देसी कहानी

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आपलोगो के कमेंट पढ़कर मैं रोमांचित हो जाती हूँ,गुदगुदते कमेंट के लिए शुक्रिया आप सबका
24/05/2025

आपलोगो के कमेंट पढ़कर मैं रोमांचित हो जाती हूँ,

गुदगुदते कमेंट के लिए शुक्रिया आप सबका

थक गया हूँ अकेले चलते-चलते...रेलवे स्टेशन पर शाम की हल्की धूप पसरी थी। प्लेटफॉर्म की एक बेंच पर राहुल चुपचाप बैठा फोन पर...
24/05/2025

थक गया हूँ अकेले चलते-चलते...
रेलवे स्टेशन पर शाम की हल्की धूप पसरी थी। प्लेटफॉर्म की एक बेंच पर राहुल चुपचाप बैठा फोन पर व्यस्त था, जब उसकी बगल में आकर एक औरत बैठी। कुछ ही क्षणों में उसकी नजर अनायास ही उस औरत के चेहरे पर पड़ी — और वक़्त जैसे थम सा गया।

"दिव्या?" नाम जैसे होंठों से खुद-ब-खुद निकल गया।

उसने चौंककर देखा। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में सवाल थे — "कौन?"

"मैं... राहुल। पहचान नहीं पाई?"

वो हल्के से मुस्कराई, "हां, पहचान तो लिया। लेकिन ये क्या? बाबाओं जैसी दाढ़ी रख ली है?"

राहुल हँस पड़ा, "समय के साथ बहुत कुछ बदल गया, लेकिन तुम... बिल्कुल नहीं। इतने सालों बाद अकेली यहाँ?"

दिव्या की मुस्कान फीकी पड़ी। "बच्चे कभी हुए नहीं। और पति से... शादी के पाँच साल बाद तलाक हो गया। अब अकेले ही रहती हूँ। तुम सुनाओ, कहाँ हो, कैसी है तुम्हारी बीवी?"

राहुल की नजरें ज़मीन पर टिक गईं।

"शादी...? नहीं की। तुमसे बिछड़ने के बाद कोई ऐसा मिला ही नहीं... माँ के साथ इसी शहर में रहता हूँ। और गाँव... तुम्हारे भाइयों ने वहाँ से जाने पर मजबूर कर दिया था।"

दिव्या की आँखों में नमी उतर आई। ठीक उसी वक़्त उसकी ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आ लगी।

वो उठी, बैग कंधे पर डाला और बिना कुछ कहे बढ़ चली।

राहुल से रहा नहीं गया। वह तेजी से आगे बढ़ा, उसका हाथ थाम लिया।

"ये ट्रेन छोड़ दो ना... अगली से चली जाना...

दिव्या रुकी नहीं। पर उसकी आवाज़ लौट आई —
"थक गई हूँ अकेले चलते-चलते... हमेशा के लिए क्यों नहीं रोक लेते?"

और फिर, सालों का संकोच, दूरी और दर्द बह निकला। वे दोनों रोते हुए एक-दूसरे से लिपट गए — मानो अधूरी कहानी को आखिरकार उसका अंत मिल गया हो।

आधी रात का समय था रोज की तरह एक बुजुर्ग शराब के नशे में अपने घर की तरफ जाने वाली गली से झूमता हुआ जा रहा था , रास्ते में...
15/05/2025

आधी रात का समय था रोज की तरह एक बुजुर्ग शराब के नशे में अपने घर की तरफ जाने वाली गली से झूमता हुआ जा रहा था , रास्ते में एक खंभे की लाइट जल रही थी , उस खंभे के ठीक नीचे एक 15 से 16 साल की लड़की पुराने फटे कपड़े में डरी सहमी सी अपने आँसू पोछते हुए खड़ी थी जैसे ही उस बुजुर्ग की नजर उस लड़की पर पड़ी वह रूक सा गया , लड़की शायद उजाले की चाह में लाइट के खंभे से लगभग चिपकी हुई सी थी , वह बुजुर्ग उसके करीब गया और उससे लड़खड़ाती जबान से पूछा तेरा नाम क्या है , तू कौन है और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है...?

लड़की चुपचाप डरी सहमी नजरों से दूर किसी को देखे जा रही थी उस बुजुर्ग ने जब उस तरफ देखा जहाँ लड़की देख रही थी तो वहाँ चार लड़के उस लड़की को घूर रहे थे , उनमें से एक को वो बुजुर्ग जानता था , लड़का उस बुजुर्ग को देखकर झेप गया और अपने साथियों के साथ वहाँ से चला गया लड़की उस शराब के नशे में बुजुर्ग से भी सशंकित थी फिर भी उसने हिम्मत करके बताया मेरा नाम रूपा है मैं अनाथाश्रम से भाग आई हूँ , वो लोग मुझे आज रात के लिए कहीं भेजने वाले थे , दबी जुबान से बड़ी मुश्किल से वो कह पाई...!

बुजुर्ग:- क्या बात करती है..तू अब कहाँ जाएगी..!

लड़की:- नहीं मालूम.....!

बुजुर्ग:- मेरे घर चलेगी.....?

लड़की मन ही मन सोच रही थी कि ये शराब के नशे में है और आधी रात का समय है ऊपर से ये शरीफ भी नहीं लगता है , और भी कई सवाल उसके मन में धमाचौकड़ी मचाए हुए थे!

बुजुर्ग:- अब आखिरी बार पूछता हूँ मेरे घर चलोगी हमेशा के लिए...?

बदनसीबी को अपना मुकद्दर मान बैठी गहरे घुप्प अँधेरे से घबराई हुई सबकुछ भगवान के भरोसे छोड़कर लड़की ने दबी कुचली जुबान से कहा जी हाँ

उस बुजुर्ग ने झट से लड़की का हाथ कसकर पकड़ा और तेज कदमों से लगभग उसे घसीटते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चला वो नशे में इतना धुत था कि अच्छे से चल भी नहीं पा रहा था किसी तरह लड़खड़ाता हुआ अपने मिट्टी से बने कच्चे घर तक पहुँचा और कुंडी खटखटाई थोड़ी ही देर में उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और पत्नी कुछ बोल पाती कि उससे पहले ही उस बुजुर्ग ने कहा ये लो सम्भालो इसको "बेटी लेकर आया हूँ हमारे लिए" अब हम बाँझ नहीं कहलाएंगे आज से हम भी औलाद वाले हो गए , पत्नी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे और उसने उस लड़की को अपने सीने से लगा लिया।।...😭😭

एक औरत अपने पति को वह कौन सी चीज़ है जो कभी नहीं दे सकती है
15/05/2025

एक औरत अपने पति को वह कौन सी चीज़ है जो कभी नहीं दे सकती है

उसकी आँखों में जो करुणा थी, वह सीधे दिल में उतर गई। न कोई बनावट, न कोई दिखावा — बस एक संघर्षरत बेटी की पुकार थी। जब उसने...
15/05/2025

उसकी आँखों में जो करुणा थी, वह सीधे दिल में उतर गई। न कोई बनावट, न कोई दिखावा — बस एक संघर्षरत बेटी की पुकार थी। जब उसने बताया कि उसके पिता नहीं हैं और माँ ने जैसे-तैसे पाला है, तो मुझे अपने बचपन के वो दिन याद आ गए जब मेरी माँ भी पिता के न रहने पर सब कुछ संभालने की कोशिश करती थी। मुझे लगा, जैसे मैं उसकी पीड़ा को महसूस कर पा रहा हूँ... और शायद इसी वजह से वो मेरे दिल के करीब आती चली गई।”
जब आशा इलाहाबाद चली गई, तो जैसे मन से कोई अपना हिस्सा छीन लिया गया हो। उसका हँसता चेहरा, उसकी मासूम बातें — सब मेरी यादों की दीवारों पर जैसे रोज़ दस्तक देती थीं। लेकिन समय बड़ा ताकतवर होता है, वो हर भावनाओं को धीरे-धीरे बर्फ की तरह जमी हुई चुप्पी में बदल देता है। लेकिन वो चुप्पी कभी-कभी रातों में फूट पड़ती थी… बस मैं किसी से कह नहीं पाता था।”
उसे देखकर मेरी धड़कन थम-सी गई। इतने वर्षों बाद भी वह वैसी ही थी — वही आँखों की चमक, वही स्वर का कंपन, वही अपनापन... लेकिन अब उसके चेहरे पर एक औरत का ठहराव था, एक गहराई थी जो उसके अनुभवों का आईना लगती थी। मैं जानता था, वह खुश थी, पर उसकी मुस्कान में कहीं एक अधूरी तृप्ति की झलक भी थी — जैसे कोई अब भी उसे पूरे मन से समझ नहीं पाया हो।
उसकी आँखों में उस पल इतनी आत्मीयता थी कि मैं ठहर गया। उसका मेरे करीब आना सिर्फ देह की चाह नहीं थी, वह तो जैसे किसी आत्मा की पुकार थी — एक स्नेह, अपनापन, जो उसे जतिन से नहीं मिला। मुझे अहसास हुआ, कि वह किसी ‘पुरुष’ की नहीं, एक ‘मित्र’ की तलाश में थी — जो उसे समझ सके, छू सके — सिर्फ मन से। और तभी मेरी अंतरात्मा ने मुझे रोक लिया। मैं उसके लिए वो नहीं बनना चाहता था, जिसे याद करके उसे ग्लानि हो।”
उसकी आँखों से बहता स्नेह उस दिन शब्दों से ज़्यादा बोल गया। हम दोनों जान गए थे कि हम एक-दूसरे को चाहते हैं, पर यह चाहत प्यार के उस रूप में थी जिसे समाज में नाम नहीं दिया जा सकता। यह पवित्र थी, इसलिए बच गई… अगर हम बहकते तो शायद वो पवित्रता खो देते। उसके स्पर्श में जो धन्यवाद था, वो मेरी आत्मा पर एक अमिट छाप छोड़ गया। उस दिन मैं जीत गया था… अपने भीतर के उस पुरुष से, जो चाह कर भी गिर नहीं पाया।”

घड़ी की बात को लेकर घर में जैसे तूफान सा आ गया था। रोमा ने बिना कुछ सोचे-समझे सबके सामने बबीता पर इल्ज़ाम लगाया था — “तू...
15/05/2025

घड़ी की बात को लेकर घर में जैसे तूफान सा आ गया था। रोमा ने बिना कुछ सोचे-समझे सबके सामने बबीता पर इल्ज़ाम लगाया था — “तू ही चुरा सकती है, और कौन करेगा ऐसा? मंझले तबके से आई है, आदतें भी वही होंगी!”

बबीता का चेहरा सुन पड़ गया था। उसकी आंखें भर आई थीं लेकिन उसने रोते हुए भी कुछ नहीं कहा। वो जानती थी, अगर उसने जवाब दिया तो उसकी बातों का फिर से मज़ाक बनाया जाएगा।

पर उस दिन कुछ टूट गया था बबीता के भीतर।

वो रात चुपचाप कट गई। खाना बनाकर उसने चुपचाप थाली सबके सामने रख दी। खुद कुछ नहीं खाया। कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई। सर तक चादर खींच ली — और बस, आंसू बहने लगे।

उसे याद आने लगे अपने मायके के दिन — माँ का प्यार, पापा की वो चिंता, भाई की हँसी। वहाँ कितनी इज़्ज़त मिलती थी, और यहाँ...? यहाँ तो जैसे उसका कोई वजूद ही नहीं।

उसकी आँखें छत पर टिकी थीं लेकिन दिल जैसे अंदर ही अंदर चीख रहा था।

“मैं क्या सच में इस घर के लिए सिर्फ एक बहू हूँ? एक नौकरानी? जब तक सहूं, ठीक… और जब आवाज़ उठाऊँ, तो बद्तमीज़?”

अचानक दरवाज़ा खटका। सरला जी थीं। उन्होंने देखा — बबीता की आँखें सूजी हुई हैं। पास बैठीं। हाथ उसके सिर पर रखा।

“बेटा, मुझे माफ़ कर दे। शायद मैं भी माँ कहलाने लायक नहीं रही।”

बबीता कुछ नहीं बोली। चुपचाप उनकी गोद में सिर रख दिया।

सरला जी की आंखें भी भर आईं।

“बहू, जब तू इस घर में आई थी, तो मैंने सोचा था एक बेटी मिली है। पर हर बार... हर बार तुझे चुप रहने को कहा। कभी अपनी बेटी को नहीं टोका। शायद डरती थी, वो नाराज़ न हो जाए। लेकिन तुझसे क्यों नहीं डर लगा? क्योंकि तू बहू है ना?”

बबीता सुबक पड़ी — “मम्मी जी, मैंने तो हमेशा इसी घर को अपना समझा। आप सबको अपना समझा। पर कभी-कभी लगता है, जैसे मैं अजनबी हूँ। मुझे सिर्फ तब याद किया जाता है जब काम हो, या कोई झगड़ा सुलझाना हो... पर कोई ये क्यों नहीं सोचता कि मेरे भी जज़्बात हैं? मेरे भी रिश्तों में उम्मीदें हैं...”

सरला जी की आँखों से आंसू बह निकले।

“मैं अब सब ठीक करूँगी। रोमा को भी समझाऊँगी। लेकिन बेटा, तुझे भी वादा करना होगा कि तू खुद को कभी कमजोर मत समझना। तू इस घर की बहू नहीं, बेटी है... और बेटी कभी भी किसी से माफी नहीं मांगती जब उसने कुछ गलत नहीं किया हो। उसे सिर्फ गले लगाया जाता है।”

बबीता ने माँ के आंचल में सिर छिपा लिया। दोनों देर तक यूं ही बैठीं — आंसुओं में बीते रिश्तों की सुलह होती रही।

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06/05/2025

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विपिन और मैं नाश्ते पर थे कि मोबाइल बजा — बाई लता का फोन था, "आज नहीं आऊंगी, कुछ काम है।"मूड थोड़ा बिगड़ा, पर विपिन ने म...
26/04/2025

विपिन और मैं नाश्ते पर थे कि मोबाइल बजा — बाई लता का फोन था, "आज नहीं आऊंगी, कुछ काम है।"
मूड थोड़ा बिगड़ा, पर विपिन ने मुस्कराकर कहा, "टेक इट ईजी, नीरा।"

मैं जानती हूं, 8 सालों से लता हमारे साथ है, पर बारबार छुट्टी लेने से चिढ़ तो होती है।
विपिन ने कहा, "कुछ मत करना, आराम करो। घर साफ है, कोई बच्चा तो है नहीं गंदगी करेगा।"

मैं जानती थी, वह सही कह रहे हैं, पर आदत से मजबूर होकर मैं बरतन धोने लगी। काम करते-करते दिल में बार-बार वही बात गूंजती रही —
"कभी-कभी तुम्हारी सहजता से जलन होती है, विपिन।"

विपिन का अंदाज ही अलग है — हर मुश्किल को इतनी आसानी से झाड़ते हैं जैसे धूल झटक दी हो।
चाहे बेटे पर्व का दिनभर फोन न आना हो या रिश्तेदारों से मिली चोट — विपिन का तरीका बस एक — "जो होना था, हो गया। अब मुस्कुराओ।"

रात को भी अगर मैं करवटें बदलती रहती हूं तो विपिन बेफिक्री से सो जाते हैं।
उनकी सोच में एक शांति है, एक संतोष, जो मैं चाहकर भी नहीं ला पाती।

शाम को जब लौटे, तो मुस्कुरा कर बोले, "बताओ, क्यों जलती हो मुझसे?"
मैं हंस दी, फिर कहा, "गुरुमंत्र तो दो!"

विपिन ने गहरी नजरों से देखते हुए कहा,
"जीवन में जो इच्छानुसार न हो, उसे चुपचाप स्वीकार कर लो। टेक लाइफ एज इट कम्स।"

उनके शब्द मेरे दिल में उतर गए।
हां, मैं जलती हूं, पर इसी जलन में प्रेम भी है, सम्मान भी, और अनकही सी खुशियां भी।

पिछले प्यार की चोट से टूटा रूद्र, ज़िंदगी को जैसे-तैसे जोड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी गौरी उसकी दुनिया में आई — एक ताज़ी...
26/04/2025

पिछले प्यार की चोट से टूटा रूद्र, ज़िंदगी को जैसे-तैसे जोड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी गौरी उसकी दुनिया में आई — एक ताज़ी हवा की तरह।

गौरी ने रूद्र से बिना कुछ माँगे प्यार किया। वह जानती थी, रूद्र अब प्यार से डरता है, फिर भी उसने कभी शिकायत नहीं की, बस अपनी नर्म मुस्कुराहटों में अपना प्यार बुनती रही।
जब-तब हल्के से कह भी देती, "मुझे तुमसे प्यार है।"

रूद्र चिढ़कर कह देता, "नहीं समझ आता तुम्हारा प्यार।"
गौरी बस मुस्कुरा देती, "समझ न आए, पर महसूस तो होता है ना?"

रूद्र अक्सर अपनी बुराइयाँ उसे गिनवाता, जैसे खुद से उसे दूर करने की कोशिश करता हो।
गौरी हर बात चुपचाप सुन लेती, जैसे उसके हर टूटी किरण को अपने आँचल में समेट लेना चाहती हो।

एक दिन रूद्र ने पहाड़ों से कुछ तस्वीरें भेजीं। एक तस्वीर में वह बुज़ुर्ग के साथ हुक्का पीता दिखा।
गौरी की आँखें छलक आईं।
वह जानती थी धुएँ की कितनी कीमत होती है — अपने पिता को खो चुकी थी वह इसी धुएँ में।
कई बार चाहा कि कुछ कहे, पर फिर सोचती, 'प्यार हक़ नहीं, भरोसा माँगता है।'

दो दिन बाद रूद्र लौटा।
गौरी ने चुपचाप उसकी बातें सुनीं।
रूद्र खुद बोला — "मैंने हुक्का पिया।"

गौरी मुस्कुराई, उसकी आँखों में अब भी वही स्नेह था।
"रूद्र, जब दिल से किसी को अपनाते हैं ना, तो उसकी हर कमज़ोरी भी अपनी लगती है।
तुमने जो किया, वो उस पहाड़ी बुज़ुर्ग के सम्मान में था।
प्यार न आदतें देखता है, न मजबूरियाँ — बस दिल देखता है।"

रूद्र बस देखता रहा — पहली बार शायद खुद को बिना शर्त प्यार किया जाता महसूस करते हुए।
उसने गौरी को बाँहों में भर लिया।
गौरी की आँखें भीग गईं —
क्योंकि उसे अपने प्यार पर भरोसा था।
और आज, रूद्र ने भी करना सीख लिया था।

कुछ गलतियों की माफी नहीं होतीरविवार का दिन था और सुबह के ग्यारह बज चुके थे, लेकिन आज दोनों भाई अनुज और प्रदीप घर ही थे। ...
26/04/2025

कुछ गलतियों की माफी नहीं होती
रविवार का दिन था और सुबह के ग्यारह बज चुके थे, लेकिन आज दोनों भाई अनुज और प्रदीप घर ही थे। दोनों की पत्नियां मानसी और विधि रसोई में बर्तनों को पटकती हुई काम कर रही थी, जबकि बच्चे मुंह फुलाए अपने-अपने कमरों में बैठे हुए थे।

आज सबका बाहर घूमने का प्रोग्राम था। सब लोग रिजॉर्ट जाने वाले थे। फिर दिन भर वहां मस्ती करने का प्रोग्राम था। लेकिन जब से सुना है कि प्रदीप और अनुज की छोटी बहन वंशिका घर आ रही है बस तब से सबके मुंह फुल गए।

दोनों भाई आपस में बातें कर ही रहे थे कि उनकी बातें सुनकर विधि रसोई में अपनी जेठानी मानसी के पास गई और उससे बोली,

"पूरा मूड ऑफ हो गया भाभी। अच्छा खासा प्रोग्राम बना था घूमने का। लेकिन वंशिका को भी आज ही आना था। उससे हमारी खुशी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती "ये सुनकर मानसी बोली, "और नहीं तो क्या? उसे भी जरूर कहीं ना कहीं से खबर मिल गई होगी ना कि हमने अपनी पुश्तैनी जमीन बेच दी है। जरूर अपना हिस्सा लेने आ रही होगी"

"राम ही जाने, मैंने तो भैया को इनसे कहते सुना कि वंशिका आ रही है, तो घर पर ही रहना। कोई जरूरी काम है उसे। पर आपकी बात सुनकर लग रहा है कि वो शायद इसीलिए ही आ रही है"

"और नहीं तो क्या? आजकल तो घोर कलयुग है। पहले तो फिर भी बहने प्रॉपर्टी में हिस्सा छोड़ देती थी। लेकिन आजकल जैसे ही पिता की मृत्यु होती है, मुंह फाड़ने लग जाती है। देख लेना इसीलिए ही आ रही होगी। पिछली बार तो बोल नहीं पाई होगी आखिर बाबूजी खत्म ही हुए थे। और रिश्तेदार सब यही थे, लेकिन अब तो अपना हिस्सा लेगी" मानसी ने कहा।

"पर एक बात समझ नहीं आई दीदी। भला उसे कैसे पता चला कि हमने प्रॉपर्टी बेच दी। हमने तो ये काम बहुत ही चोरी छुपे किया था। उसे तो बिल्कुल भनक नहीं लगने दी थी" विधि ने कहा।

"अरे लोगों से दूसरों की खुशियां बर्दाश्त नहीं होती। जरूर किसी ना किसी ने आग लगाई होगी। अब काम भी इतना चोरी छुपे गैर कानूनी तरीके से किया है। पता नहीं क्या होने वाला है। इसीलिए देवर जी और ये दोनों परेशान है। देखते हैं अब क्या होता है "

"अरे ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? थोड़ा बहुत नाराज होगी, गुस्सा होगी, और चिल्लाएगी। इसके अलावा वो क्या कर सकती है?"

दोनों देवरानी जेठानी रसोई में खड़ी खड़ी पंचायती कर ही रही थी। इधर दोनों भाई भी थोड़े परेशान थे कि आखिर कैसे अपनी बहन वंशिका को संभालेंगे।

अभी कुछ महीने पहले ही प्रदीप और अनुज के पिता की मृत्यु हुई थी। मां तो बहुत पहले ही दुनिया से कुच कर चुकी थी। पिता अपने पीछे अच्छी खासी संपत्ति छोड़ कर गए थे। एक बड़ा सा घर था जिसमें दोनों भाई अपने परिवार के साथ रहते थे। काफी सारे गहने थे और इसके अलावा एक पुश्तैनी जमीन भी थी। उनकी एक बेटी भी थी वंशिका जिसका विवाह हो चुका था। वो अपने पति और परिवार के साथ अपने ससुराल में खुश थी। पिता अपने अंतिम समय में वंशिका के पास ही थे। क्योंकि वो पूरी तरह से बिस्तर पर आ चुके थे। भाभियों के पास तो आए दिन कोई ना कोई बहाना होता था। और सबसे बड़ा बहाना तो ये था कि भला ससुर की सेवा कैसे करें। उन्हें अपने हाथों से कैसे खिलाएं पिलाएं। भाइयों के पास इतना वक्त नहीं होता था। वो तो सुबह के गए रात को आते थे।

और हर सप्ताह घूमने फिरने जाने वाले इन लोगों के पास नौकर रखने के जितने पैसे नहीं थे। आखिर अपने पिता की हालत देखकर वंशिका उन्हें अपने साथ ले गई थी। उसके पति और ससुर को भी इससे कोई एतराज नहीं था।

खैर जब कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हुई तो उनके शव को दोनों भाई अपने घर ले आए। और वहीं से सारा क्रिया कर्म किया गया। कहीं बहन अपना हिस्सा न मांग ले इसलिए दोनों भाइयों ने कहा था कि हम अभी प्रॉपर्टी में कोई बंटवारा नहीं करना चाहते हैं।

खैर वंशिका ने भी यही सोच रखा था कि उसे कोई हिस्सा नहीं चाहिए। आखिर पिता जीते जी जिन भाइयों ने कभी याद नहीं किया‌ भला वो पिता के जाने के बाद क्या व्यवहार निभाएंगे। और फिर उसके पास क्या कमी है जो वो प्रॉपर्टी में हिस्सा मांगे। जितनी उसके पति और ससुर की कमाई थी, उसमें उनका गुजर बसर अच्छे से हो रहा था।

उसके हर निर्णय में उसके ससुर और पति के साथ थे। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि वंशिका आज अपने मायके आ रही थी।

थोड़ी देर बाद अचानक बाहर से बड़े भैया के जोर जोर से बोलने की आवाज आने लगी,

"देखो वंशिका, तुम्हें प्रॉपर्टी में कोई हिस्सा मिलेगा इसकी कोई उम्मीद मत करना। माता-पिता की प्रॉपर्टी पर भाइयों का अधिकार ही होता है आखिर उनके सारे कर्जे हम चुका रहे हैं तो उनकी प्रॉपर्टी पर भी हमारा ही हक होगा" उनकी आवाज सुनकर सब लोग बाहर आ गए।

"ये क्या कह रहे हो भैया? पहली बात तो जहां तक मुझे याद है पापा के नाम पर कोई कर्जा नहीं था। और दूसरी बात अगर कोई कर्जा है भी तो मुझे बताइए। मैं भी बराबर योगदान दूंगी कर्जा चुकाने में। पर मैं अपना हिस्सा जरूर लूंगी" वंशिका ने कहा।

"अरे, अब कौन सा कर्जा? सारे कर्जे तो हमने चुका दिए तो अब क्या फायदा। एक बात बताओ।क्या हिस्सा इतना जरूरी हो गया कि उसके लिए अपना मायका छोड़ दोगी? कल को आपके बच्चों की शादी होगी तो भात कौन भरेगा। हम लोग ही ना" अब की बार मानसी ने कहा।

"माफ करना भाभी, लेकिन मुझे नहीं चाहिए आप का भात।आप ही रखिए अपना भात। मैं अपने भात का बंदोबस्त खुद कर लूंगी" वंशिका ने पलट कर जवाब दिया।

"हे भगवान! देखो तो कितना लालच भरा है इसमें। प्रॉपर्टी के लिए अपने बड़े भाई भाभियों के सामने हो गई" छोटे भाई ने कहा।

"भैया, मुझ में लालच भरा हुआ है? ये आप कह रहे हो?वो लोग जो झूठ दस्तावेजों पर प्रॉपर्टी अपने नाम कर रहे हैं वो लोग ये बात कह रहे हैं। कितने शर्म की बात है"

अचानक वंशिका ने कहा तो सबकी बोलती बंद हो गई। आखिर वंशिका को कैसे पता चला। इतने में अनुज ने हकला कर कहा,

"क्या... क्या.... कहना क्या चाहती हो तुम? हमने ऐसा कुछ नहीं किया है। अरे लोग तुझे हमारे खिलाफ भड़का रहे हैं"

"अच्छा! जिसकी दाढ़ी में तिनका होता है ना, उसी की आवाज हकलाने लगती है। शर्म नहीं आई आप लोगों को। मेरा झूठा मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर पुश्तैनी जमीन बेचकर आ गए। जब मेरा मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया था, तब याद नहीं आया था कि इसी मरी हुई बहन के यहां भात भी भरना है"

*वंशिका ने कहा तो काफी देर तक किसी से कुछ कहते ही नहीं बना। लेकिन तब विधि ने बेशर्मी से कहा, "अरे! तुम्हारे भैया नहीं कह पा रहे हैं, तो मैं कहती हूं तुम्हें। तुम्हें तो प्रॉपर्टी में हिस्सा लेने की लग रही है। तुम्हें हिस्सा देकर करें क्या? ये हिस्सा तो तुम्हारे साथ तुम्हारे ससुराल ही चला जाएगा। कल को तुम्हारे बच्चों की शादी होगी तो उसमें भात भरना पड़ेगा तो उसका खर्चा अलग"

"बस भाभी, बहुत बोल लिया आप लोगों ने। आज तक बर्दाश्त ही करती रही। पर अब मुझे मेरे पिता की प्राॅपर्टी में से हिस्सा तो चाहिए। रही बात तुम्हारे भात के खर्चों की तो वो भरने की जरूरत नहीं है। वैसे भी आप लोगों ने नकली दस्तावेज बनवा कर रही सही कसर भी पूरी कर ली। अरे इज्जत से कह देते मुझे कि आपको जमीन बेचनी है। मैं आकर साइन कर जाती। लेकिन नहीं, मन में तो मेल भरा हुआ है आप लोगों के। जो मुझे जीते जी ही मार दिया"

आज तक कुछ ना बोलने वाली वंशिका का इस तरह का रुख देखकर सब की बोलती बंद हो गई। इतना तो सबको समझ में आ चुका था कि वो अब चुप रहने वाली नहीं।

तभी घर के बाहर पुलिस खड़ी देखकर भाइयों के चेहरे पर पसीने की बूंदे चमकने लगी। "वंशिका तूने पुलिस बुला ली।बहन हम तेरे भाई है। थोड़ा हमारे बारे में तो सोच। लोग क्या कहेंगे" अनुज वंशिका के सामने हाथ जोड़ते हुए बोला।

"ये तो मेरा झूठा मृत्यु प्रमाण पत्र बनाकर प्रॉपर्टी बेचने से पहले सोचना चाहिए था। तब क्या मैं तुम लोगों की बहन नहीं थी। रिश्तो को शर्मसार तो आप लोग कर रहे हो। याद रखिए कुछ गलतियों की माफी नहीं होती है" आखिर दोनों भाई-भाभी वंशिका के पैरों में ही गिर पड़े। इतना तो वो लोग भी जानते थे कि अगर वंशिका ने कानून का सहारा लिया तो उसे हिस्सा तो बराबर का ही मिलेगा। साथ ही साथ इतना बड़ा फ्रॉड करने पर दोनों भाइयों को जेल तक हो सकती है।

इसलिए वो लोग अपने बच्चों की दुहाई देते हुए वंशिका से माफी मांगने लगे। उस समय तो वंशिका ने कुछ नहीं कहा।आखिर इस फ्रॉड के कारण दोनों भाइयों को पुलिस पकड़ कर ले गई। लेकिन दो दिन बाद जब भाभियां उसके ससुराल आकर उसके पैरों में गिर पड़ी।

आखिर उन लोगों को इस तरह गिड़गिड़ाते देखकर अपने पति के कहने पर वंशिका ने अपनी शिकायत वापस ले ली। कुछ दिनों बाद काफी मनमुटाव के बाद वंशिका को उसका हिस्सा दे दिया गया। लेकिन अब बोल चाल व्यवहार पूरी तरह से खत्म था। लेकिन वंशिका को अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था।

शर्मीली किचन का काम निपटाकर ड्राइंग रूम में आई । दोपहर के 3:00 बज रहे थे। सोचा पहले पसंदीदा टीवी चैनल पर एक कॉमेडी शो दे...
26/04/2025

शर्मीली किचन का काम निपटाकर ड्राइंग रूम में आई । दोपहर के 3:00 बज रहे थे। सोचा पहले पसंदीदा टीवी चैनल पर एक कॉमेडी शो देखूंगी। इसके बाद आराम करने का इरादा था।

उसने टीवी ऑन किया। अपना चैनल लगाया।

अपने पसंदीदा सीरियल का इंतजार करने लगी। इतने में ही ऑफिस से नवीन का फोन आया।

नवीन- हेलो क्या कर रही हो?

शर्मीली- बस बैठी हूं., काम से अभी फारिग हुई हुं।

नवीन-

ठीक है सुनो, जमालपुर वाली छोटी बुआ के बड़े बेटे का एक्सीडेंट हो गया है ।अस्पताल में भर्ती है। उसे देखने चलना है। मैं ऑफिस से जल्दी आता हूं। आप तैयार रहना ।

शर्मीली- जी ,ठीक है।

शर्मीली ने टीवी बंद किया और कुछ देर आराम करने बिस्तर पर चली गई। सोचने लगी की 5:30 बजे तैयार होकर जाना है। चलो एक घंटे नींद ले लेती हूं । कुछ आराम मिल जाएगा। बिस्तर पर जाते ही वह अतीत में विचरण करने लगी । आने वाले मार्च को जीवन के 40 वर्ष पूरे हो जाएंगे। नवीन के साथ 16 वर्ष । कल की सी बात है । नवीन के साथ मेरी शादी हुई । समय का पता नहीं चला। जब मैंने कस्बे के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 11वीं में दाखिला लिया तो बीच सेशन में नवीन ने स्कूल में दाखिला लिया । नवीन के पापा रेलवे में स्टेशन मास्टर थे। वे झांसी से स्थानांतरण होकर हमारे कस्बे अशोक नगर आए थे। कक्षा 11और 12 तक हमारे मध्य कोई वार्तालाप नही था न कोई दोस्ती। पर नवीन का मेरे प्रति आकर्षण दिखाई देने लगा । वह मेरे आस-पास बने रहने की कोशिश करता। मुझे भी उसकी उपस्थिति का आभास होने लगा।

इतने में ही गाड़ी का हॉर्न बजा। विचारों की श्रृंखला टूट गई। देखा तो नवीन गेट पर गाड़ी लेकर खड़े थे।

शर्मीली _अरे, मैं तो अभी तैयार भी नहीं हुई।

नवीन- आप समय पर कोई काम नहीं करती।

अस्पताल के लिए लेट हो जाएगा।

शर्मीली-जी, बस अभी 5 मिनट में तैयार होती हू।

शर्मीली अपने कमरे में जाती है। हड़बड़ाहट में तैयार होकर बाहर आ गई ।

जल्दबाजी में वह अपनी साड़ी में पिन लगाना भूल गई। लिपस्टिक भी ठीक से नहीं लगा पाई। उसने मुंह फेस वॉश से धोया और बाल संभाले चोटी बनाई। 5 मिनट तो साड़ी की पटलियों को सेट करने में लग गई।

शर्मीली , नवीन से "चलो बाबू मैं तैयार हूं।"

दोनों चलकर गाड़ी में बैठते हैं ।

घर से 7 किलोमीटर दूर सरकारी जिला हॉस्पिटल था। जिसमें उनका रिश्तेदार भर्ती था। नवीन ने गाड़ी पार्क की। और जल्दी से दोनों इमरजेंसी वार्ड की ओर बढे।

नवीन ने शर्मीली की ओर देखा,

और उसके साड़ी बांधने के ढंग को देखकर भड़क गया।

नवीन-तुम्हें तमीज है कि नहीं।

शर्मीली-क्या हुआ जी?

नवीन-खुद ही देखो,

साड़ी कैसे बांध रखी है?

शर्मीली- कैसे?

नवीन_ अरे थोड़ी बहुत शर्म बची है कि नहीं?

नाभि के नीचे के सारे स्ट्रेच मार्क्स दिख रहे हैं।

साड़ी को नाभि से ऊपर करो।

शर्मीली साड़ी को नाभि से ऊपर करती है और,

नवीन के साथ आगे बढ़ी। अन्य रिश्तेदार भी समाचार लेने आए हुए थे। शर्मीली का हौसला टूट गया । औपचारिक शिष्टाचार निभाकर एक कोने में जाकर खड़ी हो गई।

घर पर प्रिंस और स्वीटी मम्मी पापा का इंतजार कर रहे थे। उनके भोजन का समय हो गया था। मम्मी पापा अस्पताल से नहीं लौटे । थोड़ी देर बाद शर्मीली नवीन के साथ घर पर वापिस आती है और चुपचाप किचन में खाना बनाने लगती है। । दोनों बच्चों के साथ नवीन को भी खाना लगा देती है ।।

नवीन-तुमने खाना नहीं खाया क्या?

शर्मीली-मुझे भूख नहीं है,

सिर में दर्द हो रहा है।

नवीन _ तो ,सिर दर्द की गोली ले लो।

शर्मीली- हां ले ली है.

शर्मीली किचन में जाती है, किचन साफ करके बच्चों के साथ बेडरूम में आ जाती है। बच्चों को सुलाने के बाद शर्मीली मुंह ढांप कर सो गई।

नवीन कमरे में आता है।

नवीन-

"अरे , मैंने ऐसा क्या कह दिया ?

कि आपने खाना तक नहीं खाया। भद्दी लग रही थी तुम, इसलिए बोल दिया । । कुछ तो अपने शरीर पर ध्यान दिया करो।

शर्मीली चादर में मुंह छुपाए लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी।

मन में विचारों के भंवर उठने लगे। कि जिस चेहरे के सौंदर्य की प्रशंसा करते नवीन थकता नही था। जिस शरीर की तुलना, कचनार की फूलों से लदी डालियों से करता।

पुरुष जिस स्त्री को सौंदर्य की देवी,

रति की प्रतिमूर्ति और आनंद के आयाम कहते नहीं थकता। वही स्त्री जब मां बन गई,

उसके वंश के बोए हुए बीजों को पौधों में विकसित कर दिया तो उस स्त्री को आज पुरुष ठूंठ कह रहा है।

आखिर स्त्री ने अपना सौंदर्य किसके लिए खोया?

विवाह के 2 वर्ष बाद भी बच्चा नही होने पर अस्पतालों मे डॉक्टरों को दिखाया। झाड फूंक कराई।

देवी देवताओं से मनौती मांगी।

तब जाकर बेटी हुई । जो भी सिजेरियन।

बुआजी, सासू मां का मुंह फूल गया। लड़की हुई है। अगले साल मिसकैरेज हो गया। सासू मां भाग्य को कोसने लगी। अगले वर्ष फिर से गर्भवती हुई। सिजेरियन से बेटा पैदा हुआ । मैं टूट चुकी थी। लेकिन घर में खुशी का माहौल था। सासू मां और ससुर जी की खुशी देखते नहीं बनती क्योंकि उन्हें उनके वंश का कुलदीपक जो मिल गया था।

और नवीन भी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे,
.... वही नवीन आज कह रहा है कि तुम भद्दी लग रही हो। आखिर किसके लिए खोया था मैंने रूप सौंदर्य। दिन निकल आया। पर शर्मीली की आंखों में नींद नहीं थी। वह अपनी खोई हुई स्त्री को खोजने लगी। जो उस पुरुष से बहुत दूर चली गई थी।

स्त्री ने जिस पुरुष को अपना सर्वस्व मानकर अपना वजूद मिटा दिया था।

सब्र का टूटनापति की मौत के बाद आरती ने ससुराल छोड़ने से इनकार किया, बेटे और सास-ससुर का सहारा बनी रही। मगर जेठानी नंदिनी...
26/04/2025

सब्र का टूटना

पति की मौत के बाद आरती ने ससुराल छोड़ने से इनकार किया, बेटे और सास-ससुर का सहारा बनी रही। मगर जेठानी नंदिनी ने हमेशा उसे इल्जामों से घायल किया। जब गहनों को लेकर आरोप आरती के माता-पिता तक पहुंचे, तो उसका सब्र टूट गया।

"अपने पिता से पूछो, गहने कहां गए!" — आरती का गुस्सा फूट पड़ा।

ससुर मोहनलाल जी ने भी साफ कह दिया —
"गहने मां के इलाज में बिके। मकान अब आरती और उसके बेटे का है।"

नंदिनी हमेशा के लिए मायके से दूर हो गई।
कुछ रिश्तों को लालच खुद खत्म कर देता है।

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