Fact With BD

Fact With BD इस page पर आप सभी को short विडियो ही मिलेंगे जिसे देखने में आप सभी कुछ न कुछ सीखने को जरूर मिलेगा ।

14/10/2025

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10/10/2025

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07/10/2025

भाग 1 — “अमरपुर की अमरूद वाली अम्मा” (लगभग 1000 शब्द)

अमरपुर के पुराने बाज़ार की गली नंबर पाँच में रोज़ सुबह एक औरत अपनी छोटी-सी टोकरी लेकर बैठ जाती थी — मीरा देवी। उम्र साठ के पार थी, पर चेहरे की झुर्रियों में मेहनत और आत्मसम्मान दोनों चमकते थे। उसकी टोकरी में हरे-हरे, पके हुए मीठे अमरूद सजे रहते। लोग उसे “अमरूद वाली अम्मा” के नाम से जानते थे।

मीरा देवी की दो बेटियाँ थीं — बड़ी आरती मिश्रा, जो फौज में कैप्टन थी, और छोटी प्रिया मिश्रा, जो इसी जिले की डीएम (जिलाधिकारी) थी। पूरे शहर में लोग कहते थे, “देखो, एक मां की दो बेटियाँ — एक देश की रक्षा करती है, दूसरी जिले की।”
लेकिन मीरा देवी को कभी इस शोहरत का घमंड नहीं हुआ। वो आज भी अपनी पुरानी आदत नहीं छोड़ पाईं — अमरूद बेचना।
कभी-कभी लोग कहते, “अम्मा, अब तो आपकी बेटियाँ बड़े ओहदे पर हैं, आपको ये सब करने की क्या ज़रूरत?”
मीरा देवी बस मुस्कुरा देतीं — “बेटा, मेहनत छोड़ दूँगी तो साँस भी बोझ लगने लगेगी।”

उस दिन भी वो सड़क किनारे बैठी थीं। धूप धीरे-धीरे तेज़ हो रही थी। तभी मोटरसाइकिल की घर्र-घर्र की आवाज़ आई। एक बुलेट बाइक उनके सामने आकर रुकी। बाइक से उतरा लंबा, चौड़ा कद-काठी वाला एक पुलिस इंस्पेक्टर — राजेश ठाकुर।

राजेश ने बिना कुछ बोले टोकरी से एक अमरूद उठाया, चाकू निकाला और काटकर खाने लगा।
मीरा देवी सकुचाईं — “साहब, अमरूद मीठे हैं, चाहे तोल दूँ?”
राजेश ने रौब में कहा, “हाँ हाँ, दे एक किलो।”
मीरा देवी ने कांपते हाथों से तोलकर पॉलीथिन में भर दिया।
राजेश ने बैग लिया, फिर एक टुकड़ा मुँह में डालते ही मुँह बिचकाया —
“हूऽ... ये क्या कचरा बेचा है तूने? बिलकुल बेस्वाद!”

मीरा देवी बोलीं, “साहब, मीठे हैं... आप दूसरा देख लीजिए।”
राजेश ठठाकर हँसा — “चुप! तेरे अमरूद का दाना भी मीठा नहीं। तूने मुझे ठगा है, और सुन, मैं एक रुपया भी नहीं दूँगा।”

“साहब, मेहनत से लाए हैं, कुछ तो पैसे दे दीजिए,” मीरा ने धीमे स्वर में कहा।
राजेश का पारा चढ़ गया। उसने झुककर पूरी टोकरी उठाई और सड़क के पार फेंक दी।
टोकरी पलटी, और सारे अमरूद सड़क व नाली में बिखर गए।

भीड़ जमा हो गई। किसी ने वीडियो बनाने का सोचा, किसी ने तमाशा देखने का।
मीरा देवी की आँखों में आँसू थे, हाथ काँप रहे थे। वो बड़बड़ाईं, “हे भगवान, ये दिन भी दिखाना था।”

थोड़ी दूर एक घर की छत पर अंकित, एक कॉलेज छात्र, यह सब देख रहा था।
वो मीरा अम्मा को बचपन से जानता था। उसने तुरंत मोबाइल निकाला और पूरा वीडियो रिकॉर्ड कर लिया।
राजेश ठाकुर अपनी मूँछों पर ताव देता हुआ बाइक स्टार्ट करके निकल गया।
भीड़ धीरे-धीरे छँट गई, लेकिन सड़क पर बिखरे अमरूदों के साथ मीरा देवी का सम्मान भी कुचल गया था।

अंकित नीचे उतरा, मीरा अम्मा के पास गया और धीरे से बोला,
“अम्मा, आप चिंता मत करो, मैं हूँ न। मैं सब दिखाऊँगा दुनिया को कि ये इंस्पेक्टर क्या करता है।”

उसने वीडियो सेव किया और देर रात वही वीडियो कैप्टन आरती मिश्रा को व्हाट्सएप पर भेज दिया।
नीचे लिखा —

> “दीदी, आज बाजार में आपकी मां के साथ जो हुआ, वो देख लीजिए।”

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हजारों किलोमीटर दूर, सियाचिन के पास की बर्फीली चौकी पर आरती अपनी राइफल साफ कर रही थी।
मोबाइल में मैसेज की टोन बजी। उसने फोन उठाया, वीडियो प्ले किया।

जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, आरती की आँखें लाल होती गईं।
जब उसने देखा कि एक इंस्पेक्टर उसकी मां की टोकरी सड़क पर फेंक देता है —
उसके अंदर का सैनिक उफन पड़ा।

उसने फोन कसकर पकड़ा, दाँत भींचे —
“मेरी मां जिसने हमें पालने के लिए अपना सब कुछ दिया, आज सड़क पर रुलाई जा रही है...!”

उसने फौरन वीडियो अपनी छोटी बहन, डीएम प्रिया मिश्रा को फॉरवर्ड किया और फोन लगाया।
प्रिया उस वक्त अपने ऑफिस में मीटिंग में थी।

“दीदी, सब ठीक?” उसने पूछा।
आरती की आवाज़ भारी थी — “नहीं, कुछ भी ठीक नहीं है। मैंने तुझे एक वीडियो भेजा है, देख और मुझे कॉल कर।”

प्रिया ने मीटिंग रोक दी, वीडियो खोला।
वीडियो खत्म होते ही उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
वो कुछ पल शांत रही, फिर फोन पर बोली —
“दीदी, अब ये मेरा इलाका है, मैं इसे कानून के तरीके से संभालूँगी।”

आरती ने कहा, “ठीक है, पर उसे ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए कि उसकी रूह काँप जाए।”
प्रिया बोली, “आप भरोसा रखिए, अब ये मेरा काम है।”

उसने फोन काटा और अपनी टेबल से उठी।
मीटिंग में मौजूद अफसरों से बोली,
“मीटिंग खत्म — सब जा सकते हैं।”

उसके चेहरे पर अब एक डीएम नहीं, बल्कि बेटी का संकल्प था।
वो जानती थी — अब इंसाफ सिर्फ कागजों पर नहीं लिखा जाएगा,
बल्कि सच्चाई के मैदान में उतरकर लिया जाएगा।

07/10/2025

👉 डाकू जिसने भगवान को लूटना चाहा | Buddhist & Spiritual Motivational Story | गोवर्धन डाकू की कथा

05/10/2025

गोवर्धन का नाम सुनते ही गाँव-शहर में कुछ लोगों की आँखों में डर की हल्की सी चमक आ जाती थी। “गोवर्धन डाकू”—यह नाम किसी खतरनाक, निडर और चालाक आदमी की तस्वीर खींच देता। कहते थे उसने राजा का खजाना लूटा, व्यापारियों को घेरा, सिपाहियों को छकाया। लेकिन असलियत उतनी सरल नहीं थी। गोवर्धन ऐसा नहीं था कि जन्म से बुरा हो—परिस्थितियों ने उसे कठोर बना दिया था। भीतर कहीं एक खालीपन था जो कभी-कभी उसके मन में हूक उठाता।

एक दिन राजकर्मियों के पीछा करते-करते वह थक चुका था। घोड़ा छोड़, पैदल भागते हुए वह एक खुले मैदान में पहुँचा, जहाँ लोगों की भीड़ थी। सत्संग चल रहा था। पंडित परशुराम महाराज कथा सुना रहे थे—“वृन्दावन में आज यशोदा मैया ने अपने नन्हें कान्हा को सजाया—सोने की करधनी, लकुटी, और रूप ऐसा कि देवता भी निहारते रह जाएँ।” गोवर्धन थका था, पर रुका। उसे लगा, इतने लोगों के बीच छिपना सबसे सुरक्षित होगा।

पंडित की आवाज़ में कुछ था—ममता, सरलता और शांति। गोवर्धन सुनता गया। कथा में जब कन्हैया की माखन-लीला और नटखटपन का ज़िक्र हुआ, तो उसके भीतर कुछ हिल गया। वह सोचने लगा, “क्या सचमुच कोई इतना प्यारा हो सकता है कि चोर भी उसे देखकर बदल जाए?” तभी उसके भीतर से शब्द निकले—“जब तक मैं उस बालक को लूटकर नहीं लाऊँगा, पानी नहीं पियूँगा!”

सभा में सन्नाटा छा गया। पंडित ने मुस्कुराकर कहा, “ठीक है, जब बल न चले, तब यह माखन-मिश्री खा लेना।” गोवर्धन ने वह माखन-मिश्री बांध ली। शायद यह किसी और यात्रा की शुरुआत थी—एक ऐसी यात्रा जिसकी उसे खुद खबर नहीं थी।

अगले कई दिन गोवर्धन ब्रज की गलियों में भटकता रहा। हर किसी से पूछता—“श्याम सुंदर कहाँ है?” लोग हँसते—“गाय चराता है, माखन चुराता है, वही तो!” पर किसी ने ठिकाना नहीं बताया। धीरे-धीरे उसकी पुरानी कठोरता में दरार पड़ने लगी। वह रातें जंगल में बिताता, दिन में बच्चों को खेलते देखता। हर बार “श्याम सुंदर” नाम उसके भीतर कुछ नया जगा देता।

एक सुबह उसने देखा—एक बालक, पीतांबर पहने, कमर में लकुटी, चेहरे पर शरारती मुस्कान। वही तो था! गोवर्धन के कदम अपने आप बढ़ गए। बालक की आँखों में ऐसी चमक थी कि गोवर्धन की बंदूक तक शर्माने लगी। वह बस खड़ा रह गया।

“कौन हो तुम?” बालक ने पूछा।
“गोवर्धन,” उसने धीरे कहा।
बालक हँस पड़ा, “अच्छा नाम है! गाय चराने आए हो क्या?”
गोवर्धन के होंठ काँप गए। उसने पंडित की दी हुई माखन-मिश्री निकाली और कहा, “ये लो, तुम्हारे लिए।”
बालक ने मुस्कुराकर वह ली। उसी पल गोवर्धन की आँखों से आँसू झर पड़े। वह समझ नहीं पाया कि यह कमजोरी है या मुक्ति। उस दिन उसके भीतर कुछ टूट गया—और कुछ नया जन्म लेने लगा।

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दिन बीतते गए। गोवर्धन फिर-फिर उस बालक को देखने आता। बालक की हँसी, उसकी सरल बातें—सब कुछ गोवर्धन को भीतर तक बदल रहे थे। पर बाहर की दुनिया वैसी ही थी। पुराने साथी सोचने लगे, “गोवर्धन पागल हो गया है!”
एक रात वे उसके पास आए। “क्या अब तू दूध-दही में डूबा रहेगा? चल, आज राजा के बंगले पर धावा बोलते हैं!”
गोवर्धन चुप रहा। बोला, “अब नहीं।”
वे हँसे, “डाकू का दिल भर गया?”
गोवर्धन ने सिर झुका लिया—“शायद।”

उसी रात खबर आई कि राजकर्मी इलाके में लौट आए हैं। साथी बोले, “आज नहीं गए तो पकड़े जाएँगे!” पर गोवर्धन अब लड़ना नहीं चाहता था। उसने महसूस किया कि अब उसके भीतर हथियार उठाने की हिम्मत नहीं बची—बल्कि अब वह सिर्फ़ शांति चाहता था।

अगली सुबह जब वह श्याम सुंदर को देखने गया, तभी सिपाही आ पहुँचे। जंगल में मुठभेड़ हुई। गोवर्धन ने सैनिकों से लड़ने के बजाय गाँववालों को बचाने की कोशिश की। लेकिन उसके पुराने साथी समझे—वह धोखा दे रहा है। उन्होंने पीछे से वार किया। गोवर्धन ज़मीन पर गिर पड़ा, खून बहने लगा।

बेहोशी में उसने श्याम सुंदर का चेहरा देखा—वही मुस्कान, वही आँखें। जैसे वह कह रहा हो—“मत डर, सब ठीक होगा।” तभी पंडित परशुराम और कुछ गाँववाले पहुँचे। उन्होंने गोवर्धन को संभाला। पंडित ने कहा, “बेटा, भगवान का नाम जप। जो गिरा है, वही उठ सकता है।”

घायल गोवर्धन ने धीमे स्वर में कहा, “मैं बदलना चाहता हूँ। क्या मेरा अतीत मुझे माफ करेगा?”
पंडित ने उत्तर दिया, “ईश्वर माफ़ करने के लिए ही हैं। पर पहले खुद को माफ़ करना सीखो।”

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धीरे-धीरे गोवर्धन ने नया जीवन शुरू किया। उसने चोरी छोड़ दी। गाँव में गायों की रखवाली करता, बच्चों को कहानियाँ सुनाता। गाँववाले पहले शक करते, पर समय के साथ विश्वास लौट आया। उसने खुद से कहा, “अब किसी को डर नहीं दूँगा, बस भलाई करूँगा।”

एक दिन वह फिर श्याम सुंदर के पास पहुँचा। बालक ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम फिर आए?”
गोवर्धन बोला, “इस बार देने नहीं, सीखने आया हूँ।”
श्याम सुंदर ने कहा, “फिर चलो, किसी की मदद करते हैं।”
वे दोनों एक बूढ़े किसान के खेत पहुँचे और उसकी गायें चराने में मदद की। गोवर्धन ने जब बूढ़े की आँखों में राहत देखी, तो उसे लगा कि यही असली सुख है—ना सोने में, ना लूट में, बस किसी के चेहरे पर सुकून लाने में।

समय बीतता गया। गोवर्धन का नाम अब डर से नहीं, सम्मान से लिया जाने लगा। पंडित परशुराम उसकी सराहना करते—“देखो, जब मन सच्चा हो तो डाकू भी भक्त बन सकता है।”
राजकर्मी भी लौटे, पर अब उन्हें गोवर्धन में कोई खतरा नहीं दिखा। उन्होंने उसकी सेवा देखकर कहा, “राजा को बताना पड़ेगा—यह आदमी अब अलग है।”
गोवर्धन ने कोई पुरस्कार नहीं माँगा। बोला, “बस इतना चाहूँगा कि लोग मुझे विश्वास से देखें, डर से नहीं।”

कई साल गुजर गए। गोवर्धन अब गाँव के बच्चों का प्रिय बन गया था। हर कथा में वह आगे बैठता, पंडित के शब्दों में खो जाता। कभी-कभी खुद भी कहानी सुनाता—“एक बार एक डाकू था जो भगवान को लूटने चला, पर भगवान ने उसका दिल लूट लिया।”

लोग हँसते, पर उनकी आँखों में आदर झलकता। गोवर्धन अब शांत था—उसका चेहरा कोमल, उसकी नज़र दयालु। माखन-मिश्री का स्वाद अब भी उसके भीतर जीवित था—पर अब वह किसी बालक की कसम नहीं, उसके जीवन का सार था।

श्याम सुंदर अब बड़ा हो गया था, पर उसकी मुस्कान वही थी। एक दिन उसने कहा, “गोवर्धन काका, अब तो आप कथा सुनाते हैं, डराते नहीं।”
गोवर्धन ने हँसकर कहा, “क्योंकि मैंने सीखा है कि डर से नहीं, प्रेम से दुनिया बदलती है।”
श्याम सुंदर ने जवाब दिया, “और कभी-कभी बस एक माखन-मिश्री से भी।”

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अब गाँव में जब बच्चे किसी से डरते, तो बड़ों का जवाब होता, “डर मत, गोवर्धन की तरह बदल जा।” उसका नाम उदाहरण बन गया। कोई गरीब मदद माँगे, तो गोवर्धन पहले पहुँचता। किसी को रास्ता भटके, तो वह समझाता, “हर कोई दूसरा मौका पा सकता है।”

एक दिन पंडित ने सभा में कहा, “जो ईश्वर को सच्चे दिल से पुकारे, उसे मोक्ष दूर नहीं रहता। गोवर्धन इसका प्रमाण है।”
गोवर्धन मुस्कुराया—“नहीं महाराज, मैंने ईश्वर को नहीं पाया। ईश्वर ने मुझे पा लिया था… उस दिन, जब उन्होंने माखन-मिश्री दी थी।”

सभा में सन्नाटा छा गया। किसी ने धीमे से कहा, “जय श्याम सुंदर!” और बच्चों ने दोहराया। उस दिन गोवर्धन की आँखों में आँसू थे—पर अब वे आँसू दुख के नहीं, कृतज्ञता के थे।

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वर्षों बाद जब गोवर्धन नहीं रहा, गाँव ने उसकी याद में एक छोटा-सा स्थल बनाया। वहाँ एक मिट्टी की मूर्ति थी—हाथ में माखन-मिश्री की डली और चेहरे पर संतोष की मुस्कान। लोग वहाँ दीप जलाने आते, बच्चे वहाँ खेलते और बुज़ुर्ग कहते, “यह वही है जिसने हमें सिखाया—भजन और भलाई से डाकू भी देव बन सकता है।”

श्याम सुंदर अब युवावस्था में प्रवेश कर चुका था, पर जब भी वह उस स्थान से गुजरता, रुक जाता। धीमे स्वर में कहता, “धन्य है वह माखन-मिश्री, जिसने एक जीवन बदल दिया।”

05/10/2025
02/10/2025

मुस्लिम भक्त और मां कात्यानी की कथा | Maa Katyani ki Katha | A spritual Story | Navratri Ki Kahani

चारों ओर मां की भक्ति का माहौल है। मंदिरों में घंटे गूंज रहे हैं, घरों में अखंड ज्योति प्रज्वलित है और सोशल मीडिया से ले...
02/10/2025

चारों ओर मां की भक्ति का माहौल है। मंदिरों में घंटे गूंज रहे हैं, घरों में अखंड ज्योति प्रज्वलित है और सोशल मीडिया से लेकर गांव-गांव तक लोग मां चंद्रघंटा का स्मरण कर रहे हैं। यही वह दिन है जब मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है—वह स्वरूप जो शांति और वीरता का प्रतीक है, जो भक्तों के भय को दूर कर उन्हें साहस और संबल देती हैं। लेकिन आस्था का असली अर्थ तब समझ आता है जब हम विपरीत परिस्थितियों में हों, जब जीवन हमें ऐसी चुनौती के सामने खड़ा कर दे जहां इंसानी ताकत बेबस दिखने लगे।

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव की बात है। गांव का नाम है राजापुर। यह कोई कल्पित स्थान नहीं, बल्कि वास्तविक भारत का ही हिस्सा है, जहां आज भी किसानों की जिंदगी खेतों और मौसम पर टिकी होती है। इसी गांव में रहता है एक साधारण किसान—माधव। उम्र लगभग पचपन साल। चेहरा झुलसा हुआ, आंखों में चिंता की परछाई, और हाथों में वर्षों की मेहनत की कठोर रेखाएं। आज के दौर में भी माधव वही संघर्ष झेल रहा है जो भारत का हर छोटा किसान झेलता है—कर्ज, महंगाई और मौसम का डर।

माधव की पत्नी का देहांत काफी पहले हो चुका था। अब उसके लिए सब कुछ उसकी बेटी राधा ही है। राधा बीस साल की युवती है। पढ़ाई में अच्छी थी लेकिन हालात ने उसे शहर भेजने का मौका नहीं दिया। उसने खेत-खलिहानों में अपने पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनकी सहायता करती। राधा अपने पिता की थकी आंखों को देखती और समझ जाती कि उनके दिल में कितनी चिंता है।

इस साल फसल खूब अच्छी थी। गेहूं की बालियां सुनहरी होकर खेतों में लहराने लगी थीं। सब कुछ सही था, पर अचानक मौसम ने करवट बदली। आसमान पर काले बादल छा गए। गांव में लोग कहने लगे “अगर ये तूफान आ गया तो सब खत्म,” एक किसान ने हताश होकर कहा। “हमारी मेहनत, हमारा सपना, सब मिट्टी में मिल जाएगा।”

माधव ने आसमान की ओर देखा और उसकी आंखों में नम हो गई। इतने सालों की मेहनत और संघर्ष ने उसे सिखाया था कि किसान का जीवन भगवान और मौसम की मर्जी पर निर्भर रहता है। राधा ने पिता का चेहरा देखा। उसे लगा जैसे उनके अंदर की सारी शक्ति टूट रही हो। तभी उसके मन में एक भाव जागा। नवरात्रि चल रही थी और आज मां चंद्रघंटा का दिन था। उसे दादी की सुनाई कहानियां याद आईं—कैसे मां चंद्रघंटा अपने भक्तों के भय को दूर कर उन्हें विजय दिलाती हैं, कैसे उनका दिव्य घंटा बुरी शक्तियों को कांपने पर मजबूर कर देता है।

राधा ने मन ही मन निश्चय किया। उसने प्रण लिया कि वह उपवास करेगी और मां चंद्रघंटा से प्रार्थना करेगी कि उसके खेत और पिता की मेहनत सुरक्षित रहे। उसने पिता से कहा—“बाबा, आप चिंता मत कीजिए। मां हमारी रक्षा करेंगी।” माधव ने बेटी की आंखों में देखा। उसमें एक अजीब सी चमक थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसके अंदर बोल रही हो।

राधा ने उपवास शुरू कर दिया। वह खेतों के पास बैठकर मां का ध्यान करने लगी। उसके होंठों पर बस एक ही नाम था—“मां चंद्रघंटा…”।

शाम होते-होते आसमान गरजने लगा। बिजली की चमक ने पूरे गांव को डर से भर दिया। हवाएं तेज हो गईं और बारिश ने तांडव शुरू कर दिया। किसानों ने अपनी झोपड़ियों में शरण ली। और भगवान को याद करते हुऐ कहते “हे भगवान, अब क्या होगा?” कई घरों की छतें उड़ गईं। बच्चे रोने लगे, औरतें डर से कांपने लगीं।

माधव अपने घर के कोने में बैठा थरथरा रहा था। उसके दिल में डर समा गया था कि अब सब खत्म हो जाएगा। पर उसी कमरे में राधा आंखें बंद किए, हाथ जोड़े बैठी थी। उसकी आवाज धीमी थी लेकिन वो मां चंद्रघंटा से प्रार्थना कर रही थी— "हे मां चंद्रघंटा… मेरी फसल की रक्षा करना। मेरे बाबा को टूटने मत देना।” बाहर प्रलय मच रहा था, पर भीतर आस्था का दीप जल रहा था।

कहते हैं मां अपने भक्त की पुकार जरूर सुनती हैं। कैलाश के दिव्य लोक में बैठी मां चंद्रघंटा ने भी उस रात राधा की मासूम प्रार्थना को सुना। उनका हृदय करुणा से भर गया। वे जानती थीं कि धरती माता इंसानों के पापों से दुखी है। पर राधा की निष्कपट आस्था उन्हें द्रवित कर गई। उन्होंने अपना करुणामय हाथ राधा के खेत पर रख दिया।

सुबह हुई। तूफान थम चुका था। गांव में सन्नाटा था। लोग घरों से बाहर निकले और अपने-अपने खेतों की ओर दौड़े। आंखों के सामने दृश्य देखकर सबकी चीख निकल गई। ज्यादातर खेत पानी में डूब चुके थे, बालियां टूटकर बिखर चुकी थीं। किसानों के सपने मिट्टी में मिल गए थे। लेकिन तभी किसी ने चिल्लाकर कहा—“देखो, माधव के खेत को!”

लोग वहां पहुंचे तो दंग रह गए। माधव का खेत पूरी तरह सुरक्षित था। बालियां ज्यों की त्यों खड़ी थीं, न कोई पौधा टूटा, न पानी से नुकसान हुआ। मानो तूफान उनके चारों ओर घूमकर निकल गया हो, लेकिन खेत को छू भी न पाया हो। लोग अवाक रह गए। “यह तो चमत्कार है। यह मां चंद्रघंटा की कृपा है,” किसी ने श्रद्धा से कहा।

माधव की आंखों से भी आंसू बह निकले। उसने अपनी बेटी को गले लगा लिया। राधा की आंखों में भी नमी थी। यह आंसू लाचारी के नहीं, बल्कि आस्था और विजय के थे। गांव के लोग वहीं एकत्रित हो गए। उन्होंने हाथ जोड़कर मां चंद्रघंटा का जयकारा लगाया—“जय मां चंद्रघंटा!”

और तभी आकाश से एक दिव्य ध्वनि सुनाई दी। यह मां चंद्रघंटा की वाणी थी—“हे मानव, मैं देख रही हूं तुम्हारे पाप और तुम्हारा लालच कैसे धरती को घायल कर रहा है। पर उस नन्ही बेटी ने जब मुझे पुकारा, तो उसके शब्दों में स्वार्थ नहीं था, सिर्फ प्रेम और समर्पण था। क्या मैं ऐसी पुकार अनसुनी कर सकती हूं? नहीं। जब तुम सच्चे मन से मुझे पुकारोगे, जब तुम्हारे हृदय में करुणा और दया होगी, तब मैं तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी। याद रखो, असली शक्ति धन या सामर्थ्य में नहीं, बल्कि आस्था में है। पर अगर तुमने धरती का सम्मान नहीं किया, धर्म का मार्ग नहीं अपनाया, तो यही धरती तुम्हारे अहंकार को निगल जाएगी। संभल जाओ, क्योंकि आस्था ही सबसे बड़ा चमत्कार है।”

यह घटना सिर्फ एक खेत की रक्षा नहीं थी, बल्कि पूरी मानवता के लिए चेतावनी थी। उस दिन के बाद गांव में लोगों का जीवन बदल गया। उन्होंने पेड़ों को काटना कम किया, पानी का दुरुपयोग रोकने का प्रण लिया और मां को प्रतिदिन याद करना शुरू कर दिया।

आज भी राजापुर गांव में जब नवरात्रि का तीसरा दिन आता है, तो लोग राधा की कथा सुनते हैं। बच्चे, बुजुर्ग, औरतें सब इकट्ठा होकर कहते हैं—“आस्था ही सबसे बड़ा चमत्कार है।” और यह कहानी हमें यह याद दिलाती है, कि इंसान का जीवन प्रकृति और आस्था से ही जुड़ा है।

25/09/2025

🙏 नवरात्रि का चमत्कार | मां चंद्रघंटा की सच्ची कथा | आस्था की शक्ति | Navratri Special Story 🙏

24/09/2025

इंस्पेक्टर ने SDM को साधारण लड़की समझकर मारा थप्पड़ | Police Station Drama | Ias Story

कहानी: ईमानदारी की अग्निपरीक्षासुबह का वक्त था। **एसडीएम नैना सिंह** अपने ऑफिस में बैठी कुछ जरूरी फाइलों पर हस्ताक्षर कर...
21/09/2025

कहानी: ईमानदारी की अग्निपरीक्षा

सुबह का वक्त था। **एसडीएम नैना सिंह** अपने ऑफिस में बैठी कुछ जरूरी फाइलों पर हस्ताक्षर कर रही थीं। बाहर लोग अपनी अर्जी लिए लाइन में खड़े थे। तभी अचानक उनके फोन की घंटी बजी। कॉल उनकी बचपन की दोस्त *रिया* का था।

रिया की आवाज में खुशी छलक रही थी—
“नैना! बस तीन दिन बाद मेरी शादी है। तुझे आना ही पड़ेगा, वरना मैं तुझसे जिंदगीभर नाराज़ रहूँगी।”

नैना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—
“तू फिक्र मत कर, मैं जरूर आऊँगी।”

# # # साधारण लड़की बनने का फैसला

शादी का दिन आया। नैना ने साड़ी पहनी, हल्का-सा मेकअप किया और शीशे में खुद को देखा। अचानक मन में ख्याल आया—
“हर दिन सरकारी गाड़ी, सुरक्षा कर्मी, और लाल बत्ती की शान में घूमती हूँ… लेकिन आज क्यों न बिना पहचान, एक आम लड़की की तरह शादी में जाऊँ? दोस्ती का मज़ा भी आएगा और पुरानी यादें भी ताज़ा होंगी।”

यही सोचकर उन्होंने सरकारी गाड़ी और सिक्योरिटी को मना कर दिया। भाई की पुरानी स्कूटी उठाई और निकल पड़ीं।

# # # रास्ते में बैरिकेड

हाईवे पर पुलिस की चेकिंग चल रही थी। कुछ पुलिसकर्मी गाड़ियों को रोक-रोककर चालान काट रहे थे। सबसे आगे **थानेदार जगत चौहान** खड़ा था—बड़ा घमंडी और कुख्यात। उसके खिलाफ घूसखोरी और फर्जी वसूली की अनगिनत शिकायतें थीं, लेकिन ऊपर तक उसकी पहुँच होने के कारण कभी कुछ नहीं हुआ।

जगत चौहान ने जैसे ही नैना को स्कूटी पर आते देखा, हाथ उठाकर रोक दिया।

“ओ लड़की! स्कूटी साइड में लगाओ।”

नैना ने बिना कुछ कहे स्कूटी रोक दी।

“कहाँ जा रही हो?” उसने रोब दिखाते हुए पूछा।

नैना ने शांत स्वर में कहा—
“एक दोस्त की शादी में जा रही हूँ।”

जगत ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर हंसा—
“अच्छा! दावत खाने जा रही हो। लेकिन हेलमेट कहाँ है? हेलमेट तुझे कोई भगवान पहनाएगा? और स्कूटी भी तेज चला रही थी। देख, तेरी शक्ल देख कर चालान काटने का मन नहीं कर रहा, मगर ड्यूटी है, चालान करना ही पड़ेगा।”

# # # इज्ज़त पर हमला

नैना ने कहा, “मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा।”

जगत चौहान गुर्राया—
“ओ मैडम, हमें मत सिखा कानून। पुलिस हम हैं, तुम नहीं।”

इतना कहकर उसने गुस्से में नैना के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
पूरा चौराहा सन्न रह गया।

नैना ने खुद को संभाला। उसकी आँखों में अब गुस्से की आग जल रही थी, मगर उसने पहचान उजागर नहीं की।

जगत हंसकर बोला—
“अभी भी अकड़ बाकी है! ले चलो इसे थाने। वहीं इसकी औकात दिखाते हैं।”

दो सिपाही आगे बढ़े, नैना का हाथ पकड़कर घसीटने लगे। एक ने स्कूटी गिरा दी।
“अब समझेगी नेतागिरी का मज़ा।”

# # # थाने का काला चेहरा

थाने में लाकर जगत चौहान ने हुक्म दिया—
“इस पर कोई भी केस डाल दो। चोरी, ब्लैकमेलिंग… जो ठीक लगे।”

सिपाही घबराए, बोले—
“सर, सबूत?”

जगत ठहाका मारकर बोला—
“सबूत इस थाने में बनाए जाते हैं, मिलते नहीं।”

नैना को गंदे, बदबूदार लॉकअप में डाल दिया गया। अंदर पहले से एक महिला थी। उसने रोते हुए कहा—
“मुझे भी बिना वजह फंसाया है।”

नैना के दिल में सवाल उठे— *“अगर मेरे जैसी अफसर को ऐसे अंदर किया जा सकता है तो आम जनता का क्या हाल होता होगा?”*

# # # ईमानदार अफसर की एंट्री

कुछ ही देर में **सीओ अरुण मेहरा** थाने पहुँचे। उनकी छवि ईमानदार अफसर की थी।

उन्होंने लॉकअप में नैना को देखा, कुछ समझ नहीं आया। जगत चौहान हंसकर बोला—
“बस सर, सड़क छाप लड़की है। बदतमीजी कर रही थी, सबक सिखा रहे हैं।”

अरुण को शक हुआ। मगर जगत के रसूख के कारण वह ज्यादा कुछ न बोले।

# # # अचानक निरीक्षण

उसी शाम **डीएम सुरेश त्यागी** जिले के थानों का निरीक्षण करने निकले। उनका काफिला सीधे उसी थाने पर आ पहुँचा।

जगत चौहान के पसीने छूट गए।

डीएम की नजर लॉकअप में बंद नैना पर पड़ी।
“अरे! ये तो हमारी नई एसडीएम मैडम हैं!”

पूरा थाना सन्न रह गया।

डीएम ने फाइल उठाकर पढ़ी— उसमें नैना पर *420 और ठगी* का केस दर्ज था।

डीएम गरजे—
“ये कैसा केस है? सबूत कहाँ है?”

जगत चौहान हकलाने लगा।

नैना ने अब सच बताया—
“इस दरोगा ने मुझे थप्पड़ मारा, गाली दी और फर्जी केस बनाया। अंदर बंद दूसरी महिला भी इसकी शिकार है।”

# # # गिरे मुखौटे

डीएम की आंखों में आग थी। उन्होंने आदेश दिया—
“दरोगा जगत चौहान को तुरंत निलंबित करो। आपराधिक मुकदमा दर्ज होगा।”

सिपाही, जो अभी तक दरोगा के इशारे पर चलते थे, अब डरकर चुप हो गए।

जगत चौहान तिलमिलाकर बोला—
“मैडम, आपको लगता है सिर्फ मैं ही भ्रष्ट हूँ? पूरा थाना शामिल है। ऊपर तक डोरियाँ जुड़ी हैं।”

उसकी बात सुनते ही कई पुलिसकर्मियों के चेहरे पीले पड़ गए।

# # # असली भंडाफोड़

नैना ने डीएम से कहा—
“सर, इस थाने की पूरी एसीबी जांच होनी चाहिए।”

एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम बुलवाई गई। फाइलें खंगाली गईं। सबूत सामने आए कि एसएसपी तक इस गंदे खेल में शामिल थे।

जब एसएसपी को बुलाया गया, तो नैना ने सीधे उसकी आँखों में देखा और बोली—
“आपके सारे कारनामों के सबूत हमारे पास हैं।”

एसएसपी के माथे पर पसीना छलक आया।

डीएम ने तुरंत आदेश दिया—
“एसएसपी को गिरफ्तार करो।”

# # # बड़ा तूफान

पूरा राज्य हिल गया।
समाचार चैनलों पर *“जिले में भ्रष्टाचार का बड़ा खुलासा”* ब्रेकिंग न्यूज़ बन गया।

मुख्यमंत्री ने आदेश दिया—
“सभी भ्रष्ट अफसरों की सूची बनाओ और गिरफ्तार करो।”

अगले ही हफ्ते 30 से ज्यादा पुलिस अधिकारी, कई आईएएस और राजनेता सलाखों के पीछे थे।

# # # जीत की सीख

एसडीएम नैना सिंह ने साबित कर दिया कि ईमानदारी और साहस सबसे बड़ी ताकत है।

उनके एक फैसले ने पूरे जिले का सिस्टम हिला कर रख दिया। अब नई टीम के साथ प्रशासन पारदर्शी तरीके से चलने लगा।

---

# # सीख

इस कहानी से हमें यही संदेश मिलता है—
**जब इंसान सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता चुन लेता है, तो बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, अंत में हारती ही है।**

20/09/2025

दोस्तों, आज मैं आपको एक ऐसी सच्ची घटना सुनाने जा रहा हूँ जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी। यह कहानी है एक ऐसे इंसान की जिसने मौत को भी मात दे दी। एक ऐसा इंसान जिसने दुनिया के सबसे खतरनाक और वीरान रेगिस्तान में 71 दिन अकेले जिंदा रहकर दिखाया।

सोचिए ज़रा, जहाँ चारों ओर सिर्फ तपती रेत हो, ऊपर से आग बरसाता सूरज, पैरों के नीचे जलती जमीन, और न खाने का सहारा न पानी की एक बूंद। वहां कोई इंसान एक-दो दिन भी कैसे जिंदा रह सकता है? लेकिन इस इंसान ने हिम्मत, जुनून और जिद से पूरे 71 दिन काटे।

इस इंसान का नाम है — रिकी मेगी।

तो दोस्तों, आइए शुरू करते हैं रिकी मेगी की सच्ची कहानी, लेकिन वीडियो शुरू करने से पहले चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लीजिए, क्योंकि आपका एक सब्सक्राइब हमारे लिए नई ताकत है।

रिकी मेगी का जन्म ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में हुआ था। बचपन आम था, लेकिन जब वह किशोर अवस्था में पहुँचा तभी उसकी जिंदगी बदल गई। उसके पिता का निधन हो गया।

उस दिन से रिकी ने समझ लिया कि अब परिवार की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर है। उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी, लेकिन साथ-साथ हर तरह का काम करना शुरू कर दिया। कभी इलेक्ट्रिशियन का काम, कभी फर्नीचर उठाना-ढोना, कभी मछली पकड़ने वाली नाव पर मजदूरी। पैसों की तंगी हमेशा रहती थी, लेकिन रिकी मेहनत से पीछे नहीं हटा।

साल 2006 में, जब रिकी की उम्र करीब 36 साल थी, उसे एक छोटा सरकारी कॉन्ट्रैक्ट मिला। 3000 किलोमीटर दूर उसे कुछ जरूरी कागजात और सामान पहुँचाना।

वह हवाई जहाज से जा सकता था, लेकिन उसके पास उतने पैसे नहीं थे। इसलिए उसने अपनी पुरानी कार से सफर करने का फैसला किया।

उसने कार में पेट्रोल भरवाया, थोड़ा खाना-पानी रखा और निकल पड़ा उस रास्ते पर जिसे लोग तनामी हाइवे कहते हैं। यह ऑस्ट्रेलिया का सबसे वीरान और खतरनाक रास्ता है।

यहां न मोबाइल नेटवर्क मिलता है, न इंसान, न मदद। अगर गाड़ी खराब हो जाए तो बचने की उम्मीद बहुत कम होती है।

रिकी अपनी कार में धीरे-धीरे सफर कर रहा था। दोपहर की धूप, लेकिन एक दिन, उसने सड़क किनारे एक खराब गाड़ी देखी। उसके पास तीन आदमी खड़े थे। उन्होंने हाथ देकर मदद मांगी।

रिकी रुका। उसने इंसानियत दिखाई और उन्हें अपनी गाड़ी में बैठा लिया। कुछ दूरी पर जाते ही तीनों ने मिलकर रिकी को बेहोशी की दवा सुंघा दिया।

कुछ ही मिनटों में उसे चक्कर आने लगे। सिर भारी हुआ। और फिर उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

जब रिकी को होश आया, वे सब कुछ लूट कर जा चुके थे। अब उसके पास कुछ भी नहीं बचा था।

न कार

न जूते

न फोन

न बैग

न खाना

न पानी

वह अब रेगिस्तान के बीचों-बीच अकेला पड़ा था। उन तीनों ने उसे मरने के लिए वहीं छोड़ दिया था।

होश में आने के बाद उसने चारों ओर देखा। हर तरफ सिर्फ रेत और गर्मी। तापमान 45 डिग्री सेल्सियस। पैरों में जूते नहीं थे। नंगे पैर जलती रेत पर चलना मजबूरी थी।

कुछ ही कदमों में उसके पैरों में छाले पड़ गए। चमड़ी उतरने लगी। लेकिन रिकी जानता था—अगर जिंदा रहना है तो रुकना नहीं है।

सबसे पहले प्यास ने उस पर हमला किया। गला सूख गया। होंठ फट गए। कई घंटे चलने के बाद उसे दूर से एक झील जैसी चीज दिखी। वह दौड़ा, लेकिन वहां सिर्फ रेत चमक रही थी।

शरीर टूट चुका था, लेकिन अचानक उसे एक छोटे गड्ढे में गंदा, चिपचिपा पानी मिला। शायद जानवरों के लिए पानी था। उसने वही पी लिया। यही उसकी पहली जीत थी।

जैसे-तैसे दिन कटा, लेकिन अब रात आ गई। दिन की आग जैसी गर्मी के बाद रात को ठंडी हवाएं चलने लगीं। रिकी को दूर एक गुफा दिखी। वह वहां छिप गया।

लेकिन गुफा में भी चैन नहीं था। कीड़े-मकोड़े, बिच्छू और सांप रेंगते रहते। भूख ने उसे मजबूर कर दिया। किसी तरह से वह रात भर उसी गुफे में रहा। सुबह होते ही खाने-पानी की तलाश में निकल गया।

हर दिन उसके पैरों की हालत खराब होती गई। छाले फट चुके थे। त्वचा जल रही थी। कभी वह अपने पसीने को चाट लेता ताकि शरीर में नमी बनी रहे।

भूख मिटाने के लिए कभी सूखे पत्ते, कभी कीड़े, कभी मक्खियाँ। कभी-कभी कोई रेगिस्तानी छिपकली पकड़कर खा लेता।

इसी तरह धीरे-धीरे 20 दिन बीत गए। अब उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बनने लगा। आंखें धंस गईं। वजन लगातार गिरता गया।

कभी उसे भ्रम होता कि कोई इंसान उसके पास है। कभी लगता कि आवाजें आ रही हैं। लेकिन असलियत में वहां सिर्फ मौत का सन्नाटा था।

अब रिकी का शरीर बेहद कमजोर हो चुका था। वह अक्सर गिरता और फिर किसी तरह उठ जाता।

प्यास बुझाने के लिए कई बार उसने अपना पेशाब तक पी लिया। उसे लगता, यही आखिरी सहारा है।

करीब साठवें दिन, जब वह पूरी तरह टूट चुका था, तभी आसमान ने उसे नया जीवन दिया।

उसकी आंखों पर ठंडी बूंद गिरी। उसने ऊपर देखा। काले बादल छा चुके थे। बिजली कड़क रही थी। और फिर तेज बारिश शुरू हो गई।

रिकी रो पड़ा। उसने रेत में गड्ढे खोदने शुरू किए। पानी उनमें भरने लगा। उसने जी भरकर पानी पिया। फटे होंठ भिगोए। सूखा गला तर हुआ।

वह समझ गया—कुदरत ने उसे हारने नहीं दिया।

बारिश सिर्फ 1–2 घंटे चली। फिर रेत ने पानी सोख लिया। लेकिन उन कुछ घंटों ने रिकी को जिंदगी ने उसे फिर से जीने की उम्मीद दे दी।

अब तक रिकी का शरीर बस हड्डियों का ढांचा रह गया था। चेहरा पहचान से बाहर। कपड़े फटे हुए। लेकिन वह हर हाल में आगे बढ़ता रहा।

कभी रेंगते हुए, कभी घिसटते हुए। कभी छिपकलियाँ खाकर, कभी कीड़े पकड़कर।

5 अप्रैल 2006 का दिन था।

रिकी अब बिल्कुल खत्म हो चुका था। वह एक रेगिस्तानी टीले के पास बेहोश पड़ा था। शरीर काला पड़ चुका था। आंखें बंद हो रही थीं। उसे खुद नहीं पता था कि अब कितनी घंटे और जिंदा रहेगा।

इकहत्तरवे दिन किस्मत ने उसका साथ दिया। पास के बिरिंदुदु स्टेशन से दो लोग गुजर रहे थे — ग्रेग हर्ड और मार्क क्लिफर्ड।

दूर से उन्हे लगा कोई जानवर है। लेकिन जब पास आए तो देखा—एक इंसान जैसा कंकाल हिल रहा है।

वे डर गए, लेकिन पास पहुँचे। जब देखा कि यह अब भी सांस ले रहा है, तो उन्होंने तुरंत हेलीकॉप्टर से मदद मंगवाई।

रिकी को रॉयल डार्विन हॉस्पिटल ले जाया गया।

रिकी छह दिन तक कोमा में रहा। डॉक्टरों ने कहा—यह इंसान नहीं, बल्कि चमत्कार है।

उसका वजन 106 किलो से घटकर 48 किलो रह गया था।

शरीर पोषण की कमी से टूट चुका था।

त्वचा जल चुकी थी।

लेकिन उसकी सांसें अब भी चल रही थीं।

धीरे-धीरे इलाज से वह ठीक हुआ।

रिकी मेगी की यह कहानी हमें बताती है कि —
जब जीने की चाहत होती है, तो कुदरत भी मदद करती है।

मौत कितनी भी करीब क्यों न हो, उम्मीद की छोटी सी लौ इंसान को जिंदा रखती है।

दोस्तों, यह थी रिकी मेगी की सच्ची घटना। 71 दिन तक मौत से जंग और बहत्तरवें दिन जिंदगी की जीत।

अब सोचिए… अगर आप रिकी की जगह होते, तो क्या आप इतने दिन तक जिंदा रह पाते?
हमें कमेंट में जरूर बताइए।

और हां, चैनल को सब्सक्राइब करना मत भूलिए। आपका एक सब्सक्राइब हमारे लिए परिवार में नए सदस्य जैसा है।

तो दोस्तों, मिलते हैं अगली रोंगटे खड़े कर देने वाली सच्ची कहानी के साथ।
तब तक के लिए अलविदा और दिल से धन्यवाद।

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