The Gorakhpur

The Gorakhpur News समाजसेवक & पत्रकार

08/06/2025

मित्रों , मेरे फेसबुक प्रोफाइल और व्हाट्सएप को ब्लॉक कर डिलीट किया जा चूका है। क्यों और किसने डिलीट किया इसका पूरा विवरण मैंने अपने टेलीग्राम ग्रुप में दे दिया है जिसका लिंक https://t.me/gkp322 है । अब मैंने अपने दूसरे प्रोफाइल और पेज लिंक " https://www.facebook.com/profile.php?id=61577279815222 “ से नए सिरे से शुरुवात की है कृपया आप सब इस पेज को फॉलो और लाइक करें । मेरे सभी पुराने लिंक टूट चुके हैं । अगर मेरे पुराने प्रोफाइल को ओपन किया जाता है तो भी मै इसी पेज से पोस्ट वगैरह करूँगा । इस पेज पर सरकार की पॉलिसी , कजोर एवं बेरोजगारों पर हो रहे अन्याय , बढ़ती गरीबी , कमजोर होते RTI , पुलिस की बढ़ती बर्बरता , रोजगार, रोजगार परक और टेक्नीकल जानकारियां साझा की जाएँगी।

अखिलेश कुमार मल्ल

02/05/2025

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29/04/2025

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*जो अख़बार सुबह 10 रुपए में मिलता है,*  *शाम को वही 10 रुपये किलो बिकता है।*  *कीमती चीज़ नही होती, कीमती वक्त होता है,*...
29/04/2025

*जो अख़बार सुबह 10 रुपए में मिलता है,*
*शाम को वही 10 रुपये किलो बिकता है।*
*कीमती चीज़ नही होती, कीमती वक्त होता है,*
*वक्त की कदर करो, कामयाबी खुद चलकर* *आएगी।*

जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी
27/04/2025

जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी

न्याय और RTI की बलि चढ़ाता - थाना शाहपुर, जनपद गोरखपुरआम आदमी के लिए RTI (सूचना का अधिकार) एक ऐसा कानूनी अस्त्र है, जिसस...
27/04/2025

न्याय और RTI की बलि चढ़ाता - थाना शाहपुर, जनपद गोरखपुर

आम आदमी के लिए RTI (सूचना का अधिकार) एक ऐसा कानूनी अस्त्र है, जिससे वह सरकारी अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध न्याय की लड़ाई लड़ सकता है। परन्तु यह हथियार कभी-कभी अत्यंत खतरनाक भी सिद्ध हो जाता है। जब कोई RTI कार्यकर्ता अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण को उजागर करता है, तो कई बार अधिकारी स्वयं को बचाने के लिए RTI कार्यकर्ता को झूठे मुकदमों में फँसाने, डराने-धमकाने या अन्यायपूर्ण कार्रवाई का सहारा लेते हैं।

मैं स्वयं एक RTI कार्यकर्ता हूँ। एक प्रकरण में, थाना शाहपुर की पुलिस ने न केवल मुझे, बल्कि मेरे पूरे परिवार — जिसमें दो और चार वर्ष के दो छोटे बच्चे भी शामिल थे — को थाने उठा ले गई थी। मैंने इस घटना से संबंधित सीसीटीवी फुटेज प्राप्त करने के लिए विभिन्न माध्यमों से कई RTI लगाई। परंतु पुलिस ने हर बार गोलमोल और भटकाने वाले उत्तर देकर मामले को टाल दिया।

जब पुलिस को लगा कि बात बनती नहीं दिख रही है, तो उन्होंने मुझे थाने बुलाकर धमकियाँ दीं, गाली-गलौज की, शांति भंग में चालान करने तथा फर्जी एफआईआर दर्ज कर जेल भेजने की धमकियाँ दीं। दरअसल पुलिस इसी प्रयास में रहती है कि पीड़ित व्यक्ति क्रोधित होकर कोई गलती कर बैठे — जैसे गाली-गलौज में प्रतिक्रिया दे दे — ताकि IPC की धारा 186 (सरकारी कार्य में बाधा डालने) या अन्य धाराओं में फँसाकर उसे गिरफ्तार कर लिया जाए।

ध्यान देने वाली बात यह है कि पुलिस ऐसे धमकियाँ उन स्थानों पर देती है जहाँ कोई सीसीटीवी कैमरा न लगा हो।

ऐसा ही एक दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण गोरखपुर के वरिष्ठ RTI कार्यकर्ता एवं इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील डॉ. दीपक शुक्ला के साथ घटित हुआ। जब एक RTI प्रकरण में कुछ बड़े अधिकारी फँसने लगे, तो सूचना अधिकारी ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया, जिससे आक्रोश में आकर डॉ. शुक्ला ने जूता उठा लिया। पुलिस ने इस घटना का लाभ उठाते हुए उनके विरुद्ध तत्काल FIR दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया। आज भी डॉ. शुक्ला कई सप्ताह से जेल में बंद हैं।
गोरखपुर के सुप्रसिद्ध अनशनकारी, "छोटे गांधी" के नाम से विख्यात डॉ. संपूर्णानंद मल्ल जी, उनकी रिहाई के लिए लखनऊ में कई दिनों से सत्याग्रह कर रहे हैं।

यह एक कटु सच्चाई है कि जब भी कोई पुलिस अधिकारी या कर्मचारी फँसने की स्थिति में आता है, तो पूरा पुलिस महकमा उसे बचाने में जुट जाता है। वे इसके लिए लीगल और अनलीगल — हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं। पुलिस के पास अत्याधुनिक संसाधन हैं, जिनका दुरुपयोग कर वह आम नागरिक पर भारी पड़ जाती है, और RTI का उद्देश्य धरा का धरा रह जाता है।

मेरे स्वयं के मामले में अब देखना यह है कि थाना शाहपुर, गोरखपुर के पुलिस अधिकारी मुझे जेल भेजने के लिए कौन-कौन से हथकंडे अपनाते हैं और वे इसमें कितने सफल होते हैं।
थानों में भ्रष्टाचार की असली बिसात बिछाई जाती है। यही कारण है कि थानों में कई संवेदनशील स्थानों पर जानबूझकर सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए जाते या पूछताछ ऐसी जगहों पर की जाती है जहाँ कैमरे न हों।

यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि थानों में सीसीटीवी फुटेज का बैकअप केवल 46 दिनों तक रखा जाता है, जबकि RTI के उत्तर देने की वैधानिक अवधि 30 दिन की है। पुलिस अक्सर रणनीति बनाकर RTI के जवाब में देरी करती है ताकि बैकअप अवधि समाप्त हो जाए और सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध न कराया जा सके। फिर वे दो शब्दों का जवाब दे देते हैं: "बैकअप समाप्त हो गया है।"

कुल मिलाकर, आज की स्थिति यह है कि न्याय की देवी की आँखों पर सिर्फ पट्टी ही नहीं बाँधी गई है, बल्कि उसकी संवेदनाओं को भी कुंद कर दिया गया है। ऐसे में एक आम नागरिक को न्याय कैसे मिलेगा, यह एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है।

मैं कौन ?
मै अखिलेश कुमार मल्ल 2002 -03 में गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर से योग सिखा । 2006 में आजमगढ़ में योगी जी के गिरफ्तारी के समय उनके साथ मैने भी अपनी गिरफ्तारी दी थी । 2008 में ' गौ रक्षक योगी ' लेख दैनिक जागरण और सामयिक इंडिया में लिखा , जिसे पढ़कर माननीय योगी जी ने मंदिर में बुलाकर मुझे प्रोत्साहित किया । 2014 से बीजेपी का सक्रिय सदस्य हूं । गैरराजनीति समाजसेवा में भी सक्रिय हूं गोरखपुर के सक्रिय संगठन ' सैंथवार मल्ल महासभा , द्वीप दान महोत्सव ' में पदाधिकारी रह चुका हूं । कुर्मी क्षत्रिय महासभा में प्रदेश उपाध्यक्ष के साथ ही ओबीसी मोर्चा का पूर्वांचल अध्यक्ष भी हूं । 2022 में डोम समाज ( बांसफोर ) को सड़कों से विस्थापित किए जाने और उन्हें उचित व्यवस्था में स्थापित न किए जाने पर डोम समाज के सहयोग और अपने साथियों संघ ( जिसमें dr संपूर्णानंद मल्ल जी का विशेष योगदान रहा ) गोरखपुर में मेडिकल रोड को आधे घंटे के लिए चक्का जाम किया और डोम समाज के लिए आसरा आवास में उचित प्रबंध करवाया । कुर्मी समाज में हुई कई हत्याओं में न्याय के लिए भी मेरी तरफ से सक्रिय भूमिका अदा की गई । इसके अलावा भी कई प्रकरणों में अन्याय होने पर शासन / प्रशासन का विरोध किया । अभी अपने सहयोगी मित्र डॉ दीपक शुक्ला को गलत तरीके से फंसाए जाने पर उन्हें बाहर लाने पर डॉ संपूर्णानंद मल्ल जी के साथ विशेष प्रयास पर काम किया जा रहा है ।

सोचिए - जब एक सक्रिय समाजसेवी के साथ ! सत्ता पक्ष के सक्रिय सदस्य के साथ ! गोरखपुर पुलिस ऐसा व्यवहार कर सकती है तो आमजन की हालत कैसी होगी ?

- अखिलेश कुमार मल्ल

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पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें हमेशा से आम जनता की जेब पर असर डालती रही हैं। हर बार जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल ...
23/04/2025

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें हमेशा से आम जनता की जेब पर असर डालती रही हैं। हर बार जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतें घटती हैं, जनता को उम्मीद होती है कि घरेलू बाजार में भी राहत मिलेगी। लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है।

2011 में क्या कहा था राजनाथ सिंह ने?
तत्कालीन भाजपा नेता (अब केंद्रीय रक्षा मंत्री) राजनाथ सिंह ने 2011 में एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था:

> "पेट्रोलियम उत्पाद पर केंद्र सरकार 32-35 प्रतिशत तथा राज्य सरकार 20-25 प्रतिशत कर वसूल करती है। केंद्र सरकार जिस अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल की कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल का हवाला दे रही है उस पर अगर तीस फीसदी उत्पादन खर्च जोड़ लिया जाए तो भारत में पेट्रोल 35-40 रुपये लीटर ही होना चाहिए।"

यह ट्वीट तब किया गया था जब देश में पेट्रोल की कीमतें बढ़ रही थीं और कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार आलोचना झेल रही थी। भाजपा तब विपक्ष में थी और जनता के हितों की बात कर रही थी।

आज का परिदृश्य – 2025 में क्या हो रहा है?
2025 में कच्चे तेल की कीमत लगभग 85-90 डॉलर प्रति बैरल है, जो 2011 के मुकाबले 30-35 डॉलर कम है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पेट्रोल की खुदरा कीमतें अब 85 से 120 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच चुकी हैं – यानी उस समय से लगभग दोगुनी।

तो क्या हुआ उस 35 रुपये वाले फॉर्मूले का?

अगर हम 2011 के राजनाथ सिंह जी के ही फॉर्मूले को आज लागू करें:

क्रूड ऑयल – $90 प्रति बैरल

1 बैरल = ~159 लीटर

यानि 1 लीटर क्रूड = ~56 रुपये

अगर इसमें 30% उत्पादन, रिफाइनिंग, ट्रांसपोर्टेशन आदि जोड़ें = 56 + 17 = 73 रुपये

अब अगर कर हटा दें (केंद्र और राज्य मिलाकर 50-55%) तो वास्तविक कीमत 40-45 रुपये प्रति लीटर के आसपास होनी चाहिए।

लेकिन वर्तमान में पेट्रोल 85 से 110 रुपये के आस-पास बिक रहा है, जिसका बड़ा हिस्सा एक्साइज ड्यूटी, वैट, सेस और अन्य टैक्सों का है।

विश्लेषण:

1. करों की दोहरी मार: केंद्र सरकार के उत्पाद शुल्क और राज्य सरकारों के वैट के चलते आम जनता को राहत नहीं मिल पाती।

2. राजनीतिक असंगति: विपक्ष में रहते हुए जो वादे किए जाते हैं, सत्ता में आने के बाद उन पर अमल नहीं किया जाता।

3. लोकतांत्रिक जवाबदेही: 2011 का ट्वीट आज सत्ता में बैठे लोगों के लिए एक mirror जैसा काम करता है – क्या वे उस बात पर आज भी कायम हैं?

निष्कर्ष:
2011 में राजनाथ सिंह जी का ट्वीट आज एक रिकॉर्ड ऑफ स्टैंड की तरह देखा जा रहा है, जिससे सरकार की वर्तमान नीतियों की तुलना की जा सकती है। यह जनता का अधिकार है कि वह अपने नेताओं की कथनी और करनी को जांचे।

पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स नीति और सरकारी मंशा पर यह बहस अब और तेज होनी चाहिए – क्योंकि पेट्रोल सिर्फ ईंधन नहीं, जीवन स्तर की कीमत भी तय करता है।

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अखिलेश कुमार मल्ल

21/04/2025

"जब रिश्तों की दीवारें गिरती हैं –
समधन-समधी का प्रेम, और बिखरता परिवार"

बदायूं, उत्तर प्रदेश:
अभी हाल ही में बदायूं जिले के दातागंज क्षेत्र से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया, जिसने न सिर्फ कानून को, बल्कि समाज के मूल्यों को भी सवालों के घेरे में ला दिया है। एक महिला अपने समधी के साथ घर छोड़कर भाग गई। यह महिला न सिर्फ चार बच्चों की मां है, बल्कि एक ऐसे परिवार की धुरी भी थी, जो अब पूरी तरह से टूट गया है।

पीड़ित पति सुनील ने बताया कि वह एक ट्रक ड्राइवर है और बाहर रहने के कारण घर पर कम समय दे पाता था। उसका समधी शैलेंद्र, जो उसकी बेटी के ससुर हैं, अक्सर उसके घर आता-जाता था। धीरे-धीरे उसकी पत्नी ममता और समधी शैलेंद्र के बीच अवैध संबंध बन गए। और फिर एक दिन, ममता समधी के साथ जेवर और रुपये लेकर फरार हो गई।

इस पूरी घटना की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई गई है। सबसे दर्दनाक बात यह है कि महिला के बेटे ने खुद बताया कि उसकी मां अक्सर दीदी के ससुर को घर बुलाती थीं, और उन्हें हम बच्चों को दूसरे कमरे में भेज दिया जाता था। मोहल्ले वालों का भी कहना है कि समधी का रात में आना-जाना आम था, पर कोई कुछ कह नहीं पाता था क्योंकि वो 'रिश्तेदार' था।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 'रिश्ता' अब बस एक सामाजिक पहचान भर रह गया है? क्या उसका कोई नैतिक, पारिवारिक और भावनात्मक दायित्व नहीं बचा?

हमारे समाज में रिश्ते सिर्फ़ खून से नहीं, भरोसे से बनते हैं।
लेकिन जब रिश्तों की सीमाएं टूटती हैं, तो भरोसे की पूरी ज़मीन दरक जाती है।

आज एक औरत अपने समधी के साथ चली गई, पर साथ ही वह अपने बच्चों का बचपन, अपने पति का विश्वास, और पूरे समाज की मर्यादा भी साथ ले गई।

हाल ही में अलीगढ़ से भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था जहाँ एक सास अपने होने वाले दामाद के साथ भाग गई थी। वहां भी पूरे परिवार की नींव हिल गई थी।

ये घटनाएं केवल 'खबरें' नहीं हैं—ये हमारे समाज की उस दीवार में दरार हैं जो रिश्तों के नाम पर खड़ी की गई थी।

हमें समझना होगा:
रिश्तों में शक करने से रिश्ते नहीं चलते, लेकिन रिश्तों में अंधा विश्वास भी उन्हें कमजोर बना देता है।

हर एक को जिम्मेदारी लेनी होगी कि

अपने रिश्तों की सीमाएं पहचाने

अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखें

और सबसे बढ़कर, अपने बच्चों के भविष्य को उन रिश्तों की आग में न झोंकें, जिनमें हम खुद उलझे हुए हैं।

अगर प्यार है, तो सही समय, सही तरीका और सही सोच होनी चाहिए।
वरना रिश्तों का नाम लेकर किया गया कोई भी कदम, सिर्फ बर्बादी छोड़ जाता है।

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समाज को आज ज़रूरत है सिर्फ संस्कारों की बातें करने की नहीं,
बल्कि उन्हें जीने की।

The Lallantop अखिलेश कुमार मल्ल NDTV Amar Ujala

21/04/2025

दिल दहला देने वाली घटना – बालिया, उत्तर प्रदेश

कल अमहर पट्टी, रसड़ा थाना क्षेत्र के एक मोहल्ले में खेल-खेल में हुए विवाद ने एक मासूम की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर दिया। सीसीटीवी में दिख रहा है कैसे एक युवक ने मात्र खेल के झगड़े में आठ साल के बच्चे को करीब पाँच फीट ऊपर उठाया और पक्की सड़क पर पटक दिया। बच्चे का सिर सड़क से टकराते ही बेसुध होकर गिर पड़ा।

उसे आनन-फ़ानन नज़दीकी सीएचसी ले जाया गया, प्राथमिक इलाज के बाद पीजीआई रेफ़र हुआ। डॉक्टरों की रिपोर्ट बेहद चिंताजनक है – बच्चे के मस्तिष्क में ६ फ्रैक्चर और ८ क्लॉटिंग के निशान हैं। एक खेल-झगड़े ने इस छोटे से बच्चे के लिए मौत और ज़िंदगी के बीच की डोर पर रख दिया।

बचपन नादान-सा होता है, चोट लगना, लड़ना-झगड़ना तो उसकी फितरत है। लेकिन जब बड़े अपनी भावनाओं पर काबू खो बैठें, तो मासूमों की ज़िंदगियाँ दांव पर लग जाती हैं। पेरेंट्स और वयस्कों से गुज़ारिश है कि वे लड़ाई-झगड़े में किसी भी हाल में पिटाई या हिंसा को शामिल न होने दें। बच्चों के छोटे विवादों को बचपन की मासूमियत से ही निपटने दें।

हम सभी को समझना होगा कि एक क्षण की लापरवाही किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकती है। आइए, गुस्से से पहले एक बार सोचें, और बच्चों को ऐसा माहौल दें जहाँ वे सुरक्षित, मजबूत, और खुशहाल रहें। केवल तभी हम अपनी अगली पीढ़ी को उज्जवल भविष्य दे सकेंगे।
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अखिलेश कुमार मल्ल

Amar Ujala NDTV The Lallantop All India Radio - Akashvani

आइसक्रीम में ब्लेड: नौका विहार गोरखपुर पर खतरनाक लापरवाहीगर्मियों की तपिश में आइसक्रीम राहत का एक मीठा साधन होती है। विश...
21/04/2025

आइसक्रीम में ब्लेड: नौका विहार गोरखपुर पर खतरनाक लापरवाही

गर्मियों की तपिश में आइसक्रीम राहत का एक मीठा साधन होती है। विशेषकर जब हम परिवार के साथ किसी सुंदर स्थल पर हों, जैसे कि गोरखपुर का नौका विहार – एक प्रसिद्ध और सजीव पर्यटन केंद्र। लेकिन जब इसी मिठास में मौत की धार छुपी हो, तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि मानव जीवन के साथ किया गया अमानवीय खिलवाड़ है।

हाल ही में गोरखपुर के नौका विहार में एक आइसक्रीम में ब्लेड मिलने की खबर ने हर किसी को हिला दिया है। सोचिए, यदि वह ब्लेड किसी मासूम बच्चे के गले में चला जाता, या किसी की जीभ कट जाती, तो स्थिति कितनी भयावह हो सकती थी? यह केवल शारीरिक क्षति नहीं होती, बल्कि मानसिक आघात भी जीवन भर के लिए व्यक्ति को अंदर तक तोड़ सकता है।

यह लापरवाही नहीं, अपराध है

ऐसी घटनाएँ सिर्फ "गलती" कहकर नहीं टाली जा सकतीं। यह उद्योगिक और प्रशासनिक स्तर पर सुरक्षा मानकों की अनदेखी का गंभीर उदाहरण है। खाद्य पदार्थों में इस तरह के घातक पदार्थों का पाया जाना भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिह्न खड़े करता है। क्या वहाँ उचित निरीक्षण नहीं होता? क्या उत्पादक और विक्रेता सिर्फ मुनाफा कमाने की होड़ में लोगों की जान की परवाह छोड़ चुके हैं?

संभावित खतरे:

1. ब्लेड पेट में चला जाए तो क्या हो सकता है?
यदि ब्लेड आंतों में जाकर चुभ जाए, तो आंतरिक रक्तस्राव, संक्रमण, यहां तक कि जान जाने का भी खतरा होता है। सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है और समय पर इलाज न हो पाने पर स्थिति अत्यंत गंभीर हो सकती है।

2. जिह्वा कटने की स्थिति में?
जीभ शरीर का अत्यंत संवेदनशील और आवश्यक अंग है। यदि यह कट जाए तो बोलने की क्षमता समाप्त हो सकती है, और व्यक्ति जीवन भर के लिए गूंगा बन सकता है।

कौन ज़िम्मेदार है?

सबसे पहले उत्पादक कंपनी को कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।

स्थानीय प्रशासन, जिसने ऐसी दुकानों को लाइसेंस दिया, उसे भी जवाबदेह ठहराना चाहिए।

पर्यटन विभाग, जो ऐसे स्थलों की निगरानी करता है, उसे भी नियमित निरीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण करना चाहिए।

आम जनता क्या करे?

1. सतर्क रहें – खाने-पीने की वस्तुओं की जांच करें, विशेषकर बच्चों को देने से पहले।

2. शिकायत दर्ज करें – किसी भी संदिग्ध वस्तु की तुरंत सूचना प्रशासन को दें।

3. सोशल मीडिया का प्रयोग करें – जनजागरण के लिए इस घटना को साझा करें और दूसरों को सतर्क करें।

निष्कर्ष:

गोरखपुर जैसे सांस्कृतिक और पर्यटन महत्व वाले शहर में ऐसी घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि इसके दूरगामी दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। प्रशासन को चाहिए कि दोषियों पर त्वरित और कठोर कार्यवाही करे, ताकि भविष्य में कोई और ऐसी लापरवाही का शिकार न बने। साथ ही, यह समय है जब हम सभी उपभोक्ताओं को भी सजग और सतर्क रहकर अपने अधिकारों और सुरक्षा के प्रति जागरूक होना पड़ेगा।

"क्योंकि आइसक्रीम मीठी हो सकती है, पर उसमें छुपी मौत नहीं।"

The Lallantop अखिलेश कुमार मल्ल MYogiAdityanath Chief Minister Office Uttar Pradesh Amar Ujala

**अमेरिकी डॉलर में भुगतान पाने के लिए 15 Remote Job Sites****परिचय**आज के डिजिटल युग में घर बैठे काम करके अच्छी कमाई करन...
18/04/2025

**अमेरिकी डॉलर में भुगतान पाने के लिए 15 Remote Job Sites**

**परिचय**
आज के डिजिटल युग में घर बैठे काम करके अच्छी कमाई करना संभव हो गया है। अगर आपके पास कोई स्पेशल स्किल या टैलेंट है, तो आप पार्ट-टाइम प्रोजेक्ट्स ले सकते हैं और अमेरिकी डॉलर (USD) में पेमेंट प्राप्त कर सकते हैं। नीचे 15 ऐसी विश्वसनीय वेबसाइट्स की सूची दी गई है जहाँ से आप Remote Job खोजकर Extra Income अर्जित कर सकते हैं।

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1. **Freelancer (freelancer.com)**

- दुनिया की सबसे बड़ी फ्रीलांसर मार्केटप्लेस में से एक।
- Web development, ग्राफिक डिज़ाइन, कंटेंट राइटिंग से लेकर डेटा एंट्री तक के प्रोजेक्ट्स मिलते हैं।
- Milestone Payments सिस्टम: काम पूरा होने पर आंशिक पेमेंट लेते हैं।
- फीस: प्रोजेक्ट बिड पर \~10% या फ़्लैट शुल्क।

2. **Jobspresso (jobspresso.co)**

- हाथ से चुनिंदा Remote Jobs की लिस्टिंग।
- Tech, Marketing, Customer Support जैसी कैटेगरी।
- कोई फ़ीस नहीं होती, सीधा कंपनी से संपर्क होता है।

3. **Remote OK (remoteok.com)**

- Open Source Projects, Startups, Established कंपनियों के Remote ओपनिंग्स।
- Tech-heavy फोकस: Developers, Designers, DevOps, आदि।
- RSS Feed और Newsletter के ज़रिए नए जॉब्स की सूचना।

4. **Remote4Me (remote4me.com)**

- Free और Subscription बेस्ड प्लान।
- Non-Tech जॉब्स: Sales, HR, Operations, Writing आदि।
- सर्च फिल्टर्स: फुल-टाइम, पार्ट-टाइम, फ़्रीलांस।

5. **SimplyHired (simplyhired.com)**

- Aggregator: कई जॉब बोर्ड्स से Remote जॉब्स इकट्ठा करता है।
- Alerts फ़ीचर: नए जॉब्स ईमेल में मिलते हैं।
- वेतन अनुमान और कंपनी रिव्यू भी देख सकते हैं।

6. **Toptal (toptal.com)**

- टॉप 3% Freelancers के लिए प्लेटफ़ॉर्म।
- Front-end, Backend, Finance Experts, Designers आदि।
- Screening प्रोसेस कठिन, लेकिन हाई-पेइंग क्लाइंट्स।

7. **AngelList (angel.co)**

- स्टार्टअप्स के लिए Job Board।
- Equity के साथ-साथ USD पेमेंट भी मिलता है।
- Profile पर निवेशक और Founder भी देख सकते हैं।

8. **NoDesk (nodesk.co)**

- Curated Remote Work और Digital Nomad Opportunities।
- Featured Remote-Friendly कंपनियाँ।
- Career Advice ब्लॉग सेक्शन।

9. **Upwork (upwork.com)**

- Freelancer.com जैसा ही मार्केटप्लेस।
- Hourly और Fixed-Price दोनों विकल्प।
- Service Fee: पहले \$500 पर 20%, इसके बाद 10% तक घटती है।

10. **LinkedIn (linkedin.com)**

- दुनिया का सबसे बड़ा प्रोफेशनल नेटवर्क।
- Remote फिल्टर लगाकर जॉब सर्च करें।
- Direct Recruiter से कनेक्ट होकर प्रोफ़ाइल एन्हांस करें।

11. **Remote.co (remote.co)**

- Completely Remote जॉब्स की लिस्टिंग।
- Company Profiles: Remote-first कंपनियों का विवरण।
- FAQ सेक्शन: Remote Work Best Practices।

12. **FlexJobs (flexjobs.com)**

- Scam-free Remote, Part-time, Freelance अवसर।
- Membership बेस्ड (\$14.95/month)।
- Detailed Company Insights और Resume Review।

13. **Pangian (pangian.com)**

- Global Remote Community।
- Local Chapter Events और Networking।
- Job Matches based on Profile और Skills।

14. **Remotive (remotive.com)**

- Weekly Remote जॉब न्यूज़लेटर।
- Community Chat और Career Resources।
- Tech और Non-Tech दोनों कैटेगरी।

$116. **We Work Remotely (weworkremotely.com)**

- Global leader in remote job listings।
- Tech, Customer Support, Marketing और अन्य क्षेत्रों में अवसर।
- किसी सदस्यता शुल्क की आवश्यकता नहीं; सीधे कंपनियों को आवेदन करें।

17. **Guru (guru.com)**

- लचीले भुगतान विकल्प: घंटेवार, माइलस्टोन या कार्य-आधारित।
- विविध श्रेणियाँ: Development, Writing, Business आदि।
- SafePay एस्क्रो सिस्टम सुरक्षित पेमेंट के लिए।

18. **PeoplePerHour (peopleperhour.com)**

- प्रोजेक्ट-केन्द्रित मार्केटप्लेस।
- Hourlie ऑफर्स फिक्स्ड-प्राइस माइक्रो-सर्विसेज के लिए।
- बिल्ट-इन कोलैबोरेशन टूल्स।

19. **Working Nomads (workingnomads.co)**

- रोजाना क्यूरेटेड Remote अवसरों की ईमेल।
- सूचीबद्ध श्रेणियाँ: Dev, Ops, DevOps, Marketing।
- मुफ़्त सब्सक्रिप्शन।

20. **CloudPeeps (cloudpeeps.com)**

- कम्युनिटी-चालित Freelance मार्केटप्लेस।
- मार्केटिंग, सोशल मीडिया, कंटेंट पर फोकस।
- गुणवत्तापूर्ण क्लाइंट्स के साथ क्यूरेटेड गिग्स।

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- Simple UI के साथ Remote Job Aggregator।
- Tag-based सर्च: , -support, आदि।
- GitHub Repository में भी उपलब्ध है।

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**कैसे शुरू करें?**

1. **प्रोफ़ाइल बनाएं:** साफ़-सुथरी Bio, प्रोफ़ेशनल Headshot, Skills और Portfolio शामिल करें।
2. **प्रोजेक्ट्स अटेंड करें:** छोटे प्रोजेक्ट्स लेकर रेटिंग और टेस्टिमोनियल हासिल करें।
3. **क्वालिटी पर फोकस:** Deadlines में Delivery और Communication पर ध्यान दें।
4. **नेटवर्किंग:** LinkedIn, Community ग्रुप्स में एक्टिव रहें।
5. **पेमेंट मेथड:** PayPal, Payoneer, Wise जैसी सेवाएँ सेटअप करें।

**निष्कर्ष**
Remote काम करके आप न सिर्फ Extra Income कमा सकते हैं, बल्कि ग्लोबल क्लाइंट्स के साथ काम करने का अनुभव भी ले सकते हैं। ऊपर दी गई 15 साइट्स से शुरुआत करें, अपनी स्किल्स को नियमित रूप से अपडेट रखें और सफलता की ओर बढ़ें।

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30/03/2025

✍🏻 **डॉ. संपूर्णानंद मल्ल का खुला पत्र – अन्याय के खिलाफ संघर्ष की ज्वाला!**
**📢 न्याय की पुकार – डीडीयू विश्वविद्यालय में सत्याग्रह की घोषणा!**

गोरखपुर विश्वविद्यालय में न्याय और पारदर्शिता की मांग को लेकर डॉ. संपूर्णानंद मल्ल ने 1 अप्रैल 2025 को **दोपहर 2:00 बजे** सत्याग्रह करने का संकल्प लिया है। यह सिर्फ एक शिक्षक का संघर्ष नहीं, बल्कि शिक्षा प्रणाली में व्याप्त अन्याय और शोषण के खिलाफ उठने वाली एक बुलंद आवाज़ है!

🔥 **क्या डीडीयू प्रशासन में न्याय बचा है?**

✅ **"प्रथम श्रेणी पीजी और यूजीसी नेट"** होने के बावजूद यदि डॉ. मल्ल प्रवक्ता पद के योग्य नहीं माने जाते, तो क्या डीडीयू के अन्य आचार्य भी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं?

✅ यदि **संविधान के अनुच्छेद 16 और यूजीसी रेगुलेशन** का उल्लंघन कर टर्मिनेशन किया गया, तो यह केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ अन्याय है।

✅ या तो उन्हें **नियुक्ति मिले**, या फिर समान आधार पर डीडीयू के अन्य सभी शिक्षकों को **अयोग्य घोषित किया जाए!**

🛑 **न्याय की 5 प्रमुख माँगें**

1️⃣ **प्रोफेसर पद पर पुनः नियुक्ति** – 30 अगस्त 2003 की नियुक्ति तिथि के आधार पर "इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति" विभाग में प्रोफेसर पद दिया जाए।

2️⃣ **2003-08 का वेतन भुगतान** – जब स्थायी शिक्षकों की तरह शिक्षण कार्य लिया गया, तो वेतन क्यों नहीं दिया गया?

3️⃣ **मानहानि का 10 करोड़ का मुआवजा** – मीडिया द्वारा **"तथाकथित प्रोफेसर"** कहे जाने से हुई मानसिक और सामाजिक क्षति का हिसाब कौन देगा?

4️⃣ **अनुचित टर्मिनेशन की भरपाई** – 20 साल के संघर्ष, शोध, अध्यापन और सामाजिक पहचान को किस तरह लौटाया जाएगा?

5️⃣ **शोषण का अंत** – यदि शिक्षण कार्य लिया गया, तो उसका पूरा पारिश्रमिक मिलना चाहिए, अन्यथा यह **अकादमिक शोषण** और **अपराध** है!

⚖ **न्याय नहीं मिला तो सत्याग्रह और आंदोलन!**

डॉ. मल्ल का कहना है कि **अब वे 60 वर्ष के हो चुके हैं** और उनका पूरा **अकादमिक जीवन उनसे छीन लिया गया**। उन्होंने घोषणा की है कि—

✅ 1 अप्रैल को वे **सत्याग्रह** करेंगे!

✅ महामहिम **राज्यपाल का पुतला दहन** करेंगे!

✅ **विश्वविद्यालय प्रशासन पर क्राइम का अभियोग** दर्ज कराएंगे!

📢 **यह सिर्फ एक शिक्षक की लड़ाई नहीं, हर न्यायप्रिय नागरिक की ज़िम्मेदारी है!**
गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन और न्यायपालिका क्या इस अन्याय को अनदेखा करेंगे? या फिर शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करेंगे?

✊🏻 **यदि आप शिक्षा व्यवस्था में न्याय और पारदर्शिता चाहते हैं, तो इस संघर्ष में अपनी आवाज़ बुलंद करें!**

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