ट्र सिद्धांत की नींव रखता है।
हिंदुओं से विनती: गधों और सुअरों का झूठा सम्मान बंद करें!