World Wide History

World Wide History World Wide History – इतिहास की अनसुनी कहानियाँ, मेवात की विरासत और भारत के गौरवशाली अतीत को सरल भाषा में जानिए। जुड़े रहिए इतिहास की सच्चाई से।

🗺️       aur uska   ka  सिंधु घाटी सभ्यता का चांदी का व्यापार ईरान, अफगानिस्तान और सीरिया तक फैला हुआ था।ये इस बात का सब...
10/07/2025

🗺️ aur uska ka

सिंधु घाटी सभ्यता का चांदी का व्यापार ईरान, अफगानिस्तान और सीरिया तक फैला हुआ था।
ये इस बात का सबूत है कि भारत प्राचीन काल से ही कितना समृद्ध और संपन्न देश रहा है।
भले ही उस समय भारत का आकार आज जितना बड़ा नहीं था,
लेकिन जो भी था — वो भारत ही था, और उसमें अपार सांस्कृतिक संपदा थी।

उस दौर में भारत में कई छोटी-बड़ी सभ्यताएँ और सल्तनतें मौजूद थीं,
जिनमें से सबसे प्रसिद्ध और अद्भुत सभ्यता थी — सिंधु घाटी सभ्यता।
इस सभ्यता ने न केवल व्यापार के जरिए कई देशों से संबंध बनाए,
बल्कि संस्कृति, वास्तुकला और सामाजिक जीवन में भी दुनिया को प्रेरित किया।

बहुत से लोग नहीं जानते कि उस समय ‘सिंधु (Sindhu)’ और ‘हिन्द (Hind)’
दो अलग क्षेत्र माने जाते थे।
यह सच्चाई है कि पहले ये अलग-अलग देश थे, लेकिन समय के साथ
इनके मेल से बना — हमारा समृद्ध भारत।
इसके पीछे भी एक दिलचस्प और ऐतिहासिक कहानी छिपी है,
जिसे मैं आपको आने वाले पोस्ट्स में विस्तार से बताऊंगा।

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1900 के आसपास का चारमीनार कुछ ऐसा ही दिखाई देता था जैसा आप इस फोटो में देख रहे हैं — उस दौर में चारमीनार के चारों ओर मिट...
30/06/2025

1900 के आसपास का चारमीनार कुछ ऐसा ही दिखाई देता था जैसा आप इस फोटो में देख रहे हैं — उस दौर में चारमीनार के चारों ओर मिट्टी की सड़कें हुआ करती थीं और उसके आसपास छोटी-छोटी दुकानों की कतारें बसी होती थीं। लोग धोती, पगड़ी और कुर्ते पहने नजर आते थे। बैलगाड़ी और घोड़ा गाड़ी ही आम सवारी थी, जो चारमीनार के मेहराबों से होकर गुजरती थी। वहां का माहौल बड़ा ही पुराना, शांत और ठेठ देसी था। चारमीनार के ऊंचे मीनारों से पूरे इलाके का नजारा दिखता था और लोग दूर-दूर से आकर इसे देखते थे। आसपास की गलियों में इत्र, चूड़ी और कपड़ों की दुकानें थीं। चारमीनार तब भी उतना ही भव्य था — सिर्फ फर्क इतना था कि भीड़-भाड़ कम थी, बिजली के बल्ब नहीं थे, और हर तरफ एक पुरानी हैदराबादी तहज़ीब की खुशबू बसी रहती थी। ऐसा लगता था मानो वक्त वहीं थम गया हो। #चारमीनार #आसपास #छोटी #बिजली #हैदराबादी

मेवात में बाहड़ एक ऐसा  #नाम है जिसको भुला देना किसी गुनाह से कुछ नहीं है। बाहर एक ऐसा नाम है जिसको इतिहास हमेशा वीरता औ...
28/06/2025

मेवात में बाहड़ एक ऐसा #नाम है जिसको भुला देना किसी गुनाह से कुछ नहीं है। बाहर एक ऐसा नाम है जिसको इतिहास हमेशा वीरता और बहुत जरूरी के लिए याद रखा जाताह।

Mewat ka itihaas में दादा बाहड़ ऐसा नाम है जिसको कभी भूल कर के भी भुलाया नहीं जाता पर आज के इस युग में मेवात के ही 90% लोगों ने दादा बाहड़ को भुला दिया है। इसकी वजह है कि आज कल मेवात के इतिहास को मेवात के लोग खुद याद रहे रखना नहीं चाहते हैं क्योंकि हमने पिछली पोस्ट में हीबता दिय था कि मेवात को आज अपराध का गढ़ मानाजता है।

मैं इसका नाम स्वर्ण अक्षरों मेंक्यों लिखा गया आज की पोस्ट मे हम जानेंगे कि दादा बाहड़ कौन थे और इसका इतिहास किया था। मैं इसका नाम स्वर्ण अक्षरों में क्यों लिखा था। यह मेवात के किस गोत्रस संबंध रखता था।
Pura artical
https://worldwidehistory.org.in

शाद की बैठक – मवाट की वो विरासत जो अब खंडहर बनकर इतिहास सुनाती है 🏞️कभी ये दीवारें गवाह थीं मवाट के बड़े फैसलों की। यहाँ...
26/06/2025

शाद की बैठक – मवाट की वो विरासत जो अब खंडहर बनकर इतिहास सुनाती है 🏞️

कभी ये दीवारें गवाह थीं मवाट के बड़े फैसलों की। यहाँ बैठते थे Meo सरदार, बुजुर्ग और जनप्रतिनिधि, और तय होते थे समाज के रिवाज, सुलह और सम्मान से जुड़े अहम फैसले।

📍 यह है शाद की बैठक, मवाट की एक ऐतिहासिक धरोहर, जो आज भले ही जर्जर हो चुकी है, लेकिन हर पत्थर पर एक कहानी दर्ज है।
यहाँ न कोई शोर होता था, न हथियार चलते थे — बस इज्जत, परंपरा और समझदारी से हल निकलते थे।

🔸 यहाँ Meo बिरादरी के लोग बैठते थे और पंचायतों में फैसले लिए जाते थे।
🔸 झगड़े नहीं सुलह होती थी, गुस्सा नहीं इज़्ज़त होती थी।
🔸 बुजुर्गों की बात को कानून से ऊपर समझा जाता था।

आज जब हम इसे एक खंडहर की तरह देखते हैं, तो दिल में टीस उठती है। ये जगह सिर्फ ईंट और पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि मवाट की तहज़ीब और हमारी अस्मिता की ज़िंदा मिसाल है।

👉 क्या हमें इसे ऐसे ही मिटने देना चाहिए?
अगर नहीं — तो आइए, इस विरासत को बचाने की मुहिम में एक साथ जुड़ें।
📸 इस पोस्ट को शेयर करें, ताकि मवाट की अगली पीढ़ी को अपने गौरवशाली अतीत का अहसास हो सके।

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यह जो आप देख रहे हैं, इसे  #भारत की "ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया" कहते हैं – जी हां, बिलकुल चीन की दीवार की तरह, लेकिन यह राजस्थ...
25/06/2025

यह जो आप देख रहे हैं, इसे #भारत की "ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया" कहते हैं – जी हां, बिलकुल चीन की दीवार की तरह, लेकिन यह राजस्थान में है, और इसका नाम है कुंभलगढ़ किला। इसकी दीवार करीब 36 किलोमीटर लंबी है – सोचिए, इतनी लंबी कि पहले के समय में दुश्मन इसे पार करने की सोच भी नहीं सकते थे।

यह किला #अरावली की पहाड़ियों पर बसा हुआ है, करीब 1100 मीटर की ऊंचाई पर। यहां से दूर-दूर तक का नज़ारा साफ़ दिखता है – मतलब ये कि अगर कोई हमला भी करता था, तो उन्हें बहुत पहले ही देख लिया जाता था। दीवारें इतनी मोटी हैं कि छह घोड़े एक साथ इस पर दौड़ सकते हैं। और इन दीवारों को बिना किसी मशीन के, सिर्फ इंसानों और हाथियों ने बनाया था – वो भी 15वीं सदी में।

कहते हैं कि #महाराणा #कुंभा ने इस किले को बनवाया था, और इसकी दीवार इतनी मजबूत बनाई कि ये आज भी ज्यों की त्यों खड़ी है। अंदर 300 से ज़्यादा मंदिर हैं – हिंदू और जैन दोनों। यहां पर आप राजा-महाराजाओं का रहन-सहन, उनके दरबार और उनके बनाए जलाशय सब देख सकते हैं।

और हां, एक दिलचस्प बात – यहीं कहीं महाराणा प्रताप का भी जन्म हुआ था। यह किला सिर्फ पत्थरों से बना हुआ नहीं है, बल्कि ये वीरता, त्याग और आत्मगौरव की कहानी भी कहता है। शाम के वक्त जब दीवारों पर सूरज की रोशनी पड़ती है, तो पूरा किला सुनहरा लगने लगता है।

तो अगर आप कभी #राजस्थान आएं, तो इस ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ को जरूर देखिए। यह इतिहास नहीं, बल्कि जीता-जागता गौरव है।

देवगिरी किले का इतिहास (      in  ):देवगिरी किला, जिसे बाद में दौलताबाद किला कहा गया, 12वीं शताब्दी में यादव वंश के राजा...
24/06/2025

देवगिरी किले का इतिहास ( in ):

देवगिरी किला, जिसे बाद में दौलताबाद किला कहा गया, 12वीं शताब्दी में यादव वंश के राजा भीलमराज द्वारा बनवाया गया था। यह किला पहाड़ी पर स्थित है, जिससे इसकी रक्षा प्रणाली अत्यंत सशक्त और प्रभावशाली मानी जाती है। शुरुआत में इसका नाम 'देवगिरी' था, जिसका अर्थ होता है "देवों की पहाड़ी"।

1327 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने इस किले की रणनीतिक स्थिति से प्रभावित होकर इसे अपनी राजधानी बना लिया और इसका नाम बदलकर 'दौलताबाद' रखा। उसने अपनी पूरी राजधानी को दिल्ली से यहाँ स्थानांतरित कर दिया, लेकिन असफलता के कारण उसे कुछ वर्षों बाद वापस दिल्ली लौटना पड़ा।

किले की सबसे आकर्षक और प्रसिद्ध संरचना 'चाँद मीनार' है, जिसकी ऊँचाई लगभग 210 फीट है। यह मीनार 15वीं शताब्दी में बहमनी सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह द्वारा विजय की स्मृति में बनवाई गई थी। इस मीनार का स्थापत्य शैली तुर्की प्रभाव में है और यह दूर से ही दिखाई देती है।

देवगिरी किला तीन परतों की सुरक्षा दीवारों, गुप्त सुरंगों और जालों से सुसज्जित है, जिसे पार करना किसी भी दुश्मन के लिए अत्यंत कठिन था। यह किला मराठा साम्राज्य, मुगलों और निजामों के अधीन भी रहा।

आज यह किला भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है, जो पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए अत्यंत आकर्षण का केंद्र है।

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