10/09/2025
भगवती की अद्भुत शक्ति स्वयं आकाश, जल, तेज, वायु और पृथ्वी रूपिणी है। वे ही सृष्टि के प्रत्येक कण में व्यापिनी होकर मनुष्य के कृत्य का लेखा-जोखा रखती हैं और अधर्माचरण करने वालों को दण्ड देने के लिए उद्दीप्त रहती हैं।
जैसे-जैसे पाप और अधर्म का संचय बढ़ता है, वैसे-वैसे प्रकृति का संतुलन विक्षिप्त होकर भयानक आपदाओं का आविर्भाव करता है। यही दिव्य व्यवस्था है—जिस समय पाप का भार असहनीय हो जाता है, उसी क्षण प्रलयतुल्य आपदा उत्पन्न होती है और समस्त पापात्माओं का अंत सुनिश्चित कर देती है।
तत्कालीन काल में वही जीवित रह सकेगा जो गौ, गंगा और ग्रंथों का रक्षक होगा, जो गोविन्द के वचनों का श्रवण और पालन करेगा, जो आडम्बर, दम्भ और छल-कपट से दूर रहेगा। धर्म ही उसका आधार होगा और सत्य ही उसका पथप्रदर्शक।
अब दैवीय शक्तियों के प्रकट होने का समय निकट है। यह देवोदय का काल है और असुरों के विनाश का भीषण समय समीप है। जो धर्मपरायण, गौसंरक्षक, गंगाभक्त और शास्त्रश्रद्धालु होंगे वही दैवीय कृपा से रक्षित रहेंगे; किंतु जो अधर्म में लिप्त होंगे उनका अंत निश्चित है।
शरण्ये दुर्गे त्रिभुवनजननि त्वन्मायया विश्वमेतत् ।
प्रसीदाम्भोजाक्षि भवतु मम नित्यं त्वत्पादसेवा प्रसीदा ॥
अन्ये यान्त्यस्मात् पथि दुरितमये संहारकाले निरुद्धाः ।
शरणं या दुर्गां न व्रजति नरः स नश्यति क्षिप्रमेव ॥
(हे त्रिभुवनजननी भगवती दुर्गे! आप ही समस्त जगत् की आधारशक्ति हैं। आपके चरणों की सेवा ही हमारा परम आश्रय है।जो लोग आपकी शरण में नहीं आते और अधर्माचरण करते हैं, वे संहारकाल में शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। केवल वही जीवित रहते हैं जो महादुर्गा के चरणों की शरण ग्रहण करते हैं।)
|| दुर्गा दुर्गा दुर्गा ||