HINDUSTANIUM-Tales And Talks

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रक्षा /डिफेंस सी 295 के भारत में बनने से चीन और पाकिस्तान दोनों चिंतित हैं  फोटो गूगलदेश में पहली बार निजी कंपनी बनाएगी ...
20/11/2024

रक्षा /डिफेंस

सी 295 के भारत में बनने से चीन और पाकिस्तान दोनों चिंतित हैं फोटो गूगल

देश में पहली बार निजी कंपनी बनाएगी विमान । चीन पाकिस्तान पर होगा असर



यहां बनाएगी टाटा मालवाहक सैन्य विमान फोटो गूगल

अब देश में टाटा बनाएगा समूचा और बड़ा अत्याधुनिक
सैन्य परिवहन विमान. रतन टाटा के प्रस्ताव और प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता से
प्रारंभ होने वाली परियोजना, किसी निजी
क्षेत्र द्वारा हवाई जहाज बनाने की यह परिघटना देश के पूरे वैमानिकी के परिदृश्य
के बदल देगी. नए विमान के निर्माण से क्या क्या बदलेगा, इसकी खूबियां और वर्तमान तथा भविष्य पर एक नजर

महान तब विदा लेते हैं जब
आधुनिक और नौजवान उनकी जगह लेने को तैयार होते हैं. 1960 में अपनी पहली उड़ान भरने, 1961 से वायुसेना की सेवा में लगा ब्रिटेन और एचएएल निर्मित
एवरो एचएस-748 अब धीरे धीरे विदा लेगा,
उसकी जगह ले रहा है, एयरबस का सी-295. एवरो-748 की 6 दशक से ज्यादा की शानदार और विविधतापूर्ण
सेवाओं के कभी भुलाया नहीं जा सकता. बुढा रहे रूसी मालवाहक एंटोनोव एएन- 32 की भी जगह देर सवेर यही लेगा.

25 सितंबर 2023 को जब हिंडन एयर
बेस पर पहला सी-295 विमान वायुसेना
के 21 राइनो स्क्वाड्रेन में
शामिल किया गया तभी यह तय था कि आगे से हम ये विमान खुद बनाएंगे. अब गुजरात के
वडोदरा में इसे बनाने लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड या टीएएसएल का प्लांट
शुरू हो गया. फिलहाल यह संयंत्र एयरबस डिफेंस ऐंड स्पेस कंपनी के सहयोग से ऐसे 40 विमान बनाएगा.

असल में 2012 में रतन टाटा ने इस दूरदर्शी परियोजना की
परिकल्पना की थी. यह फलीभूत तब हुआ जब भारत सरकार ने सितंबर 2021 में स्पेन के साथ 56 सैन्य परिवहन विमान सी-295 खरीदने का सौदा 21,935 करोड़ रुपये में किया. तय हुआ था कि 16 विमान स्पेन के सेवले स्थित एयरबस कंपनी हमें
उड़ने के लिए तैयार हालत में देगी और बाकी 40 हम उसके सहयोग से खुद बनाएंगे.



टाटा का सपना पूरा करेंगे प्रधानमंत्री फोटो गूगल

2022 के अक्तूबर में इसके निर्माण हेतु इस संयंत्र की नींव पड़ी. अब प्रधानमंत्री
के उद्घाटन के बाद जब रतन टाटा नहीं हैं, नोएल टाटा के नेतृत्व में कंपनी देश में निजी क्षेत्र के पहला समूचा और अति
उन्नत कार्गो हवाई जहाज बनाने के लिए कमर कस चुकी है. टीएएसएल अगस्त 2031 की आखीर तक वायुसेना को सभी 40 विमान बना कर सौंप देगा. इसके बाद 25 बरसों तक भारतीय वायुसेना के इन विमानों की
देखरेख का ठेका भी उसी ने ले रखा है. बेशक उसके आगे की भी अत्यंत महत्वाकांक्षी
योजनाएं उसके पास हैं.

टीएएसएल और एयरबस मिलकर देश में दूसरे देशों के
लिए विमान बनाएंगे. अब वे चाहे युद्धक हों या मालवाही अथवा भविष्य में यात्री
विमान. इससे विमान निर्माण के क्षेत्र में बनने वाला परिदृश्य साबित करेगा कि मेक
इन इंडिया के साथ ‘मेडॅ फॉर द ग्लोब’ और आत्मनिर्भर भारत के रास्ते पर हम तेजी से
बढ चले हैं.

जल्द ही यूरोपीय और
अमेरिकी वर्चस्व वाले एयरोस्पेस मार्केट में भारत एक मजबूत दखल रखेगा. विदेश से
आयात पर निर्भरता कम होगी और देश में निर्माण क्षमता को बढ़ावा मिलेगा तो भविष्य
में यहां से विमानों के निर्यात के अवसर बनेंगे. रक्षा निर्यात में भारत की स्थिति
और मजबूत बनेगी. दुनिया की बड़ी विमान कंपनियों के लिए हम बहुत से कलपुर्जे बनाते
ही हैं पर इस नए विमान सी-295 के लिए 18 हजार कलपुर्जे यहीं बनेंगे और आगे चल कर यह
घरेलू मांग बढेगी तो नए कौशल और नए छोटे, मंझोले उद्योगों को फायदा पहुंचेगा. हम बोइंग से हर साल 1 अरब अमेरिकी डॉलर की सेवा लेते हैं. इसमें से 60% से अधिक विनिर्माण में खर्चते है, अब इसमें कमी आयेगी.

टाटा की सहयोगी कंपनियों,
सेवाओं, सैकड़ों डिफेंस
स्टार्टाप को भी खूब काम मिलेगा. देश के एयरोस्पेस इंडस्ट्री जो दक्षिण भारत तक
सीमित है उसमें विविधता आयेगी. कानपुर,
प्रयाग, आगरा तक इसका विस्तार होगा. टाटा कंसोर्टियम ने सात राज्यों
से काम कर रहे सवा सौ से अधिक इन-कंट्री एमएसएमई आपूर्तिकर्ताओं को काम देने का जो
फैसला किया है वह देश के एयरोस्पेस के क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाएगा. यह संयंत्र ही 3000 से अधिक लोगों को नौकरी देने वाला है तो,
15,000 से ज्यादा अप्रत्यक्ष
नौकरियां पैदा होंगी.

कोशिश है कि देश उड्डयन और विमानों के रखरखाव व
मरम्मत का केंद्र बन जाए. अब उम्मीद जगी है तो इस पहल के बाद रखरखाव की सुविधा के
लिए भी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा,
कलपुर्जों के लिए आपूर्ति
शृंखला तैयार होगी. हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी
ढाँचे का विकास होगा. मतलब यह शुरुआत मेंटीनेंस, रिपेयरिंग तथा संचालन यानी एमआरओ की सेवा देने में
हमको आगे बढाने वाला है.

इन सबके बाद सस्ते श्रम और बेहतर तकनीक सहायता
के लिए तमाम विदेशी कंपनियां, संस्थान यहीं
आयेंगे. आने वाले दो दशकों के भीतर ही देश को लगभग 2500 यात्री और मालवाहक विमानों की जरूरत होगी अगर हम
आत्मनिर्भर बन गये तो सोचिए कितना लाभ होगा. बीते डेढ दशक में देश ने ऐसे अनेक
फैसले लिए, जिससे भारत में एक
वाइब्रेंट डिफेंस इंडस्ट्री का विकास सुनिश्चित हो सका है और निजी क्षेत्र की
भागीदारी ने सरकारी उपक्रमों को प्रभावशाली बनाया. टाटा एडवास्ड सिस्टम लिमिटेड का
यह हवाई जहाज संयंत्र इसी का उदाहरण है.



जहाज को जानिए

सी-295 के नाम में ''सी'' स्पेन कंपनी कासा
यानी सीएएसए का पहला अक्षर है. यह अब एयरबस में विलय हो चुकी है.''2'' बताता है इसमें दो इंजन हैं और ''95'' उसकी भार वहन क्षमता दर्शाता है।

90 के दशक में यह
विकसित हुआ, 28 नवंबर 1997 को पहली उड़ान भरी.

विमान की लंबाई 80.3 फीट, डैनों का विस्तार 84.8 फीट, ऊंचाई 28.5 फीट है. क्रू केबिन में टचस्क्रीन कंट्रोल के साथ स्मार्ट
कंट्रोल सिस्टम है.

यह महज 320 मीटर की दूरी में टेक-ऑफ़ और 670 मीटर की दूरी में लैंडिंग कर सकता है.

यह एक बार में 71 सैनिक या 9 टन वजन के साथ 482 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से लगातार 11 घंटे तक उड़ान भर सकता है।

दो प्रैट एंड व्हिटनी
टर्बोप्रॉप इंजन के सहारे यह 30 हजार फीट तक
ऊंचा तक जा सकता है.

इसके पीछवाड़े रैंप डोर है,
मतलब सैनिकों को या सामान को बहुत तेजी से
उतारा, चढाया जा सकता है.

डैनों के नीचे 6 ऐसी जगहें हैं जहां हथियार और बचाव प्रणाली
लगाई जा सके. इसके इनबोर्ड पाइलॉन्स में 800 किलो के हथियार लगा सकते हैं.

आटो रिवर्स क्षमता के
चलते यह 12 मीटर चौड़े रनवे पर 180 डिग्री तक मुड़ सकता है.

1500 किलो वजनी
रिमूवेबल रीफ्यूलिंग सिस्टम, एक ऑपरेटर कंसोल
और 100 फीट लंबी होज ड्रम तथा
तीन अतिरिक्त ईंधन टंकियों से लैस इस विमान को हवा में उड़ता ईंधन टैंकर बनाया जा
सकता है. हवा में ही फिक्स्ड विंग वाले एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर को ईंधन दिया जा
सकता है.

विमान इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस और
विभिन्न प्रकार के टोही सेंसर्स आधुनिक एवियोनिक्स से युक्त है.

इसका एयरबोर्न अर्ली वार्निंग संस्करण हवाई
क्षेत्र की पूरी तस्वीर देने के लिए अपने रडार से 360-डिग्री कवरेज करता है।



सी 295 के कई संस्करण हैं फोटो गूगल

क्यों बनेगा ये गेम चेंजर

फिनलैंड, पोलैंड की बर्फीली ठंड हो या अल्जीरिया और
जॉर्डन का तपता रेगिस्तान, ब्राजील के जंगल
हों अथवा कोलंबिया के पहाड़, यह हर
चुनौतीपूर्ण वातावरण में कामयाब है. हमसे पहले स्पेन, इंडोनेशिया, इराक, मिस्र और अफगानिस्तान जैसे 37 देशों ने इस सामरिक परिवहन विमान को आजमाया
है. इसका 'मेड इन इंडिया' और बहुउद्देशीय होना गेम चेंजर साबित होगा।

हर मौसम में, रात दिन कभी भी, रेगिस्तान, पहाड़, समुद्र सभी जगह बहुमुखी प्रतिभा वाला विश्वसनीय
सी-295, सामरिक परिवहन विमान अपनी
भूमिकाएं निभा सकता है. यह सैन्य अभियानों के दौरान भार वहन के अलावा भूकंप,
बाढ़, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान इस्तेमाल हो सकता है. 24 स्ट्रेचर और सात मेडिकल अटेंडेंट ले जाने की
सुविधा के साथ इसे उड़्ते चिकित्सा घर में बदलने की खूबी हो अथवा 7,000 लीटर पानी के साथ उड़ान में सक्षमता के चलते
जंगल की आग से लड़ने के लिए एक कुशल वाटर बॉम्बर में बदलना, इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसके विभिन्न वैरियंट थोड़े से
बदलाव के बाद चिकित्सा निकासी, जंगलों की आग
बुझाने, टोह लेने हमला करने के
लिए भी किया जा सकता है.

सी 295 के कुच विमान यहां सक्रिय फोटो गूगल

यह विमान सीमित लंबाई
वाली पट्टी से उड़, और उसपर सुरक्षित
उतर सकता है. यही नहीं इसे दोयम दर्जे के कच्चे रनवे से भी उड़ाया और उतारा जा
सकता है. इसके अलावा यह विमान सुरक्षित पैराशूट ड्रॉप के लिए आवश्यक प्रावधानों से
लैस है जिसके जरिये सैनिकों तथा हथियारों को दुर्गम स्थानों पर आसानी से और तेजी
से पहुंचाया जा सकता है.

इसलिए हवाई हमले और विशेष बलों के मूवमेंट के
लिए यह अत्यधिक उपयोगी है. चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा अथवा सीमा पर चल
रही गतिविधियों की दशा में यह क्षमता बड़े काम की है.

समुद्री सीमा पर निगरानी
हेतु भी यह आदर्श विमान है. इसका एक वैरिएंट रडार और कई तरह के निगरानी उपकरणों,सेंसर से लैस है जो संकटग्रस्त वायुयान की
सहायता, समुद्री गश्त, समुद्री गतिविधियों की निगरानी, समुद्री डकैती से निपटने और उनसे बचाव के लिए
उपयोगी है. सैनिकों और सामान को ढोने, दूसरे विमान में तेल भरने और समुद्री गश्त सहित कई तरह के मिशन में इस्तेमाल
किया जा सकता है।

इसका एक संस्करण पनडुब्बी
रोधी युद्ध अभियानों के लिए डिज़ाइन किया गया जो सोनोबॉय, टॉरपीडो जैसे उपकरणों से लैस है. सीमा निगरानी मिशन में काम
करने और जरूरत पड़ने पर सुरक्षा खतरों का जवाब देने में भी यह सक्षम है. सी-295
का इतनी तरह से उपयोग भारतीय रक्षा बलों के लिए
एक बहुमुखी विकल्प देता है. यह तय है कि
सी-295 का वायुसेना में
समावेश देश की सामरिक एयरलिफ्ट क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण बढत देगा. इस जहाज का
परिचालन और रखरखाव सस्ता है सो इसे प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

यह आलेख आप गुजराती में भी पढ सकते हैं

First Time In India: Tata बनाएगा air defense का Cargo Plane। China और Pakistan हुए चिंतित

बस कुछ बरस की बात है, सराकारें जनस्दंख्या वृद्धि का हौवा खड़ा कर अकुशल और अपर्याप्त व्यवस्था को पॉपुलेशन के मोटे पर्दे मे...
26/07/2024

बस कुछ बरस की बात है, सराकारें जनस्दंख्या वृद्धि का हौवा खड़ा कर अकुशल और अपर्याप्त व्यवस्था को पॉपुलेशन के मोटे पर्दे में ढांप नहीं पाएंगी. राज्यवार जिला केंद्रित जनसंख्या नीति बना कर प्रजनन दर को सीमित करने का ख्याल बढिया है.
लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि जनसंख्या वृद्धि और प्रजनन दर पर सर्जिकल स्ट्राइक की इस कवायद को सावधानी से नहीं किया गया तो लेने के देने पड़ सकते हैं. कहीं. कुछ दशक बाद आबादी बढाओ का अभियान न चलाना पड़े. ऐसा हुआ तो तब तक बहुत देर हो चुकी होगी

सरकार ने तय किया है कि वह जनसंख्या नियंत्रण के लिये कड़े कानून बनाने की बजाए कुछ खास जिलों पर फोकस कर मिशन मोड में परिवार नियोजन अभियान चलाएगी। सरकार की यह जनसंख्या नियंत्रण नीति कई दृष्टिकोण से बहुत वैज्ञानिक और तार्किकतापूर्ण है हालांकि उसे इसके दूरगामी परिणामों पर भी नज़र रखना होगा

सरकार के एजेंडे में जनसंख्या नियंत्रण का अहम स्थान है। यह आम मान्यता है कि जनसंख्या वृद्धि देश के विकास का दुश्मन है सो जनसंख्या नियंत्रण के सरकारी उपायों को हर वर्ग का समर्थन है। भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी जनसंख्या नियंत्रण के कठोर उपायों का पक्षपाती रहा है।

जनभावना, संघ की मांग और समय की आवश्यकता देखते हुए केंद्र सरकार ने आठ साल पहले 146 जिलों में जनसंख्या नियंत्रण का सघन अभियान चलाया था। भले कई क्षेत्रों में लोग जनसंख्या की घटत को लोग स्वस्फूर्त कहें पर सरकार अपने उस प्रोजेक्ट के परिणाम से संतुष्ट है। हो इसे 340 अन्य जिलों पर लागू करने जा रही है।

सरकार पहले कुछ कठोर कानूनों का मन बनाया था, जिसकी झलक उत्तर प्रदेश के जनसंख्या नियंत्रण कानून प्रस्ताव में दिखा भी था परंतु अलोकप्रिय होने की आशंका के मद्देनजर उसने कानून का सहारा लेने की बजाए प्रभावी परिवार नियोजन का रास्ता निकाला है।

अब एक रोड़मैप बना कर वह अधिक प्रजनन दर वाले जिलों में आक्रामक अभियान चलाएगी। बेशक देश के कुछ ही राज्य और उनके भी कुछ खास जिले हैं जहां प्रजनन दर देश की औसत से ज्यादा है। यदि यहां प्रजनन दर को काबू किया जाय तो समूचे राज्य का आंकड़ा सुधर जाएगा जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार द्वारा इस सर्जिकल स्ट्राइक का इरादा बहुत साइंटिफिक और तार्किक है।

यदि जनसंख्या नियंत्रण की सामान्य सरकारी नीति समूचे देश पर लागू की करने के प्रयास किया जाए तो इसके प्रति विभिन्न राज्यों की सक्रियता भिन्न होगी, इस मामले में उनकी आवश्यकता और स्तर भी अलग होगा फिर कानून बनाने के बाद उसे लागू कराना और देख रेख करना और भी पेचीदा काम है। फिर इस पर राष्ट्र स्तर की कड़ाई से यह देश के लिये लाभप्रद होने की बजाए घातक परिणाम भी ला सकता है।

यदि पूरे राज्य में इसे लागू किया जाता है तो भी यह उचित नहीं होगा, कुछ गिनती के जिलों के चक्कर में समूचे राज्य पर नीति को थोपने का अर्थ है श्रम और समय तथा धन संसाधन का अपव्यय। ऐसे में सरकार द्वारा सीधे लक्ष्य पहचान कर उस पर निशान बांधना अधिक श्रेयस्कर है। इससे आपेक्षिक परिणाम शीघ्र मिल सकते हैं यह दूरदर्शी पहल सरकार को शीघ्र आरंभ करना चाहिये।

मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे 29 राज्यों में प्रजनन दर 2 या दो से भी कम है। अर्थात एक स्त्री के दो बच्चे। लड़का लड़की के उचित अनुपात के लिये भी इतना तो जरूरी है। यह प्रजनन दर के स्थिरीकरण की स्थिति है। 2.1 आदर्श स्थिति, क्योंकि कुछ शिशुओं की असमय मृत्यु हो जाती है। प्रजनन दर का इससे बहुत नीचे जाना ठीक नहीं।

बिहार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, आसम, मेघालय जैसे कतिपय राज्यों का प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। खासतौर पर बिहार चिंता का विषय है, जहां प्रजनन दर 3 है, उत्तर प्रदेश का प्रजनन दर 2.4 भले ही मेघालय जैसे छोटे राज्य के 2.9 से कम हो पर यह उससे ज्यादा चिंतनीय इसलिए है क्योंकि मेघालय उसके मुकाबले बहुत छोटा राज्य है। जहां प्रजनन दर 2.4 से नीचे और 2.1 से ज़रा ही ऊपर है और वे ज्यादातर छोटे राज्य हैं, वहां सरकार को जनसंख्या नियंत्रण की में संभवतः ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़े।

20 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 27 जिले ऐसे हैं जिनका प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। इनमें से सात जिले तीन से अधिक और सात जिले 2.5 से अधिक प्रजनन दर वाले हैं जबकि 13 जिले 2 या दो से ऊपर प्रजनन दर वाले। अब सरकार यदि श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर जैसे साढे तीन से अधिक की प्रजनन दर वाले जिलों में परिवार नियोजन के सघन अभियान चलाकर 2.5 से नीचे ले आये तो यह पूरे प्रदेश के आंकड़े को सुधार देगा क्योंकि जो जिले 2.5 से ऊपर हैं वे इस प्रक्रिया में 2.2 के आसपास अवश्य पहुंच जाएंगे।

ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण के लिये चयनित क्षेत्रों का प्रयास स्वागत योग्य है। यदि पूरे प्रदेश पर जनसंख्या नियंत्रण अभियान थोपा जाए तो जिन जिलों का प्रजनन दर 2 या उससे नीचे है उसके और नीचे चले जाने की आशंका होगी और यह प्रदेश के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक होगा।

उत्तर प्रदेश को लें, यहां 1991 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि में पाँच फ़ीसदी की कमी हुई है। यह भी स्मरण योग्य है कि उत्तर प्रदेश की आबादी में 10 से 19 वर्ष के किशोर किशोरियों और 15 से 24 साल के युवाओं का प्रतिशत सर्वाधिक है और यह प्रदेश के लिये अच्छी बात है, इस स्थिति को बनाए रखना होगा। दूसरी तरफ प्रदेश में 15 से 19 साल की 4 फीसदी लड़कियां मां बन जाती हैं और 30 प्रतिशत लड़कों की शादी 21 बरस के पहले हो जाती है।

जनसंख्या नियंत्रण के जिला केंद्रित अभियान में इन आंकडों पर भी नजर रखना होगा। बेशक सरकार इन्हीं कारकों को दूर करने जा रही है जिनमें परिवार नियोजन के लिये लोगों को मजबूर नहीं राजी किया जाएगा।

जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास ज़रूरी हैं, खास तौर पर कुछ राज्यों में, पर जब कुछ को छोड़ कर देश के तमाम राज्यों की प्रजनन दर घटाव पर हो। लोग लंबी उम्र तक जीते हुए कम बच्चे पैदा कर रहे हो, जिससे बीते दो दशकों से जनसंख्या वृद्धि दर का ग्राफ़ लगातर नीचे जा रहा हो और उसकी रफ्तार घट गई हो,

प्रजनन दर गिरता जा रहा हो, ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही हो कि चार दशक बाद देश की जनसंख्या बुरी तरह घट जायेगी जिसमें 60 बरस से ऊपर के अनुत्पादक बुजुर्गों और अश्रित महिलाओ की संख्या तकरीबन पैंतीस करोड़ होगी जिनकी सामाजिक सुरक्षा पर व्यय एक बड़ी सरकारी समस्या बन सकती है ऐसे में इस जनसंख्या नियंत्रण के सर्जिकल स्ट्राइक को बहुत सोच समझ कर लागू करना होगा।

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया राज्य में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति तब आती है, जब लगातार तेज़ी से जनसंख्या बढ़ रही हो और प्रजनन दर भी 4 से ऊपर हो। दो दशक पहले उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर चार के करीब था यह घटता हुआ 2.4 पहुंच चुका है जिसके अगले साल 2.1 पर पहुंचने की उम्मीद लगाई जाती है।

इसी तरह के उम्मीद दर्जन भर दूसरे राज्यों के बारे में भी है। सो यूपी या ऐसे बहुत से राज्यों में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति नहीं है। यह प्रजनन दर उस रिप्लेसमेंट अनुपात के करीब है जो पीढी दर पीढी वंश चलाए रखने के लिये ज़रूरी है। नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, सभी धार्मिक समूहों में प्रजनन दर कम हो रही है। हिंदुओं में प्रजनन दर अब 1.9 है जो कभी 3.3 हुआ करता था।

1992 के बाद मुसलमानों में प्रजनन दर तेज़ी से गिरा तो जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, किसी में बीते दशक से प्रजनन दर बढा नहीं है, घटोतरी की प्रवृत्ति है। यह ठीक है कि मृत्यु दर में कमी आई है पर जन्म दर में भी उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरती जनसंख्या का बड़ा कारक है। सरकार की जनसंख्या नियंत्रण नीति उचित है पर उसे दूरगामी परिणामों को भी ध्यान में रखना होगा। ऐसा न हो कि चार दशक बाद आबादी बढाने के लिए अभियान चलाना पड़े और तब तक बहुत देर हो चुकी हो।

सीमा पर बाड़ विसंगतियों की बाढ   सीमा को अभेद्य बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हाइब्रिड सरविलांस सिस्टम वाली बाड़ लगान...
15/07/2024

सीमा पर बाड़ विसंगतियों की बाढ

सीमा को अभेद्य बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हाइब्रिड सरविलांस सिस्टम वाली बाड़ लगाना एक उचित कदम है जो केंद्र सरकार तमाम सरकार विरोधों के बावजूद जारी रखे हुए है। इससे पूर्वोत्तर राज्यों में प्रवासन, स्थानीय संसाधनों पर अवैध नियंत्रण, विभिन्न भारतीय विद्रोही समूहों द्वारा शिविर बनाने, उनके द्वारा हिंसा, जबरन वसूली रुकेगी और नाजुक हो गई सुरक्षा की स्थिति संभल सकेगी लेकिन इस बाड़ से जुड़े कुछ वाजिब सवालों के जवाब आज भी मिलने बाकी हैं

सीमा सड़क संगठन ने सरकार के उस फैसले पर जिसके तहत पूर्वोत्तर के चार राज्यों से सटी म्यांमार की 1,643 किलोमीटर की सीमा पर बाड़ लगाना है, अमल करते हुये कंटीले तारों की बाड़ लगाना शुरू करके अब तक 12 किलोमीटर से ज्यादा का लक्ष्य पा भी लिया है और मणिपुर में अगले 80 किलोमीटर के लक्ष्य की ओर बढ़ चली है।

इस राज्य से लगते म्यामांर की सीमा पर 250 किलोमीटर की बाड़ लगेगी। पर इस लक्ष्य के पूरा होने से पहले समूची बाड़बंदी पर कुछ अहम सवाल उठ खड़े हुये हैं और तमाम विरोध भी। बाड़ लगाने की अव्यावहारिकता, अतार्किकता, आवश्यकता, तकनीक, तरीके, सैन्य, कूटनीतिक, राजनीतिक, राजनयिक नफा नुकसान, खर्चे और रखरखाव के साथ दूसरे कुछ जरूरी सवाल तब भी उठे थे जब गृहमंत्री अमित शाह ने यह फैसला लिया था, हालांकि कुछ प्रश्नों के उत्तर सरकार ने तत्काल दे दिये थे लेकिन कई सवाल तब भी अनुत्तरित थे और आज जब इस पर काम जारी है और सरकार ने अपनी इस परियोजना के पूरा करने के प्रति प्रतिबद्धता दर्शायी है तब भी हैं।

अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर आवश्यक है क्योंकि ये महज पूर्वोत्तर के स्थानीय नेताओं, संगठनों के द्वारा ही नहीं पूर्व सैन्य अधिकारियों, पूर्व राजनयिकों, सुरक्षा विशेषज्ञों, आर्थिकी के जानकारों और विदेश नीति के समीक्षकों द्वारा भी उठाए गये हैं। अपनी रक्षा, सुरक्षा के लिये सीमाओं की बाड़बंदी का ख्याल और उस पर क्रियान्वयन निस्संदेह उचित है लेकिन इससे जुड़े संदर्भित सवालों का साफ और तार्किक उत्तर भी जरूरी है।

यह सरकार यदि फिर सत्ता में आती है तब भी इस लंबी परियोजना से जुड़े ये प्रश्न उसके सामने रहेंगे, बेहतर हो वह इस प्रश्नों का उत्तर चुनावों में जाने से पहले दे। इससे उसे उत्तरपूर्व में राजनीतिक लाभ मिलेगा और बेशक देश की रक्षा सुरक्षा के सुदृढीकरण के नाम पर दूसरे क्षेत्रों में भी। सरकार बाड़बंदी से जुड़े सवालों को टालती है तो पूर्वोत्तर में होने वाले इसके विरोध से उसे कुछ राज्यों किंचित नुकसान उठाना पड़ सकता है।

म्यांमार सीमा पर मुश्किलों की बाड़

भाजपा सरकार के रहते ही साल 2018 में म्यांमार के साथ फ्री मूवमेंट रिज़ीम पर हस्ताक्षर हुआ था जिसके तहत भारत-म्यांमार सीमा के आसपास के लोग सीमा के 16 किलोमीटर भीतर तक बिना किसी जांच के आ जा सकते थे। पर छह साल में ही इस व्यवस्था को खारिज कर सीमा पर तारबंदी करने के लिये मजबूर होना पड़ा ताकि म्यामांर की अशांति और उससे भागे घुसपैठिए यहां न पसरें। अवैध ड्रग्स कारोबार और चीनी हथियारों की तस्करी रुके, क्योंकि म्यांमार को चीनी हथियारों की भारी आपूर्ति होती है।

पर सरकार की ओर से सिर्फ़ इतना कहा गया है कि हमें सीमाओं को अभेद बनाना है, म्यांमार के प्रति हमारा कोई दुराव नहीं। हालांकि पड़ोसी देश के प्रति यह संदेश तो चला ही गया कि वह हमारे लिये भरोसेमंद नहीं बल्कि ऐसी अनचाही गतिविधियों का स्रोत है जिनकी वजह से यह कदम उठाना पड़ा है। सवाल यह कि हमारी उस एक्ट ईस्ट पॉलिसी का क्या होगा जिसके तहत हम म्यांमार में रहने वाले 20 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोगों के साथ आर्थिक और करीबी संबंध बनाना चाहते हैं।

मिज़ोरम के मिज़ो और म्यांमार के चिन जातीय चचेरे भाई-बहन हैं। उनके सीमा पार पारिवारिक संबंध हैं। ईसाई बहुल चिन राज्य की सीमा मिज़ोरम से सटी है होने के साथ सीमा के दोनों ओर बहुतायत से नगा रहते हैं जो अकसर आरपार आया जाया करते हैं। ऐसे में बाड़ सीमाई इलाके के लोगों में दशकों पुराना संतुलन बिगाड़ कर पड़ोसियों में तनाव वृद्धि करेगा। एक डर यह है कि इनमें देश के प्रति दुराव पैदा होगा और कालांतर में स्थानीय लोग इसमें से रास्ता ढूंढ कर बाड़ को अव्यावहारिक कर देंगे।

भारत सीमा सुरक्षा और सीमा पर बुनियादी ढांचा विकास के लिए अगर जुंटा का समर्थन चाहता है तो बाड़ से पहले बातचीत को प्राथमिकता देनी होगी,बिना इसके बाड़ लगाने से उकसाव को बल मिलेगा, बात बिगड़ सकती है।

बड़े सवालों वाली बाड़

देखा जाए तो प्रत्येक पड़ोसी से सुरक्षा के मामले में हमारे लिये अलग तरह की चुनौतियां हैं, श्रीलंका, भूटान,पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान और मालदीव जैसे देशों की चुनौतियों को एक सा नहीं आंक सकते। पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमाओं पर बाड़ लगाना ठीक है, लेकिन बेहद कम और बिखरी हुई आबादी तथा कई निर्जन दुर्गम, कठिन पहाड़ी इलाकों वाली म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए।

इसे लगाने में कई साल लगेंगे और पहाड़ी इलाके में बाड़ लगाना असंभव सा है। यह ठीक है कि पूर्वोत्तर भारत के कई विद्रोही गुटों ने म्यांमार के सीमावर्ती गांवों और कस्बों में अपने शिविर बना लिए हैं और वे इधर उधर आते जाते रहते हैं और म्यांमार से अवैध आप्रवासन भी होता है लेकिन यह बड़े पैमाने पर होता है यह नरेटिव इसलिये ज्यादा फैलाया जाता है ताकि इस बात को साबित किया जा सके कि कुकी मणिपुर के नहीं बल्कि 'विदेशी' और अवैध प्रवासी हैं जिनके विरोध-प्रदर्शनों को म्यांमार से समर्थन मिलता है।

सच यह है कि सदियों से मणिपुर में बसे कुकी के साथ मैतेई लोगों ने भी सीमा पर मुक्त आवाजाही की व्यवस्था से व्यावसायिक लाभ उठाया है, दोनों को बाड़ से नुकसान है। बाड़बंदी में अनुमानतः प्रति किलोमीटर 2 करोड़ से ज्यादा का खर्च आएगा जो समय और भौगोलिक परिस्थितियों के चलते डेढगुना तक खिंच सकता है।

3,200 करोड़ रुपये के खर्च के बाद बन चुकी बाड़ का प्रतिकूल मौसम में साल दर साल रखरखाव इसके बजट को दोगुना खींच देगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश से जिस कदर आतंकवाद और घुसपैठ का खतरा है उस मुकाबले म्यांमार से नहीं तो फिर पारंपरिक कांटेदार बाड़ भले ही वह हाइब्रिड सर्विलांस सिस्टम वाली कही जा रही हो उसे लगाने पर इतना खर्च करने से पहले लागत लाभ के बारे में सोचना भी लाजिमी है।

म्यांमार पर चीनी प्रभाव का अवैध घुसपैठ के जरिये पूर्वोत्तर में इसके प्रसार की चिंता जरूरी है पर भविष्य के मद्देनजर तकनीकि युग में पारंपरिक बाड़ बेकार की कवायद लगती है। राष्ट्र-विरोधी तत्व अब ऐसी बाधाओं को पार करने के लिए न सिर्फ सुरंग खोदने या ड्रोन के इस्तेमाल जैसे तमाम नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं बल्कि इसमें वे और आगे बढेंगे इसे सोचकर तकनीकि सम्मत और लीक से हटकर बाड़बंदी जरूरी है।

ऐसी बाड़ जिसपर दूरवर्ती नजर और निगरानी रखी जा सके, जो घुसपैठ की पूर्व सूचना दे और उसपर पलटवार का बेहतर मौका। सरकार उस सुझाव पर भी अमल कर सकती है जिसमें हर मौसम में तेजी से बढने वाले और हाथियों के झुंड़ के हमले भी झेल जाने वाले पर्यावरण के अनुकूल बंबूसा किस्म के कांटेदार मोटे मजबूत बांस की झाड़ लगाने को कहा गया है। इन्हें कम लागत पर उगाया जा सकता है और घुसपैठ का पता लगाने और पूर्व चेतावनी देने के लिए इसमें सेंसर भी फिट किए जा सकते हैं।

ऐसी बाड़ से तारबंदी वाले बाड़ से उलट स्थानीय आबादी में अलगाव की भावना पैदा नहीं होगी और पहले से ही कानून-व्यवस्था की कमजोर स्थिति वाले सीमावर्ती इलाकों में इसे और खराब होने से रोकेगी भी। फिलहाल सरकार को इन आरोपों का दमदार ज़वाब देने की जरूरत है कि फ्री मूवमेंट अग्रीमेंट निरस्त करना ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से अतार्किक है और इस तरह की बाड़ ऐसे समस्याओं का समग्रतापूर्ण हल नहीं है।

ब्रिटेन में भारतवंशी सांसदों की जीत का अर्थनिस्संदेह भरतवंशी सांसदों की जीत हम भारतीयों को आत्मगौरव और प्रसन्नता देती है...
15/07/2024

ब्रिटेन में भारतवंशी सांसदों की जीत का अर्थ

निस्संदेह भरतवंशी सांसदों की जीत हम भारतीयों को आत्मगौरव और प्रसन्नता देती है। पर हमें इन सांसदों से कोई अपेक्षा पालन उचित नहीं कि वे ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों की मुखर आवाज़ बनेंगे अथवा ब्रिटेन भारत के बीच संबंधों में लागू या आने वाली नीतियों को प्रभावित कर सकेंगे। 650 सांसदों की संसद में 19 या 7 सांसदों का संख्या बल नगण्य है। भरत के संदर्भ में वही नीतियां प्रभावी रहेंगी जो प्रधानमंत्री केर स्टार्मर तय करेंगे। विपक्षी भारतवंशी सांसदों से किसी प्रखर प्रतिरोध की अपेक्षा भी बेमानी है।

केर स्टार्मर ने अपने मंत्रिमंडल में मात्र एक भरतवंशी नंदी को ही जगह दी है और नंदी के साथ पाकिस्तानी मूल के भारत विरोधी शबाना महमूद को भी न सिर्फ स्थान दिया है बल्कि महत्वपूर्ण न्याय मंत्रालय सौंपा है। इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि कम संख्या के बावजूद पाकिस्तानी मूल के नेताओं ने भी 15 सीटें जीती हैं, लंदन का मेयर भी एक पाकिस्तानी मूल के नेता बने हैं।

ब्रिटेन के आम चुनावों में भारतीय मूल के 29 सांसदों का चुना जाना ऐतिहासिक है। भले ही भारतवंशी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की बुरी तरह हुई हार निराश करने वाली हो पर यह परिदृश्य यह उम्मीद जगाने वाली है कि आने वाले समय में न सिर्फ ब्रिटेन में भारतवंशी सत्ता के शीर्ष पर होंगे बल्कि दुनिया के तमाम देशों में भी राजनीतिक तौर पर उनकी प्रभावी उपस्थिति होगी।

फिलहाल ब्रिटेन की संसद में प्रवेश पाने वाले भारतीय मूल के सांसदों से हमारी क्या अपेक्षा हो सकती है और उनकी आगे के राजनीति क्या होगी इस पर विचारना समीचीन होगा

ब्रिटेन के चुनावों में भारतीय मूल के 29 सांसद जीते हैं, पिछली बार उनकी संख्या 15 थी। पाँच साल में 15 से 29 की संख्या पर पहुंचना मायने रखता है। यह बढत बताती है कि भारतीय मूल के नेता वहां किस तरह से अपना जनाधार बढा रहे हैं। ब्रिटेन में सत्ता संघर्ष अमूमन लेबर और कंजरवेटिव के बीच रहता है। तीसरी मुख्य पार्टी लिबरल डेमोक्रेट है। ग्रीन पार्टी और दूसरी दलों के अलावा निर्दलीय भी चुनाव लड़ते हैं।

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि भारतीय मूल के ये नेता किसी एक विचारधारा या दल तक सीमित नहीं हैं वे सभी दलों से, यहां तक कि निर्दलीय भी जीते हैं। 29 सांसदों में से 19 सत्ताधारी लेबर पार्टी से, 7 मुख्य विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी से, 1 लिबरल डेमोक्रेट्स से और 2 निर्दलीय हैं।

जिन निर्वाचन क्षेत्रों में भारतीय मूल के मतदाताओं की संख्या अधिक है उन्हें कुछ ज्यादा मत मिलना समझा जा सकता है लेकिन जहां ऐसी स्थिति नहीं थी वहां भी ब्रिटिश मूल के उम्मीदवारों के समक्ष भारतीय मूल के जन प्रतिनिधियों का सीट जीतना, उनकी जनप्रियता और स्वीकार्यता का संकेत है। 650 सीटों में से क़रीब 50 सीटों पर दक्षिण एशियाई लोगों का पूरा दबदबा है,यों तो पाकिस्तानी, श्री लंकाई, चीनी मूल के नेता भी यहां है मगर भारतीयों का वर्चस्व ज्यादा है।
13 सांसद तो पंजाबी मूल के ही हैं।


लेबर पार्टी ने अपने 19 भारतीय मूल के सांसदों में से एक विगान से चुन कर आई 44 साल की लिसा नंदी को संस्कृति मंत्री बनाया है वे मीडिया और खेल विभाग देखेंगी। संभव है कि भविष्य में इन सांसदों में से कुछ को मंत्रीपद या उससे इतर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलें। सीमा मल्होत्रा, प्रीत कौर गिल जैसे कुछ सांसद काफी अनुभवी हैं और शैडो मंत्रालय में भी रह चुके हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो पहली बार जीत कर आये हैं लेकिन उनकी चमक तेज है। ब्रिटिश सरकार उनकी क्षमता, प्रतिभा को परख सकती है।

सियासत संभावनाओं का खेल है संभव है कि कल कोई फिर भारतीय मूल का नेता ऋषि सुनक की तरह ब्रिटिश सरकार में सर्वोच्च पद पर पहुंचे, प्रधानमंत्री बने। भारतीय मूल के नेताओं की सफलता और स्वीकार्यता जिस तरह से वहां की जनता और सभी दलों में बन रही है यह कभी भी संभव हो सकता है। फिलहाल तो स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की करारी हार से आम भारतीय को दुःख हुआ है।

देश और ब्रिटेन में जो भाजपा के समर्थक है, मूलत: कंजरवेटिव पार्टी के समर्थक माने जाते हैं क्योंकि उसकी राजनीतिक शैली तकरीबन वही है।
ब्रिटेन में रहने वाले 18 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के मतदाताओं में से 42 फीसद से ज्यादा हिंदू हैं, उनका और यहां के युवा वर्ग का झुकाव कंजरवेटिव की ओर माना जाता रहा। कंजरवेटिव अपने स्पष्ट मुस्लिम विरोध के लिये भी जाने जाते रहे हैं। लेबर पार्टी के समर्थक सिखों की आबादी हिंदुओं के मुकाबले कम है, मुसलमान भी बंटे हुए है फिर भी उसने कंजरवेटिव का सूपड़ा साफ कर दिया।

ब्रिटेन की सत्ता पर काबिज लेबर पार्टी भारत की आज़ादी की समर्थक थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली के फैसले का कंजरवेटिव पार्टी के पूर्व पीएम विंस्टन चर्चिल ने खूब विरोध किया। इसी वजह से ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय लेबर पार्टी के समर्थक बने। अभी हाल तक, 2010 में 61 प्रतिशत भारतवंशियों ने लेबर पार्टी को वोट दिया था, पर 2015 में जब लेबर नेता जेरेमी कॉर्बिन ने कश्मीर पर विवादित बयान दिया, अनुच्छेद 370 खत्म करने पर कश्मीर पर एक आपातकालीन प्रस्ताव ला कर बोली कि कश्मीरियों को स्वनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिये।

ब्रिटिश इंडियन हिंदू मैटर नाम के एक संगठन ने उनके विरुद्ध एंटी हिंदू , एंटी इंडिया का अभियान चलाया नतीजा यह हुआ कि 2019 में यह समर्थन घट कर 30 फीसद पर पहुंच गया ,कंजर्वेटिव पार्टी का हिंदू कार्ड काम कर गया और उसने 24 प्रतिशत वोट कब्जा लिया।

पर इस बार प्रधानमंत्री होते हुए मंदिरों में जाना, हर मंगलवार घर पर सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ का आयोजन, हिंदू, हिंदुत्व,सनातन की बात करते रहने के साथ तमाम तीज त्योहारों पर हिंदू जनता का जुटान, भोज कराने की रणनीति काम न आई। प्रवासी भारतीयों के गर्व, सुनक यॉर्कशायर में रिचमंड और नॉर्थॉलर्टन के उस निर्वाचन क्षेत्र से जहां वे खुद रहते है, भारतीयों की भारी आबादी है, अपनी सीट दो दौर में पीछे रहने के बाद बमुश्किल 23,059 वोटों से बचा पाए। जाहिर है मतदाताओं ने धार्मिक और भावनात्मक अपील से ज्यादा कामकाज को तरजीह दी।

असल में ब्रिटेन की समावेशी नीति ने सभी देशों के लोगों को वहां बसने के अलावा राष्ट्रीय राजनीति में हिस्सा लेने के समान अवसर दिये हैं। उसी का परिणाम है कि भारतवंशी और दूसरे देशों के लोग वहां की संसद में पहुंच पा रहे हैं। ब्रिटेन की जनता ने भी कुछ अपवादों को छोड़ कर ज्यादातर गैर विभेदकारी नीति ही अपनायी है, जाहिर है कि भरतवंशी सांसदों की जीत में ब्रिटेनवासियों का भी वोट है।

जहां विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी के जीते सांसदों के सामने अगले पाँच सालों के लिये इस बात की कड़ी चुनौती है कि वे अपने खिसके वोट बैंक और बाकी मतदाताओं का विश्वास फिर से कैसे प्राप्त करें, सुनक की दशा से सीख ले अपनी सियासी रणनीति में क्या बदलाव लाएं। अपने छिटके हुए युवा और हिंदू मतदाताओं को बटोरने के लिए क्या नए उपक्रम करें ?

वहीं लेबर पार्टी के भरतवंशी सांसदों के सामने भी कम सांसत नहीं है। उम्मीदों के बोझ तले दबी सरकार को इस जनसमर्थन को पाँच बरस सहेजना कठिन रहेगा। महंगाई और बेरोजगारी का इन सांसदों का अपनी मतदाता को क्या जवाब होगा। लेबर पार्टी के पक्ष में कई दशकों तक वोट करने वाले भारतीय मूल की कारोबारी समुदाय का झुकाव पिछले कुछ सालों में हिंदूवादी, राष्ट्रवादी कंज़र्वेटिव पार्टी की तरफ हो गया था अब जब इस बार लेबर पार्टी सत्ता में आ चुकी तो ये कम्युनिटी चिंतित है और कई तो दुबई जैसे देशों का रुख कर रहे हैं।

लोगों को आशंका है कि खस्ताहाल अर्थ व्यवस्था को देखते हुए लेबर पार्टी शिक्षा पर 20 फीसद टैक्स लगा देगी। लेबर के लिए भारत के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखना होगा, जबकि सुनक के जाने में यह भी एक मुद्दा था। रवांडा प्रवासी योजना रद करने के बावजूद इमेग्रेशन एक बड़ा मुद्दा बना रहेगा।

आपके कितने काम की है यह सेवा
20/06/2024

आपके कितने काम की है यह सेवा

पारा पचास पार, अगली बार हाहाकार   तकनीक बचाएगे ताप से संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस इसे "वैश्विक उबाल का दौर"...
12/06/2024

पारा पचास पार, अगली बार हाहाकार

तकनीक बचाएगे ताप से

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस इसे "वैश्विक उबाल का दौर" कहते हैं। उबाल का यह दौर हमारे यहां से मानसून के साथ विदा हो जायेगा लेकिन बकौल वैज्ञानिकों के भीषण गरमी अगली बार इससे भी विकराल रूप ले वापस आयेगी, साल दर साल बढती जायेगी, तापमान के बेतहाशा बढने से वन, पर्यावरण, अर्थ व्यवस्था,स्वास्थ्य रहन सहन किं बहुना जीवन के तथा तमाम क्षेत्रों पर घातक असर पड़ेंगे।

भारत को विश्व के चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से रोकने के लिये यह मजबूत वजह बन सकती है। ऐसे में इससे निबटने के लिए तात्कालिक तौर पर और दीर्घगामी स्तर पर क्या कुछ करना होगा नए चलन, नई तकनीक का सहयोग लेने के लिए लोग और सरकारें कितनी तैयार हैं इसका जायजा जरूरी है


चुनावी सरगर्मी का पारा उतर गया पर गर्मी का पारा चढा हुआ है। मौसम विज्ञानी कहते हैं कि इस महीने अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी होगी। खासतौर पर शहरों का हाल बेहाल है। दिल्ली के मुंगेशपुर में 52।3 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड तापमान दर्ज हुआ।
देश के तीन दर्जन से ज्यादा शहरों ने पारा 45 के पार और पचास के करीब पहली बार देखा। कानपुर में पोस्टमार्टम हाउस फुल हो गये कथित तौर पर हीटवेव से हुई मौतें इसकी की वजह थी।
हीटवेव के कई दौर से गुजर चुके शहर मानसून आने से पहले इसके कुछ और दौर की आशंका से सहमे हुए हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि अगले वर्षों में स्थिति और बदतर होगी। आखिर शहरों में तापमान इस कदर क्यों बढता जा रहा है कि गर्मी के पैमाने का कीर्तिमान बनाने वाले मुंगेशपुर जैसे कई अर्बन हीट आइलैंड निर्मित हो रहे हैं?

बढता तापमान और मौसम का अतिरेक वैश्विक परिघटना है तो देखना होगा कि दूसरे देशों के शहरों के लोग, सरकारें, इससे निबटने के लिये क्या कर रही हैं और हमें क्या करना चाहिये? क्या राज्य और केंद्र सरकारों ने इस आपद स्थिति पर पर्याप्त ध्यान देते हुए गंभीर विमर्श कर कोई रूपरेखा बनाई है?

इससे होने वाले जनधन के व्यापक नुकसान को रोकने की रणनीति क्या है? हीट एक्शन प्लान क्या कर रहा है? इस कुदरती आफत को महज मौसमी मुसीबत समझ कर कहीं हल्के में तो नहीं लिया जा रहा है?

हीटवेव के साथ अग्निकांड बढे हैं और दावानल भी। जलाशयों का जल हुआ बिजली की मांग बेतहाशा बढ़ी है। ऐसे में सरकारों ने इसके मूल कारणों को तलाश कर इसके निवारण हेतु तत्काल वैज्ञानिक रीति नीति से तकनीक गत कार्यारंभ करने के कैसे समयोचित प्रयास किए हैं इसका सम्यक विवेचन आवश्यक है ताकि भविष्य की नीति तय हो सके।

इस समस्या के निदान में ही समाधान है। पर इलाज जल्द करना होगा अन्यथा देर होने से अंधेर होने की पूरी आशंका है। शहरों में साल दर साल तापमान बढने और पिछली बार जितने तापमान में ही ज्यादा गरमी के अहसास की वजह यह नहीं है कि शहरी लोगों की गर्मी सहने की क्षमता कम हो गई है। इसका कारण सिर्फ बदलता मौसम भी नहीं, बल्कि पर्यावरणीय कानून कायदों को ताक पर रख धुआंधार बढता शहरीकरण भी है।
ज्यादातर शहरों के ग्रीन कवर की दशा बहुत बुरी है। धरती कंक्रीट, सीमेंट, डामर आच्छादित है, जलक्षेत्र अतिक्रमित। पेड़-पौधों की कमी से वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन नमी बढा रही रही है जिसके कारण पसीना नहीं सूख रहा और समान तापमान पर भी ज्यादा गर्मी का एहसास हो रहा है। देश के लगभग सभी बड़े शहरों में बीते बरसों में रात का तापमान और तुलनात्मक नमी बढ़ी है।

शहर की ऊंची इमारतें वायुप्रवाह में बाधक हैं, बहुमंजिला भवनों की हर मंजिल सूरज की गर्मी सोखती हैं, कंकरीट, शीशे जैसी सामग्री का ज्यादा इस्तेमाल, डामर असफाल्ट से बनीं काली सतह वाली सड़कें, गलियां भी दिन के तप कर रात में गर्मीं निकालती हैं। सरफेस टेंपरेचर रात का तापमान गिरने नहीं देता जिससे तापमान को सामान्य बनाने के लिये आवश्यक अंतर उपलब्ध नहीं होता।

एसी, फ्रिज, गाडियां, गर्मी और प्रदूषण दोनों पैदा कर रहे हैं। कुछ इलाके इन तमाम कारकों के अलावा कार्बन डाइऑक्साइड और ओज़ोन ग्रीनहाउस गैस के बड़े शिकार हैं इस दुर्योग के चलते बाकी इलाकों से ये कुछ अधिक गर्म हो जाते हैं और अर्बन हीट आईलैंड का दर्जा हासिल कर लेते हैं।

अतिशय शहरी गर्मी के ये कारण जगजाहिर हैं। हीटवेव के असर को कम करना या अर्बन हीट आईलैंड की संख्या घटाना हो तो हमें नई तकनीक की शरण में जाना होगा और उन नए तौर तरीकों को अपनाना होगा जिन्हें अपना कर दुनिया के कुछ शहर इस आफत में किंचित राहत पा रहे हैं।

सबसे पहले तो हमें डीआई बनाना होगा यानी डिस्कम्फर्ट इंडेक्स। थर्मल असुविधा सूचकांक इसका मूल्यांकन करता है कि कहां गर्मी से किस स्तर की परेशानी हो रही है। डीआई स्तरों का एक एटलस बनाने पर हीटवेव के खतरों का खाका तैयार होगा जिससे अधिक संवेदनशील जगहों पर ज्यादा ध्यान देते हुए अलग अलग अलग गर्मी प्रबंधन योजना बनाई जा सकेगी। यूरोप में एथेंस गर्मी की रैकिंग करता है और इसकी मदद से शहर के हिस्सों को हीटवेव से बचाने के लिये क्या करना है इसके फैसले लेता है।

कुछ देशों में भवन और अवसंरचन अनिर्माण हेतु कूल मेटेरियल पर शोध अनवरत है। ग्रीन स्पेस, ब्लू इंफ्रास्ट्रकचर, क्लाइमेट रिस्पॉन्सिवव अर्बन प्लानिंग और मानव निर्मित ऊष्मा को कम करना उनकी व्यवस्था का लक्ष्य बन चुका है। हमने हीट एक्शन प्लान बनाए हैं मगर दूसरे इससे कई कदम आगे हैं। उन्होंने इसके लिये अलग विभाग बनाया है।

अमेरिका ने सबसे पहले चीफ हीट अधिकारी बनाए। चीफ हीट ऑफीसर की प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह हीटवेव से प्रभावित होने वाले सभी लोगों को साथ ले कर इससे निबटने की योजनाओं को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित कराते हुये धीर्घकालिक कूलिंग परियोजना चलाये जिससे गर्मी से होने वाले नुकसानों में कमी आए। लोगों को राहत मिले। सिएरा लियोन की राजधानी फ्री टाउन की चीफ हीट अफसर ने शहर के तीन बड़े खुले बाजारों को सोलर पैनल युक्त छायादार कवर मुहैया कराए। ये लोगों को धूप से बचाते हैं, दूकानों का माल खराब नहीं होने देते, बिजली बनाते हैं।

बांग्लादेश की चीफ हीट अफसर सार्वजनिक जगहों पर फव्वारे और खाली जगहों पर हजारों घने फलदार पेड़ लगाने वाली हैं। मेलबर्न शहर में हीट अफसर 3,000 पेड़ लगाने के साथ यह तय करने जा रहे हैं कि आगे से हर इमारत को अपने क्षेत्रफल का एक खास अनुपात हरियाली के लिए छोड़ना होगा।

इन उपायों के साथ हमें ग्रीन कवर बढाना होगा। सड़कों, बाजारों और तमाम इलाकों को छायादार पेडों से आच्छादित कर कृत्रिम और प्राकृतिक अरबन कैनोपी का इस्तेमाल करना होगा। नई तकनीक अवधारण से युक्त अर्बन पार्क और जलाशयों का निर्माण के अतिरिक्त प्रदूषण घटाने की कोशिश करनी होगी। सिविल इंजीनियर और आर्किटेक्ट को मकानों की ऐसी डिजाइन तैयार करनी होगी जो स्मार्ट ले आउट वाले, ऊर्जा कुशल तथा सूरज की स्थितियों और हवा के प्रवेश निकासी के अनुरूप तथा हरियाली युक्त हों। हम ऐसी भवन सामग्री का इस्तेमाल करें होगा जो कम से कम ऊष्मा सोखने वाले हों और ज्यादातर ऊष्मा को अपने सतह से प्रवर्तित कर देते हों।

कम से कम सरकारी भवनों को छत और दीवार पर अल्ट्रा वाइट रिफ्लेक्टिव तापरोधी पेंट करवाना अनिवार्य करना होगा, ग्रीन रूफ यानी छत पर खास तरह की बागवानी को बढावा देने के लिये अभियान चलाना होगा। नये बनने वाले मकान अंडरग्राउंड लूप सिस्टम अपना सकते हैं जिसमें बाहर की हवा को जमीन के कुछ मीटर नीचे ले जाने के बाद घर में प्रवाहित कराई जाती है। गरमी से बिजली खपत बढती है, इसलिये कम बिजली खर्च में बेहतर काम करने वाली तकनीक आधारित उपकरणों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना होगा।

पार्किंग जैसी जगहों को घास बजरी, कंकड़, छोटे पत्थरों वगैरह से बनाना बेहतर होगा। प्रयास हो कि फुटपाथ, गलियां वगैरह असफाल्ट, डामर से मुक्त हों। जमीन अधिकतर खुले रहे। भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है लेकिन गरमी सकल घरेलू उत्पादन पर भयानक प्रभाव डाल सकती है इसलिये इस समस्या के समाधान के लिये नई सरकार को कुछ अभिनव और बड़े कदम उठाने होंगे वह भी तत्काल।

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