
27/07/2025
सुबह से ही #अखरोट का पेड़ ढूंढ रहे हैं पर अखरोट तोड़ने के लिए नहीं क्योंकि उसका तो मौसम ही नहीं है, बस आज अखरोट की #दातुन जो करनी है।
पर ऐसा भी नहीं है कि यहाँ अखरोट के पेड़ों की कमी है, ढेरों #पेड़ हैं पर सब इतने ऊंचे की टहनी तक पहुंचने के लिए या तो सीढ़ी लो या फिर पेड़ पर चढ़ो, सीढ़ी तो यहाँ तक कहाँ मिलेगी और इस सर्दी में पेड़ पर चढ़ने के अपना कोई इरादा नहीं है। तो बेहतर लगा कि #अत्रि ऋषि की गुफा की और चलते हैं वहीं रास्ते में कोई पेड़ मिल जाएगी तो दातुन भी हो जाएगी।
मंदिर से #गुफा के रास्ता यही को डेढ़ से दो किलोमीटर होगा पर आसान सा रास्ता है और साथ ही पूरा रास्ता घने जंगल से होकर जाता है तो थकान का कोई मतलब ही नहीं बनता। छोटी से #पगडंडी आगे जाकर दो पगडंडियों में बदल जाती है, दायीं ओर नीचे अत्रि #ऋषि की गुफा की तरफ चली जाती है और बायीं और रुद्रनाथ जी के मंदिर की ओर, जो यहाँ से 20 किमी बेहद ज्यादा चढ़ाई वाला रास्ता है, पर हमें वहां नहीं जाना , कम से कम आज तो बिल्कुल नहीं तो दाहिनी ओर मुड़ जाते हैं।
थोड़ा आगे जाकर ही पगडंडी नीचे #घाटी में उतरने लगती है, एकबार को तो लगा कि शायद कहीं गलत रास्ते पर तो नहीं पर थोड़ा आगे ही कुछ घण्टियाँ दिखाई देने लगती हैं जिनसे आभास लग जाता है कि सही रास्ते पर हैं, दूर कहीं पानी ले गिरने की आवाज आ रही है, अंदाजा लग जाता कि वह बड़ा झरना पास ही है।
दूर एक #दिगम्बर साधु दिखायी देते हैं, और शायद उन्होंने भी हमें देख लिया तो वह एक छोटी सी कोठरी जो कुछ पत्थरों को जोड़कर बनाई गई है उसमें चले जाते हैं...हमारा मन था कि कुछ देर उनके पास बैठ कर कुछ #भगवत चर्चा होगी पर हमें देखते ही वह अंदर चले गए और इशारों से बता दिया कि गुफा और आगे है।
बाबा जी ने यहीं पत्थर पर लिखा हुआ है कि वह #मौनव्रती हैं जो बात नहीं कर सकते तो वहां रुकने का कोई औचित्य तो नहीं बनता, हालांकि थोड़ी देर रुका जा सकता था...पर उन्हें डिस्टर्ब करना सही नहीं लगा।
#साधुबाबा की कुटिया झरने के बिल्कुल नजदीक है, वहीँ चारों और पानी बह रहा है, पर ऊपर देखने पर इतना बड़ा स्रोत नहीं नजर आ रहा जैसा कि नीचे मण्डल से दिखाई देता है...ये वह झरना तो नहीं हो सकता...आगे पगडंडी के नाम पर केवल ऊपर से बह कर आये छोटे बड़े #पत्थर हैं, जिनसे कूद फांद कर हमें दूसरी और जाना है। कुछ पत्थर इतने विशाल हैं कि क्रेन से भी ना उठें, आश्चर्य होता है कि यही पत्थर बरसाती पानी के साथ ऊपर से नीचे आ गए होंगे।
इस जगह को पार करके फिर आगे सीढियां बनी हैं, और थोड़ा सा आगे चल कर एक बैठने के लिए शेड बना हुआ है, इसके आगे अब कोई रास्ता नहीं है, ऊपर पहाड़ और नीचे #खाई, समझ नहीं आता कि अब कहाँ जाएं, सीधे पहाड़ के साथ बमुश्किल एक इंसान के चलने भर की जगह है, वही #पहाड़ को पकड़ कर थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो एक विशाल झरना सामने प्रकट होते है। दोनों ही आश्चर्यमिश्रित खुशी से बोलते हैं कि हाँ यही तो है, यही है वह #झरना जो नीचे ट्रेक शुरू करते समय दिखाई देता है।
झरना तो मिल गया, पर अब वहां तक जाएं कैसे क्योंकि वहीं पर गुफा भी है जो अत्रि ऋषि की #तपोस्थली थी ।
आगे कोई रास्ता नहीं है, तभी पहाड़ पर नजर पड़ती है, देखा तो एक जंजीर पड़ी है, मतलब इस #जंजीर के सहारे ऊपर जाना होगा। ये कोई आसान खेल नहीं है, पांव फिसला कि नीचे खाई में जहाँ से बचाने कोई नहीं आएगा।
एक मन करता है कि वापिस चलें क्योंकि ज्यादातर लोग यहीं से #दर्शन करके लौट जाते हैं, पर फिर एक मन ने कहा कि जब इतना दूर आये हैं तो एक बार प्रयास करना तो बनता है।
वपिस उसी शेड में आकर जूते उतारकर वापिस आकर ऊपर चढ़ना शुरू करते हैं।
एक एक कदम संभल कर और #सटीकता से रखना ही एकमात्र उपाय है, वरना थोड़ी सी लापरवाही और सीधा सैकड़ों फ़ीट नीचे खाई में।
थोड़ी सी जद्दोजहद के बाद आखिरकार ऊपर पहुंच ही गए। पर ये क्या, यहाँ आगे फिर एक मुसीबत सामने खड़ी थी। गुफा और झरने तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर एक झिरी सी बनी हुई थी जिसमें से रेंगकर ही उसपार जाया जा सकता था । उस पार जहां वह झरना हमें पुकार रहा था और वह गुफा जहां हजारों लाखों साल पहले अत्रि ऋषि #तप किया करते होंगे।
हालांकि यह झिरी कोई 25 से 30 फ़ीट ही लंबी होगी पर जगह केवल इतनी की लेट कर धीरे धीरे ही शरीर को धक्का देकर उधर पहुंचा दिया जाए, और इसका #ढलान भी खाई की और था, मतलब आप फिसले तो फिर बचने के चांस 0% ही हैं।
अब यहाँ #हिम्मत जवाब दे रही थी, अगर खुली जगह होती तो लेटकर 50 फ़ीट भी चला जाऊं पर यहाँ तो देखकर ही दम सा घुट रहा था अंदर रेंग कर जाने की सोचने भर से रोंगटे खड़े हो रहे थे।
मैंने साथी को पूछा कि क्या करें, #उम्मीद थी साथी हाथ खड़े करदे तो इज्जत के साथ वापिस हो जाएंगे, मगर ये हो न सका और अब ये आलम है, #साथी ने कहा अब वापिस वहां होकर ही आएंगे... आगे आगे मुझे जाने दो, फिर तुम आना और ये तो घुस गए। थोड़ी देर तक हाथपैर चला कर उधर पहुंच तो गए पर इस दौरान #जान हलक में अटकी थी।
अब मेरी बारी थी, मैंने जैसे ही अंदर घुसने की कोशिश की वैसे ही #दम सा घुटता महसूस हुआ, लगा कि यह चट्टान मुझे यहीं दबा लेगी। मैं तुरन्त वापिस निकल कर बैठ गया, साथी को बोला कि मुझसे ये नहीं हो पायेगा। आप जाओ, मैं यहीं रुकता हूँ....
पर क्या वाकई मैं रुकना चाहता था?
या क्या मैं वाकई रुक पाऊंगा?
और
सबसे #महत्वपूर्ण बात कि क्या वाकई मुझे रुकने दिया जाएगा ?
जानने के लिए बने रहिए हमारे साथ 😊😊😊
श्री श्री 2025 बाबा नीरजदास जी महाराज
अप्रैल 2025 मण्डल #उत्तराखंड
Part14