One Step 4new Thought

One Step 4new Thought INFORMATION TO THINK ABOUT ALL THOES THINGS, WHICH IS ONLY HAPPENS IN VERBALY, WRITINGS, PLANINGS, ETC. BUT, NOT IN REALY.

SO, WE WANT TO DRAW YOUR ATTENTION ON THAT PARTICULAR THING WHICH IS WRONG.

- EITHER IT IS NOT IN GOOD WAY OR SOMTHING WRONG.

26/11/2025

#दन्त कथा

मेरा एक दोस्त दो दिन हो गए , मेरा फ़ोन नहीं उठा रहा था। मै उससे मिलने उसके घर ही चला गया। मैंने देखा उसे बोलने में तकलीफ हो रही है मैंने पुछा क्या इसी लिए मेरा फ़ोन नहीं उठा रहा था उसने इशारे से कहा "हां" । तो मैंने कहा अभे मैसेज तो कर सकता था। उसने पुछा चाय पियेगा। मैंने कहा पागल है क्या हमने रात को कभी चाय पी है।

अच्छा बता क्या हुआ कैसे हुआ। उसने कहा संडे था मेरी छुट्टी थी तेरी भाभी का मूड भी बहुत अच्छा था। तो वो आज खाना नोरमल से हट-कर थोड़ा स्पेशल बना रही थी। शायद कुछ मिक्सी में पीसा होगा तो उसका कोई नट खाने में आ गया। उसके बाद मेरी थाली में फिर मेरे मुँह में। मैंने चबाया तो मेरा दांत टूट गया। तब से बोल नहीं पा रहा और ऑफिस भी नहीं गया। तू पहला पर्सन है जिसे मैंने अपने दांत का हाल बताया है।

इतने में भाभी "चाय - पकोड़े - चटनी" ले कर आ गई। मैंने चाय तो पी ली मगर डर के मारे चटनी और पकोड़े नहीं खाये।

कैलाश बिष्ट
अल्मोड़ा

11/11/2025

#वो खास दिन



आज की कहानी ऐसे नायक की है जो दिल्ली में रहता है। और जो दिल्ली को भली - भांति जनता भी है - क्योंकि उसकी पैदाइश, स्कूलिंग, और उसका नौकरी - पेशा भी दिल्ली में ही है। दिल्ली की भौगोलिक इस्थिति से तो आप वाकिफ ही होंगे।



नायक जिसका ऑफिस जमुना पार "मैहरोली" के निकट है और उसका घर जमुना वार है। सुबह वो अपने दुपहिया वाहन में ऑफिस के लिए निकल जाया करता है और शाम को समय पर घर को लौट आया करता है - चाहे गर्मी हो, बरसात हो, या ठण्ड। रास्ते में अगर उसे कोई जरुरत मंद दिखाई देता, तो नायक उसकी परेशानी को पूछ लिया करता। जरुरत मंद से मेरा मतलब अगर किसी का वाहन ख़राब है जैसे पंचर, तेल ख़तम, इत्यादि।



एक शाम जब नायक घर लौट रहा था, उस रोज बरसात थी। नायक अपने दुपहिया वाहन से निज़ामुद्दीन जमुना का पुल पार कर धीरे - धीरे अक्षरधाम की और बड़ा लूप पुल पर चढ़ा ही था की उसने देखा कोई जरुरत मंद अपने दुपहिया वाहन को धकेल रहा है वो भी चढाई में। नायक ने उसके पास अपना वाहन रोखा और पुछा कोई मदद की जरुरत तो नहीं। जरुरत मंद ने जवाब में मना कर दिया। नायक भी आगे बढ़ चला। ज्यो ही नायक आगे बड़ा उसे रियलाइज हुआ वो जरुरत मंद जिसने पैंट - शर्ट पहनी है, वाहन - यामाहा अन्टाईसर है, वो लड़की है।



नायक ने अपनी बाइक वही पर रोख दी और उस लड़की को अपनी ओर आने तक रुखा गया । जैसे ही लड़की करीब आई, नायक ने उससे पुछा कि मै लड़का हु कही मुझसे डर तो नहीं रही। लड़की ने ना जाने क्या सोचते हुए "नहीं" में जवाब दिया ।



नायक ने उससे पुछा क्या हुआ ? उसने कहा चलते चलते बंद हो गयी जबकि तेल है , हवा है और स्टार्ट भी होने में कोई दिक्कत नहीं है। नायक ने कहा कोई इशू (दिक्कत) नहीं। आप इसमें बैठो में अपने पाँव से धकेलता हु हलाकि नायक ऐसा खुद पहली बार कर रहा था। कुछ परेशानी तो हुई क्योंकि बाइक यामाहा अन्टाईसर थी उसका साइलेंसर थोड़ा छोटा होता है। बाइक को धकलते हुए वो अहलकोन इंटरनेशनल स्कूल (मयूर विहार फेज - १ ) के पास पहुंचे और मकैनिक को ढूंढ़ने लगे। दुर्भाग्य था की उस दिन सोमवार था और लगभग मकैनिक सोमवार को ऑफ़ रखते है। एक मकैनिक देवदूत के रूप में प्रकट हुआ जिसने हमारी समस्या को बहुत जल्द समझा और उसका निवारण भी किया। हुआ ये था की बाइक की चैन लूज़ (ढीली) हो गई थी जो उतर जा रही थी। मकैनिक ने समझाया की इसे 'पहले' या 'दूसरे' गियर पर ही चलना चैन नहीं उतरेगी और आप अपने घर तक पहुंच जाओगे। यह सुन कर थोड़ा परेशानी दूर हुई। नायक ने उस लड़की से कहा अगर आप चाहो तो मेरी बाइक ले जाओ में आपकी ले जाता हु कल देख लेंगे। लड़की ने कहा की वो पास ही रहती है मैनेज हो जायेगा। लड़की ने अपना नाम बताया नायक का नाम पुछा और दोनों का मोबाइल नंबर एक्सचेंज हो गया फिर वो अपने - अपने घर को चले गए।



नायक ने अगले दिन मैसेज में उससे बात की, जाना की वो बैंक में काम करती है, ऑफिस आई० टी० ओ० पर है, रहती मयूर विहार फेज - १ के पास ही है।



नायक और उस लड़की की आगे की मुलाकाते भी कुछ इस तरह की थी के अगर इसे फिल्माया जाये तो फिल्म "सुपर - डूपर" हिट हो जाये और डायरेक्टर को फिल्मफेयर अवार्ड भी मिल जाये।



वो इत्तफाकन घर जाते हुए डियूरिंग दा राइड ही मिलते थे। ना जाने कैसे एक दूसरे को दिल्ली की भीड़ - भाड़ वाले टैफिक मे भी पहचान लेते थे। जब भी मिलते एक दूसरे को हाथ हिलाते और निकल जाते। लड़की की तो सिर्फ वो जाने, की वो नायक को कैसे पहचान लेती। मगर नायक को उसको पहचाना आसान था क्योंकि शायद ही कोई और लड़की यामाहा अन्टाईसर चलाती हो। इसी दौरान एक दिन नायक ने उसे फेसबुक पर फ्रेंड रिक़ुएस्ट भेजी और लड़की ने एक्सेप्ट भी कर ली।



काफी समय हो गया नायक को वो अब कभी नहीं दिखी। अब वो दिल्ली में नहीं रहती, शायद मुंबई। एक दिन नायक ने उसका पोस्ट देखा, वो ग्रेट अभिनायक अमिताभ बचन के साथ खड़ी थी।



कैलाश बिष्ट

अल्मोड़ा

27/10/2025

40



मेरा एक दोस्त जो स्कूल के दिनों में काफी मनचला था। जो फिलहाल वैवाहिक जीवन को भली-भाति, आनंद पूर्वक वयतीत कर रहा था । ज्यो, ही वह 40 के पार हुआ उसे एक खुरापात जगा - क्या ? वही एट दा ऐज ऑफ़ फोर्टी मैन बिकम नोट्टी। स्कूल के दिनों की मंचलाहट फिर से उसे गुदगुदी कर रही थी। उसे शायद अभी भी लग रहा था की वो………….. विराट कोहली से अच्छी बैटिंग कर सकता था। और वो निकल पड़ा नेट प्रैक्टिस को - अनुष्का जैसी के लिए।

उसकी सोसाइटी में घरो में काम करने वाली बहुत सी महिलाये आया करती थी। इनमे से एक बहुत अट्रैक्टिव थी, मेरा दोस्त उससे मैच खेलने की लिए उतावला हो गया।

मेरा दोस्त उस अट्रैक्टिव महिला के पास गया - उससे उसका नाम पुछा, अपने मन का हाल भी बताया। तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो यह तक कह डाला।

मगर वो अटैक्टिवे महिला , यह कह के चली गयी की - क्या भइया आप को मै ही मिली हु मजाक करने को। आप कोई प्रैंक कर रहे हो ना मेरे साथ।



कैलाश बिष्ट

अल्मोड़ा

27/09/2025

#भंगन
लेखक: सआदत हसन मंटो
का कुमाउनी रूपांतरण

पछीनाः हटो।
किहि ---

तुमु पार बै बॉस आमे।
हमर बया ह-ई बीस बरस है गो, आज आमचो तुमुगे बॉस।

बीस बरस कसी काटी मैल, य-तो "ग्वेल जी" जाननी।
किले मैल क्ये तकलीफ दिछो तिगै।

ना तो ---

पै आज किहि गजबजा मै य तुमरी ठुल्ली नाक।
"तुम चाहो अपुड़ नाक ... पकौड़ा ज-सी”

"मैं भली-भा जाननु ... पकौड़े, मेरी पसंद ठहरे ।"
'तुमुगे तो हर बेकार चीज पसंद आने वाली ठहरी ।"

"खाली - पीली बेकार बात करने वाली ठहरी तू ... वर्ना बीस बरस एक - दूसरे लीजी भत्ते हाय ।"
"इन बीस बरसों में कौ सुख दे तुमुल?”

"तुम दुख बात करो... बताओ मैल कौ दुख दिरौ?”
"दुःख तो नी दिरौ।"

"पै यस किहि बुला-म-छै?”
"तुम इता-हां नी आओ ... म-गे नींद आमे।"

'इतु गुस्से में नींद आली?"
आँखें बंद कर बै लेटी रूल ..

"और क्या करेंगी?"
'लेटी - लेटी उस रोज पर आँसू बहाऊँगी जब मैं आपके पले बांधी गई ठहरी।

"तुमगै! याद छौ - वो दिन, सन, वो रन-मन ?"
सब याद छ

'तो बताओ ... क्या - क्या याद ठहरा तुमको ।"



तुम रहने दो ... हटो, मुझे आपसे बू आ रही



"खाली झूठ बोलती हो ... पहले कहने वाली ठहरी की मै आँख बंद करके भी तुम्हे तुम्हारी खुसबू से पहचाहन सकने वाली ठहरी ।"



"किहि झूटी बुलाम-छा।"



'झूटी और ऊ-लै मै---- ये इल्जाम न धरो।"



वाह जी वाह, बड़े आए सच बुलाडी ... म्यर सौ रुपये नोट --- आपने चुराया और साफ, मुकर गया ।"



"कधिं-न?”



'दो जून सन् उन्नीस सौ बयालीस को, जब "सरूली" मेरे पेट में थी।"



'ये तारीख तुम्हें खूब….. याद ठहरी।



'सब याद ठहरी मुझे। सात सौ पड़े थे, उनमें से एक नोट उड़ा कर ले गए। जब मैंने पुछा एक नोट काछू---- क्ये नी बताय । आखिर मैं खामोश हो गई।"



"ये दो जून सन् उन्नीस सौ बयालीस की बात है, आजकल सन् चव्वन चल रहा है। अब य बात-क क्ये फैद?"



'मेरी एक नीलम की अँगूठी भी आपने गायब कर दी थी, लेकिन मैंने आप से कुछ नहीं कहा था।"



'देखो, मैं तुम्हारी जान की कसम खा कर कहता हूँ। उस नीलम की अँगूठी के बारे में मुझे कुछ मालूम नहीं।"



"और उस सौ रुपये के नोट के।"



'अब तुम्हारी जान की कसम खाई ठहरी तो सच बताना ही पड़ेगा। मैंने... मैंने चुराया जरूर था, मगर सिर्फ इसलिए कि उस महीने मुझे तनख्वाह जरा देर से मिलने वाली थी और तुम्हारा जन्मदिन था । तुम्हें कोई तोहफा तो देना था। इन बीस बरसों में तुम्हारे हर जन्मदिन पर में कोई न कोई तोहफा पेश करता रहा हूँ।"



"बड़े तोहफे तहाइफ दिए ठहरे आपने मुझे।"



'अब यस ले नि बुलाओ!”



"मैं बार-बार कमूई, तुम प्-छीन हटो, तुमु पार बै बॉस आमे।



"क्ये बॉस?”



"य तुमुगे मालूम ह-ड चहे।"



"मै तब से कई बार अपने आप को सूँघ चूका ठहरा, मगर मेरी पकोड़े जैसी नाक में ऐसी कोई बॉस नहीं घुसी जिस पर किसी बीवी को ए'तराज होने वाला ठहरा।"



'आप बातें खूब बढ़िया बनाने वाले हो कहा।”



"और तुम बातें बिगाड़ना वाली ठहरी। मेरी समझ हबे भयार छु, आज तुम इस तरह क्यों नाराज हुई ठहरी?”



'अपनी कमीज / गिरेबान में मुँह डाल कर देखिए!"



"मैं इस वक्त कमीज पहने नहीं हूँ।"



"किलै?"



"बहुत गर्मी जो ठहरी”



"बहुत गर्मी हो या सर्दी... आपको कमीज तो नहीं उतारना ठहरी। ये कोई तमीज हुई।"



'मेमसाहब, आपने भी तो कमीज उतार रखी ठहरी ...”



"हाय, म्यर लै दिमाग ख़राब हगो, क्याप!”



ये क्याप ! तो आप गर्मियों में बीस बरस से कर रही ठहरी। "



'तुम झूट बोलने वाले हुए ।"



"तुमको तो पता ही ठहरा, झूट तो हर मर्द बोलता ही है।”



"तुम मुझसे दूर ही रहो क-हा।"



"किहि क-अ?”



मुने-खान नि करो, लाख बार कह चुकी हूँ कि तुमु पार बे भत्ते गंदी बॉस अम्रे ।



पैली बॉस छी , अब गंदी लै है ग्ये ।"



देख लियो ! DONOT TOUCH ME!”



य तो को बात नि है-य ?"



मैं अब तुमु हभै परेशान है गो-ई।"



'इन बीस बरसों में तुमने कभी इस तरह बात नहीं की ठहरी मुझसे ।"



"आज तो कै है!"



'लेकिन मुझे मालूम तो हो कि आखिर बात क्या हुई ठहरी?”



"मैं कमोई , मागै नि छुओ !"



'तुम्हें मुझसे इतनी चीड़ क्यों होने वाली हुई?”



'आप अपवित्र हैं, बेहद दुष्ट हैं।"



'देखो, तुम बहुत ज्यादा बुला रही हो।"



"आप ने काम ही ऐसा किया जो हुआ। कोई शरीफ आदमी आपकी तरह ऐसी दुष्ट हरकत नहीं करने वाला हुआ।"



"क-सी?"



'आज रा-ती पर क्ये हमछी?"



"आज रा-ती... बारिश हमछी।"



'बारिश तो ठीक है, लेकिन उस बारिश में आपने किसको अपनी आगोश में - हा - सीने से लगाया हुआ था?"



"ओह ।"



"बस, इसका जवाब अब 'ओह' ही होने वाला हुआ । मैंने पकड़ जो लिया ठहरा आपको।”



"देखो मेमसाहब ..."



"मुझे मेमसाहब मत कहिए, आपको शर्म आनी ठहरी।



क्ये बात पर, क्ये गुनाह पर?"



“मैं कनु, आदमी गुनाह करे लेकिन ऐसी गंदगी में न गिरे।"



"मैं किस गंदगी में गिरा हूँ?"



"आज रात्ति तुमुल उनिगे ... उनिगे...”



"क्ये?”



“उ भंगन को... जवान भंगन को, जो मिठाई वाले के साथ भाग ग्ये छी।



"हाय रे ... तुम लै अजीब औरत ठहरी, वो गरीब "हामिला" है। बारिश में झाडू देते हुए उसको चक्कर आया और गिर पड़ी। मैंने उसको उठाया और उसके कवाटर तक ले जाने वाला हुआ।"



"आघिन क्या - क्या हुआ ठहरा?”



"तुमुगे खबर नी लगी, ऊ मर ग्ये?”



"हाय, बेचारी... मर ग्ये छ-अ ।"



"आओ म्यर करीब ऐ जाओ,



मैं कमीज पहन लूं?"



'इसकी क्या जरूरत है, तुम्हारी कमीज मैं जो ठहरी ।"



कैलाश बिष्ट

अल्मोड़ा

02/09/2025

#”बादशाहत का खात्मा”
#सआदत हसन मंटो की कहानी में से एक……..

टेलीफोन बजा मनमोहन पास ही बैठा था। उसने रिसीवर उठाया और कहा, 'हेलो... फोर फोर फोर - फाईव सेवन...."

दूसरी तरफ से मीठी सी आवाज आई 'सोरी रोंग नंबर मनमोहन ने रिसीवर रख दिया और किताब पढने में मशगूल हो गया।

मनमोहन का अपना कोई ठिकाना ना था। कुछ दिनों के लिए वो अपने एक दोस्त की गैर हजारी में दफ्तर की देखभाल के लिए ठहरा था।

नौकरी से उसे नफरत थी। दोस्त उसके रोजाना के खाने - पीने का बंदोबस्त कर देते थे।

जिंदगी में सिर्फ उसको एक चीज की हसरत थी औरत की मोहब्बत की। "अगर मुझे किसी औरत की मोहब्बत मिल गई तो मेरी सारी जिंदगी बदल जाएगी।"

दोपहर के खाने का वक्त करीब आरहा था। टेलीफोन की घंटी बजना शुरू हुई। उसने रिसीवर उठाया और कहा, हेलो... फोर फोर फोर - फाईव सेवन।"

दूसरी तरफ से मीठी सी आवाज आई, "फोर फोर फोर - फाईव सेवन?"

मनमोहन ने जवाब दिया, "जी हाँ।"

मीठी आवाज ने पूछा, "आप कौन हैं?"

"मनमोहन!... फरमाईए!"

आवाज मुस्कुराई, "मदनमोहन

"जी नहीं... मनमोहन ।"

"मनमोहन?"

दूसरे रोज सुबह दोबारा टेलीफोन आया।

आवाज आई, "आदाब अर्ज मनमोहन साहब!"

"आदाब अर्ज!" मनमोहन एक दम चौंका, "ओह, आप... आदाब अर्ज ।"

"तस्लीमात !"

बताईए आपको किस चीज का शौक है?"

फोटोग्राफी का थोड़ा सा शौक

'ये बहुत अच्छा शौक है।

दोस्त कैमरा से मांग कर शौक पूरा कर लेता हूँ।

मुझे बहुत पसंद है । एग्जक्टा, रेफलेक्स कैमरा है। एक दिन जरूर खरीदूंग।

'आपने, मेरा - ना नाम पूछा, - ना टेलीफोन नंबर ।"

आप चाहती है के, - मैं आपको टेलीफोन करूं तो नाम और नंबर बता दीजिएगा।"

अगले दिन, वही आवाज आई, "मिस्टर मनमोहन।"

इरशाद ।"

'इरशाद ये है कि मैंने आज दिन में कई मर्तबा रिंग किया। आप कहाँ गायब थे?"

"साहब बेकार हूँ, लेकिन फिर भी काम पर जाता हूँ।"

"किस काम पर?"

"आवारागर्दी ।"

अगले दिन शाम तकरीबन सात बजे टेलीफोन की घंटी बजी। मनमोहन ने रिसीवर उठाया और तेजी से पूछा, "कौन है?"

वही आवाज आई, "मैं!"

मनमोहन ने कहा, " मुझसे इंतिजार बर्दाश्त नहीं होता।

"आज की माफी चाहती हूँ। कल से सुबह और शाम फोन आया करेगा आपको।

"ये ठीक है!"

अब हर रोज सुबह और शाम मनमोहन को उसका टेलीफोन आता। घंटों बातें जारी रहतीं।

एक दिन, - वो बड़ा टेढ़ा सवाल कर बैठी, 'मोहन तुमने कभी किसी लड़की से मोहब्बत की है?"

मनमोहन ने जवाब दिया, "नहीं।"

टेलीफोन का रिश्ता कायम हुए तक्रीबन एक महीना होगया।

मनमोहन को अपने दोस्त का खत आया कि कर्जे का बंदोबस्त होगया है। सात-आठ रोज में वो बंबई पहुंचने वाला है।

जब - उस मीठी आवाज़ का टेलीफोन आया तो मनमोहन ने उससे कहा, मेरी दफ्तर की बादशाही अब चंद दिनों की मेहमान है।

उसने पूछा, "क्यों?"

मनमोहन ने जवाब दिया, "कर्जे का बंदोबस्त हो गया है... दफ्तर आबाद होने वाला है।"

आखिरी दिन जब तुम्हारी बादशाहत खत्म होने वाली होगी, मैं तुम्हें अपना नंबर दूंगी।"

मनमोहन ने उससे कहा, ……. 'तुम्हें देखने की चाह हो रही है।"

'तुम मुझे जब चाहो देख सकते हो... आज ही देख लो।"

"नहीं नहीं..." फिर कुछ सोच कर कहा, "मैं जरा अच्छे लिबास में तुम से मिलना चाहता हूँ... आज ही एक दोस्त से कह रहा हूँ, वो मुझे सूट दिलवा देगा।

वो हंस पड़ी, 'बिल्कुल बच्चे हो तुम... ………सुनो! - जब तुम मुझसे मिलोगे तो मैं तुम्हें एक तोहफा दूंगी।"

'मैंने तुम्हारे लिए एग्जेक्टा कैमरा खरीद लिया है।"

"ओह!"

'इस शर्त पर दूंगी कि पहले मेरा फोटो खींचोगे "

फिर वो बोली, "मैं कल और परसों तुम्हें टेलीफोन नहीं कर सकूंगी।"

मनमोहन ने पूछा, "क्यों?"

"मैं कहीं बाहर जा रही हूँ। सिर्फ दो दिन गैर हाजिर रहूंगी। मुझे माफ कर देना।"

पहले दिन सुबह उठा तो उसने हरारत महसूस की।
बदन तपने लगा। ………..आँखों से शरारे फूटने लगे।………. प्यास बार बार सताती थी।
शाम के करीब उसे, ………. अपने सीने पर बोझ महसूस होने लगा।

दूसरे रोज वो बिल्कुल निढाल था। सांस बड़ी दिक्कत से आता था।
सीने की दुखन बहुत बढ़ गई थी।

शाम को उसकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ गई।

धुंदलाई हुई आँखों से उसने घडी की तरफ देखा, उसके कानों में अजीब-ओ-गरीब आवाजें गूंज रही थीं। जैसे हज़ारो टेलीफोन बोल रहे हैं, सीने में घुंघरू बज रहे थे।

चारों तरफ आवाजें ही आवाजें थीं।

जब - टेलीफोन की घंटी बजी तो उसके कानों तक उसकी आवाज न पहुंची। बहुत देर तक घंटी बजती रही।

एक दम मनमोहन चौंका। उसके कान अब सुन रहे थे। लड़खड़ाता हुआ उठा और टेलीफोन तक गया। दीवार का सहारा ले कर उसने काँपते हुए हाथों से रिसीवर उठाया और धीरे से कहा, "हलो।"

दूसरी तरफ से वो लड़की बोली, "हलो... मोहन?"

मनमोहन की आवाज लड़खड़ाई, "हाँ मोहन!"

"जरा ऊँचा बोलो..."

मनमोहन ने कुछ कहना चाहा, मगर वो बोल नहीं पा रहा था।

आवाज आई, "मैं जल्दी आगई... बड़ी देर से तुम्हें रिंग कर रही हूँ.... कहाँ थे तुम?"

मनमोहन का सर घूमने लगा।

आवाज आई क्या हो गया है, "तुम्हें?"

मनमोहन ने बड़ी मुश्किल से इतना कहा, "मेरी बादशाहत खत्म हो गई है आज।"

उसके मुँह से खून निकला, और एक पतली लकीर - - की सूरत में गर्दन तक दौड़ता चला गया।

आवाज आई, "मेरा नंबर नोट कर लो...
“फाइव नॉट थ्री - वन फोर”, ------- “फाइव नॉट थ्री - वन फोर”...

सुबह फोन करना।" ये कह कर उसने रिसीवर रख दिया।

मनमोहन औंधे मुँह टेलीफोन पर गिरा... उसके मुँह से खून के बुलबुले फूटने लगे।

कैलाश बिष्ट
(अल्मोड़ा)

01/09/2025

#”बदसूरती”
#सआदत हसन मंटो की कहानी में से एक……..

साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी।

उनके माँ-बाप को ये दुःख था कि साजिदा के रिश्ते आते , मगर हामिदा के लिए कोई --- बात न करता। साजिदा खुश शक्ल थी।

उसके मुकाबले में हामिदा बहुत सीधी थी। साजिदा बड़ी चंचल थी। दोनों जब कॉलेज में पढ़ती थी। हामिदा को कोई पूछता भी नहीं था।

कॉलेज की तालीम समाप्त हुई तो उनके वालिदैन ने उनकी शादी के मुतअल्लिक सोचना शुरू किया। साजिदा के लिए तो कई रिश्ते तो आ चुके थे, मगर हामिदा बड़ी थी इसलिए वो चाहते थे कि पहले उसकी शादी हो जाये।

साजिदा की एक खूबसूरत लड़के से खत-ओ-किताबत शुरू हो गई जो उस पर बहुत दिनों से मरता था। उसके माँ-बाप चाहते थे कि उसकी शादी हो जाए ताकि वो बीवी को अपने साथ अमरीका ले जाए।

हामिदा को इस इश्क़ की खबर हो गयी थी।

एक दिन जब साजिदा ने, हामिदा को - उस लड़के का इश्किया जज्बात से लबरेज खत दिखाया तो वो दिल ही दिल में बहुत कुढी, इसलिए कि उसका चाहने वाला कोई भी नहीं था।

हामिदा अपनी छोटी बहन पर बरस पड़ी, तुम्हें शर्म नहीं आती कि गैर मर्दों से खत-ओ-किताबत करती हो !

साजिदा ने कहा, "बाजी, इसमें क्या ऐब है?"

"ऐब... सरासर ऐब है। शरीफ घरानों की लड़कियां कभी ऐसी बेहूदा हरकतें नहीं करतीं... तुम उस लड़के हामिद से मोहब्बत करती हो?"

"हाँ!"

"लानत है तुम पर !"

बात इतनी बाद गयी की "दोनों" हाथापाई पर उतर आई।

हामिदा डीलडौल के लिहाज से अपनी छोटी बहन के मुकाबले में काफी तगड़ी थी, ... उसने साजिदा को खूब पीटा। उसके घने बालों की कई खूबसूरत लटें नोच डालीं और खुद हांपती-हांपती अपने कमरे में जा कर जोरो से रोने लगी।

साजिदा ने घर में इस हादिसे के बारे में कुछ न कहा... हामिदा शाम तक रोती रही। उसे अफ़सोस हुआ की ---उससे कोई मोहब्बत नहीं करता और इसके लिए उसने अपनी बहन को,___ जो बड़ी नाजुक है, पीट डाला।

वो साजिदा के कमरे में गई। दरवाजे पर दस्तक दी और कहा, *साजिदा!

साजिदा ने कोई जवाब न दिया।

हामिदा ने फिर जोर से दस्तक दी और रोनी आवाज में पुकारी, "साजी! मैं माफी मांगने आई हूँ... खुदा के लिए दरवाजा खोलो।"

साजिदा बाहर निकली और अपनी बड़ी बहन से हमआगोश होगई, 'क्यूँ बाजी.. आप रो क्यूँ रही हैं?"

दोनों अब खुद को ही कोसने लगी। और आज की हुई लड़ाई पर अफ़सोस जताने लगी।

"बाजी, आप अगर चाहें तो मेरी जिंदगी सँवर सकती है।"

"कैसे?"

"मुझे हामिद से मोहब्बत है... मैं उससे वादा कर चुकी हूँ कि अगर मेरी शादी होगी तो तुम्हीं से होगी।"

"तुम मुझसे क्या चाहती हो?"

"मैं ये चाहती हूँ कि आप इस मुआमले में ... अम्मी और अब्बा से बात कीजिये वो आपकी हर बात मानते हैं।"

"मैं इंशाअल्लाह तुम्हें नाउम्मीद नहीं करूंगी।"

साजिदा की शादी होगई, हालाँकि उसके वालिदैन पहले हामिदा की शादी करना चाहते थे... मजबूरी थी, क्या करते। साजिदा ने अपनी बडी बहन को शादी के दूसरे दिन खत लिखा।

"मैं बहुत खुश हूँ.. हामिद मुझसे बेइंतिहा मोहब्बत करता है। ... खुदा करे कि आपको भी ऐसी ही मोहबत नसीब हो ।"

इसके अलावा और बहुत सी बातें उस खत में थीं जो एक बहन अपनी बहन को लिख सकती है।

हामिदा ने ये पहला खत पढ़ा और बहुत रोई।

इसके बाद उसको और भी खत आए जिनको पढ़-पढ़ के उसके दिल पर छुरियां चलती रहीं।

उसने कई मर्तबा कोशिश की कि कोई राह चलता जवान लड़का उसकी जिंदगी में मोहबत ले कर आये।

दो बरस के बाद उसकी बहन साजिदा का खत आया कि वो और उसका शौहर आ रहे हैं।

साजिदा के शौहर को अपने कारोबार के सिलसिले में एक हफ्ते तक काम करना था।

साजिदा से मिल कर उसकी बड़ी बहन बहुत खुश हुई...

वो घर में अकेली थी, इसलिए कि उसके वालिदैन किसी काम से चले गए थे। गर्मियों का मौसम था। हामिदा ने नौकरों से कहा कि बिस्तरों का इंतिजाम कर दे और बड़ा पंखा लगा दिया जाए।

ये सब - कुछ हो गया... लेकिन हुआ ये कि साजिदा टहलते हुए ऊपर कोठे पर गई और देर तक वहीं रही। हामिद कोई इरादा कर चुका था। आँखें नींद से बोझल थीं। उठ कर साजिदा के पास गया और इसके साथ लेट गया... लेकिन उसकी समझ में न आया कि वो गैर सी क्यों लगती है। क्योंकि वो शुरू-शुरू में बेएतनाई बरतती रही... आखिर में वो ठीक होगई।

साजिदा कोठे से उतर कर नीचे आई और उसने देखा...

सुबह को दोनों बहनों में सख्त लड़ाई हुई... हामिद भी उसमें शामिल था। उसने गर्मा गर्मी में कहा, "तुम्हारी बहन, मेरी बहन है... तुम क्यों मुझ पर शक करती हो?

हामिद ने दूसरे रोज अपनी बीवी साजिदा को तलाक दे दी और दो-तीन महीनों के बाद हामिदा से शादी कर ली... उसने अपने एक दोस्त से जिसको उस पर एतराज था, सिर्फ इतना कहा, "खूबसूरती में खुलूस होना नामुम्किन है... बदसूरती हमेशा पुरखुलूस होती है।"

कैलाश बिष्ट
(अल्मोड़ा)

10/08/2025

#मन की बात !

मन की बात , ये क्या है ? शायद सभी जानते है और आज कल तो ये ज्यादा प्रचलित ह। क्यों! क्या मोदी जी नहीं करते "मन की बात" वो भी रेडिओ के माध्यम से।
मन की बात करने का हक़ सभी को है, दूसरे लोग मानते कितना है ये उनके विवेक पर है और उनका विवेक कितना है ये आपकी मन की बात सुनकर आपको दिए गए मान - सम्मान पर आधारित है।

मन की बात न कर किसी से, दूसरा शायद हो बेमान !
मन की बात कर उसी से, जो देता हो सम्मान।।
मन की बात मत कर ऐसे, जो होव अपमान !
मन की बात शान से कर , जिस पर तुझे हो अभिमान।।

कैलाश बिष्ट
अल्मोड़ा

Address

INDIRAPURAM
Ghaziabad
201014

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when One Step 4new Thought posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to One Step 4new Thought:

Share