28/08/2023
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के मूल स्वरूप में विद्यमान हैं औषधियों के देवता -
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, जो कि भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ज्योतिर्लिंग देवघर जिले पर है, जो झारखण्ड राज्य, भारत में स्थित है। यहां के बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को बाबा बैद्यनाथ भी कहते हैं।
आपने उल्लेख किया है कि इस ज्योतिर्लिंग के मूल स्वरूप में विद्यमान हैं औषधियों के देवता। इसमें आपकी बात सही है क्योंकि भगवान शिव के इस रूप को ब्रह्मा, विश्वकर्मा और वैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है। वैद्यनाथ का अर्थ होता है 'औषधियों का भगवान' और उन्हें औषधियों के देवता के रूप में पूजा जाता है। इसका मतलब है कि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के प्रतिष्ठित स्थल पर औषधियों की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है, जिसका मान्यता से इलाज के लिए आशीर्वाद मिलता है।
इस प्रकार, बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग हिन्दू धर्म में उपास्य औषधियों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
शिव से संबंधित विभिन्न मान्यताओं के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि रुद्र की उपासना की प्रसिद्धि धीरे-धीरे शिव की उपासना में बदल गई। रुद्र के विभिन्न नामों के साथ औषधि के कारण उन्हें वैद्य के रूप में भी महत्व दिया गया। शिव को पार्वती और उमा के साथ सम्बद्ध किया गया है। हिन्दू उपासना पद्धति में शिव के इस रूप की लोकप्रियता बढ़ी। उत्तर वैदिक काल में लिंगोपासना की परंपरा विकसित हुई, और इसके साथ ही शिवोपासना के प्रसिद्ध केंद्र भी उत्पन्न हुए। भारतीय लिंगोपासना की परंपरा में द्वादश ज्योतिर्लिंगों का महत्व बढ़ा, और वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व इसी प्रकार भारतवर्ष में प्रस्तुत हुआ॥
वीर शैवमत में इस बात का उल्लेख है कि शिव से ही समस्त चराचर की उत्पत्ति हुई है और शिव में ही सब विलीन हो जाते हैं, क्योंकि सांख्यकार कपिल महर्षि का मत है कि स्थावर जंगम रूपी इस जगत् की उत्पत्ति रजः, सत्व, तमोमयी प्रकृति से हुई है, इससे भिन्न कोई जगतकर्त्ता नहीं है और प्रकृति पुरुषों का विवेक ही मुक्ति है, परन्तु यह मत श्रुतियों के विरुद्ध पड़ता है, क्योंकि "तत्सृष्टवात देवानु प्रविष्टः, यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते, भू इमान लोकायनिशतः ईशनिभिः" इत्यादि श्रुतियां एक स्वर से प्रतिपादित करती हैं कि परमेश्वर ने ही अपने शक्ति विलास से जगत् की सृष्टि की है। इसके अतिरिक्त नीलग्रीवा विलोहित ऋतं च सत्यम् आदि श्रुतियां भी ईश्वर की गुण विभूति आदि का ही प्रतिपादन करती हैं। प्रकृति से जड़ है, अतः चेतन की सहायता के बिना वह अकेली सृष्टि की रचना कभी नहीं कर सकती।
शिव तत्व की व्याख्या के क्रम में यह सत्य सर्वोपरि है। इसी प्रकार ''भूयशामस्यार बलियस्त्वम्'' इस न्याय से मनु आदि की स्मृतियां भी परमेश्वर का जगत-कल सिद्ध करती हैं, किन्तु सांख्य मत के इस विचार को वेदवाद के निरूपण में आलोचना के रूप में ही देखा जाता है। वीर शैव विज्ञान में शक्ति विशिष्टाद्वैत मत में जो शक्ति उसमें सूक्ष्मचिद् विशिष्ट शक्ति और स्थूलचिर विशिष्ट शक्ति इन दोनों ही विचारधाराओं की मान्यता है। इनमें से पहली शक्ति से शिव का ग्रहण और दूसरी से जीव का बोध होता है। शक्ति विशिष्टाद्वैत पद के विग्रह शक्ति विशिष्ट परमात्मा और जीवात्माओं के ऐक्य का ही बोध होता है।
वीर शैववाद में शिव के महत्व की विवेचना इसी क्रम में विद्यमान है। धर्म रूप शक्ति और धर्मी रूप शिव से भिन्न नहीं हैं। शक्ति तत्व से लेकर पृथ्वी तत्व पर्यन्त, यह सम्पूर्ण विश्व शिव तत्व से ही उत्पन्न हुआ है। इसलिए शिव उसका कारण है और जगत उसका कार्य है।|
िका कारण और घट कार्य होने पर भी मृतिका घट से अलग नहीं होकर जैसे घट भर में व्याप्त है, वैसे ही कारण रूपी शिव जगद्रूप कार्य में व्याप्त हैं। इससे यह सिद्ध है कि जगत का उपादान कारण शिव ही हैं। पूर्ववर्ती अवस्था वाली वस्तु जैसे आगे की स्थूल वस्तु का उपादान कारण होती है, अर्थात् जैसे घटत्वावस्था विशिष्ट घट पदार्थ का उपादान कारण, कापलात्वावस्था विशिष्ट कपाल पदार्थ होता है, वैसे ही सूक्ष्मावस्था विशिष्ट ब्रह्म, स्थूलावस्था विशिष्ट जगद्रूप ब्रह्म का उपादान कारण है, इसलिए शिव को कारण ब्रह्म और जगत का कार्य ब्रह्म कहा गया है।
वीर शैवमत में आणव, माया और कार्मिक इन तीनों मलों को आत्मा से आवृत कहा गया है और परमेश्वर की इच्छा, ज्ञान, क्रिया नामक चेष्टाएं ही संकोच भाव से त्रिविध मल रूप हो गई हैं। इन्हीं से आवृत आत्मा अपने विभुत्व को खोकर पशु हो जाती है। शिव तत्व के बोध से इन मलों का विनाश संभव है। कश्मीरी शैवमत में भी शिव को महत्व दिया गया है। स्पन्द शास्त्र और प्रतिभा शास्त्र के माध्यम से शिव-तत्व के बोध को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। वस्तुतः कश्मीरी शैव दर्शन में शिव तत्व विमर्श को परम सत्य से जोड़ने का प्रयास किया गया है और दिव्य दृष्टि बोध की व्याख्या की गई है। लिंगायत की परम्परा भी उत्तर वैदिक प्रकरण की बात है, साथ ही शक्तिवाद और शाक्त साधना के माध्यम से शिव का लोक-मानस की दृष्टि में अध्ययन करने का प्रयास किया गया है।|
शिव से संबंधित विभिन्न मान्यताओं के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि रुद्र की उपासना की प्रसिद्धि धीरे-धीरे शिव की उपासना में बदल गई। रुद्र के विभिन्न नामों के साथ औषधि को उपयोगिता के कारण उन्हें वैद्य के रूप में भी महत्व दिया गया। शिव को पार्वती और उमा के साथ सम्बद्ध किया गया है। हिन्दू उपासना पद्धति में इसी रूप की लोकप्रियता बढ़ी ||