11/04/2025
पत्तल में पोषण, ज़मीन पर तालीम – ये है ‘न्यू इंडिया’ का मिड डे मील मॉडल!"*
*शिक्षा का मंदिर है, या प्रशासन की किचन-गर्दी?*
अयोध्या के कुशमाहा विद्यालय में ज़मीन पर बैठे बच्चों ने जब पत्तल में मिड डे मील खाया, तब सिर्फ खाना नहीं निगला—बल्कि निगल गए सरकारी वादों की वो कड़वी हकीकत जो हर बजट भाषण में मीठी लगती है।
कभी कहते थे – ‘बेटा पढ़ेगा, देश बढ़ेगा!’
अब लगता है – ‘बेटा पत्तल में खाएगा, अफसर फाइल में छुपाएगा!’
बेसिक शिक्षा अधिकारी साहब ने बयान दिया जैसे स्क्रिप्ट पहले से तैयार हो – “जांच होगी, दोषी नहीं बख्शे जाएंगे।” जनाब, अगर आपकी जांचों से ही बच्चे पढ़-लिख जाते तो हर स्कूल से यूपीएससी टॉपर निकलते!
*वायरल वीडियो में जो दिखा, वो भ्रष्टाचार की रसोई का मेन्यू था*
1. पत्तल पर परोसा ‘सम्मानहीन भोजन’
2. ज़मीन पर बैठा ‘भविष्य का भारत’
3. और बैकग्राउंड में बजती ‘सरकारी वादों की थीथर म्यूज़िक’
सवाल ये नहीं कि बच्चे पत्तल में क्यों खा रहे हैं। सवाल ये है कि *“सरकारी फाइलों में तो सबकुछ ‘संपन्न’ है, फिर ज़मीन पर ये ‘अपमान’ क्यों है?”*
कहीं बर्तन किसी अफसर के घर शादी में तो नहीं चले गए? या फिर टेंडर में बर्तन की जगह ‘कागज़ की प्लेटों’ का जिक्र था?
शायद अब अगला कदम ये होगा कि “बच्चों को स्पून की जगह पत्ते दो, पानी की जगह नल देखो और शिक्षा की जगह भाषण भरो।”
सरकार को ये भी बताना चाहिए कि अगली स्कीम क्या है –
*‘पत्तल प्रोत्साहन योजना’ या ‘गिलास रहित गर्व अभियान’?*
विडंबना देखिए, राम की नगरी में बच्चों को परोसा गया मिड डे मील, लेकिन मर्यादा की सारी सीमाएं लांघती ये व्यवस्था खुद ही भूखी नज़र आती है – ईमानदारी की!
सरकार को समझना होगा – बच्चों का पोषण सिर्फ पेट नहीं, आत्मसम्मान से भी जुड़ा है।
वरना जनता अगली बार वोट की पत्तल उठा कर कहेगी –
*“अब तालीम नहीं, ताना मिलेगा तुम्हें!”*