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Ban biyahi 3 behnein kaise haamla ho gain | In bachon ka baap unka baap bhi tha aur unka maamu bhiयह कहानी है एक गरीब बे...
29/08/2025

Ban biyahi 3 behnein kaise haamla ho gain | In bachon ka baap unka baap bhi tha aur unka maamu bhi

यह कहानी है एक गरीब बेवा माँ, हलीमा की, जो अपनी तीन बेटियों के साथ एक छोटे से कच्चे घर में रहती थी। हलीमा का पति कई साल पहले गुजर गया था। उसके बाद, उसने मेहनत-मजदूरी करके अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। हलीमा की बेटियाँ खूबसूरत, शर्मीली और इज्जतदार थीं। वे कभी अकेले बाहर नहीं जाती थीं और हमेशा अपने सिर पर दुपट्टा रखती थीं।

एक दिन, हलीमा की सबसे बड़ी बेटी, फातिमा, की तबीयत अचानक खराब हो गई। उसे चक्कर आने लगे और उल्टियाँ होने लगीं। हलीमा उसे डॉक्टर के पास ले गई, जहाँ डॉक्टर ने कहा, "आपकी बेटी उम्मीद से है।" यह सुनकर हलीमा के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी बेटी अभी तक बिन ब्याही थी। हलीमा ने अपनी बेटी को डांटा, लेकिन फातिमा ने कहा, "अम्मी, मैंने कभी किसी को देखा भी नहीं। मुझे विश्वास करें।" हलीमा को अपनी बेटी की बात पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उसकी आँखों में सच्चाई थी।

कुछ दिनों बाद, हलीमा की दूसरी बेटी, सारा, भी उसी हाल में निकली। हलीमा का दिल टूट गया। उसने सोचा, "यह सब कैसे हो रहा है?" जब सारा ने भी यही कहा, "मुझे कुछ नहीं पता," तो हलीमा की स्थिति और भी खराब हो गई। अब उसकी तीसरी बेटी, नूर, की तबीयत भी बिगड़ने लगी। हलीमा ने सोचा कि यह सब एक बुरा सपना है, लेकिन हकीकत ने उसे हिलाकर रख दिया।

हलीमा ने हिम्मत जुटाई और सुल्तानबाद के बादशाह के दरबार में जाकर अपनी कहानी सुनाने का निर्णय लिया। दरबार में हलीमा का चेहरा आंसुओं से भरा हुआ था। उसने बादशाह से कहा, "बादशाह सलामत, मुझे इंसाफ चाहिए। मेरी बेटियों की इज्जत लूट ली गई है। मैं जानना चाहती हूँ कि यह दरिंदा कौन है।"

बादशाह ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और कहा, "यह सिर्फ तुम्हारा मामला नहीं है, यह मेरी सल्तनत का मामला है। मैं इसे हल करूंगा।"

बादशाह ने अपने वजीर को बुलाया और उसे आदेश दिया कि वह उस दरिंदे को पकड़ने के लिए एक योजना बनाएं। वजीर ने एक कुत्ता लाने का सुझाव दिया, जो दरवाजे के पास बंधा रहेगा। जब वह दरिंदा आएगा, तो कुत्ता भौंकेगा और सिपाही उसे पकड़ लेंगे।

रात के समय, हलीमा के घर की छत पर एक साया दिखा। वह दरिंदा दबे पांव अंदर आया, लेकिन जैसे ही कुत्ता भौंका, हलीमा और उसकी बेटियाँ जाग गईं। सिपाही दौड़कर अंदर आए और दरिंदे को पकड़ लिया। जब उन्होंने उसका नकाब हटाया, तो हलीमा की आँखों में हैरानी और गुस्सा था। वह दरिंदा कोई और नहीं, बल्कि उसका सौतेला बेटा कामरान था।....
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Hafiz Quran ladki ki kabra mai maiyat par Allah Ka Billiyaan ka mojza/Aakhir Biliya Qubar par Q aatiयह कहानी जुबैदा बेगम...
29/08/2025

Hafiz Quran ladki ki kabra mai maiyat par Allah Ka Billiyaan ka mojza/Aakhir Biliya Qubar par Q aati

यह कहानी जुबैदा बेगम की है, जो एक हाफिज़ कुरान और नेक दिल लड़की थी। उसके बारे में सभी कहते थे कि वह जन्नती है। लेकिन जब उसकी मृत्यु हुई, तो उसके शव के पास बिल्लियाँ आकर रोने लगीं। यह अजीब और डरावना मंजर था। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। बिल्लियाँ उसकी कब्र को खुरच रही थीं और आसमान की ओर मुंह करके अजीब आवाजें निकाल रही थीं। क्या यह सब उस लड़की के साथ हुई किसी गलती का परिणाम था?

जुबैदा बेगम का जन्म एक बड़े जमींदार परिवार में हुआ था। वह अपने बेटे अजमल के साथ रहती थी। जुबैदा को अपने एक नौकर से प्यार हो गया और उससे शादी कर ली। इस शादी की सजा के रूप में उसे अपने परिवार से बेदखल कर दिया गया। उसके मायके के दरवाजे उसके लिए बंद हो गए। उसने गरीबी में अपने पति के साथ जीवन बिताया, लेकिन कभी भी अपने परिवार से मदद नहीं मांगी। उसकी सारी खुशियाँ अपने बेटे में थीं।

जब अजमल बड़ा हुआ, तो उसकी माँ ने उसे अपनी भतीजी सारा से शादी करने की इच्छा जताई। अजमल ने अपनी माँ की बात मान ली। सारा एक नेक और प्यारी लड़की थी, लेकिन एक महीने बाद ही सारा की माँ का इंतकाल हो गया। सारा अपने माता-पिता को याद करती थी, और अजमल उसे सांत्वना देता था।

कुछ समय बाद, अजमल को नौकरी के लिए विदेश भेज दिया गया। उसकी माँ ने उसे जाने के लिए मनाया। लेकिन एक महीने बाद, अजमल को अपनी पत्नी सारा की मृत्यु की खबर मिली। वह इस खबर पर विश्वास नहीं कर सका। उसकी माँ ने कहा, "तुम्हें तकलीफ देने का क्या फायदा? वह अब वापस नहीं आएगी।"

अजमल ने छुट्टी लेकर घर आने का निर्णय लिया। जब वह अपनी माँ से मिला, तो उसे सारा की कब्र पर जाने की इच्छा हुई। उसकी माँ ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन अजमल ने कहा, "मुझे अपनी पत्नी की कब्र पर जाना है।"

जब वह कब्रिस्तान पहुँचा, तो उसने देखा कि वहाँ बिल्लियाँ उसकी पत्नी की कब्र को खुरच रही थीं और अजीब आवाजें निकाल रही थीं। अजमल ने लोगों से पूछा, "यह कब्र किसकी है?" लोगों ने बताया कि यह उसकी पत्नी सारा की कब्र है। अजमल को विश्वास नहीं हुआ। सारा तो बहुत नेक थी, जिसने कभी कोई गुनाह नहीं किया। लेकिन जब वह कब्र के पास गया, तो उसकी आँखों के सामने एक अजीब दृश्य था। उसे लगा कि उसकी पत्नी को कुछ सजा मिल रही है, और यह सब उसके लिए बेहद दर्दनाक था।

उसकी माँ ने फिर से उसे समझाया कि उसकी पत्नी जादूगरनी थी और उसके पास कोई अच्छाई नहीं थी। अजमल को अपनी माँ की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन वह खुद को इस सच्चाई से जुदा नहीं कर सका। उसने अपनी पत्नी की कब्र खोदने का निर्णय लिया, लेकिन जब वह अंदर गया, तो उसे सारा का चेहरा नहीं मिला।...
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Govinda With Sunita Ahuja Make First Appearance Amid Divorce On Ganesh Chaturthi WithSon Yashvardhanगणेश चतुर्थी का पावन...
29/08/2025

Govinda With Sunita Ahuja Make First Appearance Amid Divorce On Ganesh Chaturthi WithSon Yashvardhan

गणेश चतुर्थी का पावन पर्व था, जब पूरे देश में भक्तिभाव से गणपति बप्पा की पूजा की जा रही थी। इस खास अवसर पर, गोविंदा और उनकी पत्नी सुनीता आहूजा ने अपने बेटे यशवर्धन के साथ एक विशेष उपस्थिति दर्ज कराई। यह क्षण उनके लिए बेहद खास था, क्योंकि गोविंदा का करियर और परिवार दोनों ही इस समय महत्वपूर्ण मोड़ पर थे।

सुनीता ने अपने बेटे के हाथों से गणेश जी की स्थापना करवाई। उन्होंने कहा, "इस बार मेरा बेटा गणपति लेकर आया है। मैं चाहती हूं कि यशवर्धन गोविंदा की तरह नाम और इज्जत कमाए।" सुनीता का यह सपना सिर्फ एक मां का सपना नहीं था, बल्कि एक ऐसे बेटे का सपना था जो अपने पिता की तरह सफल हो सके।

गणेश जी की पूजा करते हुए गोविंदा ने कहा, "भगवान का आशीर्वाद अगर रहे, तो कोई नहीं छोड़ सकता। मैं हमेशा मां का आशीर्वाद मानता हूं।" उनकी बातें सुनकर सभी भक्तों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। उन्होंने कहा, "मां-बाप की सेवा कीजिए, यही सबसे बड़ा धर्म है।"

इस दौरान, सुनीता ने अपनी भावनाओं को साझा करते हुए कहा, "मैं गणेश जी की बहुत भक्त हूं। गणेश जी के आशीर्वाद से ही मेरे बेटे का करियर शुरू हो रहा है।" उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन यह आंसू खुशी के थे। उन्होंने कहा, "मैं चाहती हूं कि आप सभी मेरे बेटे को वही प्यार दें जो आपने मेरे पति गोविंदा को दिया है।"

हालांकि, इस खुशी के बीच एक गहरा तनाव भी था। गोविंदा और सुनीता के बीच हाल ही में कुछ समस्याएं पैदा हुई थीं। मीडिया में उनके तलाक की चर्चा चल रही थी। लेकिन सुनीता ने अपने पति के प्रति अपनी निष्ठा को बनाए रखा। उन्होंने कहा, "हमारे बीच जो भी हो, हम हमेशा एक-दूसरे के साथ रहेंगे। हमारे प्यार में कोई दरार नहीं आ सकती।"

सुनीता ने कहा, "मैं चाहती हूं कि लोग हमारे रिश्ते को समझें। हम एक परिवार हैं, और परिवार की ताकत हमेशा एकजुटता में होती है।" उनकी बातें सुनकर वहां खड़े सभी लोग उनकी दृढ़ता और साहस की सराहना कर रहे थे।

गणेश चतुर्थी की पूजा के बाद, सुनीता ने अपने बेटे के भविष्य के लिए आशीर्वाद मांगा। उन्होंने कहा, "गणपति बप्पा से मेरी यही प्रार्थना है कि मेरे बेटे को सफलता मिले और वह अपने सपनों को साकार कर सके।" इस दौरान, गोविंदा ने भी अपने बेटे को प्रोत्साहित करते हुए कहा, "मेरे बेटे, तुम मेहनत करो, और भगवान तुम्हारा साथ देगा।"

सुनीता ने कहा, "गणेश जी की कृपा से हमें जो भी मिला है, उसका हम हमेशा आभार व्यक्त करेंगे।" उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर गणपति की आरती की, और सभी ने मिलकर 'गणपति बप्पा मोरया' का जयकारा लगाया। यह क्षण सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि एक नए शुरुआत का प्रतीक था।...
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Ek Saanp Ne Maa Ke Dudh Ka Karz Kaise Nibhaya? Islamic story in Hindi Urduशाम का गमगीन वक्त था। पेड़ों के सायों में एक ब...
29/08/2025

Ek Saanp Ne Maa Ke Dudh Ka Karz Kaise Nibhaya? Islamic story in Hindi Urdu

शाम का गमगीन वक्त था। पेड़ों के सायों में एक बूढ़ी मां, जिसका चेहरा समय की धूल में छिपा हुआ था, फटे-पुराने कपड़ों में बैठी थी। उसकी आँखों में आंसू थे, और एक आंख नहीं थी, दूसरी से धुंधला दृश्य देख रही थी। यह वही माँ थी जिसने अपने बेटे को अपने खून और पसीने से पाला था। आज वही बेटा उसे दर-ब-दर भटकने पर मजबूर कर दिया था।

उसकी आँखों में बस एक ही ख्वाब था—अपने बेटे को खुश देखना। लेकिन उस बेटे की बेरुखी ने उसे तोड़ दिया था। मजबूरन, वह एक पेड़ के नीचे सहमी बैठी थी, हाथ में दूध की एक छोटी बोतल थी, जो एक राहगीर ने दया करके उसे दी थी। भूख से बेहाल, उसने ढक्कन खोला और घूंट भरने की कोशिश की। तभी झाड़ियों से साएं साएं की आवाज आई। उसका दिल दहल उठा।

एक सांप, लहूलुहान जख्मों से भरा, उसकी तरफ रेंग रहा था। पीछे एक योगी, बीन बजाते हुए, उसका पीछा कर रहा था। लेकिन सांप, किसी तरह जोगी के हाथ से बच निकला और सीधे बूढ़ी माँ के फटे आंचल में जा छुपा। बूढ़ी माँ की सांस अटक गई। बदन कांपने लगा। लेकिन उसी वक्त, अल्लाह के हुक्म से, सांप इंसानों की तरह बोल पड़ा, "अम्मा, डरिए मत। मैं आपको कोई नुकसान नहीं दूंगा। मेरा दुश्मन पीछे पड़ा है। मैं जख्मी हूं। मुझे पनाह दे दीजिए।"

बूढ़ी माँ हैरान थी। सांप बोल रहा था! उसका दिल पसीज गया। आंसू छलक पड़े। कांपते हाथों से उसने उसे अपने दुपट्टे में छुपा लिया। योगी पास आया और पूछा, "ए बुढ़िया, यहां से कोई सांप गुजरा है?" माँ कांपती आवाज में बोली, "नहीं बेटा, मैंने किसी सांप को नहीं देखा।" योगी दूसरे रास्ते मुड़ गया। सांप बाहर निकला और बोला, "अम्मा, आपने मेरी जान बचाई है। मैं जिंदगी भर आपका एहसान नहीं भूलूंगा। लेकिन आप क्यों रो रही हैं? मुझे बताइए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?"

यह सुनकर बूढ़ी माँ की आँखों से आंसू बह निकले। उसने दर्द भरी आवाज में कहा, "बेटा, अगर सुनना चाहते हो तो दिल मजबूत कर लो। मेरी कहानी बहुत दर्दनाक है।" उसने कांपते लफ्जों में अपना गम बयान करना शुरू किया।

"मेरे पेट में बच्चा था कि मेरे शौहर इस दुनिया से चले गए। ससुराल वालों ने धक्के मारकर मुझे घर से निकाल दिया। तन्हाई और मजबूरी में मैं दर-बदर भटकती रही। फिर गांव के एक रईस ने रहम खाकर मुझे अपने घर काम पर रख लिया और सर छुपाने को मिट्टी का एक छोटा सा मकान दे दिया। दिन गुजरते गए और एक दिन अल्लाह ने मुझे बेटे जैसी औलाद से नवाजा। वह मेरा दिल का टुकड़ा था। लेकिन तकदीर का फैसला कुछ और था।"

"एक दिन, जब मैं अपने नन्हे बेटे के साथ काम से लौट रही थी, अचानक तूफानी आंधी चली और एक पेड़ मेरे लाल पर गिर पड़ा। उसकी मासूम आँख बर्बाद हो गई। उस वक्त मेरा कलेजा चीर गया। मैंने सोचा कि जब मेरा बेटा बड़ा होगा, तो लोग उसे कान्हा कहकर ताना देंगे। मैं यह जल्लत बर्दाश्त नहीं कर सकती। मैंने दौड़कर उसे डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने कहा कि आँख की रोशनी हमेशा के लिए जा चुकी है। लेकिन अगर पैसे हों तो नई आँख लग सकती है। मैंने कांपते होठों से कहा, 'डॉक्टर साहब, मेरे पास दो आँखें हैं। एक निकाल कर मेरे बेटे को लगा दीजिए। मैं अंधेरी जिंदगी गुजार लूंगी।'"

"डॉक्टर ने कहा, 'आप पहले ही बहुत कमजोर हैं। एक आँख निकालना आपके लिए जानलेवा साबित हो सकता है।' लेकिन माँ का दिल किसी तर्क को नहीं मानता। मैंने जिद की, गिड़गिड़ाई और कहा, 'डॉक्टर साहब, मेरी जान ले लीजिए। लेकिन मेरे बेटे की आँख लौटा दीजिए।' अंततः डॉक्टर झुक गया। मेरी आँख निकाल दी गई और मेरे बेटे को नई रोशनी मिल गई।"...
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जब वह दो साल बाद विदेश से लौटा तो उसकी पत्नी ट्रेन में भीख मांग रही थी...अजय एक साधारण युवक था, जिसने अपने परिवार के लिए...
29/08/2025

जब वह दो साल बाद विदेश से लौटा तो उसकी पत्नी ट्रेन में भीख मांग रही थी...

अजय एक साधारण युवक था, जिसने अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन की तलाश में विदेश जाने का फैसला किया। वह अपनी पत्नी, ज्योति, और अपने वृद्ध माता-पिता को पीछे छोड़कर सऊदी अरब चला गया। दो साल बाद, जब वह आखिरकार भारत लौट रहा था, तो उसकी आँखों में उम्मीद और खुशी थी। लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी यात्रा उसके जीवन की सबसे कठिन परीक्षा बन जाएगी।

दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद, अजय ने अपने गाँव की ओर जाने वाली ट्रेन में बैठने का निश्चय किया। ट्रेन का इंतजार करते हुए, उसने सोचा कि वह अपने परिवार से मिलकर उन्हें खुशियाँ देगा। लेकिन जैसे ही ट्रेन अपने गंतव्य की ओर बढ़ी, उसने स्टेशन पर कुछ ऐसा देखा जिसने उसके दिल को तोड़ दिया।

वहां उसके माता-पिता और पत्नी, सभी एक कोने में भीख मांग रहे थे। अजय को पहचानने में उन्हें समय लगा, लेकिन जब उनकी आँखें एक-दूसरे से मिलीं, तो भावनाओं का tsunami आ गया। उसकी पत्नी, ज्योति, ने उसे पहचान लिया और उनकी आँखों में आँसू आ गए।

अजय ने अपने माता-पिता से पूछा कि यह सब कैसे हुआ। उन्होंने बताया कि अजय की अनुपस्थिति में उसकी भाभी, जो कि उसके बड़े भाई की पत्नी थी, ने उन्हें धोखा दिया। अजय का भाई, योगेश, और उसकी भाभी ने मिलकर अजय के माता-पिता की संपत्ति और भूमि को अपने नाम लिखवा लिया।

वे उन्हें घर से बाहर निकालकर सड़क पर छोड़ने में कोई संकोच नहीं करते थे। अजय का दिल टूट गया जब उसने सुना कि उसके माता-पिता और पत्नी को इस तरह की दयनीय स्थिति में रहना पड़ा।

ज्योति ने भी अपनी कहानी साझा की। अजय के जाने के बाद, उसे अपने ससुराल में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उसकी भाभी ने उसे भी तंग करना शुरू कर दिया। अंततः, उसने अपने माता-पिता के पास जाने का निर्णय लिया, लेकिन उसके माता-पिता पहले ही इस दुनिया को छोड़ चुके थे।

ज्योति ने अपने जीवन को फिर से संवारने का प्रयास किया, लेकिन उसे हमेशा अपमानित किया गया। वह कभी-कभी घरों में काम करके थोड़ी बहुत कमाई करती थी, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था।...
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पुलिसवालों ने आम लड़की समझ कर लड़की को घसीटा, छेड़खानी की सच्चाई जानकर पैरों तारे जमीन खिसक गईयह कहानी एक साधारण महिला, ...
29/08/2025

पुलिसवालों ने आम लड़की समझ कर लड़की को घसीटा, छेड़खानी की सच्चाई जानकर पैरों तारे जमीन खिसक गई

यह कहानी एक साधारण महिला, प्रिया वर्मा की है, जो एक तेजतर्रार और ईमानदार अधिकारी हैं। प्रिया ने एक सामान्य दिन अपनी सहेली की शादी में जाने का फैसला किया। उन्होंने कोई सरकारी वर्दी नहीं पहनी थी, न ही उनके पास कोई सुरक्षा घेरा था। वह बस एक साधारण जींस और टी-शर्ट में थीं, जो किसी भी आम लड़की की तरह दिख रही थी। उनकी मोटरसाइकिल हवा से बातें कर रही थी और वह शादी में पहुंचने की जल्दी में थीं। लेकिन यह सामान्यता ही उनके लिए एक खतरनाक खेल बन गई।

जैसे ही प्रिया किशनगढ़ शहर के पास पहुंची, उनकी नजर सामने सड़क पर लगे एक पुलिस चेक पोस्ट पर पड़ी। वहां तीन-चार पुलिसकर्मी खड़े थे और उनके बीच इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह अपनी वर्दी में पूरी अकड़ के साथ खड़ा था। उसकी नजर प्रिया पर पड़ी और उसने तुरंत हाथ में लाठी उठाकर उन्हें रोकने का इशारा किया। प्रिया ने बिना किसी बहस के अपनी मोटरसाइकिल सड़क के किनारे लगा दी और शांत खड़ी हो गई।

अर्जुन ने एक रबदार और सख्त आवाज में पूछा, "कहां जा रही हो?" प्रिया ने बहुत ही शांत और मधुर स्वर में जवाब दिया, "एक सहेली की शादी है। वहीं जा रही हूं।" अर्जुन ने उन्हें सिर से पांव तक घूरा। वह 28 साल की एक खूबसूरत महिला थी। अर्जुन हंसते हुए बोला, "अच्छा सहेली की शादी में खाना खाने जा रही हो। लेकिन हेलमेट क्या तुम्हारे बाप ने पहनना था? क्यों नहीं पहना? और यह बाइक भी बहुत तेज चला रही थी। चलो अब चालान कटेगा।"

यह सुनकर प्रिया समझ गई कि उसकी नियत ठीक नहीं है और यह सब एक बहाना है। उन्होंने कहा, "सर, मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा है।" अर्जुन झल्ला कर बोला, "ओ मैडम, हमें कानून मत सिखाओ।" उसने पास खड़े एक कांस्टेबल की तरफ देखा और फिर प्रिया की ओर मुड़कर कहा, "इसे सबक सिखाना होगा।"

अचानक अर्जुन ने अपना हाथ उठाया और प्रिया के गाल पर जोर से एक थप्पड़ मारा। "बहुत सवाल कर रही है। जब पुलिस कुछ कहे तो चुपचाप मान लेना चाहिए," वह गुस्से में बोला। प्रिया का सिर एक पल के लिए घूम गया। लेकिन उन्होंने तुरंत खुद को संभाल लिया। उनकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था। अर्जुन हंसते हुए बोला, "अभी भी इसकी आंखों में घमंड है। ऐसे कितनों को ठीक कर चुका हूं। इसे अच्छी तरह से सबक सिखाना होगा।"

एक कांस्टेबल आगे आया और बोला, "सर, इसे थाने ले चलते हैं। वहीं इसका इलाज होगा। तब समझेगी कि पुलिस से कैसे बात की जाती है।" फिर एक और कांस्टेबल ने प्रिया का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, "चलो, गाड़ी में बैठो।" प्रिया ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और गुस्से में बोली, "हाथ लगाने की कोशिश मत करना वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

इंस्पेक्टर अर्जुन और भड़क गया। उसने एक और कांस्टेबल से कहा, "देखो इसका घमंड।" कांस्टेबल आगे बढ़ा और प्रिया के बाल पकड़ कर खींचने लगा। प्रिया दर्द से करा उठी। फिर भी उन्होंने अब तक अपनी असली पहचान नहीं बताई थी। वह देखना चाहती थी कि यह लोग कितनी नीचता तक जा सकते हैं।....
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Jab Inspector Ne IPS madam ko Aam ladki Samajh Kar thappad maar Diya Fir Inspector ke sath...उस दिन की सुबह बहुत ख़ास थी...
28/08/2025

Jab Inspector Ne IPS madam ko Aam ladki Samajh Kar thappad maar Diya Fir Inspector ke sath...
उस दिन की सुबह बहुत ख़ास थी। दीपिका ने अपनी मां ललिता देवी से वादा किया था कि वह उन्हें एक बड़े रेस्तरां में खाना खिलाने ले जाएगी। मां ने बरसों से यह ख्वाहिश दिल में दबाकर रखी थी। बेटी जब आईपीएस बन गई, तब भी वह मां-बेटी का रिश्ता उतना ही सरल और भावुक रहा। वे दोनों ओला-ऑटो में बैठीं और साथ में सब इंस्पेक्टर आदित्य सिंह भी था। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह सफर एक बड़े तूफ़ान की शुरुआत बनने वाला है।

ऑटो कुछ ही दूरी पर रुका, और आदित्य सिंह बिना किराया दिए उतरने लगा। जब ड्राइवर ने पैसे मांगे, तो वह बिफर पड़ा—
“तू जानता नहीं मैं पुलिस वाला हूं? मुझसे भी पैसे लेगा?”

यह कहकर उसने ऑटो चालक को थप्पड़ जड़ दिया।

मां-बेटी दोनों हक्का-बक्का रह गईं। दीपिका ने तुरंत आवाज उठाई,
“सर, चाहे आप पुलिस वाले हों या कोई बड़े अधिकारी, इस गरीब का हक मत मारिए। यही उसकी रोज़ी-रोटी है।”

लेकिन आदित्य सिंह का घमंड और बढ़ गया। उसने गुर्राते हुए कहा,
“चुप रह! वरना तुझे भी थप्पड़ मारूंगा। अभी चाहूं तो जेल में डलवा दूं।”

दीपिका ने संयम रखा। वह अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहती थी। लेकिन जब आदित्य सिंह ने सचमुच उसे थप्पड़ मार दिया, तो उसके दिल में आग जल उठी। उसने तय कर लिया था—अब इस भ्रष्ट व्यवस्था को आईना दिखाना ही होगा।

थाने का सच

अगले दिन दीपिका ने लाल रंग का साधारण सलवार-सूट पहना और एक आम लड़की की तरह थाने पहुंच गई। सामने बैठे इंस्पेक्टर रितेश वर्मा ने उसकी बात सुने बिना ही कहा—
“एफआईआर लिखवानी है तो 2000 रुपये लगेंगे। नहीं हैं तो निकल जा यहां से।”

दीपिका का खून खौल उठा। उसने सख्त लहजे में कहा—
“रिपोर्ट लिखवाना जनता का अधिकार है, रिश्वत लेना अपराध है।”

लेकिन रितेश वर्मा ने उसका मज़ाक उड़ाया।
“तू दिखती तो भिखारी या नौकरानी जैसी है। ज्यादा बकवास मत कर वरना धक्के मारकर बाहर फेंक दूंगा।”

दीपिका ने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और रिकॉर्डिंग चालू कर दी। अब उसके पास सबूत था। जैसे ही रितेश ने दो सिपाहियों को आदेश दिया कि लड़की को बाहर निकालो, दीपिका ने अपनी जेब से आईपीएस आईडी कार्ड निकाला और उसके हाथ पर दे मारा।
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ढाबे वाले ने फौजियों से नहीं लिए खाने के पैसे, कुछ महीने बाद जब सेना का ट्रक दुबारा आया तो फिर जोपठानकोट से जम्मू जाने व...
28/08/2025

ढाबे वाले ने फौजियों से नहीं लिए खाने के पैसे, कुछ महीने बाद जब सेना का ट्रक दुबारा आया तो फिर जो

पठानकोट से जम्मू जाने वाला हाईवे। पहाड़ों की तलहटी में खड़ा एक टूटा-फूटा ढाबा — शेर-ए-पंजाब फौजी ढाबा।
तीन बांस की खंभों पर टिकी टीन की छत, धुएँ से काली पड़ी रसोई और कुछ पुरानी लकड़ी की बेंचें। मगर इस ढाबे की मिट्टी में घर जैसी महक थी।

यह ढाबा चलाते थे 70 साल के सरदार बलवंत सिंह। लंबी सफेद दाढ़ी, सिर पर नीली पगड़ी और चेहरे पर गहरी झुर्रियाँ। मगर आँखों में चमक आज भी जवानों जैसी थी।
बलवंत सिंह का सपना था कि वह कभी फौज में भर्ती होंगे। मगर परिवार की जिम्मेदारियों ने उनकी राह रोक ली। सपनों की विरासत उनके बेटे कैप्टन विक्रम सिंह ने पूरी की।

लेकिन चार साल पहले कश्मीर की घाटी में आतंकियों से मुठभेड़ में कैप्टन विक्रम शहीद हो गए। उनके साथ ही विक्रम की पत्नी भी चल बसी। पीछे बची उनकी नन्ही बेटी प्रिया, जो उस वक्त सिर्फ पाँच साल की थी।
अब बलवंत सिंह की दुनिया बस उनकी पोती थी। वही उनकी साँस थी, वही जीने का मकसद।

पहला मिलन: भूखे फौजी और बूढ़ा बाप

अगस्त का उमस भरा दिन था। दोपहर के वक्त ढाबा लगभग खाली था। बलवंत सिंह चूल्हे पर रोटियाँ सेक रहे थे और प्रिया कोने में बैठकर होमवर्क कर रही थी।
तभी सड़क पर धूल का गुबार उठा। सेना के तीन ट्रक आकर ढाबे के सामने रुके। करीब 20-25 जवान थके-हारे उतरे। उनकी आँखों में अनुशासन की चमक थी, मगर चेहरे पर भूख और थकान साफ झलक रही थी।

बलवंत सिंह का हाथ जैसे रोटियाँ सेकते-सेकते रुक गया। दिल में कई भावनाएँ उमड़ पड़ीं — बेटे की याद, वर्दी के लिए सम्मान और उन जवानों के लिए पिता जैसी ममता।

"आओ पुत्तर, आओ… जी आया नू," उन्होंने पुकारा।

जवान बैठ गए। उनके लीडर, रबदार मूँछों वाले सूबेदार मेजर गुरमीत सिंह बोले,
“बाऊजी, खाना मिलेगा? जवान बहुत भूखे हैं, सरहद पर जा रहे हैं।”

“सरहद?” यह शब्द सुनते ही बूढ़े का सीना चौड़ा हो गया।
“अरे क्यों नहीं पुत्तर, आज तो मेरे ढाबे की किस्मत खुल गई!”

इसके बाद बूढ़ा मानो जवान बन गया। अपनी थकान भूलकर उसने ताजे आटे की रोटियाँ बेलनी शुरू कीं। दाल में घर के बने मक्खन का तड़का लगाया, आलू-गोभी की सब्ज़ी बनाई और प्याज-हरी मिर्च का सलाद काटा।
प्रिया दौड़-दौड़कर सबको पानी पिलाती रही। उसकी नन्ही आँखों में भी वही गर्व झलक रहा था।

जवानों ने कई दिनों बाद इतना स्वादिष्ट खाना खाया। सबकी आँखें तृप्त हो उठीं।
खाना खत्म हुआ तो सूबेदार गुरमीत आगे बढ़े —
“बाऊजी, कितना हुआ?”

बलवंत सिंह की आँखें भर आईं।
“नहीं पुत्तर, पैसे नहीं। तुम लोग इस देश की रखवाली के लिए जान हथेली पर रखते हो, और मैं तुमसे रोटी का दाम लूँ? यह तो पाप होगा।”...
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DM की माँ जब पैसा निकालने बैंक गई तो भिखारी समझकर स्टाप ने लात मारा,फिर जो हुआ? BlackHour Storiesगर्मी का मौसम था। धूप इ...
28/08/2025

DM की माँ जब पैसा निकालने बैंक गई तो भिखारी समझकर स्टाप ने लात मारा,फिर जो हुआ? BlackHour Stories

गर्मी का मौसम था। धूप इतनी तेज़ कि जैसे धरती को जला दे। शहर के बीचोंबीच खड़ा वह बड़ा सरकारी बैंक, बाहर लाइन में खड़े लोगों की भीड़ और अंदर व्यस्त कर्मचारी। उस भीड़ में धीरे-धीरे कदम रखती एक साधारण-सी बुज़ुर्ग महिला दाखिल हुईं।

फटी-पुरानी साड़ी, पसीने से भीगा चेहरा और कांपते हाथ। किसी ने ध्यान नहीं दिया। सबने सोचा—“कोई गरीब औरत होगी, शायद पेंशन लेने आई है।”

लेकिन किसी को क्या पता था, यह वही महिला हैं जिनकी बेटी इस जिले की सबसे बड़ी अफसर—डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट नुसरत हैं।

अपमान की पहली चोट

महिला सीधा काउंटर पर गईं। वहां बैठी सुरक्षा गार्ड कल्पना से बोलीं,

“बेटी, मुझे पैसे निकालने हैं। यह रहा चेक।”

कल्पना ने बिना देखे ही उन्हें घूरा और झिड़ककर बोली,
“तेरी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की? यह बैंक तेरे जैसे भिखारियों के लिए नहीं है। यहां बड़े-बड़े लोगों के अकाउंट हैं। निकल जा वरना धक्का मारकर बाहर फेंक दूंगी।”

महिला ने विनम्र स्वर में कहा,
“बेटी, पहले चेक तो देख लो। मुझे पाँच लाख निकालने हैं।”

इतना सुनते ही कल्पना आग-बबूला हो गई।
“पाँच लाख? तूने कभी इतने पैसे सपने में भी देखे हैं? जा यहां से!”

उसी समय बैंक मैनेजर बाहर निकला। उसने बिना पूछे ही उस बुज़ुर्ग महिला को ज़ोरदार थप्पड़ मारा। महिला लड़खड़ाकर गिर पड़ी। फिर आदेश दिया,
“घसीटकर बाहर निकालो इस औरत को।”

भीड़ तमाशा देखती रही, किसी ने आवाज़ नहीं उठाई। और वह महिला अपमानित होकर बैंक से बाहर धकेल दी गई।

एक माँ की पीड़ा, एक बेटी की आग

घर लौटते ही बुज़ुर्ग महिला रोते-रोते अपनी बेटी डीएम नुसरत को फोन करती हैं। सब कुछ सुनाती हैं—कैसे अपमानित किया गया, कैसे धक्का देकर बाहर निकाला गया।

नुसरत फोन पर खामोश सुनती रही। लेकिन उसका दिल अंदर तक कांप गया।

“माँ, कल मैं खुद चलूंगी तुम्हारे साथ उसी बैंक। देखती हूँ तुम्हारी बेटी का अपमान कौन करता है।”....
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महिला वकील ने की 14" वर्ष के लड़के से शादी, आख़िर क्यों ? फिर अगले ही दिन जो हुआगर्मियों की तपती दोपहर थी। अदालत के विशा...
28/08/2025

महिला वकील ने की 14" वर्ष के लड़के से शादी, आख़िर क्यों ? फिर अगले ही दिन जो हुआ

गर्मियों की तपती दोपहर थी। अदालत के विशाल हॉल में वकीलों और क्लाइंट्स की भीड़ लगी थी। काले गाउन और फाइलों के बीच बहस की गूंज पूरे माहौल में तैर रही थी। लेकिन उसी भीड़ में एक चेहरा ऐसा भी था जो सबसे अलग दिखाई देता था—27 वर्षीय महिला वकील संध्या मिश्रा।

कम उम्र में ही उसने अपनी काबिलियत से ऐसा नाम कमा लिया था कि लोग कहते थे, “यह लड़की केस जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।” लेकिन हकीकत यह थी कि संध्या सच और न्याय के लिए लड़ती थी। अपने बचपन में उसने माता-पिता को खो दिया था, रिश्तेदारों के बीच पली-बढ़ी थी और अनाथ होने का दर्द जी-भरकर सहा था। शायद इसी वजह से उसने कानून को अपना हथियार चुना।

उस दिन अदालत में एक 14 साल का लड़का, अरुण, चोरी के आरोप में पेश हुआ। पुलिस कह रही थी कि वह जन्मजात चोर है। लेकिन जब संध्या की नजर उस दुबले-पतले, डरी हुई आंखों वाले मासूम पर पड़ी, तो उसके दिल ने कहा—“यह बच्चा चोर नहीं हो सकता।”

संध्या ने उसकी पैरवी करने का फैसला किया। अदालत में उसने दलील दी, “अगर इस बच्चे ने रोटी उठाई भी है, तो यह अपराध नहीं, मजबूरी है।” उसकी बातों ने जज को सोचने पर मजबूर कर दिया और आखिरकार अरुण बरी हो गया।

बाहर निकलते ही अरुण ने संध्या के पैर पकड़ लिए—
“दीदी, अगर आप ना होतीं तो आज मैं जेल में होता।”

उसके आंसुओं में वही दर्द झलक रहा था जो कभी संध्या ने भी जिया था। तभी उसने तय किया कि अरुण को वह किसी संस्था में नहीं, अपने घर लेकर जाएगी।

नया रिश्ता, नई मुश्किलें

शुरुआत में अरुण बहुत डरता था। उसे लगता था कि यहां भी उसे डांटा या मारा जाएगा। लेकिन संध्या ने उसे मां जैसा प्यार दिया। स्कूल में दाखिला कराया, अच्छे कपड़े दिलाए और सबसे जरूरी—उसके दिल से अकेलेपन का डर मिटाया।

धीरे-धीरे अरुण बदलने लगा। उसकी आंखों में आत्मविश्वास झलकने लगा। मोहल्ले वाले हैरान थे—“जो लड़का चोर कहलाता था, आज वकील के घर पलकर पढ़ाई में अच्छा कर रहा है।”

लेकिन समाज की जुबान कभी नहीं रुकती। कानाफूसियां शुरू हो गईं—
“एक जवान, अविवाहित औरत घर में चौदह साल का लड़का रख रही है… आगे चलकर क्या होगा?”

संध्या इन तानों को नजरअंदाज करने की कोशिश करती, लेकिन अंदर ही अंदर वह भी परेशान रहने लगी। सच यह था कि अरुण की मासूमियत उसे भाने लगी थी। वहीं अरुण भी उसे सिर्फ दीदी नहीं मानता था। उसके दिल में एक अजीब-सा आकर्षण जन्म ले चुका था।....
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तलाकशुदा पत्नी चौराहे पर भीख मांग रही थी... फार्च्यूनर कार से जा रहे पति ने जब देखा... फिर जो हुआ...कानपुर शहर का बालकृष...
28/08/2025

तलाकशुदा पत्नी चौराहे पर भीख मांग रही थी... फार्च्यूनर कार से जा रहे पति ने जब देखा... फिर जो हुआ...

कानपुर शहर का बालकृष्ण चौराहा हमेशा की तरह भीड़भाड़ से भरा था। ट्रैफिक जाम, हॉर्न की आवाज़ें और धूल-मिट्टी से घिरा वह इलाका रोज़ाना हजारों लोगों को रोकता और आगे बढ़ाता था। लेकिन उस दिन की शाम ने न सिर्फ़ चौराहे पर फंसे लोगों को बल्कि पूरे शहर को हिला देने वाली एक सच्ची घटना को जन्म दिया।

एक काली Fortuner कार जाम में फंसी खड़ी थी। उसके अंदर बैठे थे अशोक शर्मा, कानपुर के एक जाने-माने कारोबारी। दिल के बेहद दयालु और संवेदनशील इंसान। वे दिल्ली किसी ज़रूरी काम से जा रहे थे, लेकिन ट्रैफिक ने उन्हें वहीं रोक दिया।

खिड़की के बाहर से कुछ औरतें, मैले-कुचैले कपड़ों में, हाथ फैलाए उनकी ओर बढ़ीं। अशोक ने पर्स से नोट निकाले और उन्हें मदद के तौर पर पैसे दे दिए। तभी अचानक, उनकी कार की खिड़की पर किसी ने ज़ोर से दस्तक दी।

“बाबूजी, मुझे तो आपने कुछ दिया ही नहीं…”

अशोक ने खिड़की नीचे की। सामने खड़ी महिला की आँखें खाली थीं, चेहरा थका हुआ और शरीर पर गंदगी से लथपथ कपड़े। लेकिन जैसे ही अशोक ने उसकी शक्ल गौर से देखी—उनका दिल दहल गया।

वह कोई और नहीं, बल्कि उनकी तलाकशुदा पत्नी पूनम थी।

तीन साल पहले टूटा रिश्ता

अशोक और पूनम की शादी बड़े धूमधाम से हुई थी। पूनम अच्छे घराने से आई थी। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कुछ ही सालों में हालात बदल गए। पूनम के घरवालों—खासतौर पर उसके जीजा और भाई—की लालच ने उसकी ज़िंदगी उलट दी।

उन्होंने पूनम को समझाया कि अशोक की संपत्ति अपार है, वह इकलौता बेटा है, इसलिए तलाक लेकर भारी मुआवज़ा लो।

नासमझ पूनम, मायके वालों के दबाव में, कोर्ट में अशोक पर ₹40 लाख का हर्ज़ाना ठोक देती है। अशोक, टूटे दिल से, वह रकम चुका देते हैं। और दोनों का रिश्ता कानूनी और सामाजिक रूप से खत्म हो जाता है।

लेकिन तलाक के बाद पूनम की ज़िंदगी बेहतर नहीं हुई—बल्कि रसातल में चली गई। मायके वालों ने उसका पैसा हड़प लिया। भाई ने उसे घर से निकाल दिया। जीजा ने भी पल्ला झाड़ लिया। और आखिरकार, बेघर, बेसहारा पूनम सड़क पर आ गई। मजबूरी ने उसे भिखारिन बना दिया।

चौराहे पर टकराव

जब उस दिन चौराहे पर अशोक ने अपनी पूर्व पत्नी को देखा, उनका दिल बैठ गया। वह वही पूनम थी, जो कभी उनके घर की बहू थी, जिसकी मुस्कान पर पूरा घर खिल उठता था।

“पूनम…! तुम यहाँ इस हाल में?” – अशोक की आवाज़ भर्रा गई।

पूनम भी पहचान गई। आँसू बहते हुए बोली –
“हाँ अशोक… किस्मत ने मुझे यहीं ला खड़ा किया। जो घर मैंने खुद अपने हाथों से उजाड़ा, आज उसी के टुकड़े बिखेरते-बिखेरते मैं यहाँ तक पहुँच गई।”

अशोक ने उसे अपनी कार में बैठाया। आसपास के लोग हैरान थे कि एक करोड़पति कारोबारी, एक भिखारिन को क्यों गाड़ी में बिठा रहा है। भीड़ ने शक भी किया कि कहीं वह औरत को जबरन तो नहीं ले जा रहा। लेकिन पूनम ने सबके सामने कहा—
“ये मेरे पति हैं… मेरा कोई अपहरण नहीं हो रहा। मैं खुद इनके साथ जा रही हूँ।”...
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👉 IPS नेहा शर्मा का थप्पड़, जिसने मंत्री और पूरे सिस्टम को हिला दिया” देखिए पूरी कहानीसुबह का सूरज अभी पूरी तरह से उगा भ...
28/08/2025

👉 IPS नेहा शर्मा का थप्पड़, जिसने मंत्री और पूरे सिस्टम को हिला दिया” देखिए पूरी कहानी

सुबह का सूरज अभी पूरी तरह से उगा भी नहीं था, लेकिन शहर का मंजर किसी जंग के मैदान से कम नहीं लग रहा था। सड़कों पर पुलिस की गाड़ियाँ, हर मोड़ पर बैरिकेड, और चमचमाती वीआईपी कारों का काफिला। लाउडस्पीकर पर उद्घोष गूंज रहा था –
“माननीय मंत्री जयंत चौहान अभी पधार रहे हैं।”

हर चौराहे पर खाकी वर्दी वाले जवान तैनात थे। लेकिन उन्हीं के बीच एक चेहरा सबसे अलग दिखता था। सीधी पीठ, तेज निगाहें और चेहरे पर अडिग सन्नाटा। वो थीं – आईपीएस अधिकारी नेहा शर्मा।

सुबह-सुबह उन्हें आदेश मिला था कि आज उन्हें मंत्री जयंत चौहान की सुरक्षा में रहना है। बाहर से शांत दिखने वाली नेहा के दिल में मगर एक तूफान था। यही नाम, यही मंत्री – वही शख्स – जिसने उसके पुलिस करियर की सबसे काली याद को जन्म दिया था।

सालों पहले शहर की एक मासूम लड़की के साथ हुई दरिंदगी का केस… जिसे दबा दिया गया। सबूत गायब, गवाह खरीदे गए, और ऊपर से आदेश आया – “फाइल बंद करो।”
नेहा उस समय नई थी, सिस्टम की ताकत समझ रही थी, लेकिन भूल नहीं पाई थी।

आज, उसी मंत्री के पीछे खड़ी होकर जब वह उसे महिलाओं की सुरक्षा और पारदर्शिता पर भाषण देते सुन रही थी, तो हर शब्द उसके कानों में जहर की तरह उतर रहा था।

और तभी – उसकी जेब में रखा फोन वाइब्रेट हुआ।
मैसेज था – “गवाह मिल गया है। कल सुबह गाँव के बाहर मिल सकते हैं।”

नेहा की उंगलियाँ कस गईं। यह वही गवाह था, जो सालों से गायब था। केस की चाबी।

अगली सुबह।
नेहा अपने दो जवानों के साथ गाँव पहुँची। लेकिन वहाँ सिर्फ राख थी। गवाह का घर आधा जला पड़ा था। पड़ोसी ने फुसफुसाकर बताया –
“रात को जीप में कुछ लोग आए थे, उसे उठा ले गए। और धमकी दी – अगर किसी ने बताया तो अंजाम बुरा होगा।”

नेहा ने दाँत भींच लिए।
साफ था – जयंत चौहान ने चाल चल दी थी।

शाम को राजधानी के बड़े हॉल में प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। कैमरों की चमक, मीडिया का शोर, और मंच पर वही घमंडी मुस्कान लिए मंत्री जयंत चौहान।

और तभी – भीड़ के बीच से एक तेज कदमों की आहट आई।
नेहा मंच तक पहुँची। और उसके हाथ ने वह कर दिया, जिसकी गूंज पूरे देश ने सुनी।..
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