10/12/2023
मछली पानी में ही पैदा होती है उसे क्या मालूम के यूं पानी में रहना डूब कर मरने की वजह बन जाता है,
जिन्नात आग के बने हैं उन्हें क्या मालूम के आग जिस्म को जला देती है,
कीड़े मकोड़े जेर - ए - जमीन रहते हैं वह भी बेखबर है के जेर - ए - जमीन मुर्दे दफन किए जाते हैं,
इसी तरह जब हम बुराई के माहौल में पलते बढ़ते हैं तो हमें अंदाजा ही नहीं हो पता के अच्छाई की क्या क्या खूबियां और ख़ूबसूरती होती हैं -
आज की परवरिश ही टेलीविज़न और बेलगाम मोबाइल फोन के सामने हो रही है -
आपने यकीनन महसूस किया होगा कि जब बचपन में हमने TV देखना शुरू किया तब हमें बीवी और बहन बेटियों की मौजूदगी की वजह से ड्रामें के कई जगह पर नागवारी महसूस होती थी ....और चेनल बदलने को रिमोट ढूँढने लगते है हल्का सा भी ख़राब सीन आने पर..
लेकिन आज किसी साबुन के इश्तिहार में या YouTube के ads में जब आंखों के ऐन सामने एक नीम बरहना मॉडल को नहाते हुए जिस्म पर साबुन लगाते दिखाया जाता है तो जरा सी हरकत भी पैदा नहीं होती...... वो मां बहने जो अपने घर में अपनों के सामने ज़रा सा दुपट्टा खिसकने पर शर्म महसूस करती थी अब उन्हें बाज़ारों में शादियों मे बिना दुपट्टे के खुद घर वाले लेकर जाते हैं और ज़रा भी ग़ैरत नहीं आती क्योंकि गंदे तालाब के हशरात की तरह गलीज़ पानी ( गंदा पानी ) में रह रह कर हम पाकीज़ा तौर तरीकों
को भूल चुके हैं -
आज फिल्मी अंदाज़ के नीम बरहना लिबास जब हम अपनी मासूम बच्चियों को पहनाते हैं तो हकीकत में हम उस जहन्नुम वाले माहौल की तरफ उन्हें ले जा रहे होते हैं जो जिस्म को जला कर राख कर देता है,
स्कूल कालेज यूनिवर्सिटी में बेटों का लड़कियों के साथ मिल बैठना अब ना लड़कों के वालिदेन को बुरा लगता और ना ल़डकियों के क्योंकि हम मेंढक की तरह गर्म पानी में खुद को ढालते जा रहे हैं ".........
🍃 तहज़ीब, शर्म ओ हया, ग़ैरत.... जो किसी मज़हब और इलाक़े और खानदान का लिबास होती है उसे हम तारीख की किताबों में बंद करते जा रहे हैं -
टेलीविज़न और मोबाइल की स्क्रीन से लेकर शादी ब्याह और मंगनी की तकारीब तक हम एक बे हिस, बे शर्म और बे ग़ैरत माहौल की तरफ बढ़ रहे हैं .
🍁 यह माहौल कल तक हमारे आबा - ओ - अजजाद
(बाप - दादाओं) के सामने हद दर्जा काबिल - ए - नफरत और नाक़ाबिल-ए- क़बूल था,
अपने आप को देखो और अपनी आने वाली नस्लों को बचाओ इस आग से जिस ने एक दिन सब कुछ जला कर राख कर देना है -
☘️ शर्म - ओ - हया जो मुसलमान के लिए कई बुराइयों के खिलाफ एक ढाल की हैसियत रखती है कहीं हम यह ढाल फेंक तो नहीं रहे ?.
🔺कहीं हम वो बीज तो नहीं बो रहे जिसकी जड़ें कल को हमारी ईमारत ही उखाड़ फेंकेगी ....?????
सोचियेगा ज़रूर और ज़्यादा नहीं अब से 10...15 साल पुराना समय याद कीजिएगा ......... शायद हमारी आँखे खुल जाएं.. 🙌🙌