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31/07/2025

BPL चयन प्रक्रिया पर उठते सवाल: क्या पंचायत प्रधानों की भूमिका होनी चाहिए सीमित?

रिपोर्ट inc him media

बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) परिवारों की नई सूची तैयार करने की प्रक्रिया बीते कई दिनों से प्रदेश में चर्चा और विवाद का विषय बनी हुई है। सरकार ने इस बार बीपीएल चयन की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया है, लेकिन यह कोशिश कितनी सफल रही है, इस पर अब सवाल उठने लगे हैं।

पहले की बात करें, तो बीपीएल परिवारों का चयन एक तरह की औपचारिकता बन गया था। पंचायत प्रधान, वार्ड सदस्य और उनके नजदीकी लोग इस सूची में अपने खास लोगों का नाम डालने की कोशिश करते थे। भले ही कहा जाता था कि यह निर्णय ग्राम सभा में होता है, लेकिन वास्तविकता यह थी कि निर्णय का केन्द्र प्रधान और कुछ प्रभावशाली पंच होते थे। ग्राम सभा में तो वही आम लोग बैठते हैं जिन्हें अक्सर जानकारी तक नहीं होती कि क्या हो रहा है। वहां कोई अगर यह कह दे कि “इस आदमी को हटाकर किसी और जरूरतमंद को डाल दो,” तो बात झगड़े तक पहुंच जाती थी।

अब सरकार ने बीपीएल चयन की प्रक्रिया में बदलाव किया है। इस बार नियम था कि हर व्यक्ति फॉर्म भर सकता है, चाहे वह पहले से बीपीएल में हो या नहीं। यह एक स्वागत योग्य कदम था क्योंकि इससे सभी को समान मौका मिला। इसके बाद प्रक्रिया में नया तत्व जोड़ा गया – कि आपके घर की स्थिति को पटवारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या पंचायत में नियुक्त महिलाओं द्वारा जांचा जाएगा। उनके निरीक्षण और रिपोर्ट के आधार पर तय होगा कि आप इस सूची के योग्य हैं या नहीं।

यह प्रणाली सुनने में निष्पक्ष लगती है, लेकिन इसमें भी कई समस्याएं उभर रही हैं। कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब पंचायत को लोकतंत्र की रीढ़ कहा जाता है, तो पंचायत प्रधानों को इस महत्वपूर्ण कार्य से पूरी तरह अलग क्यों कर दिया गया? क्या उनका कोई अनुभव, क्षेत्रीय जानकारी या सामाजिक समझ इस प्रक्रिया में उपयोगी नहीं हो सकती?

वहीं दूसरी ओर, यह भी सच है कि पंचायत प्रधानों की भूमिका पहले पक्षपात और सिफारिश से भरी रही है। कई जरूरतमंद लोग सूची से बाहर रह जाते थे, जबकि संपन्न या राजनीतिक रूप से जुड़े लोग बीपीएल का लाभ उठाते थे। ऐसे में सरकार की नई नीति, जिसमें पंचायत को केवल सीमित भूमिका दी गई है और निरीक्षण का कार्य सरकारी कर्मचारियों और स्वास्थ्य व महिला कर्मचारियों को सौंपा गया है, कहीं न कहीं न्यायपूर्ण चयन की दिशा में एक ठोस कदम मानी जा सकती है।

लेकिन इसमें पारदर्शिता और जवाबदेही की बहुत ज़रूरत है। निरीक्षण करने वाले कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना, उनके आकलन के आधार और मानकों को सार्वजनिक करना और अपील की सुविधा देना जरूरी है। साथ ही पंचायतों को पूरी तरह से दरकिनार करना भी तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता।

निष्कर्ष रूप में कहें तो बीपीएल चयन प्रक्रिया में सुधार जरूरी था, और सरकार ने साहसिक कदम उठाया है। लेकिन इसमें पंचायत प्रतिनिधियों की भूमिका को पूरी तरह खत्म करने की जगह उन्हें जवाबदेही के दायरे में रखकर सीमित सहभागिता दी जानी चाहिए। इससे पारदर्शिता भी बनी रहेगी और लोकतंत्र की जड़ों को भी मजबूती मिलेगी।

30/07/2025

शीर्षक: बोह घाटी में आसमानी कहर: बिजली गिरने से 120 भेड़-बकरियों की मौत

30 जुलाई की बीती रात हिमाचल प्रदेश के शाहपुर की धारकंडी के बोह क्षेत्र में आसमानी बिजली ने भारी कहर बरपाया। द्रोनेश्वर महादेव के समीप जोत धार में तेज बारिश के दौरान बिजली गिरने से लगभग 120 भेड़-बकरियों की मौके पर ही मौत हो गई। यह दर्दनाक हादसा देर रात उस समय हुआ जब बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी और पशु खुले आसमान तले थे। मरने वाले पशुओं के मालिक बोह और सिहुंता क्षेत्र से संबंधित बताए जा रहे हैं। प्रशासन को इस हादसे की सूचना दे दी गई है। ग्रामीणों ने पीड़ितों को उचित मुआवज़ा देने की मांग की है। यह हादसा पहाड़ी क्षेत्रों में मौसम से जुड़ी असुरक्षा को एक बार फिर उजागर करता है।

30/07/2025

बारिश बनी काल: करेरी पंचायत में पत्थर गिरने से युवक की दर्दनाक मौत, दो महीने बाद थी शादी

हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रही बारिश ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। जगह-जगह भूस्खलन और सड़कें बंद होने की घटनाओं के बीच शाहपुर उपमंडल की करेरी पंचायत से एक बेहद दर्दनाक हादसा सामने आया है। बीती रात 29 जुलाई को धर्मशाला कोर्ट में कार्यरत 24 वर्षीय युवक गोविन्द पुत्र उत्तम चंद की जान सड़क पर गिरे पत्थरों की चपेट में आकर चली गई।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गोविन्द शाम के समय अपनी स्कूटी पर सवार होकर घर लौट रहा था। जैसे ही वह करेरी क्षेत्र में पहुँचा, तभी अचानक पहाड़ी से भारी पत्थर गिरा, जिससे वह स्कूटी से गिरकर सड़क किनारे बेसुध हो गया। कुछ ही देर में पीछे से आ रही एक अन्य गाड़ी में सवार स्थानीय लोगों ने उसे पहचाना और तुरंत धर्मशाला अस्पताल पहुंचाया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

इस खबर से पूरे गांव और आसपास के क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। बताया जा रहा है कि गोविन्द की शादी दो महीने बाद तय थी और परिवार इस खुशी की तैयारी में जुटा हुआ था। गोविन्द के पिता भेड़-बकरी पालन करते हैं और उसका बड़ा भाई भारतीय सेना में देश की सेवा कर रहा है।

समाचार लिखे जाने तक मृतक का शव गांव नहीं पहुंचा था। यह हादसा प्रदेश में हो रही लगातार बारिश और लापरवाह रोड मेंटेनेंस व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है। प्रशासन से मांग उठ रही है कि संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा उपाय और चेतावनी संकेत लगाए जाएं ताकि ऐसी दुखद घटनाओं को रोका जा सके।

26/07/2025

हिमाचल पर चढ़ा एक लाख करोड़ से अधिक कर्ज, सरकार ले रही 1000 करोड़ का नया ऋण

हिमाचल प्रदेश इस समय दोहरी मार झेल रहा है — एक ओर मानसून ने कहर बरपाया है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, वहीं दूसरी ओर सरकार आर्थिक संकट से जूझ रही है। प्रदेश सरकार ने अब 22 वर्षों की अवधि के लिए एक और बड़ा कदम उठाते हुए 1000 करोड़ रुपये का नया ऋण लेने का निर्णय लिया है। इस ऋण को वर्ष 2047 तक चुकाया जाना है।

इस कर्ज के जुड़ने के साथ ही हिमाचल प्रदेश पर कुल कर्ज 1,00,075 करोड़ रुपये हो जाएगा, यानी राज्य अब एक लाख करोड़ से अधिक के कर्ज में डूब चुका है। यह आंकड़ा आम नागरिकों और आर्थिक विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

राज्य की राजस्व आय लगातार खर्चों और प्राकृतिक आपदाओं के बोझ तले दब रही है, ऐसे में कर्ज के सहारे चलना एक अस्थायी समाधान लग रहा है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में राज्य की वित्तीय स्वतंत्रता और विकास योजनाओं पर बड़ा असर पड़ सकता है। जनता अब सरकार से स्थायी और व्यावहारिक आर्थिक रणनीति की अपेक्षा कर रही है।

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16/07/2025

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जय हो गुणा भवानी...एक पंजाबी भजन lyrics: kanshi bonthal music :ai

14/07/2025

हिमाचल में 30 आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियां होंगी बंद, सरकार ने ओपीडी समीक्षा के आधार पर लिया निर्णय:

Inc him midea रिपोर्ट:-

हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में चल रही लगभग 30 आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों को बंद करने का निर्णय लिया है। यह फैसला तीन वर्षों की ओपीडी (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) की समीक्षा के बाद लिया गया है। जिन डिस्पेंसरियों में औसतन मासिक ओपीडी 100 से कम रही है, उन्हें बंद किया जाएगा।

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, कई डिस्पेंसरियों में न तो पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध है और न ही भवन की उचित सुविधा। कुछ क्षेत्रों में तो मरीजों की संख्या इतनी कम है कि डिस्पेंसरियों की संचालन लागत भी पूरी नहीं हो पा रही। इसलिए सरकार ने ऐसे सभी संस्थानों का युक्तिकरण करने का निर्णय लिया है ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके।

स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि जिन क्षेत्रों में डिस्पेंसरियां बंद की जाएंगी, वहां के लोगों को अन्य नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों से सुविधा दी जाएगी। यह कदम राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ और प्रभावी बनाने की दिशा में उठाया गया है। सरकार का मानना है कि इससे जनसंपर्क और सेवा की गुणवत्ता दोनों में सुधार आएगा।

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