
17/12/2022
*स्थानीय और परम्परागत ज्ञान के क्षेत्र में सामुदायिक रेडियो कार्यक्रमों की भूमिका पर अंतरराष्ट्रीय विचार–विमर्श संगोष्ठी का आयोजन*.
हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के पर्यावरणीय विज्ञान विभाग द्वारा वैश्विक पर्यावरणीय नीति संस्थान (आई०ई०जी०एस०) जापान तथा सामुदायिक रेडियो प्रसारणकर्ताओं के वैश्विक संगठन (ए०एम०ए०आर०सी०) नेपाल के तत्वावधान में विभाग से संचालित एशिया–प्रशान्त क्षेत्र में परिवर्तन पर वैश्विक शोध संस्थान (ए०पी०एन०) जापान द्वारा वित्त पोषित शोध परियोजना के तहत गढ़वाल विश्वविद्यालय के चौरास परिसर स्थित अकादमिक गतिविधि केन्द्र में स्थानीय और परम्परागत ज्ञान के क्षेत्र में सामुदायिक रेडियो कार्यक्रमों की भूमिका पर एक अंतरराष्ट्रीय विचार–विमर्श बैठक का आयोजन किया गया। बैठक के संयोजक पर्यावरणीय विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आर० के० मैखुरी ने बैठक के उद्देश्ययों एवं शोध परियोजना के अन्तर्गत विभाग द्वारा किये जा रहे कार्यों के बारे में सभी को अवगत कराया। उन्होंने कहा की परम्परागत ज्ञान के तहत हिमालयी क्षेत्रों में अपनायी जा रही कृषि पद्धतियां एवं चिकित्सा ज्ञान जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए वर्तमान परिदृश्य में अति उपयोगी है। उन्होंने विलुप्त होती इन विधाओं के संरक्षण और प्रचार–प्रसार में सामुदायिक रेडियो की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। इस अवसर पर मुख्य अतिथि वरिष्ठ पुरातत्वविद तथा गढ़वाल विश्वविद्यालय के मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष सेवानिवृत प्रोफेसर विनोद नौटियाल ने इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय सहभागिता वाले कार्यक्रमों की महत्ता पर जोर देते हुए पुरातत्व विज्ञान के क्षेत्र में अपने शोध और अनुभवों के आधार पर परंपरागत ज्ञान के संरक्षण और प्रचार–प्रसार पर बल दिया। उन्होंने पौराणिक काल में चरवाहों द्वारा भोजन में नकदून का खाद्यान में कार्बोहाइड्रेट के मुख्य स्रोत के रूप में यमुना घाटी का उदाहरण भी प्रस्तुत किया. उन्होंने नृजातीय पुरातत्व (एथनो आर्कियोलोजिकल) पर भी अपने पूर्व शोध अनुभव साझा किये और गढ़वाल विश्वविद्यालय के आर्कियोलोजी विभाग द्वारा इस दिशा में किये कार्यों को भी सम्मुख रखा। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि लोक संस्कृति के पुरोधा तथा हाल ही में संगीत नाटक अकादमी पुरुस्कार के लिए चयनित गढ़वाल विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष सेवानिवृत प्रोफेसर डी० आर० पुरोहित ने लोक मान्यताओं, मिथकों, कला, संस्कृति और लोक व्यवहार के परंपरागत और स्थानीय ज्ञान के संरक्षण और संवर्द्धन पर चर्चा की। उन्होंने गढ़वाली और अन्य स्थानीय भाषाओं में निहित ज्ञान को सहेजने और प्रचार– प्रसार के लिए इन बोली–भाषाओं का अस्तित्व बनाए रखने पर बाल दिया। बैठक में मुख्य वक्ता नेपाल से आए सामुदायिक रेडियो प्रसारणकर्ताओं के वैश्विक संगठन (ए०एम०ए०आर०सी०) के एशिया–प्रशान्त क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक सुमन बासनेट ने विश्व स्तर पर सामुदायिक रेडियो द्वारा संचालित गतिविधियों पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने भारत में उत्तराखण्ड में मंदाकिनी की आवाज तथा हेंवलवाणी और झारखण्ड में असुर एफ०एम० सामुदायिक रेडियो स्टेशनों द्वारा सीमित संसाधनों के साथ क्षेत्रीय स्तर पर किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए किये बैठक में शामिल युवा छात्र–छात्राओं से विविध माध्यमों द्वारा सामुदायिक प्रसारण से जुड़ने का आह्वान किया। दूसरे मुख्य वक्ता , वैश्विक पर्यावरणीय नीति संस्थान (आई०ई०जी०एस०) जापान के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ० विनय राज शिवकोटी ने नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, जापान तथा विश्व के अन्य देशों में परंपरागत ज्ञान के आधार पर संचालित हो रही कई गतिविधियों के बारे में अवगत कराया गया तथा आधुनिक उच्च तकनीकियों के मुकाबले इनकी प्रासंगिकता पर भी विस्तृत चर्चा की। उन्होंने परंपरागत ज्ञान को सहेजने और उसे समाज द्वारा अपनाए जाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों और युवाओं को संभावित भूमिकाओं पर भी प्रकाश डाला। बैठक का संचालन पर्यावरणीय विज्ञान विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ० विधु गुप्ता द्वारा किया गया। बैठक में विभाग के प्राध्यापक रविन्द्र सिंह रावत, डॉ० चण्डी प्रसाद सेमवाल, आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली, के पोस्ट डॉक्टोरल फैलो डॉ० गिरीश चंद्र भट्ट, डॉ नागेंद्र रावत, डॉ संजय पाण्डेय, हरेंद्र रावत, ललिता बिष्ट, अशोक कुमार मीणा, प्रियंका बडोनी, गिरीश नौटियाल, सुखदेव प्रसाद भट्ट, मुरलीधर घिल्डियाल सहित पर्यावरणीय विज्ञान विज्ञान, बीज विज्ञान एवम प्रौद्योगिकी तथा लोक कला व संस्कृति निष्पादन केंद्र के 100 से अधिक छात्र–छात्राएं उपस्थित रहे।