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Teekhar हिन्दी साहित्य का नया शिल्पकार
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योगेश योगी जी हिन्दी कवि सम्मेलन मंचों के उभरते हुए कवि हैं। महाकुंभ के समापन पर इनका एक गीत प्रस्तुत हुआ है। आप भी सुनि...
18/02/2025

योगेश योगी जी हिन्दी कवि सम्मेलन मंचों के उभरते हुए कवि हैं। महाकुंभ के समापन पर इनका एक गीत प्रस्तुत हुआ है। आप भी सुनिए..

'Song Of Kumbh' 'Mast Malang'Written , Composed And Sung By Yogi Yogesh Shukla.Produced By Ayush Jaywardhan.Music By MSE Special Thank...

कविता गुस्से में नहीं लिखी जा सकती, नफ़रत से भी नहीं लिखी जा सकती। कविता विद्रूप की रचना कर सकती, पर स्वयं विद्रूप नहीं ...
06/09/2024

कविता गुस्से में नहीं लिखी जा सकती, नफ़रत से भी नहीं लिखी जा सकती। कविता विद्रूप की रचना कर सकती, पर स्वयं विद्रूप नहीं हो सकती। फूहड़ता का विरोध सलीके से किया जाता है। ख़ुद फूहड़ बन कर नहीं । कविता और गाली में फ़र्क होता है। कविता क्रोध से नहीं, करुणा से बनती है। करुणा साहितसार !

किसी मरखहवा माटसाब के जबरदस्त कुटाई के बाद आमतौर पर लड़कों में दो तरह के मानसिक परिवर्तन दिखते थे, या तो वो लड़का इंजीनियर...
05/09/2024

किसी मरखहवा माटसाब के जबरदस्त कुटाई के बाद आमतौर पर लड़कों में दो तरह के मानसिक परिवर्तन दिखते थे, या तो वो लड़का इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना अपने भीतर धान नियुत रोप लेता था या हमारे जैसा लड़का थेथर हो जाता था। लड़कियों में कुछ खास परिवर्तन नहीं दिखते थे, क्योंकि वो अपनी मधुर आवाज, नेल पोलिश के रंग, पायल के छनछन और पैराशूट का गमकौउआ नारियल तेल से ही माटसाब के क्रोध को मोह लेती थी अतः जो तेज थी वो तेज होते चली गयी जो बानर थी वो बानर ही रह गयी।

बात उन दिनों की है जब बबिता कुमारी गणित विषय में टॉप की थी और हम अंग्रेजी विषय में टॉप किये थे, हम अंग्रेजी विषय में टॉप किये थे ऐसा कहना गलत होगा, हमको बबिता कुमारी टॉप करवाई थी ऐसा कहना ज्यादा सही होगा। हमारी अंग्रेजी ठीक उतनी ही कमजोर थी जितनी की आज बनारस का पुल है, जिसमें ढहता तो पुल है पर चपता, मरता हमारे और आपके जैसा आम आदमी है। जब कभी भी माटसाब को कूटने या सोटने का मन होता वो पूरी क्लास से एक-एक करके सवाल पूछा करते थे। उनका एक एक्स्ट्रा सिद्धांत था कि जिस बच्चे से एक बार सवाल पूछा जा चुका है उससे दुबारा भी पूछा जा सकता है, इसीलिए बच्चों में डर की प्रतिशत और ज्यादा बनी रहती थी और सभी सतर्क रहते थे। अगला सवाल का तोप किसपे गिरेगा ये बच्चों का थथुना देखकर माटसाब कैलकुलेट करते थे। जहाँ बच्चे सवाल से डर कर अपना आँख छुपाते थे, वहीँ हम माटसाब की ओर तन कर देखते थे, क्योंकि बबिता कुमारी ही हमको बताई थी कि जो बच्चा सवाल पूछते वक्त हमेशा मास्टर की ओर देखता है उससे सवाल पूछे जाने की प्रोबेबिलिटी बहुत कम होती है।

एक दिन माटसाब परमोदवा के तरफ निशाना बोजते हुए हमारे तरफ तोप छोड़ दिए। आप बताइये लल्लन मिसिर अंग्रेजी वर्णमाला में भौवेल की संख्या कितनी होती है...और वो कौन-कौन से हैं ? इससे पहले कि हम जवाब देते, एक बार हम बबिता की तरफ देखते हैं और महसूस करते हैं कि बबिता का बताया हुआ नियम यहाँ ठीक वैसे ही फेल हो गया है जैसे डालटन का परमाणु अविभाज्य नियम फेल हो गया था आधुनिक मत से दबकर जिसमें परमाणु अविभाज्य न होकर भाज्य हो गया था इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, और न्यूट्रॉन में। बबिता माटसाब की और देख रही होती है, हम बबिता की ओर, और पूरी क्लास हमदोनों को, तब तक मेरे गाल पे से एक चट्टाक का आवाज आता है, और मैं पुनः माटसाब की ओर देखने लगता हूँ। शायद माटसाब ही परमोदवा को मारने का आदेश दिए होंगे, मुझे होश में लाने के लिए । परमोदवा भी मौका का फायदा उठाते हुए हिंच के मारा था। हम गाल रगड़ते हुए बोले - सर पांच होते हैं ऐ, ई, आई, ओ, यू।

अगला सवाल फिर से हमारे ऊपर ही आता है अब बताओ लल्लन मिसिर कॉन्सोनेन्ट की संख्या कितनी होती है...और वो कौन-कौन से हैं ? इस बार बिना बबिता की तरफ देखते हुए, हम जल्दी से उत्तर दिए - कुल इक्कीस, सारे भोवेल यानी ऐ, ई, आई, ओ, यू को छोड़कर सभी कॉन्सोनेन्ट हैं। ''लल्लन मिशिर तुम खड़े रहोगे, हमें क्या बेबकूफ समझते हो'' माटसाब क्लास का माहौल गरमाते हुए बोले। मेरा जवाब सटीक भले ही न था पर सही जरूर था। कुटाई की डर से हमारा हाल रसायन विज्ञान में विराजमान एटम के किसी न्यूट्रॉन की तरह न्यूट्रल हो गया था जिसपे कोई चार्ज नहीं होता है। हमपे चार्ज चढ़ाने के लिए माटसाब छड़ी लेकर आगे बढ़े, हाथ निकालो चोट्टा अइसही जवाब दिया जाता है। हम बच्चे भी कम नहीं होते थे उस वक़्त, माँ की हाथ से बाल में लगाया हुआ करुआ तेल को अपने हाथ में वापस खींच लेने की शक्ति सबसे ज्यादा वहीँ दिखती थी। शायद इसीलिए माँ भी बाल में करुआ तेल चपोत के लगाती होगी।

अगले ही पल हमारा दोनों हाथ आगे था, ससरने की आकार में, माटसाब की चार छड़ी हमारा हाथ सह चुका था, नहीं.....नहीं.... हाथ पे से छड़ी ससर चुका था और पांचवा छड़ी हमने जानबूझकर लैप्स कर दिया और चोट परमोदवा के जांघ पे जाकर लगा। उसके एक चांटा मारने से जितनी लालिमा हमारे गाल पे आई थी उससे दोबर लालिमा जरूर परमोदवा के जांघ पे आ गयी होगी। उस दिन के बाद से इस्कूल का कोई भी लड़का परमोदवा को मौका का फायदा उठाते नहीं देखा।

अगले सप्ताह से परीक्षा शुरू होने वाली थी। परीक्षा में संस्कृत वाले मास्टर साब मेरे बगल में बबिता को बैठा दिए। हम जुगाड़ू थे इसीलिए हमारी गणित अच्छी थी, बबिता के पिता जी दूसरे विद्यालय में अंग्रेजी के मास्टर थे इसीलिए बबिता की अंग्रेजी अच्छी थी। परीक्षा के दौरान हमदोनों ने एक-दूसरे की कॉपी देखकर चोरियां भी की और मीठी बातें भी। हमें बबिता से पियार था इसीलिए हमने गणित की सारी सवाल बनाने के बाद सवाल नम्बर चार और सात का जवाब काट दिया, ताकि बबिता का नम्बर हमसे ज्यादा आये। मुझे पता नहीं बबिता को भी हमसे पियार था या नहीं...पर परिणाम आने के बाद बबिता की अंग्रेजी विषय वाली कॉपी में दो सवाल के जवाब कटे हुए दिखे, सवाल नम्बर सात और दस।

ये एक परीक्षा नहीं बल्कि हमारे बचपन की प्रेम की निशानी थी, हमदोनों का प्यार यही था कुछ निश्छल सा कुछ अकृत्रिम सा। ये पांचवीं कक्षा की कहानी थी, दरअसल उस समय पांचवीं कक्षा से ही अंग्रेजी पढ़ना और पढ़ाना शुरू किया जाता था।
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और हां, जिस दिन हम माटसाब से पिटाये थे उसके एक दिन बाद परमोदवा के माई मनोहर चचा से कह रही थी - " कइसन मास्टर है भंगलहवा बुतरुआ के मरलके हे जे जांघा में बाम कबड़ गेले है।

ऐसे शिक्षकों को भी शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।

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अभिषेक आर्यन

'धर्मवीर भारती' साहित्य जगत का ऐसा नाम जो 'गुनाहों का देवता' की वज़ह से आज भी (विद्यार्थी जीवन में पढ़ी जाने वाली लगभग अ...
04/09/2024

'धर्मवीर भारती' साहित्य जगत का ऐसा नाम जो 'गुनाहों का देवता' की वज़ह से आज भी (विद्यार्थी जीवन में पढ़ी जाने वाली लगभग अनिवार्य उपन्यास) बेहद प्रासंगिक हैं, 'गुनाहों का देवता' ने उन्हें वह प्रसिद्धि और लोकप्रियता दिलाई जो बहुत कम लोगों को मिलती है। इलाहाबाद में जन्मे धर्मवीर भारती बहुआयामी लेखक थे। भारती जी ने प्रेम को इतनी खूबसूरती से इतनी संवेदनशीलता से रचा की इनका लेखन पाठक के हृदय में आजीवन के लिए अंकित हो जाता है। उन्होंने प्रेम के साथ-साथ हर आयाम में रचनाएँ की।

उनकी एक बहुप्रसिद्ध रचना है 'अंधा युग' आप उसमें भारती जी का रचनाशीलता का कौशल देख सकते है। 'अंधा युग' एक गीतिनाट्य है और महाभारत के कथानक पर आधारित है। इस गीतिनाट्य का प्रारंभ महाभारत के अट्ठारहवें दिन की संध्या से होता है समापन श्रीकृष्ण की मृत्यु से। पात्रों और घटनाओं ऐतिहासिकता और कल्पनाशीलता दोनों देखी जा सकती है।

इसकी भूमिका में ' धर्मवीर भारती' लिखते हैं- " अंधा युग कदापि न लिखा जाता, यदि उसका लिखना न लिखना मेरे वश की बात रह गई होती। इस कृति का पूरा जटिल वितान जब मेरे अंतर में उभरा तो असमंजस में पड़ गया। थोड़ा डर भी लगा। लगा कि इस अभिशप्त भूमि पर एक कदम भी रखा कि फिर बचकर नहीं लौटूँगा। "

इस पूरी कृति में युद्ध की वेदना साथ-साथ चलती है।
इस रचना की प्रासंगिकता विश्व स्तर की होनी चाहिए, लेकिन इसके पाठक की संख्या अपेक्षाकृत सीमित रही। यद्यपि यह हिंदी-साहित्य में सफलतम् कृति के रूप में विद्यमान है।

उनके सम्पादन में निकली पत्रिका 'धर्मयुग' पत्रिका जगत में सूर्य की तरह चमत्कृत है। उसकी प्रसिद्धि जन-जन में थी, उसका मानक अत्यंत उच्च था। यह उनकी सम्पादन कुशलता ही थी कि 'धर्मयुग' सदैव लोकप्रियता के शिखर में रही।

उन्होंने कहानी संग्रह, काव्य रचनाएँ, उपन्यास, निबन्ध, एकांकी व नाटक, पद्य नाटक, आलोचना जैसी साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया।

आज उनकी पुण्यतिथि पर हम साहित्य के इस महापुरुष को नमन करते हैं।

प्रेम सिर्फ उतना नहीं जितना हम जान पाएँ, दरअसल प्रेम एक एहसास है और एहसास स्वच्छंद होते हैं। वास्तव में प्रेम एक प्राथमि...
31/08/2024

प्रेम सिर्फ उतना नहीं जितना हम जान पाएँ, दरअसल प्रेम एक एहसास है और एहसास स्वच्छंद होते हैं। वास्तव में प्रेम एक प्राथमिक क्रांति है। सच्चा प्रेम स्वतन्त्रता का परिचायक है। एक स्वतंत्र व्यक्ति ही सच्चा प्रेम कर सकता है।

अमृता प्रीतम का प्रेम, सच्चे प्रेम की ही एक इबारत है। वो प्रेम में रह के भी मुक्त रहीं, स्वतंत्र रहीं.. क्यूँ कि सच्चा प्रेम कभी बांधता नहीं। उनका प्रेम ही उनको महान बनाता है।

साहिर से उनका प्रेम बे-लफ़्ज़ होकर वक़्त दर वक़्त बढ़ता रहा.. ना ही उन्होने कभी अपने प्रेम को लफ़्ज़ दिये और ना ही वो प्रेम की प्रगाढ़ता से उबर पाईं। ये एक ऐसी स्थिति होती है जब प्रेम कहा नहीं जाता, सिर्फ समझा जाता है। उनके कुछ ना कहने पर भी साहिर का मन सब कुछ जानता था।

अमृता ने कई मरतबे ज़िक्र किया अपने इश्क़ का.. जब साहिर खामोश हो कर सिगरेट पीते थे, और आधी बची हुई सिगरेट बुझाकर फेंक देते थे, तब उनकी उँगलियों के बीच के फाँकों में अपनी उँगलियाँ डाल कर बैठना चाहती थीं वो.. तब साहिर उनसे महज कुछ ही दूरी पर बैठे होते थे लेकिन, उनके दरमियान एक अनकही सी दूरी थी जिसे अमृता तय नहीं कर पाती थीं। कमरे से साहिर के चले जाने के बाद, वो सिगरेट के बचे टुकड़ों को समेटती और एक-एक कर के जला के उन्हें अपने लबों पर रखतीं। इस तरह से अपनी उँगलियों के फाँकों में उनकी उँगलियों को महसूस करतीं।

अमृता जीवन चक्र के उस परिधि में थीं जहां से वक़्त की रेखाएँ हो कर गुजरती थीं। उनकी जीवनी एक लव ट्रिएंगल सी थी। अमृता, साहिर के प्रेम में थीं और एक शख्श, इमरोज़.. अमृता के प्रेम में। अमृता और इमरोज़ दोनों अपने अपने प्रेम की पराकाष्ठा पर थे।

इमरोज़ जानते थे कि अमृता उनकी कभी नहीं हो सकतीं लेकिन फिर भी ता-उम्र इमरोज़ उनके होकर रहे। इमरोज़ से एक बार पूंछा गया, "अमृता, साहिर से इश्क़ करती हैं, साजिद की बहुत ख़ास दोस्त हैं और आपका साथ उन्हें बेहद पसन्द है। ये जानकर आपको कैसा लगता है ?" इमरोज़ बड़ी सहजता से बोले, "जब हम किसी को प्यार करते हैं तो रास्ते की मुश्किलों को नहीं गिनते। मुझे मालूम है अमृता साहिर को कितना चाहती हैं, लेकिन मुझे यह भी बखूबी मालूम है कि मैं अमृता को कितना चाहता हूँ।"

प्रेम के होने पर वह हमारी ज़िंदगी में एक जगह बना लेता है, हमेशा हमेशा के लिए। ऐसा प्रेम फिर जीवन भर नहीं छूट पाता। और जब प्रेम कि मृत्यु होती है तो वह प्रेमी की भी आंशिक मृत्यु होती है। प्रेम के मरने पर हमारा एक हिस्सा भी हमेशा हमेशा के लिए मर जाता है।

साहिर के चले जाने के बाद, अंत तक अमृता इमरोज़ के साथ रहीं, इमरोज़ ने अमृता का खासा ख़्याल रखा, बिना किसी शर्त के, बिना किसी उम्मीद के। दोनों एक दूसरे के साथ खुश थे, रवायतों से परे..

रात के सन्नाटे में जब इमरोज़, अमृता की तरफ पीठ कर के सोते थे तब अमृता उनसे लिपट कर उनकी नंगी पीठ पर साहिर का नाम अपनी उंगली से गोदती थीं। इमरोज़ अक्षर बा अक्षर वो नाम पढ़ते और महसूस करते अपनी पीठ पर चलते अमृता के प्रेम को। वो आंख बंद करते और डूब जाते अमृता के इश्क़ में। उन्हें कोई शिकायत नहीं थी सिर्फ फक्र था अपनी मोहब्बत पे।

वास्तव में, प्रेम एकाकी होने का मोहताज नहीं। प्रेम स्वयं में एक दुनिया है जहां हमारा होना मायने रखता है, उसमें किसी और के होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

तकरीबन सैकड़ों पार किताबों के हर हर्फ़ में ज़िंदा, अमृता प्रीतम आज के रोज ही जन्मी थीं। साहित्य परिवार की एक अनमोल शख्शियत, अपनी विधा और अपने प्रेम के लिए युगों युगों तक याद की जाएंगी।

अमृता के जन्मदिवस पर सादर नमन..।

सुगिया! तुम्हारे होंठ सुग्गा जैसे हैं - एक ने कहासुगिया हंस पड़ी खिलखिलाकरतुम हंसती हो तो बहुत अच्छी लगती हो सुगियाबादलो...
17/08/2024

सुगिया!
तुम्हारे होंठ सुग्गा जैसे हैं - एक ने कहा
सुगिया हंस पड़ी खिलखिलाकर

तुम हंसती हो
तो बहुत अच्छी लगती हो सुगिया
बादलों में बिजली से चमकते उसके दांतों को देखकर
दूसरा बोला

तीसरे ने फरमाया
तुम बहुत अच्छा गाती हो
बिल्कुल कोयल की तरह
और नाच का तो क्या कहना
धरती नाच उठती है जब तुम नाचती हो

चौथे ने उसकी आँखों की प्रशंसा में कसीदे पढ़े
तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखें बहुत खुबसूरत हैं सुगिया बिल्कुल हिरनी की माफिक
तुम यहीं पास आकर बैठी रहो मुझे देखती रहो

पांचवा जो बिल्कुल करीब था और चुप चुप
उसने चुपके से कान में कहा -
मुझसे दोस्ती करोगी सुगिया
सोने की सिकड़ी बनवा दूंगा तुझे

सुनकर उदास हो गई सुगिया
रहने लगी गुम सुम
भूल गई हंसना, गाना, नाचना
सुबह से शाम तक
दिनभर मरती घटती सुगिया
सोचती है अक्सर
यहाँ हर पांचवा आदमी
उससे उसकी देह की भाषा में क्यूँ बतियाता है?

काश!
कोई कहता
कि तुम बहुत मेहनती हो सुगिया
बहुत भोली और ईमानदार हो तुम
काश! कहता कोई ऐसा।

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निर्मला पुतुल |

भूल गया है तू अपना पथ,और नहीं पंखों में भी गति,किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर।खग! उड़ते रहना जीवन भर!मत ड...
16/08/2024

भूल गया है तू अपना पथ,
और नहीं पंखों में भी गति,
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

मत डर प्रलय झकोरों से तू,
बढ़ आशा हलकोरों से तू,
क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

यदि तू लौट पडे़गा थक कर,
अंधड़ काल बवंडर से डर,
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस-हँस कर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

और मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते,
तेरी खाक चढ़ाएगा जग उन्नत भाल और आँखों पर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!

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गोपालदास "नीरज" |

पिता मरा नहीं करतेवे अपने बच्चों में जम जाया करते हैंठीक वैसे हीजैसे चिड़ियों के पंखो में जम जाता हैथोड़ा सा आसमानपर्वतो...
16/06/2024

पिता मरा नहीं करते
वे अपने बच्चों में जम जाया करते हैं

ठीक वैसे ही
जैसे चिड़ियों के पंखो में जम जाता है
थोड़ा सा आसमान
पर्वतों पर जम जाते हैं
जैसे पत्थर और कंकड़
और नदियों में जम जाता है
जैसे बांध बनाने वालों का पसीना।

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जोशना बैनर्जी आडवाणी

#तीखर

उसने सीखा था,सब कुछ स्वीकार कर लेनाअपनी नियति मानकर ईश्वर जो करता है, अच्छा करता हैईश्वर सत्ता हैऔरसत्ता से सवाल नहीं कि...
08/06/2024

उसने सीखा था,
सब कुछ स्वीकार कर लेना
अपनी नियति मानकर
ईश्वर जो करता है, अच्छा करता है
ईश्वर सत्ता है
और
सत्ता से सवाल नहीं किया जाता
सत्ता पर संदेह नहीं किया जाता
सवाल न किये जाने पर
संदेह न किये जाने पर
सत्ता
ईश्वर हो जाती है।

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आयुष्मान |

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Greater Noida
201306

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