Megaram Jani Barmer

Megaram Jani Barmer मेरी नजरों में इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता🌹🙏 Page ko like and share Karo please support following me

*"वाह भैया! तुम्हारी तो बड़ी मौज है| भला इतने दिन कौन साली के घर रुकता है?" सुनंदा बुआ ने पापा की तरफ बड़ी कुटिल मुस्कान ...
11/07/2025

*"वाह भैया! तुम्हारी तो बड़ी मौज है| भला इतने दिन कौन साली के घर रुकता है?" सुनंदा बुआ ने पापा की तरफ बड़ी कुटिल मुस्कान के साथ व्यंग किया|

सुनकर पापा बिल्कुल चुप हो गए| पर बुआ की तो आदत ही है हर चीज में उंगली उठा देने की| और अगर कुछ बोलो तो बतंगड़ बना देने की| इसलिए पापा चुपचाप अपने कमरे में चले गए|

थोड़ी देर पहले जो खुशनुमा माहौल था वह अचानक से बदल गया|

'बुआ आप को शर्म नहीं आती पापा से इस तरह बात करते हुए'

'काहे की शर्म| और गलत क्या कहा मैंने? साली के घर पर कोई दिन तक रुका जाता है क्या?'

'जब वर्षा मौसी और मौसा जी को कोई दिक्कत नहीं तो आपको क्यों परेशानी हो रही है'

'कल को दुनिया बात ना करें इसलिए कहती हूँ| मेरा तो कहना भी दूसरों को बुरा ही लगता है| देखो, अब ये छोटी सी लड़की मुझे जवाब दे रही है| संस्कार तो कुछ है नहीं इनके अंदर'

'संस्कार की बात आप ना ही करें तो ही अच्छा है| और इतनी छोटी भी नहीं हूं मैं| तीन साल के बेटे की मां हूं मैं'

'रहोगी तो हमारे सामने बच्ची ही ना| दुनिया देखी है मैंने तुझसे ज्यादा| मुझे मत सीखा'

'पापा आपके भाई है| पर उन्हें दुखी करने का कोई मौका नहीं छोड़ती आप| किसी से थोड़ा हंस कर क्या बात कर ले, ताने मारना शुरू कर देती है आप| आखिर उनकी गलती क्या है?'

' मुझे तुझसे कोई बात नहीं करनी'

'क्यों नहीं करनी? रिश्ते तो आज भी वही है, सोच आपकी बेकार है '

'ज्यादा मत सीखा मुझे| मैं तेरे मुंह भी लगना चाहते'

माहौल बिगड़ता देखकर बुआ भी बात छोड़कर खिसक ली| बस कमरे में अकेली खड़ी रह गई नित्या| यह कोई पहली बार तो है नहीं| नित्या और सुनंदा बुआ में आए दिन झगड़े हो जाते हैं सिर्फ इसी बात को लेकर| क्योंकि सुनंदा बुआ अपनी हरकतो से बाज नहीं आती| और आज भी वही हुआ|

अमर जी की दो बेटियां हैं नित्या और वाणी| नित्या कोई दस ग्यारह साल की रही होगी जब अमर जी की पत्नी सुमेधा की असमय मृत्यु हो गई| लेकिन अपनी दोनों बच्चों की परवरिश के कारण अमर में दूसरा विवाह नहीं किया|
हालाकि परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों ने बहुत समझाया| पर उन्होंने अपनी दोनों बेटियों की परवरिश अकेले ही करने का निर्णय लिया|

हमारे समाज में यह कहा जाता है कि जब पति मर जाता है तो एक महिला को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जो सच भी है| लेकिन एक अकेले पुरुष को भी कई तरह के तानों और गलत नजरों का सामना करना पड़ता है| ऐसा ही कुछ अमर के साथ हो रहा था|

सबसे ज्यादा तकलीफ तो तब होती है कि जब दुनिया के साथ-साथ खुद अपने ही घर के लोग आपकी तरफ उंगली उठा दे|

कुछ साल पहले जब अमर को किसी काम से चार पांच दिन के लिए बाहर जाना पड़ा, तो नित्या और वाणी का सोचकर उसने सुनंदा जी से मदद मांगी| अमर को पूरा विश्वास था कि सुनंदा आखिर उसकी बहन है तो वह चार-पांच दिन आकर बच्चों के पास रुक जाएगी| पर सुनंदा ने साफ कह दिया कि मेरे घर पर कौन संभालेगा? मैं नहीं आ सकती|

हारकर अमर ने वर्षा को फोन किया तो वर्षा तैयार हो गई| वर्षा के आने के बाद अमर अपने टूर के लिए रवाना हो गया| चार-पांच दिन तक बच्चे वर्षा के साथ रहे| अमर वापस आया तब वर्षा अपने घर वापस रवाना हो गई| पर जब यह बात सुनंदा को पता चली तो उसने अमर को सुनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी| अमर को बहुत दुख हुआ|

उसने कभी भी वर्षा और सुनंदा में फर्क नहीं किया| नित्या और वाणी के जन्म के समय सुनंदा ससुराल से नहीं आ पाई थी ,तो वर्षा आकर रुकी थी कि उसकी दीदी और अम्मा को थोड़ी मदद मिल जाए| अम्मा तो कितनी खुश हुई थी कि मेरी तो दो बेटियाँ है|

पर आज सुमेधा के जाने के बाद क्या रिश्ता बदल गया| अमर और कहता भी क्या? आखिर सुनंदा थी तो छोटी बहन| पर इतना तो समझ आ ही गया था कि पत्नी होती है तब तक मान सम्मान होता है| पत्नी के जाने के बाद तो पति की भी कोई इज्जत नहीं होती|

अमर जरा सा भी किसी से अगर हंस बोल ले तो यह बात सुनंदा को बहुत बुरी लगती और वह वही सबके सामने ताने सुनाने लगती| रिश्तेदारी और आस पड़ोस में जो भाभी चाची पहले खुल कर बात कर लिया करती थी, अब वे भी दूर रहकर ही बात करती थी| अमर के लिए भी यह बात समझ से परे है कि जब रिश्ते वही है तो आज लोगों का उसे देखने का नजरिया क्यों बदल गया|

पर अब नित्या भी बड़ी हो रही थी| उसे भी यह समझ में आता था कि किस तरह उसके पापा का दिल दुखाया जाता है| और आज भी यही हुआ| अमर की कोई गलती नहीं थी, पर फिर भी सुनंदा ने उसे ताना सुना ही दिया|

दरअसल वर्षा मौसी की बेटी की शादी थी| घर में कोई बड़ा था नहीं, इसलिए मौसी मौसा जी ने निवेदन करके अमर को वही रोक लिया था| बस यही बात सुनंदा को बुरी लगी और उसने हंगामा कर दिया|

पर अब नित्या अपने पापा के लिए लड़ने को तैयार थी| आखिर उसे भी यह जानना था कि आखिर रिश्ते बदल कैसे जाते हैं| उसके मन में बस यही सवाल था कि आखिर क्या सिर्फ औरतें ही दुखियारी होती है| मेरे पापा की तो कोई गलती नहीं थी| उन्होंने अकेले ही अपनी बेटियों की परवरिश का जिम्मा उठाया| साथ नहीं दे सकते थे तो कम से कम इल्जाम लगाने का तो हक किसी को नहीं है|

क्या आपने कभी सोचा है कि प्राचीन लोग आधुनिक उपकरणों के बिना पानी के नीचे कैसे गोता लगा सकते थे? 3,000 साल पुरानी यह असीर...
11/07/2025

क्या आपने कभी सोचा है कि प्राचीन लोग आधुनिक उपकरणों के बिना पानी के नीचे कैसे गोता लगा सकते थे? 3,000 साल पुरानी यह असीरियन नक्काशी सैनिकों को तैरते समय सांस लेने के लिए हवा से भरे बकरी की खाल के थैलों का उपयोग करते हुए दिखाती है - उस समय के लिए यह बहुत ही स्मार्ट था! क्या यह खोई हुई तकनीक का सुराग हो सकता है

मैं कब चाहती थी बहुत कुछ…बस एक शख्स… जो मेरे नाम को मुस्कुरा कर पुकारे 💞जिसकी बातों में सुकून हो,और खामोशियों में भी साथ...
11/07/2025

मैं कब चाहती थी बहुत कुछ…
बस एक शख्स… जो मेरे नाम को मुस्कुरा कर पुकारे 💞

जिसकी बातों में सुकून हो,
और खामोशियों में भी साथ महसूस हो 🌙

मैं मोहब्बत में बड़े वादे नहीं ढूंढती,
बस ये चाहती हूँ कि जब टूटूं… तो कोई मुझे फिर से प्यार से जोड़ दे 🤍

कभी किसी की बाँहों में सिर रखकर
बस चुप रहना है…
बोलने को कुछ ना हो,
फिर भी सब समझ आ जाए 💫

आज एक प्रश्न आया है मेरे पास आप सब जवाब दें इस बहन जी को क्या करना चाहिए इन्हे....!!ये सच्ची घटना है ना की कोई कहानी...!...
11/07/2025

आज एक प्रश्न आया है मेरे पास आप सब जवाब दें इस बहन जी को क्या करना चाहिए इन्हे....!!

ये सच्ची घटना है ना की कोई कहानी...!!

मेरी शादी 2016 में हुई थी जब मै नई-नई अपने ससुराल आई तो मुझे ज्यादा पता नही था की ससुराल मे कौन कैसा खाना खाता है किसको क्या पसंद है, किसको क्या ना पसंद है मुझे कोई आईडीया नही था......!!

खाना बनाने लिए पूंछू तो कोई बताए ही न की कैसे कितना बनाओ, जो की मेरी एक जेठानी है वो तो बिलकुल भी नहीं बताती थी.....

धीरे धीरे अपने आप ही बनाती गई ताने सुनती गई शुरू से ही मेरी बुराई होने लगी...

धीरे धीरे मेरी जेठानी कोई काम भी न करे, कहती पहले मै आई थी मैने सारा काम संभाला अब बाद में जो आया वो सारा काम करे, फिर भी मैं करती रही..

उसके बाद मै मां बनने को हुई, इसके बावजूद भी वो कोई काम न करती... फिर भी मै सब सहन करती गई।

एक दिन मेरा शाम के समय मेरा सर दर्द हो रहा था जोर से,उठने का मन नही कर रहा था बिस्तर से....मैं लेटी रही कोई काम भी नही हो पा रहा था, रात का खाना भी नही बनाया किसी ने...

रात के 8.30 बज रहे थे फिर मैंने उठ कर जैसे तैसे सब्जी और रोटी बनाई फिर सास ससुर को खाना देकर मैं फिर से लेट गई...

तबियत ठीक न होने की वजह से।

मुझे ये तक नही याद था की मैने कितनी रोटियां बनाई, उसमे दो रोटियां कम पड़ गई, जब मेरी जेठानी खाना लेने गई देखा दो रोटी कम है उसके बाद उनका गुस्सा बहुत ज्यादा बढ़ गया... उन्हें लगा मेने जान बुझ कर कम रोटी बनाया....

मुझे और मेरी माता पिता को भी बुरा भला कह डाला जो नही कहना था वो भी कह डाला...

दूसरे दिन भी सुबह सुबह लड़ाई शुरु कर दी सिर्फ दो रोटी कम पड़ गई थी उसके लिये बहुत सारी ताने सुनाया उलटा सीधा कहा

मैं चुपचाप सुनती रही अपने कमरे में क्यूंकि मैं उस समय मां बनने वाली थी, मैं लड़ाई सुनकर सिर्फ कांप रही थी मेरे से कुछ बोला ही नही गया...

मेरे हसबैंड बाहर रहते है....

फिर मेरी डिलीवरी होने के कुछ दिन पहले ही मेरी जेठानी अपने मायके चली गई...

घर का सारा काम करने के कारण उसके जाने के 5 दिन बाद ही बहुत पीड़ा होने लगी हॉस्पिटल जाकर वहां एक सुंदर सी बेटी हुई लेकिन वो वही मुझे छोड़ कर भगवान के पास चली गई....

मैं बहुत रोई मेरे पति भी मेरे साथ नही थे उस समय..

मेरे पति बहुत अच्छे हैँ आज हम दोनों अलग रहते हैँ और मेरी जेठानी आज हमसे मेल मिलाप करना चाहती है... मगर मुझे आज भी बहुत दर्द होता है वो सब याद करके...!!

आप सब मुझे बतायें क्या मुझे उनसे सबकुछ भूल कर मेल करना चाहिए या नही....?

एक लड़की है ~ हरपाल कौर नाम है पंजाब की पहली वेल्डिंग गर्ल ...!!!सिखों की एक बेहद जुझारू लड़की...!!!पंजाब के लुधियाना और ज...
11/07/2025

एक लड़की है ~ हरपाल कौर नाम है
पंजाब की पहली वेल्डिंग गर्ल ...!!!
सिखों की एक बेहद जुझारू लड़की...!!!
पंजाब के लुधियाना और जालंधर के बिल्कुल बीच में
फगवाड़ा से मात्र 13 किलोमीटर दूर गुरा नामक गाँव मे रहती है।

मात्र बीस वर्ष की उम्र में पिता ने शादी कर दी। ससुराल वालों से मतभेद हुए, पिता के पास आकर रहने लगी।
नौ साल का एक लड़का है उसे भी साथ ले आई। तीन कुंवारी बहने पहले से घर मे थी। पिता ने ससुराल में रहने को फोर्स करने की बजाय उसे खुद की लाइफ अपने हिसाब से जीने को स्वंतत्र किया और उसके फैसले के साथ रहे।
अब 9 वर्ष के लड़के के साथ मायके में रहना भी लड़की के लिए आसान नही होता। तलाक का केस चल रहा। परिवार रिस्तेदारों के व्यंग्य बाण रोज सुनने को मिलते। रोज पिता से खर्च मांगना भी आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता....!!!
कहीं जॉब शुरू करके जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश की लेकिन नही कर पाई।

पिता की एक दुकान है वेल्डिंग करके कृषि उपकरण बनाने की। दुकान के ऊपर उनका घर है लड़की ने पिता को कहा यहीं दुकान पर काम कर लेती हूँ , जो खर्च एक मजदूर को देते हो वही मुझे दे दो,साथ मे अपनी जगह रहूंगी तो सेफ्टी भी रहेगी।

लड़की ने 300 रुपये रोजाना के हिसाब से वहीं काम शुरू कर दिया, लोहे को वेल्डिंग करके उपकरण बनाने का।
पंजाब की पहली वेल्डिंग गर्ल बनी। हाथ मे सफाई इतनी कि ट्रैंड लड़के भी उसके जैसा काम न कर सकते। वेल्डिंग की तेज रोशनी से आंखों से रोज पानी बहता, लोहे उठाने से हाथ काले पड़ जाते और दर्द करते,जुराबें गर्म होकर जूते के अंदर ही पेर से चिपक जाती पर ऐसी फसी होती कि उसे निकाल भी न पाती।
कई लड़की उसे देखकर दुकान पर काम सीखने आई पर वहां की मेहनत देखकर दोबारा मुड़कर उस शॉप पर नही गयी। हरपाल रोजाना सुबह जल्दी उठकर और शाम को सबसे बाद में काम छोड़ती। जितना काम दूसरा मजदूर एक दिन में करके देता उतने ही पैसे में वो दुगना काम पिता को करके देती वो भी एकदम सफाई से।

टिक टोक पर वीडियो बनाने शुरू किए। वो बन्द हुई तो इंस्टाग्राम पर अपने वेल्डिंग करते के वीडियो पोस्ट किए। लोगों को पता लगने लगा फिर एक पंजाबी चैनल ने इंटरव्यू किया तो पूरे पंजाब समेत विदेशों में भी लड़की की चर्चा होने लगी। भारत समेत इंग्लैंड कनाडा और यूरोप के अन्य देशों से भी लड़की के लिए रिश्ते आ रहे पर वो अपने देश की मिट्टी में रहकर ही काम करना चाहती है चाहे पैसे कम मिले।
इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लाखों सब्सक्राइबर होने की वजह से हरियाणा पंजाब और राजस्थान से भी लोग कृषि उपकरण बनवाने के लिए आने लगे। दोनो जगह बेटी की वजह से भगवान सिंह धंजल की दुकान की कीर्ति पूरे भारत मे फेल गयी।

हरपाल कौर सबसे बड़ी है उससे छोटी की शादी कर दी गयी उससे छोटी पंजाब पुलिस में सेलेक्ट हो गयी। सबसे छोटी इसी के साथ दुकान पर काम करती है। बेटी की जी तोड़ मेहनत की वजह से आज पिता का व्यवसाय पहले से कई गुना बढ़ गया। लड़की के पास खुद का बैंक एकाउंट है खूब पैसे हैं पर फिर भी रोज जी तोड़ मेहनत करती है एक दिन दुकान पर मेले कुचैले कपड़ों और काले हाथों के साथ लोहे को वेल्ड कर रही होती है तो दूसरे दिन बुलेट पर चलती एक खूबसूरत परी जैसी दिखती है

सोशल मीडिया पर इन्हें चन्द गालियां देने वाले लोग भी है जो कहते है 2 कोड़ी की नचनिया है पैसे के लिए नाचती है या दस मिनट काम करती है पर लाखों लोग इन्हें प्रेम देने वाले भी है 10-10 पिज्जा एक साथ अनजान लोग इनकी शॉप पर गिफ्ट्स भेज देते हैं बिना अपना नाम जाहिर किये।
आये दिन दुकान पर कोई न कोई गिफ्ट आता रहता है।

हमारे समाज मे ऐसी देवी जैसी लड़कियां भी हैं वो चाहती तो कब की शादी करके अपने लिए जीना शुरू कर देती। पर बेटे के भविष्य को देखकर फुंक फूंक कर कदम रखती है अणु शक्ति के दिये हुए टॉपिक तो ऐसी लड़कियों के मन मे ही नही आते,
अभिभूत हो जाता हूँ ऐसी संघर्षरत जुझारू लड़कियों के जीवन के प्रति इतने जज्बे को देखकर !!!!!

बड़े आक्रोश में घर में घुसते ही कावेरी को आँगन में काम करती हुई केया भाभी दिखाई पड़ीं पड़ी तो पूछा, "भाभी मम्मी किधर हैं...
11/07/2025

बड़े आक्रोश में घर में घुसते ही कावेरी को आँगन में काम करती हुई केया भाभी दिखाई पड़ीं पड़ी तो पूछा, "भाभी मम्मी किधर हैं?"
"अरे! दीदी प्रणाम। अचानक आगमन आपका! क्या बात है दीदी? न हाय न हेलो... बस मम्मी जी की खोज खबर! आइये बैठिए तो सही।" कहते हुए हाथ का काम छोड़ केया ने कावेरी के पैर छुए और बैठक की तरफ संकेत किया।

कावेरी को अपनी गलती का आभास हुआ तो वह केया के पीछे पीछे बैठक की तरफ बढ़ते हुए बोली, "अरे कुछ नहीं भाभी, बस अभी धूप में चलकर आयी हूँ न इसलिए भड़भड़ा गयी थी तनिक।"

"दीदी, आप बैठिये। मैं अभी आयी।" कह कर केया रसोई में चली गयी।

बैठक में बैठे बैठे कावेरी सोचने लगी कि कितना बदल गया है सबकुछ। शादी क्या हुई जैसे मायका पराया ही हो जाता है। और तो और माँबाप भी बदल जाते हैं।

देखो न जब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी से उसका नियुक्ति पत्र आया था तो उसकी सास ने नौकरी करवाने से मना कर दिया था। ससुर और पति रमन से इस विषय पर कुछ भी आशा नहीं थी क्योंकि 'यह महिलाओं का मामला है और महिला ही इसे अच्छे से समझ सकती है' कह कर पल्ला झाड़ लिया था।

कावेरी भागकर मायके आयी थी और मम्मी को सारी बात बताकर इनसे राय माँगी तो इन्होंने तपाक से मना करते हुए घर की जिम्मेदारियों और सभी का ध्यान रखने की बात कहकर एक लंबा चौड़ा भाषण दे दिया था। लाचार हो कर कावेरी वापस ससुराल चली आयी और धीरे धीरे नौकरी की बात भूल गयी।

भाई श्रवण का विवाह केया से हुए अभी साल भी नहीं बीता है कि कल ही मम्मी ने फोन पर बताया था कि केया की जॉब लग गयी है और वह अगले हफ्ते से ज्वाइन कर रही है। सुनकर वह तिलमिला गयी थी मम्मी के इस दोहरेपन से। उसने फोन पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन अगले दिन आमने बैठकर उनसे बात करने को सोचा था लेकिन आज वह घरपर ही नहीं मिलीं।

कावेरी के विचारों को विराम दिया केया की आवाज़ ने, "लीजिये दीदी, मूँग के गर्मागर्म मुंगौड़े और उबलती हुई कॉफी... गर्मी ही गर्मी को मार सकती है न!" केया ने आगे कहा, "तबतक मैं मम्मी जी को फोन लगाती हूँ। वे पड़ोस में कौशल्या चाची की बहू से मिलने गयी हैं।"

"क्या हुआ कौशल्या चाची की बहू को?" कावेरी मुंगौड़े का एक टुकड़ा मुँह में रखकर कॉफी का मग उठाते हुए कहा।

"कुछ विशेष नहीं दीदी, वह वर्किंग वुमन है न और मुझे अगले सोमवार से जॉइन करना है तो उससे व कौशल्या चाची से स्वयं और मेरे लिए कुछ टिप्स लेने गयी हैं।" मुस्कुराते हुए केया ने बात समाप्त की और प्लेट से मुंगौड़े उठाकर फोन करते हुए बाहर निकल गयी।

इधर केया की बात सुनकर कावेरी के कानों में जैसे आग का गोला रख दिया गया हो। उसके मुँह से मुंगौड़ों और कॉफी की गरमाहट बिल्कुल समाप्त हो गयी। वाह रे मम्मी! मेरे समय दुनियादारी याद आ रही थी और बहू के समय दूसरों से टिप्स लिए जा रहे हैं! हद हो गई यार!

तभी मम्मी ने अंदर आते हुए कहा,"अरे कावेरी! कल ही तो हमारी बात हुई थी और आज अचानक यहाँ! क्या बात है बेटी?"

"अगर आती नहीं तो आपके दोमुंहेपन की झलक न देख पाती। वाह मम्मी वाह!" कावेरी ने बड़े तीखे शब्दों में मुँह बनाकर मम्मी को उत्तर दिया तो मम्मी ने कहा,"ये क्या बात कर रही है तू कावेरी! जो कुछ भी बोलना हो स्पष्ट बोल दे, बातों के पकौड़े न बना मेरे सामने।"

"मम्मी अभी आप कहाँ से आ रही हैं?

तभी कॉफी के दो मग लेकर केया अंदर आयी और एक मम्मी जी को देकर दूसरे से स्वयं पीते हुए सामने के सोफे पर बैठ गयी।

"मैं अभी कौशल्या से और उसकी बहु से कामकाजी महिलाओं और उनकी सास के लिए टिप्स लेने गई थी और ले भी आयी।" कॉफी का घूँट भरते हुए मम्मी ने कहा।

"और मम्मी मेरी नौकरी के समय आपने तो पूरा अनुसुइया चरित्र ही सुना दिया था मुझे। तब क्या हो गया था आपको?"

"ओह! यह मामला है।" कह कर मम्मी मुस्कुरा पड़ीं। इत्मीनान से मुंगौड़े खाते हुए वे बोलीं, "कावेरी, ध्यान से सुनो। केया मेरी बहु है। केया की खुशियों पर मैं ध्यान नहीं दूँगी तो यह मेरी खुशियों पर क्यों ध्यान देगी। दूसरी बात केया के बाहर जाने में इसके पति की कोई मनाही नहीं है। रही बात तेरी तो तू इस घर की बेटी है। तू जिस घर की बहू है उसके परिवार के बुजुर्गों व पति की सलाह को मानना तेरा कर्तव्य बनता है। मेरी सलाह तेरे दाम्पत्य जीवन को यदि कलह से भरने वाली है तो मैं भला ऐसा क्यों करूँगी। जब तेरे पति व सास की इच्छा नहीं थी तो मैं तुझे नौकरी करने को क्यों उकसाती? क्यों तेरे घर में झगड़ा लगवाती? एक बात और सुन ले! तेरे जाने के बाद मैंने तेरी सास से इस विषय में बात की थी। तब उन्होंने कहा था कि नौकरी के बजाय यदि कावेरी अपने प्रशिक्षण, योग्यता और कुशलता को प्रयोग में लाने के लिए एक ब्यूटीपार्लर खोलने की इच्छा व्यक्त करेगी तो वे न केवल सहयोग करेंगी बल्कि तेरी पहली ग्राहक भी बनेगीं। पर नौकरी करने की धुन में तूने तो यह करने के विषय में सोचा ही नहीं। मायका बेटी को खुश होते देखना चाहता है और ससुराल बहु को। अभी भी बहुत दिन नहीं गुजरे हैं। जाकर सास से मिल और अपना ब्यूटीपार्लर खोलकर एक दो लड़कियों को जॉब भी दे।"

कॉफ़ी खत्म करके कावेरी उठी और मम्मी के गले लगते हुए कहा,"मम्मी, आपने मेरी आँखें खोल दीं। मैं सभी अपनी सास से मिलकर कुछ नया करती हूँ।"

"जाओ बेटी, जब जागो तभी सवेरा होता है।" मम्मी ने कहा।

केया को बाय बोलकर कावेरी सरपट चाल में घर से बाहर निकल गयी।

"गरीब माँ थी, लेकिन सपने अमीर थे। जो पढ़ाया वो किताब से नहीं, दिल से था।" ❤️अगर माँ की ममता और संघर्ष को सलाम करते हो, ए...
10/07/2025

"गरीब माँ थी, लेकिन सपने अमीर थे। जो पढ़ाया वो किताब से नहीं, दिल से था।" ❤️
अगर माँ की ममता और संघर्ष को सलाम करते हो, एक ❤️ ज़रूर छोड़ जाना।

🔹 1. "बेटा, पढ़ाई ही तुम्हारा असली हथियार है"

एक गरीब माँ फुटपाथ पर बैठी है। torn साड़ी, थका हुआ चेहरा... लेकिन आँखों में उम्मीद चमक रही है।
अपने बच्चे को देखती है और कहती है –
"हमारे पास ना बड़ा घर है, ना पैसा... लेकिन अगर तू पढ़ लेगा, तो एक दिन ये सब होगा।
जो मैं नहीं कर पाई, तू करेगा बेटा। दुनिया तुझे गरीब की औलाद कहेगी, लेकिन तेरे नाम से पहचान बनाएगी।
पढ़ाई से बड़ा कोई धन नहीं... और माँ की दुआ से बड़ी कोई शक्ति नहीं।"

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🔹 2. "मेहनत और ईमानदारी ही तुझे बड़ा बनाएंगे"

बच्चा थककर किताब बंद करता है। माँ मुस्कुराते हुए कहती है –
"थकना मत बेटा… ये तकलीफ तुझे मजबूत बना रही है।
दुनिया में बहुत लोग पैसे से बड़े बने हैं, लेकिन इंसान वही बड़ा है जो मेहनत और ईमानदारी से आगे बढ़ा।
भूख लगे तो बर्दाश्त कर लेना, लेकिन कभी किसी का हक मत छीनना।
तू जब अफसर बनेगा, तो तुझ पर ना सिर्फ मेरा भरोसा होगा… बल्कि उस मेहनत का भी, जो आज तू कर रहा है।"

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🔹 3. "एक दिन तुझे देखकर दुनिया कहेगी – माँ जीती रही"

रात के अंधेरे में, स्ट्रीट लाइट के नीचे माँ अपने बच्चों को पढ़ा रही है।
पास से लोग निकलते हैं, कोई देखता नहीं… लेकिन वो माँ कहती है –
"एक दिन तुझसे लोग रौशनी लेंगे बेटा।
तेरे नाम से स्कूल बनेंगे, और तेरी माँ का नाम इतिहास में होगा।
तू बस सच्चा बन, दूसरों की मदद कर, और कभी पीछे मत हट।
अगर तू आगे बढ़ा, तो ये सिर्फ मेरी जीत नहीं होगी… ये उन लाखों माँओं की जीत होगी जो आज भी फुटपाथ पर सपना बो रही हैं।"

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"गरीब माँ थी, लेकिन सपने अमीर थे। जो पढ़ाया वो किताब से नहीं, दिल से था।" ❤️
अगर माँ की ममता और संघर्ष को सलाम करते हो, एक ❤️ ज़रूर छोड़ जाना।

एक किसान था। इस बार वह फसल कम होने की व‍जह से चिंतित था। घर में राशन ग्यारह महीने चल सके उतना ही था। बाकी एक महीने का रा...
10/07/2025

एक किसान था। इस बार वह फसल कम होने की व‍जह से चिंतित था। घर में राशन ग्यारह महीने चल सके उतना ही था। बाकी एक महीने का राशन का कहां से इंतजाम होगा। यह चिंता उसे बार-बार सता रही थी।
किसान की बहू का ध्यान जब इस ओर गया तो उसने पूछा ?

पिताजी आजकल आप किसी बात को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। तब किसान ने अपनी चिंता का कारण बहू को बताया।

किसान की बात सुनकर बहू ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह किसी बात की चिंता न करें। उस एक महीने के‍ लिए भी अनाज का इंतजाम हो जाएगा।
जब पूरा वर्ष उनका आराम से निकल गया तब किसान ने पूछा कि आखिर ऐसा कैसे हुआ?

बहू ने कहा- पिताजी जब से आपने मुझे राशन के बारे में बताया तभी से मैं जब भी रसोई के लिए अनाज निकालती उसी में से एक-दो मुट्‍ठी हर रोज वापस कोठी में डाल देती। बस उसी की वजह से बारहवें महीने का इंतजाम हो गया।

कहानी की सीख : ‍इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में बचत की आदत डालना चाहिए। ताकि किसान की तरह बुरे वक्त में जमा पूंजी काम आ सके।

ठंडी सर्दियों की सुबह थी। धुंध से पूरा गांव ढका हुआ था। लोग अलाव जलाकर खुद को गर्म करने की कोशिश कर रहे थे। गांव के एक छ...
10/07/2025

ठंडी सर्दियों की सुबह थी। धुंध से पूरा गांव ढका हुआ था। लोग अलाव जलाकर खुद को गर्म करने की कोशिश कर रहे थे। गांव के एक छोटे से मकान के आंगन में एक बूढ़ी औरत बैठी थी, जिसका नाम था *शारदा*। उसके हाथ कांपते थे, लेकिन फिर भी वो रोटियां सेंक रही थी — दो रोटियां, थोड़ी सी दाल, और एक छोटी सी कटोरी में गुड़।

हर दिन की तरह वो वही थाली लेकर गांव की पगडंडी पर चल पड़ती थी। हर किसी को लगता था कि शायद वो किसी को खाना देने जा रही है, पर *जिसे वो खाना देती थी, वो तो सालों से दूर शहर में रहता था — उसका बेटा, विशाल।*

विशाल बचपन से ही तेज था, पढ़ाई में होशियार। मां ने पेट काट-काटकर पढ़ाया, खेत गिरवी रख दिए, शादी के गहने तक बेच दिए, लेकिन एक बार भी शिकायत नहीं की। विशाल पढ़-लिखकर शहर गया, और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पहले-पहले फोन आता था — "मां, बहुत काम है, बाद में बात करूंगा।"
फिर धीरे-धीरे वो फोन भी बंद हो गए।

शारदा हर दिन अपने बेटे के नाम की दो रोटियां बनाती, एक पेड़ के नीचे रख देती — और कहती, *"कभी तो आएगा मेरा बेटा... कभी तो भूख लगेगी उसे मां की रोटी की।"*

गांव वाले मजाक उड़ाते — "तुम्हारा बेटा तो बड़ा अफसर बन गया है, अब उसे गांव की गंध कहां पसंद आएगी?"
पर शारदा मुस्कराकर कहती, *"जिसने मेरी कोख से जन्म लिया है, वो मेरी रोटी की खुशबू को कभी नहीं भूल सकता है।"*

एक दिन, गांव में एक बड़ी गाड़ी आकर रुकी। सूट-बूट में एक आदमी उतरा, आंखों पर काले चश्मे। किसी ने पहचाना नहीं — लेकिन शारदा के दिल ने पहचान लिया।
वो दौड़कर आई, पर रुक गई।
*उसने देखा — वही चेहरा, पर आंखें झुकी हुईं थीं।*

विशाल ने धीरे से कहा, *"मां, मुझे माफ कर दो... मैंने बहुत कुछ पाया, पर आपको खो दिया।"*
शारदा कुछ नहीं बोली। बस अंदर गई, वही रोटियों की थाली लाई, और कहा —
*"खा ले बेटा, आज ही नहीं... ये रोटियां तो बरसों से तेरा इंतजार कर रही हैं।"*

विशाल फूट-फूटकर रो पड़ा।
उस दिन उसने जाना —
*"बड़ी से बड़ी थाली में परोसा खाना भी उस रोटी की बराबरी नहीं कर सकता, जिसमें मां की उंगलियों का स्पर्श और उसके प्यार की गर्माहट हो।"*

अगर ये कहानी पसंद आई हो, तो दिल से दुआ दीजिए उन सब माओं को — *जो बस अपने बच्चों के लौट आने का इंतजार कर रही हैं। और हो सके तो 1 ♥️ लाइक हमारी पर भी कर दो।*

इक विश्वास थामेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट ...
10/07/2025

इक विश्वास थामेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई.
‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था :
आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा. ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम.
आप का, अमर.
मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए.
एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी. वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता. मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा. पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी. वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा.
मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया. वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था. मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं. मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफसुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण. ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था. पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा, ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?’
‘आप कितना दे सकते हैं, सर?’
‘अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा.’
‘आप जो दे देंगे,’ लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला.
‘तुम्हें कितना चाहिए?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूं.
‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला.
‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया.
अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो. मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है?’
वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था.
‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं. मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है. कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा.
‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा.
‘अमर विश्वास.’
‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए?’
‘5 हजार,’ अब की बार उस के स्वर में दीनता थी.
‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा.
‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं. मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा. अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी.
उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी. मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था. आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए. वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए.
‘देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूं. तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा.
अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए. उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं.
‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं?’
‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना.’
वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी.
कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी. कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया.
दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी. मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं. भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई. दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं. 2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था. मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया. कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है. छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला.
मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था. मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था. अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी. एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक?
मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया.
शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में. एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी. एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले.
मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए.
‘‘सर, मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोला.
मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया. उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी. अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया. मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी.
अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा. उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया. उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए.
इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं. हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथसाथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था.
मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है.

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लघुकथा - कारोबार ~~भाभी, जब से पापा जी ऑपरेशन हुआ है, मेरा काम बहुत बढ़ गया है I घर के काम निपटाने के बाद मैं दिन भर हॉस...
10/07/2025

लघुकथा - कारोबार ~~
भाभी, जब से पापा जी ऑपरेशन हुआ है, मेरा काम बहुत बढ़ गया है I घर के काम निपटाने के बाद मैं दिन भर हॉस्पिटल में रहती हूँ l और विनीत ऑफ़िस से आने के बाद रात में पापा जी के पास सोते हैं, थक जाते हैं वो भी ! " वैभवी ने हताश होकर कहा I

" तुम अटेंडेंट क्यों नहीं रख लेती, आजकल तो ये अच्छी सुविधा हो गई है l जिनके घर में मरीज़ की देखभाल के लिए कोई नहीं होते उनके लिए हॉस्पिटल के आसपास ही नर्सिंग ट्रेनिंग किये हुए लड़के लड़कियां मिलते हैं, ये लोग चौबीस घंटे मरीज़ की देखभाल करते हैं, तुम हॉस्पिटल में डॉक्टर या नर्स लोगों से इस संबंध में पूछ कर देखो न!" भाभी ने सलाह दी I

" ये लोग अच्छे से देखभाल करते हैं... ! " वैभवी ने संशय जताया!

" हाँ-हाँ करते हैं न... मैंने सुना है तभी तो तुमसे कह रही हूँ l भाभी की बातों में विश्वसनीयता झलकती देख वैभवी प्रफुल्लित मन से डॉक्टर साब के राउंड में आने का इंतज़ार करने लगी l

कुछ देर बाद डॉक्टर साब से बात करने पर उन्होंने एक युवक का नंबर उसे दिया l वैभवी ने तुरंत उस युवक को फ़ोन किया सारी बातें बताने के बाद 15000 रुपये महीने में एक अटेंडेंट के रहने की बात तय की गई I

पूछताछ होने के तुरंत बाद ही जादू की तरह अटेंडेंट आ भी गया ! और उसने बहुत अच्छे से अपना काम भी शुरु कर दिया...वैभवी उसे ज़िम्मेदारी देने के बाद थोड़ी निश्चिंत तो हो ही गई l उसने देखा अटेंडेंट पापा जी की देखभाल के साथ - साथ बाहर से टिफिन और गरम चाय भी ले आता था l दो चार घंटे बाद वैभवी ने जिज्ञासावश उस अटेंडेंट से यूँ ही पूछ लिया - " आप यहीं पास में ही रहते हैं क्या ?"

"जी मैम इस कैंपस के बाहर ही हम लोग रहते हैं I"
" आप तो बहुत अच्छे से पापा जी को उठाना बैठाना कर रहे हैं l क्या आपको इसकी ट्रेनिंग दी जाती है?" विस्मय से वैभवी ने पूछा l

" जी मैम हमें सिखाया जाता है l मुझे तो साल भर हो गया है यहाँ रहते l" पापा जी के माथे को सहलाते हुए वो बोला l

"आपका घर कहाँ है..?"
"मैं बिलासपुर का रहने वाला हूँ,पिताजी बीमार हैं न, इसलिए घर में पैसों को लेकर कुछ दिक्कत आ गई थी, तो मुझे यहाँ आना पड़ा. यहाँ से मुझे जो 10'000 रुपये मिलेंगे उससे आठ हज़ार मैं घर भेजूंगा, और बाकी यहाँ अपने खर्च के लिये रखूँगा l"

"अरे, हमसे तो 15'000 की बात तय हुई है, फ़िर तुम्हें 5000 कम क्यूँ दिया जायेगा ! ये तो तुम्हारी मेहनत के रुपये हैं भई, इसमे कैसा पर्सेंटेज..? तुम लोगों को तो सीधे - सीधे मरीज़ से कॉन्टेक्ट करना चाहिए! " वैभवी ने रोष जताते हुए एक ही साँस में सारी बातें कह दी I

" मैम ऐसा तो हम सोच भी नहीं सकते, और यदि इस संबंध में हमने ऐसा वैसा कुछ कह दिया तो जो रुपये अभी हमें मिल रहे हैं, उससे भी हमें हाथ धोना पड़ेगा..क्योंकि हमें ये जो काम मिलता है न, उसके पीछे कोई एक नहीं ऊपर से नीचे तक चेन बनी है.. किसी एक को भी कुछ कहना मतलब अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है..! "अटेंडेंट ने फुसफुसाते हुए कहा l

अटेंडेंट की मजबूरी को देख, वैभवी ने गहरी साँस ली और मन ही मन में वो बुदबुदाई -" अच्छे से जानते हैं ये लोग कि ज़रुरत कभी नफ़ा नुकसान नहीं तौलती! "

यह कहानी है एक ऐसी लड़की की  जिसे किसी लड़के से बात तक करने की इजाजत नहीं थी ।लेकिन जब उसके ही कॉलेज के एक लड़के कुलदीप ...
10/07/2025

यह कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसे किसी लड़के से बात तक करने की इजाजत नहीं थी ।

लेकिन जब उसके ही कॉलेज के एक लड़के कुलदीप सिंह को उससे प्यार हुआ तब वह भी खुद को उसके प्यार में पड़ने से रोक नहीं पाई ।
लेकिन जब उसके घर वालों को यह बात पता चली तब बड़ी ही बेरहमी से उस लड़के की हत्या कर दी गई ।

नेहा के घर वालों ने बड़ी ही बेरहमी से कुलदीप को जिंदा दफना दिया था।
लेकिन उन्हें क्या पता था कि कुलदीप का प्यार मर कर भी मरने वाला नहीं था।
मरने के बाद भी उसकी आत्मा नहीं मरी थी वह भटक रही थी नेहा की तलाश में ।
नेहा के घर वालों ने नेहा को उस गांव उस शहर से बहुत दूर भेज दिया।
लेकिन फिर भी कुलदीप ने उसका पीछा नहीं छोड़ा वह अपने प्यार को पाने के लिए एक बार फिर से
वापस लौटा नेहा की जिंदगी में ,,,,
बनकर एक पिशाच ।

कुलदीप मर चुका था उसकी आत्मा भटक रही थी लेकिन नेहा तो जिंदा थी ।
कैसे होगा इन दोनों का मिलन क्या मोड लेगी नेहा की जिंदगी ।
क्या नेहा का प्यार ही बन जाएगा उसके लिए मुसीबत
जानेंगे कहानी में आगे ,,,, ।

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