
29/08/2025
@ #, मासूम और तोतले लहजे,,
ये दवाओं का असर था,,
या गुनाहों का,,
कि मासूम इतनी जल्दी,,
बड़ी कैसे हो गई,,
ये शब्दों के दांत यूं ही तो नहीं उगे होंगे,,
बेटियों ने कितने दर्द निचोड़ कर पिए होंगे,,
ये बेटियों के कंकाल और दांत,,
यूं ही तो नहीं उगे होंगे--
बेटियों ने कितने धेर्य पिए होंगे,,
मिट्टी का धेर्य यूं हीं तो नहीं फूटा होगा,,
तब जाकर उगे होंगे वीरांगनाओं के दांत,,
हया बेखौफ थी मर्दानगी की सुरक्षा में,,
ये पलकें यूं ही तो नहीं खुली होंगी,,
याद आये तो होंगे कंकालों को देखकर वहीं मुस्कराते होंठ दबी जुबानों के भीतर मासूम कांपते और तोतले लहजे जो होंठों के बिना खुले महका देते थे घर आंगन और खामोश खड़ी दीवारें बोलने लगती थी,,
कितना इंतजार करती थी मां कितनी बार उंगलियों से खोलकर देखती थी मासूम के होंठ कि कब निकलेंगे मेरी लाडो के दांत,,
और कब मेरे जैसे निवाले खाकर बड़ी होगी मेरी लाडो जो हंसेगी खिलखिला कर और उसके नन्हें नन्हें से चमकेंगे दांत,,
मां बेखौफ उंगलियां डालकर मुंह में चबाने को कहती थी फिर आहिस्ता-आहिस्ता से चूसती थी लाडो मां की उंगलियों को पर चोट नहीं लगने देती थी मां चोट का ड्रामा करती थी और लाडो सहम जाती थी मां सारे ड्रामे छोड़ कर लाडो को सीने से लगाकर कहती थी कि देखो मुझे दर्द नहीं होता है क्योंकि मां को दर्द तो होता था पर मासूम के भरोसे के लिए मां चोट भी पी जाती थी सोच कर कि उंगली मासूम के मुंह में हमने ही तो दी थी उसने पकड़ कर तो नहीं चबाई थी मासूम भी भरोसे पर ही मुस्कराता है जिसके आंचल में प्यार और दुलार और भरोसा होता है जहां चोट होती है वहां दर्द तो होता है,
काश ये एहसास खुदके दर्द से पहले कराहा होता,,
तो खुद की चोट से पहले पराई चोट का एहसास जरूर होता,,
तो शायद आज किसी की बेटी न बदचलन दिखती न उसके लहजों में उगते दांत,,
जाने कितने दांतों से नोचे होंगे बेटियों के जिस्म,,
ये आत्मा यूं ही तो बेटियों के जिस्म से रूखसत नहीं हुई होगी,,
ये ढेरों कंकालों में बेटियों के हंसते खेलते जिस्म यूं ही तो धरा के सीने पर कंकालों में नहीं पड़े होंगे,,
मिट्टी का धेर्य यूं ही तो नहीं फूटा होगा,,
तब जाकर उगे होंगे वीरांगनाओं के दांत,,
लेखिका,पत्रकार,दीप्ति,चौहान