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"पर्व" भारतीय ​वाङ्मय में पंचम वेद के रूप में अधिष्टित महाभारत पर आधारित भैरप्पा की महान् औपन्यासिक कृति । इस उपन्यास मे...
28/04/2025

"पर्व" भारतीय ​वाङ्मय में पंचम वेद के रूप में अधिष्टित महाभारत पर आधारित भैरप्पा की महान् औपन्यासिक कृति । इस उपन्यास में लेखक ने महाभारत के पात्रों, स्थितियों और घटनाओं का जो वस्तुनिष्ठ आलेखन प्रस्तुत किया है, वह अदभुत और अनुपम है । महाभारतकालीन भारत की सामाजिक संरचना क्या तत्कालीन इतिहास और परंपराओं के लंबे अरसे तक अनुसंघान, व्यापक भ्रमण और अध्ययन पर आधारित यह उपन्यास भारतीय साहित्य की महान् उपलब्धि है । अतीतोन्मुखी भारतीय जनमानस के साथ जुडे महाभारत के पात्रों के अलंकरण और चमत्कारों एवं अतिशयोक्तियों की कैचुली उतारकर उन्हें मानवीय धरातल पर साधारण मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करने के कारण यह उपन्यास वस्तुत: एक क्रांतिकारी जाते है । संक्षेप में इतना कहना ही शायद पर्याप्त हो कि ‘पर्व’ आधुनिक संदर्मों से जुडा महाभास्त का पुनराख्यान है । ‘पर्व’ का फलक भले ही महाभारत पर आधारित हो, लेकिन यह एक साहित्यिक कृति है-एक उपन्यास । पाठक इसे एक उपन्यास के रूप में ही स्वीकार करेंगे-ऐसा लेखक का अनुरोध है ।

"23 लेखिकाएँ और राजेन्द्र यादव"अपने ढंग की अद्भुत पुस्तक है यह । शायद किसी भी भारतीय भाषा में अकेली। इसे गीताश्री के पत्...
22/04/2025

"23 लेखिकाएँ और राजेन्द्र यादव"
अपने ढंग की अद्भुत पुस्तक है यह । शायद किसी भी भारतीय भाषा में अकेली। इसे गीताश्री के पत्रकार - जीवन की एक उपलब्धि भी कह सकते हैं। यहाँ गीता ने समय-समय पर लिखे गए समकालीन महिला-रचनाकारों के इम्प्रेशंस (प्रभाव-चित्रों) का संयोजन किया है। कहीं ये साक्षात्कार हैं तो कहीं संस्मरण, कहीं राजेन्द्र जी के रचनाकार को समझने की कोशिशें हैं तो कहीं 'हंस' के संपादकीयों को लेकर उन पर बाकायदा मुकदमे । यहाँ अगर मन्नू भंडारी, मृदुला गर्ग, चित्रा मुद्गल, सुधा अरोड़ा, ममता कालिया, प्रभा खेतान, मैत्रेयी पुष्पा, अनामिका तथा कविता हैं तो निर्मला जैन, जयंती रंगनाथन, पुष्पा सक्सेना, वीना उनियाल और रचना यादव भी अपने वक्तव्यों के साथ उपस्थित हैं।

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"साक्षात्कार, संवाद और वार्ताएं"
यह संकलन राजेन्द्र यादव के साक्षात्कारों का संकलन नहीं, उनके संवादों का संकलन है। अब यह बात अलग है कि इस संकलन में आपको राजेन्द्र यादव का 'साक्षात्+कार हो जाए और संवाद से अधिक इइसमें आपको विवाद मिलें । इस संकलन में अधिकांश बातचीत या संवाद राजेन्द्र यादव के मित्रों के साथ हैं। मित्रों के साथ होते हुए भी ये संवाद कम, विवाद ज्यादा लगते हैं। दरअसल राजेन्द्र यादव विवादप्रिय ही नहीं, विवादशील व्यक्ति थे। विवादहीनता की स्थिति इनके लिए अत्यंत बोरियत का
मामला हो जाया करती थी, अतः बहस करना इनका प्रिय शगल था। मित्रों का तो यह मानना है कि वे विवाद करते ही नहीं, रचते भी थे ।

‘किताब के बहाने’ प्रसिद्ध कथाकार नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए लेखों का संग्रह है, जो वह इसी नाम से अपने कॉलम में लिखती रह...
16/04/2025

‘किताब के बहाने’ प्रसिद्ध कथाकार नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए लेखों का संग्रह है, जो वह इसी नाम से अपने कॉलम में लिखती रही हैं। बतौर नासिरा शर्मा इस कॉलम को लिखने का मकसद अपने आसपास लिखी जा रही रचनाओं पर टिप्पणी करना था। इन लेखों में नासिरा शर्मा ने देश और विदेश के लेखकों द्वारा सभ्यता, समाज, नारी और आत्मकथा पर लिखी गई रचनाओं को चुना और उन्हें एक नई दृष्टि प्रदान की। ये लेख कई प्रमुख कृतियों से हमारा परिचय कराते हैं।

करीब-करीब इन सभी कहानियों में दर्द की एक खिड़की है, जिसके पार जीवन है, अपनी गति से पल-पल सरकता हुआ। उस खिड़की से उदासीन ...
09/04/2025

करीब-करीब इन सभी कहानियों में दर्द की एक खिड़की है, जिसके पार जीवन है, अपनी गति से पल-पल सरकता हुआ। उस खिड़की से उदासीन जिसके रास्ते जीवन दिखाई देता है। जीवन जो है, वह बदलता नहीं लेकिन दर्द से उठतीं कुलबुलाहटें हैं उसे बदलने की। और तेज आवाज़ है स्त्रियों की, जिनमें कुछ नया कर गुज़रने, कोई रास्ता ढूंढ़ने और दिखाने की बेचैनी है-चाहे वह 'तुम हो' कि सुषमा हो या 'छाया', 'मोहलत' और 'प्रेमसंतान' की 'वह' । गोविन्द मिश्र जो अकसर अपने पात्रों को 'यह' या 'वह' कहकर अनाम छोड़ देते हैं तो शायद इस आशय से कि भले ही दर्द की वह दास्तान खास हो, पर वह है आम ही और यह तार फिर उसी स्वाभाविकता से जुड़ता है, जहां कलाहीनता ही सर्वोच्च कला है।

26/03/2025
200 विख्यात रचनाकारों की लगभग 900 लघुकथाएँ।बीसवीं सदी की लघुकथाएँ (चार खंड में)
06/03/2025

200 विख्यात रचनाकारों की लगभग 900 लघुकथाएँ।
बीसवीं सदी की लघुकथाएँ (चार खंड में)

प्रस्तुत पुस्तक का लक्ष्य सावरकर के संघर्षमय जीवन के कुछ मुद्दों पर सायास उत्पन्न किए गए विवाद के घटाटोप से उन्हें मुक्त...
03/03/2025

प्रस्तुत पुस्तक का लक्ष्य सावरकर के संघर्षमय जीवन के कुछ मुद्दों पर सायास उत्पन्न किए गए विवाद के घटाटोप से उन्हें मुक्तकर, राष्ट्रीय जीवन में उनके तात्विक योगदान के समग्र और वस्तुपरक आकलन का एक विनम्र प्रयास है। राजनीति-प्रेरित क्षुद्रीकरण के सुनियोजित अभियान से जो भ्रम उत्पन्न किया गया है, उचित परिप्रेक्ष्य में तथ्यपरक परीक्षण और वस्तुगत विमर्श द्वारा उसके समाहार का निष्ठावान‌ उपक्रम। वास्तविकता यह है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य धारा के स्ऽलन से एक भयावह रिक्ति उत्पन्न हुई थी जिसके पीछे कांग्रेस-नेतृत्व के हवाई आदर्शवाद एवं ऐतिहासिक यथार्थ की समझ का दुर्भाग्यपूर्ण अभाव था। सावरकर ने उस रिक्ति को भरने का ऐतिहासिक दायित्व निभाया। उस रिक्ति के कई जटिल कारण थे जो कांग्रेस और मुस्लिम लीग के उद्भव और विकास की परस्पर विरोधी ऐतिहासिक धाराओं में अनुस्यूत थे। सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा को इस भूमिका के निर्वाह में लीग के साथ-साथ कांग्रेस से भी द्वंद्व का सामना करना पड़ा। किंतु इस प्रक्रिया में सावरकर-नीत महासभा के सक्रिय होने में काफी विलंब हो चुका था। लिहाजा, आजादी के साथ रक्तरंजित विभाजन को रोका नहीं जा सका, जिसने इस उपमहाद्वीप के भविष्य को दीर्घ- कालीन अशांति और हिंसा के भँवर में डाल दिया। प्रस्तुत पुस्तक इस त्रसदी के उत्स के खुलासे का एक विनम्र प्रयास भी है।

डॉ. रामविलास शर्मा के लेखन-कर्म का बहुत बड़ा हिस्सा उनके भाषा-चिंतन पर आधारित है। इस पुस्तक में भी कई लेख भारत की भाषा-स...
26/02/2025

डॉ. रामविलास शर्मा के लेखन-कर्म का बहुत बड़ा हिस्सा उनके भाषा-चिंतन पर आधारित है। इस पुस्तक में भी कई लेख भारत की भाषा-समस्या को लेकर हैं। इस समस्या से डॉ. शर्मा जीवन-भर जुझते रहे। हिंदी-आलोचकों में भाषा पर काम करने वाले तो अनेक हैं, लेकिन डॉ. रामविलास शर्मा ऐसे आलोचक हैं जो भाषा-समस्या का सामना पूरी प्रतिबद्धता तथा ईमानदारी से करते हैं और अपनी समझ से उचित समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। वे अपने ही देश में रहने वाले औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त वर्ग की पहचान कराते हैं। देशी लोग जब अंग्रेज़ी की हिमायत करते और तरह-तरह के तर्क देकर हिंदी को राजभाषा बनाने के खिलाफ बोलते, तो उन्हें बड़ा कष्ट होता। ऐसे लोगों पर व्यंग्य करते हुए उन्होंने दो लेखों के शीर्षक रखे- ‘राष्ट्रभाषा अंग्रेज़ी' और 'अंग्रेज़ी-प्रेमी भारतवासी'। ये लोग हिंदीतर जनता को ‘हिंदी साम्राज्यवाद' का भय दिखाते, हिंदी की कमियां गिनाते तो डॉ. शर्मा उस जनता को समझाते कि तुम्हारी दुश्मन हिंदी नहीं अंग्रेज़ी है। वे तर्क देते हैं, “ये अंग्रेज़ी-प्रेमी भारतवासी अंग्रेज़ों से विशेषकर अंग्रेज़ी साहित्य से, यह सीख सकते थे कि अपने देश और अपनी भाषा से कैसे प्रेम करना चाहिए।" वे ऐंड्रज़ और ऐनी बेसेंट जैसे विदेशी महानुभावों का उल्लेख करते हैं, जो विदेशी शिक्षा नीति का विरोध कर रहे थे। ऐनी बेसेंट के उस कथन को डॉ. शर्मा ने उद्धृत किया है, जिसमें साफ कहा गया है कि अंग्रेज़ी-शिक्षा के रास्ते मैकाले ने भारत की राष्ट्रीयता की भावना को नष्ट करने और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।

विख्यात रचनाकार ​पद्म श्री रामदरश मिश्र की आत्मकथा
28/01/2025

विख्यात रचनाकार ​पद्म श्री रामदरश मिश्र की आत्मकथा

25/01/2025

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ .....

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