26/09/2025
🌹 🌷 ।। श्री ।। 🌷 🌹
जय सियाराम सुमंगल सुप्रभात प्रणाम बन्धु मित्रों। राम राम जी।
श्रीरामचरितमानस नित्य पाठ पोस्ट ८२१, बालकाण्ड दोहा २२२/१-४, श्रीराम लक्ष्मण का जनकपुर भ्रमण।
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बोली अपर कहेहु सखि नीका।
एहिं बिआह अति हित सबही का।।
कोउ कह संकर चाप कठोरा।
ए स्यामल मृदु गात किसोरा।।
सब असमंजस अहइ सयानी।
यह सुनि अपर कहहु मृदु बानी।।
सखि इन्ह कहॅं कोउ कोउ अस कहहीं।
बड़ प्रभाउ देखत लघु अहहीं।
भावार्थ:- दूसरी सखी ने कहा - हे सखी! तुमने बहुत अच्छा कहा। इस विवाह से सभी का परम हित है। किसी ने कहा - शंकर जी का धनुष कठोर है और साॅंवले राजकुमार कोमल शरीर के बालक है। हे सयानी! सब असमंजस में ही है। यह सुनकर दूसरी सखी कोमल वाणी से कहने लगी - हे सखी इनके सम्बन्ध में कोई कोई ऐसा कहते हैं कि ये देखने में छोटे हैं, पर इनका प्रभाव बहुत बड़ा है।
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