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17/09/2025

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03/09/2025
02/09/2025

बहुत सुंदर प्रश्न 🙏🌸
सनातन धर्म में पूजा-पद्धति केवल बाहरी क्रिया-कर्म नहीं है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करके भगवान से जुड़ने की साधना है। शास्त्रों में पूजा का तरीका विस्तार से वर्णित है। मैं आपको विस्तृत विधि क्रमवार बताता हूँ:
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१. पूजा से पहले की तैयारी

1. शुद्धि (स्नान व आचमन)

प्रातःकाल स्नान करें।

शुद्ध वस्त्र (अधिकतर सफेद, पीले या गेरुए) पहनें।

रेशमी या सूती वस्त्र उत्तम माने जाते हैं।

पूजा से पहले आचमन करके शुद्धता प्राप्त करें।

2. स्थान की शुद्धि

पूजा स्थान (मंदिर/घर का देवस्थान) को गंगाजल या स्वच्छ जल से छिड़ककर पवित्र करें।

देवता की मूर्ति/चित्र को साफ करें।
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२. पूजा का स्थान और आसन

पूजा सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करनी चाहिए।

आसन कुशा, ऊन, या स्वच्छ कपड़े का होना चाहिए।

ज़मीन पर सीधे बैठना उचित नहीं माना गया।

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३. पूजा की सामग्री

जल से भरा कलश (गंगाजल या शुद्ध जल)

दीपक (घी का दीपक सर्वश्रेष्ठ)

धूप/अगरबत्ती

फूल-माला

चंदन, रोली, अक्षत (अक्षत = बिना टूटा चावल)

नैवेद्य (मिठाई, फल, दूध, शुद्ध आहार)

घंटी

शंख (विशेषकर विष्णु पूजा में)
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४. पूजा की विधि (क्रमवार)

1. आसन शुद्धि और प्राणायाम – मन को स्थिर करने हेतु।

2. संकल्प – दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत लेकर मन में संकल्प करें: “मैं अमुक नाम-गोत्र का, आज भगवान की पूजा कर रहा हूँ।”

3. आवाहन – भगवान का ध्यान करके उन्हें पूजास्थल पर आमंत्रित करें।

“आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि” (आमंत्रित करता हूँ, स्थापित करता हूँ, पूजता हूँ)।

4. पाद्य-अर्घ्य-आचमन – भगवान को जल, अर्घ्य, मधुपर्क आदि अर्पित करें।

5. स्नान और वस्त्र अर्पण – मूर्ति को स्नान कराएँ (यदि सम्भव हो) अथवा केवल गंगाजल छिड़कें। फिर वस्त्र, चंदन, आभूषण अर्पित करें।

6. पुष्प अर्पण – प्रत्येक मंत्र के साथ पुष्प अर्पित करें।

7. धूप-दीप अर्पण –

धूप देते समय मंत्र: “धूपं गृहाण देवेश”

दीपक अर्पित करते समय: “दीपं दर्शयामि”

8. नैवेद्य – फल, दूध, मिठाई अर्पित करें और जल अर्पण करें।

9. आरती – दीपक से आरती करें, घंटी बजाएँ, शंख बजाएँ।

10. प्रदक्षिणा और नमस्कार – भगवान की ३ बार परिक्रमा करें।

11. प्रार्थना और क्षमा-याचना – “पूजा में यदि कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करें।”

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५. पूजा के समय मनोवृत्ति

पूजा केवल दिखावे के लिए न करें।

शुद्ध आचरण, प्रेम और भक्ति से भगवान को अर्पण करें।

मन, वचन और कर्म – तीनों से भगवान को याद करना ही सच्ची पूजा है।

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६. पूजा के बाद

नैवेद्य को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।

भगवान का आशीर्वाद लेकर कार्य करें।

रोज़ाना नियमपूर्वक (कम से कम दीपक और जल अर्पण करके) पूजा करना श्रेष्ठ है।
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🌸 संक्षेप में –
सनातन धर्म की पूजा तीन चीज़ों पर आधारित है –

1. शुद्धि (शरीर, वस्त्र, स्थान)

2. समर्पण (फूल, दीपक, नैवेद्य)

3. भक्ति (सच्चे मन से भगवान का ध्यान)

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#जयश्रीराधेकृष्ण #राधेराधे #राधाअष्टमी #राम #जयहनुमान

02/09/2025

सनातन धर्म में भाषा और व्यवहार दोनों में शुभ-अशुभ शब्दों का बहुत ध्यान रखा जाता है।
इसी कारण सब्ज़ी के लिए "काटना" या "चीरना" जैसे नकारात्मक अर्थ वाले शब्द प्रयोग नहीं किए जाते।

👉 इनके स्थान पर यह शब्द बोले जाते हैं –

सब्ज़ी "सम्भालना"

सब्ज़ी "सजाना"

सब्ज़ी "छाँटना"

सब्ज़ी "गोठाना" (कहीं-कहीं बोली में)

सब्ज़ी "बनाना"

उद्देश्य यही रहता है कि बोली में भी अशुभता न आए। जैसे पूजा में "अगरबत्ती जलाना" नहीं बोलकर "अगरबत्ती लगाना" बोला जाता है, उसी तरह सब्ज़ी को काटने-चीरने जैसे शब्दों से बचा जाता है।
#राधाअष्टमी #जयश्रीराधेकृष्ण #राधेराधे #एक

🌹 श्रीकृष्ण और राधा विवाह कथा 🌹हिंदू धर्म के ग्रंथों और पुराणों में श्रीकृष्ण और राधारानी का संबंध अनंत और अद्भुत माना ग...
01/09/2025

🌹 श्रीकृष्ण और राधा विवाह कथा 🌹

हिंदू धर्म के ग्रंथों और पुराणों में श्रीकृष्ण और राधारानी का संबंध अनंत और अद्भुत माना गया है। सामान्य रूप से सबको यही ज्ञात है कि राधा और कृष्ण केवल "प्रेम" के प्रतीक हैं, किंतु कम लोग जानते हैं कि राधा और श्रीकृष्ण का गांधर्व विवाह हुआ था।

विवाह कब और कहां हुआ था?

श्रीमद्भागवत, गर्ग संहिता और ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख मिलता है कि वृंदावन के वन में एकांत स्थान पर श्रीकृष्ण और राधारानी का विवाह हुआ।

यह विवाह कोई भव्य राजसी उत्सव न होकर गुप्त एवं दिव्य रूप से सम्पन्न हुआ था।

विवाह का समय द्वापर युग में माना जाता है, लगभग ५,००० से अधिक वर्ष पूर्व।

विवाह की विधि और साक्षी

कथा अनुसार, श्रीकृष्ण ने राधारानी को अपने हृदय की अनंत प्रेयसी मानकर गांधर्व रीति से विवाह किया।

इस विवाह के साक्षी स्वयं ब्रह्मा जी बने थे।

वृंदावन के पुष्पवन में, फूलों और मधुर गंध से भरे वातावरण में, कृष्ण ने राधा का हाथ थामकर वचन दिए।

राधा-कृष्ण विवाह का आध्यात्मिक रहस्य

यह विवाह सांसारिक बंधन के लिए नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है।

राधा केवल कृष्ण की प्रेमिका नहीं, बल्कि उनकी आध्यात्मिक शक्ति (ह्लादिनी शक्ति) हैं।

इसलिए राधा-कृष्ण का विवाह हमें यह सिखाता है कि प्रेम केवल शरीर या सांसारिक बंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा और भगवान के मिलन का पवित्र मार्ग है।

विवाह कितने वर्ष पूर्व हुआ?

ज्योतिषीय और पौराणिक गणना के अनुसार, द्वापर युग लगभग ५,००० – ५,२०० वर्ष पूर्व समाप्त हुआ।

अतः राधा-कृष्ण विवाह भी लगभग उतने ही वर्ष पूर्व सम्पन्न हुआ माना जाता है।
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✨ निष्कर्ष ✨

राधा-कृष्ण का विवाह सांसारिक रीति-रिवाजों से परे था। यह विवाह केवल भक्त और भगवान के अद्वितीय संबंध का प्रतीक है। यही कारण है कि आज भी संसारभर में राधा-कृष्ण को “प्रेम और भक्ति का शाश्वत स्वरूप” माना जाता है।
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🌸 जय श्री राधे कृष्णा! 🌸

✨🌸 राधा अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🌸✨राधा नाम ही भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।जिस हृदय में राधा रानी का वास होत...
31/08/2025

✨🌸 राधा अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🌸✨

राधा नाम ही भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।
जिस हृदय में राधा रानी का वास होता है, वहाँ श्रीकृष्ण स्वयं आकर निवास करते हैं।

इस पावन अवसर पर राधारानी आपकी जीवन में
सुख, शांति, प्रेम और समृद्धि का वास करें। 💫🙏

🌺 राधे-राधे 🌺
🌸 राधा अष्टमी की शुभकामनाएं 🌸

#राधाअष्टमी #राधेराधे #जयश्रीराधेकृष्ण

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