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लघुकथा- बाज सी उड़ान   ***********************बारहवीं की परीक्षा में अच्छे नंबर्स से पास होने के बाद मैंने बेटे को बधाई द...
08/07/2025

लघुकथा- बाज सी उड़ान
***********************
बारहवीं की परीक्षा में अच्छे नंबर्स से पास होने के बाद मैंने बेटे को बधाई दी और कहा,
"बेटे ,मेरी इच्छा है कि तुम आईएएस की तैयारी करो और प्रशासनिक सेवा में अपना योगदान देकर देश की सेवा करो। इसलिए बी ए में एडमिशन लो जो कि आसान पढ़ाई होगी और स्नातक की डिग्री मिल जाएगी और तुम्हारी आई ऐ एस की पढ़ाई भी निर्बाध रूर्प हो सकेगी।" बेटे ने चुपचाप सिर हिलाया और बोला, "पापा जी इस विषय पर हम शाम को बात करेंगे। अभी दोस्तों के हालचाल जान लूँ।" हमारा बाप-बेटे का रिश्ता था पर व्यवहार में हम दोस्तों जैसा व्यवहार करते थे।
शाम को बेटे ने कहा," पापा जी आपने अपनी इच्छा तो बता दी अब क्या मेरी इच्छा भी
जानना चाहेंगे।"मैं बोला,
"नेकी और पूछ-पूछ,तुम अपनी इच्छा जरूर बताओ। मैं तो दोपहर से ही इन्तजार कर रहा था कि कब तुमसे बात हो। वो बोला,
"पापा जी मैंने क्रिकेटर बनने का फैसला किया है। अभी मैं सिर्फ सत्रह वर्षों का हूँ। दो तीन वर्ष तैयारी कर सकता हूँ।" उसके बाद पढ़ाई करने के लिए तो जिंदगी पड़ी है। हाँ मैं बी ए में एडमिशन ले लूंगा। अभी मुझे पास के शहर में क्रिकेट अकादमी में एडमिशन दिला दें। भारत की नेशनल टीम के अलवा दस आईपीएल की टीमें और ढेर सारी रणजी ट्रॉफी की टीमें हैं। कहीं न कहीं नंबर लग ही जाएगा। पापाजी मेरा सपना है कि मैं भारत की नेशनल टीम का सदस्य बनूं और देश का नाम रौशन करूं।"
बेटे की आँखों की चमक और उसकी अदम्य इच्छा देखकर मैं गद -गद था। मुझे अपने पिताजी की याद आ गई। हममें तो अपने पिताजी से इतनी बातें करने की हिम्मत ही नहीं थी। उन्होंने जो कह दिया वो ब्रह्मवाक्य बन जाता था। जिसे टालने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी। मैं तो अपने बेटे को तोता-कबूतर के सामान पिंजरे में कैद करने पर उतारू था पर बेटे को तो "बाज सी उड़ान" भरनी थी।मैंने उसे हरी झंडी देदी और वो निहाल होकर मुझसे लिपट गया। मेरा मानना है कि किसी चीज को पाने की सिर्फ अदम्य इच्छा कार्य नहीं करती उसके लिए चाहिए जूनून और बेटे की आँखों में मैंने वो जूनून देखा है। लगता है वो जरूर कुछ करेगा।
श्याम आठले (ग्वालियर/बैंगलुरु )
मौलिक

08/07/2025

उम्मीद कभी हमें छोड़कर नही जाती, जल्दबाजी में हम लोग
ही उसे छोड़कर चले जाते हैं।

अरे भाई रुक्मणि कहां हो ?? मैं कब से चाय और पकोडों का इंतजार कर रहा हुं मगर तुम अब तक चाय और पकोडें लेकर आई नहीं , देखो ...
08/07/2025

अरे भाई रुक्मणि कहां हो ?? मैं कब से चाय और पकोडों का इंतजार कर रहा हुं मगर तुम अब तक चाय और पकोडें लेकर आई नहीं , देखो तो बाहर बारीश आकर थम भी चुकी हैं मगर तुम अब तक रसोई से बाहर नहीं आई , प्रकाश जी बालकनी में बैठे बैठे बोले !!

रुक्मणि जी जो कि पकोडे तल चुकी थी , उन्हें प्लेट में डालते हुए बोली आप भी हद करते हैं , मैं अब पहले की तरह जवान तो रही नहीं कि आपने हुक्म दिया और तुरंत आपका हुक्म पुरा कर दुं , अब उम्र के साथ काम करने की क्षमता भी तो ढल चुकी हैं मेरी , अब हर काम में समय लगता हैं मुझे , खैर एक तरफ चाय बन रही हैं बस दोनों साथ में लेकर आ रही हुं !! थोड़ी देर में रुक्मणि जी चाय और पकोडे लाकर बालकनी की मेज पर रख देती हैं !!

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नन्ही शबरीघर में आज पूजा है। माँ जी ने प्रसाद बनाने का जिम्मा मुझे सौंप दिया। खुद की तबियत ठीक नहीं है। हाथ नहीं लगा सकत...
08/07/2025

नन्ही शबरी
घर में आज पूजा है। माँ जी ने प्रसाद बनाने का जिम्मा मुझे सौंप दिया। खुद की तबियत ठीक नहीं है। हाथ नहीं लगा सकतीं इसलिए। जुटी हुई हैं कामवाली दीदी के साथ, लोगों के आने से पहले इधर सजाने उधर समेटने में। और ये कामवाली दीदी भी ना......इतना काम फैला है आज और ये अपनी तीन साल की गुड्डो को साथ ले आईं। प्यारी है पर मुझे गुड्डो की चीजों से छेड़खानी, धरा-उठाई कतई पसंद नहीं। माँ जी को ही भाता है ये सब। इसके आने पर बड़ी खुश-खुश रहतीं हैं।
इधर मेरा दिल बैठा जा रहा था पहली बार प्रसाद जो बनाने जा रही थी। पंचामृत तो जैसे-तैसे बना लिया था अब बारी थी पंजीरी बनाने की। इधर आटा भूनना शुरु ही किया था कि उधर से माँ जी ने सुनाना शुरु कर दिया। "देखो, आटा गुलाबी सा रखना, जला मत डालना। मखाने भून कर ढंग से कूट लेना और हाँ ........शक्कर जरा ठीक डालना, कंजूसी मत करना।"
जैसा कहा वैसा कर दिया। "माँ बन गई पंजीरी।" मैनें किला फ़तह करने का बिगुल बजा दिया।
"राम ही जाने, क्या मैनें बताया क्या इसने बनाया" मेरे किले को माँ जी ने एक फूँक में उड़ा दिया। माँ जी को तो जैसे पक्का पता था कि मैनें कुछ ना कुछ गड़बड़ की ही होगी। मुँह लटक गया मेरा।
"फीता-फीता"........रसोई में आलू प्याज़ से उठा-पटक कर रही गुड्डो के मुँह से ये सुनकर मैं ठिठक गयी। माथा पीट लिया अपना। गुस्सा भी आ रहा था मुझे और हँसी भी। वो अपना काम कर चुकी थी। उसकी नन्ही-नन्ही उँगलियों पर पंजीरी लगी देख कर समझ गई 'फीता-फीता' का मतलब। परात में रखी पंजीरी में ऊपर से और शक्कर डाल कर मिला दी।
पूजा शुरु हुई। भोग के लिये रसोई से पंजीरी ले जाते हुए मेरी नज़र भगवान जी की मन्द-मन्द मुस्कुराती हुई तस्वीर पर पड़ी। मैं भी मुस्कुरा दी। आज दूसरी बार भगवान जी जूठा जो खाने जा रहे थे।
मीनाक्षी चौहान

प्रकाश जी बेटे का यह रवैया देख गुस्सा हो चुके थे वे बोले बेटा , हम तुझसे दवाई या नई चीजों का एक रुपया नहीं लेते , सिर्फ ...
08/07/2025

प्रकाश जी बेटे का यह रवैया देख गुस्सा हो चुके थे वे बोले बेटा , हम तुझसे दवाई या नई चीजों का एक रुपया नहीं लेते , सिर्फ साथ चलने की उम्मीद करते हैं मगर तुम्हारे पास सिर्फ हमारे लिए समय नही हैं बाकी सभी के लिए तुम्हारे पास समय हैं !!

रोशन की पत्नी सौम्या यह सुनकर चिढ़ गई और चिल्लाकर बोली पापाजी जबान संभालकर बात करिए , आप जिसे बाकी सब कह रहे हैं वह मायके वाले हैं मेरे और मैं अपने मायके वालों के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकती !!

रुक्मणि जी बात को संभालते हुए बोली बेटा , इनका कहने का यह मतलब नहीं था , तुम लोग जाओ , मैं और तुम्हारे पापा डॉक्टर के पास अकेले चले जाएंगे !!

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08/07/2025

ढल जाती है हर चीज अपने वक्त पर
बस एक व्यवहार और लगाव ही है जो कभी बूढ़ा नही होता।

पाठकों हेतु चंद लफ्ज, आदरणीय गीता खत्री जी को मैं अंजू ओझा सादर सम्मान और आभार व्यक्त करती हूँ,आप सक्रिय व नियमित पाठिका...
08/07/2025

पाठकों हेतु चंद लफ्ज,
आदरणीय गीता खत्री जी को मैं अंजू ओझा सादर सम्मान और आभार व्यक्त करती हूँ,आप सक्रिय व नियमित पाठिका हैं विनम्र भी।
सादर प्रणाम और आभार।
आपकी सक्रियता साथ सहभागिता अनुपम है।
हमारे अन्य सभी पाठकों की तहेदिल से शुक्रगुजार हूं कि आप सब मेरी स्वरचित मौलिक कहानी पढ़कर सकारात्मक टिप्पणी से लबरेज करते हैं।
आपके लाइक / टिप्पणी ही सक्रिय सहभागिता का आगाज है , आपका साथ अनमोल है , आप सबका संगठन ही हमें प्ररित करता है ।
लेखक के सर का ताज है पाठक
मनोबल का साज है
हमारे खुशी का राज है
आपके वगैर नासाज हैं हम !
समस्त अजीज सखागण को सादर धन्यवाद व सहृदय प्यार ।
✍😊अंजूओझा

दूसरे दिन रोशन बोला मां पिताजी बहुत दिन हो गए आप दोनों के साथ वक्त बिताए , चलिए चारों कल कहीं घूम आते हैं !!रुक्मणिजी और...
08/07/2025

दूसरे दिन रोशन बोला मां पिताजी बहुत दिन हो गए आप दोनों के साथ वक्त बिताए , चलिए चारों कल कहीं घूम आते हैं !!

रुक्मणिजी और प्रकाश जी ने भी हामी भर दी मगर प्रकाश जी बोले बेटा कल तो इतवार भी नहीं हैं , तुम्हें कल समय मिल जाएगा ??

रोशन बोला मां पापा मुझे माफ करिएगा जो मैं इतने समय से आप लोगों को समय नहीं दे पा रहा था मगर अब मैं आप लोगों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहता हुं , जाने हम कितने दिन साथ हैं ओर !!

मैं नहीं चाहता कि कल के दिन मुझे अपनी गलती पर पछतावा हो !!

यह सुन रुक्मणि जी की आंखों के कोर गीले हो गए और वह बोली जुग जुग जिओ बेटा , मैं जानती थी तु मेरा अच्छा बेटा हैं !! मैं हमेशा तेरे पापा से कहा करती थी कि हमारा बेटा वैसा नही हैं जैसा आप सोचते हैं !!
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कहानी का शीर्षक -क्यों मैंने अपने हर सुख की उपेक्षा की .."ये तो खुशी की बात है, रिंकू की शादी तय हो गई, नंदिता जी अपने प...
08/07/2025

कहानी का शीर्षक -क्यों मैंने अपने हर सुख की उपेक्षा की ..
"ये तो खुशी की बात है, रिंकू की शादी तय हो गई, नंदिता जी अपने पति कमल जी से कह रही थी, छोटी तो कब से बहू ढूंढ रही थी, पर इतनी जल्दी पन्द्रह दिनों में ही शादी कर पायेंगी?"
"क्यों ना कर पायेगी ? तुम्हारी बहन जो है, तुम्हारे सारे गुण उसके अंदर है, देखना हमारी साली सब कर लेगी, अब सब काम छोडो और शादी में जाने की तैयारी कर लो।" कमल जी हंसते हुए बोले।
नंदिता रसोई में गई और गैस पर चाय चढ़ा दी, तभी उनकी बहू नीतू आई, "मम्मी जी मै आ तो रही थी, और उसने चाय का काम संभाल लिया।
"बहू, तुम्हारे देवर रिंकू की शादी तय हो गई है, पन्द्रह दिनों बाद शादी है, तुम्हें जो भी तैयारी करनी है, आराम से कर लेना, और हां शादी में पहननें के लिए अच्छे से कपड़े और जेवर रख लेना, तुम अपनी शादी के बाद पहली बार किसी शादी में जा रही हो।"
ये सुनकर नीतू खुश हो गई, पहली बार वो अपनी मौसी सास के यहां जा रही है, वहां ननिहाल पक्ष के और लोगों से भी मिलना हो जायेगा।
नियत समय पर नंदिता जी, अपने पति, बेटे नीरज और बहू नीतू के साथ शादी में पहुंच गई, शादी की सभी रस्में हो रही थी, तभी नीतू की नजर दूल्हन को भेजे जाने वाले लहंगे पर पड़ीं, वाह! मौसी जी आपने तो बहू के लिए बड़ा ही सुंदर लहंगा चढ़ाया है, काफी महंगा होगा?
इसका काम भी कितना सुन्दर है।
हां, बहू को खुद ही पसंद करने बुलाया था, अब उसे यही पसंद आया तो सोचा शादी तो एक बार होती है, तो बहू की इच्छा पूरी कर दी, अब थोड़ा महंगा जरूर है,मौसीजी ने हंसते हुए कहा।
तभी नीतू की नजर होने वाली बहू के गहनों पर जा ठहरी, मौसीजी गहने तो आपने बड़े भारी चढ़ायें है।
इतने सुंदर गहने है, सारे नये लगते हैं, लेटेस्ट डिजाइन के भी है, बहू के लिए तो आपने बहुत कुछ किया है और नीतू ने शिक़ायती नजरों से अपनी सास नंदिता जी को देखा और अपनी बात पूरी की।
नंदिता जी समझ गई कि नीतू अपनी शादी के सामानों की तुलना होने वाली बहू से कर रही है, पर वो उस वक्त कुछ ना बोली। अच्छे से शादी हो गई और सब घर लौटकर वापस आ गये।
घर आते ही नीतू ने सबसे बात करना बंद कर दिया, नंदिता जी ने पूछा तो वो यही बोली, आपने अपनी बहू के लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया, मेरा तो शादी का लहंगा भी सुंदर नहीं था और जेवर भी आपने सारे ही पुराने चढ़ा दिये, एक भी गहना नया नहीं चढ़ाया, आपने तो मुझे सस्ते में ही अपनी बहू बना लिया है।
आपने तो हर जगह मेरी उपेक्षा की है, मुझे तो अपने होने वाले ससुराल से बहुत सारी अपेक्षाएं थीं, घर की इकलौती बहू बनकर आई थी, पर मेरे गहनों और कपड़ों में आपने बड़ी कंजूसी कर दी। ये सब नंदिता जी सुनती रह गई।
नीतू ऐसी बात नहीं है, हमने अच्छे से अच्छा लहंगा तुम्हें चढ़ाया था, अब शादी को एक साल भी होने जा रहा है और यहां तो थोड़े ही महीनों में फैशन बदल जाता है, और तुम्हें बुलाया तो था लहंगा पसंद करने को, पर तुम्हारी दादी ने मना कर दिया था कि मेरी पोती शादी से पहले घर से बाहर ना जायेगी, आप अपने हिसाब से सब सामान ले लो।
ठीक है, मेरी दादी ने कहा था, पर गहने तो आपने पुराने ही चढ़ा दिये थे, नीतू ने फिर रूआंसी होकर कहा।
बहू गहने पुराने नहीं है, मैंने धीरे-धीरे पैसे जोड़कर बनवाये थे, क्योंकि तेरे ससुर जी की अच्छी नौकरी नहीं थी, तो ज्यादा कभी पैसा रहा नहीं, मेरे गहने तो नीरज की पढ़ाई और करियर बनाने में लग गये थे।
जब नीरज की नौकरी लगी तभी मै पैसे जोड़कर एक-एक करके बहू के लिए गहने बनवाकर रखती चली गई, उनमें से एक भी गहना पुराना नहीं है, सब तुम्हारे लिए नये ही बनवाये है, नंदिता जी ने समझाना चाहा।
हां तो ठीक है, सभी बनवाते हैं, पर डिजाइन तो सुंदर बनवाना चाहिए, मुझे तो एक की भी डिजाइन पसंद नहीं आई, मौसीजी ने देखो कितने लेटेस्ट डिजाइन के बनवाये है, उनकी पसंद आपसे तो बहुत अच्छी है, ये कहकर नीतू अपने कमरे में चली गई। नंदिता जी की आंखें भर आई। बड़े ही जतन से वो अपने इकलौते बेटे नीरज के लिए बहू लाई थी, नीतू सब तरह से काम कर लेती थी, खाना पकाने में भी माहिर थी, बस उसकी तुलना करने की आदत से वो परेशान हो जाया करती थी, कहीं भी जाकर आयेगी या कोई भी घर पर आयेगा तो वो उससे तुलना करने लगती थी, उसकी इसी आदत के कारण घर का माहौल तनावपूर्ण सा रहता था।
नंदिता जी काफी सीधे और सरल स्वभाव की थी, अपने पति कमल जी की कमाई में उन्होंने हर तरह से निभा लिया, कभी भी किसी बात के लिए उलाहना नहीं दिया, उनके घर में चाहें पैसों की कमी रही पर घर में हमेशा एक सूकून भरा, प्यार वाला माहौल रहा है, क्यों कि घर की गृहणी ही जब मन से संतुष्ट थी तो घर में कभी क्लेश नहीं होता था, वो कभी अपनी आर्थिक स्थिति की तुलना अपनी बहनों से नहीं करती थी, उन्होंने और कमल जी ने जीवन का हर लम्हा सूकून से जीया है, लेकिन जब से नीतू बहू बनकर आई है, घर का सुख और शांति ही चली गई है और अब नीतू की तुलना करने की आदत से सभी परेशान हो चुके हैं।
नीतू कभी भी सन्तुष्ट नहीं रहती थी, वो काम अपनी मर्जी से करती थी, अपनी पसंद का कपड़ा चुनती थी, लेकिन जब वो अपने से बेहतर कोई चीज या कपड़ा देख लेती थी तो घर में क्लेश मचा देती थी।
शादी को दो साल हो गये और उसने एक बेटी को जन्म दिया, बेटी का नाम टीया रखा। टीया बड़ी ही प्यारी और चुलबुली थी। एक दिन नीतू ने नीरज से कहा कि, मुझे टीया के पहले जन्मदिन के लिए नई फ्रॉक लेनी है और बिल्कुल वैसी ही लेनी है, जैसी आपके दोस्त की बेटी ने अपने पहले जन्मदिन पर पहनी थी।
ये सुनकर नीरज चौंक गया, नीतू मेरा दोस्त खानदानी अमीर है, और वो फ्रॉक बड़ी महंगी है और ब्रांडेड भी है, वो दस हजार से कम की नहीं होगी, और साल भर की बच्ची के लिए इतना महंगा कपड़ा खरीदकर क्या करेंगे?
साल भर में वो छोटा हो जायेगा, नीरज ने समझाना चाहा।
आपके लिए मेरी खुशियां जरा भी मायने नहीं रखती है, मै क्यूं औरों की तरह खुश नहीं रह सकती हूं, अपनी बेटी को औरों की तरह महंगी फ्रॉक नहीं पहना सकती हूं! नीतू रोने लगी।
नीतू समझा करो ये तुम औरों से क्यों अपनी तुलना करती हो, महंगी फ्रॉक पहनाने से ही तुम्हें खुशियां मिलेगी क्या? हम एक अच्छी सी ड्रेस वैसे भी ले सकती है? और हम बहुत खुश है, तुम खुश भी रह सकती हो, वो सब तुम्हारे हाथ में है, अच्छा घर है, पति है, सास-ससुर भी तुम्हें तंग नहीं करते हैं, जीवन में और क्या चाहिए? पर नीतू समझी नहीं और उसने गुस्से में बेटी का पहला जन्मदिन ही नहीं मनाया, कमल जी और नंदिता जी ने भी उसे बहुत समझाया था पर वो मानी नहीं।
एक दिन नीतू गुस्से से पैर पटकते हुए घर आई और नंदिता जी से कहने लगी, मम्मी जी अब हम भी नया घर लें लेंगे? ये घर काफी पुराना सा हो गया है, जगह-जगह से रंगहीन हो गया है।
उसकी बात सुनकर नंदिता जी समझ गई कि आज जरूर किटी में कुछ हुआ होगा, इसलिए ये भी नया घर लेना चाह रही है, अभी इस फ्लैट में आये हुए दस साल ही हुए है, और घर तो सालो साल चलते हैं, उन्हें इतनी जल्दी बदला तो नहीं जाता है। उन्होंने कुछ नहीं कहा और बोली, तुम नीरज से बात कर लेना।
नीतू तो जैसे आज नीरज के आने का ही इंतजार कर रही थी, आते ही बरस गई, मेरी सहेली ने नया घर लिया है, बड़े-बड़े कमरे हैं, कमरों के बाहर बड़ी-बड़ी बॉलकोनी है, सामने पार्क है, और बहुत ही शानदार इंटीरियर करवाया है, आप एक बार उसका घर देख लो फिर हम भी वैसा ही बनवा लेंगे।
ये सुनते ही नीरज बोला, हमारा घर भी अच्छा है, सामने दो बॉलकोनी है और थोडी दूर पर पार्क है, तो हम क्यूं घर बदले? इतनी मेहनत से मम्मी -पापा ने ये घर लिया है, सब कुछ ठीक ही तो है, फिर हमारा इतना बजट भी नहीं है।
सब कुछ कहां ठीक है, कमरे कितने छोटे हैं, मेरी सहेली का घर देखोगे तो देखते ही रह जाओगे? और हम कहां अच्छे से रह रहे हैं, उसका घर उसके ठाठ-बाट तो आपने देखे ही नहीं, मुझे कुछ नहीं पता, मुझे भी वैसा ही घर चाहिए ताकि मै भी शान से रह सकूं, ये घर बेच देंगे और नया लोन ले लेंगे, घर खरीदने में कितना सा तो पैसा लगता है।
अच्छा! लोन तो ले लेंगे पर ईएमआई भी चुकानी होती है, घर खरीदने में मम्मी -पापा की बड़ी मेहनत है, उन्होंने प्यार से घर सजाया है, फिर हम जैसे भी है खुश हैं, तुम बेवजह दूसरों से तुलना करके खुद भी दुखी होती हो और हमें भी दुखी करती हो, पूरे घर में सबको सुनाती रहती हो, सबसे झगड़ा करके घर का माहौल खराब करती हो, ये तो ठीक नहीं है, नीरज ने समझाया पर नीतू नहीं समझी और अपनी बेटी को लेकर गुस्से से मायके चली गई और जिद करने लगी अगर आप मेरे रहने के लिए नया घर नहीं लेंगे तो मै कभी वापस नहीं आऊंगी।
बेटा! उसे रोक ले, वो घर की लक्षमी है, उसे खुश रखना चाहिए, नंदिता जी ने बीच बचाव किया, नहीं मम्मी उसे जाने दो आज चार साल हो गये है, उसने सबका जीना मुश्किल कर रखा है, जो औरों से अपनी तुलना करता है वो कभी खुश नहीं रहता है।
बेटा, हम उसे समझायेंगे, ताकि वो सही राह पर चलेगी।
मम्मी, वो कभी भी नहीं समझेगी, और हमारी जिंदगी भी नरक कर देगी, ऐसी पत्नी से तो ना हो तो ही अच्छा है, नीरज ने गुस्से में कहा।
नीतू अपनी बेटी को लेकर मायके चली गई,अगले दिन जब नीरज ऑफिस गया तो नंदिता जी बहू के मायके चली गई।
उस वक्त नीतू अपने कमरे में थी, नीतू के मम्मी-पापा को नंदिता जी ने सारी बातें बताई तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि उनकी बेटी ने चार सालों से ससुराल वालों का जीना मुश्किल कर रखा है, नीतू के पापा ने उसे उठाकर एक थप्पड़ दे मारा तो नीतू देखती रह गई।
पापा, आपने मुझे थप्पड़ मारा !!!! मेरी गलती तो बताओं, मैंने ऐसा क्या कर दिया है।
हां मारा !! क्योंकि तूने ससुराल में हमारे संस्कारों की धज्जियां उड़ा दी है, तूने आपनी मम्मी से क्या यही सीखा है? तेरी मम्मी ने हमेशा मेरा साथ दिया है, जैसा भी रखा उस माहौल में हमेशा खुश रही, तेरी मम्मी ने कभी हमारे घर की तुलना किसी ओर से नहीं की, तुलना करने से कुछ हासिल नहीं होता है, जिसे तुलना करने की आदत हो जाती है, वो कभी खुश नहीं रहता है, सबको अपने कर्मो से नसीब होता है, जिसके भाग्य में होता है उसी को ही मिलता है, तू इस तरह का जीवन जी रही थी रोज अपने पति और सास को ताने देती थी, अगर हमें पहले पता होता तो मै ये थप्पड़ तुझे पहले लगा देता।
ये सब देखकर नीतू की मम्मी भी उसे समझाती है, बेटी
घर की गृहणी के व्यवहार और सोच पर पूरे परिवार की खुशियां निर्भर करती है, तूने अपने व्यवहार और तुलनात्मक सोच से घर में इतनी अशांति फैला रखी है, जो तेरे पास सुख है, तूने उसकी सदा उपेक्षा की है और जो नहीं है उसके पीछे भागे जा रही है, ऐसी सोच से तू कभी खुश नहीं रही और ना ही ससुराल वालों को तूने खुश रखा। आज तो तेरे सास-ससुर और पति तुझसे परेशान हैं, कल को तेरी यही घटिया सोच तेरी बेटी पर भारी पड़ जायेगी। तू उसकी भी तुलना और लड़कियों से करेगी, पढ़ाई को लेकर, रूप रंग और अन्य गतिविधियों को लेकर तू कभी संतुष्ट नहीं रहेगी, जब तू ही संतुष्ट नहीं रहेगी अपनी बेटी की तुलना करती रहेगी तो वो भी खुश नहीं रहेगी और तुझसे चिढ़ने लग जायेगी और एक दिन दूर हो जायेंगी।
ये तो तेरी किस्मत अच्छी है जो तुझे इतने अच्छा परिवार मिला है,तेरी सास ने भी हम लोगों को ये बात तुझे प्यार से समझाने को कहा क्योंकि उन्हें लग रहा था तू अपने मम्मी-पापा की बात तो जरूर मानेंगी।
इतना अच्छा घर मिला है, पति मिला है, कोई तेरे पास बहुत ज्यादा पैसों की कमी भी नहीं है।
घर है सभी सुविधाएं हैं,घर छोटा हो या बड़ा क्या फर्क पड़ता है? घर में तो प्यार और शांति होनी चाहिए, कपड़े ब्रांडेड हो या साधारण सब अपने बजट में ही लेना चाहिए, जिसमें हम खुश रहें और हमारे पति के चेहरे पर भी मुस्कान बनी रहें।
हमेशा नीचे देखकर चलना चाहिए, जो हमसे छोटे लोग हैं, जो हमारे पास है वो लोग उस तरह का जीवन जीना चाहते हैं पर हम है कि ऊपर की ओर देखकर चलते हैं, हमसे ज्यादा अमीर ज्यादा समृद्ध लोगों से अपनी तुलना करने लगते हैं और हमें इससे सिवाय दुःख, चिड़चिड़ापन और निराशा के कुछ भी हासिल नहीं होता है।
नीतू की आंखें शर्म से झुक गई, वो कुछ नहीं कह पाई, कभी अपनी बेटी की ओर देख रही थी तो कभी अपनी सास की ओर, फिर दौड़कर वो सास के पैरों में गिर पड़ी, मम्मी जी मुझे माफ कर दो, मैंने आप सबको बहुत तकलीफ़ दी है, आज पापा के थप्पड़ और मम्मी की सीख ने मुझे जीवन का बहुत बड़ा पाठ सिखा दिया है, अब मै सही राह पर चलूंगी, मुझे जो सुख मिला है मैंने उसकी उपेक्षा करके अपने जीवन में बेवजह के दुःख पाल लिये थे। अब जो भी है, जैसा भी है, जितना भी है, मैं उसी में खुश और संतुष्ट रहूंगी।
नंदिता जी ने अपनी बहू को गले लगा लिया, फिर नीतू मायके एक क्षण भी नहीं रूकी, अपनी बेटी और सास के साथ वो ससुराल चली गई।
पाठकों, जिस इंसान में औरों से तुलना करने की आदत पड़ जाती है वो इंसान अपने सुख और अपनों की उपेक्षा करके एक अंधी दौड़ में शामिल होकर नई अपेक्षाएं पाल लेता है और जीवन भर संतुष्ट नहीं होता।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल ✍️
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

08/07/2025

शोर तो अक्सर खाली बर्तन करते हैं,
कीमत वाले लोग खामोश रहते हैं।
सिक्के बोलते हैं अपनी खनक से,
मगर असली दौलत तो नोट की चुप्पी में होती है।

गाँव में एक नवयुवक रहता था। विन्दास मस्त मौला, बहुत ही सीधा साधा ,भोला सा नाम था हरिया। पढाई लिखाई में मन नहीं लगा तो दस...
08/07/2025

गाँव में एक नवयुवक रहता था। विन्दास मस्त मौला, बहुत ही सीधा साधा ,भोला सा नाम था हरिया। पढाई लिखाई में मन नहीं लगा तो दसवीं कर के छोड़ दी। कोई काम मिल जाता तो कर लेता, नहीं तो वह ऐसे हो घूमते-फिरते जिसको जरूरत होती उसकी मदद कर देता।

मसलन किसी की गाय घुम गई तो वह ढूंढने में मदद करता, किसी के खेत पर कोई जरुरत आ गई वह पहुँच जाता, जन्म मरण, बीमारी कैसी भी आवश्यकता हो हरिया तैयार रहता। इस तरह बिना कुछ लिए वह सबकी मदद करता और सब उसे गँवार समझते। गाँव के लोगों में धारणा थी कि यह अनपढ़ गंवार है कुछ नहीं समझता तभी तो सबकी मदद करता फिरता है, अपना कोई काम नहीं करता।

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साड़ी"ये क्या हरदम सलवार सूट पहिन कर चल देती हो….यार.. साड़ी मे जो भव्यता है वो इस पहनावे मे कहाँ", पिछली दिवाली पर मैं तै...
08/07/2025

साड़ी
"ये क्या हरदम सलवार सूट पहिन कर चल देती हो….यार.. साड़ी मे जो भव्यता है वो इस पहनावे मे कहाँ", पिछली दिवाली पर मैं तैयार हो कर आई तो इनकी भवें चढ़ गयीं।
"इसमें आसानी रहती है..जल्दी से पहन लेती हूँ… इस उम्र में साड़ी मे पाँव उलझ कर गिरने का भी डर नहीं रहता….",मैने सूट के फायदे गिनाने ही शुरू किये थे कि इन्होंने तंज कसा,
"अच्छा… तो हमारी अम्मा और दादी परदादी तो जैसे रोज़ गिरती पड़ती ही रहती थीं"।
"तबका ज़माना और था….अम्मा जी एक जगह बैठ गयीं और बहुएँ दौड़ती रहती थीं… पर अब बहुएँ ख़ुद कामकाजी…",
"ये सब बहाने हैं…",इनका मुँह बन गया
"ठीक है… मैं साड़ी पहन लेती हूँ...पर ये जान लो गिरी तो...",मैने धमकी भरे हथियार डाले तो ये बीच मे ही बोल पड़े,
"तो बंदा किसलिए है…"।
"अरे...शुभि...ये दिये जलाना..",जैसे ही इन्होंने कहा मैने अपनी भारीभरकम साड़ी की तरफ़ इशारा कर दिया...जिसमें दिये का तेल छलकने से आग लगने का ख़तरा था।
"सुनो...आज गरम गरम पूड़ी खाने का मन है…बस कड़ाही से निकली...",
"पर साड़ी मे गैस के पास…पिछले महीने ही तो शुक्ला जी की बहू….", मैने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया
"अच्छा ठीक है तुम बैठो मैं सेकता हूँ"।
"सुनो सब्जियाँ भी गरम कर लेना… ",मैंने भी मौके का पूरा फायदा उठाया।
आज फिर दिवाली है…जैसे ही मैं तैयार होने चली कि इन्होंने फट् से कहा,"आज सूट ही पहन लेना… अच्छा लगता है तुम्हारे ऊपर… और गिरने का भी डर नहीं रहता"।
मंजू सक्सेना
लखनऊ

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