Bhanwarlal sitaram mev

Bhanwarlal sitaram mev teaching

31/10/2023

सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,
भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।

माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।

हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।

राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।

महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,
छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।

यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।

तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,
कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।

जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।

Hii
31/10/2023

Hii

28/10/2023
न कोई रंग है न कोई रूप वो निराकार है।लेकिन युगो युगो से उसका वजूद है।हिंदी में उसे ' अफवाह ' कहते है , अंग्रेजी में रयूम...
15/04/2022

न कोई रंग है
न कोई रूप
वो निराकार है।लेकिन युगो युगो से उसका वजूद है।हिंदी में उसे ' अफवाह ' कहते है , अंग्रेजी में रयूमर। कहते है उसने पहली मर्तबा महाभारत में अपनी आमद दर्ज करवाई। उसे फख्र है कि उसने महाभारत युद्ध में पासा पलट दिया।तब बीच जंग अफवाह फ़ैल गई कि अश्वथामा मारा गया। मगर तब उसके लिए हालात विकट थे। कोई अफवाह का सहचर और सहयोगी नहीं था। इतिहास की इतनी लम्बी डगर उसने तन्हा तय की है। लेकिन तकनीक के विस्तार ने उसके पंख लगा दिए।

अफवाह को लगता है अब उसका काम बहुत आसान हो गया है।
अमेरिका में फिल्म निर्देशक मार्क फ्रॉस्ट कहते है ' प्रिय इंटरनेट ,तुम अफवाह फैलाने में बहुत काम की चीज हो। सच के लिए राह दुश्वार हो गई है। [Dear Internet, you are very good at spreading rumours] जब जब ज्ञान विज्ञानं ने दस्तक दी ,अफवाह ने मोर्चा संभाल लिया। वो अन्धविश्वास की अंगुली थामे ज्ञान विज्ञानं के लिए मुश्किलें खड़ी कर देती। फिर चाहे वो टीकाकरण हो या बिजली का आगमन।

यह 1927 की बात है जब जयपुर ने पहली बार बिजली से शहर को रोशन होते देखा।मगर अफवाह तुरंत नमूदार हुई और गली गली फ़ैल गई।बात यूँ फैली कि बिजली से इंसान का खून सूख जाता है। घर के खिड़की दरवाजे जल उठते है। यह अफवाह का ही असर था कि धनी मानी लोगो ने भी 1931 तक बिजली कनेक्शन नहीं लिया। इसके पहले 1889 में जब सार्वजनिक स्थानों पर पानी के नल लगे तब भी अफवाह ने हंगामा बरपा दिया।

वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह शेखावत जयपुर के इतिहास पर गहरी नजर और समझ रखते है। वे इन घंटनाओ की पुष्टि करते है। शेखावत कहते है जब लोगो ने टूंटी के पानी को अस्वीकार कर दिया,विद्वानों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया। जयपुर के मौज मंदिर में बैठक हुई और शास्त्रों का संदर्भ देकर कहा गया नल का पानी भी शुद्ध है। तब हालात सामान्य हुए।
शेखावत कहते है अफवाहे उस दौर में भी रही है। एक मौके पर जयपुर में भीड़ ने एक अफवाह के चलते अंग्रेज अफसर ब्लैक तो पीट पीट कर मार डाला। भीड़ इस अफवाह पर जमा हुई थी कि राजा का कत्ल कर दिया गया है। ब्लैक इस सबसे बेखबर था। भीड़ के हत्थे चढ़ गया। बाद में हत्या की बात महज अफवाह निकली।

शिकागो यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफ केस सनस्टेन कहते है ' अफवाह का वजूद उतना ही पुराना है जितना मानवता का इतिहास।पर इंटरनेट के बाद इसका दायरा सर्वव्यापी हो गया है।सच तो यह है हम सभी अब इससे आच्छादित है। वे किसी भी चीज को खराब कर सकती है। यहाँ तक कि लोकतंत्र को भी'। इंटरनेट के बाद अफवाह का दायरा और दमखम बढ़ गया है। उसकी मदद में बहुत सारे उपकरण आ खड़े हुए।

पहले अफवाह लम्बी दुरी की यात्रा करते करते खुद हांफ जाती थी। पर अब उसके लिए सब कुछ आसान है।भारत में टीकाकरण का इतिहास काफी पुराना है। वो एक दिन में विश्व फार्मेसी नहीं बना है / इसी जून माह में 1802 में पहली बार तीन साल के एक बच्चे को टीका लगाया गया था। लेकिन अफवाहे हमेशा अपना काम करती रही है । वे तब भी हरकत में थी। अब भी है।

भारत ने 1947 में आज़ादी हासिल की। सरकार ने मई 1948 में प्रेस नोट जारी कर कहा टी बी महामारी बन गई है। इसके बाद अगस्त 1948 में दो स्थानों पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत टी बी का टीका लगना शूरु हुआ। तब साक्षरता 12 प्रतिशत थी। जीवन प्रत्याशा बहुत कम थी। मगर अफरा तफरी नहीं मची। केंद्र ने इसका संचालन किया। टीकाकरण टीम को अफवाह से लड़ना पड़ा।मद्रास में तय शुदा कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। उत्तर भारत में कुछ राज्यों में यह अफवाह फ़ैल रही थी कि टीकाकरण से आदमी निसंतान हो जायेगा।मगर वक्त के साथ चीजे बदलती चली गई। टीकाकरण कामयाब रहा। अफवाह हाथ मलते रह गई। पर तब उसके पास आज जैसे साधन नहीं थे।

अफवाहों पर काम करने वाले रॉबर्ट नेप और लियो पोस्टमैन जैसे विज्ञानी कहते है अफवाहे जैसे जैसे अपना सफर तय करती है ,वे सिकुड़ती जाती है। वे छोटी ,सार रूप में आसानी से खपाई जाने वाली सामग्री हो जाती है। आखिर में एक अफवाह का 70 फीसद हिस्सा गायब हो जाता है। रोबर्ट नेप ने दूसरे विश्व युद्ध में फैली अफवाहों का अध्ययन किया था। वे कहते है ये सकारात्मक भी होती है नकारात्मक भी। अफवाह से कोई भी अछूता नहीं है। अमेरिका जैसे देश में बराक ओबामा को भी अपने जन्म स्थान के बारे में अफवाह को निर्मूल साबित करने में काफी जोर लगाना पड़ा।
किसी ने ठीक कहा -
बच्चा अंधकार से डरे यह तो मुमकिन है।
पर आदमी उजालो से खौफजदा हो ,यह समझ में नहीं आ रहा है।
जब जब ज्ञान विज्ञानं दस्तक देते है ,अँधेरे रोशनी से डर जाते है।

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01/04/2022

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