22/08/2025
सनातन धर्म में कुत्ता पालन का निषेध : एक शास्त्रीय एवं सांस्कृतिक विवेचन
भूमिका
भारतीय संस्कृति में पशुपालन केवल आर्थिक आवश्यकता न होकर धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग रहा है। गाय, बैल, घोड़ा, हाथी, हंस, मोर आदि पशु-पक्षियों को सात्त्विक, देवत्व से युक्त और गृहस्थ जीवन के अनुरूप माना गया है। किंतु कुत्ते के विषय में सनातन धर्म के शास्त्रों ने अलग दृष्टिकोण अपनाया है। उसे रक्षक, भैरव का वाहन और यमराज का सहचर मानते हुए भी गृहस्थाश्रम में उसके पालन को निषिद्ध बताया गया है। इस निषेध के पीछे धार्मिक, शास्त्रीय और प्रतीकात्मक आधार निहित हैं।
१. शुचिता और धार्मिक आचरण
सनातन धर्म में शुद्धता (शौच) और पवित्रता (आचार) अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। कुत्ता मांसाहारी, गंदगी से जुड़ा रहने वाला और अपवित्रता का प्रतीक माना गया है।
मनुस्मृति (३.२४१) में कहा गया है—
> श्वशृगालखराः सार्मे चण्डालाः पतिता द्विजाः ।
प्रविशन्ति गृहे यस्य न स शुद्धिं अवाप्नुयात् ॥
अर्थात्, जिस घर में कुत्ते, सियार, गधे प्रवेश करते हैं, वह घर शुद्ध नहीं रहता और वहाँ धार्मिक कर्म निषिद्ध हो जाते हैं।
२. मृत्यु और यमलोक से संबद्धता
कुत्ते का संबंध यमराज और मृत्यु से जोड़ा गया है।
गरुड़ पुराण (पूर्व खंड, अध्याय ५) में वर्णन है—
> चत्वारः कृष्णश्वानः पाशहस्ता भयंकराः ।
प्रेतेन सह गच्छन्ति मार्गं वै यमसंज्ञितम् ॥
अर्थ: जब प्राणी की मृत्यु होती है, तब चार काले कुत्ते पाश लेकर उसे यममार्ग की ओर ले जाते हैं।
👉 इससे कुत्ते का प्रतीकात्मक स्थान “मृत्यु और श्मशान” से जुड़ा माना गया।
३. महाभारत का प्रसंग
महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर स्वर्गारोहण करते समय एक कुत्ते को साथ ले जाना चाहते हैं। इन्द्र उन्हें रोकते हुए कहते हैं—
> न श्वा दिवं प्रवेक्ष्यति धर्मराज महाभुज ।
अर्थ: हे धर्मराज! कुत्ता स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता।
👉 इससे संकेत मिलता है कि कुत्ता दैवी, सात्त्विक और स्वर्गीय लोक का अंग नहीं माना गया।
४. धर्मसूत्रों का दृष्टिकोण
आपस्तम्ब धर्मसूत्र में कुत्ते के स्पर्श को अपवित्रता का कारण कहा गया है—
> श्वा स्पृष्टेऽपवित्रः स्यात् स्नानं प्रक्षालनं चरेत् ।
अर्थ: यदि कुत्ता स्पर्श कर ले, तो मनुष्य अपवित्र हो जाता है और उसे शुद्धि हेतु स्नान करना चाहिए।
५. प्रतीकात्मक आयाम
कुत्ता भैरव का वाहन माना गया है, जो श्मशान और तामसिक ऊर्जा से संबंधित है।
यमराज के द्वारपाल भी कुत्ते हैं।
👉 इसका तात्पर्य यह है कि कुत्ता “रक्षक” है, किंतु “गृहस्थ के संग-साथ” के लिए उपयुक्त नहीं।
निष्कर्ष
उपरोक्त शास्त्रीय और सांस्कृतिक प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि सनातन धर्म में कुत्ता पालन का निषेध केवल सामाजिक प्रथा नहीं, बल्कि धार्मिक तत्त्वों पर आधारित है।
कुत्ते को गृहस्थ जीवन और यज्ञीय आचरण की पवित्रता के विपरीत माना गया।
उसका संबंध मृत्यु, श्मशान और तामसिक शक्तियों से जोड़ा गया।
यद्यपि वह भैरव का वाहन और रक्षक माना गया, किंतु “घर के भीतर पाले जाने योग्य” नहीं समझा गया।
अतः सनातन धर्म में कुत्ते का स्थान गृहस्थ पालन के लिए निषिद्ध है।