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आज फिर बेटे-बहू (विकास और शिवानी) के कमरे से आवाजें आ रही थीं जैसे किसी बात पर उनके बीच  बहस चल रही हो। बेटा अभी-अभी जॉब...
26/08/2025

आज फिर बेटे-बहू (विकास और शिवानी) के कमरे से आवाजें आ रही थीं जैसे किसी बात पर उनके बीच बहस चल रही हो। बेटा अभी-अभी जॉब से लौटा है। और आते ही बहसबाजी शुरू। कुछ देर में बहू रसोई में चाय बना रही थी और मुन्ना मेरे पास आकर बैठ गया,
"कैसी हो मां?" विकास (विकी) बोला
"मैं बिलकुल ठीक नहीं हूँ विकी।"
"क्यों क्या हुआ, शिवानी से कुछ -----?"
"अरे उससे कोई बात नहीं, मैं तो तेरे ही नाराज हूँ।"
"पर हुआ क्या?"
"इस बार की छुट्टियों में तुम लोग हफ्ते-पंद्रह दिन के लिए कहीं घूम आओ। कितने वर्षों से कहीं घूमने नहीं गए। जब भी कहती हूँ टाल जाते हो। आज अभी ही टिकट बुक करा लो।"
"पर मां, तुम्हारी देखभाल हमारा कर्तव्य है। हम तुम्हें अकेला छोड़ कर कैसे जा सकते हैं?"
"अकेले क्यों छोड़ोगे, आजकल नर्स मिल जाती है। मेरी देखभाल के लिए नर्स रखो और घूम आओ। कोई आर्थिक परेशानी तो है नहीं।"
"पर मां हमारा कर्तव्य ----।" मां बात काट कर बोली,
"पर वर कुछ नहीं, अभी तक तो तुम अपना कर्तव्य अच्छे से निभा ही रहे हो अब मुझे भी अपना कर्तव्य निभाने दो।"
***************
श्याम आठले (ग्वालियर/ बैंगलोर )
मौलिक

चलती ट्रेन में जवान की बहादुरी से बची 14 वर्षीय लड़की की जानचलती ट्रेन में चढ़ते समय 14 वर्षीय लड़की गिर गई। GRP जवान ने...
26/08/2025

चलती ट्रेन में जवान की बहादुरी से बची 14 वर्षीय लड़की की जान
चलती ट्रेन में चढ़ते समय 14 वर्षीय लड़की गिर गई। GRP जवान ने बिना अपने जीवन की परवाह किए तुरंत उसे बचाया। जवान की इस बहादुरी को देखकर वहां मौजूद लोगों ने दिल से सलाम किया। यह घटना इंसानियत और साहस की प्रेरणा बन गई है।
एक साहसी GRP जवान ने अपनी जान की परवाह किए बिना, चलती ट्रेन में गिरती हुई 14 वर्षीय लड़की को बचाकर इंसानियत और बहादुरी की मिसाल कायम की। यह घटना उस वक्त हुई जब लड़की ट्रेन में चढ़ते समय संतुलन खो बैठी और पटरी पर गिरने लगी।

जोखिम उठाकर निभाई जिम्मेदारी
ट्रेन की तेज़ गति और खतरनाक स्थिति में जवान ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। उसने तेजी से दौड़कर उस लड़की को गिरने से पहले ही पकड़ लिया और उसकी जान बचाई। यह साहसिक कार्य दर्शाता है कि सुरक्षा कर्मी सिर्फ कानून लागू करने वाले नहीं, बल्कि मानवता के प्रहरी भी हैं।

समाज के लिए प्रेरणा बन गया जवान का यह कदम
लोगों ने इस जवान की बहादुरी की खूब सराहना की। यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत वीरता का प्रमाण है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि संकट में बिना संकोच दूसरों की मदद करनी चाहिए। जवान की इस बहादुरी ने सभी को इंसानियत और समर्पण की सीख दी।

नायक वही जो जीवन दांव पर लगाकर बचाए जान
यह कहानी हमें याद दिलाती है कि असली नायक वह होता है जो अपने जीवन की परवाह किए बिना दूसरों के लिए खड़ा होता है। इस GRP जवान की तत्परता और साहस हमें प्रेरित करती है कि हम सभी अपने कर्तव्यों को ईमानदारी और निष्ठा से निभाएं।

सुरक्षा बलों की भूमिका सिर्फ अपराध रोकना नहीं, समाज की सेवा भी है
यह घटना सुरक्षा बलों की व्यापक जिम्मेदारी को दर्शाती है, जो केवल कानून व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित नहीं, बल्कि समाज की रक्षा और सेवा में भी सक्रिय रहते हैं। यह बहादुरी का यह उदाहरण सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बना है।

अगर आप चाहें तो इसे और अधिक संक्षिप्त या विस्तार से भी लिखा जा सकता है!

वादा पूरा करने का वक़्त आ गया था। बेटी के स्कूल और बेटे के कॉलेज की छुट्टियाँ भी पड़ चुकी थीं। मैंने भी ऑफिस से कुछ दिनों ...
26/08/2025

वादा पूरा करने का वक़्त आ गया था। बेटी के स्कूल और बेटे के कॉलेज की छुट्टियाँ भी पड़ चुकी थीं। मैंने भी ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी ली और बना लिया प्रोग्राम बाहर घूमने का। बच्चों ने एक-एक करके सारे बैग्स और खाने-पीने का सामान गाड़ी में भर दिया और बैठ गए दोनों अपनी-अपनी पसंदीदा जगह। मैं गेट पर ताला जड़ने ही वाला था कि बेटी कूदते हुए आई बोली, "पापा कुछ छूट गया है, बस अभी आई।"
अंदर से हाथ में अपनी माँ की छोटी सी तस्वीर लिए चली आ रही थी। हम दोनों ने ही मुस्कुराते हुए अपनी-अपनी आँखों के आँसू एक-दूसरे से छिपा लिये। मुझे गेट लॉक करते देख, बाहर ब्रश कर रहे बगल वाले रमन भाईसाहब, मुँह से ब्रश निकाले बिना ही बोले, "लगता है कहीं घूमने जा रहे हैं।"
"जी हाँ, नैनीताल। ज़रा घर का ध्यान रखियेगा।"
"मगर भाभी जी को गये अभी दो महीने ही.........." थूक उनके मुँह से बाहर गिरने लगा। वो बस इतना कह कर चुप हो गए।
समझ गया उनके कहने का मतलब। अब क्या बोलता पर बेटी से चुप ना रहा गया, बोल पड़ी "अंकल जी, जाने से पहले मम्मी ने अपनी सारी मन की बातें पापा से एक डायरी में लिखवा लीं थीं। पापा ने सारी बातें मानने और पूरा करने का मम्मी से प्रॉमिस भी किया था। ये भी उन्हीं में से एक है।"
ऊपर छज्जे में बैठी रमन भाईसाहब की अम्माजी सब देख सुन रहीं थीं। वहीं से ही जोर-जोर से बोलने लगीं, "जाओ बच्चों, घर की चिंता बिल्कुल मत करना। मैं हूँ ना देखने वाली। ढ़ेर सारी फोटो खींचना फिर दिखाना मुझे। ..............लोगों की क्या है उनका तो काम है बातें बनाना। चार साल से इस घर को पल-पल बिलखते, तड़पते देखा है मैंने। जरा सा मुस्कुराने का मौका क्या मिला, वो भी लोगों को फूटी आँख नहीं सुहाता।" अम्माजी खरी-खरी सुनाने लगीं। किसे सुना रहीं थीं ये मैं भी समझ रहा था और रमन भाईसाहब भी।
"ठीक है अम्माजी अब निकलतें हैं। जल्दी वापस लौट आएँगे।" हम तीनों ने अम्माजी को बाय किया।
"खुश रहो बच्चों। ध्यान से जाना।...........और रमन तू ये थूका-थाकी घर के अंदर किया कर समझा।" वो खिसियाते हुए अंदर की ओर चल दिये और मैं चल दिया अपना वादा पूरा करने।
मीनाक्षी चौहान

राजस्थान रोडवेज की महिला कंडक्टर ने दिखाई काम के प्रति समर्पण की मिसालराजस्थान रोडवेज की महिला कंडक्टर ने खचाखच भरी बस म...
26/08/2025

राजस्थान रोडवेज की महिला कंडक्टर ने दिखाई काम के प्रति समर्पण की मिसाल
राजस्थान रोडवेज की महिला कंडक्टर ने खचाखच भरी बस में सीढ़ी के ऊपर चढ़कर टिकट काटकर अपनी ईमानदारी और जुनून की मिसाल पेश की। उनके समर्पित काम ने सभी का दिल जीत लिया और साबित किया कि मेहनत और जिम्मेदारी से ही सफलता मिलती है।
राजस्थान रोडवेज की एक महिला कंडक्टर ने अपनी ईमानदारी और मेहनत से सबका दिल जीत लिया है। जब एक खचाखच भरी बस में सीट न मिलने की वजह से टिकट काटना मुश्किल था, तब उन्होंने बस के सीढ़ी के ऊपर चढ़कर टिकट काटने का साहसिक कदम उठाया।

चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में जिम्मेदारी का परिचय
बस में सवारियों की भीड़ के बीच सीढ़ी पर चढ़कर टिकट काटना आसान नहीं था। इसके लिए अच्छे संतुलन और हिम्मत की जरूरत थी, लेकिन महिला कंडक्टर ने बिना हिचकिचाए इस कार्य को पूरा किया। यह उनकी जिम्मेदारी और काम के प्रति समर्पण का परिचायक था।

ईमानदारी और पेशेवरिज़्म का बेहतरीन उदाहरण
इस महिला कंडक्टर ने साबित कर दिया कि किसी भी नौकरी को केवल काम नहीं, बल्कि जिम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए। उनका यह कदम दिखाता है कि ईमानदारी और पेशेवर रवैया ही सफलता की कुंजी है, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।

महिलाओं की ताकत और आत्मविश्वास की पहचान
यह घटना महिलाओं की भूमिका और क्षमता को एक नई ऊंचाई पर ले गई है। उन्होंने दिखाया कि महिलाएं हर चुनौती का सामना आत्मविश्वास और हिम्मत से कर सकती हैं और अपने काम में उत्कृष्टता दिखा सकती हैं।

समाज के लिए प्रेरणा स्रोत
महिला कंडक्टर की यह कहानी न केवल राजस्थान रोडवेज के कर्मचारियों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है। यह संदेश देती है कि मेहनत, ईमानदारी और समर्पण से कोई भी काम कठिन नहीं होता और हर व्यक्ति, खासकर महिलाएं, किसी भी क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकती हैं।

निष्कर्ष: समर्पण से जीतता है जुनून
इस महिला कंडक्टर ने साबित कर दिया कि जुनून, कड़ी मेहनत और ईमानदारी से हर बाधा को पार किया जा सकता है। उनका यह उदाहरण हमें याद दिलाता है कि काम के प्रति सही नजरिया और मेहनत से ही हम समाज में प्रेरणा बन सकते हैं।

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पायल नाग: असंभव को संभव बनाने वाली पैरा आर्चर की प्रेरणादायक कहानी17 साल की पायल नाग, जो बिना हाथ-पैर के हैं, ने नेशनल प...
26/08/2025

पायल नाग: असंभव को संभव बनाने वाली पैरा आर्चर की प्रेरणादायक कहानी
17 साल की पायल नाग, जो बिना हाथ-पैर के हैं, ने नेशनल पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में डबल गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया। वे दुनिया की पहली चार अंगों से दिव्यांग तीरंदाज़ हैं, जिन्होंने अपने साहस और मेहनत से सभी को प्रेरित किया।
17 वर्षीय पायल नाग ने अपने अदम्य साहस और कठिन परिश्रम से इतिहास रच दिया है। जन्म से बिना हाथ और पैर के, उन्होंने नेशनल पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में डबल गोल्ड जीतकर दुनिया की पहली चार अंगों से दिव्यांग तीरंदाज़ बनने का गौरव प्राप्त किया।

जीवन की चुनौतियों को मात देकर मिली सफलता
एक गंभीर बीमारी के कारण शारीरिक रूप से विकलांग होने के बावजूद, पायल ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मानसिक दृढ़ता और आत्मविश्वास से हर बाधा को पार करते हुए आर्चरी में खास उपकरणों की मदद से बेहतरीन प्रदर्शन किया।

नेशनल पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में धमाकेदार प्रदर्शन
पायल ने इस प्रतियोगिता में अपनी कड़ी मेहनत और लगन से डबल गोल्ड जीतकर साबित किया कि अगर जज़्बा मजबूत हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। उनकी यह सफलता लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी है।

दिव्यांगता नहीं, आत्मविश्वास है असली ताकत
पायल की कहानी यह संदेश देती है कि शारीरिक विकलांगता किसी के सपनों को रोक नहीं सकती। उनका मानना है कि सच्ची ताकत शरीर में नहीं, बल्कि मन की हिम्मत और आत्मविश्वास में होती है।

एक नायक की विरासत
आज पायल नाग न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर प्रेरणा की मिसाल बन चुकी हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि संघर्ष, हौसला और मेहनत से हर बाधा को पार किया जा सकता है। पायल की यह उपलब्धि बताती है कि असली विकलांगता तो दिल में होती है, शरीर केवल एक माध्यम है।

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हमारा जमाना ऐसा था कि हम सुबह पांच बजे ही उठ जाते कभी चार साढ़े चार बजे आंख खुल जाती। आंगन बुहारकर नहा धो कर  पूजा कर के...
26/08/2025

हमारा जमाना ऐसा था कि हम सुबह पांच बजे ही उठ जाते कभी चार साढ़े चार बजे आंख खुल जाती। आंगन बुहारकर नहा धो कर पूजा कर के ही रसोईघर में प्रवेश करते थे । अब देखो न हमरी बहुरिया को , बिना नहाए किचन में घुस जाती है चाय नाश्ता बनाकर नहाना धोना करती है । अस्सी वर्षीय राधाजी अपनी देवरानी से कह रहीं थी। क्या करें हमें भी समय के अनुसार ढलना पड़ रहा है ।
किचन में फटाफट नाश्ता खाना तैयार कर रही है सुरूचि और मन में हंसी भी आ रही उसे कि मांजी फोन पर अपने दौर की गाथा सुनाए जा रही है।नहाने के बाद किचन में गरमी से लथपथ पसीने से तरबतर होने से बचना चाहती इसलिए सुरूचि सब भोजन तैयार करके आगे की दिनचर्या को पूरा करती ।
क्या हुआ मांजी किसका फोन था ? वो मेरी तेरी चाची सास से बात कर रही थी ।तुझे बुरा तो नहीं लगता न , मेरी उलाहना से। नहीं मांजी , आपका समय कुछ और था ।सब काम हाथों से करना पड़ता था ।सिलबट्टे पे मसाला पीसना , साफ सफाई खुद से करना (कामवाली नहीं मिलती थी ), मैले कपड़ों को सर्फ में फुलाकर आधे घंटे के बाद रगड़ रगड़ कर हाथ से धोना ।
अब देखिए कितना फास्ट लाइफ है । मिक्सी, ऑवेन, वाशिंग मशीन, फ्रिज, ए सी जैसी सुविधाजनक चीजें हैं।बस आपकी बातों का आनंद लेते हुए काम भी कर लेती हूं और आपके दौर में जाकर उन बातों को जी लेती हूं कि उस समय आप सब कितनी परिश्रमी होती थीं यूं कहा जाय तो काम को ढा देती थीं है न । दोनों हंस पड़ी हैं।
सुरूचि के दो बेटे हैं बड़ा बेटा शौर्य चार्टर्ड एकाउंटेंट और छोटा बेटा शाश्वत बैंक मैंनेजर। पति सुयश मैकेनिकल इंजीनियर इसी साल सेवानिवृत्त हुए हैं।
पिछले महीने शौर्य की शादी हुई है साफ्टवेयर इंजीनियर लालिमा से, बेहद प्यारी सी बहू है । अपनी कार चलाकर ऑफिस जाती है , सुबह में समयाभाव है इसलिए शाम को सात बजे आते ही अपनी सासू मां के साथ मिलकर रात का खाना तैयार करने हेतु किचन में सहयोग देती है ।
लालिमा को रोज स्नान करना बिल्कुल पसंद नहीं ? ठंड के मौसम में ऑफिस बिना नहाए चली जाती है । रविवार को छुट्टी रहती है इसलिए उस दिन ही नहाती । मतलब छ: दिन बिना स्नान के ?
सुरूचि को बहू की नहीं नहाने की आदत खटकती ? परंतु कभी बोलती नहीं। सुरूचि की सास सब देख समझ रही हैं बोली तुम बहू को क्यूं नहीं टोकती कि रोज नहा लिया करे । जाने दीजिए न , वो हमसे बोली थी कि मुझे सर्दी-जुकाम हो जाता है पानी से एलर्जी है उसे। साफ झूठ बोल गई है सुरूचि अपनी बहू के लिए बीच का पुल बनकर ।
लालिमा ऑफिस से आते ही बोली दादी मम्मी आज बाहर खाने चलते हैं हम लेडिज पार्टी करेंगे। तीनों जेंटस घर पर रहे और इनलोगों के लिए हमलोग फूड को पैक करा लेंगे । क्या ख्याल है दादी , चलिए न तैयार हो जाइए आपको मसाला डोसा पसंद है मम्मी आपको उत्पम ।
ठीक है हम तीनों चलते हैं पर लालिमा बहुरिया , तुझे मेरी एक बात माननी पड़ेगी तभी चलूँगी मंजूर है ।हां दादी बोलिए न ।
तुम रोज सुबह उठकर नहाया करोगी , ठीक है न
इतना तो बूढ़ी दादी सास का कहा को मान सकती हो ।
बस इतनी सी बात डन दादी । रोज होगा स्नान अभियान मेरा।लव यू।
मेरी भी एक शर्त सुन लो रेस्टोरेंट में खाना का पेमेंट मैं करूंगी तुम नहीं ।सुरूचि भी उत्साहित होकर बोली ओ के मम्मी ।तीनों खिलखिलाकर हँस पड़ी है घर का माहौल गदगद हो गया है ।
तीनों कार से निकल गई हैं दादी का पुराण शुरू हो गया है मेरे जमाने में ऐसे था वैसे था ।
वाह तीन पीढ़ी का साथ कितना लाजवाब खुशगवार खुशहाल खुशनुमा ।
अंजूओझा, पटना।
मौलिक स्वरचित,

सविता ‘द वॉल’ पुनिया: 300 मैचों की ऐतिहासिक उपलब्धि और समाज की चुप्पीसविता 'द वॉल' पुनिया 300 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने वा...
26/08/2025

सविता ‘द वॉल’ पुनिया: 300 मैचों की ऐतिहासिक उपलब्धि और समाज की चुप्पी
सविता 'द वॉल' पुनिया 300 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने वाली दूसरी भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी बनीं, जो गर्व की बात है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद भी उन्हें समाज या मीडिया से कोई बधाई नहीं मिली। यह महिला खिलाड़ियों की उपेक्षा को दर्शाता है।
भारतीय महिला हॉकी की स्तंभ खिलाड़ी सविता पुनिया ने इतिहास रच दिया है। वे 300 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने वाली केवल दूसरी भारतीय महिला खिलाड़ी बन चुकी हैं। लेकिन इस असाधारण उपलब्धि पर समाज की चुप्पी और बधाई का अभाव हमारे रवैये पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।
"द वॉल" का सफर: सविता पुनिया की प्रेरणादायक कहानी
सविता पुनिया को यूं ही “द वॉल” नहीं कहा जाता। उनकी बेहतरीन गोलकीपिंग, आत्मविश्वास और वर्षों की मेहनत ने उन्हें भारतीय महिला हॉकी का एक अभिन्न हिस्सा बना दिया है। उनके करियर की शुरुआत साधारण रही, लेकिन उनकी लगन ने उन्हें असाधारण बना दिया। उनके योगदान ने न सिर्फ टीम को मजबूत किया, बल्कि देश को कई अहम मुकाबलों में गौरव भी दिलाया।
300 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलना किसी भी खिलाड़ी के लिए एक महान उपलब्धि है, लेकिन जब कोई महिला खिलाड़ी यह मुकाम हासिल करती है, तो वह खेल जगत में लैंगिक असमानता को चुनौती देती है।
सराहना की कमी: क्या यह हमारी सोच का प्रतिबिंब है?
सविता की यह ऐतिहासिक उपलब्धि न तो मुख्यधारा मीडिया की सुर्खियां बनी, न ही समाज से उन्हें अपेक्षित बधाई मिली। क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि वह एक महिला खिलाड़ी हैं? पुरुष खिलाड़ियों की उपलब्धियों पर जहां तुरंत सोशल मीडिया, नेता, और खेल संघ सक्रिय हो जाते हैं, वहीं महिला खिलाड़ियों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
यह रवैया सिर्फ सविता के साथ नहीं, बल्कि अधिकतर महिला खिलाड़ियों के साथ होता है। इससे यह सवाल उठता है—क्या हम महिला खिलाड़ियों की मेहनत और संघर्ष को वह सम्मान देने को तैयार नहीं हैं, जिसके वे पूर्ण रूप से हकदार हैं?
खेल में लिंगभेद खत्म करना होगा
खेल प्रतिभा का कोई लिंग नहीं होता। सविता पुनिया की तरह हजारों महिलाएं खेल के क्षेत्र में रोज़ नए रिकॉर्ड बना रही हैं, लेकिन समाज का समर्थन न मिलना उनके हौसले को कमजोर कर सकता है। जब हम महिला खिलाड़ियों की उपलब्धियों की उपेक्षा करते हैं, तो हम न केवल उनके सम्मान में कमी करते हैं, बल्कि अगली पीढ़ी की प्रेरणा को भी कमजोर करते हैं।
हमें एक ऐसी सोच अपनानी होगी, जहां महिला और पुरुष खिलाड़ियों को समान मंच, अवसर और सम्मान मिले।
निष्कर्ष: सम्मान देना केवल प्रशंसा नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी है
सविता पुनिया की 300 अंतरराष्ट्रीय मैचों की उपलब्धि भारतीय महिला हॉकी के लिए गौरव की बात है। लेकिन समाज की उदासीनता चिंताजनक है। यह समय है कि हम महिला खिलाड़ियों को सिर्फ उनकी उपलब्धियों के लिए ही नहीं, बल्कि उनके संघर्ष और समर्पण के लिए भी पहचानें।
हमें बधाई देने, सराहना करने और प्रेरणा का माहौल बनाने में पहल करनी चाहिए। क्योंकि जब एक महिला खिलाड़ी जीतती है, तो वह सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं जीतती — वह समाज की सोच, आने वाली पीढ़ियों का आत्मविश्वास, और भारत की खेल संस्कृति की समृद्धि भी बढ़ाती है।

सुनीता अपने नये फ्लैट में बेटे-बहू के साथ शिफ्ट हुई थी| आसपास के लोगों से जान-पहचान होने लगी थी।एक दिन दोपहर को ऊपर वाले...
26/08/2025

सुनीता अपने नये फ्लैट में बेटे-बहू के साथ शिफ्ट हुई थी| आसपास के लोगों से जान-पहचान होने लगी थी।
एक दिन दोपहर को ऊपर वाले फ्लैट से सुषमा आंटी आई|
"शीलू चाय बनाकर लाना" सुनीता ने अपनी बहू शीलू से कहा।
शीलू चाय-नाश्ता लेकर आ गई|
आज बहू घर पर है, सुषमा जी ने पूछा?
हां, सुषमा, क्यों क्या हुआ?
सुनीता ने पूछा|
सुनीता तुम्हारी बहू नौकरी नहीं करती है?
मेरी तो दोनों बहूएं सुबह ही काम पर निकल जाती है।
सुषमा ने एकदम से बोल दिया
इतनी पढ़ी-लिखी होने के बाद भी घर पर बैठी हो ?
आजकल की तो सब बहुएं नौकरी करती है,घर पर नहीं बैठती है।
ये सुनकर शीलू चुप रह गई, सुषमा आंटी को वो जवाब दे सकती थी, पर उसके संस्कारों ने उसे रोक लिया।
तभी सुनीता बोली, हमारी तरफ से कोई मना नहीं है,ये शीलू का अपना फैसला है।हम सब इससे खुश हैं, जिसमें शीलू की खुशी है, उसमें ही हमारी खुशी है।
सुषमा के जाने के बाद, सुनीता ने कहा, शीलू बुरा मत मानना, सबके अपने विचार होते हैं, बड़े तो कह देते हैं।
ये सुनकर शीलू मन ही मन सोचने लगी
क्या जरूरी है ? मैं नौकरी करूं?
पढ़-लिखे होने का ये तो मतलब नहीं है कि, मैं भी नौकरी करुं?
ये मेरा अपना फैसला है, हां, मैंने बी.एड किया है, कभी भविष्य में जरूरत पड़े तो मैं कर लूं।
मुझे अपना घर परिवार संभालना है, मुझे अपने शौक पूरे करने हैं, मुझे मेरे हिसाब से जीना है तो क्या जरूरी है, अपने हिसाब से जीने के लिए नौकरी ही करुं?
शोभित की सैलेरी से घर चल रहा है तो मैं क्यों भागादौड़ी करूं? ये किस किताब में लिखा है कि पढ़ी-लिखी हर लड़की को नौकरी करनी ही चाहिए?
मुझे किसमें खुशी मिलती है ये मैंने सोच रखा है, मेरी अपनी कुछ सीमाएं हैं,मेरे अपने सपने हैं तो क्या वो नौकरी करके ही पूरे हो सकते हैं?
मुझे मेरे जीवन की ये शांति अच्छी लगती है, मैं रोज तसल्ली से उठकर घर की हर जिम्मेदारी संभालती हूं,दोपहर में थोड़ी देर अलसा लेती हूं, टीवी पर अपने मनपसंद सीरीयल देख लेती हूं,किटी में जमकर मजे करती हूं,कभी भी कहीं भी चली जाती हूं, सोसायटी के हर फंक्शन में सक्रिय रहती हूं,शाम को सजकर, मुझे पति का इंतजार करना अच्छा लगता है, मुझे खुशी होती है, जब वो मेरे हाथ के खाने की तारीफ करते हैं, मैं रिश्तेदारी के हर काम में चली जाती हूं, मुझे छुट्टी के लिए सोचना नहीं पड़ता है,जब मन हुआ मायके निकल लेती हूं।
मैं खुश हूं, फिर मैं क्यों नौकरी करने की जिम्मेदारी क्यों लूं?
मैं घर पर रहते हुए भी अपनी जिंदगी शांति और खुशी से बिता रही हूं|
मुझे इन सबसे ही खुशी मिलती है, पूरा वक्त मिलता है, मुझे अच्छा लगता है घर पर रहना।
घर पर बैठना क्यों बोलते हैं?घर पर बैठे-बैठे कौनसे काम हो जाते हैं, घर संभालने के लिए भी कितना
मानसिक और शारीरिक श्रम लगता है, ये किसी को पता ही नहीं है।
कैसे लोग इस तरह बोल देते हैं, घर पर क्यों बैठी हो?ये तो घरेलू औरतों के श्रम और प्यार का अपमान है|
मुझे अच्छा लगता है, मैं अपने बच्चों का बचपन जी रही हूं, मैं उनकी देखभाल कर रही हूं,मैं उन्हें पूरा प्यार,समय दे रही हूं।मैं अपने बच्चों के बचपन की हर हरकत, अठखेलियों की गवाह हूं, उन्हें मैंने जीया है।
मेरे बच्चे मेरे प्यार ममता की छांव में पल रहे हैं।
ये मेरा अपना निर्णय है कि मुझे घर पर रहना है,इसे सजाना, संवारना है| मुझे अच्छा लगता है, मुझे घरवालों और अपनों के लिए काम करना बोझ नहीं लगता है।
मुझे सूकून मिलता है, जब मैं अपने पति और बच्चों को उनकी पसंद का खाना घर पर बनाकर खिलाती हूं, मुझे खुशी होती है जब मैं हर त्योहार की पूरी तैयारी करती हूं, उसे रीति-रिवाज के साथ मनाती हूं।
मुझे त्योहार पर सजना और मेंहदी लगाना भी पसंद है।
मुझे इस बात पर जरा भी शर्मिंदगी नहीं है कि मैं घर पर रहती हूं।जिस घर को मेरे पति मेहनत से सींचते हैं मैं उसकी मालकिन हूं, हां, ये मेरा घर है और घर पर रहने से मुझे आत्मिक शांति और सुख मिलता है।
हर वीकेंड पर मैं भी परिवार सहित घूम लेती हूं,हर तरह से मैं जिंदगी का हर पल जी रही हूं।
ये तो जरूरी नहीं है कि मैं अपनी खुशी बाहर ढूंढने जाऊं? मुझे घर में ही खुशी मिलती है, ये मेरा अपना नजरिया है।
मुझे मेरा घर संभालना खुशी देता है।
दुनिया का सबसे बड़ा सुख है, खुद का खुश‌ होना।
हां, मैं घर पर रहकर बहुत खुश हूं।
दोस्तों, ये खुद का निर्णय होना चाहिए कि, हमें नौकरी करनी है या नहीं।
ये हर महिला की निजी सोच और आवश्यकता है, आप किसी को किसी काम करने, या ना करने के लिए नहीं कह सकते हैं।
किसी को नौकरी करके ख़ुशी और सूकून मिलता है तो किसी को घर संभालकर सूकून मिलता है।
हमारी खुशियां इस बात पर निर्भर नहीं होनी चाहिए कि दूसरे क्या करते हैं,और क्या कहते हैं।
हमारी खुशी इस बात पर होनी चाहिए कि हम क्या चाहते हैं और हमें क्या करके खुशी मिलती है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल ✍️
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

अनंत अंबानी की मानवता का अनोखा परिचयअनंत अंबानी ने बूचड़खाने जाने वाली 250 मुर्गियों को दोगुनी कीमत में खरीदकर उनकी जान ...
26/08/2025

अनंत अंबानी की मानवता का अनोखा परिचय
अनंत अंबानी ने बूचड़खाने जाने वाली 250 मुर्गियों को दोगुनी कीमत में खरीदकर उनकी जान बचाई। उनके इस दयालु कदम ने मानवता की मिसाल कायम की है। सच में, अनंत अंबानी के लिए एक लाइक तो बनता है, जो समाज के लिए सोचते हैं और कार्य करते हैं।
रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुखिया मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी ने हाल ही में एक ऐसा कार्य किया है जिसने समाज में उनकी संवेदनशीलता और दयालुता को उजागर किया है। उन्होंने 250 मुर्गियों को बूचड़खाने से बचाकर एक नया जीवन दिया, जो निश्चित रूप से एक सराहनीय पहल है।

मुर्गियों को मौत से बचाने की पहल
जब अनंत को पता चला कि 250 मुर्गियां बूचड़खाने भेजी जा रही हैं, तो उन्होंने तुरंत हस्तक्षेप किया। उन्होंने इन मुर्गियों को दोगुनी कीमत देकर खरीद लिया ताकि उनकी जान बचाई जा सके। यह कदम न केवल एक दयालुता का उदाहरण है, बल्कि यह उनकी सहानुभूति और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है।

मानवता और व्यापार से ऊपर उठता निर्णय
यह कदम एक अमीर व्यवसायी के लिए सामान्य नहीं माना जाता, लेकिन अनंत ने साबित किया कि इंसानियत और करुणा हमेशा व्यापारिक लाभ से ऊपर होनी चाहिए। उन्होंने यह दिखाया कि वे केवल एक व्यवसायी नहीं, बल्कि एक संवेदनशील व्यक्ति भी हैं, जो समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं।

समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा
अनंत का यह निर्णय यह बताता है कि एक व्यक्ति की इच्छा शक्ति और समझ समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। उनके इस कार्य ने कई लोगों को प्रेरित किया है कि वे भी छोटे-छोटे प्रयासों से समाज में अच्छाई फैला सकते हैं।

सहानुभूति और सामाजिक जिम्मेदारी
यह पहल यह भी दर्शाती है कि हमें अपने जीवन में सहानुभूति और जिम्मेदारी की भावना बनाए रखनी चाहिए। अनंत ने यह दिखाया कि जब कोई व्यक्ति समाज के प्रति सचेत होता है, तो वह दूसरों की जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।

एक प्रेरणादायक कदम
अनंत अंबानी का यह कदम केवल उनकी दयालुता का प्रतीक नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक प्रभाव डालने की उनकी इच्छा का भी प्रमाण है। उनका यह प्रयास दूसरों को भी प्रोत्साहित करता है कि वे अपने स्तर पर समाज के लिए कुछ बेहतर करें।

निष्कर्ष: मानवता की मिसाल
अनंत अंबानी ने इस पहल से साबित कर दिया है कि समाज के लिए अच्छा कार्य करने का मौका हर किसी के पास होता है। उनका यह कदम एक प्रेरणा है जो दर्शाता है कि इंसानियत और संवेदना के साथ उठाया गया हर छोटा कदम बड़ा बदलाव ला सकता है।

अगर चाहें तो मैं इसे और भी संक्षेप या विस्तार से लिख सकता हूँ!

आज कमला जी बहुत गुस्से मे थीं।उनके चेहरे की आड़ी तिरछी रेखाओं मे उनकी झुंझलाहट साफ झलक रही थी।रोज़ की तरह आज भी पार्क मे म...
26/08/2025

आज कमला जी बहुत गुस्से मे थीं।उनके चेहरे की आड़ी तिरछी रेखाओं मे उनकी झुंझलाहट साफ झलक रही थी।
रोज़ की तरह आज भी पार्क मे मार्निंग वाक के बहाने आई हुई औरतों का हुजूम इकट्ठा था।जो टहलती कम तेरीमेरी ज़्यादा करती थीं।आज की चर्चा काम वालियों पर थीं जो अमूमन हर तीसरे दिन होजाती थी और जिसमें सब बढ़ चढ़ कर भाग लेतीं और बाईयों की अहसान फ़रामोशी के ज़िक्र के साथ अपनी दरिया दिली का वर्णन करने से नहीं चूकती थीं।
“मैंने अपनी बाई को दो सूट दिये....अरे वही अनारकली वाला ....आजकल उसकाफैशन नहीं रहा न...पर उसकी आंखों मे ज़रा शरम नहीं है....कल बिट्टू आने वाला है और महारानी चार दिन की छुट्टी ले कर बैठ गयी। “,
“अरे.....इन लोगों कीआंख मे सुअर का बाल है..अब देखो न ....घर के रिनोवेशन के समय मैंने अपनी महरी को कितना सामान दिया... पर मजाल है ज़रा भी लिहाज़ करे....”,.यह बड़े व्यवसायी की पत्नी रमा का स्वर था।
मैंने एक बार मज़ाक मे बोल दिया था,”तो इसका मतलब आपने अपने घर का कबाड़ उसके घर पर डाल दिया”,तो वह सारी की सारी बिफर गई थीं,”अरे बेटी का लंहगा था पुराना सही तो क्या हुआ... अभी खरीदने जाएं तो पता चले....पूरे पांच हज़ार का लिया था पांच साल पहले..।अब तो और भी मंहगा होगा”।
पर सबसे ज्यादा अपनी दरियादिली दिखाने वाली कमला जी आज दूसरे ही मूड मे थीं,”अरे अब इन लोंगो का दिमाग बहुत खराब हो गया है... आज मैंने अपनी नयी महरी को रात का बचा खाना दिया तो जानती हो उसने क्या कहा..... आंटी.. हमें अपने घर का रूखासूखा ही पसंद है हम किसी के घर से खाना नहीं लेते...आप इसे गाय या कुत्ते को डाल देना”।
“अच्छा....”,एक सम्वेत लम्बा स्वर उभरा
“हाँ..और यही नहीं ....बहू ने जब उसे अपनी पुरानी साड़ियां देने की पेशकश की तो उसने साफ मना कर दिया”भाभी हम अपने चिथड़ों मे खुश हैं...हम पुराने कपड़े नहीं लेते”।
“ओह...”,जैसे कुछ अप्रत्याशित घट गया था ऐसे सब का सामूहिक स्वर निकला था पर किसी का साहस नहीं था कि कमला जी के बिलबिलाते अहम् पर सांत्वना का फाहा रख दे।
मंजू सक्सेना

निस्तेज चेहरा! मुट्ठी भर कमर ! पेट- पीठ में दरारें ! ओह! तुम्हारी ये दुर्दशा ? तुम बीमार एवं श्रीहीन लग रही हो ! " वर्षो...
26/08/2025

निस्तेज चेहरा! मुट्ठी भर कमर ! पेट- पीठ में दरारें ! ओह! तुम्हारी ये दुर्दशा ? तुम बीमार एवं श्रीहीन लग रही हो ! " वर्षों बाद अपनी लाडली 'गंगा' से मिलते ही पिता ने व्यथित होकर कहा ।
" बाबा, आप तो सब जानते हैं । कभी मैं धरती पर स्वर्ग से लोकहित के लिए लायी गयी थी ! देवाधिदेव महादेव ने अपने मस्तक पर मुझे सुशोभित कर मेरा मान बढ़ाया था ।इतना ही नहीं, मेरी शुद्धता और पवित्रता के लिए पहले "अंभ " शब्द का प्रयोग हुआ करता था ।लेकिन अब मैं "अप" बन कर रह गयी ! अंभ से अप तक का कष्टदायक सफर से मैं बहुत विचलित हो गई हूँ!अब मैं आचमन के लायक भी नहीं रही !
भारत के जिस आधे क्षेत्र को मैंने संचित और पोषित किया , उन सभी जगहों से भी प्रताड़ित हो रही हूँ ! मेरा जीवन अब मृतप्राय हो गया है ... हूं... हूं.हूं. हूं ..."
" बेटी मत रो ! तुम मोक्षदायिनी हो । पहले की तरह आज भी गाँव के लोग तुम्हें प्यार और श्रद्धा से पूजते हैं ।धरती पर एक तुम ही हो, जो प्राणी मात्र को स्वर्ग ले जाती हो ।
लेकिन , तुम्हारी इस दुर्दशा का अपराधी निश्चित रूप से आधुनिक मानव ही है ! जिसने लोलुपता और अंधाधुंध व्यवसायीकरण के चलते तुम्हें इस दयनीय हालत में पहुँचाया है ! लेकिन अब उनकी ख़ैर नही !
तुम मत घबराओ । तुम्हारे ऊपर अभी पिता का साया है कायम है। हिमालय की तरह अडिग , मैं तुम्हारे जीवंत प्रवाह को लौटाने के लिए कृतसंकल्प हूँ।
देखो, मेरी बलशाली भुजाओं को , जिसमें अर्जुन और भीम की तरह कौरव दल को परास्त करने की अपार क्षमता है । ” जोश से कहते हुए आकुल पिता... मृतप्राय बेटी को निरोग करने में जी-जान से जुट गया ।
कुछ ही दिनों बाद बेजान पड़ी बेटी , पिता के लगन और संकल्प से जीवंत हो खिलखिला कर फिर से हँसने लगी।
पहले की तरह उसे चहकते देख , चहुँ ओर वातावरण सुरभित हो उठा । कोयल की कूक फिर से गूंजने लगी ।
मंद -मंद बयार बहने से आस पास के पेड़, पौधे झूम कर गीत गाने लगे.....
'गंगा तेरा पानी अमृत... '
----- मिन्नी मिश्रा
स्वरचित©®

बात छोटी सी थी । विवाद भी कोई बड़ा न था ।  फिर भी --------- । वह घर छोड़ कर चली गई। पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा ।  मेरा घर...
26/08/2025

बात छोटी सी थी । विवाद भी कोई बड़ा न था । फिर भी --------- । वह घर छोड़ कर चली गई। पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा । मेरा घरौंदा आज भी, उसके आने की इंतजार कर रहा है। खुशियां फिर लौटेंगी । आबाद होगा, बर्बाद सूना घर । प्रतिक्षा में -------- ।
जिंदगी आशा, विश्वास, समझौतों की कहानी है / नहीं है ?
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रमेश गुप्ता
अलवर ( राजस्थान)

Address

Rohini
Delhi
110085

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