Teri yaden

Teri yaden AboutTHIS PAGE IS PARTICULARLY FOR THOSE PEOPLE WHO HAS FALL IN LOVE. AND HAVE BROKEN THERE HEARTS THROUGH IT?????

किसी बात पर पत्नी से चिकचिक हो गयी ! वह बड़बड़ाते हुए घर से बाहर निकला! सोचा कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा। पता नह...
17/01/2024

किसी बात पर पत्नी से चिकचिक हो गयी ! वह बड़बड़ाते हुए घर से बाहर निकला! सोचा कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा। पता नहीं,समझती क्या है खुद को? जब देखो झगड़ा,सुकून से रहने नहीं देती!
नजदीक के चाय के स्टॉल पर पहुँच कर,चाय ऑर्डर की और सामने रखे स्टूल पर बैठ गया!

तभी पीछे से एक आवाज सुनाई दी इतनी सर्दी में घर से बाहर चाय पी रहे हो?
गर्दन घुमा कर देखा तो पीछे के स्टूल पर बैठे एक बुजुर्ग थे।
आप भी तो इतनी सर्दी और इस उम्र में बाहर हैं बाबा.... बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा :- मैं निपट अकेला,न कोई गृहस्थी,न साथी,तुम तो शादीशुदा लगते हो बेटा"।

पत्नी घर में जीने नहीं देती बाबा !! हर समय चिकचिक..., बाहर न भटकूँ तो क्या करूँ। जिंदगी नरक बना कर रख दी है।

बुजुर्ग : पत्नी जीने नहीं देती?
बरखुरदार ज़िन्दगी ही पत्नी से होती है।आठ बरस हो गए हमारी पत्नी को गए हुए। जब ज़िंदा थी,कभी कद्र नहीं की,आज कम्बख़्त चली गयी तो भुलाई नहीं जाती,घर काटने को दौडता है। बच्चे अपने अपने काम में मस्त, आलीशान घर,धन-दौलत सब है..., पर उसके बिना कुछ मज़ा नहीं। यूँ ही कभी कहीं,कभी कहीं,भटकता रहता हूँ! कुछ अच्छा नहीं लगता, उसके जाने के बाद पता चला, वह धड़कन थी! मेरे जीवन की ही नहीं, मेरे घर की भी। सब बेजान हो गया है... लेकिन तुम तो समझदार हो बेटा, जाओ !! अपनी जिंदगी खुशी से जी लो। वरना बाद में पछताते रहोगे, मेरी तरह। बुज़ुर्ग की आँखों में दर्द और आंसुओं का समंदर भी।

चाय वाले को पैसे दिए। नज़र भर बुज़ुर्ग को देखा,एक मिनट गंवाए बिना घर की ओर मुड़ गया...
उसे दूर से ही देख लिया था, डबडबाई आँखो से निहार रही पत्नी,चिंतित दरवाजे पर ही ख़डी थी....कहाँ चले गए थे? जैकेट भी नहीं पहना, ठण्ड लग जाएगी तो ?, तुम भी तो "बिना स्वेटर के दरवाजे पर खड़ी हो!" कुछ यूँ, दोनों ने आँखों से,एक दूसरे के प्यार को पढ़ लिया था!

कई बार हम लोग भी अपने जीवन में इसी तरह की गलतियां कर बैठते है। सिर्फ पत्नी ही नही,माँ-बाप,चाचा-ताऊ,भाई
बहिन या अज़ीज़ दोस्तोँ के साथ ऐसा क्रोध कर देते है जो सिर्फ हम को ही नही,उनको भी कष्ट देता है।

छोटा सा जीवन है, कहीं क्षमा करके कहीं क्षमा मांगकर हँस कर गुजार दे।
जिंदगी के सफर मे गुजर जाते है, जो मकाम,वो फिर नही आते।
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🍂🍂🍂शुभ प्रभात नमस्कार 🍂🍂🍂ठंड में मूँगफली खाने के बाद मैंने कुछ तथ्य इकट्ठे किए हैं । तथ्य कुछ इस प्रकार हैं :जब भी आप ये...
13/12/2023

🍂🍂🍂शुभ प्रभात नमस्कार 🍂🍂🍂
ठंड में मूँगफली खाने के बाद मैंने कुछ तथ्य इकट्ठे किए हैं । तथ्य कुछ इस प्रकार हैं :

जब भी आप ये सोंचे कि अब बस करता हूँ तो आख़िरी वाली मूँगफली का कड़वा हुआ स्वाद आपको ५-६ मूँगफली और खाने को मजबूर कर देता है ।😁

कितना भी स्वच्छ भारत अभियान के समर्थक हों , मूँगफली के छिलके इधर उधर फेंकने के अपने अलग मज़े हैं । साथ ही अगर पास ही आग जल रही हो तो छिलके उसमे डालने का अलग ही आनंद है ।😁

अगर ४-५ लोग एकसाथ मूँगफली खा रहे हैं तो आपके खाने की स्पीड सामने वालों के खाने की स्पीड पर बहुत हद तक निर्भर करती है ।😁

जब मूँगफली का स्वाद अपने चरम पर होता है तो एक मूँगफली के अंदर भरी हुई मिट्टी / रेत या नमक आपकी स्वाद ग्रंथियों की ऐसी की तैसी कर देती हैं ।😁

मूँगफली के साथ मिलने वाली नमक की पुड़िया की भी अपनी ही अहमियत होती है । कुछ जगह मिर्च की चटनी भी मिलती है... छिलके में चटनी लगा के चाटने का आपना ही मज़ा है , इसको बयां कर पाना लगभग असंभव है ... 😁

और आख़िर में कितनी भी खा लो , लगता है कि और ले ली होती तो अच्छा होता ।😁

मूँगफली खाते हुए अगर एक दाना हाथ से छूटकर गिर जाये तो ऐसा फील होता है, जैसे पुरखों की संपत्ति हाथ से निकल गयी है…. उस दाने को ढूंढे बिना दूसरी मुंगफली खाने में मन नही लगता,या यह कहे जब तक ना मिल जाये , आंखे चारो तरफ उसे ही दूंढ रही होती है...😁

मूंगफली खाने वाला व्यक्ति अच्छी अच्छी भरी हुई मूंगफली पहले खाता है और छोटी और थोड़ी बहुत जली हुई बाद में खाता है। 😁

आप एक तथ्य और भूल रहे हैं कि जब मूंगफली खत्म होने के बाद छिलके हटा रहे होते हैं तो उसमें कोई मूंगफली का दाना मिल जाता है, तब उसका आनंद असीमित होता है।लगता है जैसे खोया ख़ज़ाना मिल गया हो ।🙏 🙏
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पूरी है आभिजात्य।गरीब रोटी की अमीर और खूबसूरत छोटी बहन,भटूरा इसका बड़ा भाई।कचौरी की मम्मी।पूड़ी बनाना कला है।बहू जितनी फ...
06/12/2023

पूरी है आभिजात्य।गरीब रोटी की अमीर और खूबसूरत छोटी बहन,भटूरा इसका बड़ा भाई।कचौरी की मम्मी।पूड़ी बनाना कला है।बहू जितनी फूली और सुडौल पूड़ी बना सके उतनी ही सुगढ़ मानी जाती थी कभी।हम सभी पूड़ी के स्वाद से परिचित भी है और प्रशंसक भी। कोई अभागा ही होगा जिसने कभी पूड़ी न खाई हो।पूड़ी हवा पानी की तरह हर जगह मौजूद है हमारे देश में। शादी ब्याह में ये न हो तो दूल्हा अनमना हो और तेरहवीं मे इसे न परोसा जाए तो मरने वाले का भूत बनकर चिपट जाने का अंदेशा।पूड़ी की दोस्ती है चटपटे आलू की रसेदार सब्जी से।ये दोनो पक्की सहेलियाँ। हमेशा साथ साथ दिख जाएँगी ये आपको।और जब ये एक साथ जिसकी थाली में हों ,वो जीते जी स्वर्ग मे होता है।

सबसे अच्छी बात ,ये खाँटी हिंदुस्तानी है। यदि पैदा हुई ,यहीं फली फूली। यही से पूरी दुनिया मे गई।हिंदुस्तानी जहाँ भी गए इसे साथ ले जाना नही भूले। हमारा पारंपरिक भोजन है ये।भारत में पक्की रसोई का मतलब है सब्जी पूरी।ब्राह्मण आपके घर का दाल भात भले न खाएँ ,सब्जी पूरी के नाम पर फट से राजी हो जाएँगे।पूरी और हलवे का तो जन्म जन्मांतर का साथ।खीर से भी खूब जमती है पूड़ी की।चूँकि ये शाकाहारी हैं इसलिये पूजा-पाठ में बतौर प्रसाद भी इसकी अपनी जगह है।

पूरी बनाने में बहुत दिमाग लगाया है भारतीयों ने।जिज्ञासु और कलाकारों ने छोला पूरी ,मैदा पूरी, टमाटर पूरी , पनीर भरवां पूरी, बथुआ मैथी ,पालक पूरी , चुकंदर पूरी, आलू पूरी , अजवायन की मसाला पूरी, रागी पूड़ी जैसे प्रयोग भी किए।उड़द दाल पूरी, मटर भरवा पूरी, दाल पूरी भी बनाई खाई जाती है हमारे यहाँ और व्रत उपवास जैसे मौक़ों पर राजगीरा पूरी और सिंघाड़े की पूरी भी बनती है हमारे घरों में।पर आटे की पूरी सबसे ज्यादा चलन मे है हमारे देश में और आमतौर पर पूड़ी का मतलब गेहूँ के आटे की पूड़ी से ही लगाया जाता है।

हमने इसे अचार ,दही ,सूखी गीली सब्ज़ियों के साथ खाया।नाश्ते के वक्त पूड़ी का जितना स्वागत होता है शायद ही किसी और खाने का होता हो।नाश्ते के अलावा लंच और डिनर के वक्त भी इसका आदर किया जाता है।मेहमान की थाली मे न हो ये तो वो बेइज्जत महसूस करता है खुद को।मेहमान यदि दामाद है तब तो आगे का भगवान ही मालिक है।सफर के दौरान यदि आलू की सूखी सब्जी और पूड़ी न हो तो सफर का मज़ा किरकिरा हो जाता है और चुनाव के दौरान यदि कार्यकर्ताओं को सब्जी पूड़ी के पैकेट न मिलें तो नेता के सर पर चुनाव हार जाने का ख़तरा मंडराने लगता है।

बोली की ही तरह अलग-अलग इलाकों में पूरी की साइज भी बदलती है हमारे यहाँ।नॉर्थ इंडिया में मीडियम साईज की पूड़ी बनती है। लेकिन, गुजरात और बंगाल वाले काफी छोटी-छोटी पूड़ी खाना पसंद करते हैं।वहीं बिहार-यूपी के भोजपूर इलाके में जाकर ये बड़ी हो जाती है। बलिया वाले सबसे बड़े है इस मामले में। वहाँ की पूड़ियाँ देखकर आप हक्का बक्का हए बिना नही रह सकते।हाथी के कान जितनी बड़ी होती है ये ,और इसीलिए वहाँ के लोगों ने उनका नाम हाथिया कान पूरी रख छोड़ा है।

हरिद्वार और बनारस में गंगा नहाने के बाद पूरी खाने की परंपरा है।लोग मानते है कि यदि गंगा नहाने के बाद पूड़ी सब्जी नही खाएँगे तो नहाने का सौ फ़ीसदी पुण्य लाभ नहीं मिलेगा। ऐसे मे लोग गंगा से निकलते हैं और सीधे पूरी की दुकान मे घुसते हैं।यहां की दुकानों में पूरी ,बिना लहसुन प्याज की आलू की सब्जी के साथ परोसी जाती है और पूड़ी सब्ज़ी की शान बढ़ाने के लिए जलेबी भी होती है।इस इलाके के रहने वाले गंगा नहाने जाते ही इसलिए है ताकि जलेबी पूड़ी का भोग लगाया जा सके।

प्रायः पूड़ी तब बनती है घर में।जब पहली तारीख हो और आप तनख़्वाह लेकर घर लौटे हों। गेहूं बिक गए हों अच्छे दाम पर।पत्नी के छोटे भाई का आगमन हुआ हो।बच्चों का जन्मदिन हो आपके।दशहरा दीवाली हो या तब जब आपकी पत्नी प्रसन्न हो।पूड़ी सौभाग्य का प्रतीक है। समृद्धि और ख़ुशहाली की घोषणा है।सो पत्नी को प्रसन्न रखिए।पूड़ी छनती रहेगी आपके घर में और आप और आपकी जीभ दोनो ही प्रसन्न बने रहेंगे।

पत्थर की भी तक़दीर बदल सकती है,शर्त  यह हे कि सलीक़े से सँवारा जाये...
03/12/2023

पत्थर की भी तक़दीर बदल सकती है,

शर्त यह हे कि सलीक़े से सँवारा जाये...

एस्प्रैसो कॉफ़ीबात कुछ पुराने ज़माने की है, तब “एस्प्रेसो” कॉफ़ी का बड़ा आकर्षण हुआ करता था। कई फ़िल्म थियेटर में मिलती थी...
10/11/2023

एस्प्रैसो कॉफ़ी

बात कुछ पुराने ज़माने की है, तब “एस्प्रेसो” कॉफ़ी का बड़ा आकर्षण हुआ करता था। कई फ़िल्म थियेटर में मिलती थी, बड़ी महँगी। पर शादी ब्याह के रिसेप्शन में फोकट मिल जाती। रिसेप्शन में एस्प्रेसो मशीन होना ज़रूरी था।

रंगबिरंगी बत्तियों वाली उस मशीन से हम बड़े प्रभावित रहते थे, बाद में जाना कि वह केवल भाप देने वाला बॉयलर है। बनाने वाला, एक बर्तन में दूध, शक्कर और कॉफ़ी पॉउडर लेकर उसमें मशीन से भाप छोड़ता था, झाग वाली कॉफ़ी तैयार। उसके ऊपर कैडबरी ड्रिंकिंग चॉकलेट छिड़कने के बाद तो पूछो मत।

बाद में बरिस्ता, कॉफ़ी डे, स्टारबक्स, थर्ड वेव इत्यादि रेस्टोरेंट आने के बाद, हमारी कॉफ़ी की परिभाषाएँ बदल गई। पता चला जिसे हम एस्प्रेसो, कहते हैं वह कैफ़े लाटे या कैपुचीनो है। एस्प्रेसो काफ़ी स्ट्रॉंग, बिना दूध की कड़वी काफ़ी होती है , जिसे “सिंगल शॉट या डबल शॉट “ के रूप में लिया जाता है। कॉफ़ी की लिस्ट में अमेरिकानो जैसे कई और नाम जुड़ गए।

पर उस शादी ब्याह के एस्प्रेसो कॉफ़ी कि बात ही कुछ और है। आज एक सगाई के समारोह में उस मशीन को देखा तो दिल बाग-बाग हो गया। उसके ऊपर बाक़ायदा चॉकलेट छिड़क कर कॉफ़ी पी, पुराने समय की तरह।

क्या आपको भई यह “देसी” एस्प्रेसो पसंद हैं?

यह बताया गया कि....        एक मूवी थियेटर ने एक लघु फिल्म प्रदर्शित की जो कमरे की छत के स्नैपशॉट से शुरू हुई। कोई विवरण ...
21/08/2023

यह बताया गया कि....
एक मूवी थियेटर ने एक लघु फिल्म प्रदर्शित की जो कमरे की छत के स्नैपशॉट से शुरू हुई। कोई विवरण नहीं, कोई रंग नहीं. बस एक सफेद छत.

लगभग 6 मिनट तक वही दृश्य प्रदर्शित होता रहा जब फिल्म देखने वाले निराश होने लगे। कुछ ने शिकायत की, कि फिल्म से उनका समय बर्बाद हो रहा है और कुछ ने फिल्म छोड़नी शुरू कर दी।

अचानक, कैमरे का लेंस धीरे-धीरे हिलना शुरू हो गया जब तक कि वह नीचे फर्श की ओर नहीं पहुंच गया। एक छोटा बच्चा जो अपाहिज लग रहा था, रीढ़ की हड्डी टूटने से पीड़ित होकर बिस्तर पर लेटा हुआ था।

इसके बाद कैमरा निम्नलिखित शब्दों के साथ वापस छत की ओर चला जाता है:

"हमने आपको इस बच्चे की दैनिक गतिविधि के केवल 8 मिनट दिखाए, उस दृश्य के केवल 8 मिनट दिखाए जो यह विकलांग बच्चा अपने जीवन के सभी घंटों में देखता है, और आपने शिकायत की और 6 मिनट के लिए भी धैर्य नहीं रखा, आप इसे सहन नहीं कर सके इस पर नजर रखें.."

कभी-कभी हमें खुद को दूसरों की जगह रखकर यह समझने की ज़रूरत होती है कि हमें जो आशीर्वाद दिया गया है उसकी महत्ता क्या है और हमें ऐसे आशीर्वाद देने के लिए शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्हें हम हल्के में लेते हैं।

अब अईसा जुलुम न करो की परान निकस जाए ... ब्लड शुगर के नाम पर इतना परहेज न कराओ की जो मरीज दस साल बाद मूए वाला है, उ साल-...
02/08/2023

अब अईसा जुलुम न करो की परान निकस जाए ... ब्लड शुगर के नाम पर इतना परहेज न कराओ की जो मरीज दस साल बाद मूए वाला है, उ साल-दुई साल में ही निकस जाए.

इधर कई दिन से शुगर की जांच नहीं कर रहा था ... श्रीमतीजी ने फास्टिंग जांच किया ... ससुरा ग्लुकोमीटर बताइस 360 का आंकड़ा ... ओये तेरी ! शुरू हो गया पटर-पटर-"खाने के नाम पर जीभ लटक जाता है ... परहेज करना नहीं है ... कई दिन से भात दे दो भात दे दो का रट्टा मार रहे थे ... हो गया न भतहा प्रॉब्लम ?'

नतीजा ये हुआ की आज से परहेज का ताना-बाना फिर से टाइट कर दिया गया ... कई महीने पहले आंकड़ा आया था 165 ... मैं भी खुश, श्रीमतीजी भी खुश ... ख़ुशी के माहौल में गेहूं के आटे की इंट्री हो गयी भात के साथ, सब्जी में आलू महराज भी यदा-कदा नजर आने लगे थे ... मस्त चलने लगी थी जिंदगी ... लेकिन आज तो मामला ऐसे लगा जैसे घर में धारा 144 नहीं बल्कि कर्फ्यू लग गया हो.

डब्बे से निकला "सतंजा आटा" ... न जाने कौन-कौन से सात अनाज लाकर पिसवाती हैं घर के बगल वाले चक्की से ... बाजरा, जौ, जोन्हरी, मडुआ ... और न जाने कौन-कौन से अनाज ... रोटी ससुरी रंग से ही अफ्रीकन टाइप लगती है, खाने में स्वाद नहीं, लचक नहीं.

आलू के चोखे का स्थान ले लिया साबुत चने के चोखा ने ... बिना चोखा बिहारी की थाली सुनी होती है, जिद्द करने पर कंदा का चोखा मिला, वो भी इस हिदायत के साथ की आज के लिए ये छुट है, इसमें भी स्टार्च होता है, शुगर लेवल बढ़ाता है ... करेला महारानी थाली में बैठकर मूंह चिढ़ा रही थीं ... पंचमेल दाल यानी पांच तरह के दालों की जगह, बीमारू मूंग दाल ने ले ली ... बहुत आरजू मिन्नत करने के बाद भिन्डी की कलौंजी और गुईयाँ की एक पकौड़ी मिली ... मतलब "यातना थाली" ... ऊपर से तुर्रा ये कि "बचना कुछ भी नहीं चाहिए"

एक काम करो ... हम्मर गर्दन टीप देयो .. न रहिहें राम न रही शुगर ... ठीक है ? #टटकाखबर

इन कोल्डड्रिंक की बोतलों ने गांवों से कमाने निकले लड़को के पास घी पहुंचाने में सबसे ज्यादा हेल्प की है।स्टील के डल्लूओ मे...
26/07/2023

इन कोल्डड्रिंक की बोतलों ने गांवों से कमाने निकले लड़को के पास घी पहुंचाने में सबसे ज्यादा हेल्प की है।
स्टील के डल्लूओ में कितने भी ढक्कन टाइट कर ले।
कपड़े चिकने हुवे बिना नही रहते थे।
आजकल तो जिसको देखो घी मत खाओ बोलते मिलते है।
और इसी वजह से 70 तक जाते जाते सबके घुटने जवाब दे जाते है।
एक्चवली हमने खराब की तुलना देशी घी से कर दी है।
जिन्होंने घी कभी खाया ही नही वो शहरों से देशी घी के नाम पर पतंजलि, एवरीडे और अमूल के डब्बे या डायरी से 500 या 700 रुपये के डब्बे लाकर सोचते है हम देशी घी खा रहे है।
इसलिए थोड़े समय बाद डॉक्टर भी बोल देते क्लोस्ट्रोल बढ़ गया है।घी बन्द कर दो।

बहुत फर्क है दोनो घी में और बनाने में,एक घी को जमाके ,फेटने के बाद बार बार गर्म करके छाछ निकाल के तैयार किया जाता है।जिसकी न केवल खुश्बू होती है बल्कि असली भी होता है।
नकली के चक्कर मे सस्ते के चक्कर मे हमने खराब खाया और बदनाम किसानों का देशी घी हुआ।
इस घी के लड्डू प्रेगनेंसी के बाद महिलाओ से लेकर हार्ड काम करने वाले लोगो तक को सिर्फ ताकत के नाम पर खिलाये गए।और जिन्होंने खाया उन्हें पता है ताकत है या नही।

हमारी साइड तो आज भी लोग बोतले लेकर घूम रहे है।गर्म पानी मे डालकर निकाल लेते है।
सुना है कैंट से एक मेजर जर्नल जब अपने गांव गए तो वँहा एक ताई को पता चला कि जर्नल उसी केंट में से आया है जिसमे उसका बेटा है तो उसने अपने बेटे के लिये भी घी का डोलू भर के उसे पकड़ा दिया कि वँहा जाव तो मेरे बेटे को दे दिये।।
और उस घी को देने जब खुद जर्नल साहब उस जवान के पास गाड़िया लेकर पहुंचे तो सबने पूछा कि आप क्यो आये किसी के हाथ भिजवा देते या हम ले आते सर।
तो जर्नल साहब ने बोला कि एक माँ का प्यार है इस घी में है
मैं उसे किसी दूसरे के भरोसे थोड़ी भेज सकता था।
ले भाई तेरा घी,खा और दौड़ता रह और देश सेवा कर।

अब भी बहुत से जर्नल से लेकर दूसरे लोग जिन्हें इस देशी की की जानकारी है वो इसे गांवो से मंगवाते है।
जिनके पास पैसे है वो महंगे भाव मे खरीद कर दूध घी खा रहे है।
और जो खुद दूध बनाने वाले, घी निकालने वाले है वो पैसे कमाने के लिये न केवल मिलावट कर रहे है बल्कि खुद भी नकली खा रहे है।
पैसे तो कमा लेते है साथ ही पाप भी उतने ही कमा रहे है।

स्कूटर बिक रहा है या नारी  अपनी प्रोडक्ट में लड़कियों का अश्लील प्रयोग क्यो करवा रहा है ये सभी  #इंडस्ट्रीज़ वाले.!🙄🤔 सच क...
23/07/2023

स्कूटर बिक रहा है या नारी

अपनी प्रोडक्ट में लड़कियों का अश्लील प्रयोग क्यो करवा रहा है ये सभी #इंडस्ट्रीज़ वाले.!🙄🤔 सच कहूँ तो पहली नजर में स्कूटर दिखा ही नही,, पुरुष हूँ,, क्यों सच छिपाऊं,, मैं सोच रहा हूँ ,, आखिर ये हो क्या रहा है,,नारी क्यों देख ओर समझ नही पा रही बाजार ने उसे एक वस्तु बना दिया है,, वो क्यों विरोध नही करती,,
अगरबत्ती के ऐड में महिला,, शेविंग क्रीम के ऐड में महिला,, डिओ के ऐड में महिला की अमुक डिओ लगाओगे तो,, खिंची चली आंदी ए,, पुरुषों के इनर वियर में महिला
18 ,20 साल के लड़के ,, ओर लड़कियों पर इसका क्या असर हो रहा है,, उसका समाज पर क्या असर होगा,,कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे....
पुरुष नहीं.....
जी बहुत अच्छी बात है.....
आप ही तय करे....
लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं....
और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे
लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे?
क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ?
जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की "हमें माँ/बहन की नज़र से देखो"

कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है?
भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था....

सत्य ये है कीअश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।।
और इसका उत्पादन #स्त्रीसमुदाय करता है।
मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता(सेक्स) भी है।

आखिर में मुझे ,, नॉन प्रोग्रेसिव या रूढ़िवादी भी कहा जा सकता है,, हो सकता है मैं हूँ भी,,
पर मैंने जो कहा बहुत थोड़ा कहा,, बहुत कुछ कह सकता था,,
बाकी पॉइंट ये है कि संस्कार ,, इस विषय मे वेशभूषा का,, ना भुला जाए,, हम संस्कृति के इस चीरहरण कर्ण या भीष्मपिता बनकर मुख दर्शक नहीं रहेंगे हम अपने धर्म का पालन करेंगे और आप
ये भारत है बैंकॉक नही,,,

● तेरा साथ है तो ❤️करम फूट गये मेरे।कैसा लीचड़ और मूँजी खसम मिला है!यह निकम्मा AC या First Class ना सही पर 2 सीटें Genera...
14/07/2023

● तेरा साथ है तो ❤️

करम फूट गये मेरे।
कैसा लीचड़ और मूँजी खसम मिला है!

यह निकम्मा AC या First Class ना सही पर 2 सीटें General Sleeper Coach में तो रिजर्व करवा सकता था।

लगेज के नाम पर बोरे में सामान ना कि 5-6 हजार रु वाला VIP सूटकेस।

इसे साड़ी कहूँ या धोती कहूँ; यह भी दिलवायी तो 360 रु वाली ही दिलवायी।

पर नहीं जी...

रेल की जनरल डिब्बे में सोने के लिये सीट ना मिली तो दो सीटों के बीच में सामान से भरा बोरा रख कर ही शाही पलंग बना लिया।

पति ऐसे निश्चिंत हुआ पड़ा है कि जैसे उसे गरीबी, बेरोजगारी, आरक्षण, अभाव इत्यादि से कुछ मतलब ही ना हो।

ऊपर की सीट के पाइप से टंगी झोली में पड़ा बच्चा दौड़ती रेल के हिचकोलों से झूलते हुए दुनिया से बेखबर होकर मस्ती से सो रहा है।

और पत्नी!

उसका तो कहना ही क्या।

पूरा पलंग न मिला तो पैरों को मोड़ कर और पति के सीने को तकिया बना कर ऐसे निश्चिंत पड़ी है जैसे कि उसका पति तीनों लोकों का स्वामी हो और वह उसके अंक में समा गयी हो।

हीरे जड़ित सोने का पलंग और उस पर बिछे मखमली गद्दे पर कोई महारानी भी इतनी चैन की नींद नहीं सो पाती होगी।

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तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
अंधेरों से भी मिल रही रौशनी है
तेरा साथ है तो...

■ दाम्पत्य जीवन का प्यार, समर्पण और विश्वास भरा स्वर्ग ❤️

सभी पिताओं को समर्पित.....मुकदमा…"श्यामलाल तुम्हारा ही नाम है?" उस सिपाही ने पुलिसिया रौब से पूछा। "जी हाँ, मैं ही हूँ श...
18/06/2023

सभी पिताओं को समर्पित.....

मुकदमा…

"श्यामलाल तुम्हारा ही नाम है?" उस सिपाही ने पुलिसिया रौब से पूछा।

"जी हाँ, मैं ही हूँ श्यामलाल, कहिये।"

"चलो तुम्हे कोर्ट चलना है, तुम्हारे बेटे ने तुम्हारे खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया है, आज तुम्हारी कोर्ट में पेशी है।" सिपाही ने कहा।

सुनते ही उस बूढे आदमी की आँखे भर आईं, "हे भगवान अब यही दिन देखना बाकी रह गया था।" कहते हुए बूढा उठकर सिपाही के साथ हो लिया।

श्यामलाल को पुलिस जीप में बैठते हुए देख मोहल्ले के कुछ लोग भी पुलिस जीप के पीछे हो लिए।

कोर्ट में श्यामलाल को कटघरे में खड़ा किया गया, फरियादी पक्ष के वकील ने जज को बताया, "योर ऑनर ! मेरे क्लाइंट मिस्टर नरेश ने अपने पिता श्यामलाल पर ये इल्जाम लगाया है कि उसने उसकी परवरिश सही ढंग से नहीं की , इसलिए आज समाज में उसकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, और उसे समाज में नीचा देखना पड़ रहा है।"

"नरेश ! आप बताइये क्या माजरा है ?" जज ने नरेश से पूछा।

"जज साहब, मेरी माँ , जब मैं दस साल का था तभी गुज़र गई । मेरा बाप मजदूरी करने जाता था, उसने मुझे पढ़ाया लिखाया । मेरी नौकरी लगी और मेरी शादी भी की, पर इन सबके बावजूद इसने मेरी परवरिश सही से नहीं की और संस्कार नहीं दिए । इसलिए समाज में आज न केवल मेरा अपमान हो रहा है, बल्कि मेरा भविष्य भी अंधकार में है।" नरेश ने कहा।

"पहेलियाँ मत बुझाओ , सीधी बात कहो।" जज ने उसे डाँटा।

"जज साहब, इन दिनों मेरी बीवी मेरे पिता को वृद्धाश्रम में भेजने के लिए पीछे पड़ी हुई है और मैं उसका विरोध नहीं कर पा रहा हूँ । अगर मेरे पिता ने मेरी सही परवरिश की होती और संस्कार दिए होते , तो मैं उसका विरोध करता और अपने पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने को राजी नहीं होता । चूंकि मेरे पिता ने मुझे संस्कार नहीं दिये , तो मैं नहीं जानता सही परवरिश और संस्कार क्या होते हैं ? इस कारण मैं अपने बेटे को भी वो संस्कार नहीं दे पा रहा हूँ , इसलिए मेरा भविष्य अंधकार में है । कल को मेरा बेटा भी संस्कारों और परवरिश के अभाव में मुझे और मेरी पत्नी को वृद्धाश्रम में भेज सकता है, और मेरे पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने से मेरी समाज में भी बेइज्जती होगी । इसलिए मैं चाहता हूं मेरे पिता को इसके लिए सजा दी जाए।" नरेश ने अपनी समस्या बताई।

जज सोच में पड़ गया, कुछ देर सोचने के बाद जज ने कहा ,"नरेश कानून में ऐसे काम के लिए कोई सजा मुकर्रर नहीं है । तुम बताओ अपने पिता के लिए क्या सजा होनी चाहिए ? "

"जज साहब मैं चाहता हूँ मेरे पिता को पाबंद किया जाए कि अगले दस वर्ष तक मेरी अच्छे से परवरिश करें और मुझे संस्कार दे ताकि मैं भी अपने बेटे की सही परवरिश करना सीख सकूँ।"

"ठीक है, ये कोर्ट श्यामलाल को दस साल के लिए पाबंद करता है कि वो अपने बेटे नरेश की अच्छी परवरिश करे और उसे संस्कार दे।"

"जज साहब एक दरख्वास्त और है मेरी।" नरेश ने कहा।
"हाँ बोलो।"जज नरेश का मन्तव्य और तरीके से खुश था।

"जज साहब कुछ लोग डरा कर, धमका कर और फुसलाकर मेरे पिता को मेरी परवरिश करने से रोक सकते हैं, उन्हें भी पाबंद किया जावे की ऐसा कोई कृत्य न करे।"नरेश ने कहा।

" ठीक है ....कोर्ट ये आदेश भी देती है कि तुम्हारी परवरिश करने में तुम्हारे पिता के लिए कोई भी बाधा उतपन्न करेगा तो पुलिस उसे पकड़ कर कोर्ट में पेश करेगी।"कहकर जज ने कोर्ट बर्खास्त कर दिया।

श्यामलाल ने नरेश को गले से लगा लिया, दोनों की आँखे छलक आईं थी, नरेश की बीवी अपने बेटे को लेकर चुपचाप घर के लिए निकल गई । वो समझ चुकी थी नरेश ने ये सब करके अपने वर्तमान के साथ भविष्य भी सुधार लिया था।


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नशे पर वार के बीच बीड़ी जलई लेमाता अहिल्याबाई होल्कर की जयंती पर इंदौर गौरव उत्सव का आयोजन धूमधाम से किया गया और कल रात ...
08/06/2023

नशे पर वार के बीच बीड़ी जलई ले

माता अहिल्याबाई होल्कर की जयंती पर इंदौर गौरव उत्सव का आयोजन धूमधाम से किया गया और कल रात नेहरू स्टेडियम में मुख्यमंत्री की मौजूदगी में जोरदार आतिशबाजी के साथ पार्श्व गायिका सुनिधि चौहान की तड़क -भड़क प्रस्तुति हुई जो युवा वर्ग को तो खूब पसंद आई और वे ' एवई-एवई लूट गई'... के साथ ' हुई मैं मस्त-मस्त'... जैसे फड़कते गानों पर थिरकते नज़र आएं..मगर कई वरिष्ठों के साथ अफसरों को ये प्रस्तुतियां नागवार गुजरी... कुछ का तो यह कहना था, ऐसा लगा मानों किसी पब में आकर बैठ गए हों...इनके मुताबिक़ ये प्रस्तुतियां गौरव दिवस के गरिमामय आयोजन के अनुकुल नहीं थीं.. जैसे एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने नशे पर वार का आव्हान किया.. तो दूसरी तरफ सुनिधि ने ' बीड़ जलई ले जिगर से पिया'... की प्रस्तुति दे डाली. अब वरिष्ठ पूछ रहे हैं कि ये कैसा नशे पर वार है..? कुछ को सुनिधि की वेशभूषा भी उत्तेजक लगीं...बहरहाल नजर-नजर के फेर के बीच एक और सरकारी आयोजन निपट गया .
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