02/09/2025
#”बादशाहत का खात्मा”
#सआदत हसन मंटो की कहानी में से एक……..
टेलीफोन बजा मनमोहन पास ही बैठा था। उसने रिसीवर उठाया और कहा, 'हेलो... फोर फोर फोर - फाईव सेवन...."
दूसरी तरफ से मीठी सी आवाज आई 'सोरी रोंग नंबर मनमोहन ने रिसीवर रख दिया और किताब पढने में मशगूल हो गया।
मनमोहन का अपना कोई ठिकाना ना था। कुछ दिनों के लिए वो अपने एक दोस्त की गैर हजारी में दफ्तर की देखभाल के लिए ठहरा था।
नौकरी से उसे नफरत थी। दोस्त उसके रोजाना के खाने - पीने का बंदोबस्त कर देते थे।
जिंदगी में सिर्फ उसको एक चीज की हसरत थी औरत की मोहब्बत की। "अगर मुझे किसी औरत की मोहब्बत मिल गई तो मेरी सारी जिंदगी बदल जाएगी।"
दोपहर के खाने का वक्त करीब आरहा था। टेलीफोन की घंटी बजना शुरू हुई। उसने रिसीवर उठाया और कहा, हेलो... फोर फोर फोर - फाईव सेवन।"
दूसरी तरफ से मीठी सी आवाज आई, "फोर फोर फोर - फाईव सेवन?"
मनमोहन ने जवाब दिया, "जी हाँ।"
मीठी आवाज ने पूछा, "आप कौन हैं?"
"मनमोहन!... फरमाईए!"
आवाज मुस्कुराई, "मदनमोहन
"जी नहीं... मनमोहन ।"
"मनमोहन?"
दूसरे रोज सुबह दोबारा टेलीफोन आया।
आवाज आई, "आदाब अर्ज मनमोहन साहब!"
"आदाब अर्ज!" मनमोहन एक दम चौंका, "ओह, आप... आदाब अर्ज ।"
"तस्लीमात !"
बताईए आपको किस चीज का शौक है?"
फोटोग्राफी का थोड़ा सा शौक
'ये बहुत अच्छा शौक है।
दोस्त कैमरा से मांग कर शौक पूरा कर लेता हूँ।
मुझे बहुत पसंद है । एग्जक्टा, रेफलेक्स कैमरा है। एक दिन जरूर खरीदूंग।
'आपने, मेरा - ना नाम पूछा, - ना टेलीफोन नंबर ।"
आप चाहती है के, - मैं आपको टेलीफोन करूं तो नाम और नंबर बता दीजिएगा।"
अगले दिन, वही आवाज आई, "मिस्टर मनमोहन।"
इरशाद ।"
'इरशाद ये है कि मैंने आज दिन में कई मर्तबा रिंग किया। आप कहाँ गायब थे?"
"साहब बेकार हूँ, लेकिन फिर भी काम पर जाता हूँ।"
"किस काम पर?"
"आवारागर्दी ।"
अगले दिन शाम तकरीबन सात बजे टेलीफोन की घंटी बजी। मनमोहन ने रिसीवर उठाया और तेजी से पूछा, "कौन है?"
वही आवाज आई, "मैं!"
मनमोहन ने कहा, " मुझसे इंतिजार बर्दाश्त नहीं होता।
"आज की माफी चाहती हूँ। कल से सुबह और शाम फोन आया करेगा आपको।
"ये ठीक है!"
अब हर रोज सुबह और शाम मनमोहन को उसका टेलीफोन आता। घंटों बातें जारी रहतीं।
एक दिन, - वो बड़ा टेढ़ा सवाल कर बैठी, 'मोहन तुमने कभी किसी लड़की से मोहब्बत की है?"
मनमोहन ने जवाब दिया, "नहीं।"
टेलीफोन का रिश्ता कायम हुए तक्रीबन एक महीना होगया।
मनमोहन को अपने दोस्त का खत आया कि कर्जे का बंदोबस्त होगया है। सात-आठ रोज में वो बंबई पहुंचने वाला है।
जब - उस मीठी आवाज़ का टेलीफोन आया तो मनमोहन ने उससे कहा, मेरी दफ्तर की बादशाही अब चंद दिनों की मेहमान है।
उसने पूछा, "क्यों?"
मनमोहन ने जवाब दिया, "कर्जे का बंदोबस्त हो गया है... दफ्तर आबाद होने वाला है।"
आखिरी दिन जब तुम्हारी बादशाहत खत्म होने वाली होगी, मैं तुम्हें अपना नंबर दूंगी।"
मनमोहन ने उससे कहा, ……. 'तुम्हें देखने की चाह हो रही है।"
'तुम मुझे जब चाहो देख सकते हो... आज ही देख लो।"
"नहीं नहीं..." फिर कुछ सोच कर कहा, "मैं जरा अच्छे लिबास में तुम से मिलना चाहता हूँ... आज ही एक दोस्त से कह रहा हूँ, वो मुझे सूट दिलवा देगा।
वो हंस पड़ी, 'बिल्कुल बच्चे हो तुम... ………सुनो! - जब तुम मुझसे मिलोगे तो मैं तुम्हें एक तोहफा दूंगी।"
'मैंने तुम्हारे लिए एग्जेक्टा कैमरा खरीद लिया है।"
"ओह!"
'इस शर्त पर दूंगी कि पहले मेरा फोटो खींचोगे "
फिर वो बोली, "मैं कल और परसों तुम्हें टेलीफोन नहीं कर सकूंगी।"
मनमोहन ने पूछा, "क्यों?"
"मैं कहीं बाहर जा रही हूँ। सिर्फ दो दिन गैर हाजिर रहूंगी। मुझे माफ कर देना।"
पहले दिन सुबह उठा तो उसने हरारत महसूस की।
बदन तपने लगा। ………..आँखों से शरारे फूटने लगे।………. प्यास बार बार सताती थी।
शाम के करीब उसे, ………. अपने सीने पर बोझ महसूस होने लगा।
दूसरे रोज वो बिल्कुल निढाल था। सांस बड़ी दिक्कत से आता था।
सीने की दुखन बहुत बढ़ गई थी।
शाम को उसकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ गई।
धुंदलाई हुई आँखों से उसने घडी की तरफ देखा, उसके कानों में अजीब-ओ-गरीब आवाजें गूंज रही थीं। जैसे हज़ारो टेलीफोन बोल रहे हैं, सीने में घुंघरू बज रहे थे।
चारों तरफ आवाजें ही आवाजें थीं।
जब - टेलीफोन की घंटी बजी तो उसके कानों तक उसकी आवाज न पहुंची। बहुत देर तक घंटी बजती रही।
एक दम मनमोहन चौंका। उसके कान अब सुन रहे थे। लड़खड़ाता हुआ उठा और टेलीफोन तक गया। दीवार का सहारा ले कर उसने काँपते हुए हाथों से रिसीवर उठाया और धीरे से कहा, "हलो।"
दूसरी तरफ से वो लड़की बोली, "हलो... मोहन?"
मनमोहन की आवाज लड़खड़ाई, "हाँ मोहन!"
"जरा ऊँचा बोलो..."
मनमोहन ने कुछ कहना चाहा, मगर वो बोल नहीं पा रहा था।
आवाज आई, "मैं जल्दी आगई... बड़ी देर से तुम्हें रिंग कर रही हूँ.... कहाँ थे तुम?"
मनमोहन का सर घूमने लगा।
आवाज आई क्या हो गया है, "तुम्हें?"
मनमोहन ने बड़ी मुश्किल से इतना कहा, "मेरी बादशाहत खत्म हो गई है आज।"
उसके मुँह से खून निकला, और एक पतली लकीर - - की सूरत में गर्दन तक दौड़ता चला गया।
आवाज आई, "मेरा नंबर नोट कर लो...
“फाइव नॉट थ्री - वन फोर”, ------- “फाइव नॉट थ्री - वन फोर”...
सुबह फोन करना।" ये कह कर उसने रिसीवर रख दिया।
मनमोहन औंधे मुँह टेलीफोन पर गिरा... उसके मुँह से खून के बुलबुले फूटने लगे।
कैलाश बिष्ट
(अल्मोड़ा)