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🇮🇳  स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं  🇮🇳
15/08/2025

🇮🇳 स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं 🇮🇳

खैरातीलाल का कुर्सीतंत्र’ का लिखा जाना निश्चित ही स्वागत योग्य है। नाटक का कथानक पूरी तरह से राजनीति पर आधारित है-एक मुख...
08/08/2025

खैरातीलाल का कुर्सीतंत्र’ का लिखा जाना निश्चित ही स्वागत योग्य है। नाटक का कथानक पूरी तरह से राजनीति पर आधारित है-एक मुख्यमंत्री है जो येन-केन प्रकारेण अपनी कुर्सी को बचाना चाहता है और इसके लिए जितनी भी तिकड़म हो सकती है, वह उसे पूरा करने में एक क्षण काभी सोच-विचार नहीं करता। कुल जमा 50 पृष्ठ और 9 दृश्यों में उसके कुर्सीतंत्र का खेल चलता है और इसमें उसक भागीदार हैं उसकी कैबिनेट के तीन मंत्री, विपक्ष का नेता, टिकटार्थी, रिपोर्टर, चीफ सेक्रेटरी, मुख्यमंत्री का पी.ए. और उनकी पत्नी चुनरी देवी।

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लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार मीनाक्षी स्वामी का बहुचर्चित उपन्यास “नतोऽहं’ भारतभूमि के वैभवशाली अतीत और वर्तमान गौरव के सम्मुख व...
30/07/2025

लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार मीनाक्षी स्वामी का बहुचर्चित उपन्यास “नतोऽहं’ भारतभूमि के वैभवशाली अतीत और वर्तमान गौरव के सम्मुख विश्व के नतमस्तक होने का साक्षी है। यह भारतीय संस्कृति की बाह्य जगत्‌ से आंतरिक जगत्‌ की विस्मयकारी यात्रा करवाने की सामर्थ्य के अनावरण का अद्भुत परिणाम हे। भारतीय संस्कृति के विराट्‌ वैभव का दर्शन होता है-सांस्कृतिक नगरी उज्जयिनी में बारह वर्षों में होने वाले सिंहस्थ के विश्वस्तरीय आयोजन में। उज्जयिनी का केंद्र शिप्रा है। इसके किनारे होने वाले सिंहस्थ में देश भर के आध्यात्मिक रहस्य और सिद्धियां एकजुट हो जाती हैं। इन्हें देखने, जानने को विश्व भर के जिज्ञासु अपना दृष्टिकोण लिए यहां एकत्र हो जाते हैं। तब इस पवित्र धरती पर मन-प्राण में उपजने वाले सूक्ष्मतमम भावों को सशक्त अभिव्यक्ति है यह उपन्यास। इसमें मंत्रमुग्ध करने वाली भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म के सभी पहलुओं पर वैज्ञानिक चिंतन है, भारतीय अध्यात्म के विभिन्‍न पहलुओं को खरेपन के साथ उकेरा गया है। उज्जयिनी अनवरत सांस्कृतिक प्रवाह की साक्षी हे। यह केवल धर्म नहीं, समूची संस्कृति है, जिसमें कलाएं हैं, साहित्य हे, ज्ञान है, विज्ञान है, आस्था है, परंपरा है और भी बहुत कुछ है। यात्रा वृत्तांत शैली के इस उपन्यास में उज्जयिनी के बहाने भारतीय दर्शन, परंपराओं और संस्कृति की खोज हे जो सुदूर विदेशियों को भी आकर्षित करती है। उज्जयिनी के लोक जीवन की झांकी के साथ भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं का सतत आख्यान है जो पुरा मनीषियों की मेधा का महकता प्रतीक हे। उपन्यास के विलक्षण कथा संसार को कुशल लेखिका ने अपनी लेखनी के संस्पर्श से अनन्य बना दिया है। नायक एल्विस के साथ पाठक शिप्रा के प्रवाह में प्रवाहित होता है, डुबकी लगाता है। ‘ भूभल’ जैसे सशक्त उपन्यास से कीर्ति पाने के बाद बहुचर्चित रचनाकार मीनाक्षी स्वामी का नवीनतम उपन्यास “नतोऽहं’ तथाकथित आधुनिकता से आक्रांत भारतीय जनमानस को अपनी जड़ों की ओर आकृष्ट करता है। भारतीय संस्कृति व अध्यात्म की खोज में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए अप्रतिम उपहार है।

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"धर्म के आर-पार औरत"मानव जीवन के लिए धार्मिक आस्था व संस्कार दोनों आवश्यक हैं। स्त्रियाँ धर्म के पाखंडी व शोषक स्वरूप का...
29/07/2025

"धर्म के आर-पार औरत"

मानव जीवन के लिए धार्मिक आस्था व संस्कार दोनों आवश्यक हैं। स्त्रियाँ धर्म के पाखंडी व शोषक स्वरूप का विभिन्न माध्यमों से ज़ोर-शोर से विरोध कर रही हैं।

इस पुस्तक में पढ़िए-

अधिकतर धर्म कैसे पोषित होता है?
प्रख्यात लेखिका तसलीमा नसरीन ने क्यों कहा है, 'कुरान शुड बी रिवाइज्ड ?'
समाज में वर्गभेद का आधार पौराणिक पृष्ठभूमिभी है। क्या उसका आधुनिकीकरण आवश्यक है?
गीता के दसवें अध्याय में स्त्री में अपनी सात विभूतियों की चर्चा करने वाले कृष्ण स्वयं क्या थे?
सती के चौरों व मेलों पर क्यों प्रतिबंध लगना चाहिए?
लड़कियों को कैसी पुस्तकें पढ़नी चाहिए?
दक्षिण भारत में स्त्री के गले में पहना एक पोटु (पेंडेंट) वाला मंगलसूत्र उसके शरीर तक जाने का रास्ता था।
जैन धर्म में भी माना गया है कि पूर्वजन्म में जो कुछ बुरे कार्य करता है, वही स्त्री के रूप में पैदा होता है।
परिवार को त्यागकर मोक्ष की चाह में भटकना अधिक कठिन है या गृहस्थी का संचालन करना ?
दुनिया को अपनी दृष्टि से देखती स्त्री क्यों स्वीकार करे पौराणिक स्त्री-चरित्रों जैसी नियति ?

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बड़की बहू संकलन की कहानियाँ लेखक के बहुवर्णी जीवनानुभव का आईना हैं। इनके बहुविध चरित्रों की गाँव-शहर, देश-विदेश के बीच आव...
27/07/2025

बड़की बहू संकलन की कहानियाँ लेखक के बहुवर्णी जीवनानुभव का आईना हैं। इनके बहुविध चरित्रों की गाँव-शहर, देश-विदेश के बीच आवाजाही जीवन के जिस अंतरंग का उद्घाटन करती है वह लेखक की खाँटी स्वानुभूति से अनुस्यूत है। कहानियों का केंद्रीय सरोकार मनुष्य के जीवन-संघर्ष का वह आयाम है जो व्यवस्था और जीवन की बेहतरी के नए क्षितिज की तलाश में निरंतर क्रियाशील है। प्रस्तुत पुस्तक की कहानियाँ किसी प्रशस्त, पूर्वनिर्धारित मार्ग पर चलने के बजाय उन पगडंडियों के धुँधलके में उतरती हैं जहाँ सरलीकरण की सुविधा नहीं है। जीर्ण-जटिल भारतीय समाज की दुरूह सच्चाई को उघाड़ने के लिए जिस गहन अंतर्दृष्टि और सूक्ष्म संवेदना की दरकार है, उसकी एक बानगी प्रस्तुत करती हैं ये कहानियाँ। निरे वाग्जाल और वैचारिकता की वायवीय उड़ान से लेखक के सजग परहेज और जीवन के अनगढ़ यथार्थ से सृजनात्मक जुड़ाव ने कहानियों में कथारस और विश्वसनीयता को अक्षुण्ण रखा है जो ऐसे तत्त्व हैं जो इधर दुर्लभ होते जा रहे हैं।

"पर्व" भारतीय ​वाङ्मय में पंचम वेद के रूप में अधिष्टित महाभारत पर आधारित भैरप्पा की महान् औपन्यासिक कृति । इस उपन्यास मे...
28/04/2025

"पर्व" भारतीय ​वाङ्मय में पंचम वेद के रूप में अधिष्टित महाभारत पर आधारित भैरप्पा की महान् औपन्यासिक कृति । इस उपन्यास में लेखक ने महाभारत के पात्रों, स्थितियों और घटनाओं का जो वस्तुनिष्ठ आलेखन प्रस्तुत किया है, वह अदभुत और अनुपम है । महाभारतकालीन भारत की सामाजिक संरचना क्या तत्कालीन इतिहास और परंपराओं के लंबे अरसे तक अनुसंघान, व्यापक भ्रमण और अध्ययन पर आधारित यह उपन्यास भारतीय साहित्य की महान् उपलब्धि है । अतीतोन्मुखी भारतीय जनमानस के साथ जुडे महाभारत के पात्रों के अलंकरण और चमत्कारों एवं अतिशयोक्तियों की कैचुली उतारकर उन्हें मानवीय धरातल पर साधारण मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करने के कारण यह उपन्यास वस्तुत: एक क्रांतिकारी जाते है । संक्षेप में इतना कहना ही शायद पर्याप्त हो कि ‘पर्व’ आधुनिक संदर्मों से जुडा महाभास्त का पुनराख्यान है । ‘पर्व’ का फलक भले ही महाभारत पर आधारित हो, लेकिन यह एक साहित्यिक कृति है-एक उपन्यास । पाठक इसे एक उपन्यास के रूप में ही स्वीकार करेंगे-ऐसा लेखक का अनुरोध है ।

"23 लेखिकाएँ और राजेन्द्र यादव"अपने ढंग की अद्भुत पुस्तक है यह । शायद किसी भी भारतीय भाषा में अकेली। इसे गीताश्री के पत्...
22/04/2025

"23 लेखिकाएँ और राजेन्द्र यादव"
अपने ढंग की अद्भुत पुस्तक है यह । शायद किसी भी भारतीय भाषा में अकेली। इसे गीताश्री के पत्रकार - जीवन की एक उपलब्धि भी कह सकते हैं। यहाँ गीता ने समय-समय पर लिखे गए समकालीन महिला-रचनाकारों के इम्प्रेशंस (प्रभाव-चित्रों) का संयोजन किया है। कहीं ये साक्षात्कार हैं तो कहीं संस्मरण, कहीं राजेन्द्र जी के रचनाकार को समझने की कोशिशें हैं तो कहीं 'हंस' के संपादकीयों को लेकर उन पर बाकायदा मुकदमे । यहाँ अगर मन्नू भंडारी, मृदुला गर्ग, चित्रा मुद्गल, सुधा अरोड़ा, ममता कालिया, प्रभा खेतान, मैत्रेयी पुष्पा, अनामिका तथा कविता हैं तो निर्मला जैन, जयंती रंगनाथन, पुष्पा सक्सेना, वीना उनियाल और रचना यादव भी अपने वक्तव्यों के साथ उपस्थित हैं।

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"साक्षात्कार, संवाद और वार्ताएं"
यह संकलन राजेन्द्र यादव के साक्षात्कारों का संकलन नहीं, उनके संवादों का संकलन है। अब यह बात अलग है कि इस संकलन में आपको राजेन्द्र यादव का 'साक्षात्+कार हो जाए और संवाद से अधिक इइसमें आपको विवाद मिलें । इस संकलन में अधिकांश बातचीत या संवाद राजेन्द्र यादव के मित्रों के साथ हैं। मित्रों के साथ होते हुए भी ये संवाद कम, विवाद ज्यादा लगते हैं। दरअसल राजेन्द्र यादव विवादप्रिय ही नहीं, विवादशील व्यक्ति थे। विवादहीनता की स्थिति इनके लिए अत्यंत बोरियत का
मामला हो जाया करती थी, अतः बहस करना इनका प्रिय शगल था। मित्रों का तो यह मानना है कि वे विवाद करते ही नहीं, रचते भी थे ।

‘किताब के बहाने’ प्रसिद्ध कथाकार नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए लेखों का संग्रह है, जो वह इसी नाम से अपने कॉलम में लिखती रह...
16/04/2025

‘किताब के बहाने’ प्रसिद्ध कथाकार नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए लेखों का संग्रह है, जो वह इसी नाम से अपने कॉलम में लिखती रही हैं। बतौर नासिरा शर्मा इस कॉलम को लिखने का मकसद अपने आसपास लिखी जा रही रचनाओं पर टिप्पणी करना था। इन लेखों में नासिरा शर्मा ने देश और विदेश के लेखकों द्वारा सभ्यता, समाज, नारी और आत्मकथा पर लिखी गई रचनाओं को चुना और उन्हें एक नई दृष्टि प्रदान की। ये लेख कई प्रमुख कृतियों से हमारा परिचय कराते हैं।

करीब-करीब इन सभी कहानियों में दर्द की एक खिड़की है, जिसके पार जीवन है, अपनी गति से पल-पल सरकता हुआ। उस खिड़की से उदासीन ...
09/04/2025

करीब-करीब इन सभी कहानियों में दर्द की एक खिड़की है, जिसके पार जीवन है, अपनी गति से पल-पल सरकता हुआ। उस खिड़की से उदासीन जिसके रास्ते जीवन दिखाई देता है। जीवन जो है, वह बदलता नहीं लेकिन दर्द से उठतीं कुलबुलाहटें हैं उसे बदलने की। और तेज आवाज़ है स्त्रियों की, जिनमें कुछ नया कर गुज़रने, कोई रास्ता ढूंढ़ने और दिखाने की बेचैनी है-चाहे वह 'तुम हो' कि सुषमा हो या 'छाया', 'मोहलत' और 'प्रेमसंतान' की 'वह' । गोविन्द मिश्र जो अकसर अपने पात्रों को 'यह' या 'वह' कहकर अनाम छोड़ देते हैं तो शायद इस आशय से कि भले ही दर्द की वह दास्तान खास हो, पर वह है आम ही और यह तार फिर उसी स्वाभाविकता से जुड़ता है, जहां कलाहीनता ही सर्वोच्च कला है।

26/03/2025
200 विख्यात रचनाकारों की लगभग 900 लघुकथाएँ।बीसवीं सदी की लघुकथाएँ (चार खंड में)
06/03/2025

200 विख्यात रचनाकारों की लगभग 900 लघुकथाएँ।
बीसवीं सदी की लघुकथाएँ (चार खंड में)

विख्यात रचनाकार ​पद्म श्री रामदरश मिश्र की आत्मकथा
28/01/2025

विख्यात रचनाकार ​पद्म श्री रामदरश मिश्र की आत्मकथा

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