24/07/2022
#देश में एक लूट का सा माहौल है - बैंक !!!
एक देश जिसमे लोग जीवन जीने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे है। ताकि दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ हो सके। अगर उसमे से कुछ बचे तो कुछ भविष्य के लिए बचा सके, जिससे की भविष्य में उनकी दुःख - तकलीफ, भले - बुरे वक्त में वो पैसा काम आ सके।
पैसा हमारा है और हमने बैंक में जमा कर रखा है।
ब्याज दर अधिक देने की जगह इन्होने घटा दिए।
डिजिटल बैंकिंग हो गयी, तभी से साइबर क्राइम भी होने लग।
और जिन्हे लोन /ऋण दे रहे है, उनकी दर दिन पर दिन बड़ा रहे है।
आपकी मुख्यतः लेन - देन पर कुछ न कुछ चार्जिस लगते रहते है।
क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से खरीदारी करने पर जी० एस० टी० लगता है।
लोन लेने की प्रक्रिया के दौरान "प्रोसेसिंग फीस" ली जाती है।
अगर लोन अप्प्रूव नहीं हो तो, "प्रोसेसिंग फीस" तो वापस कर दो।
अगर सही में बैंक को चलने के लिए इतने चार्जिस की जरुरत है या इनके बगैर बैंक का चलना मुश्किल है। तो हज़ारो नए बैंक को खोलने की क्या जरुरत? और अगर आप इतने बैंक खोल रहे हो तो (बैंक को कही न कही तो लाभ है) या तो आप आम जनता के साथ बुरा कर रहे है (पैसा जनता का कटा जा रहा है और मौज बैंक ले रहा है) क्योंकि, जनता बहुत ही मासूम है वह तो सिर्फ अपनी जरुरत पूरा करने में लगी हुई है - बचपन से, बच्चो को पैदा करने से, उनको पड़ना / परवरिश से, खाने के लिए दाल रोटी से। और बस यही कारणों की वजह से बैंक के पास पूछने तक नहीं जाती। अगर कुछ लोग जाते भी है तो उन्हें सही जवाब नहीं मिलता। कहा जाता है ये तो बैंक के नियम है।
बैंक की और अधिक बुराई ना करते हुए बस इतना कहना चाहूंगा की की इनके काम - काज का तरीका और इनकी आवभगत का अनुभव तो आप बहार बैठे सुरक्षाकर्मी से लगा सकते है।
अंत में बस इन पंक्तियों से अपने लेख को विराम देना चाहूंगा :
हम है साधारण, हमें सीधे साधे नियम देदो।
प्राइवेट बैंक के बदले, सिर्फ सरकारी ही देदो।
साल भर का, एक बार काट लो।
देश की चिंता हमें भी है, देश के लिए चाहे सर काट लो।
कैलाश बिष्ट
अल्मोड़ा, उत्तराखंड