
17/09/2025
कुमाऊं में क्यों मनाया जाता है खतड़वा त्योहार, जानें इससे जुड़ा सच
खतड़वा त्योहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला प्रमुख लोकपर्व है। यह पर्व पशुओं के उत्तम स्वास्थ्य और ऋतु परिवर्तन को समर्पित है। इसे वर्षाकाल की समाप्ति और शरद ऋतु की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। कन्या संक्रांति (16 सितंबर) के दिन इस पर्व को कुमाऊं में मनाया गया।
खतड़वा त्योहार के दिन सबसे पहले उठकर पशुओं के कमरे (गोठ) की साफ-सफाई की जाती है। पशुओं को नहलाया जाता है और उन्हें पौष्टिक हरी घास खिलाई जाती है। बाद में पशुओं के कमरे के लिए एक अग्नि की मसाल तैयार कर इसे पूरे कमरे (गोठ) में घुमाया जाता है। ऐसा करने से पशु को होने वाले रोगों का नाश होता है। शुद्ध और साफ वातावरण का संचार होता है। पहाड़ों में इस रीति के अनुसार घर के बच्चों की ओर से दो-तीन दिन पहले कांस (कूस) के फूल लाए जाते हैं. इन फूलों और हरी खास से मानवाकार आकृति तैयार की जाती है, जिसे बूढ़ा और बूढ़ी कहा जाता है. इन दोनों को घर के आसपास गोबर के ढेर में बनाया जाता है।
रात को होता है पुतला दहन
किशन मलड़ा ने कहा कि उस दिन शाम या रात को दिन में बनाए गए पुतलों को गोबर के ढेर से निकालकर घुमाकर छत में फेंक दिया जाता है और जला दिया जाता है। लड़कियों की सहायता से खतड़वा जलाने के लिए एक गोल ढांचा बनाया जाता है। उसमें आग लगाकर कई प्रकार के नए अनाज उसमें डालकर उसकी परिक्रमा की जाती है। उसकी राख से सबके सिर पर तिलक लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि खतड़वा और बूढ़ी के एक साथ जलने से पशुओं के सारे रोग भस्म हो जाते हैं। इसके बाद पशु के किल (बांधने का स्थान) से ककड़ी तोड़कर आपस में प्रसाद के रूप में बांटी जाती है।
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