18/10/2024
दुनिया के हर इक मुद्दे पर गला फाड़ चिल्लाने वालों
जीभ टूट कर कहीं गिरी है या फिर आँखें फूट गईं हैं
बुद्धिजीवियों की मेधा को शायद लकवा मार गया है
गाल - बाल पर, चाल - ढाल पर अपनी कलम चलाने वालो
'टाइप करना' भूल गये हो या फिर बाँहें टूट गईं हैं
नित्य घट रही घटनाओं के शायद ज़िम्मेदार हम्ही हैं
कब तक यह कह कर टालोगे, 'ये सब तो होता रहता है'
एक पक्ष है लगा काम पर, एक पक्ष सोता रहता है
हम तटस्थ ही रहे सदा पर अब मन में आक्रोश भरा है
हमको ज्ञान न देना साहब! अभी हमारा ज़ख़्म हरा है
'शठे शाठ्यम समाचरेत' का पावन मंत्र भुलाने वालों
ये घटनायें आज हमारे स्वाभिमान को लूट गईं हैं
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