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शामली की सावी जैन: मेहनत और हौसले से रचा इतिहासउत्तर प्रदेश के शामली की सावी जैन ने CBSE बोर्ड परीक्षा 2025 में 500 में ...
21/09/2025

शामली की सावी जैन: मेहनत और हौसले से रचा इतिहास
उत्तर प्रदेश के शामली की सावी जैन ने CBSE बोर्ड परीक्षा 2025 में 500 में से 499 अंक प्राप्त कर देशभर में टॉप किया। उसका सपना IAS बनकर देश की सेवा करना है। सावी की यह उपलब्धि बेटियों की ताकत और हौसले की मिसाल है, जिस पर पूरे देश को गर्व है।
उत्तर प्रदेश के शामली की बेटी सावी जैन ने CBSE बोर्ड परीक्षा 2025 में 500 में से 499 अंक प्राप्त कर देशभर में टॉप किया। इस उपलब्धि से न केवल प्रदेश, बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन हुआ है। सावी की सफलता यह साबित करती है कि बेटियाँ किसी से कम नहीं।
साधारण परिवार से निकली इस असाधारण छात्रा ने मेहनत, अनुशासन और संकल्प के बल पर यह मुकाम हासिल किया। उसका सपना IAS बनकर शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बदलाव लाना है। इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी सोच उसे विशेष बनाती है।
सावी की उपलब्धि उसके परिवार और शिक्षकों के सहयोग के बिना संभव नहीं थी। माता-पिता ने त्याग और समर्थन से पढ़ाई का माहौल दिया, जबकि शिक्षकों ने उसकी प्रतिभा को निखारा।
सावी का कहना है कि उसकी सफलता का राज मेहनत के साथ-साथ अनुशासन और समय का सही प्रबंधन है। वह सोशल मीडिया से दूर रहकर नियमित पढ़ाई करती थी और हर विषय को बराबर महत्व देती थी।
सावी जैन आज देशभर की बेटियों के लिए मिसाल है—कि अगर अवसर और संकल्प हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं।

वाट्सप पर रुचि को मैसेज करते वक्त वह थोड़ा घबराया हुआ था, रुचि ने उसके वाट्सप स्टेटस को देखकर थम्पसप का इशारा भी किया था,...
21/09/2025

वाट्सप पर रुचि को मैसेज करते वक्त वह थोड़ा घबराया हुआ था, रुचि ने उसके वाट्सप स्टेटस को देखकर थम्पसप का इशारा भी किया था, और उसकी डीपी की तारीफ की थी, लेकिन उसके आगे?
उसने कुछ मेसेज नहीं किया। कॉलेज के लिए तैयार होते वक्त उसकी एक आंख घड़ी की ओर थी दूसरी फोन पर, लेकिन नेटवर्क गायब। देश को फोर जी में ले जाओ या फाइव जी में,कोई जी काम नही करता, न कहीं जी लगता है।
उसका जी उचट गया।
मेट्रो में बैठते वक्त बस गुड मॉर्निंग लिखा उसने। नजरें मोबाइल पर जमी रही बदस्तूर। प्रतीक्षारत।
पहले मेसेज डिलीवर हुआ, फिर एक टिक का निशान, फिर दो नीली धारियां।
मेसेज पढ़ लिया है उसने। चेहरे पर संतोष के भाव आये।
सुनो! तुम कुछ कहना चाहते हो? रुचि ने अंशुल को मेसेज किया।
अंशुल हतप्रभ रह गया, समझ नही आया क्या जवाब दे, क्या कहे? पूरे छः साल के बाद ये पूछा था रुचि ने।
अंशुल को जवाब न देता देख कर रुचि ने ही लिखा शाम को मिल सकते हो, वहीँ?
जी जरूर। इतना लिखने में भी अंशुल की सांस अटकी हुई थी।
ठीक है, पांच बजे।रुचि ने मुसकान वाली इमोजी डाली और ऑफलाइन हो गयी।
विश्वविद्यालय के पास एक रेस्टोरेंट है। अभी साढ़े चार बजे थे अंशुल आकर बैठ गया, परमानेंट सीट पर। उसे लगा आज तो बिल्कुल भी देर नही होनी चाहिए। समय जैसे रुक सा गया था उसकी घड़ी में। और वो चला गया छः साल पहले जब उसने यहां दाखिला लिया था।
ये देश का भी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है, उसका सपना था कॉलेज में प्रोफेसर बनना और इस लक्ष्य को पाने के लिए ये सबसे अच्छी जगह थी। एक दिन खाली समय में दोस्तो के साथ टहलते हुए अंशुल की नजर पड़ी रुचि पर। कुछ और लड़कियां साथ थी, उसके बालों पर जो कमर से बहुत नीचे तक दो चोटियों की शक्ल में गूंथे हुए थे। उसने रुचि का चेहरा भी नहीं देखा था पर उसका दिल जोरों से धड़क गया। लगा,यही तो है वो ख्वाबो की परी।
लड़कपन की दहलीज़ छोड़ कर जवानी में कदम रखती जिंदगी में ऐसी जाने कितनी कल्पनाएं, कितनी परियां, कितनी नायिकाएं ख्वाबो में जगाती हैं ये हर कोई जानता है। अंशुल तेजी से आगे निकला और मुड़ कर देखा उसकी तरफ।
सांवला रँग, लंबा कद और औसत सा व्यक्तित्व। पर कुछ तो था रुचि में जो अंशुल को बांध गया।
अब शुरू हुई कवायद रुचि के बारे में जानने की। दोस्तो से लेकर केंटीन के छोटू से होते हुए चपरासी तक दौड़ लगाई गई पर कुछ हाथ न आया। इतना बड़ा विश्विद्यालय जहां हजारों बच्चे पढ़ते हों वहां किसी एक की जानकारी निकालना सागर में से मोती तलाशने जैसा दुष्कर था। पर जहां चाह वहां राह। एक दिन लाइब्रेरी में फिर दर्शन हो गए अनायास। अंशुल ने वहां क्लर्क को पटाया, केंटीन में लन्च का सौदा किया तब जाकर उसे क्लर्क ने रुचि का कार्ड दिखाया।
क्लास - बीकॉम सेकेंड ईयर, सेक्शन-सी, नाम- रुचि शर्मा। बस इतना काफी था अंशुल के लिए। अब जैसा कि होता है नए नए आशिक की तरह अंशुल आगे-पीछे मंडराने लगे। उसके कॉलेज आने से लेकर वापस जाने तक जब भी अवसर मिलता। दर्शन लाभ के लिए लालायित अंशुल आसपास दिखाई देता।
ईश्वर ने नारी को कुछ अलग सी शक्ति दी है, हर देखने वाली नज़र, आसपास रहने वाले शख्स की हरकतें सब उनके राडार के पकड़ में आ जाती हैं। अंशुल की गतिविधियां भी अछूती न थी इससे। एक दिन केंटीन में अंशुल रुचि के बिल्कुल पीछे बैठा था कि रुचि ने अपनी सहेली से कहा। यार आजकल तो जूनियर भी लाइन मारने लगे हैं सीनियर को। हिम्मत देखो इनकी। अरे पढ़ने आये हो पढ़ाई करो। केरियर बनाओ पहले। ये इश्क-इश्क सब बेकार है। मैं तो बिल्कुल यकीन नहीं करती इन पर।
अंशुल को समझ आ गया कि ये तीर उसे लक्ष्य करके छोड़ा गया है। उस दिन के बाद उसने पीछा करना छोड़ दिया। पर चूंकि कुछ विषय दोनो के एक थे तो रुचि का आर्ट्स विभाग में आना होता था। वो खामोशी से उसे देख लेता। उसे भी लगा मजनू की तरह भटकने से बेहतर है कुछ कर के दिखाया जाए जिससे अच्छा असर पड़े रुचि पर।
वो एक साल आगे थी, पर कभी-कभी कोई क्लास एक साथ लगती। तो कभी किसी सेमिनार में साथ होने का मौका मिल जाता। सामान्य सी बातचीत होने लगी थी उनमें। कभी पढ़ाई को लेकर कभी ग्रुप में एक साथ हो तो। पर वो अपनी भावनाओं को बांध कर रखता। समय के साथ उसका आकर्षण प्यार में बदल रहा था। पर वो बिल्कुल नहीं चाहता था कि रुचि को पता चले। जब भी दोनो साथ होते वो नजर झुकाए रखता। कम बोलता।
साल गुजर गए दोनो ग्रेजुएशन कर पोस्ट ग्रेजुएशन में आ गए। पर हालात वहीं के वहीं। रुचि जहां पढ़ाई में सामान्य थी वहीं अंशुल लगातार प्रथम आ रहा था।
दोनो में काम चलाऊ दोस्ती हो गयी थी। रुचि अंशुल की भावनाओ को समझती थी पर पूरी तरह अनजान बनी रहती। अंशुल ने भी कुछ न कहने की जैसे कसम खाई हुई थी। बस वो रोज उसके आने के समय पर नियत स्थान पर रहता, उसे एक नजर देखता और चला जाता। न कभी उसने रोका न रुचि ने रुककर पूछा कि क्यों खड़े रहते हो यूँ।
पोस्ट ग्रेजुएशन भी हो गया। रुचि तो पहले ही पीएचडी में आ गयी थी। दोनो के विषय अलग थे मगर समूह एक ही था। बिल्डिंग एक थी तो सारा दिन वो रुचि को देख लेता था। लगभग सब खत्म होने को था। थीसिस जमा हो गयी वायवा भी हो गया। बस अब डिग्री का इंतज़ार है।
हेलो! रुचि की मीठी आवाज से अंशुल वापस वर्तमान में आया।
कब से बैठे हो?
कुछ देर हुआ। तुम कब आई?
बस अभी। तुम इतने खोए हुए थे कि तुम्हे पता ही नहीं चला।
आज खास दिन है। क्या खिलाओगे? रुचि ने सवाल किया।
खास कुछ तो मिलने से रहा यहां। हाँ मैं जरूर कुछ लाया हूँ।पहले कॉफी ऑर्डर कर लें।
रुचि ने सहमति दी- ठीक है, मंगाओ।
एक बात बताओ। आज मुझपर क्यों नजरे इनायत हुई? क्या कर दिया मैंने? अंशुल ने सवाल किया।
कुछ नहीं। अब पढ़ाई खत्म होने वाली है। कुछ दिन में तुम अपने रस्ते मैं अपने। तकदीर देखो मैं एक साल सीनियर थी तुमसे और आज एक साथ पीएचडी कर रहे। साथ ही डिग्री लेंगे।
एक बात कहनी थी तुमसे, तुम्हे याद है जब तुम यहाँ आये थे, मेरे पीछे पड़े रहते थे सारा दिन। मैने कहा था जूनियर सीनियर को लाइन मारने लगे हैं और भी बहुत कुछ। उस दिन के बाद से तुम खामोशी से दूर रहने लगे मुझसे। न पीछा करते न नजर मिलाते न ही कोई कमेंट्स करते। उस समय मुझे लगा नई नई उम्र का फितूर है उतर जाएगा वक्त के साथ।
फिर तुम अच्छे लगने लगे मुझे। सब के साथ तुम्हारा अच्छा व्यवहार, तुम्हारी खमोशी, केरियर को लेकर गम्भीरता। ये सब मेरे मन को बांधने लगा। छः साल हो गए तुम्हे, पर एक दिन भी जाहिर नही किया तुमने की तुम प्यार करते हो मुझे। तुम्हारी आंखे बहुत पारदर्शी हैं, जब तुम मेरे सामने होते हो न, ये इतने रँग बदलती हैं कि मैं सब समझ जाती हूँ जो तुम कहना चाहते। पर मुझे लगा तुम्हारे भविष्य को पहले पुख्ता होने दें। इस प्यार के फेर में पड़कर कुछ खो न जाये दोनो का।
तो आज मैने तुम्हे इसलिये यहां बुलाया है अंशुल, की आज सब कुछ साफ कर दिया जाए। तुम कभी बोलोगे नहीं ये जानती हूँ मैं। मेरे बड़े होने वाली बात गांठ सी जमी हुई है तुम्हारे मन में।
तो मैं आज तुमसे कहती हूँ- मैं प्यार करती हूँ तुमसे। मैं सारा जीवन साथ बिताना चाहती हूँ तुम्हारे। क्या तुम मेरा प्यार स्वीकार करोगे?
अंशुल के शब्द कहीं खो गए थे, सांसे बेलगाम हो गयी थीं और होश सातवे आसमान पर।
उसने अपने बैग से एक पैकेट निकाला, रुचि से कहा माँ ने मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू भेजे हैं, ये खाओगी?
अंशुल! क्या तुम मेरे जीवन में इसी तरह मिठास भरते रहोगे?
अंशुल ने एक लड्डू रुचि की तरफ बढ़ा दिया।
©संजय मृदुल

हवलदार अब्दुल हमीद: भारत का अमर वीर सपूत1965 के भारत-पाक युद्ध में हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी गन-माउंटेड जीप से अकेले ही...
21/09/2025

हवलदार अब्दुल हमीद: भारत का अमर वीर सपूत
1965 के भारत-पाक युद्ध में हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी गन-माउंटेड जीप से अकेले ही पाकिस्तान के 7 टैंकों को ध्वस्त कर दिया। उनकी असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें महावीर चक्र और परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह हिंदुस्तानी शेर आज भी देश का गर्व है।
भारतीय सेना के हवलदार अब्दुल हमीद की वीरता और शौर्य आज भी हर भारतीय के दिल में जीवित है। 1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने असाधारण साहस दिखाया और अपनी गन-माउंटेड जीप से अकेले ही पाकिस्तान के 7 टैंकों को ध्वस्त कर दिया।
उनके इस साहसिक कदम ने दुश्मन के मनोबल को तोड़ दिया और भारतीय सेना का गौरव बढ़ाया। उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें महावीर चक्र और परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
हवलदार अब्दुल हमीद सिर्फ रणभूमि के नायक नहीं थे, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए प्रेरणा बने। उनकी कहानी बताती है कि देश की रक्षा के लिए एक सैनिक कितना बड़ा बलिदान और समर्पण कर सकता है।
उनकी शहादत और वीरता सदैव भारतीयों को साहस, देशभक्ति और निस्वार्थ सेवा की राह दिखाती रहेगी। भारत इस अमर शेर को सदैव नमन करता है।

डॉक्टर प्रतिभा के क्लिनिक में चपरासी और नर्स मिलकर एक महिला को पकड़कर अंदर ला रहे थे और वो जोर से चिल्ला रही थी, "ढूढों, ...
21/09/2025

डॉक्टर प्रतिभा के क्लिनिक में चपरासी और नर्स मिलकर एक महिला को पकड़कर अंदर ला रहे थे और वो जोर से चिल्ला रही थी, "ढूढों, ढूंढो कहीं से भी लाओ मेरी बेटी को।"
प्रतिभा ने कुर्सी पर बिठाया, साथ मे एक सज्जन भी थे।
ये मिस्टर बासु थे, बताया, "घर मे हमदोनो ही हैं, मैं एक कंपनी में जनरल मैनेजर था। कुछ वर्षों से कभी कभी मेरी पत्नी भावना को दौरे पड़ते हैं और पूरे दिन ये चिल्लाते रहती है, संभालना मुश्किल पड़ता है।"
उसी समय जैसे ही सबने कुर्सी में बैठाया, सबकी पकड़ ढीली होते ही, भावना पलक झपकते उठकर डॉ प्रतिभा के पास आ गयी और उसको पकड़कर खुशी से कूदने लगी, मिल गयी देखो, मिल गयी और गुनगुनाने लगी, मेरे घर आई एक नन्ही परी।
उसके बाद थोड़ी देर सन्नाटा सा छा गया, क्योंकि वहां एक इज्जतदार, पढ़ी लिखी, भावना शांति से कुर्सी पर आंखे बंद किये आराम कर रही थी।
डॉ ने नर्स को कहा, "इन्हें 210 रूम में लिटा दो, इन्हें इंजेक्शन देना है, तैयारी करो।"
रात को घर आकर अपनी मम्मी एलिसा से मिलते ही अस्पताल की वो पेशेंट का हाल बताया और ये भी कहा, "मम्मी, पता नही क्यों उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा तो मुझे आपकी झलक मिली।"
एक सेकंड को एलिसा भी असमंजस में पड़ गयी फिर विचारों को झटक कर एलिसा को गले लगाया, "इतना भावुक होने की जरूरत नही, तुम डॉक्टर हो ऐसे लोग आएंगे ही।"
दूसरे दिन डॉ अस्पताल पहुँची तो भावना कमरे में फिर उठापटक कर रही थी। आज उनके श्रीमान जी से डॉ प्रतिभा ने पूरी हिस्ट्री जाननी चाही।
बोले, "हमारी शादी के बाद हम दोनों जॉब में थे, मुम्बई में व्यस्त रहते थे, दोनो के पास समय नही था। भावना को बच्चो से बहुत लगाव था, पर डॉ ने उसे बहुत कमजोर बताया। फिर हमने सेरोगेसी प्लान से ही एक बच्चे की इच्छा पूरी करने की सोची। उस समय समाज मे ये सब खुल्लमखुल्ला नही होता था। हम केरल गए, डॉ ने ही एक महिला से बात कराई, पांच लाख देकर नौ महीने हमारे बच्चे को उन्होंने कोख में रखा।
उस समय की एक और त्रासदी थी, लोग लड़कियों के जन्म पर खुश नही होते थे। और हमदोनो लड़के की उम्मीद लगाए सपने बुनते रहे।
फिर एक दिन अस्पताल से डॉ का फ़ोन आया, "बेटी हुई है।"
दूसरे दिन ही ऑफिस के काम से अमेरिका जाना पड़ा। धीरे धीरे समय गुजरा, भावना को मनाया हम फिर सरोगेसी कराएंगे, पर लड़की नही लेंगे। अब बुढ़ापे में दोनो उस छोटी सी प्यारी सी बच्ची को याद करते है, भावना का पागलपन दिख जाता है, मेरी बेबाकी ड्रिंक्स के बोतल में भर जाती है।"
सारी कहानी जानकर डॉ प्रतिभा हतप्रभ रह गयी, और कहा, "बहुत बुरा किया, जैसी करनी वैसी भरनी।"
घर मे एलिसा भी अकेले में परेशान हो रही थी, ये कौन सी पेशेंट है, जिसको देखकर प्रतिभा भावुक हो रही है, मुझे जानना ही पड़ेगा।
आज का लंच लेकर ड्राइवर के साथ हॉस्पिटल पहुँची और नर्स से पूछकर उस पेशेंट भावना के कमरे में गयी। वो सो रही थी, नजर पड़ते ही उल्टे कदम वापस लौटी और प्रतिभा से मिले बिना ही घर आ गई।
इसके बाद एलिसा हमेशा परेशान रहने लगी और एक दिन भावुकता में एक निर्णय ले लिया। केरल में आज भी उसके भाई रहते थे एक ईमेल प्रतिभा के नाम लिखकर उससे दूर जाने को तैयार हो गयी और चल दी।
जैसे ही अस्पताल में प्रतिभा को समय मिला उसने आश्चर्यजनक ईमेल देखा और पढ़ना शुरू किया....
किस मुँह से बताऊं, दिल तो नही मानता पर सत्य ये है कि मैं तुम्हारी सेरोगेट मदर हूँ। विश्वास करो, शायद कभी नही बताती क्यों तुम मेरा अस्तित्व बन चुकी हो। पर एक महिला होकर महिला के मातृत्व से खेलना मेरा दिल कचोट रहा है। माफ करना बेटी। मुझे इस जनरल मैनेजर के परिवार ने असमंजस में डाला था, कैसे समाज को बताऊं समझ नही आ रहा था, पर जीती जागती कोमल, सुंदर सी प्यारी सी बच्ची का हाथ मैं नही छुड़ा पायी। आज महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा पुरस्कार है कि कोर्ट ने इसे कानूनन सही बताया।
डॉ प्रतिभा के सामने टिश्यू पेपर जमा हो रहे थे, और आंखे थी कि सागर को भी मात दे रही थी।
और वो बड़बड़ाने लगी, "एलिसा मम्मी, आप कहीं नही जाओगी, मैं आपको अपने ही आस पास रखूंगी।
सबसे पहले मन की भावनाओ को काबू करके भावना पेशेंट से मिलने गयी, सो रही थी, ध्यान से देखा तो अपना ही अक्स नजर आया, उनके सर पे हाथ फेरने लगी और गले लगकर कहा, "तुम भी मेरी माँ की ही तरह हो।"
बिना इंजेक्शन दवाई के वो दो दिन में ठीक हो गयी और रिटायर्ड जनरल मैनेजर को बुलाकर कहा, "आपने बरसो पहले एक गलत काम किया, उसका खामियाजा आपको भुगतना पड़ रहा है। आप बड़े लोग सिर्फ पैसे से दुनिया को तौलते रहे क्या आपको पता है, औरत अपनी कोख में दूसरे का बच्चा पालती है, वो सरोगेट मदर भावनात्मक रूप से कितना कुछ सहती है। भावना जी की तबियत के कारण मैं भी भावुक हो गयी, पर आपको मैं कभी माफ नही करूँगी।
स्वरचित

अचानक मेरे फ़ोन की रिंग बजने लगी। देखा तो मेरे मित्र अविनाश का फ़ोन था। मैंने जैसे ही फ़ोन उठाया उधर से अविनाश की आवाज आई--...
20/09/2025

अचानक मेरे फ़ोन की रिंग बजने लगी। देखा तो मेरे मित्र अविनाश का फ़ोन था। मैंने जैसे ही फ़ोन उठाया उधर से अविनाश की आवाज आई-
-"डियर संतोष,आई एम् सॉरी, मैं आज सोसायटी की मिटिंग में नहीं आ सका। कोई ख़ास बात हुई क्या ?" मैं बोला-
-"नहीं कोई ख़ास नहीं,वही रूटीन। पर तुम कह रहे थे कि कोई जरूरी काम है। होगया क्या वो जरूरी काम ?"
-"अरे जरूरी काम क्या,आज मैंने स्वामी सत्यनारायण जी की कथा आयोजित की थी।"
- अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है। तब यही बताना था कि कथा है। शायद संकोच कर गए कि लोग क्या कहेंगे कि आज के समय में भी कथा में विश्वास रखते हो।"
वोखिसियानी हंसी हंसने लगा। मैं बोला -
-"कोई ख़ास इच्छा से कथा रखी थी या -- - - -
-अरे नहीं, कोई ख़ास वजह नहीं मैं दो तीन माह में एक बार स्वमी सत्यनारायण जी की कथा और शक्ति स्वरुप बजंगबली जी के शौर्य की गाथा और महिमा को बखान करता सुन्दरकांड का पाठ करवाता रहता हूँ। इससे मुझे बहुत पॉजिटिव एनर्जी मिलती है। बच्चे भी बड़े मनोयोग से सुनते हैं।"
उसकी ये बात सुनकर मुझे बहुत श्रद्धा हुई क्योंकि मैं भी इसे मानता हूँ। फिर भी मैंने उसे यूँ ही छेड़ने के लिए कहा-
-"यार आज के वैज्ञानिक युग में भी तुम ये सब मानते हो।" वो बोला-
- "यार अपनी-अपनी सोच है।नहीं मानो तो पत्थर की या धातु की मूर्ती है मानो तो
ईश्वर है। श्रद्धा ही मूर्ती को भगवान बना देती है।"
-"बहुत सही सोच और विचार है। मैं खुद वर्षों से नहाते समय सर पर पानी पड़ते ही मुंह से ईश्वरीय शोलोकों का उच्चारण और श्रीहनुमान चालीसा शुरू कर देता हूँ ये मेरा रोज का नियम है।" वो बोला -
" सही है, सभी अपने-अपने ढंग से अपने आराध्य को पूजते ही है। कोई तो अपने कार्य को ही पूजा मान लेता है और अपने आपको पूरी तरह कार्य को समर्पिते कर देता है और कोई सेवा को ही अपनी पूजा मान लेता है। सभी को अपने इन कार्यों से 'पोजेटिव इनर्जी' मिलती है। मैं बेटे के से हाथ स्वामी जी का प्रशाद भिजवाता हूँ " कहकर उसने फ़ोन काट दिया। मैं सोच रहा था कि ये बात कितनी सही है कि आज के समय में जहां
सारा माहौल ही नकारात्मक ऊर्जा से भरा है वहां हमें जहां से भी सकारात्मक ऊर्जा मिले,जरूर प्राप्त करते रहना चाहिए।
***********
श्याम आठले (ग्वालियर,म-प्र-)
मौलिक,

एक फौजी का अनोखा तरीका: पत्नी को रोज़ मिलती है तसल्लीATM गार्ड ने एक फौजी से पूछा कि वह रोज़ 100 रुपये ही क्यों निकालता ...
20/09/2025

एक फौजी का अनोखा तरीका: पत्नी को रोज़ मिलती है तसल्ली
ATM गार्ड ने एक फौजी से पूछा कि वह रोज़ 100 रुपये ही क्यों निकालता है। फौजी ने जवाब दिया कि उसका खाता पत्नी के नंबर से जुड़ा है और हर बार मैसेज जाने से पत्नी को तसल्ली होती है कि वह ज़िंदा और सुरक्षित है। यह सुनकर गार्ड भावुक हो गया।
एक बार ATM गार्ड ने एक सैनिक से पूछा – “आप रोज़ 100 रुपये क्यों निकालते हैं? एक ही बार में पूरा पैसा क्यों नहीं निकालते?” इस पर सैनिक ने ऐसा जवाब दिया कि हर कोई भावुक हो गया।
सैनिक ने कहा – “मेरा खाता मेरी पत्नी के नंबर से जुड़ा है। जब भी मैं पैसे निकालता हूँ, तो उसके फोन पर मैसेज जाता है। यह मैसेज उसे तसल्ली देता है कि मैं ज़िंदा और सुरक्षित हूँ। इसलिए मैं रोज़ थोड़ा-थोड़ा पैसा निकालता हूँ, ताकि उसे रोज़ यह विश्वास मिले।”
यह सुनकर ATM गार्ड भी चकित रह गया। यह छोटी सी आदत सैनिक की अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को दर्शाती है।
यह कहानी बताती है कि हमारे सैनिक सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि अपने परिवार की भावनाओं का ख्याल रखने में भी सबसे आगे होते हैं। उनके छोटे-छोटे कदम भी बड़े रिश्तों और गहरी मोहब्बत का प्रतीक होते हैं।

"ओफ्फो! ये तो आंटी की ही आवाज है। ना जाने कैसे-कैसे लोग रहने आ जाते हैं।" कप में कॉफी घोलते-घोलते बड़बड़ाती हुई मैं अपनी ब...
20/09/2025

"ओफ्फो! ये तो आंटी की ही आवाज है। ना जाने कैसे-कैसे लोग रहने आ जाते हैं।" कप में कॉफी घोलते-घोलते बड़बड़ाती हुई मैं अपनी बालकनी से सामने वाले फ्लैट में ताक-झाँक करने लगी। हमारी सोसाइटी में इन लोगों को आये हुए दो हफ़्ते ही हुए हैं। पति पत्नी उनकी दस-ग्यारह महीने की बेटी और माताजी बस ये चार ही सदस्य हैं परिवार में लेकिन शोर आंटी और बच्ची का ही सुनायी देता है। आंटी की कुड़-कुड़ और बच्ची का रोना। अब बच्ची का तो समझ में आता है पर आंटी ना जाने क्यूँ बड़बड़ातीं रहतीं हैं। बहु तो उनकी देखने में भली सी लगती है। देखा है मैनें उसे बालकनी में अपनी सास के बाल बाँधते,वहीं बैठे-बैठे उन्हे चाय का प्याला पकड़ाते, शॉल उढ़ाते...... क्या पता ये सब दुनिया को दिखाने के लिये हो। घर के अंदर आंटी के साथ कैसा बर्ताव करती हो कौन जाने।
कल मिली थी मुझे उनकी बहु सब्ज़ी के ठेले पर। अपने घर आने के लिये बोल रही थी बोल क्या रही थी उसका बस चलता तो खींच कर ही ले जाती। मैनें भी उसे आज के लिये टाल दिया। अब,जब इतना कह रही थी तो सोचा चली ही जाती हूँ दरअसल इन नये लोगों की हकीकत तो मैं भी जानना चाह रही थी।
चट-पट पहुँच गयी। पति-पत्नी दोनों ने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया। घर-परिवार, बाल-बच्चे, काम-धंधे की बातें होने लगीं। घर में बड़ी शान्ति थी ना आंटी दिख रहीं थीं ना ही बच्ची। पूछ लिया, "आपकी बिटिया नहीं दिख रही।"
" वो इनकी बड़ी बेटी के पास सो रही है।" बताते हुए पति अपनी पत्नी की तरफ देख कर मुस्कुरा दिया।
"बड़ी बेटी?" मेरा हैरान होना स्वभाविक था। पूरी सोसाइटी जानती है इनकी एक ही बेटी है इसने भी यही बताया था।
"अरे भाभी, इनकी तो आदत है मजाक करने की दरअसल ये अपनी मम्मी को मेरी बड़ी बेटी कहते हैं।"
"वो क्यूँ भला?" मैनें हैरानी से पूछा।
"मैं बताता हूँ आपको। ये मेरी मम्मी को बिल्कुल अपनी बेटी की तरह जो संभालती है।अपने हाथों से खाना खिलायेगी, टाईम से दवा देगी, उनके बाल बांधेगी।.......ठीक से चल नहीं पातीं, अक्सर खीझ कर वो झल्ला जातीं हैं और ये बैचैन। मेरी माँ का दर्द ये महसूस करती है ......बिल्कुल एक माँ की तरह।"
"इससे अच्छी और बड़ी बात क्या हो सकती है।" सुनकर मुझे वाकई अच्छा लगा।
"इसमें कोई बड़ी बात नहीं है भाभी। ये उम्र ही ऐसी होती है बच्चों और बड़ों में कोई खास फर्क नहीं रह जाता। बड़े जब बच्चे बन जायें तो बच्चों को उनका बड़ा बनना ही पड़ता है। इनकी बेटी की माँ तो हूँ ही अपनी मम्मी की भी माँ मुझे बना दिया।" कहते हुए हँस पड़ी।
उसकी हँसी और चिड़िया की चहचहाहट वाली डोर बैल की आवाज आपस में घुल सी गयी। दरवाजे पर डिलीवरी बॉय सामान के दो पैकेट दे गया। बेसब्री सी, उसने दोनों पैकेट मेरे सामने ही खोल डाले।
" कैसे हैं ये भाभी?"
"बहुत बढ़िया है.......तुम्हारी दोनों बेटियों के लिये ये दोनों वॉकर। सुनकर वो बस मुस्कुरा दी और सारी हकीकत जान कर मैं भी।
मीनाक्षी चौहान

"मैं धर्म नहीं, भारत की बेटी हूँ" – एक साहसी आवाज़केरल के कसारागोड स्थित आनंद पद्मनाभस्वामी मंदिर के तालाब में रहने वाला...
20/09/2025

"मैं धर्म नहीं, भारत की बेटी हूँ" – एक साहसी आवाज़
केरल के कसारागोड स्थित आनंद पद्मनाभस्वामी मंदिर के तालाब में रहने वाला शाकाहारी मगरमच्छ बबिता अब नहीं रहा। बबिता खास था क्योंकि वह केवल मंदिर में चढ़ाया गया प्रसाद ही खाता था। उसकी मृत्यु से श्रद्धालुओं में गहरा दुख है, क्योंकि वह आस्था और अद्भुत परंपरा का प्रतीक बन गया था।
जब कोई बेटी देश के लिए कुछ कर गुजरती है, तो उसकी पहचान धर्म से नहीं, हौसले से होनी चाहिए। आज ज़रूरत है ऐसी सोच की, जो नाम और मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत और देशभक्ति को देखे। यही संदेश देती है एक बहादुर बेटी – “मैं हिंदू या मुस्लिम नहीं, मैं सिर्फ भारत की बेटी हूँ।”
हम ऐसे दौर में हैं जहाँ समाज जाति और धर्म की दीवारों से घिरा है। लेकिन कुछ बेटियाँ इन दीवारों को तोड़कर, अपने साहस और कर्म से हमें याद दिला रही हैं कि भारत की असली ताकत उसकी एकता और बहादुरी में है।
सोचिए उस बेटी के बारे में, जिसने सीमा पर गोली खाकर देश की रक्षा की, बाढ़ में बच्चों को बचाया, विज्ञान, खेल, शिक्षा या सेवा से भारत का नाम ऊँचा किया। क्या उसे धर्म से पहचाना जाना चाहिए, या उसकी काबिलियत से?
सच्चा हिंदुस्तानी वही है, जो बहादुरी को धर्म से नहीं जोड़ता और इंसान को इंसान की तरह देखता है। ऐसी बेटियाँ हमें सिखाती हैं कि उनका असली श्रृंगार तिरंगा है, उनकी पहचान मातृभूमि है और उनका नाम है — भारत की बहादुरी।

20/09/2025

मुझे इतना डांटते हो एक दिन सिर्फ अपने अपने माँ और बहन को डांट के देख लो
#गर्व #इतिहास #रिपोस्ट 👌

दोसे खाने वाले भूत जब हम बहुत छोटे थे । हम सब नाना जी के घर गए थे । वहाँ नाना जी के गाँव का घर बहुत बड़ा और पुराना था । ...
20/09/2025

दोसे खाने वाले भूत
जब हम बहुत छोटे थे । हम सब नाना जी के घर गए थे । वहाँ नाना जी के गाँव का घर बहुत बड़ा और पुराना था । हमारे वहाँ पहुँचने के दूसरे दिन ही मौसी भी आ गई थी । उनके बच्चों के साथ हम सब मिलकर बहुत मस्ती करते थे ।हम सब गर्मी की छुट्टियों में ही नानाजी के घर पर मिलते थे । मस्ती मज़ाक़ चलता था ।
एक दिन रात को मैं वाशरूम के लिए उठी तो देखा माँ मौसी और नानी सब पिछवाड़े में जो मिट्टी का चूल्हा बना हुआ था । वहाँ दोसे का आटा तेल तवा प्लेट सब रख रहे थे । मैंने पूछा माँ यह सब क्या हो रहा है ?
माँ ने मुझे चुप कराया और कहा रात को भूत आकर दोसे बनाकर खाते हैं । मुझे हँसी आई और कहा क्या माँ आप भी मज़ाक़ करती हैं । भला भूत दोसे कैसे बनाएँगे ?
उन्होंने कहा चुप हो जा रात को बाहर सुईं सुईं करके दोसे बनाने की आवाज़ आती है और सुबह घोल का बर्तन पूरा खाली हो जाता है ।इसका मतलब तो यही हुआ ना कि भूत दोसे बनाकर खाते हैं । मैंने कहा था कि नानी आप पहले भी ऐसा रखती थी क्या ।
नानी ने कहा कि— बहुत पहले ऐसा कभी नहीं रखा था । परंतु हाँ कुछ सालों से सब अपने अपने घरों के पिछवाड़े में ऐसा ही घोल रख रहे हैं ।उनसे कभी पूछा नहीं परंतु मैं भी डर के मारे उनके समान ही रोज घोल रख रही हूँ । हम बच्चों ने फ़ैसला कर लिया था कि आज रात को देखेंगे कि भूत दोसा कैसे बनाते हैं ।
नानी ने कहा— नहीं बेटा ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा जो करते हैं उन्हें सजा मिलती है । उनकी मूर्खता पर मुझे दया आ गई मैं हँसते हुए सोने चली गई थी ।
लेकिन जब हम सबने सुबह उठकर देखा था तो सचमुच में बर्तन खाली था । यह एक रहस्य था जिसे कोई भेदना नहीं चाहते थे । गाँव में लोग अंधविश्वासी होते हैं और दूसरों को भी उसे मानने के लिए मजबूर कर देते हैं । उस समय हम बहुत छोटे थे । जैसे ही बड़े हुए अपनी पढ़ाई में व्यस्त होकर नानी के घर नहीं जा पाते थे । अब हम इतने बड़े हो गए थे कि हमारी शादियाँ हो गई थी नानी नानाजी गुजर गए थे ।
यही बात मैं अपनी पड़ोसन को सुना रही थी । हम दोनों बातें करते रहे । मैंने जो दोसे का आटा बनाया था उसे फ्रिज में रख कर सो गई थी ।
मैं दूसरे दिन उठी अपनी दिनचर्या ख़त्म करके आई तो देखा मेरा आठ साल का बेटा फ्रिज खोलकर देख रहा था ।
मैंने पूछा क्या बात है सुबह सुबह उठकर क्या देख रहा है तो उसने कहा कि- कल आप आँटी को बता रही थी ना कि रात को भूत आकर दोसा बनाकर खाते हैं । इसलिए मैं फ्रिज में रखे हुए दोसे का आटा देखने आया था कि भूत ने दोसा बनाया है कि नहीं ?
नानी के गाँव की कहानी सच्ची थी या नहीं मुझे नहीं मालूम था परंतु बेटे की इस हरकत पर हँसी ज़रूर आ गई थी ।
स्वरचित
के कामेश्वरी

असली हीरोज़ की अनसुनी पुकारसोशल मीडिया पर मनोरंजन वीडियो लाखों लाइक्स बटोरते हैं, जबकि समाज के लिए असली संघर्ष करने वालो...
20/09/2025

असली हीरोज़ की अनसुनी पुकार
सोशल मीडिया पर मनोरंजन वीडियो लाखों लाइक्स बटोरते हैं, जबकि समाज के लिए असली संघर्ष करने वालों की आवाज़ अनसुनी रह जाती है। यह पंक्ति कोई नाचने वाली लड़की होती तो सब लाइक करते, कभी हमारे लिए भी हाथ चला लिया करो” मेहनतकश असली हीरोज़ की उपेक्षा और दर्द को उजागर करती है।
आज के सोशल मीडिया युग में हर दिन हज़ारों वीडियो सामने आते हैं – कोई डांस करता है, कोई मिमिक्री, कोई फैशन दिखाता है। इन पर लाखों लाइक्स और शेयर बरसते हैं। मनोरंजन ज़रूरी है, इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन अफसोस, असली संघर्ष करने वालों की आवाज़ें अक्सर अनसुनी रह जाती हैं।
वो लोग, जो समाज के लिए मेहनत कर रहे हैं, दिन-रात संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें न तो लाइमलाइट मिलती है और न ही तालियां। उनकी पीड़ा इन पंक्तियों में झलकती है –
“कोई नाचने वाली लड़की होती तो सब लाइक करते, कभी हमारे लिए भी हाथ चला लिया करो…”
यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि उन असली हीरोज़ का दर्द है, जिन्हें पहचान और सम्मान की सबसे ज्यादा ज़रूरत है।

आज जब अपने पचासवीं वैवाहिक वर्षगांठ पर पीछे मुड़कर देखती हूं तो सर्वप्रथम माई-बाबूजी भ‌ईया भाभी, दीदी का चेहरा मेरे आंखो...
20/09/2025

आज जब अपने पचासवीं वैवाहिक वर्षगांठ पर पीछे मुड़कर देखती हूं तो सर्वप्रथम माई-बाबूजी भ‌ईया भाभी, दीदी का चेहरा मेरे आंखों के सामने नाचने लगता है।
अपने आठ भाई-बहनों में सबसे छोटी ... आठवें पायदान पर। पूरे घर की चहेती। अठारह वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे। घर में शहनाई बजने की तैयारी होने लगी। अपनी पेटपोंछनी बेटी को बिदा करने के लिए माई का मातृ हृदय असमंजस में था। जब भी घर में शादी विवाह की बात चलती वह बोल पड़ती,"अभी इसको पढ़ने दो,बी०ए०करने के बाद देखा जायेगा। सभी बेटियां चली गई कम-से-कम यह तो मेरे पास कुछ दिनों तक रहे। अभी यह दुनियादारी का क.ख.ग.भी नहीं समझती ;इसे विवाह की जिम्मेदारी में अभी बांधना उचित नहीं है।"
माई की आंखें भर आती वे उदास हो जाती। आज भी वह दृश्य मेरे मानस पटल पर अंकित है जो इस शुभ वेला में उनका आशीर्वाद बन छलक रहा है।
छः फीट के हौसले वाले मेरे बाबूजी के लिए भी मैं नादान खिलंदड़ी खुशमिजाज और सभी के साथ घुल-मिल जाने वाली मासूम बिटिया थी।उनका वरदहस्त मेरे सिर पर था और आज भी उसी के छांव तले मैं किसी भी विकट परिस्थिति से लड़ने का साहस कर पाती हूं।
"बात चलने से विवाह थोड़े ही हो जाता है..."वे मां का दिलजम‌ई करते और शायद अपने आप की भी।
इसी बीच दुनिया दारी में पारंगत मेरे मंझले भ‌ईया ने मेरे विवाह की बात सबकी सहमति से पक्की कर दी। पिता तुल्य मेरे बड़का भ‌ईया,मंझले भ‌ईया हम बहनों की बेहतरी के लिए सदैव तत्पर रहते।
मेरे मंझले भ‌ईया को वर, उनकी भारत सरकार की नौकरी, उनके बड़े भाई घर-परिवार खेती बाड़ी इतना पसंद आया कि वे गदगद हो उठे।
"इतना तेजस्वी लड़का, सात्विक समृद्ध परिवार आज के युग में दुर्लभ है..."वे माई-बाबूजी को समझाने का प्रयत्न करते।
इधर मेरे पूज्य सास-ससुर,स्नेह मयी बड़ी ननद,ननदोई ने मुझे देखा और तुरन्त पसंद कर लिया; सासु मां की खुशी का ठिकाना नहीं रहा,"मेरे घर में सांवली लड़की ही सहती है...."यही उनका उद्गार था। फिर चट मंगनी पट ब्याह।
चूंकि मेरे पति आदर्शवादी हैं अतः किसी प्रकार का लेन-देन ,दान-दहेज , ताम-झाम को प्रश्रय नहीं।
गांव जवार मेरे भाग्य पर रश्क करने लगा।"अरे वाह, इतना बढ़िया रिश्ता...!"
मैं भला कब-तक अनजान बनी रहती। शादी विवाह का मतलब मेरी नज़रों में था--नये गहने कपड़े , नाना प्रकार की मिठाइयां, पकवान, रिश्तेदारों की गहमा-गहमी ढोलक की थाप पर नाच-गाना और बिदाई के समय कन्या का बुक्का फाड़कर रोना...."! मैं मानसिक रूप से तैयार होने लगी।
बिहार की राजधानी पटना के पाटलिपुत्रा धर्मशाला में 14 जून 1970 को पाणिग्रहण संस्कार उल्लासमय वातावरण में सम्पन्न हुआ। क्योंकि बारात दक्षिण बिहार के सुदूर गांव से आई थी।सभी कृषक थे ।धान रोपाई शुरू होने वाली थी अतः उत्तर बिहार के आखिरी छोर के गांव बारात जाने को तैयार नहीं था। इसी लिए बीच का रास्ता अपनाया गया। उन दिनों गंगा पार स्टीमर से करना पड़ता था और समय ज्यादा लग जाता था। बारातियों को भी दो-तीन दिनों तक ठहराया जाता था।
सुमंगली की रात मुसलाधार वृष्टि हुई। बारातियों के खुशी का ठिकाना नहीं रहा,"कनिया के पांव का लक्षण बड़ा शुभ है अभी गांव पहुंची भी नहीं और बरसात शुरू हो गया जो खेती के लिए अमृत के समान है।"
मेरे पति अपने परिवार में सभी के नयनों के तारे थे अतः मुझे भी ससुराल वालों ने पलकों पर रखा।मान -दुलार, स्नेह सम्मान, अपनापन का घट सदैव छलकता रहा। ममता मयी जिठानी मुझसे उम्र में काफी बड़ी थी अतः उन्होंने मुझे अपनी देवरानी से ज्यादा पुत्री वत् प्यार दिया जो मेरे लिए आज भी अमूल्य निधि है।
सासु मां मेरे घुटनों तक लम्बे घने बालों को धुलवाने में मेरी मदद करतीं । ससुरजी रामायण की चौपाईयां सुनते । परिवार के बच्चे मेरे साथ कैरमबोर्ड लूडो या छुप्पमछुपाई खेलते।हर दूसरे तीसरे दिन माई-बाबूजी और परिवार के अन्य सदस्यों को पत्र के माध्यम से अपना कुशल क्षेम भेजती। मुझे ससुराल में दूधमिश्री की तरह घुले पाकर उनलोगों ने संतोष की सांस ली।
चूंकि पतिदेव भारत सरकार में पदास्थापित थे अतः उनके साथ सम्पूर्ण भारतवर्ष का दर्शन स्वत: हो गया। आज़ भी विभिन्न प्रांतों से जुड़ी अनेक मधुर स्मृतियां हैं।
समय पाकर गुरु कृपा, ईश्वर की दया, बड़ों के आशीर्वाद से मुझे चार बच्चों की मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तीन पुत्र रत्न और आंगन की शोभा बढ़ाने वाली एक लक्ष्मी स्वरूपा कन्या।
मैंने बाल-बच्चों के साथ पति के सहयोग से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की। पी0एच0डी0 किया।फिर कालेज में क‌ई वर्षों तक अध्यापनकी । पठन-पाठन,लेखन में मेरी विशेष अभिरुचि है ।क‌ई कहानियां, कविताएं, रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रहती हैं। शोध-पत्र भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित है जिसका लाभ अध्ययन प्रिय उठा रहे हैं। अभी सोशल मीडिया पर सक्रिय हूं।आज अवकाश प्राप्ति के बाद अपने इच्छानुसार हम-दोनों बच्चों के साथ हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। पैतृक गांव में खेती बाड़ी है, बाग-बगीचा है फूल फुलवारी है हम-दोनों नियमित रूप से उसका देखभाल करते हैं और अपना अधिकतर समय पुश्तैनी गांव में ही बिताते हैं। गांव की मिट्टी की खुशबू, आबो-हवा हमें उत्साह और उमंग से भर देता है।
बच्चे मेधावी, अनुशासित , संस्कारवान निकले। बच्चों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की।आज देश-विदेश में उच्च पदों पर आसीन... घर परिवार, देश समाज का नाम रौशन कर रहे हैं। अब तो सभी बाल-बच्चे दार हैं । दामाद जी और बहुएं भी एक से बढ़कर एक। दोनों बेटे विदेश में स्थापित हैं अतः उन्होंने हम-दोनों को प्राय: दुनिया के कोने - कोने का भ्रमण करवाया है और इसी का असर है शायद कि हमलोंगो का दृष्टिकोण इतना व्यापक है।
आज लोग पूछते हैं,"आप भाग्यशाली हैं । पचासवीं वैवाहिक वर्षगांठ किस्मत वाला ही मनाता है !"
हम पति-पत्नी हंस पड़ते हैं;"हमें तो पता ही नहीं चलता कि हमारे विवाह बंधन में बंधे हुए पचास साल हो गए...!"
"हमें तो ऐसा लगता है कि अभी चलना शुरू ही किया है ... अभी तक तो जीवन यापन के दुरूह रास्ते पर बेतहाशा दौड़ रहे थे...!"
"एक जिम्मेदारी पूरी नहीं हुई कि दुसरी टपक पड़ी... घर-गृहस्थी, नाते-रिश्तेदार, सामाजिक सरोकारों को निभाना तलवार के धार पर चलने सदृश है...जरा सा भी चूके तो गये ....!"
सुखद वैवाहिक जीवन का सूत्र है ...आपसी विश्वास,प्रेम,समर्पण, वफादारी...!"
गृहस्थ जीवन का उसूल है .. देहचोरी से बचें। गृहस्थी का जितना काम कर सकते हो करो .. कभी किसी से यह पट्टीदारी मत करो कि मैं क्यों इतना खटूं ..?
असंतोष को भी झटक देना सुखी पारिवारिक जीवन का मूल है। अपेक्षा रूपी घातक धीमी जहर को तो दूर से ही राम-राम।
अपनी खर्चों पर नियंत्रण और पैसों के लिए तो हाय-हाय बिल्कुल नहीं।
शिकायत और असंतोष से खीझ उपजता है और यही क्रोध आपसी प्रेम, सदभाव , हंसी ख़ुशी रूपी पुष्प को सुरज के तपिश के समान भस्म कर देता है।
अतः अपने परिवार को, पति को, संतान को , अपने आप को जहां तक हो सके महत्व दें। जितना हो सके उतना ही करें और अपनों का आशीर्वाद,आदर प्राप्त करें।
जीवन बहुत महत्वपूर्ण है। उसे अपने प्यार, विश्वास, स्नेह, संरक्षण रूपी ऊर्जा दें। जिन्दगी है , रोजी-रोटी है तो सब की छोटी-बड़ी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होंगी।
हमने इन पचास वर्षों में खोया कुछ नहीं सिर्फ पाया ही है। जब-तक जिऊं अपने परिवार रूपी बगिया की सुरम्यता, खिलखिलाहट में सुकून पाऊं। बेटा -बहू, बेटी- दामाद,नाती,पोता , पोती के सुख-साहचर्य में आह्लिदत होती रहूं।
बने रहें मेरे सिर के साईं
अमर रहे अहिवात
दीर्घजीवी हों मेरे बच्चे
सुख समृद्धि रहें सपरिवार
खुशहाल रहे न‌ईहर,सासुर
बना रहे सबका इकबाल।।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-डॉ उर्मिला सिन्हा ©®

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