01/03/2025
भूख निगोड़ी निर्दयी, दूर बसे हैं कन्त।
सरसों फूली खेत में, आया मुआ बसन्त।।
कोयल कूके बाग में, हिय आया उल्लास।
कन्त बसे परदेश में, यह कैसा मधुमास।।
ननदें करतीं मसखरी, गाती हैं वे फाग।
जानें कहाँ कुँआरियाँ, क्या विरहिन की आग?
भूखे पेटों ने किया,आंतों से संवाद।
परदेशी फिर ठिठककर,भूल गया सब याद।।
अरहर फूली खेत में, है आया मधुमास।
जिनको होना पास था,आज नहीं वे पास।।
#बसंत