Rural Talk

Rural Talk – Transforming Rural India!

हम गाँव के संसाधनों पर आधारित उद्यमिता, ग्रामीण विकास, नवाचार और सरकारी योजनाओं की जानकारी साझा करते हैं। हमारे साथ जुड़ें और आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के निर्माण में योगदान दें!

केला – खेती से उद्योग तक : अवसर आपका इंतज़ार कर रहा हैउत्तर प्रदेश में हर साल 7 करोड़ से अधिक केला पौधें लगाई जाती हैं। ...
30/09/2025

केला – खेती से उद्योग तक : अवसर आपका इंतज़ार कर रहा है

उत्तर प्रदेश में हर साल 7 करोड़ से अधिक केला पौधें लगाई जाती हैं। इनमें से अकेले लखीमपुर खीरी ज़िले में लगभग 20% से अधिक खेती होती है। यहाँ के किसान मेहनत से केले की फसल तैयार करते हैं, लेकिन समस्या यह है कि मूल्य संवर्धन (Value Addition) की व्यवस्था न होने के कारण उन्हें केवल ₹5–6 प्रति किलो के भाव पर ही केला बेचना पड़ता है।

दूसरी ओर, जब यही केला बाज़ार में पके हुए और आकर्षक रूप में बिकता है, तो उपभोक्ता उसे ₹50 प्रति दर्जन तक की कीमत पर खरीदते हैं। यानी किसान और ग्राहक, दोनों के बीच का असली लाभ बीच की चैन और उद्योग ले जाते हैं।

समस्या कहाँ है?
• किसान मेहनत तो कर रहे हैं,
• बाज़ार भी मौजूद है,
• सरकारी योजनाएँ और ODOP (One District One Product) जैसी पहल भी हैं,
• रूरल हब जैसी संस्थाएँ मदद के लिए तैयार हैं।

लेकिन, कमी है उद्यमियों की — जो इस अवसर को पहचानकर केला आधारित उद्योग शुरू कर सकें।

केला आधारित उद्यम क्यों?

केले से केवल फल ही नहीं, बल्कि कई उत्पाद बनाए जा सकते हैं:
• केला चिप्स और स्नैक्स
• केला पाउडर (बेबी फ़ूड और बेकरी के लिए)
• केला जैम और स्क्वैश
• केले से एथेनॉल और बायो-प्रोडक्ट
• केले के पत्तों और फाइबर से इको-फ्रेंडली उत्पाद

इनमें से कई उत्पादों की देश और विदेश दोनों जगह अच्छी मांग है।

सरकार की योजनाएँ – मदद आपके साथ

सरकार खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को सब्सिडी, लोन और तकनीकी सहयोग दे रही है। ODOP जैसी योजनाओं का लक्ष्य ही यही है कि किसान और उद्यमी मिलकर अपने ज़िले की विशेष फसल का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड बना सकें।

अवसर आपका इंतज़ार कर रहा है

आज सबसे बड़ा सवाल यह है – किसान केला उगा रहे हैं, बाज़ार में माँग है, सरकार मदद को तैयार है, तो पीछे कौन है?
पीछे है – उद्यमी की कमी।

रूरल हब लगातार ऐसे युवाओं, महिला समूहों और उद्यमियों को खोज रहा है जो इस अवसर का लाभ उठाकर न केवल अपना व्यवसाय खड़ा करें, बल्कि किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम दिलाएँ।

अब वक़्त है कदम बढ़ाने का
• अगर आप व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं,
• अगर आप अपने ज़िले के विकास में योगदान देना चाहते हैं,
• अगर आप किसानों को सहयोग देना चाहते हैं,

तो केला आधारित प्रसंस्करण उद्योग आपके लिए सबसे सही अवसर है।

रूरल हब आपको योजना से लेकर मशीनरी, बाज़ार से लेकर ब्रांडिंग तक हर स्तर पर सहयोग करेगा।

Rural Hub Innovations Limited
21, Deen Dayal Puram, Mohammadi, Lakhimpur kheri - 262804
www.ruralhub.org, 8127271673, 8423783393, 8423088849

👉 कच्चा माल है, बाज़ार है, योजना है, रूरल हब है – अब बस आपको उद्यमी बनना है।

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गाँव, उद्यम और नवाचार की बात

🌿✨ रूरल हब @ शांतिकुंज हरिद्वार ✨🌿आज शांतिकुंज हरिद्वार के प्रमुख डॉ. चिन्मय पांड्या जी से भेंट का सौभाग्य मिला।🙏 इस अवस...
20/09/2025

🌿✨ रूरल हब @ शांतिकुंज हरिद्वार ✨🌿

आज शांतिकुंज हरिद्वार के प्रमुख डॉ. चिन्मय पांड्या जी से भेंट का सौभाग्य मिला।

🙏 इस अवसर पर उन्हें Rural Talk पत्रिका भेंट की गई और रूरल हब द्वारा चलाए जा रहे ग्रामीण उद्यमिता एवं ऑटोमेशन आधारित MSME कार्यों की जानकारी दी गई।

डॉ. पांड्या जी ने सुझाव दिया कि –
📖 शांतिकुंज की पत्रिकाओं और साहित्य के माध्यम से लोगों को उद्यमिता की ओर प्रेरित किया जाए,
ताकि आध्यात्मिकता और स्वावलंबन साथ-साथ आगे बढ़ें।

उन्होंने रूरल हब के विजन से जुड़ने की बात कही और आशीर्वाद व शुभकामनाएँ प्रदान कीं।

यह पहल निश्चित ही ग्रामीण युवाओं को आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उद्यम की दिशा में आगे बढ़ाने वाली साबित होगी।

17/09/2025

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के जन्मदिन के अवसर पर
आइए हम सब उनके आत्मनिर्भर भारत के संकल्प से प्रेरणा लें।

➡️ युवा – नौकरी खोजने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बनें।
➡️ महिलाएँ – आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें, आपकी उद्यमिता नया भारत गढ़ेगी।
➡️ किसान – खेती से खाद्य प्रसंस्करण की ओर कदम बढ़ाएँ, मूल्यवर्धन कर अपनी आय बढ़ाएँ।

इस दिन हम संकल्प लें कि हम अपना-अपना उद्यम स्थापित करेंगे, गाँवों को सशक्त बनाएँगे और भारत को विश्व का अग्रणी राष्ट्र बनाने में योगदान देंगे।

“आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत आत्मनिर्भर उद्यमी से होती है।”

14/09/2025

योजना उद्यमिता की, प्रचार राजनीति का – मंच पर खो गया रोजगार

भारत की राजनीति में मंच पर गूँजते नारों और वास्तविक ज़मीनी हकीकत के बीच का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारें योजनाएँ लाती हैं, बजट तय होता है, घोषणाएँ होती हैं, लेकिन जब अमल की बात आती है तो मंच पर नेता केवल वोटों की गिनती में उलझे नज़र आते हैं।

मंच बनाम मिशन

प्रदेश की सीएम युवा उद्यमिता विकास योजना इसका ताज़ा उदाहरण है। यह योजना 21 से 40 वर्ष तक के युवाओं को ₹5 लाख तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराकर सेवा और उत्पादन क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने का वादा करती है। लेकिन विडंबना यह है कि स्थानीय स्तर पर न तो विभाग, न ही नेता, उन वास्तविक युवाओं तक पहुँच पा रहे हैं जो उद्यमिता करना चाहते हैं। परिणाम यह हुआ कि कई जगहों पर मंच पर बुलाए गए लोग वे थे जो उद्यमिता की पात्रता ही पूरी नहीं करते।

योजनाएँ और उनकी हकीकत

केंद्र की प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना (PMFME) की स्थिति और भी चिंताजनक है। ₹10,000 करोड़ के बजट में से अब तक केवल ₹3,300 करोड़ ही खर्च हो पाए हैं और लक्ष्य महज़ 26% पर अटका हुआ है। सवाल यह है कि जब संसाधन और योजनाएँ उपलब्ध हैं तो उनकी पहुँच वास्तविक लाभार्थियों तक क्यों नहीं हो रही?

राजनीति की प्राथमिकता

राजनीति का मौजूदा स्वरूप हमें यह बताता है कि –
• नेता मंचों पर योजनाओं की जानकारी देने की बजाय डीबीटी (Direct Benefit Transfer) का गुणगान करना आसान समझते हैं।
• कार्यकर्ता योजनाओं की समझ विकसित करने और युवाओं को जोड़ने की बजाय नेताओं की परिक्रमा और फोटो खिंचवाने को ही राजनीति मान बैठे हैं।
• चुनावी राजनीति का दबाव ऐसा है कि रोजगार और उद्यमिता जैसी बुनियादी ज़रूरतें पीछे छूट जाती हैं।

आगे का रास्ता

अगर राजनीतिक दल वास्तव में युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं तो एक सरल फॉर्मूला अपनाया जा सकता है –
“एक बूथ – दस यूथ – दस उद्यम।”
हर बूथ स्तर पर 10 युवाओं को योजनाओं से जोड़कर उद्यम शुरू करवाया जाए। इससे न केवल योजनाओं का लक्ष्य पूरा होगा बल्कि बेरोजगारी जैसी सबसे बड़ी चुनौती से भी राहत मिलेगी।

असली सवाल

सवाल यही है कि –
क्या युवा केवल डीबीटी के भरोसे आत्मनिर्भर बन सकते हैं, या फिर असली बदलाव उद्यमिता के माध्यम से ही आएगा?
डीबीटी से वोट तो हासिल किए जा सकते हैं, लेकिन भविष्य नहीं बनाया जा सकता। भविष्य तभी बनेगा जब मंच पर वोटों से ज़्यादा उद्यमिता की बातें होंगी।

✍ संपादकीय मंडल, Rural Talk

क्या आपने कभी सोचा है कि आपका जन्म होना ही सबसे बड़ी जीत थी?400 मिलियन स्पर्म की दौड़ में आप अकेले विजेता बने। बिना हाथ,...
29/08/2025

क्या आपने कभी सोचा है कि आपका जन्म होना ही सबसे बड़ी जीत थी?
400 मिलियन स्पर्म की दौड़ में आप अकेले विजेता बने। बिना हाथ, बिना पैर, बिना दिमाग, बिना मदद – सिर्फ अपनी मंजिल की ताक़त से। यही आपकी असली पहचान है – विजेता की पहचान।

आज जब आप बड़े हो गए हैं, पढ़े-लिखे हैं, परिवार है, संसाधन हैं, तो फिर किसी मुश्किल में घबराते क्यों हैं? हार मानते क्यों हैं?
अगर बिना हथियार, बिना साधन आप माँ के गर्भ में जीत सकते हैं, तो अब तो आपके पास दिमाग, शिक्षा, लोग और अवसर भी हैं – तो उद्यमिता की राह में पीछे क्यों हटना?

उद्यमिता ही अगली मंज़िल है
• खेती सिर्फ जीने के लिए है, लेकिन खेती से जुड़ा प्रसंस्करण और उद्योग जीने की गुणवत्ता को बदल देता है।
• अगर आप एक आटा चक्की, मिनी राइस मिल, तेल मिल या कोई खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगाते हैं, तो सिर्फ अपनी ज़िंदगी ही नहीं बदलते, बल्कि गाँव के और लोगों के लिए रोज़गार और प्रेरणा भी देते हैं।
• जैसे आपने जन्म से पहले की दौड़ जीती, वैसे ही अब बाज़ार और तकनीक की दौड़ भी जीत सकते हैं।

सोच बदलो – हालात बदलेंगे
• जब आपने पहले दिन हार नहीं मानी, तो अब उद्यमिता की राह में भी क्यों हार मानेंगे?
• सरकारी योजनाएँ, रूरल हब जैसी संस्थाएँ, तकनीक और बाज़ार – ये सब आज आपके साथ हैं।
• ज़रा सोचिए – अगर आपने हार मान ली तो आपके गाँव का भविष्य कौन बदलेगा?

विजेता की पहचान

आपका जन्म ही गवाही देता है कि आपमें जीतने की शक्ति है।
तो क्यों न उसी विजेता मानसिकता के साथ अब उद्योग खड़ा किया जाए?
गाँव में उद्यम शुरू कीजिए।
छोटे से शुरू कीजिए, बड़े सपने देखिए, और लगातार आगे बढ़ते रहिए।

याद रखिए –
आप शुरुआत में जीत गए,
आप बीच में जीत सकते हैं,
और अंत में भी जीतेंगे।
बस उद्यमिता को अपनाइए।

डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स से बदलता खुदरा कारोबार: स्थानीय व्यापारियों के लिए नया अवसरडिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स प...
27/08/2025

डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स से बदलता खुदरा कारोबार: स्थानीय व्यापारियों के लिए नया अवसर

डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते प्रभाव ने पारंपरिक खुदरा कारोबार को गहराई से प्रभावित किया है। उपभोक्ता अब घर बैठे मोबाइल और ऑनलाइन एप्लिकेशनों के माध्यम से खरीदारी करना पसंद कर रहे हैं। इसका सीधा असर स्थानीय दुकानदारों और खुदरा कारोबार पर पड़ा है। बाज़ार की रौनक धीरे-धीरे कम हो रही है और कई छोटे व्यापारी अपनी जीविका बनाए रखने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं।

लेकिन हर चुनौती अपने साथ अवसर भी लेकर आती है। अब समय है कि स्थानीय व्यापारी बदलते दौर को स्वीकार करें और अपने कारोबार को नए रास्ते पर आगे बढ़ाएँ। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग इस दिशा में एक बड़ा विकल्प बन सकता है।

क्यों खाद्य प्रसंस्करण उद्योग?

भारत में हर गाँव और कस्बा कृषि उत्पादन पर आधारित है। किसानों से सीधे खरीदी गई उपज को प्रसंस्कृत कर यदि स्थानीय व्यापारी बाजार में उतारते हैं, तो उन्हें स्थायी और बढ़ती हुई मांग वाले उद्योग का लाभ मिल सकता है।
• गेहूँ से आटा, सूजी, मैदा
• धान से चावल, पोहा
• दूध से घी, पनीर, खोया
• फलों और सब्जियों से जूस, अचार, डिहाइड्रेटेड उत्पाद

ये ऐसे उत्पाद हैं, जिनकी खपत कभी कम नहीं होती।

ऑटोमैटिक टेक्नोलॉजी से बदलाव

आज ऑटोमैटिक और आधुनिक मशीनें उपलब्ध हैं, जिनसे उत्पादन लागत घटती है और क्षमता बढ़ती है। पहले जहाँ परंपरागत ढंग से उत्पादन में समय और श्रम अधिक लगता था, वहीं अब कम श्रम और कम लागत में बड़े पैमाने पर प्रसंस्करण संभव है। यही कारण है कि खाद्य प्रसंस्करण को “भविष्य का उद्योग” माना जा रहा है।

डिजिटल टूल्स से नया बाज़ार

स्थानीय व्यापारी अगर अपने बनाए हुए उत्पादों को ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म्स पर बेचें, तो वे सिर्फ अपने कस्बे या ज़िले तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि प्रदेश और देशभर के ग्राहकों तक पहुँच पाएंगे। इससे खुदरा कारोबारियों को भी बड़े ब्रांड्स के साथ प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलेगा।

आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर कदम

आज जब डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थानीय खुदरा बाजार को कमजोर कर रहे हैं, तब खुदरा व्यापारियों को खुद को “केवल विक्रेता” से “उत्पादक और उद्यमी” बनाने का समय है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग इसमें सबसे मजबूत कदम साबित हो सकता है। इससे न सिर्फ व्यापारी की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि किसानों को भी उनकी फसल का उचित मूल्य मिलेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग की चुनौती का मुकाबला केवल उसी भाषा में किया जा सकता है—उद्यमिता और आधुनिक तकनीक की भाषा में। स्थानीय खुदरा व्यापारी अगर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को अपनाएँ और डिजिटल टूल्स से अपनी पहुँच बढ़ाएँ, तो न केवल उनका कारोबार बचेगा, बल्कि वे गाँव और कस्बों की आर्थिक रीढ़ भी बनेंगे।

🌾 Rural Talk – गाँव की प्रेरणा 🌾मुश्किलें इंसान को रोकती नहीं, बल्कि और मज़बूत बनाती हैं।यह कहानी है एक माँ की, जिसने सि...
25/08/2025

🌾 Rural Talk – गाँव की प्रेरणा 🌾

मुश्किलें इंसान को रोकती नहीं, बल्कि और मज़बूत बनाती हैं।
यह कहानी है एक माँ की, जिसने सिर्फ़ 50 पैसे और दो छोटे बच्चों के सहारे ज़िंदगी की जंग शुरू की।

गाँव की पगडंडी से शुरू हुआ यह सफ़र,
सड़क किनारे समोसे बेचने तक पहुँचा…
और आज वही माँ 100 करोड़ की मालिक और 14 रेस्टोरेंट्स की सफल बिज़नेसवुमन बन चुकी है। 💪✨

👉 यह हमें सिखाती है कि गाँव की औरत सिर्फ़ घर ही नहीं संभालती, बल्कि साम्राज्य भी खड़ा कर सकती है।
👉 माँ का त्याग, संघर्ष और मेहनत ही सबसे बड़ी प्रेरणा है। 🙏❤️

💡 गाँव की हर बेटी और हर माँ में यही ताक़त है, बस ज़रूरत है अपने सपनों को सच करने की हिम्मत जुटाने की।

प्रिय उद्यमी साथियों,आप जिस उद्योग एवं व्यापार संगठन से जुड़े हैं, क्या आपने कभी यह सवाल खुद से या अपने पदाधिकारियों से ...
23/08/2025

प्रिय उद्यमी साथियों,
आप जिस उद्योग एवं व्यापार संगठन से जुड़े हैं, क्या आपने कभी यह सवाल खुद से या अपने पदाधिकारियों से पूछे हैं?
1. आपके क्षेत्र में उद्योग बढ़ाने के लिए आपके संगठन ने क्या किया है?
• क्या उन्होंने नई इंडस्ट्रीज़ लाने, नयी फैक्ट्रियाँ खोलने या निवेश आकर्षित करने के लिए कोई ठोस पहल की?
• या सिर्फ़ मीटिंग और फोटो खिंचवाने तक सीमित हैं?
2. केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की जानकारी आपको कितनी मिली?
• PMFME, PMEGP, ODOP, Start-Up India जैसी योजनाओं के बारे में क्या आपके संगठन ने आपको बताया?
• क्या उन्होंने आवेदन करने में मदद की?
3. आपकी समस्याओं का समाधान किस हद तक हुआ?
• बिजली, प्रदूषण, NOC, फायर सेफ्टी, बैंक लोन जैसी समस्याओं में क्या संगठन ने मदद की?
• या सिर्फ़ आश्वासन ही मिला?
4. क्या आपके स्थानीय पदाधिकारी आपकी समस्या शासन-प्रशासन तक ले गए?
• क्या कभी आपके संगठन ने डीएम, एसडीएम, मंत्री या शासन स्तर पर आपकी समस्या उठाई और हल कराया?
• या फिर बैठक करके फोटो सोशल मीडिया पर डाल दिया?
5. क्या संगठन उद्योग और उद्यमिता के लिए है, या सिर्फ राजनीति के लिए?
• क्या संगठन उद्योग जगत की नीतियों पर काम कर रहा है?
• या सिर्फ़ राजनीतिक दलों को अपनी ताक़त दिखाकर व्यक्तिगत फायदे ले रहा है?

उद्यमियों को सोचना होगा
• संगठन का काम है → आपके उद्योग के लिए प्लेटफ़ॉर्म बनना, समस्याओं का हल निकालना और अवसर दिलाना।
• संगठन का काम नहीं है → किसी पार्टी विशेष के लिए भीड़ जुटाना, दिखावा करना या अपने नेताओं के हित साधना।

👉 इसलिए अगली बार जब आप अपने संगठन की मीटिंग में जाएं, यह सवाल ज़रूर पूछें। तभी असली फर्क पड़ेगा।

स्वतंत्रता के सारथीसांस्कृतिक मूल्यों का अधिकार राकेश मिश्र, जागरण, लखीमपुर:देश आज़ादी के 100वें वर्ष की ओर बढ़ते हुए अम...
18/08/2025

स्वतंत्रता के सारथी

सांस्कृतिक मूल्यों का अधिकार

राकेश मिश्र, जागरण, लखीमपुर:
देश आज़ादी के 100वें वर्ष की ओर बढ़ते हुए अमृत काल में प्रवेश कर रहा है। इस ऐतिहासिक यात्रा में ऐसे लोग भी हैं, जो संविधानप्रदत्त सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं की रक्षा के लिए अनथक प्रयास कर रहे हैं। मोहम्मदी के गौरव गुप्ता उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने गोवंशीय संरक्षण को भावनात्मक मुद्दा बनाने के बजाय इसे गांव की अर्थव्यवस्था और लोगों की रोज़ी-रोटी से जोड़ने का मिशन शुरू किया है।

रूरल हब के संस्थापक गौरव गुप्ता का मानना है कि देशी गाय केवल दूध देने वाली पशु नहीं, बल्कि प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है, जिसका योगदान औषधि, खेती, निर्माण और उद्योग तक फैला है। वे बताते हैं कि पंचगव्य के प्रयोग कैंसर, डायबिटीज़ और त्वचा रोग जैसी गंभीर बीमारियों में कारगर साबित हो रहे हैं। गोमूत्र से तैयार जैविक उर्वरक और कीटनाशक मिट्टी को रसायनों से बचाते हुए किसानों की लागत घटा रहे हैं। गोबर से बने प्राकृतिक पेंट, गौक्रीट और सजावटी वस्तुएं बाज़ार में पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

इसी सोच को विस्तार देने के लिए गौरव ने ब्लाक रिसोर्स पर्सन की अवधारणा शुरू की है। चयनित बीआरपी अपने क्षेत्र में किसानों और युवाओं को गो-आधारित उत्पाद निर्माण, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग का प्रशिक्षण देंगे, उन्हें उद्यम स्थापित करने में मार्गदर्शन करेंगे और उनके उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंचाने में मदद करेंगे।

गौरव गुप्ता का स्पष्ट संदेश है कि गाय को सम्मान नाम से नहीं, काम से मिलेगा। जब उसके उत्पाद आधुनिक मार्केटिंग और उद्यमिता से जुड़ेंगे, तभी वह गांव की आर्थिक रीढ़ बन सकेगी।

आज मोहम्मदी, धौरहरा और लखीमपुर ब्लाकों में रूरल हब के प्रशिक्षण से प्रेरित किसान प्राकृतिक खेती और गो-आधारित उद्योग की ओर बढ़ रहे हैं। युवा प्लास्टिक की जगह गोबर से बने गिफ्ट आइटम, सजावटी उत्पाद और पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सामग्री बना रहे हैं, जिनकी बिक्री आनलाइन और आफलाइन दोनों मंचों पर हो रही है।

गौरव का सपना है कि अगले दो वर्षों में हर ब्लाक में गो-आधारित उद्यम स्थापित हो, ताकि सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक विकास दोनों एक साथ आगे बढ़ें। उनके ये प्रयास न केवल गौवंश को बचाने की ठोस राह दिखा रहे हैं, बल्कि गांव के युवाओं को स्वावलंबन का आत्मविश्वास भी दे रहे हैं और यही है अमृत काल में सच्ची स्वतंत्रता की पहचान।

Address

21, Deen Dayal Puram (Smart Gaon), State Highway 93, Mohammadi, Lakhimpur Kheri
Gonda
262804

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