
16/09/2024
*बिजनौर की शान मेमन सादात*
आज का मेमन कब बसा और उसका नाम मेमन सादात क्यों पड़ा? इसके लिए हमें इतिहास के उन पन्नों को पलटने की जरूरत है, जो आज की युवा पीढ़ी से कोसों दूर है।
आज के मेमन सादात की नींव रखी थी, मुरिसे आला जनाब सैयद शाह अशरफ अली बिन सैयद आरिफ शाह बरखुरदार ने।
उन्होंने इस गांव की संगे बुनियाद रखी थी। आपका मजार आज भी मेमन सादात में स्थित जामा मस्जिद के पास तालाब के किनारे मौजूद है। इस जामा मस्जिद की तामीर भी सैयद शाह अशरफ अली ने ही की थी। जो आज भी तालाब के किनारे मेमन सादात की शान बनकर खड़ी है।
अपने पाठकों को आज हम मेमन सादात के आबाद करने वाले सैयद शाह अशरफ अली के सफर की तमाम बातें साझा करेंगे ताकि इतिहास की यह पन्नें हमारी युवा पीढ़ी के लिए भी ज्ञान का सागर बन सके।
सैयद शाह अशरफ अली के वालिद सैयद आरिफ शाह बरखुद्दार दिल्ली के बादशाह मोहम्मद तुगलक के क्षेत्र की रियासत धर्सो नवाजपुर निकट पटियाला, पूर्वी पंजाब के मालिक थें।
सैयद आरिफ शाह बहुत ही बड़े दरवेश, कामिल, मुत्तक़ी, परहेज़गार और मकबूल खास व आम थें।
क्योंकि धर्सो नवाजपुर और समाना दो बड़ी शिया रियासतें थी, इसलिए दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद तुगलक की आंखों में यह खटकती थी और साथ ही यह रियासतें दुश्मनों के निशाने पर भी थी।
सैयद आरिफ शाह ने मजबूर होकर तैमूर-शाह ईरान को इस हालात से बा खबर किया और साथ ही मदद भी मांगी।
तैमूर ने उनकी आवाज पर अपने लश्कर के साथ दिल्ली के करीब यूनी साहिल, दरिया ए जमुना के किनारे अपने ख़ेमे लगाए पर जब मोहम्मद तुगलक को यह पता चला तो मोहम्मद तुगलक ने सैयद मोहसिन जो समाना के मालिक थे और सैयद आरिफ शाह जो धर्सो नवाजपुर के मालिक थे, से माफी और जुल्म को खत्म करने का वादा किया। इसके बाद सैयद मोहसिन और सैयद आरिफ शाह, तैमूर से जाकर मिले और मोहम्मद तुगलक के माफी मांगने और जुल्मों सितम ना करने के वादे से आगाह कराया।
साथ ही आप दोनों ने यह भी मंशा जाहिर की, कि हम लोग ख़ून खराबे के हक में भी नहीं है। आपकी इस मोहब्बत और इंसानियत को देखकर तैमूर वापस चला गया।
इस घटना के कुछ दिनों बाद ही सैयद आरिफ शाह का इंतकाल हो गया और उन्हें दिल्ली में दफन कर दिया गया।
सैयद आरिफ शाह के तीन बेटे थे जिनमें मोहम्मद नवाज, सैयद हुसैन, सैयद शाह अशरफ अली थे।
तीनों भाइयों में आप के उत्तराधिकारी पद की वजह से तकरार शुरू हो गईं।
इस तक़रार में हजरत निजामुद्दीन औलिया सैयद हुसैन के हक़ में वकील थे।
मगर यह बदनसीबी रही कि किसी ने सैयद हुसैन का क़त्ल कर दिया और इस क़त्ल का पूरा इल्जाम सैयद शाह अशरफ अली पर आया।
सैयद शाह अशरफ अली वहां से अकेले चल पड़े और जनपद बिजनौर के उत्तर में 18 मील के फासले पर एक जगह पर आकर रहने लगें। यह जगह एक जंगल थी और इस जंगल के पूर्व-दक्षिण की तरफ एक क़ौम क़ोबी आबाद थी, जिनके कुछ घर वहां पर मौजूद थे, साथ ही उनके घरों के पास एक बरसाती तालाब और एक मीठे पानी का कुआं भी मौजूद था।
सैयद शाह अशरफ अली को यह जगह बेहद ही सुकून बख्श लगी और आप इस तालाब के किनारे ही रहने लगें।
आपका ज्यादातर वक्त इबादत में ही बीतता था।
आप जवान थे, पर अपनी इबादत गुजरी और मुत्तक़ी होने की वजह से सैयद शाह अशरफ अली अपने वालिद सैयद आरिफ शाह की तरह ही साहिबे करामात हो गए।
एक दिन जब आप इबादत में मसरूफ थे और भूख से भी बेहाल थे और खुद से दुआ कर रहे थे, कि तभी एक पका हुआ गूलर आपके हाथ पर आकर गिरा आपने गूलर को देखकर खुदा का शुक्र अदा किया और गूलर को खा लिया।
खाते-खाते आपने यह भी निश्चय किया कि अगर मैं यहां आबाद हुआ तो इस जगह का नाम मेवा-मन रखूंगा।
यही मेवा मन आगे चलकर मेमन सादात के नाम से मशहूर हुआ।
सैयद शाह अशरफ अली इबादत और अपने करामात के वजह से आसपास के इलाकों में मशहूर हो गए और उन इलाकों में उनके करामात का गुणगान शुरू हो गये।
जो आपसे मिलने आता वो मुतासिर हुए बगैर नहीं रहता था, यही वजह रही की आपसे मुतासिर होने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ती चली गईं।
आपकी शोहरत से मुतासिर होकर नजीबाबाद के पास ही एक रियासत जिसका नाम राहतपुर था वहां के नवाब ज़मान खान भी सैयद शाह अशरफ अली के मुरीद हो गए, ज़मान खान भी आपकी खिदमत में हाजिर होकर आपकी कदम बोसी करते रहते थें।
नवाब जवान खान को जब आपके आला खानदान का इल्म हुआ और आपके खानवादे में चल रही परेशानियों का पता चला तो नवाब ज़मान खान ने सैयद शाह अशरफ अली से हर तरह की पनाह देने और मदद देने की पेशकश की और साथ ही राहतपुर आकर रहने की भी गुजारिश की।
सैयद शाह अशरफ अली ने नवाब ज़मान खान की पेशकश मानने से इनकार कर दिया और उसी जगह जिसे आज मेमन सादात कहते हैं, रहने का इरादा जाहिर किया।
इस पर ज़मान खान ने इस इलाके की तमाम ज़मीने आपके नाम कर दी, क्योंकि इस इलाके की तमाम जागी़र के मालिक नवाब ज़मान खान थें।
कुछ दिनों बाद नवाब ज़मान खान ने अपनी बेटी के साथ आपसे निकाह की पेशकश की। जिसे सैयद अशरफ अली ने कबूल कर लिया।
निकाह के बाद सैयद शाह अशरफ अली ने एक कच्चा मकान तामीर किया, जिसका नाम गढ़ी रखा।
गढ़ी में ही सैयद शाह अशरफ अली के दो बेटे पैदा हुए।
एक बेटे का नाम औलादवी प्यारे और दूसरे बेटे का नाम सैयद अली रखा।
आपके बेटे औलादवी प्यारे अपने नाना ज़मान खान द्वारा तामीर महल से गिरकर अल्लाह को प्यार हो गए।
आप इस हालात से बहुत गमज़दा हुए और अपने बेटे को दफ़न करते वक्त यह बात अलल ऐलन कही कि आज के बाद मेरे खानदान में कोई भी पुख्ता मकान नहीं बनवाएगा, वरना उसे नुकसान पहुंचेगा, चुनानचे आज भी खा़नदाने सैयद शाह अशरफ अली में यह आन क़ायम हैं।
यही वजह है कि आज भी नव तामीर मकान की नीव की पहली ईंट कच्ची रखी जाती हैं।
सैयद शाह अशरफ अली का दूसरा बेटा आपके पास रहा और परवान चढ़ने लगा कुछ समय के बाद सैयद शाह अशरफ अली को यह इत्तेला मिली कि आप पर लगाया गया क़त्ल का इल्ज़ाम अब नहीं रहा है और क़ातिल पकड़ा गया हैं।
चुनानचे से आप धर्सो नवाजपुर गए और वहां कुछ रोज़ रहने के बाद फिर अपने परिवार के साथ मेमन सादात वापस आ गए।
मेमन सादात आज भी जनपद बिजनौर की तहसील नजीबाबाद और परगना किरतपुर में स्थित हैं। जिसकी कुल आबादी लगभग 5527 है जिसमें कुल साक्षरता दर लगभग 46.52% हैं। जिसमें पुरुष साक्षरता लगभग 51.53% एवं महिला साक्षरता 40.87 प्रतिशत हैं। गांव का कुल रग्बा लगभग 415.69 हेक्टेयर हैं। वहीं पूरे गांव में लगभग 973 मकान आबाद हैं। जिसमें पुराने मकान में बड़ा इमामबाड़ा, जामा मस्जिद जो आज भी तालाब के किनारे मौजूद हैं, साथ ही दीवान खाना, महल, हाथा जैसी पुरानी इमारतें आज भी मेमन सादात के इतिहास की गवाह हैं।
मेमन सादात में इल्म का हमेशा बोलबाला रहा है यही वजह है कि आज भी विश्व पटेल पर मेमन सादात के अनेकों परिवार मेमन सादात का नाम रोशन कर रहे हैं।
मेमन सादात के पुराने घर महल निवासी सैयद अफ़ज़ाल अब्बास जैदी विगत 15-20 साल से चिकित्सा प्रकाशन में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं और आपके चार प्रकाशन लगातार चिकित्सा एवं दंत चिकित्सा की हजारों किताबें प्रकाशित कर चुके हैं।
सैयद अफ़ज़ाल अब्बास जैदी वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ़ मेडिकल एडिटर के सदस्य भी हैं, जो एक अमेरिका स्थित संगठन है।
सैयद अफ़ज़ाल अब्बास जैदी विगत 15 साल से एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में अनेको स्थानीय एवं राष्ट्रीय समाचार पत्रों में अनेकों लेख प्रकाशित कर चुके हैं।