
20/11/2024
रक्षा /डिफेंस
सी 295 के भारत में बनने से चीन और पाकिस्तान दोनों चिंतित हैं फोटो गूगल
देश में पहली बार निजी कंपनी बनाएगी विमान । चीन पाकिस्तान पर होगा असर
यहां बनाएगी टाटा मालवाहक सैन्य विमान फोटो गूगल
अब देश में टाटा बनाएगा समूचा और बड़ा अत्याधुनिक
सैन्य परिवहन विमान. रतन टाटा के प्रस्ताव और प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता से
प्रारंभ होने वाली परियोजना, किसी निजी
क्षेत्र द्वारा हवाई जहाज बनाने की यह परिघटना देश के पूरे वैमानिकी के परिदृश्य
के बदल देगी. नए विमान के निर्माण से क्या क्या बदलेगा, इसकी खूबियां और वर्तमान तथा भविष्य पर एक नजर
महान तब विदा लेते हैं जब
आधुनिक और नौजवान उनकी जगह लेने को तैयार होते हैं. 1960 में अपनी पहली उड़ान भरने, 1961 से वायुसेना की सेवा में लगा ब्रिटेन और एचएएल निर्मित
एवरो एचएस-748 अब धीरे धीरे विदा लेगा,
उसकी जगह ले रहा है, एयरबस का सी-295. एवरो-748 की 6 दशक से ज्यादा की शानदार और विविधतापूर्ण
सेवाओं के कभी भुलाया नहीं जा सकता. बुढा रहे रूसी मालवाहक एंटोनोव एएन- 32 की भी जगह देर सवेर यही लेगा.
25 सितंबर 2023 को जब हिंडन एयर
बेस पर पहला सी-295 विमान वायुसेना
के 21 राइनो स्क्वाड्रेन में
शामिल किया गया तभी यह तय था कि आगे से हम ये विमान खुद बनाएंगे. अब गुजरात के
वडोदरा में इसे बनाने लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड या टीएएसएल का प्लांट
शुरू हो गया. फिलहाल यह संयंत्र एयरबस डिफेंस ऐंड स्पेस कंपनी के सहयोग से ऐसे 40 विमान बनाएगा.
असल में 2012 में रतन टाटा ने इस दूरदर्शी परियोजना की
परिकल्पना की थी. यह फलीभूत तब हुआ जब भारत सरकार ने सितंबर 2021 में स्पेन के साथ 56 सैन्य परिवहन विमान सी-295 खरीदने का सौदा 21,935 करोड़ रुपये में किया. तय हुआ था कि 16 विमान स्पेन के सेवले स्थित एयरबस कंपनी हमें
उड़ने के लिए तैयार हालत में देगी और बाकी 40 हम उसके सहयोग से खुद बनाएंगे.
टाटा का सपना पूरा करेंगे प्रधानमंत्री फोटो गूगल
2022 के अक्तूबर में इसके निर्माण हेतु इस संयंत्र की नींव पड़ी. अब प्रधानमंत्री
के उद्घाटन के बाद जब रतन टाटा नहीं हैं, नोएल टाटा के नेतृत्व में कंपनी देश में निजी क्षेत्र के पहला समूचा और अति
उन्नत कार्गो हवाई जहाज बनाने के लिए कमर कस चुकी है. टीएएसएल अगस्त 2031 की आखीर तक वायुसेना को सभी 40 विमान बना कर सौंप देगा. इसके बाद 25 बरसों तक भारतीय वायुसेना के इन विमानों की
देखरेख का ठेका भी उसी ने ले रखा है. बेशक उसके आगे की भी अत्यंत महत्वाकांक्षी
योजनाएं उसके पास हैं.
टीएएसएल और एयरबस मिलकर देश में दूसरे देशों के
लिए विमान बनाएंगे. अब वे चाहे युद्धक हों या मालवाही अथवा भविष्य में यात्री
विमान. इससे विमान निर्माण के क्षेत्र में बनने वाला परिदृश्य साबित करेगा कि मेक
इन इंडिया के साथ ‘मेडॅ फॉर द ग्लोब’ और आत्मनिर्भर भारत के रास्ते पर हम तेजी से
बढ चले हैं.
जल्द ही यूरोपीय और
अमेरिकी वर्चस्व वाले एयरोस्पेस मार्केट में भारत एक मजबूत दखल रखेगा. विदेश से
आयात पर निर्भरता कम होगी और देश में निर्माण क्षमता को बढ़ावा मिलेगा तो भविष्य
में यहां से विमानों के निर्यात के अवसर बनेंगे. रक्षा निर्यात में भारत की स्थिति
और मजबूत बनेगी. दुनिया की बड़ी विमान कंपनियों के लिए हम बहुत से कलपुर्जे बनाते
ही हैं पर इस नए विमान सी-295 के लिए 18 हजार कलपुर्जे यहीं बनेंगे और आगे चल कर यह
घरेलू मांग बढेगी तो नए कौशल और नए छोटे, मंझोले उद्योगों को फायदा पहुंचेगा. हम बोइंग से हर साल 1 अरब अमेरिकी डॉलर की सेवा लेते हैं. इसमें से 60% से अधिक विनिर्माण में खर्चते है, अब इसमें कमी आयेगी.
टाटा की सहयोगी कंपनियों,
सेवाओं, सैकड़ों डिफेंस
स्टार्टाप को भी खूब काम मिलेगा. देश के एयरोस्पेस इंडस्ट्री जो दक्षिण भारत तक
सीमित है उसमें विविधता आयेगी. कानपुर,
प्रयाग, आगरा तक इसका विस्तार होगा. टाटा कंसोर्टियम ने सात राज्यों
से काम कर रहे सवा सौ से अधिक इन-कंट्री एमएसएमई आपूर्तिकर्ताओं को काम देने का जो
फैसला किया है वह देश के एयरोस्पेस के क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाएगा. यह संयंत्र ही 3000 से अधिक लोगों को नौकरी देने वाला है तो,
15,000 से ज्यादा अप्रत्यक्ष
नौकरियां पैदा होंगी.
कोशिश है कि देश उड्डयन और विमानों के रखरखाव व
मरम्मत का केंद्र बन जाए. अब उम्मीद जगी है तो इस पहल के बाद रखरखाव की सुविधा के
लिए भी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा,
कलपुर्जों के लिए आपूर्ति
शृंखला तैयार होगी. हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी
ढाँचे का विकास होगा. मतलब यह शुरुआत मेंटीनेंस, रिपेयरिंग तथा संचालन यानी एमआरओ की सेवा देने में
हमको आगे बढाने वाला है.
इन सबके बाद सस्ते श्रम और बेहतर तकनीक सहायता
के लिए तमाम विदेशी कंपनियां, संस्थान यहीं
आयेंगे. आने वाले दो दशकों के भीतर ही देश को लगभग 2500 यात्री और मालवाहक विमानों की जरूरत होगी अगर हम
आत्मनिर्भर बन गये तो सोचिए कितना लाभ होगा. बीते डेढ दशक में देश ने ऐसे अनेक
फैसले लिए, जिससे भारत में एक
वाइब्रेंट डिफेंस इंडस्ट्री का विकास सुनिश्चित हो सका है और निजी क्षेत्र की
भागीदारी ने सरकारी उपक्रमों को प्रभावशाली बनाया. टाटा एडवास्ड सिस्टम लिमिटेड का
यह हवाई जहाज संयंत्र इसी का उदाहरण है.
जहाज को जानिए
सी-295 के नाम में ''सी'' स्पेन कंपनी कासा
यानी सीएएसए का पहला अक्षर है. यह अब एयरबस में विलय हो चुकी है.''2'' बताता है इसमें दो इंजन हैं और ''95'' उसकी भार वहन क्षमता दर्शाता है।
90 के दशक में यह
विकसित हुआ, 28 नवंबर 1997 को पहली उड़ान भरी.
विमान की लंबाई 80.3 फीट, डैनों का विस्तार 84.8 फीट, ऊंचाई 28.5 फीट है. क्रू केबिन में टचस्क्रीन कंट्रोल के साथ स्मार्ट
कंट्रोल सिस्टम है.
यह महज 320 मीटर की दूरी में टेक-ऑफ़ और 670 मीटर की दूरी में लैंडिंग कर सकता है.
यह एक बार में 71 सैनिक या 9 टन वजन के साथ 482 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से लगातार 11 घंटे तक उड़ान भर सकता है।
दो प्रैट एंड व्हिटनी
टर्बोप्रॉप इंजन के सहारे यह 30 हजार फीट तक
ऊंचा तक जा सकता है.
इसके पीछवाड़े रैंप डोर है,
मतलब सैनिकों को या सामान को बहुत तेजी से
उतारा, चढाया जा सकता है.
डैनों के नीचे 6 ऐसी जगहें हैं जहां हथियार और बचाव प्रणाली
लगाई जा सके. इसके इनबोर्ड पाइलॉन्स में 800 किलो के हथियार लगा सकते हैं.
आटो रिवर्स क्षमता के
चलते यह 12 मीटर चौड़े रनवे पर 180 डिग्री तक मुड़ सकता है.
1500 किलो वजनी
रिमूवेबल रीफ्यूलिंग सिस्टम, एक ऑपरेटर कंसोल
और 100 फीट लंबी होज ड्रम तथा
तीन अतिरिक्त ईंधन टंकियों से लैस इस विमान को हवा में उड़ता ईंधन टैंकर बनाया जा
सकता है. हवा में ही फिक्स्ड विंग वाले एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर को ईंधन दिया जा
सकता है.
विमान इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस और
विभिन्न प्रकार के टोही सेंसर्स आधुनिक एवियोनिक्स से युक्त है.
इसका एयरबोर्न अर्ली वार्निंग संस्करण हवाई
क्षेत्र की पूरी तस्वीर देने के लिए अपने रडार से 360-डिग्री कवरेज करता है।
सी 295 के कई संस्करण हैं फोटो गूगल
क्यों बनेगा ये गेम चेंजर
फिनलैंड, पोलैंड की बर्फीली ठंड हो या अल्जीरिया और
जॉर्डन का तपता रेगिस्तान, ब्राजील के जंगल
हों अथवा कोलंबिया के पहाड़, यह हर
चुनौतीपूर्ण वातावरण में कामयाब है. हमसे पहले स्पेन, इंडोनेशिया, इराक, मिस्र और अफगानिस्तान जैसे 37 देशों ने इस सामरिक परिवहन विमान को आजमाया
है. इसका 'मेड इन इंडिया' और बहुउद्देशीय होना गेम चेंजर साबित होगा।
हर मौसम में, रात दिन कभी भी, रेगिस्तान, पहाड़, समुद्र सभी जगह बहुमुखी प्रतिभा वाला विश्वसनीय
सी-295, सामरिक परिवहन विमान अपनी
भूमिकाएं निभा सकता है. यह सैन्य अभियानों के दौरान भार वहन के अलावा भूकंप,
बाढ़, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान इस्तेमाल हो सकता है. 24 स्ट्रेचर और सात मेडिकल अटेंडेंट ले जाने की
सुविधा के साथ इसे उड़्ते चिकित्सा घर में बदलने की खूबी हो अथवा 7,000 लीटर पानी के साथ उड़ान में सक्षमता के चलते
जंगल की आग से लड़ने के लिए एक कुशल वाटर बॉम्बर में बदलना, इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसके विभिन्न वैरियंट थोड़े से
बदलाव के बाद चिकित्सा निकासी, जंगलों की आग
बुझाने, टोह लेने हमला करने के
लिए भी किया जा सकता है.
सी 295 के कुच विमान यहां सक्रिय फोटो गूगल
यह विमान सीमित लंबाई
वाली पट्टी से उड़, और उसपर सुरक्षित
उतर सकता है. यही नहीं इसे दोयम दर्जे के कच्चे रनवे से भी उड़ाया और उतारा जा
सकता है. इसके अलावा यह विमान सुरक्षित पैराशूट ड्रॉप के लिए आवश्यक प्रावधानों से
लैस है जिसके जरिये सैनिकों तथा हथियारों को दुर्गम स्थानों पर आसानी से और तेजी
से पहुंचाया जा सकता है.
इसलिए हवाई हमले और विशेष बलों के मूवमेंट के
लिए यह अत्यधिक उपयोगी है. चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा अथवा सीमा पर चल
रही गतिविधियों की दशा में यह क्षमता बड़े काम की है.
समुद्री सीमा पर निगरानी
हेतु भी यह आदर्श विमान है. इसका एक वैरिएंट रडार और कई तरह के निगरानी उपकरणों,सेंसर से लैस है जो संकटग्रस्त वायुयान की
सहायता, समुद्री गश्त, समुद्री गतिविधियों की निगरानी, समुद्री डकैती से निपटने और उनसे बचाव के लिए
उपयोगी है. सैनिकों और सामान को ढोने, दूसरे विमान में तेल भरने और समुद्री गश्त सहित कई तरह के मिशन में इस्तेमाल
किया जा सकता है।
इसका एक संस्करण पनडुब्बी
रोधी युद्ध अभियानों के लिए डिज़ाइन किया गया जो सोनोबॉय, टॉरपीडो जैसे उपकरणों से लैस है. सीमा निगरानी मिशन में काम
करने और जरूरत पड़ने पर सुरक्षा खतरों का जवाब देने में भी यह सक्षम है. सी-295
का इतनी तरह से उपयोग भारतीय रक्षा बलों के लिए
एक बहुमुखी विकल्प देता है. यह तय है कि
सी-295 का वायुसेना में
समावेश देश की सामरिक एयरलिफ्ट क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण बढत देगा. इस जहाज का
परिचालन और रखरखाव सस्ता है सो इसे प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
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