जुगल सिंह शेखावत

जुगल सिंह शेखावत जोगां ने जग पूछै, नाजोगा ने कुण पूछै…।
🚩 श्री करणी माता 🚩

दुःखद खबर 🙏😔चूरू में क्रैश हुए जगुआर फाइटर जेट हादसे मेंPilotFlt. It. Rishi Raj Singh  शहीद शहीद की पार्थिव देह सुबह 9 ब...
09/07/2025

दुःखद खबर 🙏😔
चूरू में क्रैश हुए जगुआर फाइटर जेट हादसे में
Pilot
Flt. It. Rishi Raj Singh शहीद
शहीद की पार्थिव देह सुबह 9 बजे जोधपुर एयरपोर्ट पर पहुंचेगी उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गाँव खिवांदी जिला पाली में किया जाएगा सुबह 9 बजे अधिक से अधिक संख्या में जोधपुर एयरपोर्ट पहुँचे🙏💐
🙏💐

चंद्रशेखर  : इंसानियत की मिसाल (पुण्यतिथि पर स्मरण)सियासत का मिजाज विचित्र है। अच्छे को बुरा, मानना। बुरे को अच्छा, कहना...
08/07/2025

चंद्रशेखर : इंसानियत की मिसाल
(पुण्यतिथि पर स्मरण)

सियासत का मिजाज विचित्र है। अच्छे को बुरा, मानना। बुरे को अच्छा, कहना। शायद चंद्रशेखर के साथ भी यही हुआ। चंद्रशेखर ने सत्ता से पहले मानवीय संबंधों को तरजीह दी। सियासत के कठोर मैदान में भी अपनी संवेदनशीलता, करुणा और मानवीयता जिंदा रखा। इस अर्थ में चंद्रशेखर दुर्लभ लोगों में से रहे। उनकी जेल डायरी, उनके साथियों के संस्मरण, उनके जीवन के अनगिनत किस्से बताते हैं कि चंद्रशेखर सियासत को सेवा मानते थे, सत्ता का खेल नहीं। उनका छह दशकों का लंबा सार्वजनिक जीवन इस बात का सबूत है कि सियासत के केंद्र में संवेदना और सरोकार मूल है।

चंद्रशेखर ग्रामीण परिवेश से आते थे। ताउम्र देशज चेतना से लैस रहे। खेत-खलिहान और संघर्ष जीवन की पहली पाठशाला रहे। शायद माटी से इसी जुड़ाव ने उन्हें वह संवेदनशीलता दी, जो बाद में उनके व्यक्तित्व की पहचान बनी। जीवन की यह सीख किताबों से नहीं, बल्कि लोगों के बीच रहकर, उनके दुख-दर्द को समझकर मिली। कहते भी थे कि किताबों से पढ़कर हमने समाजवाद की सीख नहीं पायी, जीवन की वेदना-दुख-अभाव की पाठशाला में सब सीखा।

सत्ता के शिखर पर भी वह नहीं बदले। कोई सहयोगी बीमार पड़ता, तो साथ में अस्पताल जाते। जेपी बीमार थे। मुंबई के जसलोक अस्पताल में भर्ती। चंद्रशेखर, जेपी के साथ रहे। उनके लिए हर इंसान मायने रखता था। कोई औपचारिकता नहीं। कोई दूरी नहीं। चंद्रशेखर के सहयोगी थे, गौतम। बीमार पड़े। साथ लेकर हैदराबाद गए। इलाज कराया। रामधन (विश्वविद्यालय के दिनों से चंद्रशेखर के साथी) गंभीर रूप से बीमार पड़े। चंद्रशेखर उन्हें देखने और कुशल क्षेम पूछने अक्सर अस्पताल जाते। जाते समय तकिए के नीचे रुपये रख आते। याद रखें, 1989 में रामधन ने कई बार सार्वजनिक रुप से न सिर्फ चंद्रशेखर का विरोध किया, बल्कि उनके खिलाफ भाषण और बयान भी दिया। पर, चंद्रशेखर ने इन सब बातों का कभी बुरा नहीं माना। जेपी के सहयोगी जगदीश बाबू बीमार पड़े। उन्होंने, जगदीश बाबू का इलाज करवाया। उनके साथ अस्पताल में दस दिन का समय बिताया। यह कोई छोटी बात नहीं थी। देश के कोने-कोने में ऐसे अनेक सामान्य कार्यकर्त्ता व बड़े नेता भी रहे हैं, जिनके लिए चंदा मांग कर महंगा इलाज कराया। बेहतर से बेहतर चिकित्सा। हवाई जहाज से ला कर भी।

एक बार एक गरीब कार्यकर्त्ता उनके घर आया। झोले में गुड़ लाया। चंद्रशेखर, घर पर नहीं थे। लौटे। स्टाफ से पूछा। झोला देखा। कार्यकर्ता को चाय पिलाने को कहा। फिर उसे अपनी गाड़ी में बिठाया। उसके गाँव गए। मिट्टी का घर। टूटी चरपाई। कार्यकर्त्ता हड़बड़ा गया। चाय बनाने को कहा। चंद्रशेखर बोले, ‘तुम्हारा गुड़ है। पानी मँगाओ। तुम्हारे हाथ से खाऊँगा।’ फिर उसे साथ ले गए। बाद में सहयोगियों को बताया, ‘इनके साथ मेरठ में साइकिल पर गाँव-गाँव घूमता था। रात को यहीं रुकता था।’ यह सादगी थी। यह आत्मीयता थी। यह थे, चंद्रशेखर।
ऐसे कई उदाहरण हैं। 1984 में युवा समाजवादियों का सम्मेलन था। चित्रकूट में। चंद्रशेखर उद्घाटन करने आए थे। शरद यादव, सुरेंद्र मोहन, सुबोधकांत सहाय जैसे नेता मौजूद थे। तभी पास में एक किसान के घर में आग लग गई। चंद्रशेखर सम्मेलन छोड़कर दौड़े। आग बुझाने में जुट गए। उनकी देखादेखी सब जुट गए। एक किसान का घर उनके लिए किसी सभा से ज़्यादा कीमती था। यह थी, उनकी प्राथमिकता। यह थी, उनकी मानवीयता।

उनकी जेल डायरी में ऐसे कई किस्से हैं। आपातकाल में जेल की सलाखों के पीछे भी वे दूसरों का ख्याल रखते। साथी कैदियों की छोटी-छोटी ज़रूरतें पूरी करते। कभी किताब, कभी ज़रूरी सामान। यह उनकी करुणा थी। आपातकाल के दिनों की बात है। चंद्रशेखर पटियाला जेल में बंद थे। उसी जेल में राजू नाम का एक युवा कैदी भी था। किसी मामूली अपराध में बंदी। जमानत के पैसे नहीं थे। वरना वह बाहर होता। चंद्रशेखर अपनी जेल डायरी (02 जून, 1976) में लिखते हैं, ‘आज यहां पर साथ रहने वाले बंदी राजू से उसके मां-बाप के बारे में पूछा। पहले कतराता रहा। फिर इधर-उधर की बातें कीं। जब मैंने सच-सच बताने को कहा तो फूट-फूट कर रोने लगा। बाद में उसने जो कहा, उससे मैं सोचता रहा, कितना सीख देता है जीवन का अनुभव मनुष्य को। उसका कहना था कि मां-बाप की याद उसके लिए केवल रुलाई लेकर आती है। इसलिए नहीं कि उनसे प्यार है, ममत्व है, बल्कि बचपन की याद बहुत पीड़ा और करुणा भरी है।’

चंद्रशेखर ने राजू की जमानत राशि की व्यवस्था की। वह अपनी डायरी में आगे लिखते हैं, ‘राजू की रिहाई का दिन था। पांच सौ रुपये जुर्माना करने पर वह जेल से रिहा हो जाता। रुपये मनीआर्डर से त्यागी जी ने कुछ दिन पहले भेज दिये थे। किंतु राजू की राय बनी कि अभी कुछ और प्रतीक्षा करेगा। यदि हो सका तो मेरे साथ ही बाहर जायेगा। किंतु उसे आज असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ने बुलाकर कहा कि उन्होंने उसका जुर्माना भर दिया है और यह दस मिनट में जेल से बाहर जाने के लिए तैयार हो जाये। उसके लिए यह अत्यंत अप्रत्याशित बात थी, क्योंकि यहां लोगों का ख्याल था कि जुर्माना भरने के लिए उसे दरखास्त देनी होगी कि उसके पीपी में जो पैसा जमा है, उसे जुर्माने में दाखिल कर लिया जाये। किंतु उसे तो रिहाई का आदेश सुना दिया गया, कहां जायेगा छूटकर इस भरी दुनिया में उसका कोई नहीं। यह जब मेरे पास यह सूचना देने आया, तो उसके मन की पीड़ा उसके चेहरे पर स्पष्ट रूप से अंकित थी। यही भाव उसके चेहरे पर उस दिन भी दीख पड़ता था, जब उसने बड़ी बेबसी भरी आवाज में कहा था कि उसका पांच सौ रुपया जुर्माना कौन भरेगा? जटिल है निराश्रित होने की समस्या भी। उस दिन रुपये का अभाव था। उससे छुट्टी मिली तो फिर बाहर जाकर आश्रय पाने की समस्या। मुझे भी दुख हुआ। मैंने संदेश भेजा और असिस्टेंट जेलर आया। समस्या का समाधान निकला। राजू अभी यहीं रहेगा। यदि मुझे अधिक दिन रहना पड़ा, तो उसके लिए कुछ करना होगा। लोग मिलने आयेंगे तो बात करूंगा।’ ऐसी थी, उनकी संवेदनशीलता।

चंद्रशेखर, कार्यकर्त्ताओं को परिवार मानते थे। 1985 की एक घटना का उल्लेख मोहन गुरुस्वामी करते हैं। पश्चिमी महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के लिए चंद्रशेखर गए थे। अपने उम्मीदवारों के साथ-साथ शरद पवार की पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार कर रहे थे। उन्हें खटारा कार मिली थी। कुछ मील चलने पर उसका इंजन गर्म होकर बंद हो जाता था। रोककर, पानी डालकर ठंडा करना पड़ता था। ऐसी कार बिना तेल के ही मिलती। पेट्रोल का प्रबंध चंद्रशेखर ही करते। पूरे दिन उन्होंने किसानों और छोटे व्यापारियों की सभाओं को संबोधित किया। उनसे प्रभावित होकर गरीब किसान, उन्हें नगद चंदा देते थे। इनमें ज़्यादातर छोटे नोट और सिक्के होते थे। हर बार मिली राशि मोहन गुरुस्वामी गिनते। अच्छी-खासी रकम चंदे में आती। चंद्रशेखर, हर बार आदेश देते थे कि यह पैसा उम्मीदवारों को बाँट दें। पैसा कभी ज़्यादा देर नहीं रुकता। चुनावी सभाओं को संबोधित कर वे देर रात लोहेगाँव हवाई अड्डा पहुँचे। कार की ख़राबी के चलते, बम्बई की फ़्लाइट छूट गई। सोच रहे थे कि आगे क्या होगा? दोनों में से किसी के पास पैसे नहीं थे। दो घंटे में बेंगलुरु के लिए एक फ़्लाइट थी। छोटे वीआईपी लाउंज में हाथ-मुँह धोने के बाद वे लोग बैठे। इंडियन एयरलाइंस के अधिकारियों द्वारा दी गई, चाय पी। चंद्रशेखर ने मोहन गुरुस्वामी से कहा, ‘चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।’ थोड़ी देर में इंडियन एयरलाइंस के अधिकारी आये। पूछने के लिए कि क्या हम बेंगलुरु जाना चाहते हैं? चंद्रशेखर ने उन्हें हाँ कहा। पर, यह भी बताया कि हमारे पास टिकट नहीं है। दबी आवाज़ में जोड़ा, पैसे भी नहीं हैं। इंडियन एयरलाइंस के अधिकारी ने बस इतना कहा, ‘सर, मैंने पैसे नहीं माँगे। अगर आप बेंगलुरु जाना चाहते हैं, तो मैं आपको अपनी ज़िम्मेदारी पर दो टिकट दूँगा। पैसे आ जाएँगे, मुझे यकीन है।’ दो टिकट बने। वे बेंगलुरु रवाना हुए। यह तब की बात है, जब राजीव गांधी 425 लोकसभा सीटों के साथ सत्ता में आए थे। चंद्रशेखर बलिया से अपनी सीट हार गए थे। इंडियन एयरलाइंस के अधिकारी ने बहुत ही मार्के की बात कही। कहा, ‘सर, आप चुनाव भले ही हार गए हों, लेकिन आपने अपनी विश्वसनीयता नहीं खोई है। आपके वचन की भी ज़रूरत नहीं है। आपकी कुछ मदद कर पाना अपना सम्मान मानता हूँ।’

1984 में चुनाव हारने के बाद चंद्रशेखर रचनात्मक-सृजनात्मक और बदलाव के कामों में लग गए। दिल्ली से दूर। सिताबदियारा में जेपी स्मारक के निर्माण के लिए सक्रिय हुए। बनवाया। राजेंद्र बाबू के गाँव, जीरादेई गए। उनके घर का जीर्णोद्धार कराया। स्मारक के तौर उसे विकसित कराने की पहल की। 1942 में बलिया आजाद हुआ था, उन शहीदों की स्मृति में शहीद स्मारक बनवाया। चंद्रशेखर ने अनेक संस्थाओं की नींव डाली। इसमें बलिया के इब्राहीमपट्टी में एक पांच सौ बेड का अस्पताल बनना था, रचना चक्र के तहत। इसी तरह बलिया में देवस्थली विद्यापीठ की नींव डाली। लगभग एक दर्जन से अधिक जगहों पर भारत के विभिन्न राज्यों और शहरों के पिछड़े इलाकों में भारत यात्रा केंद्र बनवाए। दिल्ली में युवा भारत ट्रस्ट का गठन किया। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के अध्ययन के लिए दो केंद्रों की स्थापना की। सेंटर फॉर एप्लाइड पॉलिटिक्स, नरेंद्र निकेतन (दिल्ली)। इंस्टि्यूट फार द स्टडीज इन इंडस्ट्रिएल डेवलपमेंट, वसंत कुंज (दिल्ली) व नरेंद्र वाटिका केंद्र (सारनाथ)। हरियाणा के भोंडसी (भुवनेश्वरी)में उन्होंने भारत यात्रा केंद्र बनवाया।

दशकों तक मीडिया से लांछित होते रहे कि भारत यात्रा ट्रस्टों के माध्यम से कई हजार करोड़ की संपत्ति एकत्र की है। निजी परिवारिक संपत्ति बना लिया है। चंद्रशेखर ने कभी इनका उत्तर नहीं दिया। कहते, ‘अगर मैं सही हूं, तो षड्यंत्रों, कुचक्रों, झूठ के बादल छटेंगे।’ तथ्य यह है कि भारत यात्रा ट्रस्ट (जिसके केंद्र भारत के विभिन्न शहरों में बने) में अपने परिवार के किसी सदस्य को रखा ही नहीं। सभी जगहों पर स्थानीय कार्यकर्ता या राष्ट्रीय नेता थे। आजीवन अपने परिवार के किसी व्यक्ति को न टिकट दिया, न राजनीति में उतारा। मृत्युशय्या पर थे, तब 19 मई 2006 को तत्कालीन प्रधानमंत्री के पास पत्र भेजा। उन्होंने जो भी ट्रस्ट बनाए हैं, उसकी सारी संपदा पब्लिक प्रॉपर्टी के रूप में तब्दील कर दी जाए। सरकार उसका अधिग्रहण कर ले। इच्छा व्यक्त की कि ये संस्थाएं या ट्रस्ट जनता से एकत्र पैसे से बने हैं, इसलिए उनके न रहने पर यह सब देश को ही वापस जाना चाहिए।
आज चंद्रशेखर की पुण्यतिथि है। उन्हें खासतौर पर याद करने का दिन। सार्वजनिक जीवन में आचरण, व्यवहार, मर्यादा, शुचिता और इन सब से बढ़ कर राष्ट्र के प्रति समर्पण व सेवा भाव की प्रेरणा हम, उनके जीवन चरित्र से ले सकते हैं।

28/06/2025

उत्तराखंड हेलीकॉप्टर हादसे में जान गंवाने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल राजवीर सिंह चौहान की माता जी ने आज दम तोड़ा बेटे की मौत का सदमा नहीं झेल पाई मां
बहुत दुखद

भारत के 7 वे प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी की, पहली प्रतिमा दक्षिण भारत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन द्वार...
27/06/2025

भारत के 7 वे प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी की, पहली प्रतिमा दक्षिण भारत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन द्वारा लगाई गई ।

करुणानिधि के बेटे स्टालिन के अतिरिक्त ,आज तक भारत के किसी भी राज्य के ,किसी भी पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री ने, विश्वनाथ प्रताप सिंह की ,एक भी प्रतिमा नहीं लगवा पाई।

ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए ,विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी सरकार को भी दांव पर लगा दिया था।

डॉ बी आर अंबेडकर को भारत रत्न दिया और उनका चित्र संसद भवन में लगवाया।

दलित और पिछड़े वर्ग के लिए, इतना सब करने के बाद भी ,ऐसे वास्तविक राजनेता को भारत रत्न से दूर रखा जा रहा है।

स्वयं दलित और पिछड़े वर्ग के सभी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति भी विश्वनाथ प्रताप सिंह को पूरी तरह से भूल गए हैं।

कहने को सब राजनेता, दलित और पिछड़ों के हितों की राजनीति की बात करते हैं ।

लेकिन जिसने दलित और पिछड़ों के लिए वास्तविक रूप से कार्य किया ।

भारत के सभी वर्ग के राजनेता, उन्हीं विश्वनाथ प्रताप सिंह को भूल गए हैं।

विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राजनीति में पुनः प्रासंगिकता की ओर बढ़ रहे हैं । आने वाले समय में विश्वनाथ प्रताप सिंह के समर्थन में यह अभियान और तेज गति पकड़ेगा।

अंतरिक्ष यात्रा से पहले एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला का पत्नी के लिए भावुक संदेश"अगर मैं लौट न सका, तो जान लेना कि मेरी आखि...
27/06/2025

अंतरिक्ष यात्रा से पहले एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला का पत्नी के लिए भावुक संदेश
"अगर मैं लौट न सका, तो जान लेना कि मेरी आखिरी सांस भी तुम्हारे नाम थी।
तुम्हारा साथ मेरे हर सफर का सबसे खूबसूरत हिस्सा रहा है – ज़मीन से लेकर अब आसमान तक।
मैं जानता हूँ कि तुम मज़बूत हो, लेकिन मेरा प्यार हर पल तुम्हारे साथ है।"
शुभांशु शुक्ला, जो जल्द ही भारत के सबसे बड़े अंतरिक्ष मिशन पर रवाना होने वाले हैं, ने अपनी पत्नी के लिए लिखा यह इमोशनल नोट देशभर में वायरल हो रहा है। यह संदेश सिर्फ एक प्रेम पत्र नहीं, बल्कि उस अनकहे डर और अपार प्रेम की झलक है, जो एक अंतरिक्ष यात्री अपने प्रियजनों के लिए महसूस करता है।
इस संदेश के ज़रिए उन्होंने न केवल अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, बल्कि देश को यह भी दिखाया कि वैज्ञानिकों और एस्ट्रोनॉट्स की ज़िंदगी में भावनाएं कितनी गहराई से जुड़ी होती हैं..।

लोकतांत्रिक भारत में पिछड़ों और दलितों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने हेतु सफल सार्थक प्रयास करने वाले और सामाजिक न्याय ...
25/06/2025

लोकतांत्रिक भारत में पिछड़ों और दलितों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने हेतु सफल सार्थक प्रयास करने वाले और सामाजिक न्याय के असली नायक पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी को जन्म जयंती पर कोटिश नमन।

RAS अधिकारी हर दिल अजीज श्री महेन्द्र प्रताप सिंह भाटी गिराब को टेरिटोरियल आर्मी में कैप्टन पद पर पदोन्नत होने पर हार्दि...
23/06/2025

RAS अधिकारी हर दिल अजीज श्री महेन्द्र प्रताप सिंह भाटी गिराब को टेरिटोरियल आर्मी में कैप्टन पद पर पदोन्नत होने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) के अधिकारी महेन्द्र प्रताप सिंह भाटी, जिन्हें वर्ष 2021 में टेरिटोरियल आर्मी में कमीशन प्राप्त हुआ था, अब लेफ्टिनेंट से कैप्टन के पद पर पदोन्नत हो गए हैं।

वे टेरिटोरियल आर्मी में शामिल होने वाले पहले RAS अधिकारी हैं, जिन्होंने प्रशासन और सैन्य सेवा — दोनों क्षेत्रों में राष्ट्र को समर्पित भाव से सेवा कर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।

वर्तमान में कैप्टन महेन्द्र प्रताप सिंह भाटी, भारत सरकार के पर्यटन, कला एवं संस्कृति मंत्री माननीय श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के विशेषाधिकार(OSD) के रूप में नियुक्त हैं।

उनकी निष्ठा, अनुशासन और सेवा भावना सच्चे राष्ट्रभक्ति के प्रतीक हैं। यह गौरवपूर्ण पदोन्नति राजस्थान के लिए अत्यंत गर्व का विषय है और देशभर के प्रशासनिक अधिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत भी।

कैप्टन महेन्द्र प्रताप सिंह जी भाटी को इस अद्वितीय उपलब्धि पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!
हमें आप पर गर्व हैं।

Mahendra Pratap Singh Girab

22/06/2025

सर पे मौत का मंडराना इसे ही कहते हैं..
ईरान के मौत का पूरा पैकेज उसके सिर पर मंडरा रहा है..ईरान और अमेरिका के बम वर्षक विमान ईरान के आसमान में उड़ते हुए

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Hariom Gocher, Magraj Jaisar, Kalyan Singh Kalyan Singh, ...
22/06/2025

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Hariom Gocher, Magraj Jaisar, Kalyan Singh Kalyan Singh, Kamal Ji, Decharam Jaipal, Shailendra Singh Rajput Kshatriya, Ravindra Gupta, कानसिंह भोपा ढोक

20/06/2025

राजस्थान में एक कहावत है- बैर और कर्ज सपूत ही चुकाते हैं-
रण खेती रजपूत री, वीर न भूले वाल।
बारै बरसों बापरो, लैवे बैर दकाल।।

राजपूतों और सपूतों के बदले की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है। एक कहानी हमने भी सुनी है-
मेवाड़ के किसी गांव की घटना है। उस गांव में एक बार अचानक से चोरियाँ बढ़ गई। कभी किसी की भेड़ उठा ली जाती, कभी किसी की बकरी। चारवाहों ने गांव ठाकुर को जाकर फरियाद की।

"पड़ोसी गांव के चोर (तब एक जाति) आये दिन पशु चुराने लगे हैं, सुरक्षा प्रबंध ठीक कीजिये।"
ठाकुर ने यह जिम्मेदारी अपने इकलौते कुंवर को दी। आज से वही गांव का पहरा लगाएंगे।

एक रोज कुंवर अपने अनुचर के साथ पहरा देते हुए गांव से बाहर नाडी (तालाब) तक पहुंचे कि जल में घड़ा डुबोने जैसी आवाज हुई। उन्होंने जोरदार दकाल की। तालाब किनारे चोर बैठे थे। वे समझ गए- गांव का हाकम ही होगा। दौड़ेंगे तो पकड़े जायेंगे, छिपना ही भला। किन्तु घोड़े तो उनकी ओर ही बढ़ते चले आ रहे थे। कुंवर ने खाकी कपड़े पहने थे और अनुचर ने सफ़ेद। चोरों ने कुंवर को अनुचर समझकर रोकने के लिए पैर पर गोळी चला दी ताकि बचकर भागने में आसानी रहे किन्तु निशाना सीने पर लगा और कुंवर वहीं गिर पड़े।

यह मौत ठाकुर की निजी क्षति तो थी ही, साख का सवाल भी था। कुंवर को चोर मार जायेंगे तो बाकी लोगों में ठाकुर की शक्ति के प्रति क्या भरोसा रह जायेगा। दाग देने के बाद तय हुआ कि पहले बदला लिया जायेगा उसके बाद ही कुंवर जी के मृत्यु सम्बन्धी क्रिया कर्म सम्पन्न होंगे। दस दिन बीत गए पर हत्यारों का सुराख़ न लगा।

संयोग से ठाकुर के गांव की एक कन्या उस गांव में ब्याही हुई थी जहां के चोर थे। उसने रात में अपने परिवार के पुरुषों को घबराहट और हड़बड़ी में कुछ धीमी वार्ताए करते सुना। बातों से लग रहा था कि यह गिरोह किसी आदमी को मारकर आया है। अगले दिन बात हवा की तरह फैल ही गई- पड़ोसी गांव के कुंवर जी को चोर गिरोह ने मार दिया। उसका संदेह पक्का हो गया। हो न हो, हत्यारे यही लोग हैं।

दो दिन बाद वह विवाहिता अपने पीहर आयी।
गाँवमें सब शोकमग्न! पिता ने बेटी को सारी बात बताई तो वह धीरे से बोली- बापू कुंवर के हत्यारे मेरे ससुराल वाले ही हैं, मेरा आदमी भी इस हत्या में शामिल था।
उसकी माँ ने दौड़कर उसके मुंह पर हाथ लगाया- हमें कहा है, किसी और को न कह देना। तेरा सुहाग और हमारा जंवाई, ठाकुर छोड़ेगा नहीं।
बेटी बोली - जमीं बड़ी कि जंवाई?

अगली सुबह बाप ने रावळे जाकर सारी बात कह सुनाई । बाप-बेटी की निशानदेही पर पूरे गिरोह का सफाया हुआ। अचानक एक स्त्री ठाकुर के पैरों में गिरकर प्राणदान मांगने लगी। कन्या बोली - बावजी! तूम्बों की बेल यही है, जीवित रही तो फिर तुम्बे ही जनेगी।
सब उसकी तरफ आश्चर्य से देखने लगे! बदला पूरा हुआ, फिर कुंवर जी का क्रियाकर्म हुआ। खैर सामूहिक क्षमादान के युग में इन कहानियों का क्या मोल है? मुद्दे की बात यह है कि उस गांव में अगले सौ साल तक कोई चोरी, डकैती या हत्या का मामला दर्ज नहीं हुआ।

Address

Didwana

Telephone

+919928050327

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when जुगल सिंह शेखावत posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to जुगल सिंह शेखावत:

Share