10/08/2024
**लंका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट**
रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम की पत्नी, सीता, जब रावण द्वारा अपहृत की गईं, तो उन्हें लंका में अशोक वाटिका में कैद कर दिया गया था। श्रीराम ने उनकी खोज के लिए अपने भक्त हनुमानजी को भेजा। हनुमानजी वानरों की सेना के साथ समुद्र पार करके लंका पहुंचे।
हनुमानजी ने लंका में प्रवेश करने के लिए अपनी शक्ति को छोटा कर लिया ताकि राक्षसों की निगाह से बच सकें। उन्होंने लंका में घूमते हुए सीताजी की खोज शुरू की। अंततः वे अशोक वाटिका में पहुंचे, जहाँ उन्होंने सीताजी को बैठा पाया। सीता माता गहरे दुख में थीं, वे श्रीराम का स्मरण कर रही थीं और अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए रो रही थीं।
हनुमानजी ने दूर से ही उन्हें पहचाना और सोचने लगे कि किस प्रकार वे सीताजी से मिलें ताकि उन्हें कोई आशंका न हो। उन्होंने श्रीराम की अंगूठी निकाली और सीताजी के पास जाकर राम कथा का गान करना शुरू किया। सीताजी ने जब राम का नाम सुना, तो उनका ध्यान हनुमानजी की ओर गया।
हनुमानजी ने सीताजी के सामने जाकर उन्हें रामजी की अंगूठी दी और प्रणाम किया। सीताजी ने जब रामजी की अंगूठी देखी, तो उनके हृदय में आशा की किरण जागी। उन्होंने हनुमानजी से पूछा, "आप कौन हैं, और मेरे राम का समाचार कैसे लाए हैं?"
हनुमानजी ने विनम्रता से कहा, "माता, मैं श्रीराम का दास हूँ। प्रभु श्रीराम ने मुझे आपको ढूंढने और उनका संदेश देने के लिए भेजा है। वे जल्द ही आपको रावण के बंधन से मुक्त कराने के लिए यहाँ आएंगे।"
सीताजी ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया और कहा, "हनुमान, तुमने मेरी पीड़ा को कम किया है। मेरे श्रीराम कब आएंगे, यह जानकर मेरे हृदय को शांति मिली है।"
हनुमानजी ने सीताजी से कहा, "माता, आप धैर्य रखें। श्रीराम जल्द ही यहाँ आकर रावण का अंत करेंगे और आपको मुक्त करेंगे। मैं अब लौटकर उन्हें आपका संदेश दूंगा।"
सीताजी ने हनुमानजी को अपना आशीर्वाद देते हुए श्रीराम तक उनका संदेश पहुँचाने का अनुरोध किया। इसके बाद, हनुमानजी ने सीताजी से विदा ली और श्रीराम के पास लौटने के लिए लंका से निकल गए।
इस प्रकार, हनुमानजी ने सीताजी को आश्वासन दिया और उन्हें श्रीराम की ओर से धैर्य रखने का संदेश दिया। यह भेंट सीताजी के लिए उनके कठिन समय में एक बड़ा संबल बना।