26/08/2025
सुनीता अपने नये फ्लैट में बेटे-बहू के साथ शिफ्ट हुई थी| आसपास के लोगों से जान-पहचान होने लगी थी।
एक दिन दोपहर को ऊपर वाले फ्लैट से सुषमा आंटी आई|
"शीलू चाय बनाकर लाना" सुनीता ने अपनी बहू शीलू से कहा।
शीलू चाय-नाश्ता लेकर आ गई|
आज बहू घर पर है, सुषमा जी ने पूछा?
हां, सुषमा, क्यों क्या हुआ?
सुनीता ने पूछा|
सुनीता तुम्हारी बहू नौकरी नहीं करती है?
मेरी तो दोनों बहूएं सुबह ही काम पर निकल जाती है।
सुषमा ने एकदम से बोल दिया
इतनी पढ़ी-लिखी होने के बाद भी घर पर बैठी हो ?
आजकल की तो सब बहुएं नौकरी करती है,घर पर नहीं बैठती है।
ये सुनकर शीलू चुप रह गई, सुषमा आंटी को वो जवाब दे सकती थी, पर उसके संस्कारों ने उसे रोक लिया।
तभी सुनीता बोली, हमारी तरफ से कोई मना नहीं है,ये शीलू का अपना फैसला है।हम सब इससे खुश हैं, जिसमें शीलू की खुशी है, उसमें ही हमारी खुशी है।
सुषमा के जाने के बाद, सुनीता ने कहा, शीलू बुरा मत मानना, सबके अपने विचार होते हैं, बड़े तो कह देते हैं।
ये सुनकर शीलू मन ही मन सोचने लगी
क्या जरूरी है ? मैं नौकरी करूं?
पढ़-लिखे होने का ये तो मतलब नहीं है कि, मैं भी नौकरी करुं?
ये मेरा अपना फैसला है, हां, मैंने बी.एड किया है, कभी भविष्य में जरूरत पड़े तो मैं कर लूं।
मुझे अपना घर परिवार संभालना है, मुझे अपने शौक पूरे करने हैं, मुझे मेरे हिसाब से जीना है तो क्या जरूरी है, अपने हिसाब से जीने के लिए नौकरी ही करुं?
शोभित की सैलेरी से घर चल रहा है तो मैं क्यों भागादौड़ी करूं? ये किस किताब में लिखा है कि पढ़ी-लिखी हर लड़की को नौकरी करनी ही चाहिए?
मुझे किसमें खुशी मिलती है ये मैंने सोच रखा है, मेरी अपनी कुछ सीमाएं हैं,मेरे अपने सपने हैं तो क्या वो नौकरी करके ही पूरे हो सकते हैं?
मुझे मेरे जीवन की ये शांति अच्छी लगती है, मैं रोज तसल्ली से उठकर घर की हर जिम्मेदारी संभालती हूं,दोपहर में थोड़ी देर अलसा लेती हूं, टीवी पर अपने मनपसंद सीरीयल देख लेती हूं,किटी में जमकर मजे करती हूं,कभी भी कहीं भी चली जाती हूं, सोसायटी के हर फंक्शन में सक्रिय रहती हूं,शाम को सजकर, मुझे पति का इंतजार करना अच्छा लगता है, मुझे खुशी होती है, जब वो मेरे हाथ के खाने की तारीफ करते हैं, मैं रिश्तेदारी के हर काम में चली जाती हूं, मुझे छुट्टी के लिए सोचना नहीं पड़ता है,जब मन हुआ मायके निकल लेती हूं।
मैं खुश हूं, फिर मैं क्यों नौकरी करने की जिम्मेदारी क्यों लूं?
मैं घर पर रहते हुए भी अपनी जिंदगी शांति और खुशी से बिता रही हूं|
मुझे इन सबसे ही खुशी मिलती है, पूरा वक्त मिलता है, मुझे अच्छा लगता है घर पर रहना।
घर पर बैठना क्यों बोलते हैं?घर पर बैठे-बैठे कौनसे काम हो जाते हैं, घर संभालने के लिए भी कितना
मानसिक और शारीरिक श्रम लगता है, ये किसी को पता ही नहीं है।
कैसे लोग इस तरह बोल देते हैं, घर पर क्यों बैठी हो?ये तो घरेलू औरतों के श्रम और प्यार का अपमान है|
मुझे अच्छा लगता है, मैं अपने बच्चों का बचपन जी रही हूं, मैं उनकी देखभाल कर रही हूं,मैं उन्हें पूरा प्यार,समय दे रही हूं।मैं अपने बच्चों के बचपन की हर हरकत, अठखेलियों की गवाह हूं, उन्हें मैंने जीया है।
मेरे बच्चे मेरे प्यार ममता की छांव में पल रहे हैं।
ये मेरा अपना निर्णय है कि मुझे घर पर रहना है,इसे सजाना, संवारना है| मुझे अच्छा लगता है, मुझे घरवालों और अपनों के लिए काम करना बोझ नहीं लगता है।
मुझे सूकून मिलता है, जब मैं अपने पति और बच्चों को उनकी पसंद का खाना घर पर बनाकर खिलाती हूं, मुझे खुशी होती है जब मैं हर त्योहार की पूरी तैयारी करती हूं, उसे रीति-रिवाज के साथ मनाती हूं।
मुझे त्योहार पर सजना और मेंहदी लगाना भी पसंद है।
मुझे इस बात पर जरा भी शर्मिंदगी नहीं है कि मैं घर पर रहती हूं।जिस घर को मेरे पति मेहनत से सींचते हैं मैं उसकी मालकिन हूं, हां, ये मेरा घर है और घर पर रहने से मुझे आत्मिक शांति और सुख मिलता है।
हर वीकेंड पर मैं भी परिवार सहित घूम लेती हूं,हर तरह से मैं जिंदगी का हर पल जी रही हूं।
ये तो जरूरी नहीं है कि मैं अपनी खुशी बाहर ढूंढने जाऊं? मुझे घर में ही खुशी मिलती है, ये मेरा अपना नजरिया है।
मुझे मेरा घर संभालना खुशी देता है।
दुनिया का सबसे बड़ा सुख है, खुद का खुश होना।
हां, मैं घर पर रहकर बहुत खुश हूं।
दोस्तों, ये खुद का निर्णय होना चाहिए कि, हमें नौकरी करनी है या नहीं।
ये हर महिला की निजी सोच और आवश्यकता है, आप किसी को किसी काम करने, या ना करने के लिए नहीं कह सकते हैं।
किसी को नौकरी करके ख़ुशी और सूकून मिलता है तो किसी को घर संभालकर सूकून मिलता है।
हमारी खुशियां इस बात पर निर्भर नहीं होनी चाहिए कि दूसरे क्या करते हैं,और क्या कहते हैं।
हमारी खुशी इस बात पर होनी चाहिए कि हम क्या चाहते हैं और हमें क्या करके खुशी मिलती है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल ✍️
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित