
05/07/2025
बेटा जेल में है।
माँ ने पूछा होगा –
“बेटा, तू यहाँ कैसे आया?”
बेटे ने नजरें झुका लीं होंगी।
उसने कहा होगा –
“माँ, हमने सड़कों पर नारे लगाए थे,
लाठी भी चलाई थी,
पथराव भी किया था,
हमें लगा हम क्रांति कर रहे हैं।”
उसे याद आया होगा कैसे भीड़ में जोश में आकर
किसी की दुकान पर पत्थर मारा,
सरकारी गाड़ियों के शीशे तोडे,
सोचा था – “अब क्रांति आएगी।”
आज जेल में वही क्रांति
वकीलों कि फीस, कोट कि तारीख, मुकदमे और थानों में बदल गई है।
उसे याद आया होगा
जिसके नाम पर हिंसा कर रहे थे,
वो टीवी पर कह रहा है –
“ये हमारे कार्यकर्ता नहीं हैं।”
माँ की आँखें भर आईं होंगी।
उसने बेटे के सर पर हाथ रखा और कहा होगा –
> “बेटा, हक़ के लिए लड़ना बुरा नहीं,
पर हिंसा कर के बल पर लड़ाई जीतना कभी मुमकिन नहीं.
हक कि लड़ाई सोच और समझ से लड़ हिंसा से नही.
बेटे की आँखों में आँसू आ गए होंगे।
उसे समझ आ गया होगा
गैर बराबरी कि लड़ाई सही है.
लेकिन नेता और तरीका गलत था।
#इंजी_सतीश_गौतम