Suhana Safar With Annu Kapoor

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11/10/2025

बैजू बावरा के हर गीत को नौशाद साहब ने किसी ना किसी राग पर आधारित रखा था। हालांकि नौशाद जब बैजू बावरा का म्यूज़िक कंपोज़ कर रहे थे तब उनके सामने एक चुनौती भी थी। नौशाद चाहते थे कि बैजू बावरा के गीतों में भारतीय शास्त्रीय संगीत को प्रमुखता से जगह दी जाए। लेकिन नौशाद को ये भी पता था कि आम जनता, जिसे शास्त्रीय संगीत सुनने की आदत नहीं थी, वो एक हैवी क्लासिकल संगीत की डोज़ को शायद हजम ना कर पाए।

नौशाद की ख्वाहिश थी कि आम लोग भी शास्त्रीय संगीत को सुनने की आदत डालें। इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई। उन्होंने गीतों का संगीत कुछ इस तरह से रचा कि शुरुआती गीत रागों पर आधारित भी रहें, और उनकी ट्यून इतनी हल्की-फुल्की हो कि लोगों को सुनने में मज़ा आए। जबकी आखिर में तानसेन व बैजू के बीच हुए संगीत के महा मुकाबले में उन्होंने विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत रखा। "आज गावत मन मेरो झूमके।" राग देसी पर आधारित इस गीत को उस्ताद अमीर खान और पंडित डी.वी.पलुस्कर ने गाया था।

तानसेन की आवाज़ बने थे उस्ताद अमीर खान। और बैजू को आवाज़ दी थी पंडित डी.वी.पलुस्कर जी ने। नौशाद ने बहुत सोच-समझकर पंडित डी.वी.पलुस्कर जी को बैजू की आवाज़ के लिए चुना था। कहानी कुछ यूं है कि तानसेन की आवाज़ के लिए तो वो उस्ताद अमीर खान को चुन चुके थे। लेकिन बैजू की आवाज़ के लिए वो किसी ऐसे गायक को लेना चाहते थे जो युवा हो। ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म में तानसेन के सामने बैजू काफी युवा जो था।

नौशाद साहब ने बैजू की आवाज़ के लिए गायक को तलाशना शुरू कर दिया। एक दिन उस वक्त के एक और नामी संगीतकार पंडित शंकरराव व्यास नौशाद को अपने साथ अपने घर ले गए। दोनों के बीच बढ़िया बातचीत हुई। पंडित शंकरराव व्यास के भाई पंडित नारायणराव व्यास भी एक संगीतकार थे। उनका घर भी पास ही था तो शंकरराव व्यास जी नौशाद को नारायणराव व्यास जी से मिलाने भी ले गए। नारायणराव व्यास भी नौशाद साहब को अच्छी तरह जानते थे। और उन्हें ये भी पता था कि नौशाद को बैजू की आवाज़ के लिए किसी गायक की तलाश है।

किस्मत अपना खेल कैसे खेलती है इस पर ध्यान दीजिएगा। जिस दिन नौशाद नायारणराव व्यासजी से मिलने गए थे उसी दिन नारायणराव जी के घर पंडित डी.वी.पलुस्कर भी आए हुए थे। पंडित पलुस्कर पुणे के रहने वाले थे। नारायाणराव जी ने नौशाद और पंडित पलुस्कर का परिचय कराया। फिर उन्होंने नौशाद को बताया कि आज शाम उनके घर पर एक संगीत सभा है। पंडित पलुस्कर भी उसमें गाएंगे। आप भी इन्हें सुनने आईए। क्या पता आप जिस आवाज़ को तलाश रहे हैं वो आपको मिल जाए। उनके बुलावे पर नौशाद शाम को आ गए।

एक इंटरव्यू में पंडित पलुस्कर जी को याद करते हुए नौशाद ने बताया था कि पंडित जी बेहद सादगी भरे व्यक्तित्व के इंसान थे। वो सफेद कुर्ता और सफेद धोती पहनते थे। चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। उनसे कोई भी सवाल पूछो तो वो मुस्कुराते हुए ही जवाब देते थे। उस शाम जब पंडित पलुस्कर ने गायकी शुरू की तो नौशाद उनकी गायकी में खो से गए। पंडित पलुस्कर बहुत खूबसूरती से गा रहे थे। उनका गाना खत्म होने के बाद नौशाद ने उनसे बात की। बात क्या, दरख्वास्त की कि बैजू बावरा में आप मेरे लिए एक-दो गीत गा दीजिए।

पंडित जी ने नौशाद से कहा कि हमने तो कभी फिल्मों में गाया नहीं है। लेकिन आपकी बात हम टालेंगे नहीं। आप अपनी फिल्म में हमसे गवा लीजिएगा। इस तरह उस दिन नौशाद को बैजू की आवाज़ मिल गई। पंडित पलुस्कर जब नौशाद के बुलावे पर रिहर्सल के लिए पहुंचे तो नौशाद ने उनमें एक बड़ी अनोखी बात नोटिस की। वो बात नौशाद ने उनसे पहले किसी और क्लासिकल गायक में नहीं देखी थी। पंडित पलुस्कर हर उस सरगम और तान को अपने पास नोट करके रख लेते थे जो नौशाद उन्हें बताते थे। इससे फायदा ये हुआ कि जितनी भी दफा रिहर्सल हुई, पंडित पलुस्कर एक भी दफा सुर से भटके नहीं। पंडित पलुस्कर और उस्ताद अमीर खां, दोनों साथ बैठकर रिहर्सल किया करते थे।

पंडित पलुस्कर व उस्ताद अमीर खान साहब के साथ नौशाद को जब पहला गीत रिकॉर्ड करना पड़ा था तब भी थोड़ी चुनौतियां आई थी। दरअसल, आमतौर पर क्लासिकल गायक स्टेज पर गाते हैं। उस ज़माने में तो क्लासिकल गायकी स्टेज पर ही अधिकतर हुआ करती थी। फिल्मों में बहुत कम होती थी। क्लासिकल गायक जब स्टेज पर गाते हैं तो उन्हें माइक के बारे में ज़्यादा नहीं सोचना नहीं पड़ता। वो बिना किसी दिक्कत के स्टेज पर लाइव गाते वक्त विभिन्न हरकतें किया करते हैं। खूब झूमते हैं। लेकिन फिल्मी गीत की रिकॉर्डिंग के समय ज़रूरी हो जाता है कि गायक माइक पर ही गाए।

नौशाद ने जब उस्ताद अमीर खान और पंडित डी.वी.पलुस्कर संग पहले गीत की रिकॉर्डिंग शुरू की तो इन दोनों महान गायकों ने अपने स्टेज वाले अंदाज़ में ही गायकी की। इससे दिक्कत ये हुई कि माइक तक आवाज़ सही तरीके से पहुंच ही ना पाए। कई टेक्स करने के बाद आखिरकार नौशाद ने माइकों की संख्या बढ़ा दी। उन्होंने दोनों गायकों के सामने अलग-अलग माइक लगा दिए। साथ ही दोनों के ऊपर की तरफ भी माइक टांग दिए। इससे वो गीत रिकॉर्ड करने में आ रही कठिनाईयां दूर हो गई।

पंडित पलुस्कर जब गाते थे तो तानपुरा पर संगीत भी खुद ही छेड़ते थे। ऐसे ही उस्ताद अमीर खां साहब सुरमंडल साथ लेकर गाते थे। लेकिन गीत की रिकॉर्डिंग के वक्त जब इन दोनों महान गायकों ने अपने-अपने साज़ों पर धुन छेड़ी तो स्पीकर पर वो बहुत तेज़ सुनाई दी। इस स्थिति से निपटने के लिए नौशाद ने दोनों गायकों के शागिर्दों को उनसे साज़ दे दिए। और पास बैठकर उनसे वो साज़ बजाने को कहा। इस तरह उस गाने की रिकॉर्डिंग कंप्लीट हुई। जब बैजू बावरा रिलीज़ हुई तो उस गीत को बहुत ज़्यादा पसंद किया गया था। गीत के बोल थे "आज गावत मन मेरो झूमके। तेरी तान भगवान।"

नौशाद साहब ने एक और किस्सा एक इंटरव्यू में बताया था। वो किस्सा जुड़ा था बैजू बावरा फिल्म के ही एक और मशहूर गीत से जिसके बोल थे "ओ दुनिया के रखवाले। सुन दर्द भरे मेरे नाले।" नौशाद ने ये गीत रफी साहब से गवाया था। ये गीत राग दरबारी पर आधारित है। उस किस्से में नौशाद कहते हैं कि एक दफा उन्होंने एक अखबार में एक खबर पढ़ी। खबर कुछ यूं थी कि देश के किसी शहर में एक अपराधी को फांसी की सज़ा हुई थी। जब उसकी फांसी का समय नज़दीक आया तो उससे उसकी आखिरी इच्छा पूछी गई।

जेल के अधिकारियों को लग रहा था कि वो कैदी किसी से मिलने की ख्वाहिश जताएगा। या अपने पसंद की कोई चीज़ खाने की इच्छा ज़ाहिर करेगा। या कुछ पीने की बात कहेगा। लेकिन उस कैदी ने जो कहा वो जेल अधिकारियों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था। कैदी ने अपनी आखिरी ख्वाहिश के तौर पर कहा कि फांसी से पहले वो बैजू बावरा फिल्म का गीत "ओ दुनिया के रखवाले। सुन दर्द भरे मेरे नाले। जीवन अपना वापस लेले जीवन देने वाले।" चूंकि उस कैदी की वो आखिरी इच्छा थी तो जेल में उसके लिए टेप रिकॉर्डर का इंतज़ाम किया गया और वही गाना प्ले भी किया। बाद में उसे फांसी पर लटका दिया गया।

नौशाद बताते हैं कि मोहम्मद रफी ने 15-20 दिन तक इस गाने की रिहर्सल की थी। जिस दिन रफी साहब ने ये गाना रिकॉर्ड किया था उसके बाद कई दिनों तक वो कोई और गाना नहीं गा सके थे। और वो इसलिए क्योंकि इतनी हाई पिच में नौशाद साहब ने उनसे वो गीत गवाया था कि बाद में उनकी आवाज़ बैठ गई थी। नौशाद कहते हैं कि उनसे कुछ लोगों ने बताया था कि वो गाना गाते वक्त रफी साहब के गले से ख़ून आ गया था। लेकिन रफी साहब ने उनसे ऐसा कभी कुछ नहीं बताया था। नौशाद ने ये भी बताया था कि कई साल बाद उन्होंने एक दफा फिर से रफी साहब को लेकर ही ये गाना रिकॉर्ड किया था। और दूसरी दफा रिकॉर्डिंग करते वक्त तो रफी साहब ने पहली दफा से दो सुर ऊपर जाकर ये गाना रिकॉर्ड किया था।

इंटरनेट पर बहुत जगह यही बताया गया है कि बैजू बावरा 05 अक्टूबर 1952 के दिन रिलीज़ हुई थी। लेकिन इस तारीख पर शक था मुझे। क्योंकि इस तारीख को अगर आप गूगल पर तलाशेंगे तो पाएंगे कि साल 1952 की 05 अक्टूबर को रविवार का दिन था। जबकी चलन तो हमारे यहां शुक्रवार के दिन फिल्में रिलीज़ होने का है। हालांकि मुझे नहीं पता कि ये चलन कब से शुरू हुआ होगा। ये भी हो सकता है कि उस ज़माने में ये कोई ज़रूरी ना माना जाता हो कि फिल्म शुक्रवार के दिन ही रिलीज़ होनी चाहिए। वैसे बैजू बावरा की रिलीज़ की किसी और तारीख का ज़िक्र भी कहीं नहीं मिलता है। मगर काफ़ी तलाश करने के बाद मालूम हुआ कि वास्तव में बैजू बावरा 05 अक्टूबर को नहीं, 10 अक्टूबर को रिलीज़ हुई थी।

आज बैजू बावरा को रिलीज़ हुए आज 73 साल पूरे हो चुके हैं। विजय भट्ट द्वारा निर्देशित बैजू बावरा साल 1954 में हुए पहले फिल्मफेयर पुरस्कारों में दो खिताब जीतने में कामयाब रही थी। पहला था बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड जो मीना कुमारी जी को मिला था। और दूसरा था बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर अवॉर्ड जो नौशाद साहब को "तू गंगा की मौज मैं जमना का धारा" गीत के लिए मिला था। इस फिल्म से ये मेरा सबसे पसंदीदा गीत है। आप भी इस फिल्म, इसके गीत-संगीत और कलाकारों पर अपनी राय रखिएगा। और इस लेख को लाइक-शेयर करते हुए जाइएगा। धन्यवाद।

Today, just a few days after her birthday, one of the greatest dancers of Indian cinema, Sandhya Shantaram, passed away ...
05/10/2025

Today, just a few days after her birthday, one of the greatest dancers of Indian cinema, Sandhya Shantaram, passed away on October 4, 2025. The veteran actress breathed her last due to age-related complications. Her passing marks the end of an era in Hindi and Marathi films.

Sandhya Shantaram married legendary filmmaker V. Shantaram. She achieved legendary status with her films "Teen Batti Char Raasta," "Jhanak Jhanak Payal Baaje," "Do Aankhen Barah Haath," "Navrang," "Stree," "Sehra (1963)," "Jal Bin Machhli Nritya Bin Bijli," "Pinjara," and many more.

Born on 27th Sep 1932 (few sources document her birthday as 1938 and even 1931) in Kochi, Kerala, as Vijaya Deshmukh, Sandhya's life took a dramatic turn when she was discovered by the legendary filmmaker V. Shantaram. Her melodious voice, which bore a striking resemblance to that of Shantaram's second wife, actress Jayshree, caught the director's attention. This resemblance, although it was just coincidental, marked the beginning of Sandhya's cinematic journey.

Sandhya's debut came with the Marathi film '"Amar Bhoopali (1951)," where she played the role of a vocalist. Her Hindi film debut came in 1952 with Parchhain with V. Shantaram and Jayshree. Her performance as Kokila in "Teen Batti Char Raasta (1953)" showcased her acting prowess, where despite being portrayed as unattractive due to her dark skin, she captivated audiences with her secret identity as a radio star with a beautiful singing voice.

Her dedication to her craft was evident when she underwent intensive classical dance training for Shantaram's "Jhanak Jhanak Payal Baaje (1955)." The film was a success, winning four Filmfare Awards and the National Film Award for Best Feature Film in Hindi. Sandhya's role in "Do Aankhen Barah Haath (1958)" as Champa, a toy seller, further solidified her status as a versatile actress. The song "Ai Maalik Tere Bande Hum," which was picturised on her, is perhaps the most iconic prayer song in Hindi film history.

One of her most memorable performances was in "Navrang (1959)," where she played the plain wife of a poet who fantasises about her as his beautiful muse. The film has some of Hindi film history's most elaborate dances in songs like "Tu Chhupi Hai Kahan, Main Tadapta Yahan," "Aadha Hai Chandramaa, Raat Aadhi," and "Shyamal Shyamal Baran. "Tum Saiyan Gulab Ke Phool" and "Kaari Kaari Kaari Andhiyari Thi Raat, Ek Din Ki Baat." The film also featured the iconic Holi song "Arre Ja Re Hatt Natkhat," where Sandhya's dance with an elephant remains etched in the memories of cinephiles.

Her portrayal of Shakuntala in "Stree (1961)" was another testament to her bravery and commitment, as she performed alongside real lions without a double, after shadowing a lion tamer to prepare for the role. She then acted in Sehra (1963), Ladki Sahyadri Ki (1967), "Pinjara (1972)," and Chandanachi Choli Ang Ang Jali (1975)."

"Jal Bin Machhli Nritya Bin Bijli' (1971) is yet another film where Sandhya's dancing skills were put to the forefront. The movie is a musical drama that revolves around the life of a dancer and her passion for the art form. Sandhya's emotive quotient and her dance performances were widely appreciated in this film. Sandhya's last significant role was in the Marathi film "Pinjra (1972)," a tragic story of a school teacher and a tamasha artist. The film went on to win the National Film Award for Best Feature Film in Marathi. Sandhya retired from films after acting in Marathi film "Chandanachi Choli Ang Ang Jali" in 1975.

Sandhya's personal life took a significant turn when she married V. Shantaram in 1956, after he separated from Jayshree, his second wife. V. Shantaram, found in Sandhya not only a life partner but also a muse and a leading lady for his films.

In 2009, Sandhya made a special appearance at the V. Shantaram Awards ceremony, commemorating the 50th anniversary of 'Navrang', reminding everyone of her enduring legacy in the Indian film industry.

*there are descrepensies in her date of birth as a few sources claim it to be 1938 but most likely its 1932.

13/09/2025

साल 2003 की बात है। हिमाचल प्रदेश में अमरीश पुरी जी गुड्डू धनोआ की फिल्म 'जाल: द ट्रैप' की शूटिंग कर रहे थे। एक दिन उनके साथ एक हादसा हो गया। वो एक दुर्घटना का शिकार हो गए जिससे उनका चेहरे और आंख पर गंभीर चोटें आई। उनका काफ़ी ख़ून भी बह गया। इस कारण अमरीश पुरी जी को बहुत सारा ख़ून चढ़ाना पड़ा।

अमरीश पुरी जी के पुत्र राजीव पुरी जी ने फिल्मफेयर मैगज़ीन को एक इंटरव्यू दिया था। उसमें उन्होंने इस घटना का ज़िक्र करते हुए कहा था कि ख़ून चढ़ाए जाने की इसी प्रक्रिया के दौरान कोई बड़ी गड़बड़ हो गई। शायद अमरीश पुरी जी को इन्फ़ैक्टेड ख़ून चढ़ा दिया गया। और इस वजह से कुछ महीनों बाद अमरीश जी को ब्लड डिसॉर्डर हो गया, जिसे मेडिकल भाषा में माइलोडिस्पास्टिक सिन्ड्रॉम कहा जाता है।

अमरीश जी को बहुत कमज़ोरी महसूस होने लगी। उनकी भूख़ भी मरने लगी। जब उन्होंने जांच कराई तो उन्हें पता चला कि उन्हें ब्लड डिसॉर्डर हो गया है। बीमारी की खबर से अमरीश पुरी जी पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा था। मगर उन्होंने दुनिया के सामने अपनी बीमारी का ज़िक्र नहीं करने का फैसला किया।

अमरीश जी ने तब कई फिल्में साइन की हुई थी। और वो हर हाल में अपनी फिल्में पूरी करना चाहते थे। 2003 में अमरीश पुरी जी की बीमारी डाइग्नोस हुई थी। और दिसंबर 2004 तक अमरीश पुरी जी ने अपनी सारी फिल्में कंप्लीट कर दी। जबकी उनकी तबियत बहुत अच्छी नहीं थी। अपना काम खत्म करने के बाद अमरीश पुरी जी अपना अधिकतर समय घर पर बिताने लगे। हालांकि उन्हें बिस्तर पर पड़े रहना अच्छा नहीं लगता था।

अमरीश पुरी जी से उनके पुत्र राजीव पुरी जब उनकी तबियत के बारे में पूछते तो वो जवाब देते थे कि कल से बेहतर हूं। लेकिन एक दिन अमरीश पुरी जी खड़े-खड़े गिर गए। उन्हें तगड़ा ब्रेन हैमरेज हुआ था। उन्हें बचाने की काफ़ी कोशिशें की गई। मगर उनकी जान नहीं बच सकी। साल 2005 की 12 जनवरी को अमरीश पुरी जी का देहांत हो गया। और भारतीय का एक बहुत ज़बरदस्त अदाकार इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए चला गया। अमरीश पुरी जी के बारे में बहुत कुछ है जो जानने लायक है। इनकी विस्तृत कहानी आप यहां पढ़ सकते हैं- https://shorturl.at/9zKYi बहुत कुछ जानने को मिलेगा अमरीश पुरी जी के बारे में इस लेख से आपको। मरीश पुरी जी को नमन। शत शत नमन।

12/09/2025

"मैं चेतन आनंद से बात कर रहा था। तभी मैंने एक औरत की आवाज़ सुनी। मैंने नज़र उठाकर देखा। वो प्रिया राजवंश थी। उस दिन पहली बार मैंने किसी हीरोइन को फेस टू फेस देखा था। वो बहुत गौरी, लंबी और खूबसूरत थी। कोई भी उनसे प्यार कर बैठता। " ये बात रंजीत जी ने एक इंटरव्यू में बताई थी। साथियों ये उस ज़माने की बात है जब रंजीत जी हीरो बनने फ़िल्म बॉम्बे गए थे। और रंजीत यूं ही मुंह उठाकर नहीं गए थे बॉम्बे। उन्हें बाकायदा बॉम्बे आने का इन्विटेशन मिला था।

दिल्ली में रंजीत जी की मुलाक़ात रॉनी नाम के एक शख्स से हुई थी। उसी ने रंजीत से वादा किया था कि वो अपनी फ़िल्म में हीरो लेगा। रंजीत जी से रॉनी की मुलाक़ात कैसे हुई थी ये एक अलग किस्सा है। उसका ज़िक्र आपको रंजीत जी की बायोग्राफ़ी में मिल जाएगा। उसका लिंक मैं इस लेख के आखिर में एड कर दूंगा। आप उसे भी पढ़िएगा। क्योंकि रंजीत जी के शुरुआती जीवन की कहानी भी बहुत रोचक व जानने लायक है। आपको पसंद आएगी।

तो खैर, जिस दिन रंजीत जी ने चेतन आनंंद के घर पर प्रिया राजवंश को देखा था उसके अगले दिन रॉनी ने रंजीत को सन एंड सैंड होटल में ठहरा दिया। शाम को रॉनी ने रंजीत को होटल के पूल फ़ेसिंग रेस्टोरेंट में आकर मिलने को कहा। रंजीत जब वहां पहुंचे तो नज़ारा देखकर उनकी आंखें फटी रह गई। वहां बहुत सी खूबसूरत लड़कियां थी जो पूल किनारे लगी सीट्स पर लेटी सनबाथ ले रही थी। और उन सभी ने बिकिनी पहनी हुई थी। रंजीत जी कहते हैं कि उनकी नज़रें उन बिकनी गर्ल्स से हट ही नहीं रही थी।

रंजीत रॉनी के पास पहुंचे और उनसे बात करने लगे। कुछ देर बाद रंजीत ने देखा कि स्वीमिंग पूल से निकलकर सुनील दत्त आ रहे हैं। वो पहला मौका था जब रंजीत ने सुनील दत्त को अपनी आंखों से देखा था। सुनील दत्त रंजीत और रॉनी के पास आकर बैठ गए। रंजीत बताते हैं कि दत्त साहब की पर्सनैलिटी बहुत शानदार थी। वो बहुत चार्मिंग दिख रहे थे। दत्त साहब ने रंजीत से भी बढ़िया से बात की। और फिर वो रंजीत व रॉनी को अपनी एमजी कन्वर्टिबल स्पोर्ट्स कार में साथ लेकर अपने घर पहुंच गए। दत्त साहब के लग्ज़ूरियस लाइफ़स्टाइल को देखकर रंजीत बहुत प्रभावित हुए थे।

दत्त साहब रंजीत व रॉनी को अपने घर के टैरेस पर ले गए। वहां एक पार्टी शुरू होने वाली थी। घर जाने के बाद दत्त साहब ने एक लाल रंग का खूबसूरत का धोती-कुर्ता पहन लिया। रंजीत कहते हैं कि उस धोती-कुर्ते में दत्त साहब बहुत हैंडसम दिख रहे थे। धीरे-धीरे पार्टी में और भी मेहमान आने शुरू हुए। दत्त साहब उन मेहमानों से फ़िल्मों के बारे में बात कर रहे थे। चूंकि रंजीत एकदम नए थे। और उन्हें कुछ नहीं पता था। तो वो बहुत अजीब महसूस कर रहे थे वहां। जब लोग हंसते तो वो भी हंस देते। जबकी कई दफ़ा उन्हें पता ही नहीं चल पा रहा था कि बात क्या हुई थी। पार्टी में ड्रिंक्स भी चल रहे थे।

लगभग एक बजे एक नौकर ने दत्त साहब से डिनर करने को कहा। मगर दत्त साहब ने उससे कहा कि अभी तो हम लोग ड्रिंक ही कर रहे हैं। फिर लगभग ढाई बजे रंजीत जी ने एक महिला की आवाज़ सुनी। "दत्त साहब।" पार्टी में मौजूद हर मेहमान खड़ा हो गया और बोला,"नमस्ते भाभीजी।" वो नर्गिस जी थी। "दत्त साहब, खाना तीन बार गरम किया जा चुका है।" रंजीत ने उस दिन पहली बार नर्गिस जी को भी देखा था। और वो नर्गिस जी को देखते ही रह गए। क्योंकि अब तक उन्होंने सिर्फ़ फ़िल्मों में नर्गिस जी को देखा था।

रंजीत कहते हैं कि उन्होंने सुना था कि ये फ़िल्मी हीरोइनें बहुत घमंडी होती हैं। घर पर कोई काम नहीं करती। सब काम नौकर करते हैं। मगर उस रात नर्गिस जी उनके ठीक सामने थी। और वो मेहमानों को अपने हाथों से खाना सर्व कर रही थी। और वो खाना उन्होंने खुद बनाया था। नर्गिस अपने मेहमानों से बहुत अच्छे से बात कर रही थी।

अगले दिन, यानि मुंबई में अपने तीसरे दिन भी रंजीत को कुछ बहुत खूबसूरत तजुर्बे हुए। रंजीत जी बताते हैं कि रॉनी ने उनसे कहा कि वो उन्हें एक फ़िल्म स्टूडियो में लेकर जाएगा। रंजीत बहुत एक्सायटेड हुए। रॉनी उन्हें लेकर आर.के.स्टूडियो पहुंचा। वहां रॉनी ने रंजीत को राज कपूर से मिलवाया। रंजीत कहते हैं कि राज कपूर की पर्सनैलिटी बहुत ग्रेट लगी उन्हें। वो बहुत हम्बल थे। उन्हें आज भी चाय के साथ रस खाने का राज कपूर का अंदाज़ अच्छी तरह से याद है।

थोड़ी देर बाद राज कपूर रंजीत और रॉनी को अपने प्राइवेट थिएटर में लेकर गए। उन्होंने मेरा नाम जोकर फ़िल्म का एक गाना इन लोगों को दिखाया। जब ये लोग बड़े ध्यान से गाना देख रहे थे तो अचानक राज कपूर ज़ोर से बोले,"स्टोप इट। रील निकालकर मेरे पास लाओ।" रंजीत ने देखा कि राज कपूर के हाथ में एक छोटी सी बोतल है जिसमें कोई सॉल्यूशन भरा है। उन्होंने वो रील ली। उसमें से थोड़ा सा हिस्सा काटा। फिर वो बोतल वाला सॉल्यूशन लगाया। और ज़ोर से अपने हाथों से रील को दबाया। फिर रील को वापस केस में फिट किया। और अपने असिस्टेंट को देकर फिर से प्ले करने को कहा।

रंजीत को समझ में नहीं आ रहा था कि राज कपूर क्या कर रहे हैं। गाना फिर से प्ले हुआ। और थोड़ी देर बाद राज साहब बोले,"हांजी, अभी सॉन्ग का टैम्पो फ़ास्ट हो गया है।" उस दिन राज कपूर ने कुछ एडिटिंग की थी उस रील में। शाम को राज कपूर ने रंजीत व रॉनी को अपने घर डिनर व ड्रिंक्स के लिए इनवाइट किया। ये लोग राज साहब के घर पहुंचे। और ड्रिंक्स शुरू हुए। ड्रिंक्स का पहला राउंड रंधीर कपूर ने बनाया था। आधी रात तक ड्रिंक्स चलते रहे। तब एक नौकर आया और उसने राज साहब से पूछा कि क्या वो खाना गरम कर दे? राज साहब ने उससे कहा,"हां तुम खाना गरम करो। तब तक हम ड्रिंक्स खत्म करके आते हैं।"

एक घंटे बाद वो नौकर फिर से आया। राज साहब ने उसे और रुकने को कहा। रात को लगभग दो बजे वो नौकर फिर से आया। ये पूछने कि क्या वो खाना लगा दे? उस वक्त तक राज कपूर फुल नशे में हो चुके थे। रंजीत बताते हैं कि उस रात राज कपूर के घर उन्होंने रात को साढ़े तीन बजे डिनर किया था। रंजीत बताते हैं कि जब वो रॉनी की कार में राज साहब के घर से लौट रहे थे तो उन्होंने रॉनी से सवाल किया कि क्या ये सेलेब्रिटीज़ लोग रोज़ रात को शराब बीते हैं और देर से खाना खाते हैं? रॉनी ने रंजीत जी के इस सवाल का क्या जवाब दिया होगा ये रंजीत जी ने नहीं बताया। क्योंकि ये बात बताने के बाद वो हंसने लगे थे। फिर उन्होंने सीधे ये बताया कि कुछ दिन तक उनकी ज़िंदगी ऐसे ही चली थी। वो हर दिन किसी नए फ़िल्मस्टार से मिल रहे थे रॉनी के ज़रिए।

एक दिन रॉनी ने बताया कि उसने यंग एक्टर को होटल ताज में मिलने के लिए बुलाया है। वो अपनी फ़िल्म के लिए उस एक्टर से बात करेगा। फिर रंजीत को साथ लेकर रॉनी ताज होटल पहुंच गया। लगभग एक घंटे बाद रंजीत जी ने देखा कि एक बहुत युवा लड़का उनकी तरफ़ आ रहा है। पास आने के बाद उस लड़के ने अपने जूते उतारे और फिर रॉनी के पास रखे सोफ़े पर बैठ गया। बोलते हुए वो लड़का तुतला रहा था। जैसे उसे बोलने में दिक्कत हो रही हो। वो लड़का कोई और नहीं, वो थे जितेंद्र।

रॉनी के ज़रिए अब तक बंबई(मुंबई तब बॉम्बे या बंबई कहलाती थी। तो फिलहाल हम भी बंबई ही लिखेंगे।) में कई फ़िल्म एक्टर्स से रंजीत जी की जान पहचान हो चुकी थी। इनमें से एक थे संजय खान। एक दिन संजय खान ने होटल फोन किया और रंजीत को अपने घर एक पार्टी में शामिल होने के लिए इनवाइट किया।

जब रंजीत संजय खान के घर पहुंचे तो उन्होंने वो देखा जो अभी तक बंबई में किसी और एक्टर के घर नहीं देखा था। वो पार्टी ऐसी लग रही थी जैसे कोई हॉलीवुड पार्टी हो। एक से एक फूड आइटम्स थे वहां। विदेशी शराब थी। और बहुत सारी लड़कियां थी जो मेहमानों के साथ बढ़िया घुल-मिल रही थी। कुछ देर बाद रंजीत ने फ़िरोज़ खान को देखा। वो बड़े स्टाइल में चल रहे थे। और उनके साथ उनकी गर्लफ्रेंड भी थी।

साथियों रॉनी रंजीत साहब को हीरो बनाने का वादा करके अपने साथ दिल्ली से बॉम्बे लाया था। और जिस फ़िल्म में रंजीत को उसने हीरो बनाने का वादा किया था उसका नाम था ज़िंदगी की राहें। तो रॉनी ने जुहू में 1200 रुपए महीना किराए पर एक बंगला ले लिया। और उस बंगले में अपना ऑफ़िस बना लिया। तथा रंजीत को भी सन एंड सैंड होटल से निकालकर उसी बंगले में ठहरा दिया। ज़िंदगी की राहें नाम उस फ़िल्म में अमजद खान के पिता जयंत साहब को भी एक किरदार निभाने के लिए चुना गया था।

सुबह के वक्त बंगले में तमाम मीटिंग्स व स्क्रिप्ट रीडिंग सेशन्स हुआ करते थे। और शाम के वक्त रोज़ पार्टियां होती थी। फिर एक दिन एक बुरी खबर आई। रॉनी के फाइनेंसर ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। यानि अब फ़िल्म नहीं बन सकती थी। तो रॉनी ने रंजीत से कहा,"मैं वापस लंदन जा रहा हूं। वहां से फाइनेंस का इंतज़ाम करूंगा। तब तक तुम अकेले इस बंगले में रहो।" फिर रॉनी लंदन वापस चला गया। वो था भी लंदन का निवासी ही। जब आप रंजीत जी की बायोग्राफ़ी पढ़ेंगे तो उसमें आपको रॉनी की कहानी भी थोड़ी सी पता चलेगी।

खैर, रॉनी के जाने के बाद उस बड़े से बंगले में रंजीत जी एकदम अकेले हो गए। रॉनी कई दिनों तक नहीं लौटा। और बंगले का किराया व बिजली का बिल वगैरह चढ़ता ही जा रहा था। रंजीत बहुत प्रैशर में आ गए। एक दिन रंजीत दत्त साहब से मिले और उन्होंने पूरी सिचुएशन दत्त साहब को बताई। तब दत्त साहब ने रंजीत से कहा कि अपना सामान बांधो और हमारे गेस्ट हाउस में आकर रहने लगो। रंजीत ने वैसा ही किया। वो दत्त साहब के गेस्ट हाउस में रहने आ गए। कुछ दिनों तक रंजीत वहां रहे। फिर एक पीजी में शिफ़्ट हो गए। खाने का उनका टेंशन खत्म हो गया था। क्योंकि वो या तो दत्त साहब, या संजय खान-फ़िरोज़ खान के यहां बेझिझक खाना खा लिया करते थे।

इसी दौरान दिलीप कुमार और उनके छोटे भाई एस.एन. खान से भी रंजीत की जान-पहचान हुई। फिर तो दिलीप साहब से भी कभी भी रंजीत का मिलना-जुलना हो जाता था। एक दिन दिलीप साहब ने रंजीत से पूछा कि तुम रहते कहां हो? रंजीत ने बताया कि वो पीजी में रहते हैं। तब दिलीप साहब ने रंजीत से कहा कि बांद्रा मे मेरी बहन का एक बंगला है जो खाली पड़ा है। तुम उसमें रहो। दिलीप साहब की बात मानते हुए रंजीत उस बंगले में शिफ़्ट हो गए। मगर अब तक रंजीत बहुत दुखी हो चुके थे। क्योंकि इतने बड़े-बड़े स्टार्स से रंजीत की जान-पहचान भले ही हो गई थी। मगर काम के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था।

खाने व रहने का इंतज़ाम भले ही उनके पास था। मगर पर्सनल खर्च के लिए उनके पास पैसे खत्म होने लगे थे। इसलिए एक दिन परेशान रंजीत ने दिल्ली वापस लौटने का फैसला किया। क्योंकि रॉनी का अभी कोई अता-पता नहीं था अभी तक। रंजीत कहते हैं कि बाद में उन्हें रियलाइज़ हुआ कि रॉनी ने उन्हें इन सभी बड़े-बड़े स्टार्स से अपना दोस्त बताकर मिलाया था। ये नहीं बताया था कि ये लड़का भी एक्टर बनना चाहता है।

रंजीत दिल्ली वापस लौटने का फैसला कर चुके थे। एक दिन रंजीत बांद्रा के एक रेस्टोरेंट में लंच कर रहे थे। तभी वहां उन्हें उनका एक दिल्ली का दोस्त मिला। वो भी दिल्ली से बंबई फ़िल्मों में अपनी किस्मत आज़माने आया था। मगर उसकी किस्मत खराब रही थी। किसी तरह उसे ये पता चल गया था कि रंजीत की सुनील दत्त साहब से बहुत बढ़िया दोस्ती है। उसने रंजीत से कहा कि दत्त साहब रेशमा और शेरा बना रहे हैं। मेरी सिफ़ारिश कर देना उनसे किसी छोटे-मोटे रोल के लिए।

उसके जाने के बाद रंजीत दत्त साहब के ऑफ़िस पहुंचे। रंजीत को देखते ही दत्त साहब का मैनेजर भागता हुआ उनके पास आया और बोला,"अरे गोली जी कहां हो आप? दत्त साहब कबसे आपसे मिलना चाहते थे। रेशमा और शेरा में दत्त साहब आपको वहीदा जी के भाई के रोल में कास्ट करना चाहते हैं।" साथियों रंजीत जी का प्यार का नाम गोली है। जिन लोगों को ना पता हो उन्हें बता दूं कि दिल्ली में रंजीत फुटबॉल खेला करते थे। और गोल कीपिंग करते थे। इसलिए उनके दोस्तों ने उनका नाम गोली रख दिया था। रंजीत जी का ये नाम बंबई में चला था।

खैर, दत्त साहब के मैनेजर की बात सुनकर रंजीत शॉक्ड रह गए। रेशमा और शेरा को उस वक्त सुखदेव डायरेक्ट करने वाले थे। और भानू अथैया को दत्त साहब ने बतौर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर हायर किया था। रंजीत को बहुत हैरत हुई थी जब भानू अथैया ने कॉस्ट्यूम के लिए उनका माप लिया था। रंजीत कहते हैं कि तब जीवन में पहली बार किसी महिला ने उनका माप लिया था। रेशमा और शेरा की शूटिंग के दौरान भानू अथैया से रंजीत की बढ़िया दोस्ती हो गई थी।

लेकिन शूटिंग की बात बाद में। पहले ये जान लीजिए कि जिस दिन रंजीत ने भानू अथैया को पहला कॉस्ट्यूम ट्रायल दिया था उस दिन भानू अथैया ने उनसे कहा था कि एक सप्ताह बाद फाइनल ट्रायल के लिए मुझे फोन कर लेना। मगर जब एक सप्ताह बाद रंजीत ने भानू अथैया के ऑफ़िस फोन किया तो भानू अथैया ने उनसे बात करने से इन्कार कर दिया। रंजीत ने कई बार कोशिश की। मगर हर बार भानू अथैया का स्टाफ़ कोई ना कोई बहाना बना देता।

हारकर रंजीत दत्त साहब के ऑफ़िस पहुंचे। दत्त साहब तब वहां नहीं थे। आउट ऑफ़ मुंबई थे। दत्त साहब के ऑफ़िस में रंजीत को पता चला कि उन्हें फ़िल्म से निकाल दिया गया है। क्योंकि डायरेक्टर सुखदेव रंजीत को नहीं लेना चाहते थे फ़िल्म में। उन्हें शायद रंजीत पसंद नहीं थे। निराश रंजीत उसी शाम संजय खान के घर गए। और उन्होंने संजय खान को पूरा मामला बताया। और कहा कि उन्हें दुख हो रहा है कि उन्हें रेशमा और शेरा से निकाल दिया गया है। संजय खान ने रंजीत को ढांढस बंधाया। फिर संजय खान से रंजीत से अपने साथ पुणे, एक हॉर्स रेस के लिए साथ चलने को कहा। रंजीत को लगा कि अब तो उनके पास कोई काम है ही नहीं। इसलिए वो भी संजय खान के साथ चले गए।

रंजीत को वहां काफ़ी समय लग गया। पूरी रात हो गई। इसी बीच दत्त साहब बंबई वापस लौट आए। और जब दत्त साहब को पता चला कि रंजीत ड्रैस रिहर्सल में नहीं आया है तो उन्हें बड़ी टेंशन हुई। साथ ही रंजीत पर बहुत गुस्सा भी आया। क्योंकि दत्त साहब को पता ही नहीं था कि उनके डायरेक्टर सुखदेव ने रंजीत को फ़िल्म से निकाल दिया है। अगले दिन रंजीत ने सोचा कि दत्त साहब से मिलकर उनसे पूरी बात बताई जाए। तो रंजीत दत्त साहब के ऑफ़िस आ गए। रंजीत को देखते ही दत्त साहब को गुस्सा आ गया। रंजीत बताते हैं कि उस दिन दत्त साहब ने उनका कॉलर पकड़ लिया। और दत्त साहब बोले,"तू अपने आप को समझता क्या है? मैंने तुझे अपनी फ़िल्म में इतना बड़ा रोल दिया। और तू रिहर्सल में आया ही नहीं।"

फिर रंजीत ने दत्त साहब को पूरी सिचुएशन समझाई। सब कुछ जान-समझने के बाद दत्त साहब बड़े शॉक्ड हुए। उन्होंने रंजीत से माफ़ी मांगी। फिर अपने मैनेजर को बुलाया और कहा कि रंजीत फ़िल्म कर रहा है। कास्ट में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। जाकर सुखदेव को ये बता देना। और इस तरह रंजीत की तेज़ किस्मत ने उन्हें रेशमा और शेरा फ़िल्म दिला दी। रंजीत बताते हैं कि दत्त साहब ने रेशमा और शेरा के लिए उन्हें 12 हज़ार रुपए फ़ीस दी थी। जबकी इसी दौरान डायरेक्टर मोहन सहगल ने उन्हें सावन भादो फ़िल्म के लिए साइन किया था। और सावन भादो की एक हफ़्ते की शूटिंग के बाद मोहन कुमार ने उन्हें 1500 रुपए का चैक दिया था।

रंजीत बताते हैं कि उस 1500 रुपए के चैक को उन्होंने यादगार के तौर पर कई दिनों तक संभालकर रखा था। कुछ ही दिन बाद रंजीत ने शर्मीली फ़िल्म साइन की। उसके लिए भी उन्हें 1500 रुपए ही मिले थे। और शर्मीली साइन करने के कुछ दिन बाद ही रंजीत ने 500 रुपए महीना किराए पर एक बंगला ले लिया। शर्मीली फ़िल्म रंजीत को राखी जी ने दिलाई थी। दरअसल, जैसलमेर में रेशमा और शेरा की शूटिंग के दौरान रंजीत की अभिनय प्रतिभा से राखी बहुत प्रभावित थी। वापस लौटने के बाद राखी ने रंजीत से कहा कि जाकर समीर गांगुली से मिल लो। वो एक फ़िल्म बना रहे हैं। राखी खुद वो फ़िल्म साइन कर ही चुकी थी। जब राखी के कहने पर रंजीत समीर गांगुली से मिले तो उन्हें एक लफ़ंगे के रोल के लिए शर्मीली में कास्ट कर लिया गया। यहीं से रंजीत विलेन के किरदारों में स्थापित होते चले गए थे।

साथियों आज रंजीत जी का जन्मदिन है। 12 सितंबर 1941 को अमृतसर में रंजीत जी का जन्म हुआ था। रंजीत जी आज 84 साल के हो गए हैं। रंजीत जी को किस्सा टीवी की तरफ़ से जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। ईश्वर रंजीत जी को हमेशा सेहत-याब रखे। रंजीत जी के शुरुआती जीवन और बंबई आने की कहानी भी रोचक है, जैसा कि मैंने इस लेख की शुरुआत में कहा भी था। तो वो कहानी आप यहां पढ़ सकते हैं- https://shorturl.at/PhlEi यकीनन इनके बारे में ये बातें भी आपको बहुत रोचक लगेंगी।

आखिर में रंजीत जी के बारे में और कुछ और रोचक बातें भी जानिए। तो शर्मीली फ़िल्म के बाद रंजीत को निगेटिव रोल्स में ही मिलने लगे। और रंजीत भी बेधड़क उन रोल्स को स्वीकारते गए। रंजीत इतने मशहूर हो गए कि प्रोड्यूसर्स और डिस्ट्रीब्यूटर्स डायरेक्टर्स से फ़िल्म में रंजीत पर एक रेप सीन हर हाल में रखवाने लगे। रंजीत कहते हैं कि जब वो दिल्ली में थे तो उन्होंने ख्वाब में भी कभी नहीं सोचा था कि वो इतने मशहूर हो जाएंगे एक दिन। बकौल रंजीत, लोग उन्हें भले ही रेपिस्ट कहते हों। मगर असल जीवन में उन्होंने कभी किसी महिला के साथ गलत बर्ताव नहीं किया।

ये लेख होता है यहीं पर खत्म। पसंद आए तो लाइक-शेयर अवश्य कीजिएगा। एक कमेंट करके बताइएगा ज़रूर कि रंजीत की कौन सी फ़िल्म आपको बेस्ट लगती है। और ये भी बताइएगा कि अगर शोले में गब्बर सिंह के रोल में अमजद खान की जगह रंजीत होते तो कैसा होता? आपको बता दूं कि पत्रकार अनुपमा चोपड़ा ने अपनी किताब "शोले: मेकिंग ऑफ़ ए क्लासिक" में बताया है कि जब डैनी ने धर्मात्मा के लिए शोले छोड़ दी थी तब रमेश सिप्पी इतना परेशान हो गए थे कि उन्होंने कई लोगों के नाम पर विचार किया था। उनमें से एक रंजीत भी थे। और रंजीत को रमेश सिप्पी ने ऑलमोस्ट फ़ाइनल भी कर दिया था। मगर चूंकि वो संतुष्ट नहीं थे तो उन्होंने रंजीत को बताया नहीं। इसी दौरान उन्हें अमजद खान मिल गए। और शोले के गब्बर का रोल अमजद खान को मिल गया।

11/09/2025

एक दिन रीमा लागू को राजश्री प्रोडक्शन्स वालों ने फोन किया। उन दिनों रीमा लागू फिल्में कम और थिएटर ज़्यादा कर रही थी। रीमा लागू ने पृथ्वी थिएटर में कोई हिंदी नाटक किया था। राजश्री प्रोडक्शन्स के ही किसी आदमी ने रीमा लागू का वो नाटक देखा था। और रीमा जी का अभिनय उसे बहुत पसंद आया था। राजश्री वालों ने उस दिन फोन पर रीमा लागू से मिलने आने को कहा। अगले दिन रीमा लागू राजश्री प्रोडक्शन्स के ऑफिस गई। वहां उनकी मुलाकात सूरज बड़जात्या से हुई थी।

सूरज बड़जात्या ने उन्हें मैंने प्यार किया फिल्म की कहानी नैरेट की। और उनके कैरेक्टर को भी एक्सप्लेन किया। रीमा जी को सूरज बड़जात्या का कहानी सुनाने का तरीका बहुत पसंद आया। रीमा जी ने सूरज जी से पूछा,"आपने जिस तरह से नैरेट किया है क्या आप फिल्म को वैसे ही बनाएंगे?" रीमा जी के इस सवाल पर सूरज बड़जात्या ने उनसे पूछा कि आप ऐसा क्यों कह रही हैं? रीमा जी ने उनसे कहा कि कई दफा ऐसा होता है जब कहानी बताई किसी और तरीके से जाती है। लेकिन शूट अलग तरह की जाती है।

सूरज बड़जात्या ने रीमा जी से वादा किया कि वो जैसे कहानी उन्हें बता रहे हैं पर्दे पर भी ऐसे ही दिखाई जाएगी। रीमा जी को कहानी तो पसंद आ ही गई थी। इसलिए उन्होंने मैंने प्यार किया फिल्म में काम करने का ऑफर स्वीकार कर लिया। एक इंटरव्यू में रीमा जी ने कहा था कि फिल्म से जुड़े सभी लोग दिल लगाकर इसकी शूटिंग कर रहे थे। सब चाहते थे कि फिल्म अच्छी जाए। लेकिन फिल्म ब्लॉकबस्टर रहेगी, ये किसी ने नहीं सोचा था। दर्शकों को फिल्म बहुत पसंद आई। रीमा जी को भी खूब सराहना मिली।

रीमा जी के मुताबिक, मैंने प्यार किया फिल्म की ज़बरदस्त कामयाबी के बाद उन्हें फायदा तो हुआ। लेकिन वो टाइपकास्ट भी हो गई। बहुत से लोगों ने फिल्म की कामयाबी के बाद उन्हें अपनी फिल्म में काम करने के ऑफर दिए। मगर रीमा जी ने वो ऑफर्स अस्वीकार कर दिए। क्योंकि वो सभी वैसी ही भूमिकाएं थी जैसी उन्होंने मैंने प्यार किया फिल्म में जी थी। हालांकि रीमा जी ने उसके बाद अधिकतर फिल्मों में मां की ही भूमिकाएं निभाई। मगर उन्होंने फिल्म की कहानी का ध्यान रखा।

साथियों रीमा लागू जी स्क्रीन पर मां के किरदार में जितनी प्यारी लगती थी, उतनी ही प्यारी इनके जीवन की कहानी है। रीमा लागू जी के जीवन पर बहुत विस्तार से हमने एक लेख लिखा था। वो लेख आप यहां पढ़ सकते हैं- https://shorturl.at/SwlKA रीमा लागू जी के शुरुआती जीवन के बारे में बहुत सी रोचक बातें आपको इस लेख के माध्यम से जानने को मिलेंगी। पढ़िएगा ज़रूर। रीमा लागू जी को शत शत नमन।

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