17/08/2025
Paper Leak से लेकर SSC Officer बनने तक का सफर
एक गरीब किसान का बेटा, जो दिल्ली आकर SSC की तैयारी करता है। पेपर लीक होने से उसका सपना टूटता है, लेकिन हार नहीं मानता। अख़बार बेचकर और छोटे-मोटे काम करके पढ़ाई जारी रखता है । और अपने सपनों को पूरा करता है। ये कहानी है, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव की, जहाँ पक्की सड़क भी मुश्किल से पहुँची थी, वहीं रहता था एक साधारण किसान, रामपाल। उसके पास कुल मिलाकर आधा बीघा ज़मीन थी — इतनी कम कि खेती से मुश्किल से दो वक्त का खाना आता।
गाँव के बाकी किसानों के पास जहाँ-जहाँ हरियाली फैली थी, रामपाल का खेत बरसात में हरा और बाकी साल बंजर पड़ा रहता। रामपाल के घर में उसकी पत्नी, और उनका एक बेटा — अर्जुन।
अर्जुन बचपन से ही अलग था। बाकी बच्चे खेतों में खेलते, नदी में कूदते, तो वह अक्सर गाँव के प्राइमरी स्कूल की टूटी-फूटी बेंच पर बैठा किताबों में डूबा रहता। उसके पास किताबें भी नई नहीं होतीं — कई पन्ने फटे हुए, जिल्द घिसी हुई। लेकिन उसकी आँखों में एक अलग चमक थी।
स्कूल के मास्टरजी, रघुवंशी सर, अक्सर कहते —
> “अर्जुन, तू इस गाँव की शान बनेगा। बस पढ़ाई मत छोड़ना।”
रामपाल के लिए यह सुनना गर्व की बात थी, लेकिन अंदर ही अंदर उसे डर भी था। खेत से इतना पैसा कहाँ आता कि बेटे को आगे पढ़ा सके? कई बार सोचता, “क्यों न इसे भी मेरे साथ खेत में लगा दूँ…?” लेकिन हर बार अर्जुन की पढ़ाई में लगन देखकर चुप हो जाता।
गाँव में हर साल नतीजे आते, तो अर्जुन हमेशा पहले नंबर पर होता। बाकी बच्चे उसे “मास्टर का बेटा” कहकर चिढ़ाते, लेकिन वह बस मुस्कुरा देता।
रामपाल का घर मिट्टी का था, छप्पर ऊपर से टपकता था। बरसात में माँ कपड़े और बर्तन संभालती रहती, ताकि भीग न जाएँ। चूल्हे पर लकड़ी जलाकर खाना बनता — कभी दाल, कभी सिर्फ आलू और रोटी।
पैसे की तंगी इतनी थी कि अर्जुन के पास स्कूल बैग भी नहीं था। माँ ने पुरानी बोरी काटकर बैग जैसा सिल दिया था, जिसमें वह किताबें और एक टूटी पेंसिल रखता।
एक दिन गाँव में बिजली आई, तो सबने सोचा ज़िंदगी आसान हो जाएगी, लेकिन रामपाल के घर में मीटर लगवाने के भी पैसे नहीं थे। अर्जुन रात को लालटेन की मद्धम रोशनी में पढ़ता।
एक शाम अर्जुन खेत के किनारे बैठा किताब पढ़ रहा था। रामपाल पास आकर बोला —
> “बेटा, इतनी पढ़ाई करेगा तो करेगा क्या? गाँव में मास्टर बन जाएगा?”
अर्जुन ने ऊपर देखा और बोला —
> “नहीं बाबूजी, मैं अफसर बनूँगा… बड़ा वाला… जो गाँव के स्कूल, सड़क, अस्पताल बनवाता है।”
रामपाल चुप हो गया। उसे बेटे का सपना बड़ा लगा, लेकिन वह जानता था कि उसके लिए पैसों की ज़रूरत है — बहुत पैसों की।
अर्जुन ने इंटर पास किया और फिर गाँव के इंटर कॉलेज में भी टॉप कर गया। यह खबर गाँव से होते हुए तहसील तक पहुँची। लोगों ने रामपाल से कहा,
> “भाई, तेरा लड़का बहुत तेज़ है, इसे शहर भेज।”
लेकिन शहर का मतलब था किराया, पढ़ाई का खर्च, खाना — ये सब कहाँ से आता? महीनों सोचने के बाद रामपाल ने फैसला किया — वह अपनी आधी ज़मीन बेच देगा।
ज़मीन बिकने का मतलब था खेत की आय और भी कम हो जाएगी, लेकिन उसने सोचा,
> “अगर अर्जुन पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बन गया, तो यह कुर्बानी छोटी होगी।”
और उसने अपनी आधी जमीन बेचकर, अर्जुन को दिल्ली पढ़ने के लिए, छोड़ने चल दिया।
गाँव से दिल्ली तक का सफर अर्जुन ने पहली बार किया। ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते हुए वह सोच रहा था — “अब मेरी असली लड़ाई शुरू होती है।”
रामपाल ने दिल्ली पहुँचकर एक छोटे से कमरे में उसे छोड़ते हुए कहा —
> “बेटा, मेहनत से पढ़। हम गरीब हैं, लेकिन हिम्मत मत हारना।”
अर्जुन ने सिर हिलाया और उसकी आँखों में एक वादा था — कि वह कभी पीछे नहीं हटेगा।
भाग 2 – दिल्ली की गलियों में सपनों की दौड़
दिल्ली का माहौल अर्जुन के लिए बिल्कुल नया था। गाँव की शांत हवाओं की जगह यहाँ गाड़ियों का शोर, हॉर्न, भीड़ और भागती-दौड़ती ज़िंदगी थी। वह जिस कमरे में रहने आया था, वो मुकरजी नगर के पास एक तंग सी गली में था — मुश्किल से 8 बाई 10 का कमरा, जिसमें लोहे का एक पुराना पंखा, टूटी चारपाई, और दीवार पर नमी के पीले धब्बे थे।
किराया ज़्यादा था, लेकिन पास में ही लाइब्रेरी और कोचिंग सेंटर होने की वजह से उसने यही जगह चुनी।
अगले ही दिन अर्जुन लाइब्रेरी पहुँचा। वहाँ हर टेबल पर लड़के-लड़कियां किताबों में डूबे थे। कोई मॉक टेस्ट दे रहा था, कोई नोट्स बना रहा था।
एक कोने में जगह मिली, तो उसने अपनी पुरानी कॉपी और कलम निकाली। उसकी किताबें पुरानी और सेकेंड-हैंड थीं, जिनके पन्नों में पुराने नोट्स और किसी और की लिखावट थी।
पास बैठा लड़का नए-नए गाइड बुक्स के साथ पढ़ रहा था। अर्जुन को थोड़ी शर्म महसूस हुई, लेकिन उसने सोचा —
> “मेरे पास जो है, उसी से टॉप करना है।”
सुबह 5 बजे उठना, पानी भरने के लिए लाइन लगाना, फिर 6 बजे से पढ़ाई शुरू करना — यही उसकी दिनचर्या थी। कोचिंग के लिए जाने में रोज़ 3-4 घंटे लगते, लेकिन वहाँ के टीचर्स अच्छे थे।
रामपाल हर महीने पैसे भेजता, लेकिन अब आधी ज़मीन बिक जाने के बाद खेत से बहुत कम आमदनी होती। कई बार महीने के आखिरी दिनों में अर्जुन को चाय और बिस्किट खाकर दिन गुज़ारना पड़ता।
अर्जुन का लक्ष्य था SSC CGL की परीक्षा। उसने पिछले टॉपरों के इंटरव्यू देखे, स्ट्रेटजी नोट की, और खुद के लिए टाइम-टेबल बनाया।
सुबह क्वांट, दोपहर इंग्लिश, शाम को रीजनिंग और जीके।
वो महीने में एक बार ही घर फोन करता, क्योंकि हर कॉल पर माँ की आवाज़ सुनकर दिल भर आता। माँ हमेशा कहती,
> “बेटा, थक मत जाना… हम सब तेरे साथ हैं।”
आखिरकार परीक्षा का दिन आया। अर्जुन का सेंटर कश्मीर में आया। यह सुनकर वह थोड़ा घबराया, लेकिन उसने सोचा —
> “जगह कोई भी हो, पेपर तो वही है।”
कश्मीर का सफर उसके लिए पहली बार था। वहाँ की ठंडी हवा, पहाड़, और लोग — सब उसे नए लगे। उसने परीक्षा अच्छे से दी।
पेपर देकर बाहर आया तो दिल में सुकून था — शायद यह उसका पहला कदम सफलता की ओर था।
लेकिन कुछ ही हफ्तों में खबर आई — SSC का पेपर लीक हो गया है। परीक्षा रद्द कर दी गई है।
यह सुनकर अर्जुन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
रामपाल ने फोन पर कहा,
> “बेटा, अब हमारे पास पैसे नहीं हैं… अगली बार की फीस और किराया कैसे देंगे, पता नहीं।”
अर्जुन ने फोन काटा, दीवार के सहारे बैठ गया, और घंटों कुछ नहीं बोला। उसने सोचा —
> “क्या मेरी मेहनत बेकार चली गई? क्या मुझे वापस गाँव लौटना पड़ेगा?”
कमरे में अंधेरा था, लेकिन उसके अंदर उससे भी गहरा अंधेरा फैल चुका था।
दो दिन बाद अर्जुन ने फैसला किया — हार नहीं मानेगा।
लेकिन अब पढ़ाई के साथ उसे पेट भरने और किराया चुकाने का इंतज़ाम भी करना था।
वह सुबह अखबार बाँटने लगा — गली-गली साइकिल चलाकर, ठंडी हवा में हाथ सुन्न होते हुए भी।
दोपहर में वह किसी ढाबे पर तिफ़िन पहुँचाने का काम करता, और रात को लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ता।
कभी-कभी उसे भूखे पेट पढ़ना पड़ता, लेकिन उसकी आँखों में फिर से वही पुरानी चमक लौट आई थी —
> “अगर हालात मेरे खिलाफ हैं, तो मुझे और मज़बूत बनना पड़ेगा।”
मुकरजी नगर के कई लोग उसकी कहानी जानते थे। कुछ सीनियर छात्रों ने उसे पुराने नोट्स और किताबें दीं। लाइब्रेरी के मालिक ने भी कहा —
> “पैसे मत देना, बेटा। जब अफसर बन जाना, तब आकर चाय पिला देना।”
अर्जुन ने महसूस किया कि बड़े शहर में भी कुछ लोग दिल से अमीर होते हैं।
भाग 3 – संघर्ष की धूप में तपता इरादा
मुखर्जी नगर की तंग गलियों में अर्जुन की सुबह अब पहले से भी जल्दी होने लगी।
अलार्म 4:30 पर बजता, वह तुरंत उठ जाता — एक गिलास पानी पीता और बैग में अखबार का बंडल रखकर साइकिल से निकल पड़ता।
ठंडी हवा में अखबार बाँटते-बाँटते कभी हाथ सुन्न हो जाते, तो वह उन्हें रगड़कर गर्म करता और आगे बढ़ जाता।
उसके लिए ये अखबार सिर्फ कमाई का जरिया नहीं थे, बल्कि समय का प्रबंधन सीखने का तरीका भी थे।
6:30 बजे तक अखबार बाँटकर वह वापस कमरे में आता, नहाकर नाश्ता करता (अक्सर सिर्फ चाय और ब्रेड), और फिर 7 बजे से पढ़ाई शुरू कर देता।
अर्जुन ने तय कर लिया था कि अब समय की एक-एक बूँद का इस्तेमाल पढ़ाई में करेगा।
उसने अपने लिए एक सख्त टाइम-टेबल बनाया, और उसी टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ाई करने लगा।
इसके अलावा तिफ़िन डिलीवरी का काम वह दोपहर और शाम को करता था, ताकि किराया और खाने का खर्च निकल सके।
कई बार अकेलेपन का बोझ उसे तोड़ने लगता। गाँव में त्योहार होते, तो माँ का फोन आता,
> “बेटा, काश तू यहाँ होता, सब तेरा इंतज़ार करते हैं।”
अर्जुन बस मुस्कुरा कर कहता,
> “अगले साल, माँ… जब अफसर बन जाऊँगा।”
फोन काटने के बाद उसकी आँखें भर आतीं, लेकिन वह जानता था कि यह आँसू भी उसकी हिम्मत का इम्तिहान हैं।
धीरे-धीरे अर्जुन की पहचान कुछ ऐसे लड़कों से हुई जो उसी की तरह छोटे शहरों से आए थे और SSC की तैयारी कर रहे थे।
वे सब लाइब्रेरी में साथ बैठते, मॉक टेस्ट शेयर करते, और एक-दूसरे को मोटिवेट करते।
एक बार एक दोस्त ने मजाक में कहा,
> “अर्जुन भाई, तेरी मेहनत देखकर लगता है तू एक दिन जरूर टॉपर बनेगा।”
अर्जुन ने हंसकर जवाब दिया,
> “टॉपर नहीं बना तो भी चलेगा, लेकिन कोशिश टॉपर जैसी करनी है।”
अर्जुन को समझ आ गया था कि सिर्फ किताबें रटने से कुछ नहीं होगा।
उसने पिछले सालों के पेपर हल करने शुरू किए,
ऑनलाइन मॉक टेस्ट देना शुरू किया,
और हर हफ्ते अपनी गलती की लिस्ट बनाकर उसे सुधारने की आदत डाली।
वह हर बार खुद से कहता,
> “पिछली बार मेरा पेपर रद्द हुआ, इस बार मैं खुद को रद्द नहीं होने दूँगा।”
एक दिन उसे गाँव से एक चिट्ठी आई — उसके पिता ने लिखा था:
> “बेटा, खेत में इस साल फसल अच्छी नहीं हुई। कर्ज़ बढ़ रहा है। लेकिन तू चिंता मत कर, हम यहाँ संभाल लेंगे। तू बस पढ़ाई पर ध्यान दे।”
यह पढ़कर अर्जुन का दिल भारी हो गया। उसे पता था कि पिता की हालत अच्छी नहीं है, फिर भी वे उसकी हिम्मत बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
उसने चिट्ठी को मेज़ पर रखा और खुद से वादा किया —
> “अब यह सिर्फ मेरा सपना नहीं, यह मेरे परिवार का कर्ज़ है… और मैं इसे हर हाल में चुकाऊँगा।”
आखिरकार SSC का नया नोटिफिकेशन आया। अर्जुन ने बिना देर किए फॉर्म भर दिया।
इस बार उसकी तैयारी पहले से कई गुना मजबूत थी।
उसने हर सेक्शन में अपना स्कोर ट्रैक किया और कमजोर टॉपिक को दिन में बार-बार दोहराया।
परीक्षा से ठीक एक महीने पहले, जिस ढाबे में वह तिफ़िन पहुँचाने का काम करता था, वह बंद हो गया।
अब उसकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खत्म हो गया।
कुछ दोस्तों ने मदद की पेशकश की, लेकिन अर्जुन ने मना कर दिया।
> “मैं अपनी लड़ाई खुद लड़ूँगा,” उसने कहा।
उसने नया काम ढूँढा — एक छोटी सी फोटोस्टेट दुकान पर, जहाँ वह शाम को कॉपी-बुक्स बेचने और प्रिंट निकालने में मदद करता।
परीक्षा के दिन नजदीक आते ही अर्जुन की मेहनत और तेज हो गई।
रात को वह छत पर बैठकर आसमान देखता और सोचता,
> “इन तारों में शायद मेरी मंज़िल भी चमक रही है… बस थोड़ी दूर है।
परीक्षा की तारीख़ नज़दीक आ चुकी थी। मुकरजी नगर की गलियों में अब अर्जुन के कदम और तेज़ हो गए थे।
उसका रूटीन पहले से भी सख़्त हो गया था —
सुबह अख़बार बाँटना, दिन में पढ़ाई, शाम को फोटोस्टेट की दुकान पर काम, और रात को मॉक टेस्ट।
वह जानता था कि यह उसके जीवन का सबसे अहम मोड़ है।
अगर इस बार वह पास हो गया, तो उसका और उसके परिवार का भविष्य बदल जाएगा।
अगर हार गया, तो शायद वापस गाँव लौटना पड़ेगा — कर्ज़ और गरीबी के बोझ तले।
सुबह 4 बजे उठकर उसने नहा-धोकर भगवान को प्रणाम किया।
पिता की चिट्ठी और माँ की तस्वीर अपने बैग में रखी — यह उसके लिए शुभ संकेत थे।
सेंटर पहुँचकर उसने देखा कि हजारों उम्मीदवार लाइन में खड़े थे।
चेहरों पर तनाव, किताबों की आख़िरी झलक, और मोबाइल पर नोट्स पढ़ते लोग।
अर्जुन चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा।
पेपर शुरू हुआ।
क्वांट में उसके सारे शॉर्टकट्स काम आए, इंग्लिश में उसने सारे कठिन शब्द पहचान लिए,
रीजनिंग में टाइम मैनेजमेंट बिल्कुल सही रहा, और जीके में भी उसने अच्छा प्रदर्शन किया।
पेपर ख़त्म होने के बाद उसके दिल में सुकून था —
“इस बार कुछ अलग हुआ है… जैसे किस्मत भी साथ दे रही है।”
अब शुरू हुआ सबसे कठिन दौर — इंतज़ार का।
हर दिन रिज़ल्ट का नोटिफिकेशन देखने के लिए वह इंटरनेट कैफ़े जाता, लेकिन कोई अपडेट नहीं आता।
रात को छत पर बैठकर वह सोचता —
“क्या मैं पास हो पाऊँगा? अगर नहीं, तो…?”
लेकिन फिर खुद को समझाता —
“अभी डरने का नहीं, भरोसा रखने का वक्त है।”
आख़िरकार वह दिन आ ही गया।
सुबह-सुबह उसके एक दोस्त ने फोन करके कहा,
“अर्जुन भाई, रिज़ल्ट आ गया है, जल्दी देख!”
कांपते हाथों से उसने इंटरनेट पर अपना रोल नंबर डाला।
स्क्रीन पर जो शब्द उभरे, उसने उसकी आँखों में आँसू ला दिए —
“Congratulations! You have qualified for Tier-2.”
उसने तुरंत पिता को फोन किया —
“बाबूजी… पहला राउंड निकल गया!”
पिता की आवाज़ भर्रा गई,
“शाबाश बेटा… आगे बढ़।”
Tier-2 में प्रतियोगिता और भी कठिन थी, लेकिन अब अर्जुन के पास आत्मविश्वास था।
उसने अपना काम का टाइम और घटा दिया, और पढ़ाई को और गहन कर दिया।
इंटरव्यू (Tier-3) के लिए उसने बोलने की प्रैक्टिस शुरू की —
शीशे के सामने खड़े होकर सवालों के जवाब देना, और दोस्तों के साथ मॉक इंटरव्यू करना।
इंटरव्यू रूम में चार अफसर बैठे थे।
पहला सवाल आया —
“आप दिल्ली में किन हालात में पढ़े?”
अर्जुन ने बिना झिझक अपने संघर्ष की पूरी कहानी सुनाई —
कैसे अख़बार बाँटते हुए, तिफ़िन पहुँचाते हुए, फोटोस्टेट पर काम करते हुए उसने पढ़ाई पूरी की।
पैनल के एक सदस्य ने मुस्कुराकर कहा —
“आपकी कहानी वाकई प्रेरणादायक है। ऐसे लोग ही देश को बदलते हैं।”
कुछ हफ्तों बाद, फाइनल रिज़ल्ट आया।
अर्जुन का नाम मेरिट लिस्ट में था — और उसके सामने लिखा था:
“Selected for Officer Post”
उसने मोबाइल पर यह देख कर पहले माँ को फोन किया,
“माँ… तुम्हारा बेटा अफसर बन गया।”
उधर से रोते हुए जवाब आया,
“आज तेरे पिता का सपना पूरा हुआ, बेटा।”
जब अर्जुन पहली बार यूनिफ़ॉर्म पहनकर गाँव लौटा, तो पूरा गाँव उसे देखने उमड़ पड़ा।
लोग कहते —
“देखो, ये वही अर्जुन है जो बोरी का बैग लेकर स्कूल जाता था।”
पिता ने गर्व से उसे गले लगाया और कहा,
“बेटा, तूने मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा बोझ उतार दिया।”
सुबह उठते ही पिता बोले,
“बेटा, अब तेरी बारी है गाँव के लिए कुछ करने की।”
अर्जुन ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
“बाबूजी, यही तो मेरा सपना है।”
अर्जुन ने गाँव के स्कूल में नई बेंच और ब्लैकबोर्ड लगवाए।
बच्चों के लिए मुफ्त किताबें और यूनिफॉर्म का इंतज़ाम किया।
पक्की सड़क और एक छोटा स्वास्थ्य केंद्र भी बनवाया।
लोगों ने पहली बार महसूस किया कि उनका बेटा सच में उनकी ज़िंदगी बदलने आया है।
जब भी उसे दिल्ली में मीटिंग के लिए जाना होता, वह एक बार ज़रूर मुकरजी नगर की उसी गली में जाता जहाँ वह किराए के कमरे में रहा था।
पुरानी लाइब्रेरी के मालिक को देखकर उसने कहा,
“आपने कहा था कि जब अफसर बनूँगा, तो चाय पिलाऊँगा… आज वही दिन है।”
लाइब्रेरी वाले ने हंसकर कहा,
“चाय छोड़ो बेटा, तुम तो अब पूरे मोहल्ले को मिठाई खिला सकते हो।”
अर्जुन अक्सर छोटे कस्बों और गाँवों के स्कूलों में जाकर बच्चों को अपनी संघर्ष की यात्रा सुनाता।
वह कहता,
“गरीबी आपको रोक नहीं सकती, अगर आप मेहनत और ईमानदारी से काम करें।
हालात कठिन होंगे, लेकिन हार मानना असली हार है।”
अब अर्जुन जहाँ भी जाता, लोग उसकी इज़्ज़त करते।
और अर्जुन ने साबित कर दिया — गरीबी और मुश्किलें आपको रोक नहीं सकतीं।
अगर मेहनत और इमानदारी साथ हो, तो हर सपना हकीकत बन सकता है।
याद रखो, असली ताकत वही है जो मिट्टी से उठकर आसमान तक पहुंचे।