Rashtriya Bal Vikas

Rashtriya Bal Vikas Rashtriya Bal Vikas is an educational newspaper in English and Hindi Edition for children of all age

01/11/2025

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प्रतिदिन 1 प्रेरणादायक कहानी :-चार दीवारी के बाहर के अनुभवराज्य सरकार द्वारा संचालित कोरोना वार्ड में भर्ती एक टीचर सीलि...
01/11/2025

प्रतिदिन 1 प्रेरणादायक कहानी :-

चार दीवारी के बाहर के अनुभव

राज्य सरकार द्वारा संचालित कोरोना वार्ड में भर्ती एक टीचर सीलिंग फैन को देखते हुए, पढ़ने के लिए किताब उठाने ही वाली थी, तभी उनके फोन की घंटी बजी। वह एक बिना नाम वाला नंबर था। आमतौर पर वह ऐसे कॉल से बचती थी पर अस्पताल में अकेले और कुछ करने के लिए नहीं था इसलिए उन्होंने इस फ़ोन कॉल को जवाब देने का फैसला किया।

स्पष्ट स्वर में एक पुरुष ने अपना परिचय दिया, "नमस्ते मैडम, मैं सत्येंद्र गोपाल कृष्ण दुबई से बात कर रहा हूँ। क्या मैं सुश्री सीमा कनकंबरन से बात कर रहा हूँ?"

टीचर यह जानने के लिए उत्सुक थी कि वह कौन थे? उन्होंने कहा, "हाँ, आप सीमा से बात कर रहे हैं।"

एक विराम के बाद वह बोले, "कुछ साल पहले मैडम, जब मैं 10 वीं कक्षा में था, तब आप मेरी क्लास टीचर थीं।"

टीचर उन्हे नहीं पहचान पा रही थी। उन्होंने कहा, "मैं कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती हूँ। अगर कोई जरूरी बात नहीं हो तो आप मुझे बाद में कॉल कर सकते हैं?"

सत्येंद्र ने कहा, "मैडम मुझे आपकी बीमारी के बारे में 1995 बैच के टॉपर सुब्बू से पता चला।"

टीचर ने कहा, "मैं सुब्बू को अच्छी तरह जानती हूँ, लेकिन मैं आपको नहीं पहचान पा रही हूँ।"

"मैडम," सत्येंद्र ने बीच में रोकते हुए कहा, "आशा है कि आपको वह लंबा काला लड़का याद होगा जो आपका सबसे बड़ा सिरदर्द था। मैं पिछली बेंच पर बैठता था!" टीचर उस बैक बेंचर् के बारे में सोचने लगी!

बातचीत दिलचस्प होती जा रही थी। टीचर ने किताब को साइड टेबल पर रख दिया और तकिए को खींचकर आराम से बैठते हुए पूछा, "आज अचानक से तुम्हे मेरी याद कैसे आ गई?"

सत्येंद्र ने कहा, "मैडम, जब मुझे पता चला कि आप अस्पताल में भर्ती हैं, तो मैंने 1995 की कक्षा के सभी उपलब्ध दोस्तों के साथ एक कॉन्फ्रेंस कॉल के बारे में सोचा। मैं, हम में से 7 को इस कॉल पर लाने में सफल रहा। वे हमारी बातचीत सुन रहे हैं, मैडम। हमने सिर्फ आपके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के लिए फोन किया है।"

मैडम के शब्द अचानक लड़खड़ा गए, एक लंबे विराम के बाद उन्होंने पूछा, "अब मुझे अपने बारे में बताओ। तुम कहाँ हो?" सत्येंद्र ने जारी रखा, "मैडम, मैं दुबई में हूँ, मैं अपना खुद का बिज़नेस चलाता हूँ। पहले यहाँ नौकरी की तलाश में आया था पर अंत में एक उद्यमी के रूप में सफल हुआ। मेरी कंपनी में लगभग 2000 लोग हैं।

जब हम 10वीं कक्षा में थे, तब अनुशासन के बारे में तो कक्षा में आपका आतंक था। लेकिन आप, हमेशा बड़े दिल से हमारे प्रति उदार भी रहीं और बैक बेंच पर सबसे अधिक शोर करने वाले मुझ जैसे अनुशासनहीन छात्रों पर विश्वास जताया। कक्षा में मैं बैक बेंचर्स का नेता था।

मैडम, मुझे सबसे ज्यादा सजा मिलती थी, अक्सर आप मुझे क्लास के बाहर और कभी क्लास के अंदर, बेंच पर खड़ा कर देती। क्लास के दिनो के इन सभी अनुभवों और कभी-कभी क्लास में सबसे ऊपर, बेंच पर खड़े होने के अनुभवों ने मुझे जीवन में बहुत मदद की।

इन सजाओं ने वास्तव में मुझे पूरी कक्षा के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद की। मैं उन्हीं सीखों को अपने जीवन और व्यवसाय में लागू कर रहा हूँ। मैडम, आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसके लिए मैं हमेशा आपका ऋणी रहूँगा।"

टीचर को बोलने में कठिनाई हो रही थी। जैसे ही सत्येंद्र ने अपनी कहानी जारी रखी, टीचर अपने विचारों में कुछ दशक पीछे 1995 की कक्षा में चली गई...
..1995 की कक्षा। हाँ कक्षा में सबसे लंबा काला लड़का, वह शैतान बच्चों का नेता था! क्लास में हमेशा देर से आता, क्लास से गायब रहता, पिक्चर देखने चले जाता! वह कभी होमवर्क करके नहीं लाता था। वह जो बार-बार टीचर्स रूम में अपनी सजा कम करने के लिए बात करने आ जाता था। वह शिक्षकों के लिए एक परेशानी बना हुआ था लेकिन कक्षा में बहुत लोकप्रिय था। उसके दोस्त उसे बहुत पसंद करते थे। और वह वहाँ दुबई कैसे पहुँच गया? अचानक टीचर के विचारों में बाधा आ गई थी...

दूसरे छोर से सत्येंद्र से पूछा, "मैडम, क्या आप सुन पा रही हैं?" मैडम ने कहाँ, "हाँ मैं सुन रही हूँ!"

उन्होंने जारी रखा, "सत्येंद्र, मैंने स्कूल के बाद, तुम्हारे बारे में कभी नहीं सुना। मैं इतनी हैरान और खुश हूँ कि तुमने मुझे फोन किया, वह भी अपने दोस्तों के साथ कॉन्फ्रेंस कॉल पर! मैं तुम सब के बारे में जानना चाहती हूँ।"

ग्रुप कॉल में अन्य छह में से तीन लोग अलग-अलग देशों में इंजीनियर थे। एक दिल्ली में डॉक्टर, एक शिलांग में पुजारी और अंत में सुब्बू क्लास का टॉपर था।

सुब्बू ने कहा, "मैडम मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट हूँ। मैं सत्येंद्र का मुख्य वित्तीय प्रबंधक हूँ!" टीचर को विश्वास नहीं हुआ, उसने पूछा "तुम कैसे?" उसने कहा, "हाँ मैडम,सत्येंद्र के साथ जुड़ने से पहले मैं के पी एम जी (KPMG) कंपनी के साथ था। लेकिन, सत्येंद्र के साथ काम करके मैं एक संतुष्ट पेशेवर और एक खुशहाल पारिवारिक जीवन जी रहा हूँ।"

जब तक उनमें से प्रत्येक ने अपनी कहानी सुनाई, तब तक लगभग 40 मिनट हो चुके थे, सत्येंद्र ने लंबी बात के लिए माफी मांगी और अपनी प्रिय शिक्षिका के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की और केरल की अपनी अगली यात्रा के दौरान उनसे मिलने का वादा किया।

उस कोविड आइसोलेशन वार्ड में अकेले बैठे हुए, शिक्षिका की आँखों से आँसू छलक पड़े। उनके दिल में खुशी की लहर दौड़ गई और उनकी आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे।

इस बात ने उन्हें भावविभोर कर दिया था, कि उनके छात्र उन्हें अनुशासन सिखाने व दयावान होने के लिए याद रखते हैं।
वे यह सोच कर भी शुक्रगुज़ार व खुश थीं, कि उनके सभी छात्र जीवन में सफल एवं सुखी थे। और ना केवल वो छात्र जो स्कूल से ही अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं, बल्कि वे बच्चे जो बहुत ही शैतान लगते थे, उन्होंने भी अपने जीवन से शिक्षाएँ लेकर बहुत तरक्की की है।

वे सत्येंद्र के बारे में सोचने लगीं, "यह लड़का अपने पाठ्यक्रम के बाहर, किताबों से बाहर के, असल जीवन के ज्ञान का प्रयोग कर इतना आगे बढ़ रहा है।

बार-बार दण्ड मिलने, आखिरी बेंच पर खड़े होने से, उसे चौकस होने व व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने का मौका मिल गया।
कक्षा से गायब रहने पर पकड़े जाने से, उसने बहुत कम उम्र में जोखिमों को कम करना और दूर करना सीख लिया।
दोपहर के भोजन के समय शिक्षक कक्ष में आकर अपनी सजा को कम करने की बातचीत के दौरान उसने समझौते की कला हासिल की।
जो रिश्ते उसने उस समय बनाए थे, वे आज भी इतने मज़बूत हैं।

और लगता है कि उसने गणित में जो अंक गंवाए थे, वह उसने वास्तविक जीवन के अनुभव के लिए बचा रखे थे!
और सुब्बू ने गणित में जो 100% अंक प्राप्त किए थे, वह अब सत्येंद्र द्वारा बचाये गए नंबरों पर काम कर रहा है। अद्भुत!"

उन्होंने सोचा, दो साल की महामारी में स्कूलबंदी, बच्चों के चरित्र निर्माण पर भारी असर डाल रही है। घर बैठे और डिजिटल रूप से सीखकर वे अंक प्राप्त कर सकते हैं पर जीवन के अनुभवों के बारे में क्या?

हमें और भी सत्येंद्र और सुब्बू जैसों की ज़रूरत है। तभी समाज का विकास होगा।
तभी यह धारणा विकसित होगी, कि शिक्षा केवल कक्षा की चार दीवारी में, केवल किताबों से नहीं मिलती।
शिक्षा एक प्रक्रिया है, जहाँ '10% हम स्कूल में सीखते हैं, 20% साथियों से, और 70% जीवन की राह पर।'

(यह कहानी एक वास्तविक जीवन की घटना से प्रेरित है।)

♾️

"किताबी ज्ञान हमारे जीवन की चुनौतियों और परेशानियों को कम नहीं कर सकता है I यह केवल एक नीव की तरह से काम करता है I व्यावहारिक अनुभव हमारे भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं I"

प्रतिदिन 1 प्रेरणादायक कहानी :-गेहूँ के दानों का जादू एक समय की बात है जब श्रावस्ती नगर के एक छोटे से गाँव में अमरसेन ना...
31/10/2025

प्रतिदिन 1 प्रेरणादायक कहानी :-

गेहूँ के दानों का जादू

एक समय की बात है जब श्रावस्ती नगर के एक छोटे से गाँव में अमरसेन नामक व्यक्ति रहते थे। अमरसेन बहुत होशियार थे, उनके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे।

परन्तु समय के साथ-साथ अब अमरसेन वृद्ध हो चले थे। पत्नी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ति का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये? यह निर्णय लेने के लिए उन्होंने चारो बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूँ के पाँच दानें दिए, और कहा कि,"मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूँ और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा, तिजोरी की चाबियाँ और मेरी सारी संपित्त उसे ही मिलेगी।" इतना कहकर अमरसेन वहाँ से चले गये।

पहले बहु-बेटे ने सोचा, पिताजी सठिया गये हैं, चार साल तक कौन याद रखता है। हम तो बड़े हैं, तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है। ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूँ के दानें फेंक दिये।

दूसरे ने सोचा कि संभालना तो मुश्किल है। यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद दे दें और कहें कि तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ति हमारी हो जाएगी। यह सोचकर उन्होंने वो पाँच दानें खा लिये।

तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे ठाकुरजी को सँभालते हैं, वैसे ही यह गेहूँ भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे।

चौथे बहु-बेटे ने समझदारी से सोचा और पाँचों दानों को एक एक कर के जमीन में बो दिया और देखते-देखते वे पौधे बड़े हो गये और कुछ गेहूँ उग आये। फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिया। इस तरह हर वर्ष गेहूँ की बढ़ोतरी होती गई। पाँच दानें पाँच बोरी, पच्चीस बोरी, और पचास बोरियों में बदल गए।

चार साल बाद जब अमरसेन वापस आए तो सबकी कहानी सुनी और जब वह चौथे बहु-बेटों के पास गये तो बेटा बोला, "पिताजी, आपने जो पाँच दाने दिए थे अब वे गेहूँ पचास बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभाल कर गोदाम में रख दिया है, उन पर आप ही का हक़ है।” यह देख अमरसेन ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियाँ सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, "तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।"

गेहूँ के पाँच दाने एक प्रतीक हैं, जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरआत करके, किसी कार्य को एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।
उसी प्रकार, एक छोटी सी ज़िम्मेदारी को भी, उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग कर, सर्वोत्तम (बहुत अच्छी) तरह से निभाया जा सकता है और उसका प्रभाव अद्भुत हो सकता है।

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"विवेक का मतलब है कि हम कम से कम साधनों का प्रयोग कर के ज्यादा से ज्यादा परिणाम दे।"

31/10/2025

Maharashtra me car me sunroof tod kar ghusa pather

प्रतिदिन 1 प्रेरणादायक कहानी :-सच्ची  शिक्षा का अर्थ यह बात तब की है, जब कौरव और पांडव गुरूकुल में शिक्षा प्राप्त करने ग...
30/10/2025

प्रतिदिन 1 प्रेरणादायक कहानी :-

सच्ची शिक्षा का अर्थ

यह बात तब की है, जब कौरव और पांडव गुरूकुल में शिक्षा प्राप्त करने गए हुए थे।
छात्रों के बीच गहरी प्रतिस्पर्धा का माहौल था। हर कोई आश्रम में पढ़ाए जाने वाले सभी विषयों में सर्वश्रेष्ठ बनना चाहता था।
वे चाहते थे कि उनके गुरु उनकी प्रशंसा करें। वे कड़ी मेहनत से पढ़ाई कर रहे थे और गुरु अपने विद्यार्थियों से प्रसन्न थे।
एक दिन, गर्मियों के दिनों में गुरु द्रोणाचार्य को किसी काम के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा। उनका कई दिनों तक आश्रम से दूर रहने का कार्यक्रम था। उन्होंने अपने सभी छात्रों को बुलाया और उनसे कहा कि वह कुछ दिनों के लिए आश्रम से बाहर जा रहे हैं और इस दौरान उन्हें कुछ पाठ याद करने होंगे।
एक सप्ताह के बाद गुरु द्रोणाचार्य लौटे। अगले दिन उन्होंने छात्रों को कक्षा में बुलाया। सभी छात्र बहुत खुश थे और हँसते-हँसते कक्षा में आए।
कक्षा समाप्त होने के बाद, गुरु ने छात्रों से पूछा कि वे उन्हें बताएँ कि उनके बाहर रहने के दौरान सभी छात्रों ने क्या और कितना अध्ययन किया?
एक-एक करके सभी छात्र राजकुमार आगे आये और बताया कि उन्होनें कितनी मेहनत की है। किसी ने तीन पाठ पढ़े थे, किसी ने चार, किसी ने पाँच और इसी तरह सभी आगे आये।
गुरु ने मुस्कुराते हुए एक-एक करके प्रत्येक छात्र को खड़ा किया और उनकी उपलब्धियों को लिखने लगे। अंत में युधिष्ठिर की बारी आई। गुरु ने उन्हें उम्मीद से देखा। वे कक्षा के सबसे अधिक लगनशील छात्र थे, पर युधिष्ठिर दूसरों की तरह ज़ोर से नहीं बोले। उनकी आवाज धीमी थी और मुश्किल से कुछ कह पा रहे थे।
"चलो, धर्मराज," शिक्षक ने उत्साह से कहा, "जब मैं बाहर था तब तुमने क्या किया? मुझे यकीन है कि तुमने सभी पाठ याद कर लिए होगें और कुछ अतिरिक्त काम भी किया होगा।"
युधिष्ठिर ने धीमी आवाज में उत्तर दिया, "मैंने केवल एक वाक्य पढ़ा, समझा और सीखा है गुरुजी।"
द्रोणाचार्य स्तब्ध रह गए। उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। "सिर्फ एक वाक्य?" उन्होंने आश्चर्य से पूछा। "जी गुरुजी, मैं इतने कम समय में केवल एक वाक्य में ही महारत हासिल कर सका।" युधिष्ठिर ने दोहराया।
युधिष्ठिर को क्या हुआ? उन्होंने पूरा सप्ताह सिर्फ एक वाक्य सीखने में ही क्यों लगा दिया? युधिष्ठिर अन्य सभी विद्यार्थियों से वरिष्ठ थे और उन्हें औरों से अधिक मेहनत करनी चाहिए थी। द्रोणाचार्य को उनसे दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करने की अपेक्षा थी, लेकिन वे बहुत ही आत्मविश्वास से कह रहे थे कि गुरु द्वारा निर्धारित कार्य को पूरा करने के लिए एक सप्ताह पर्याप्त नहीं है! गुरु द्रोणाचार्य बहुत ही हैरान थे।
उन्हें अपने शिष्यों को डांटना पसंद नहीं था। वह कभी भी गलत और अनुचित आचरण को बढ़ावा नहीं देते थे। छात्र भी उन्हें पसंद करते थे। वे हमेशा उनकी बात मानते थे। लेकिन अब उनके माथे पर चिंता की लकीरें थीं। सभी को उम्मीद थी कि गुरुजी युधिष्ठिर से बहुत नाराज होंगे। वे जानते थे कि अपने आलस्य के लिए युधिष्ठिर को डांट पड़ेगी। छात्र अब आपस में कानाफूसी कर रहे थे। "क्या गुरु जी युधिष्ठिर को दंड देगें? वे उन्हें कैसे दंडित करेंगे? वे उन्हें क्या करने के लिए कहेंगे? क्या वे उन्हें माफ करेंगे?"
यह पहली बार था कि युधिष्ठिर ने अपना गृहकार्य नहीं किया था। गुरु ने युधिष्ठिर की ओर देखकर कहा "इस कक्षा में हर कोई तुमसे छोटा है। उन सब ने कड़ी मेहनत की है और मेरे द्वारा निर्धारित काम को पूरा किया है और तुम कह रहे हो कि निर्धारित कार्य को पूरा करने के लिए समय पर्याप्त नहीं था।" द्रोणाचार्य जी को पहली बार युधिष्ठिर पर गुस्सा आ रहा था।
युधिष्ठिर का चेहरा तब भी शान्त बना रहा, "गुरुजी, मैं इससे ज्यादा नहीं कर सका। मैं बस इतना ही पाठ खत्म कर सका।" अब द्रोणाचार्य जी का धैर्य जवाब देने लगा था।
युधिष्ठिर बहुत शांत मन से बोले, "मुझे आपको निराश करने के लिए खेद है, गुरुजी", उन्होंने कहा, "मैं केवल इतना ही याद कर सका।"
अब कक्षा के सभी छोटे-बड़े छात्र राजकुमार बहुत चिंतित थे। वे सब सोच रहे थे कि एक तो युधिष्ठिर ने अपना काम भी नहीं किया ओर वे शिक्षक से माफी भी नहीं मांग रहे हैं।
वे निश्चित रूप से बहुत परेशानी में पड़ जायेंगे, उन्होंने एक दूसरे से इशारे में सिर हिलाते हुए कहा। द्रोणाचार्य जी अब और अपने आप को नियंत्रित नहीं कर पाए। उन्होंने गुस्से में कहा, "मैं तुम्हारी अवज्ञा के लिए तुम्हें दंड देने जा रहा हूँ।" फिर से युधिष्ठिर ने शांत और धीमी आवाज में कहा, "मुझे आपको निराश करने के लिए खेद है, गुरुजी, पर मैं इतना ही पढ़ सका।"
पूरी कक्षा हैरान थी। वे सभी युधिष्ठिर को पसंद करते थे। वे सब अपने गुरु को भी पसंद करते थे। वे सब सोचने लगे कि युधिष्ठिर ने माफी क्यों नहीं मांगी? गुरुजी उन्हें माफ कर देते। वे अब भी उस पाठ को याद करने का काम कर सकते थे और हम सभी उनकी मदद भी कर देते। एक बार फिर सभी खुश हो जाते।
लेकिन गुरु उन्हें जितना डांट रहे थे वे उतना ही शांत होकर अपनी बात समझाने की कोशिश कर रहे थे।
अचानक गुरु को लगा कि कुछ ठीक नहीं है। शायद युधिष्ठिर ने कुछ बहुत ही असामान्य काम किया है, इसलिए डांटने पर भी वह शांत हैं।
"वह वाक्य क्या है जो तुमने सीखा?" गुरु ने पूछा।
युधिष्ठिर ने अपनी पुस्तक निकाली और वाक्य दिखाया : "अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें!"
एक ही क्षण में गुरु और सभी शिष्य समझ गए कि युधिष्ठिर ने न सिर्फ़ उस वाक्य को पढ़ा है व सीखा है, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारने का भी अभ्यास किया है। उन्हें अपने क्रोध पर काबू पाने में सात दिन लगे।
युधिष्ठिर कितने बुद्धिमान थे, यह जानकर गुरु द्रोणाचार्य की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने युधिष्ठिर को गले लगा लिया और कहा, "वत्स, मुझे तुम्हारे प्रति कठोर होने के लिए क्षमा करना। आज तुमने मुझे सिखाया है कि पाठ कैसे पढ़ना चाहिए! अगर सब तुम जैसे हो जाएँ तो स्वर्ग, धरती पर उतर आए।"
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"एक समय में एक ही लक्ष्य रखने और एक ही कार्य करने से हम अपने आन्तरिक संसाधनों का प्रयोग सर्वोत्तम तरीके से करके जीवन मे बहुत आगे बढ़ सकते हैं। "

29/10/2025

Newspaper October Shorts 2025
❤️

🐚 𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚'𝐬 𝐅𝐢𝐫𝐬𝐭  𝐂𝐡𝐢𝐥𝐝𝐫𝐞𝐧'𝐬 𝐇𝐢𝐧𝐝𝐢 𝐍𝐞𝐰𝐬𝐩𝐚𝐩𝐞𝐫(𝐎𝐜𝐭𝐨𝐛𝐞𝐫 𝟐𝟎𝟐𝟓) 𝐛𝐲 "𝐁𝐚𝐥 𝐕𝐢𝐤𝐚𝐬 𝐏𝐫𝐚𝐤𝐚𝐬𝐡𝐚𝐧 𝐏𝐯𝐭. 𝐋𝐭𝐝."
28/10/2025

🐚 𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚'𝐬 𝐅𝐢𝐫𝐬𝐭 𝐂𝐡𝐢𝐥𝐝𝐫𝐞𝐧'𝐬 𝐇𝐢𝐧𝐝𝐢 𝐍𝐞𝐰𝐬𝐩𝐚𝐩𝐞𝐫
(𝐎𝐜𝐭𝐨𝐛𝐞𝐫 𝟐𝟎𝟐𝟓) 𝐛𝐲 "𝐁𝐚𝐥 𝐕𝐢𝐤𝐚𝐬 𝐏𝐫𝐚𝐤𝐚𝐬𝐡𝐚𝐧 𝐏𝐯𝐭. 𝐋𝐭𝐝."

27/10/2025

Ye khuni chidya hai janwaro ki sarkari doctor

26/10/2025

Shadab Jakati kaa mila Dubai me Flat

25/10/2025

Aisa desh jaha nahi hai koi bhi garib

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