02/07/2025
एक देवरिया वासी का मर्मस्पर्शी पत्र :
प्रिय देवरिया,
सप्रेम वंदन 🙏
दूर शहर की भीड़ और भागदौड़ में रहकर भी दिल हर रोज़ एक ही दिशा में लौटता है तुम्हारी ओर। आज भी आंखें नम हो जाती हैं जब तुम्हारी गलियों, मंदिरों, चौराहों और स्टेशन की तस्वीरें मन में उभरती हैं। देवरिया का बाॅटी चोखा, जहाँ गर्म चूल्हे की आंच और मिट्टी की सौंधी खुशबू दिल को सुकून देती थी वह स्वाद और अपनापन अब किसी शहर के रेस्तरां में नहीं मिलता। मैं वही बेटा हूं जो तुम्हारी मिट्टी में पला-बढ़ा, और अब तुम्हारी यादों के सहारे हर दिन जी रहा है।
"देवारण्य" यह नाम अपने आप में इतिहास और श्रद्धा की पहचान है। तुम्हारे कण-कण में देवत्व है। हनुमान मंदिर की आरती की गूंज आज भी कानों में बजती है। अब देखता हूं, शहर में LED लाइट्स लग गई हैं। रात में चमकते खंभों के नीचे देवरिया का रूप कुछ और ही हो गया है एकदम रोशन, एकदम नया। लगता है जैसे तुमने भी नई ऊर्जा ओढ़ ली है। कुछ सड़कों का नवनिर्माण हुआ है, चौड़ीकरण भी हुआ है, और कुछ मोहल्लों और गांवों में काम अभी अधूरा है लेकिन बदलाव की हवा अब महसूस होने लगी है।
मुझे अब भी याद है देवरिया सदर स्टेशन, जहाँ से पहली बार ट्रेन पकड़ी थी, और मां की आंखों में आंसू थे। स्टेशन चाहे छोटा हो, पर भावनाएं अनगिनत थीं। और फिर है भटनी और सलेमपुर जंक्शन, जो पूरे जनपद को जोड़ता है, जहां से जाने कितने लोग रोज़ी-रोटी के लिए रवाना होते हैं, पर दिल यहीं छोड़ जाते हैं।
लेकिन एक बात हर बार अखरती है "देवरिया बस अड्डा" का हाल। खबरों में देखता हूं कि वर्षों से जर्जर अवस्था में है, परंतु अभी तक जीर्णोद्धार नहीं हुआ। न जाने कितने लोगों का पहला और आखिरी पड़ाव वही स्टेशन होता है। क्या एक ज़िले की आत्मा जैसे स्थान को ऐसा ही छोड़ा जाना चाहिए? वहां से हर दिन हज़ारों लोग निकलते हैं कुछ उम्मीदों के साथ, कुछ मजबूरियों में। वो भी एक मंदिर जैसा ही स्थान है जहाँ प्रस्थान और आगमन दोनों पूज्य होते हैं।
देवरिया, तुम सिर्फ एक ज़िला नहीं, एक भाव हो। महायोगी देवरहा बाबा का आश्रम हो या पौहारी बाबा की तपस्थली, दीर्घेश्वरनाथ का शिवधाम हो या श्याम मंदिर की भक्ति-रचना सब कुछ आत्मा को छू लेने वाला है। खुखुंदू का जैन मंदिर, सलेमपुर का सोहनाग, लार की कथा ये सब सिर्फ इतिहास नहीं, हमारी पहचान हैं।
मैं जानता हूं, तुम्हें समय ने बदल दिया होगा। पर यह भी जानता हूं कि तुम्हारी आत्मा वैसी ही बनी रही होगी निर्मल, शांत, श्रद्धा से भरपूर। मैं एक दिन लौटूंगा फिर से अपनी मिट्टी को छूने, फिर से हनुमान मंदिर की घंटियों में शांति ढूंढ़ने, और फिर से उसी पुराने बस अड्डा से अपने बचपन को विदा देने।
कुछ नहीं मांगूंगा बस वही अपनापन, वही सौंधी खुशबू, और वही आत्मिक शांति जो केवल तुम ही दे सकते हो।
तुम्हारा ही
एक दूर बसा बेटा
(जो आज भी हर धड़कन में देवरिया को महसूस करता है)
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