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MARANG BURU SANSTHAN REN NETA SONGE JOGAJOG  MARANDI  SOREN
21/08/2024

MARANG BURU SANSTHAN REN NETA SONGE JOGAJOG MARANDI SOREN

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21/08/2024
21/08/2024

भारत बंद रे मरांग बुरू खोन supreme कोर्ट आर सरकार विरूद्ध रे बंद समर्थक

21/08/2024

#गिरिडीह

मरांग बुरू के लिए बहुत ही अच्छा खबर:-02/02/2023 दिन गुरुवार को मरांग बुरू जुग जाहेर  थान के लिए बहुत ही अच्छा दिन साबित ...
02/02/2023

मरांग बुरू के लिए बहुत ही अच्छा खबर:-

02/02/2023 दिन गुरुवार को मरांग बुरू जुग जाहेर थान के लिए बहुत ही अच्छा दिन साबित हो सकता है। मरांग बुरु को लेकर आहूत बैठक आज आयोजित हुआ जिसमे समाज के बुद्धिजीवी लोग देश के विभिन्न राज्यों से शामिल हुए ,जिसमे मरांग बुरू में जो संगठन काम कर रहे थे उन सबका मरांग बुरू के खातिर एकजूट होने का आह्वान किया गया,और जितने संगठन है वे सर्वसमिति से अपना संगठन को त्याग कर एक मंच में आने के लिए लगभग तैयार हो गए है।अब देखना ये है की आगे क्या रणनीति बनती है।

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21/01/2023

झारखंड Parasnath Hills: पारसनाथ पहाड़ी मुक्त कराने का मामला, बीजेपी पर भड़के सीएम सोरेन,

झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने बुधवार को आयोजित एक कार्यक्रम में बीजेपी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने पारसनाथ पहाड़ियों को लेकर चल रहे आंदोलन के बीच बीजेपी को चेतावनी दी है.
Parasnath Hills: पारसनाथ पहाड़ी मुक्त कराने का मामला, बीजेपी पर भड़के सीएम सोरेन, दी ये चेतावनी

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
Parasnath Hills Movement: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बुधवार को भारतीय जनता पार्टी पर पारसनाथ पहाड़ियों या 'मरंग बुरु' पर "विभाजनकारी" राजनीति करने का आरोप लगाया. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि राज्य में पहले कभी किसी धार्मिक स्थल को लेकर इस तरह का विवाद नहीं देखा गया. जैन समुदाय झारखंड सरकार द्वारा पहाड़ी को पर्यटन स्थल में तब्दील करने के फैसले का विरोध कर रहा है, जिसे वह अपने पवित्र स्थानों में से एक मानता है.

आदिवासी पारसनाथ पहाड़ी को सबसे पवित्र 'जाहेरथान' (पूजा स्थल) मानते हैं. जहां केंद्र ने जैन समुदाय के लोगों के विरोध के बाद पारसनाथ पहाड़ियों में पर्यटन को बढ़ावा देने के झारखंड सरकार के कदम पर रोक लगा दी है, वहीं कई आदिवासी संगठनों ने पहले ही देशव्यापी आंदोलन की धमकी दी है, उन्होंने 'मरंग बुरु' को कथित जैन समुदाय के "चंगुल" से मुक्त कराने की मांग की है.

सीएम सोरेन ने गिरिडीह में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, धार्मिक स्थल पर राजनीति बर्दाश्त नहीं की जाएगी. देश भर के जैन पारसनाथ पहाड़ियों को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, उन्हें डर है कि इससे उन यात्रियों का तांता लग जाएगा जो उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन कर सकते हैं.

पिछले महीने शुरू हुए पारसनाथ विवाद के पीछे केंद्र और भगवा पार्टी के एक "छिपे हुए एजेंडे" का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासी समुदाय को आश्वासन दिया कि 'मारंग बुरु' (सर्वोच्च शक्ति या देवता) वहां बने रहेंगे.

सीएम सोरेन राज्य में झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम 'खतियानी जौहर यात्रा' के दूसरे चरण के दौरान गिरिडीह में एक रैली को संबोधित कर रहे थे. सीएम सोरेन ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि विभाजनकारी राजनीति की जा रही है. उन्होंने आऱोप लगाया ''वे हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों और पिछड़ों के बीच विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. अब वे पारसनाथ पर जहर के बीज बो रहे हैं. सोरेन ने कहा, जैन और आदिवासियों के बीच ऐसा विवाद पहले कभी नहीं हुआ था. वे वहां शांति से पूजा कर रहे थे.

आदिवासियों द्वारा वर्तमान आंदोलन का नेतृत्व संथाल जनजाति द्वारा किया जा रहा है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है. संथाल जनजाति के लोग प्रकृति पूजक होते हैं. मुख्यमंत्री ने पुलिस के साथ-साथ सीआरपीएफ जैसे केंद्रीय बलों को 'आदिवासी संस्कृति और परम्परा' (आदिवासी संस्कृति और परंपरा) को निशाना बनाने से बचने के लिए आगाह किया.

17/01/2023

मरांग बुरू या पारसनाथ :

सरकारें पैदा कर रहीं विवाद
मरांग बुरु और कोई नहीं, आदिवासी आस्थाओं के अनगिनत पवित्र प्रतीकों में से एक है। झारखंड के संथाल समाज के लिए सिंगबोंगा के बाद सर्वाधिक पवित्र प्रतीक। कुछ लोग इसके साथ लूगू बुरु को शामिल करते हैं। आज अपने इस प्रतीक के लिए संथाल समाज उतना ही आक्रोशित है, जितना यह प्रतीक निराश।

मरांग बुरु पहाड़ इन दिनों अपने आप को बेहद ठगा और अपमानित महसूस कर रहा है। इसके साथ ही आदिवासी समाज भी यह महसूस कर रहा है कि शायद इस मुल्क ने कभी भी उसे अपना माना ही नहीं। वैसे चाहे नियमगिरी हो, फिर चाहे बस्तर या हंसदेव, केवड़िया हो, सब एक अंतहीन श्रृंखला की कड़ियां हैं आदिवासी समाज को उजाड़ने और उसकी भूमि पर गैर आदिवासी समाज के लोगो अथवा गैर आदिवासियों द्वारा चलाई जा रही कंपनियों को स्थापित करने की। मरांग बुरु आदिवासी हित की बात कर सत्ता में आए आदिवासी नेताओं को भी समझ चुका है। वह यह जान गया है कि इनमें और उन गैर आदिवासी नेताओं में कोई फर्क नहीं है जो आदिवासी हितों और अधिकारों की बात और सिर्फ बात ही करते हैं।

मरांग बुरु और कोई नहीं, आदिवासी आस्थाओं के अनगिनत पवित्र प्रतीकों में से एक है। झारखंड के संथाल समाज के लिए सिंगबोंगा के बाद सर्वाधिक पवित्र प्रतीक। कुछ लोग इसके साथ लूगू बुरु को शामिल करते हैं। आज अपने इस प्रतीक के लिए संथाल समाज उतना ही आक्रोशित है, जितना यह प्रतीक निराश। हर समय अपनी राजनीति चमकाने के लिए तैयार रहने वाले कुछ नेता और संगठन इस मौके को भी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हुए विज्ञप्ति जारी करने लगे हैं, धरना और प्रदर्शन की चेतावनी देने लगे हैं। मगर मरांग बुरु और अधिकांश संथाल समाज अपने प्रतीक को बचाए रखने के प्रति चिंतिंत है, क्योंकि वह देख रहा है कि आदिवासी हित की बात करने वाली हेमंत सोरेन सरकार या केंद्र की मोदी सरकार उसका पक्ष तक जानने की कोशिश नहीं कर रही है।

बात है तो बहुत पुरानी, मगर अब एक बार फिर धुआं उठ रहा है। बात हो रही है झारखंड राज्य के गिरिडीह जिला स्थित पारसनाथ पर्वत की। जहा जैन समुदाय के दोनों प्रमुख पंथों – श्वेतांबर और दिगंबर – के लिए आस्था का प्रतीक श्री सम्मेद शिखर जी व्यवस्थित हैं। जैन समाज यह मानता है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20वें तीर्थंकर को यही मोक्ष प्राप्त हुआ था। मधुबन के भी नाम से प्रसिद्ध इस पर्वत को पारसनाथ नाम भी जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पारसनाथ से प्राप्त हुआ है।

हाल ही में झारखंड सरकार द्वारा इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के निर्णय के विरोध में देश भर का जैन समाज सड़कों पर उतर आया था। उसके बाद केंद्र की मोदी सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए – संवैधानिक ढांचे को धता बताकर राज्यों को प्राप्त अधिकारों की अवहेलना करते हुए – झारखंड सरकार को निर्देषित किया कि वह इस पूरे क्षेत्र की पवित्रता बरकरार रखे। खान घोटाले में फंसे और पूजा सिंघल के बहाने केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर चल रही हेमंत सोरेन की सरकार ने यह निर्देश माना भी। सोरेन सरकार ने इस तथ्य को भी ध्यान में नहीं रखा कि जैन समाज के विरोध में एक स्वर पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद इस पूरे क्षेत्र में मांस और मदिरा का सेवन बढ़ने की संभावना का भी था। उस क्षेत्र में जहां संथाल समाज परंपरागत तौर पर प्रतिवर्ष तीन दिवसीय शिकार पर्व ‘सेंदरा’ का आयोजन करता चला आया है।

ऐसा नहीं है कि पूर्व में जैन समाज और संथाल समुदाय के बीच विवाद नहीं हुआ।

बताते चलें कि गिरिडीह पूर्व में हजारीबाग जिला का भाग था। संथाल समाज के अनुसार वर्ष 1932 के जिला गजेटियर, हजारीबाग में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि यह पूरा क्षेत्र इको सेंसेटिव क्षेत्र है। इस विषय को लेकर कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता के अनुसार संथाल इस क्षेत्र में जैनियों के आने से बहुत पहले से रह रहे हैं और यहां हमारे भी देवता हैं। सरकार को आदिवासियों की संस्कृति – जो यहां की मूल संस्कृति भी है – को बचाना चाहिए।
मालिकाना हक स्वीकार नहीं किया जाएगा। पूरे देश के आदिवासी इसका विरोध करेंगे। आदिवासियों के अधिकार को बहाल करने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 25 जनवरी तक का समय दिया है।

इन सब आरोप – प्रत्यारोप, राजनीतिक घात – प्रतिघात के बीच मरांग बुरु मौन है। वह यह महसूस कर रहा है कि आदिवासी नेताओं का सारा जोर इस विवाद के बहाने ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक ताकत हथियाने पर है। बहरहाल, एक बात तो तय है कि यह विवाद आने वाले दिनों में और भी जोर पकडेगा।

17/01/2023

Parasnath marang buru issue : अब पारसनाथ पहाड़ी को बचाएंगे आदिवासी, 30 जून को सामूहिक उपवास का ऐलान

Parasnath marang buru Issue: अब पारसनाथ पहाड़ी को बचाएंगे आदिवासी, 30 जून को सामूहिक उपवास का ऐलान

Parasnath marang buru Issue: मंगलवार को बड़ी संख्या में आदिवासी पारसनाथ पहाड़ी के पास जमा हुए थे. उन्होंने राज्य सरकार और केंद्र से उनके पवित्र स्थल को जैन समुदाय के ‘कब्जे’ से मुक्त करने का आग्रह किया. मांग पूरी नहीं होने पर उन्होंने उग्र आंदोलन की चेतावनी भी दी. झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के हजारों आदिवासी पारंपरिक हथियारों और ढोल नगाड़ों के साथ पहाड़ी पर पहुंचे थे.

रांचीः Parasnath marang buru Issue: झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पहाड़ी मरांग बुरू जी को लेकर जारी विवाद अभी थमा नहीं है. जैन समुदाय के विरोध प्रदर्शन के शांत होने के बाद मामले में आदिवासी एंगल आ गया है और अब धीरे-धीरे यह मामला भी तूल पकड़ने लगा है. आदिवासी समुदाय ने इसे अपना धार्मिक स्थल बताया है. उनका कहना है कि पारसनाथ उनका धर्म स्थल 'मरंग बुरु' है. अब इसे लेकर आदिवासी समुदाय का आंदोलन बड़ा होने लगा है. अब आदिवासी समुदाय के लोग खूंटी जिले के उलिहातु में पारसनाथ पहाड़ी को ‘‘बचाने’’ के अपने आंदोलन के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए 30 जनवरी को एक दिन का उपवास करेंगे.

17/01/2023

Marang Buru: आदिवासी सेंगेल अभियान का दावा, पारसनाथ हिल्स को मुक्त कराने के लिए पांच राज्यों में प्रदर्शन

जनजातीय संगठन आदिवासी सेंगेल अभियान (एएसए) ने बुधवार को घोषणा की कि वह 17 जनवरी को पांच राज्यों में विरोध प्रदर्शन करेगा और मारंग बुरु (सर्वोच्च देवता) पारसनाथ हिल्स को जैनियों से मुक्त कराएगा।

संगठन ने कहा कि झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और बिहार के 50 जिलों में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा और इस मुद्दे पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन सौंपा जाएगा। भाजपा के पूर्व सांसद और एएसए अध्यक्ष सलखन मुर्मू ने कहा, परसनाथ हिल्स आदिवासियों के लिए भगवान हैं, लेकिन जैनियों द्वारा हड़प लिया गया है। कई अन्य आदिवासी निकायों ने भी दावा किया है कि पारसनाथ हिल्स आदिवासियों के लिए भगवान हैं।

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