11/10/2025
🗳️ बिहार चुनाव: पंजीकृत (अमान्यता प्राप्त) राजनीतिक पार्टियों के पंजीकरण रद्द करने पर विवाद
“अमान्यता प्राप्त दलों की दलील: छह साल निष्क्रिय रहना लोकतंत्र से बाहर करने का आधार नहीं”
बिहार के छोटे दल बोले — "हमें चुनावी मैदान से मत हटाइए” हम चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।
पटना,— चुनावों से पहले देशभर में कई Registered Unrecognised Political Parties (RUPPs) के पंजीकरण रद्द किए जाने की प्रक्रिया ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। समर्थक इसे चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने वाला कदम बताते हैं, जबकि विरोधियों का कहना है कि इससे छोटे और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है — ख़ास तौर पर वे पार्टियाँ जो इस बार बिहार विधान सभा चुनाव में भाग लेने की पूरी तैयारी कर चुकी हैं।
निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया और आधार
निर्वाचन आयोग (ECI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, जो पंजीकृत पार्टियाँ छह साल या उससे अधिक समय से किसी भी चुनाव में भाग नहीं लेतीं और आवश्यक वार्षिक रिपोर्ट या ऑडिट विवरण जमा नहीं करतीं, उन्हें निष्क्रिय (inactive) मानते हुए सूची से हटाया जा सकता है। आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल “कागज़ पर चल रही” पार्टियों को हटाना और व्यवस्था को पारदर्शी बनाना है।
बिहार में उठा असंतोष
बिहार की कई छोटी और क्षेत्रीय पार्टियाँ इस निर्णय से प्रभावित हुई हैं। इन दलों का कहना है कि वे चुनाव लड़ने की तैयारी में थीं और आयोग के निर्णय से ठीक पहले उनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया।
लोकतांत्रिक जनता पार्टी (सेक्युलर), जन अधिकार विकास मंच, और कुछ अन्य स्थानीय राजनीतिक समूहों ने कहा है कि वे पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं और केवल संगठनात्मक कारणों से कुछ वर्षों तक चुनाव मैदान में नहीं उतरे। अब जब उन्होंने 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए ज़मीनी स्तर पर तैयारी पूरी कर ली थी, तब उनका रजिस्ट्रेशन रद्द होना “लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन” बताया जा रहा है।
आयोग का पक्ष
निर्वाचन आयोग का तर्क है कि देश में सैकड़ों ऐसी पार्टियाँ पंजीकृत हैं जो सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लेतीं लेकिन टैक्स छूट और अन्य सुविधाओं का लाभ उठाती हैं। ऐसे में आयोग ने राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों के माध्यम से इन निष्क्रिय पार्टियों को नोटिस जारी कर सुनवाई की प्रक्रिया अपनाई है। आयोग का कहना है कि सभी प्रभावित दलों को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर दिया गया है।
कानूनी और संवैधानिक दृष्टि
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मामला दो संवैधानिक मूल्यों के बीच संतुलन का विषय है — एक ओर निर्वाचन व्यवस्था में पारदर्शिता और अनुशासन बनाए रखना, और दूसरी ओर छोटे दलों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से वंचित न करना। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जिन पार्टियों का पंजीकरण रद्द हुआ है, वे निर्वाचन आयोग के समक्ष पुनर्विचार (review) की मांग कर सकती हैं या न्यायालय में अपील दाख़िल कर सकती हैं।
स्थानीय दलों की अपील
लोकतांत्रिक जनता पार्टी (सेक्युलर) सहित कई स्थानीय दलों ने निर्वाचन आयोग से अपील की है कि जिन पार्टियों ने पहले चुनाव लड़ा है और अब दोबारा चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर चुकी हैं, उनके पंजीकरण को बरक़रार रखा जाए ताकि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बन सकें।
निष्कर्ष
यह विवाद अब केवल चुनावी नियमों का नहीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के अधिकार का सवाल बन गया है। एक ओर निर्वाचन आयोग व्यवस्था की सफ़ाई और पारदर्शिता की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय पार्टियाँ इसे अपने अस्तित्व की लड़ाई मान रही हैं। अब देखना यह होगा कि आयोग आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेता है और क्या इन दलों को बिहार विधानसभा चुनाव में भाग लेने का अवसर मिलेगा।