28/07/2025
दिव्या देशमुख: 19 साल की उम्र में इतिहास रच दिया – चेस वर्ल्ड कप जीतकर बनी भारत की नई शतरंज रानी
भूमिका:
भारत की धरती ने एक बार फिर शतरंज की दुनिया में नया इतिहास रचा है। 19 साल की युवा ग्रैंडमास्टर दिव्या देशमुख ने 2025 के FIDE वुमेन्स चेस वर्ल्ड कप में धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए देश की शतरंज महारथी कोनेरू हम्पी को फाइनल में हराकर खिताब अपने नाम किया। यह जीत केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय महिला शतरंज के लिए एक युगांतकारी मोड़ है।
---
दिव्या देशमुख कौन हैं?
नागपुर की रहने वाली दिव्या देशमुख ने बेहद कम उम्र से ही शतरंज की बिसात पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। मात्र 6 साल की उम्र में शतरंज की दुनिया में कदम रखने वाली दिव्या ने अंडर-10, अंडर-14 और अंडर-16 वर्ग में कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट अपने नाम किए। वर्ष 2022 में उन्होंने इंटरनेशनल मास्टर (IM) और वुमन ग्रैंडमास्टर (WGM) दोनों खिताब हासिल किए, और तब से उनके खेल में निरंतर परिपक्वता देखने को मिली।
वर्ल्ड कप 2025 का सफर:
FIDE वुमेन्स वर्ल्ड कप 2025 में दिव्या की शुरुआत एक मिड-सेडेड प्लेयर के तौर पर हुई थी, लेकिन जैसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ा, उन्होंने एक के बाद एक दिग्गजों को चौंकाते हुए फाइनल तक का सफर तय किया।
क्वार्टर फाइनल: उन्होंने चीन की अनुभवी खिलाड़ी तान झोंगयी को हराया।
सेमीफाइनल: रूस की पूर्व विश्व चैंपियन अलेक्जेंड्रा कोस्टेनियुक को मात दी, जो बेहद तनावपूर्ण मैच था।
फाइनल: और फिर सबसे बड़ा मुकाबला—भारत की दिग्गज खिलाड़ी कोनेरू हम्पी से। हम्पी को हराना आसान नहीं था, लेकिन दिव्या ने अपने धैर्य, आक्रामक रणनीति और सटीक टैक्टिक्स से यह करिश्मा कर दिखाया
कोनेरू हम्पी बनाम दिव्या देशमुख: गुरु-शिष्या की टक्कर
यह मुकाबला सिर्फ एक फाइनल नहीं था, बल्कि भारतीय शतरंज के दो युगों की भव्य भिड़ंत थी।
कोनेरू हम्पी, जिन्होंने पिछले दो दशकों तक भारत को शतरंज में वैश्विक पहचान दिलाई, अनुभव और तकनीकी परिपक्वता की प्रतीक हैं।
वहीं, दिव्या देशमुख, ऊर्जा, नवीनता और जोखिम लेने की मानसिकता के साथ उभरीं।
फाइनल मुकाबले में दोनों के बीच दो क्लासिकल गेम्स ड्रॉ रहे, लेकिन टाई-ब्रेक ब्लिट्ज में दिव्या ने चौंकाने वाली आक्रामकता दिखाई और हम्पी को मात दी।
भारत के लिए इसका क्या मतलब है?
इस जीत ने दो स्तरों पर भारत को गर्वित किया:
1. नई पीढ़ी का उदय: दिव्या देशमुख की जीत दिखाती है कि भारत की युवा पीढ़ी शतरंज में केवल तैयार ही नहीं, बल्कि विश्व विजेता बनने की क्षमता रखती है।
2. महिला शतरंज का स्वर्ण काल: भारत अब न केवल पुरुष शतरंज (विश्वनाथन आनंद, प्रज्ञानानंद, अर्जुन एरिगैसी) में बल्कि महिला वर्ग में भी विश्व नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है।
दिव्या की प्रतिक्रिया:
जीत के बाद दिव्या ने कहा:
> "यह सिर्फ मेरी नहीं, हर उस लड़की की जीत है जो छोटे शहर से आती है और सपने देखती है। मैंने हमेशा कोनेरू हम्पी को अपना आदर्श माना है। आज उन्हें हराना मेरे करियर का सबसे भावुक क्षण है।"
भविष्य की उम्मीदें:
अब जब दिव्या देशमुख ने वर्ल्ड कप जीत लिया है, वह विश्व चैंपियनशिप चैलेंजर के रूप में क्वालीफाई कर चुकी हैं। 2026 में वह संभवतः मौजूदा विश्व चैंपियन जू वेंजून या लेइ टिंगजिए के खिलाफ शतरंज के सबसे बड़े खिताब के लिए मुकाबला करेंगी
निष्कर्ष:
दिव्या देशमुख की यह ऐतिहासिक जीत न केवल एक खिलाड़ी की व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि भारत के लिए शतरंज के क्षेत्र में एक नया स्वर्ण युग शुरू होने की घोषणा है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के दम पर कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।
🇮🇳 भारत को अब एक नई शतरंज रानी मिल चुकी है – दिव्या देशमुख।
उनके अगले कदम पर अब पूरी दुनिया की नजरें होंगी।
लेखक टिप्पणी:
यदि कोनेरू हम्पी भारत की शतरंज की पहली रानी थीं, तो दिव्या देशमुख अब उस ताज को एक नई चमक देने जा रही हैं। भारत अब एक नहीं, कई हम्पियों का देश बन चुका है – और यह शुरुआत भर है।