
18/09/2025
मेरे दादाजी के 10 बच्चे थे, इतनी कम ज़मीन में तो गुजर बसर नही हो सकती थी तो लगभग सड़क पर आ गए। इंदिरा गांधी ने 1971 में जो गरीबी हटाओ का नारा दिया था उसमें हमारे परिवार की गरीबी भी थी 😂
बाकी दोनों भाइयों को अलग अलग घर मिले पर उनमें शौचालय और कुंआ कॉमन था। दोनों की पत्नियां भयंकर झगड़ालू थी। "शौच में तुम पानी नही डालते" जैसी टुच्चई होने लगी, इस बात पर एक दिन ऐसा भयंकर झगड़ी की बोलचाल बंद हो गई। आज 60-65 साल हो गए, सगे भाइयों के परिवार एक दूसरे से बात नही करते, एक दूसरे के घर की शादी, मृत्यु में भी नही जाते। आज सारे बच्चे हंसते हैं कि हमारे पूर्वज ऐसी बातों पर झगड़े करते थे😃
उन दोनों महिलाओं ने सास को रखने से भी मना कर दिया। मेरी परदादी आजीवन उस बेटे के पास रही जिसको सबसे कम हिस्सा मिला था।
मेरे दादा जी से भी दोनों भाइयों का प्रेम कम होता गया। प्रेम के धागे में एक बार गांठ लगी तो ऐसा ही होता है।
मेरा तो मानना है कि पिता को जीते जी वसीयत लिख देनी चाहिए और सबको बता देना चाहिए। साथ ही ये भी कह देना चाहिए कि संतानों के व्यवहार के हिसाब से इसमें परिवर्तन संभव है।
पैतृक संपत्ति में भावुक होकर अपना हिस्सा छोड़ना मूर्खता है जो मेरे दादाजी ने की थी।" माया मिली न प्रेम" !!