10/07/2025
*आषाढ़ी पूर्णिमा*
(10 जुलाई 2025)
इस दिन वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है।
इसी दिन तथागत गौतम बुद्ध ने ऋषिपत्तन के मृगदाय (सारनाथ) में पंचवर्गीय भिक्खुओ को प्रथम धम्मउपदेश दिया था।
इसे धम्म चक्क पवत्तन दिवस कहा जाता है।
कुछ लोग इसे गुरुपूर्णमा भी कहते हैं।
इस पूर्णिमा के साथ धम्म की अनेक घटनाएं जुड़ी हुई है।
जैसा मैने पढ़ा है व सुना है।
💐भगवान बुद्ध के पहले भी आषाढ़ी पूर्णिमा को कस्सक (किसान) एक उत्सव मनाते थे संभवतः यह किसानों का फसल बुबाई से पहले किया जाने वाला उत्सव रहा होगा।
मेरा परिवार नाथ संप्रदाय को मानता था और गोरखनाथ और उनके भक्त गोगावीर चौहान, भज्जू चमार, नृसिंह पांडे, रत्ना भंगी, लूना चमारी आदि की पूजा करता था। (लेकिन मै 14अक्तूबर 1994 को नागपुर में जाकर, बौद्ध धर्म की दीक्षा ले चुका हूं।)
हमारे पिताजी भी जब पानी बरस जाता था और जमीन नम हो जाती थी तब भोर में चुपके से हल लेकर जाते थे और थोडा़ सा खेत जोत आते थे इसे "हरैतो" कहते थे, उस दिन घर में पकवान भी बनते थे।
१. कपिल बस्तु में भी यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता था सब लोग नये परिधान पहन कर गाते बजाते और हल चलाते थे।
उत्सव के बाद पूर्णिमा की रात को माता महामाया और राजा सुद्धोधन शयनागार में सोये तथा माता महामाया ने स्वप्न देखा बोधिसत्व सुमेधु कह रहे हैं कि मैं पृथ्वी पर अंतिम जन्म लेना चाहता हूँ क्या आप मेरी माँ बनना स्वीकार करेंगी माता महामाया ने कहाँ हां सहर्ष स्वीकार है इसके बाद एक सफेद हाथी शयनकक्ष में प्रवेश करते हुए देखा और आंख खुल गई।
इस घटना को कहा जाता है कि सिद्धार्थ गौतम माता महामाया के गर्भ में आये।
२. दूसरी घटना इसी आषाढ़ी पूर्णिमा को सिद्धार्थ गौतम ने गृह त्याग कर प्रबृज्या ली घर से लोक कल्याण हेतु अभिनिष्क्रमण किया।
३. तीसरी घटना भी आषाढ़ी पूर्णिमा को ही घटित हुई है। सिद्धार्थ गौतम गृह त्याग कर आलार कालाम के आश्रम में जाते हैं और ध्यान साधना सीखते हैं सीखने के बाद कहते हैं इससे आगे सिखाइये, आलार कालाम कहते हैं मैं इतना ही जानता हूँ इसके आगे जब आप खोज लें तो हमें भी बताएं।
इसके बाद सिद्धार्थ गौतम रामपुत्त उद्दक के आश्रम में जाते हैं और उनसे ध्यान की आठ विधियाँ सीखते हैं, इसके आगे कुछ न बता पाने पर रामपुत्त उद्दक भी यही कहते हैं कि इसके आगे अगर आप कुछ खोज लें तो हमें भी बताएं।
उसके बाद सिद्धार्थ गौतम रामपुत्त उद्दक के आश्रम से चले जाते हैं उनके साथ पांच लोग (कौडिन्य, बाष्प, भद्दिय, अश्वजित और महानाम) भी तपस्या करते हैं लेकिन सिद्धार्थ गौतम द्वारा ग्वाल कन्या द्वारा दी गई खीर ग्रहण कर लेने के बाद उन्हें पांचो लोग छोड़ कर चले जाते हैं।
जब सिद्धार्थ गौतम को उरुवेला में पीपल के पेंड़ के नीचे बैसाख पूर्णिमा को सम्यक् संबोधि (बुद्धत्व) प्राप्त हो जाता है तब वह भगवान बुद्ध हो जाते हैं। तथा लोक कल्याण के हेतु धम्म देना चाहते हैं तब अपने दिब्य चित्त से आलार कालाम व रामपुत्त उद्दक को देखते हैं और पाते हैं कि उनका देहावसान हो चुका है।
तब वह उन पांच तपस्वियों का ध्यान करते हैं जो उन्हें छोड़ कर चले गए थे और उन्हें इसिपत्तन मृगदाव सारनाथ में पाते हैं।
४. ☸️ बुद्ध गया से पैदल चलकर सारनाथ आते हैं तथा उन पांच भिक्खुओं को इसी आषाढ़ी पूर्णिमा को पहला धम्म उपदेश देते हैं।
इसलिए इस दिन को धम्म चक्क पवत्तन दिवस भी कहा जाता है (धम्म के चक्के (पहिया) को आगे बढ़ाना, धम्म की स्थापना करना।
गुरु शिष्य की परंपरा कायम होती है इसलिए इसे गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है और भगवान को लोक गुरु।
चौथी घटना है इसी दिन से भिक्खु संघ का वर्षावास प्रारम्भ होता है और तीन माह विहारों में रह कर ध्यान साधना करते हैं आश्विन पूर्णिमा के बाद पवारणा शुरू होती है कार्तिक पूर्णिमा को पूर्ण रूप से वर्षावास समाप्त होता है।
इसलिए इस पूर्णिमा का बहुत बड़ा महत्व है । ऐसा कहा जाता है कि इन चार महीनों में सोलह उपोसथ की तिथियाँ होती है इनमें जो कामना करके उपासक उपोसथ विरत रखते हैं उन्हें बहुत लाभ होता है। अतः हम सबको वर्षा वास के सोलह उपोसथ अवश्य रखना है। आजकल कुछ मांगने खाने वाले लोग घर घर माताओं बहनों से यह कहते सुने जाते हैं कि 16 सोमवार, या शनिवार ब्रत रहना तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी, यह परम्परा भी इसी दिन से धम्म से ली गई है।
उपोसथ कैसे रखें?
सुवह नित्य क्रिया से निपट कर स्नान कर पूजा वंदना करें। संभव हो तो घर के सभी सदस्य साथ साथ वंदना करें धम्म चर्चा करें। दोपहर तक भोजन ग्रहण कर लें संभव हो तो विहारों में भिक्खुओं को भी भोजन दान करें। फिर दूसरे दिन लगभग छ:बजे बाद भोजन लें।
यूँ तो सभी उपासक उपासिकायें प्रतिदिन पांच सीलों का पालन करते हैं, लेकिन उपोसथ (पूर्णिमा, आमावस्या और दोनों पाखों (पक्षों) की अष्टमी) वाले दिन आठ सीलों का पालन करना होता है।
1- पाणाति पाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
2- अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
3- अब्रह्मचरिया वेरमणी सिक्खापदं समाधियामि।
4- मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समाधियामि।
5- सुरामेरयमज्ज पमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समाधियामि।
6- विकाल भोजना वेरमणी सिक्खापदं समाधियामि।
7- नच्च-गीत-वादित-विसूक-दस्सन माला गंध विलेपण धारण मण्डन विभूसनट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समाधियामि।
8- उच्चासयना महासयना वेरमणी सिक्खापदं समाधियामि।
अर्थ:--
1-प्राणियों की पात (हत्या) करने से विरत (त्याग दूर ,अलग,) रहने की शिक्षा धारण करता हूँ/करती हूँ।
2- बिना दिए हुए किसी की कोई वस्तु लेने से विरत रहने की शिक्षा धारण करता हूं/करती हूँ।
3- अ-ब्रह्मचर्य से विरत रहने की शिक्षा धारण करता हूँ/करती हूँ।
4- मुसावादा (झूंठ, कटु, चुगली, ब्यर्थ की बकवास) से विरत रहने की शिक्षा धारण करता हूँ/करती हूँ।
5- कच्ची, पक्की सुरा मादक पदार्थ और प्रमाद के स्थान जुंआं आदि से विरत रहने की शिक्षा धारण करता हूँ/करती हूँ।
6- विकाल भोजन (दोपहर से अगले दिन सुवह तक) से विरत रहने की शिक्षा धारण करता हूँ/करती हूँ।
7- नाचना, गाना, बजाना, मेला तमाशा देखना, माला पहनना इत्र (खुशबू) लगाना उबटन लगाना श्रंगार के हेतु आभूषण पहनना से विरत रहने की शिक्षा धारण करता हूँ/करती हूँ।
8- ऊंचे और विलासिता पूर्ण आसन पर सोने से विरत रहने की शिक्षा धारण करता हूँ/करती हूँ।
इन सीलों का पालन करते हुए उपोसथ विरत पूर्ण करें और बहुत अच्छा होगा कि सभी महीनों में उपरोक्त तिथियों को उपोसथ रखें, क्योंकि उपोसथ रखने वाले को ही उपासक/उपासिका कहा जाना सम्यक् है।
क्योंकि भगवान के धम्म में सभी पूर्णिमाओं का विशेष महत्व है सभी पूर्णिमाओं के साथ भगवान और धम्म से घटनाएं जुडी़ हैं।
जैसे- 1-बुद्ध पूर्णिमा (बेसाक) सिद्धार्थ का जन्म, व संबोधि प्राप्त करना तथा भगवान का महापरिनिर्वाण।
2- जेठ पूर्णिमा- तपस्सु व भल्लिक की दीक्षा संघमित्रा द्वारा सिरीलंका के अनुराधपुर में बोधि बृक्ष की स्थापना।
3- आषाढ़ी पूर्णिमा, -- भगवान् का माता के गर्भ में आना, प्रबृज्या, धम्म चक्क पवत्तन, वर्षावास प्रारम्भ। प्रथम संगीति राजग्रह की सप्तपर्णी गुफा मे शुरू।
4-स्रावण पूर्णिमा:-- अंगुलिमाल की प्रबृज्या।
5- पोट्ठपादो (भादों) पूर्णिमा:- परिलेयक वन में हाथी- बंदरों द्वारा भगवान की कुटी में मधु एवं केलों का दान।
6- अस्सयुजो (आश्विन) पूर्णिमा:-- माता महामाया को सधम्म देकर तीन माह बाद संकिशा में आना, प्रथम संगीति व वर्षावास का समापन पवारणा शुरू।
7- कात्तिक पूर्णिमा;-- पवारणा समाप्त,, कास्यप बंधुओं की प्रबृज्या, मुचलिंद नागराज को देशना। बमणों के द्वारा महा मोग्गल्यायन की निर्मम हत्या। 60 अर्हन्तो को भगवान् द्वारा चारो दिशाओं में धम्म देशना का आदेश
8- मार्गशीर्ष (अगहन) पूर्णिमा:-- देवदत्त द्वारा भेजे नालांगिर हाथी पर विजय, संघ मित्रा की प्रबृज्या।
9- फुस्सो (पूष) पूर्णिमा:-- महाराजा बिम्बिसार की दीक्षा, राजा द्वारा बेणुवन का भगवान् को दान। भगवान् का बोधि प्राप्त के बाद नवें वर्ष में सिरीलंका गमन।
10- माघी पूर्णिमा:-- चापाल चैत्य की भगवान् द्वारा घोषणा तीन माह बाद महापरिनिर्वाण होना, सारिपुत्र और महा मोग्गल्यायन को धम्म सेनापति बनाना, सावत्थी में भगवान् द्वारा चमत्कार प्रदर्शन।
11- फाल्गुन पूर्णिमा:-- भगवान् का सात वर्ष बाद कपिल बस्तु पधारना,पुत्र राहुल और भाई नन्द की प्रबृज्या।
12- चैत्र पूर्णिमा:-- कलामों को भगवान् द्वारा कलाम सुत्त का उपदेश,, सुजाता के हाथों खीर ग्रहण, नागराजा महोधर और नागराजा पुत्रोधर को करुणा मैत्री की देशना।
भवतु सब्ब मंगलं।
सबका मंगल हो 🙏