26/07/2025
अन्धे करते रोज फैसला, सुनें न देखें इधर-उधर
अक्षर से अपराध आँकते न्याय नमित किए नीची नजर ।।
राजनीति में राज रह गया नीति भटक गई है किधर
धर्म का अंकुश उसने तोड़ा, अधर्म ने तोड़ी उसकी कमर ।।
नीति-अनीति
अपराध कथा का है अम्बार, ऐसी ही फिल्मों की भरमार जुल्म का वर्णन दें अखबार, जुल्मी पैदा करें, रोज हजार ।।
अभिव्यक्ति होकर भावों की, मन के निकलें सब उद्गार दुष्कर्मों की कला सिखाना, यह कैसा मौलिक अधिकार?