विवेक शर्मा - भक्ति मार्ग

विवेक शर्मा - भक्ति मार्ग भक्ति से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है 🙏🙏

जय मां जय मां जय जय मां भक्तिमार्ग से भगवद्भक्ति प्राप्त करना बहुत आसान है ।
जय मां जय मां जय जय मां

शीर्षक : ब्राह्मणों के लोप से देवत्व का लोप(शिवमहापुराण –रुद्रसंहिता ५६.११ पर आधारित दार्शनिक लेख)---वेद, देवता और ब्राह...
23/10/2025

शीर्षक : ब्राह्मणों के लोप से देवत्व का लोप

(शिवमहापुराण –रुद्रसंहिता ५६.११ पर आधारित दार्शनिक लेख)
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वेद, देवता और ब्राह्मण — ये तीनों सनातन धर्म के त्रिधारा स्तम्भ हैं। इनका संबंध बाह्य नहीं, अस्तित्वगत है।
जब इनमें से किसी एक का पतन होता है, तो संपूर्ण धर्मरचना डगमगा जाती है।

इसी शाश्वत सत्य को शिवमहापुराण ने एक सूक्ष्म श्लोक में व्यक्त किया है—

“ब्राह्मणा यदि नष्टाः स्युर्वेदाः नष्टास्ततः स्वयम्।
अष्टेषु प्रणष्टेषु विनष्टाः सन्ततं सुराः॥”
( श्लोक संख्या ११)

अर्थात् यदि ब्राह्मण नष्ट हो जाते हैं, तो वेद भी नष्ट हो जाते हैं, और जब वेद नष्ट हो जाते हैं, तब देवता भी सदा के लिए लुप्त हो जाते हैं।

आज जब ज्ञान के स्थान पर प्रदर्शन और श्रद्धा के स्थान पर सुविधा ने घर कर लिया है, तब एक गम्भीर चेतावनी बनकर सामने आती है कि यदि ब्रह्मविद्या के साधक न रहेंगे, तो वेद का अर्थ मिट जाएगा और देवत्व का अस्तित्व भी लुप्त हो जाएगा।

वेदों की ध्वनि, यज्ञ की ज्वाला और देवत्व का प्रकाश—तीनों का केंद्र ब्राह्मण की जिह्वा है।
अतः जब ब्राह्मण दुर्बल होगा, वेद मूक होंगे और देवता अदृश्य।
यही कारण है कि हमारे शास्त्रों ने बार-बार कहा —
ब्राह्मण की रक्षा, वेद की रक्षा है;
वेद की रक्षा, देवत्व की रक्षा है;
और देवत्व की रक्षा, मानवता की रक्षा है।

अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः। #गुरुदेव_भगवान
17/10/2025

अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।

#गुरुदेव_भगवान

किसी को दोष मत देना जब ऐसा समय आएगा आज तन में बल हैं, बुद्धि में विवेक हैं भजन आज कर लो... वो समय ना भजन होगा ना मन करने...
13/10/2025

किसी को दोष मत देना जब ऐसा समय आएगा

आज तन में बल हैं, बुद्धि में विवेक हैं भजन आज कर लो... वो समय ना भजन होगा ना मन करने का

कलियुग की यह ही तो मौज हैं सबसे बड़ा लाभ हैं

नाम जप सर्वोत्तम

कलियुग केवल नाम अधारा
सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा

जय मां जय मां जय जय मां

विवेक शर्मा - भक्ति मार्ग

 #कुलदेवतायुद्धिष्ठिर कहते हैं-धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ⁠तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत्जो  ...
11/10/2025

#कुलदेवता

युद्धिष्ठिर कहते हैं-
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ⁠
तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत्

जो #धर्म को नष्ट करता है, वह स्वयं भी नष्ट हो जाता है। जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। इसलिए मैं धर्म का त्याग नहीं करता। कहीं ऐसा न हो कि नष्ट हुआ धर्म हमारा नाश कर दे।

#हिंदुओं में अपने पूर्वजों से लगाव का अद्भुत गुण है( #पितृपक्ष आदि इसके साक्ष्य हैं) प्रत्येक पीढ़ी अपने से पिछली पीढ़ी के उच्च नैतिक व धार्मिक मूल्यों का अनुसरण करना चाहती है। हिन्दू यदि वाम भी हो जाए तब भी वो अपने पिता, #पितामह के यश पर गर्व करता है। कुलदेवता इसी परंपरा के मूल हैं। हर गांव, गली-चौराहे और शहर में कोई एक डीहबाबा, बरमबाबा और देवी मंदिर होता है। जो मानो उस स्थान का अधिष्ठाता हो। जिसके अधीनस्थ आस्था का वह वट वृक्ष बरसों से हराभरा है, जिसने जमा देनी परिस्थितियों की शीत हवाएँ और विरोध की ग्रीष्म लू सही है। ये भारत का प्राणरस है।
भारत की कल्पना ही कुछ इस प्रकार की गई है। वैदिक परम्पराओं के #ग्राम_देवता, स्थान देवता, #लोकपाल, #क्षेत्रपाल और दिगपाल की पूजा का भी विधान है हर अनुष्ठान से पहले।
यही भारत है। और इसीलिए भारत की आत्मा 'गांव' में बसती है।
भविष्य पुराण का प्रतिसर्ग पर्व भी इस कथन की पुष्टि करता है - ग्रामे-ग्रामे स्थितो देवः। देशे देशे स्थितो मखः ।। गेहे गेहे स्थितं द्रव्यं । धर्मश्चैव जने जने॥
"भारत के प्रत्येक ग्राम में देव-मन्दिर था, प्रत्येक देश में यज्ञ होता था, घर में द्रव्य का अटूट भण्डार भरा रहता था और प्रत्येक मनुष्य में धर्म का अस्तित्व होता था।"
भारत देवों का देश है सो यहाँ ग्रामदेवता हैं, ब्रह्म बाबा हैं और कुलदेवता हैं। अपनी #कुलदेवता का त्याग कभी न करें। उनकी विधिवत पूजा करिए। शिव तथा विष्णु भी यदि आपके पक्ष में हों किन्तु कुलदेवता वाम हों तो आपकी रक्षा सम्भव नहीं। उनका त्याग कभी न करें जिनके कारण आप हैं। कुलदेवता का त्याग मने अपने प्राण का त्याग। आपके जीवन में सारा अनिष्ट इसी एक कारण से हो रहा है। इनकी सेवा करिए ये आपकी रक्षा करेंगे। लोग कई पीढ़ियों से नरक भोग रहे हैं, जीवन में कुछ अच्छा नहीं हो रहा। इसका मूल कारण होता है अपने कुलदेवता से दूर भागना। कुंडली का कोई भी योग, कोई ग्रह, नक्षत्र आपके पक्ष में काम नहीं करेगा जबतक कि आप इनके शरण में नहीं जाते हैं।
कुलदेवी की कृपा से बड़े-बड़े संकट टल जाते हैं। जब हम तंत्र शास्त्र की बात करते हैं, तो अगर कोई व्यक्ति आपको नजर दोष देता है, तंत्र प्रयोग करता है, या उच्चाटन करता है, तो आपके और उस तंत्र प्रयोग के बीच में कुलदेवी एक ढाल बनकर खड़ी हो जाती हैं। अगर कुलदेवी आपसे प्रसन्न हैं, तो वह प्रयोग कभी आप तक नहीं पहुँच पाएगा। कुलदेवी आपके जीवन की रक्षा और संवर्धन के लिए दी गई हैं। कुलदेवी-कुलदेवता दर्शन घर की मूर्ति में ही हैं, उन्हें सजीव मानें। दूर तीर्थों से पहले घर के देवों से जुड़ें। कुलदेवता कुलदेवी या कुलदेव होते हैं, जिन्हें कुल का रक्षक माना जाता है। इसलिए, किसी भी अवसर, जैसे विवाह, जन्म या नामकरण संस्कार, पर उनकी पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

यदि #कुलदेवता का ज्ञान नहीं है तो पता करिए। किसी ज्योतिष से मिलकर कुण्डली के नक्षत्र के अनुसार यह जान सकते हैं। वंश परम्परा में जो देवता पूजे जा रहे हैं उनका ध्यान रखना चाहिए। बूढ़े-बुजुर्गों से मिलकर इसे जाना जा सकता है। अपने कुल पुरोहित से जाना जा सकता है। सबसे बढ़िया है अपने गोत्र के अनुसार ढूंढ लें। अगर आप मार्कण्डेय ऋषि की संतान हैं या आपका गोत्र मार्कण्डेय है, तो माँ बिंदवासिनी या महाभागा देवी आपकी #कुलदेवी हैं पाराशर गोत्र के लिए प्रभावती देवी, गौतम गोत्र के लिए विशालेषा या विश्लेषा देवी, भारद्वाज गोत्र के लिए सरस्वती का रूप श्री माता, गर्ग गोत्र के लिए देविका देवी, जंदल गोत्र के लिए बाला सुंदरी या त्रिपुरा महासुंदरी का रूप बाला शोडशी, शांडिल्य गोत्र के लिए माँ शारदा का रूप कात्यायनी देवी, याजवल्क्य गोत्र के लिए दुर्गेश्वरी देवी, सौ गोत्र के लिए महासिद्धा या सिद्धेश्वरी देवी मानी गई हैं। वशिष्ठ गोत्र के लिए भट्टारिका या दुर्गा देवी का रूप सत्य देवी, जिसे भट्टारिका भी कहते हैं। अत्रि गोत्र के लिए शिवप्रिया देवी, अंगिरस गोत्र के लिए चंडिका या प्रचंडिका देवी, कौशिक गोत्र के लिए गोत्रपा देवी, कश्यप गोत्र के लिए त्रिपदा देवी, भार्गव गोत्र के लिए तारी देवी, भृगु गोत्र के लिए विश्वेश्वरी देवी और मरीचि गोत्र के लिए भगवती कला देवी मानी गई हैं। पुलस्त्य, पुलह, और कृत् गोत्रों में कुलदेवी का विधान नहीं मिलता। इनमें ब्रह्मा के माध्यम से कुलदेवता का विधान मिलता है। श्री ब्रह्मा, श्री विश्वेश्वर विष्णु जी महाराज, और भगवान शंकर, या इन तीनों का स्वरूप दत्तात्रेय भगवान—ये इनके कुलदेवता माने गए हैं। अलग-अलग गाँव, खेड़ा, पिंड, या क्षेत्र में अलग-अलग क्षेत्रपाल हो सकते हैं। इसका विचार आपको अपनी कुल परंपरा, प्रवर परंपरा, या कुलाचार परंपरा के आधार पर करना होगा।
उदाहरण के लिए, अगर आप गुजरात से हैं, तो आपकी कुलदेवी अंबाजी हो सकती हैं। अगर आप महाराष्ट्र या मुंबई से हैं, तो तुलजा भवानी या मुम्बा देवी आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। अगर आप छत्तीसगढ़ क्षेत्र से हैं, तो मुम्बा देवी ही आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। कश्मीर या पंजाब क्षेत्र के लोग चंडी पूर्ण नैना देवी, ज्वालामुखी, परमेश्वरी, या वृजेश्वरी देवी को अपनी कुलदेवी मान सकते हैं। दक्षिण भारत में माँ प्रत्यंगिरा, त्रिपुरा महासुंदरी, शोडशी, या ललिता आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। असम में माँ कामाख्या, नीलांचल पर्वत वासिनी, या गोड क्षेत्र में माँ तारा आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। कुलदेवी की कृपा अगर आपके ऊपर है, तो कोई आपके परिवार या आपके बाल-गोपालों को छू भी नहीं सकता। कुलदेवता की सेवा करें। साथ में शालिग्राम को भी पूज लें कोई क्षति नहीं है #ज्वालामुखी, #नरसिंह, सोखा(वीरभद्र), धर्मराज(कारिक पंजियार) तथा तारा में से कोई भी आपके #कुलदेवता हैं तो कृपया आज ही उनके चरण धरें, ये सबसे उग्र में से हैं दया नहीं करते हैं।

राम-कृष्ण को पूजने वाले #वैष्णवपंथी हैं क्योंकि ये अपने मूल मत से कन्वर्ट होकर वैष्णव बने हैं। राम या कृष्ण किसी के भी कुलदेवता नही हैं। शिव और विष्णु अपने मूल रूप में कुलदेवता नही हैं किसी के भी। वे कुलदेवता हैं किंतु दूसरे नाम से। शिव अपने मूल रूप में किसी के कुलदेवता नही हैं। वे वीरभद्र(सोखाबाबा) के रूप में कुलदेवता होते हैं। शिव प्रायः अपने रुद्र या ऐसे ही किसी रूप के नाम से कुलदेवता हैं, अपने नाम से नहीं। नरसिंह के रूप में विष्णु कुलदेवता होते हैं। नरसिंह भगवान को बलि पड़ता है। किंतु वे लोकदेवता हैं जो ढेर लोगों के कुलदेवता हैं सो वे वैष्णव की सीमा से दूर हैं।
धर्मराज अपने नाम से कुलदेवता हैं। जबकि जितनी भी #देवियाँ हैं वो कट्टर जीवों की कुलदेवी हैं।
कुलदेवताओं में काली सबसे सौम्य मानी गयी हैं। ज्वालामुखी सबसे उग्र मानी जाती हैं, इनके उपासक अन्य किसी देव को पूजा या बलि या भोग नहीं देते, हम दुर्गापूजा में कन्या-भोजन नहीं करवाते, बलि नहीं देते। धर्म को टूरिज्म समझने वाले यह नहीं समझ सकेंगे। ज्वालामुखी की पूजा स्त्रियां भी नहीं कर सकती हैं। मान्यता है कि यदि ज्वालामुखी का सेवक खड़ा है तो अन्य कुलदेवता अपनी पूजा स्वीकार नहीं करते। या तो ज्वालामुखी के सेवक(कुलदेवता/देवी के सेवक होते हैं,भक्त नहीं) को हटाइए या फिर उन्हें पूजा दीजिए जो बहुत ही ज्यादा कठिन है, सब पूजा भी नहीं कर सकते। नियम यह है कि ज्वालामुखी अपूजित युगों तक रह जाएँगी किन्तु कोई स्त्री उनकी पूजा नहीं करेगी, जब वंश में पुरुष होगा तब पूजा होगी।
अच्छा, जिन देवताओं को बलि का विधान है उन्हें वह करना चाहिए। एक सहकर्मी हैं जिनके कुलदेवता धर्मराज हैं। वे बलि देना बन्द कर दिए क्योंकि उन्हें अच्छा नहीं लगता था। उनके यहाँ उपद्रव होने लगा, परिवार अस्थिर हो गया।
#दुर्गा किसी की कुलदेवी नही होती हैं इसीलिए सब उनकी पूजा करते हैं। दीवाली के रात में काली-पूजा वे करते हैं जो #काली के सेवक होते हैं। कोई किसी दूसरे की कुलदेवी की पूजा नहीं करता, हम तो दूसरों की कुलदेवता के मंदिर भी नहीं जाते। धर्म गहरा विषय है, सूक्ष्म है।

यह धर्म #ब्राह्मणों का है, उनके बनाए नियम ही मान्य होंगे। युगों से ब्राह्मणों ने अत्याचार झेला और अपने धर्म को पुनर्गठित किया और ऐसा बनाया कि शासक शिव, शक्ति को राज्य अर्पित करने लगे।
इसे ऐसे समझें- पुष्यमित्र से पूर्व राजा इंद्र का प्रतिनिधि होता था, राज्य उसका था। पुष्यमित्र के बाद से राजा अपने कुलदेवता का सेवक मात्र था, राज्य कुलदेवता को अर्पित करता था। देवता के प्रतिनिधि के रूप में ब्राह्मण उसके राजकाज को देखते थे। इसी तरह मेवाड़ के महाराणा शासक नहीं थे।

अब यह कि #कुलदेवता की पूजा कैसे हो। तो आपके परिवार, वंश परम्परा में जो पूजा चली आ रही वह वार्षिक होता है उसे जानिए और कीजिए। दूसरा, कि सबसे आसान यह है कि यदि धूप, दीप, फूल व जल हेतु 5 रुपया भी नहीं है तो स्त्रीगण स्नान के पश्चात अपने आँचल के कोर को भिंगा लें व उससे टपकते जल से अपने कुलदेवता को अर्घ्य दे दें। पुरुष अंजुरी भर जल अपने कुलदेवता के नाम पर अर्पित करें। आप इसे नियमित करिए और तब परिवर्तन देखिए। कुलदेवता #साक्षात् खड़े हो जाते हैं आपके दुःखों के समक्ष।

बड़े भाई अवनीश कुमार जी की वॉल से

श्मशान-कालिका काली भद्रकाली कपालिनी ।गुह्य-काली महाकाली कुरु-कुल्ला विरोधिनी ।।।कालिका काल-रात्रिश्च महा-काल-नितम्बिनी ।...
01/10/2025

श्मशान-कालिका काली भद्रकाली कपालिनी ।
गुह्य-काली महाकाली कुरु-कुल्ला विरोधिनी ।।।
कालिका काल-रात्रिश्च महा-काल-नितम्बिनी ।
काल-भैरव-भार्या च कुल-वत्र्म-प्रकाशिनी ।।

महानवमी की आप सभी को शुभकामनाएं ,
भगवती सबका कल्याण करें सबका भला करें ।

जय मां जय मां जय जय मां

शशिसूर्ये गजारूढ़ा , शनिभौमे तुरंगमे ।गुरुशुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।फलम् - गजे च जलदा देवी , छत्रभङ्ग तुरं...
22/09/2025

शशिसूर्ये गजारूढ़ा , शनिभौमे तुरंगमे ।
गुरुशुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।

फलम् - गजे च जलदा देवी , छत्रभङ्ग तुरंगमे ।
नौकायां सर्व सिद्धिस्यात् दोलायां मरणं धुव्रम् ।।

इस नवरात्र माता का आगमन गज यानी हाथी पर होता है। श्रीमदेवी भागवत महापुराण के अनुसार, जब भी माता का आगमन हाथी पर होता है तो यह बेहद ही शुभ माता जाता है। माता के हाथी पर आगमन का अर्थ है कि कृषी में वृद्धि होती साथ ही देश में धन समृद्धि में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।

|| जय हो मां भगवती ||
🪷शुभ नवरात्र🪷

गुरुकृपा ही केवलम
देवीमयम जगत सर्वम

🙏🌺।। देवी दुर्गा उमा, विश्व जननी रमा मातु तारा,                     एक जगदम्बा तेरा सहारा  ।। 🌺🙏
20/09/2025

🙏🌺।। देवी दुर्गा उमा, विश्व जननी रमा मातु तारा,
एक जगदम्बा तेरा सहारा ।। 🌺🙏

18/09/2025

मां का इंतजार है , मां आयेगी सबका मंगल करेंगी ।

प्रेम से बोलो जय मां जय मां

जय मां जय मां जय जय मां

माई सबका मंगल करें सबका भला करे , बोलो राजराजेश्वरी भगवती जगतजननी जगदम्बा की जय ।

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। आप सभी को  #हिंदी_दिवस की हार्दिक बधाई ए...
14/09/2025

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

आप सभी को #हिंदी_दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

हिंदी भाषा ने विश्व मंच पर भारत को एक विशिष्ट स्थान दिलाया है। इसकी सरलता, सहजता और संवेदनशीलता हर व्यक्ति को आकर्षित करती है।
आइए, हम सब मिलकर अपनी मातृभाषा हिंदी को समृद्ध करें, उसकी गरिमा को बढ़ाएँ और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे संरक्षित करें।

हिंदी है हमारी पहचान, इसे अपनाएं, इसे प्रोत्साहित करें।
#हिंदीदिवस

आप निर्वस्त्र आये थे आप निर्वस्त्र ही जायेंगे, आप कमज़ोर आये थे आप कमज़ोर ही जायेंगे, आप बिना धन-संपदा के आये थे आप बिना...
13/09/2025

आप निर्वस्त्र आये थे आप निर्वस्त्र ही जायेंगे, आप कमज़ोर आये थे आप कमज़ोर ही जायेंगे, आप बिना धन-संपदा के आये थे आप बिना धन-संपदा के ही जायेंगे, आपने पहला स्नान भी आपने स्वंय नहीं किया। आपका अंतिम स्नान भी आप स्वंय नहीं कर पायेंगे, यही सच्चाई है। फिर किस बात का इतना अभिमान, किस बात की इतनी नफरत, किस बात की इतनी दुर्भावना, किस बात की इतनी खुदगर्जी, इस धरती पर हमारे लिए बहुत ही सीमित समय है, और हम इन मूल्यहीन बातों में बर्बाद कर रहे हैं। बस भगवती का नाम लें और शांति और आनंद का जीवन जिएं।

जय मां जय मां कहिए और बड़े मजे में रहिए

ां

माई सबका भला करे सबका कल्याण करे ।

विवेक शर्मा - भक्ति मार्ग

भगवती की अद्भुत शक्ति स्वयं आकाश, जल, तेज, वायु और पृथ्वी रूपिणी है। वे ही सृष्टि के प्रत्येक कण में व्यापिनी होकर मनुष्...
10/09/2025

भगवती की अद्भुत शक्ति स्वयं आकाश, जल, तेज, वायु और पृथ्वी रूपिणी है। वे ही सृष्टि के प्रत्येक कण में व्यापिनी होकर मनुष्य के कृत्य का लेखा-जोखा रखती हैं और अधर्माचरण करने वालों को दण्ड देने के लिए उद्दीप्त रहती हैं।

जैसे-जैसे पाप और अधर्म का संचय बढ़ता है, वैसे-वैसे प्रकृति का संतुलन विक्षिप्त होकर भयानक आपदाओं का आविर्भाव करता है। यही दिव्य व्यवस्था है—जिस समय पाप का भार असहनीय हो जाता है, उसी क्षण प्रलयतुल्य आपदा उत्पन्न होती है और समस्त पापात्माओं का अंत सुनिश्चित कर देती है।

तत्कालीन काल में वही जीवित रह सकेगा जो गौ, गंगा और ग्रंथों का रक्षक होगा, जो गोविन्द के वचनों का श्रवण और पालन करेगा, जो आडम्बर, दम्भ और छल-कपट से दूर रहेगा। धर्म ही उसका आधार होगा और सत्य ही उसका पथप्रदर्शक।

अब दैवीय शक्तियों के प्रकट होने का समय निकट है। यह देवोदय का काल है और असुरों के विनाश का भीषण समय समीप है। जो धर्मपरायण, गौसंरक्षक, गंगाभक्त और शास्त्रश्रद्धालु होंगे वही दैवीय कृपा से रक्षित रहेंगे; किंतु जो अधर्म में लिप्त होंगे उनका अंत निश्चित है।

शरण्ये दुर्गे त्रिभुवनजननि त्वन्मायया विश्वमेतत् ।
प्रसीदाम्भोजाक्षि भवतु मम नित्यं त्वत्पादसेवा प्रसीदा ॥
अन्ये यान्त्यस्मात् पथि दुरितमये संहारकाले निरुद्धाः ।
शरणं या दुर्गां न व्रजति नरः स नश्यति क्षिप्रमेव ॥

(हे त्रिभुवनजननी भगवती दुर्गे! आप ही समस्त जगत् की आधारशक्ति हैं। आपके चरणों की सेवा ही हमारा परम आश्रय है।जो लोग आपकी शरण में नहीं आते और अधर्माचरण करते हैं, वे संहारकाल में शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। केवल वही जीवित रहते हैं जो महादुर्गा के चरणों की शरण ग्रहण करते हैं।)

|| दुर्गा दुर्गा दुर्गा ||

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