
18/07/2025
💔
अनिवार्यता की अनुशासन रेखाओं पर
चलते-चलते निढाल हो गई हूँ ......
जहाँ त्याग धर्म है .....
और स्वप्न विलासिता .....
जहाँ मौन “अहं” है .....
और प्रश्न स्वार्थ .....
जहाँ थकान “कर्तव्यविमुखता” है ....
और अंतर्मन की प्रतिध्वनि “अविनय” ....
मैं अपनी दीर्घकालिक स्तब्धता के साथ
अब पिघल रही हूँ !!!!
अश्रु की नदी मौन के सागर में मिल रही है !!!!
~ भावना आरोही