13/09/2025
आधुनिक परिवारों की सच्चाई
👉 आज परिवारों में रिश्तों की मिठास सिर्फ़ व्हाट्सएप ग्रुप की शुभकामनाओं तक सिमट गई है। हकीकत में लोग एक-दूसरे की पीठ पीछे मज़ाक उड़ाते हैं, खुशियों पर कमियों का ताना कसते हैं।
👉 परिवार वह जगह होनी चाहिए जहाँ समस्या का समाधान निकले, पर अफसोस अक्सर वहीं समस्या को और उलझाया जाता है।
👉 हमारे समाज में बड़े हमेशा सही और छोटे हमेशा गलत मान लिए जाते हैं। सच कहने की हिम्मत कोई नहीं करता, लेकिन पीठ पीछे बातों का बतंगड़ बनाया जाता है और उसे तमाशे की तरह मज़े लेकर सुनाया जाता है।
👉 कई बार पूरा परिवार मिलकर किसी एक को इतना दोषी ठहरा देता है कि वह इंसान बिना उतनी गलती किए भी खुद को अपराधी समझने लगता है।
👉 रिश्तों की कीमत अब भावनाओं से नहीं, बल्कि पैसे और पद से तय होती है। जिसके पास पैसा है वही सम्मानित है, बाकी की आवाज़ अक्सर अनसुनी कर दी जाती है।
👉 अगर कोई गलती कर भी दे तो उसे सुधारने का मौका देने के बजाय बार-बार उसकी गलती याद दिलाकर उसे नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है।
👉 पूर्वजों की छोड़ी हुई ज़मीन, जिसे बाहरी कोई छू भी नहीं सकता, उसी ज़मीन के लिए परिवार के लोग आपस में ऐसे लड़ पड़ते हैं मानो कोई साम्राज्य बनाया हो। जब ज़मीन का सम्मान नहीं होता, तब वही ज़मीन जीवन में अशांति का कारण भी बन जाती है।
👉 कठिन समय में अस्पताल के बाहर दिखावे के आंसू और भुजा खाते चेहरे तो मिल जाते हैं, लेकिन 13वीं के भोज के बाद शायद ही कोई हालचाल पूछने लौटे।
👉 नेताओं के लिए लोग मर्यादा तक भूलकर लड़ पड़ते हैं, जबकि नेता को उनके रिश्तों की दरार का कोई अहसास तक नहीं होता।
सच्चाई यही है ~
हर कोई अपने-अपने कर्मों का फल भोग रहा है। अहंकार इंसानों को दूर करता है और प्रेम ही वह शक्ति है जो परिवारों को फिर से जोड़ सकती है।